धर्म समाज

इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा का प्रभाव नहीं रहेगा

इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा का प्रभाव नहीं रहेगा। 9 अगस्त, शनिवार को श्रावण पूर्णिमा के दिन सुबह से दोपहर 2.40 बजे तक शुभ चौघड़िया और सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। इसके बाद भी दिनभर शुभ योग बने रहेंगे। शास्त्रों के अनुसार जब भद्रा भूलोक पर होती हैं तब शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
इस बार अत्यंत दुर्लभ और शुभ संयोग
इस बार ऐसी कोई स्थिति नहीं होगी। अत: बहनें दिनभर रक्षा सूत्र बांध सकती हैं। इतना ही नहीं इस बार यह ग्रह-नक्षत्रों की दृष्टि से अत्यंत दुर्लभ व शुभ संयोग वाला दिन रहेगा। ऐसा संयोग करीब 297 वर्ष पूर्व 1728 में बना था।
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सावन में कब करें रुद्राभिषेक?, जानिए... शुभ मुहूर्त और तिथि

सावन माह शिवभक्तों के लिए बेहद खास और पवित्र माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि सावन में संपूर्ण सृष्टि का संचालन शिव जी ही करते हैं। यही कारण है कि इस समय रुद्राभिषेक का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि सावन माह में ही भगवान शिव पहली बार राजा हिमाचल यानी अपने ससुराल गए थे, जहां उनका भव्य स्वागत किया गया था। इस माह में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए 12 ज्योतिर्लिंगों में से किसी एक में जाकर रुद्राभिषेक करना बेहद शुभदायी माना गया है, हालांकि जो ज्योतिर्लिंगों में जाकर पूजा नहीं कर सकते हैं वे अपनी नजदीकी मंदिरों में जाकर रुद्राभिषेक कर सकते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि इस माह कौन-कौन सी तिथियां रुद्राभिषेक के लिए शुभ हैं|
रुद्राभिषेक से लाभ-
सावन माह में भगवान शिव की पूजा और रुद्राभिषेक करना बेहद शुभ फलदायी है। मान्यता है कि इस माह भगवान शिव को जल, दूध, बेलपत्र, भांग और धतूरा अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं। वहीं, रुद्राभिषेक करने से जातक के सभी रोग, दोष, भय और बाधा दूर हो जाती है। यहां तक की इससे संतान प्राप्ति, शीघ्र विवाह, करियर में सफलता, धन वृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य और मानसिक शांति जैसी सभी सुख प्राप्त होते हैं।
रुद्राभिषेक करने के लिए शुभ तिथि-
तारीख तिथि योग
14 जुलाई 2025 चतुर्थी तिथि सुखप्रद योग
15 जुलाई 2025 पंचमी तिथि अभीष्टसिद्धि
18 जुलाई 2025 अष्टमी तिथि सुखप्रद
21 जुलाई 2025 एकादशी तिथि सुखप्रद
22 जुलाई 2025 द्वादशी तिथि अभीष्टसिद्धि
23 जुलाई 2025 चतुर्दशी तिथि शुभ योग
24 जुलाई 2025 अमावस्या तिथि सुखप्रद
26 जुलाई 2025 द्वितीया तिथि सुखप्रद
29 जुलाई 2025 पंचमी तिथि सुखप्रद
30 जुलाई 2025 षष्ठी तिथि अभीष्टसिद्धि
6 अगस्त 2025 द्वादशी तिथि सुखप्रद
7 अगस्त 2025 त्रयोदशी तिथि अभीष्टसिद्धि
इसके अलावा आप सावन के सोमवार के दिन भी रुद्राभिषेक करवा सकते हैं।
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सावन के पहले शनिवार को शिवलिंग पर चढ़ाएं ये 3 चीजें

