पराक्रम दिवस : "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा" का नारा देने वाले सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर....पढ़िए ये खबर
नईदिल्ली@डेस्क : भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी नेता सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक बंगाल प्रेसीडेंसी का ओड़िसा डिवीजन में हुआ था.उनके द्वारा दिया गया जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा" का नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया।भारतवासी उन्हें नेता जी के नाम से सम्बोधित करते हैं। जानकारी के अनुसार द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिए, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन किया था.उनके जयंती 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता हैं.
इस साल नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 127वीं जयंती मनाई जा रही है.देश की जंग-ए- आजादी में बरेली की भी मुख्य भूमिका रही.ऐसा कहा जाता हैं कि बरेली में क्रांतिकारियों की निशानियां आज भी मौजूद हैं.रुहेला सरदार की क्रांतिकारियों की निशानियां आज भी कमिश्नरी से लेकर फतेहगंज पश्चिमी तक हैं. बरेली के क्रांतिकारियों ने महात्मा गांधी से लेकर सुभाष चंद्र बोस के साथ आजादी की लड़ाई में योगदान दिया. सुभाष चन्द्र बोस ने बरेली में अंतिम बार वर्ष 1938 में सरस्वती सेकेंडरी स्कूल में सभा की थी. इस दौरान अपने संबोधन में कहा कि, देश को आजादी केवल अहिंसा से प्राप्त नहीं हो सकती. यह बड़ा उद्देश्य सिर्फ क्रांति से ही हासिल किया जा सकता है. नेता जी की जनसभा में बड़ी संख्या में क्रांतिकारी शामिल हुए थे.इस जनसभा की अध्यक्षता प्रिंसिपल विशंभर नाथ ने की.
युवाओं में भरा देशप्रेम की भावना
नेताजी ने भारत माता को आजाद कराने के लिए नारा दिया, भारत मां को आजाद कराओ, उन्होंने कहा कि, नौजवान तूफान की तरह होता है, जो अपनी पर आ जाए, तो बड़े से बड़े दरख़्त को तिनके की तरह उड़ा ले जाता है.नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है।जहाँ जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है वहीं भारत में रहने वाले उनके परिवार के लोगों का आज भी यह मानना है कि सुभाष की मौत 1945 में नहीं हुई।वे उसके बाद रूस में नज़रबन्द थे। यदि ऐसा नहीं है तो भारत सरकार ने उनकी मृत्यु से संबंधित दस्तावेज अब तक सार्वजनिक नहीं किए क्योंकि नेता जी की मृत्यु नहीं हुई थी।
आज़ाद हिन्द सरकार के 75 वर्ष पूर्ण होने पर इतिहास में पहली बार वर्ष 2018 में भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने लाल क़िला पर तिरंगा फहराया। 23 जनवरी 2021 को नेताजी की 125वीं जयंती मनाई गई.जिसे भारत सरकार के निर्णय के तहत पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
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