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मासिक शिवरात्रि आज, शिव पूजा के लिए मिल रहा बस इतना समय

  • मासिक शिवरात्रि की पढ़ें ये व्रत कथा
सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन मासिक शिवरात्रि को बहुत ही खास माना गया है जो कि शिव साधना आराधना को समर्पित दिन होता है इस दिन भक्त भगवान भोलेनाथ की विधिवत पूजा करते हैं और दिनभर उपवास भी रखते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से प्रभु की कृपा बरसती है।
मासिक शिवरात्रि के दिन उपवास व पूजा पाठ करने से साधक के सभी दुख, कष्ट और जीवन की समस्याएं दूर हो जाती है। मार्गशीर्ष मास की मासिक शिवरात्रि आज यानी 29 नवंबर दिन शुक्रवार को मनाई जा रही है तो आज हम आपको शिव पूजा का मुहूर्त बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
शिव पूजा का शुभ मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार नवंबर माह यानी की मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि का व्रत किया जाएगा। इस बार मासिक शिवरात्रि 29 नवंबर को पड़ रही है इस दिन शिवरात्रि की शुरुआत सुबह 8 बजकर 39 मिनट से हो रही है और इसका समापन अगले दिन यानी की 30 नवंबर को 12 बजकर 25 मिनट पर हो जाएगा। मासिक शिवरात्रि के दिन शिव पार्वती की पूजा का शुभ मुहूर्त 29 नवंबर की रात 11 बजकर 41 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 25 मिनट तक रहेगा।
मासिक शिवरात्रि पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करना शुभ माना जाता है ऐसे में इस पावन दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करें इसके बाद भगवान शिव का जलाभिषेक करें। माता पार्वती के साथ शिव परिवार की पूजा कर धूपबत्ती, गंगाजल, दीपक, पुष्प और भोग लगाकर शिव की पूजा करें व्रत का संकल्प करते हुए शिव के मंत्रों का जाप करें इससे भगवान अपने भक्तों की मनोकामना को पूरा कर देते हैं।
मासिक शिवरात्रि व्रत कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था जो जानवरों को मारकर अपने परिवार का पालन-पोषण करता था. उस शिकारी पर एक साहूकार का कर्ज था. जिसे वह लंबे समय से चुका नहीं पा रहा था. इस बात से नाराज एक दिन होकर साहूकार ने शिकारी को शिव मठ में बंदी बना लिया. संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी. साहूकार के घर पूजा हो रही थी तो शिकारी ध्यानमग्न होकर भगवान शिव से जुड़ी धार्मिक बातें सुनता रहा. अगले दिन उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी. शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और कर्ज चुकाने के बारे में बात की. शिकारी अगले दिन सारा कर्ज चुकाने का वचन देकर कैद से छूटकर चला गया.
वह रोज की तरह ही जंगल में शिकार के लिए निकला. लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से परेशान था. शिकार ढूंढते हुए वह बहुत दूर निकल गया. जब अंधेरा हो गया तो उसने सोचा कि आज रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी. वह वन में एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा. बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था. शिकारी को उसका पता न चला. पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई. इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए।
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची. शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली, मैं गर्भिणी हूँ और शीघ्र ही प्रसव करूंगी. तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है. मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना. शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई. प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए. इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर की पूजा भी पूरी हो गई।

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