  • शनिदेव और महादेव की मिलेगी कृपा
सावन 11 जुलाई 2025 से शुरू हो चुका है, जो 9 अगस्त 2025 तक चलने वाला है। इस महीने भगवान शिव और माता पार्वती की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि सावन में भगवान शिव पूरे ब्रह्मांड की कमान संभालते हैं। इतना ही नहीं, वे धरती पर आकर भक्तों पर विशेष कृपा भी बरसाते हैं। इसलिए इस महीने शिव मंदिरों में उनकी प्रिय चीजों से भव्य तरीके से जलाभिषेक और रुद्राभिषेक किया जाता है। सोमवार के अलावा इस दौरान शनिवार का भी विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि सावन शनिवार को भगवान शिव की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं। इस दौरान शिवलिंग पर कुछ चीजें चढ़ाना और भी लाभकारी माना जाता है। इसके प्रभाव से शनि महाराज की कृपा भी प्राप्त होती है। साथ ही शनि दोष, तनाव, रोग और कर्ज जैसी समस्याएं भी कम होती हैं। ऐसे में आइए जानते हैं सावन के पहले शनिवार को शिवलिंग पर क्या चढ़ाना चाहिए।
सावन के पहले शनिवार को करें ये तीन आसान उपाय
शनिवार के दिन शिवलिंग पर सरसों के तेल का दीपक जलाना शुभ होता है। यह उपाय आपको सौभाग्य प्रदान कर सकता है। साथ ही, यह चल रही स्वास्थ्य समस्याओं को भी दूर कर सकता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सावन के पहले शनिवार को काले तिल और जल से शिवलिंग का अभिषेक करें। इससे तनाव, रोग और शनि दोष से मुक्ति मिलती है।
सावन के पहले शनिवार को शिवलिंग पर शमी पत्र चढ़ाना चाहिए। इससे करियर में आ रही बाधाएँ दूर होती हैं।
शनि गायत्री मंत्र
ॐ शनैश्चराय विदमहे छायापुत्राय धीमहि।
शनि बीज मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रं स: शनैश्चराय नम:।
शनि स्तोत्र
ॐ नीलांजन समाभासं रवि पुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम।
शनि पिडाहर स्तोत्र
सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्षः शिवप्रियः।
दीर्घाचारः प्रसन्नात्मा पीड़ां हरतु में शनिः।।
तन्नो मंदः प्रचोदयात्।।
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षय मामृतात् ॐ भुवः भूः स्वः ॐ सः जूं हौं ॐ।
सुख और शांति पाने का मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्!
शिव मूल मंत्र: ॐ नमः शिवाय
भगवान शिव के शक्तिशाली मंत्र
ॐ साधो जातये नमः। ॐ वं देवाय नमः।
ॐ अघोराय नमः। ॐ तत्पुरुषाय नमः।
ॐ ईशानाय नमः. ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।
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बीजेपी विधायक ने कांवड़ यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था की

कबीरधाम। बीजेपी विधायक भावना बोहरा ने कांवड़ यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था की है। उन्होंने बताया, प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी हमारे कबीरधाम जिले से जल लेकर अमरकंटक प्रस्थान करने वाले कांवड़ यात्रियों की सेवा हेतु मेला मैदान, नया नगर पालिका परिसर, अमरकंटक, जिला अनूपपुर में निःशुल्क भोजन एवं विश्राम की सुविधा कल से प्रारंभ हो गई है।
सावन माह के आज प्रथम दिन 11 जुलाई को लगभग 500 कांवड़ यात्रियों एवं श्रद्धालुओं का आगमन हुआ जिनकी सेवा करने का हमें सुखद सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसके लिए मैं सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करती हूं। साथ ही कबीरधाम जिले के समस्त कांवड़ यात्रियों व श्रद्धालुओं से निवेदन करती हूं कि जलेश्वर महादेव एवं जीवनदायिनी माँ नर्मदा के दर्शन हेतु जरूर पधारें और अपनी सेवा-सत्कार का पुण्य लाभ हमें जरूर प्रदान करें। यह सेवा 11 जुलाई से 6 अगस्त तक जारी रहेगी।
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भोरमदेव मंदिर में भोले बाबा के भक्तों की उमड़ी भीड़

