जानिये नेताजी सुभाष चंद्र बोस की खास बाते, जो आज भी है प्रेरणास्त्रोत
नईदिल्ली@डेस्क: भारत में 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 127 वीं जयंती मनाई जा रही है.इस मौके पर आपको जनना चाहिए कि देश की जंग-ए- आजादी में क्या मुख्य भूमिका रही.नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती 2021 से पराक्रम दिवस के तौर पर मनाई जा रही है।नेताजी के जीवन के सिद्धांत और कठोर त्याग भी भारत के प्रत्येक नागरि के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा....! जय हिन्द। जैसे जोशीले नारों से आजादी के संघर्ष में नई ऊर्जा पैदा करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस उन्होंने सिंगापुर के टाउन हाल के सामने सुप्रीम कमांडर के रूप में भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) को संबोधित करते हुए 'दिल्ली चलो' का नारा दिया था।उन्होंने ही गांधीजी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था।
पराक्रम दिवस : "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा" का नारा देने वाले सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर....पढ़िए ये खबर |
उनकी खास बातें जो लोगो के बनी प्रेरणास्त्रोत
Ø नेताजी सुभाष चंद्र बोस बचपन के दिनों से ही एक विलक्षण छात्र थे, और अतुलनीय राष्ट्रप्रेमी भी। भारतीय सिविल सेवा परीक्षा भी पहले प्रयास में पास कर ली थी। सिविल सेवा परीक्षा में उनकी रैंक चौथा था लेकिन आजादी की जंग में शामिल होने के लिए उन्होंने भारतीय सिविल सेवा की आरामदेह नौकरी ठुकरा दी थी। जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उन्हें इस कदर विचलित कर दिया कि,वे भारत की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। नेताजी के कॉलेज के दिनों में एक अंग्रेजी शिक्षक के भारतीयों को लेकर आपत्तिजनक बयान पर उन्होंने खासा विरोध किया, जिसकी वजह से उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया था। 1921 से 1941 के बीच नेताजी को भारत के अलग-अलग जेलों में 11 बार कैद में रखा गया था।
Ø 1941 में उन्हें एक घर में नजरबंद करके रखा गया था, जहां से वे भाग निकले थे। नेताजी कार से कोलकाता से गोमो के लिए निकल पड़े थे। वहां से वे ट्रेन से पेशावर के लिए चले गए थे और वहां से वह काबुल - पहुंचे और फिर काबुल से जर्मनी रवाना हुए जहां उनकी मुलाकात अडॉल्फ हिटलर से हुई। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1सितंबर 1942 उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी (INA) की स्थापना की थी जिसमें करीब 43000 सैनिक थे
- 1943 में बर्लिन में रहते हुए नेताजी ने आजाद हिंद रेडियो और फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी की कई बातों और विचारों से इत्तेफाक नहीं रखते थे, और इस पर उनका मानना था कि हिंसक प्रयास के बिना भारत को आजादी नहीं मिलेगी। नेताजी का ऐसा मानना था कि अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए एक सशस्त्र क्रांति की जरूरत है।
- 21 अक्टूबर 1943 को बोस ने आज़ाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई जिसे जर्मनी, जापान, फ़िलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशो की सरकारों ने मान्यता दी थी। जापान ने अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह इस अस्थायी सरकार को दे दिए। सुभाष उन द्वीपों में गए और उनका नया नामकरण किया।
- 1944 को आज़ाद हिंद फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यही एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।
- 6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिए उनका आशीर्वाद और शुभ कामनाएँ मांगी.