रायपुर/कवर्धा. भगवान शिव का महीना माने जाने वाला सावन आज से शुरू हो गया है. शिव मंदिरों में सुबह से भोले भक्तों का तांता लगा हुआ है. बड़ी संख्या में लोग महादेव की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद लेने के लिए पहुंच रहे हैं. रायपुर के महादेव घाट स्थित हाटकेश्वर महदेव के दर्शन के लिए श्रद्धालु उमड़ रहे हैं. वहीं कवर्धा के भोरमदेव मंदिर में बाबा भोलेनाथ से आशीर्वाद लेने बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं.
राजधानी रायपुर के खारुन तट पर विराजे हटकेश्वर महादेव में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा है. मंदिर में लोग श्रीफल, फूल-माला, दूध और बेलपत्र के साथ जलाभिषेक करने पहुंच रहे हैं. इस बीच सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं, जिससे की कोई परेशानी न हो सके. यह मंदिर काफी प्राचीन माना जाता है. इसकी अनेक मान्यताएं भी हैं.कवर्धा के भोरमदेव मंदिर का सुबह 4 बजे पट खुला, जहां भोरमदेव बाबा की विशेष मंत्रोच्चारण के साथ विशेष पूजा अर्चना की गई. साथ ही भस्म आरती किया गया. मंदिर में सुबह से बड़ी संख्या में भक्त पहुंच रहे हैं. श्रद्धालु जलाभिषेक और आशीर्वाद प्राप्त कर रहे है.
जिलेभर में सावन पर्व का उत्साह देखने को मिल रहा है, ओम नमः शिवाय और बोल बम की जय घोष लग रहे हैं. बता दें भोरमदेव मंदिर ट्रस्ट और जिला प्रशासन ने सावन माह को देखते हुवे विशेष तैयारी की गई है.
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महाकालेश्वर मंदिर में अब श्रद्धालुओं के लिए विशेष दर्शन व्यवस्था

उज्जैन। उज्जैन के प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में शुक्रवार से विशेष दर्शन व्यवस्था शुरू हो गई है। आज शुक्रवार को रात्रि 3 बजे मंदिर के पट खुले और बाबा महाकाल की भस्म आरती की गई। इस दौरान देशभर से श्रद्धालु दर्शन के लिए उमड़े। मंदिर परिसर बाबा महाकाल के जयकारों से गूंज उठा।
विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि शुक्रवार को प्रातः 3 बजे हुई भस्म आरती के दौरान बाबा महाकाल का पंचामृत पूजन-अभिषेक कर श्रृंगार किया गया। महाकाल मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा ने बताया कि भस्म आरती के लिए मंदिर के पट खुलते ही पुजारियों ने गर्भगृह में स्थापित सभी देवताओं की प्रतिमाओं का पूजन किया और दूध, दही, घी, शक्कर और फलों के रस से बने पंचामृत से भगवान महाकाल का जलाभिषेक किया। इसके बाद प्रथम घंटा बजाया गया और हरि ॐ का जल अर्पित किया गया। कपूर-आरती के बाद बाबा महाकाल को पुष्प माला धारण कराई गई।
पंडित महेश शर्मा के अनुसार, आज बाबा महाकाल के श्रृंगार की खास बात यह रही कि बाबा महाकाल के माथे पर त्रिपुंड और त्रिनेत्र लगाया गया। इस दौरान भगवान महाकाल को पुष्प माला भी अर्पित की गई। साथ ही, उन्हें अनोखे स्वरूप में नवीन मुकुट भी पहनाया गया। इसके बाद महानिर्वाणी अखाड़े द्वारा बाबा महाकाल के ज्योतिर्लिंग पर भस्म का लेप किया गया और फिर कपूर आरती की गई तथा भोग भी लगाया गया। भस्म आरती के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुँचे, जिन्होंने बाबा महाकाल के इस दिव्य स्वरूप के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया और बाबा महाकाल की भक्ति में लीन होकर जय श्री महाकाल का उद्घोष करने लगे।
मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर में आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को भस्म आरती का दर्शन कराने के उद्देश्य से मंदिर में चलित भस्म आरती की व्यवस्था एक बार फिर शुरू की गई। आज भस्म आरती में चलित दर्शन व्यवस्था रही। आज श्रद्धालुओं ने बिना किसी अनुमति के भगवान महाकाल के दर्शन किए। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए मंदिर प्रशासन ने कार्तिकेय मंडपम में तीन लाइनें लगाकर श्रद्धालुओं को भस्म आरती के दर्शन कराने की व्यवस्था की।
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श्री श्री 108 श्री सत्यनारायण बाबा धाम कोसमनारा में पहुंचे मुख्यमंत्री साय

  • प्रदेशवासियों की सुख-समृद्धि और खुशहाली की प्रार्थना की
रायपुर। गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने रायगढ़ जिले के ग्राम कोसमनारा स्थित श्री श्री 108 श्री सत्यनारायण बाबा धाम पहुंचकर भगवान भोलेनाथ की विधिवत पूजा-अर्चना कर प्रदेशवासियों की सुख, समृद्धि और खुशहाल जीवन के लिए प्रार्थना की।
मुख्यमंत्री ने कहा कि गुरु पूर्णिमा का दिन श्रद्धा, आस्था और मार्गदर्शन के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर है। कोसमनारा स्थित यह धाम लोगों की आस्था का केंद्र है और यहाँ की आध्यात्मिक ऊर्जा आत्मबल प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार जनकल्याण के मार्ग पर गुरुजनों के आशीर्वाद और जनआशीर्वाद के साथ निरंतर आगे बढ़ रही है।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री के साथ वित्त मंत्री श्री ओपी चौधरी, रायगढ़ सांसद श्री राधेश्याम राठिया, राज्यसभा सांसद श्री देवेंद्र प्रताप सिंह, विधायक श्री पुरंदर मिश्रा और महापौर श्री जीवर्धन चौहान भी उपस्थित थे।
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भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सावन में करें ये खास उपाय

  • मिलेगा आशीर्वाद
महादेव को प्रिय श्रावण मास का शुभारंभ शुक्रवार से हो रहा है, जिसे लेकर शिव भक्तों में उत्साह है। इस मास में भोलेनाथ की पूजा का विशेष महत्व है। यह महीना भगवान शिव की पूजा, आराधना के लिए विशेष माना गया है।
श्रावण मास में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस मास में शिवलिंग पर जल चढ़ाना, बिल्व पत्र अर्पित करना और रुद्राभिषेक करना विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।
'सावन सोमवार का व्रत' हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, खासकर भगवान शिव के भक्तों के लिए। यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और सोमवार का दिन उन्हें अत्यंत प्रिय है। मान्यता है कि सावन के सोमवार का व्रत रखने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अविवाहित लड़कियों को मनपसंद वर की प्राप्ति होती है और विवाहित महिलाओं को सुखद वैवाहिक जीवन और संतान सुख का आशीर्वाद मिलता है।
सोमवार के दिन भगवान शिव को गंगाजल, दूध, घी, शक्कर के साथ अबीर, इत्र, अक्षत (चावल के साबूत दाने) समेत अन्य पूजन सामग्री अर्पित करनी चाहिए। इसके साथ ही चीनी और दूध समेत सफेद चीजों का दान करना चाहिए। घर में या मंदिर में रुद्राभिषेक करने का भी विशेष प्रावधान है।
भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें। एक चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा को स्थापित करें, गंगाजल और दूध से अभिषेक करें, और बिल्वपत्र, चंदन, अक्षत, फल और फूल चढ़ाएं। लेकिन एकादशी के दिन भगवान शिव को अक्षत नहीं चढ़ाना चाहिए।
भोलेनाथ की पूजा के साथ ही माता पार्वती की भी पूजा करनी चाहिए। माता को सोलह श्रृंगार की वस्तुएं चढ़ाएं। इसके साथ ही भगवान शिव का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें और दीपक जलाकर भगवान शिव की आरती करें। इसके बाद 'ओम नमः शिवाय' मंत्र का जाप करना चाहिए। व्रत के बाद, गरीबों, ब्राम्हणों के साथ ही जरूरतमंदों को दान करना चाहिए।
उत्तर भारत में सावन का महीना 11 जुलाई से शुरू हो रहा है। वहीं, इस बात का विशेष ध्यान रहे कि भारत के कुछ क्षेत्रों, जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और गोवा जैसे दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में, अमांत कैलेंडर का पालन किया जाता है। जिस वजह से इन क्षेत्रों में सावन का महीना 25 जुलाई से शुरू होगा और इसका समापन 23 अगस्त को होगा।
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गुरु पूर्णिमा पर हरिद्वार, अयोध्या, प्रयागराज और वाराणसी में उमड़े श्रद्धालु

  • लगाई आस्था की डुबकी, आश्रमों में गुरुओं का लिया आशीर्वाद
नई दिल्ली। गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर आज देशभर से श्रद्धा, भक्ति और आस्था की तस्वीरें सामने आईं। हरिद्वार में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने गंगा में पवित्र डुबकी लगाई। विभिन्न घाटों व मंदिरों में भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। इसके अलावा विभिन्न आश्रमों में साधु संतों से भी श्रद्धालुओं ने आशीर्वाद लिया। अयोध्या का सरयू तट, प्रयागराज का त्रिवेणी संगम या काशी का गंगा घाट, हर जगह श्रद्धालु उमड़ पड़े। स्नान, पूजन और गुरु वंदना के माध्यम से लोगों ने अपने श्रद्धाभाव को प्रकट किया।
अयोध्या धाम में इस बार गुरु पूर्णिमा का पर्व बेहद भव्य और ऐतिहासिक रहा। सरयू नदी के पवित्र घाटों पर श्रद्धालु तड़के ब्रह्म मुहूर्त से ही जुटने लगे। महिलाओं, पुरुषों और बच्चों ने पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ स्नान कर मां सरयू का आशीर्वाद लिया। इसके बाद श्रद्धालु मठ-मंदिरों में पहुंचकर अपने गुरुओं के दर्शन व आशीर्वाद प्राप्त करते नजर आए। चारों ओर हर-हर महादेव और जय गुरु देव के जयकारे गूंजते रहे।
प्रयागराज में भी गुरु पूर्णिमा पर भक्तों का जनसैलाब त्रिवेणी संगम पर उमड़ा। देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान कर पुण्य लाभ कमा रहे हैं। स्नान के बाद लोग दान-दक्षिणा देकर अपने मठों और संतों की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु ब्रह्म मुहूर्त से ही त्रिवेणी की पावन धारा में आस्था की डुबकी लगाने के साथ-साथ दान पूर्ण कर रहे हैं। प्रयागराज में सुरक्षा व्यवस्था के भी पुख्ता इंतजाम किए गए। घाटों पर पुलिस और स्वयंसेवकों की तैनाती रही।
श्रद्धालु राकेश कुमार त्रिपाठी ने कहा कि गुरु पूर्णिमा के दिन गंगा में डुबकी लगाकर मां गंगा का आशीर्वाद लिया और पंडित जी को दान-दक्षिणा दी। अब अपने संत-महात्माओं से आशीर्वाद लेंगे और सत्संग में भाग लेंगे। वहीं, एक अन्य श्रद्धालु ने कहा कि गुरु पूर्णिमा आत्मा की जागृति का दिन है। गुरु ही वह शक्ति है जो हमें परमात्मा से जोड़ती है और सही मार्ग दिखाती है।
गुरु पूर्णिमा को लेकर पुरोहित गोपाल दास ने कहा कि गुरु की महिमा का उत्सव मनाने का दिन ही गुरु पूर्णिमा है। गुरु ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दिखाते हैं। अयोध्या और प्रयागराज के अलावा, वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। हालांकि गंगा का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है और घाट की सीढ़ियां जलमग्न हो चुकी हैं, लेकिन श्रद्धा में कोई कमी नहीं दिखी। लोग सुरक्षित स्थानों से गंगा स्नान कर रहे थे। कई श्रद्धालु पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते और गंगा जल से पूजन करते नजर आए। प्रशासन ने यहां भी सुरक्षा के व्यापक इंतजाम कर रखे हैं। एनडीआरएफ और जल पुलिस की टीमें भी सतर्क रहीं। बनारस में स्नान के बाद श्रद्धालु बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए निकल पड़े।
मध्य प्रदेश के विदिशा से आए जय राम पटेल ने कहा कि हम गुरु पूर्णिमा पर गंगा स्नान करने आए हैं। इसके बाद बाबा विश्वनाथ के दर्शन करेंगे। वहीं, कमलेश मिश्रा ने कहा कि काशी का महत्व अवर्णनीय है। यह हमारा सौभाग्य है कि हम यहां आकर स्नान कर सके।
 
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प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष और मूणत ने महंत वेद प्रकाशाचार्य महाराज का लिया आशीर्वाद

रायपुर। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष और मूणत ने महंत वेद प्रकाशाचार्य महाराज का आशीर्वाद लिया। मूणत ने पोस्ट में लिखा, गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर रामकुंड स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण देव के साथ पूज्य महंत वेद प्रकाशाचार्य जी महाराज का पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य मिला।
गुरु ही जीवन का मार्गदर्शन हैं- ज्ञान, संस्कार और प्रकाश के प्रतीक। आप सभी को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
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बुधवार के दिन करें ये सरल उपाय, होगी हर मनोकामना पूरी

बुधवार का दिन गौरी पुत्र भगवान श्री गणेश और बुध ग्रह को समर्पित है। कहा जाता है कि बुध ग्रह के नाम से ही इस दिन का नाम बुधवार पड़ा है। हिंदू धर्म में बुधवार के दिन व्रत रखकर भगवान गणेश की पूजा करना शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है और कुंडली में बुध ग्रह के अशुभ प्रभाव भी कम होते हैं। इसके अलावा ज्योतिष शास्त्र में बुधवार के दिन कुछ ऐसे उपाय बताए गए हैं। इन उपायों को करने से भगवान गणेश का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही सभी बाधाएं दूर होती हैं और कुंडली में बुध की स्थिति मजबूत होती है। ऐसे में आइए जानते हैं बुधवार के इन्हीं चमत्कारी उपायों के बारे में जो जीवन की परेशानियों को दूर करते हैं|
यदि आपकी कुंडली में बुध ग्रह कमजोर है, तो बुधवार के दिन किसी जरूरतमंद व्यक्ति को हरी मूंग या हरा कपड़ा दान करना बहुत शुभ माना जाता है। इससे आपको लाभ मिलता है और जीवन में आने वाली परेशानियां दूर हो जाती हैं।
अगर आप आर्थिक समस्याओं या कर्ज से परेशान हैं तो प्रत्येक बुधवार को गणेश स्तोत्र का पाठ करें। ऐसा करने से भगवान गणेश का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में उन्नति के मार्ग प्रशस्त होते हैं।
हर बुधवार को 'ओम गं गणपतये नमः:' या 'श्री गणेश नमः' मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से आपके जीवन में आने वाली सभी परेशानियां दूर हो सकती हैं।
बुधवार के दिन भगवान गणेश की पूजा में 21 दूर्वा अवश्य चढ़ानी चाहिए। ऐसा करने से गणेश जी जल्दी प्रसन्न होते हैं क्योंकि गणेश जी को दूर्वा भी बहुत प्रिय है।
वहीं यदि आपकी कुंडली में बुध ग्रह कमजोर है तो अपने पास हरे रंग का रुमाल रखें। साथ ही बुधवार के दिन हरे रंग के कपड़े पहनना भी शुभ होता है।
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गुरु पूर्णिमा का महापर्व कल गुरुवार को

  • अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाने वाले गुरुओं को नमन
आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि गुरुवार को पड़ रही है, इस दिन शिष्य अपने गुरु और मार्गदर्शक की पूजा करते हैं, जिनसे उन्हें शैक्षिक और आध्यात्मिक ज्ञान मिला है। शास्त्रों में गुरु का स्थान देवताओं से भी ऊपर बताया गया है, क्योंकि गुरु अपने शिष्य को जीवन में सफलता पाने का और परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग बताते हैं। गुरु पूर्णिमा: अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाने वाले गुरुओं को नमन
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
इस श्लोक का अर्थ है कि गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही शिव हैं। गुरु साक्षात परब्रह्म हैं, गुरु को हम प्रणाम करते हैं। गुरु शब्द में 'गु' का अर्थ है अंधकार और 'रु' का अर्थ है नाश करने वाला, यानी जो अज्ञान के अंधकार का नाश करता है और ज्ञान का प्रकाश देता है, वही गुरु है।
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। इसलिए हर साल इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। उन्होंने वेदों का संपादन किया, 18 पुराण, महाभारत और श्रीमद् भगवद् गीता की रचना की। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।
इस दिन पवित्र नदी में स्‍नान करने से आपको हर तरह के पाप से मुक्ति मिलती है और महापुण्‍य की प्राप्ति होती है। इस दिन गुरुओं का सम्मान करने के साथ-साथ उन्हें गुरु दक्षिणा भी दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गुरु और बड़ों का सम्मान करना चाहिए। जीवन में मार्गदर्शन के लिए उनका आभार व्यक्त करना चाहिए, गुरु पूर्णिमा पर व्रत, दान और पूजा का भी महत्व है। व्रत रखने और दान करने से ज्ञान मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक है। इस दिन गुरु की पूजा करनी चाहिए, लेकिन अगर हम गुरु से साक्षात् नहीं मिल पा रहे हैं तो गुरु का ध्यान करते हुए भी पूजा कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार गुरु की मानसिक पूजा का भी की जा सकती है। इसी तरह हम भी जब कोई बड़ा काम शुरू करते हैं तो अपने गुरु का ध्यान जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से काम में सफलता मिलती है।
इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ गुरुओं को पीले वस्त्र, फल और अन्य सामग्री भेट के रूप में दें। साथ ही इस दिन आप गुरु मंत्र का जाप करे। ग्रंथों का पाठ करें, गुरु द्वारा बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लें। इस दिन किसी योग व्यक्ति को गुरु माने और गुरु दीक्षा लें। गुरु को गुरु दक्षिणा अर्पित करें।
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महादेव का एक ऐसा ज्योतिर्लिंग जिसकी कथा रामायण काल से है जुड़ी

  • पूजा करने से भक्त पाप और बुरे कर्मों से हो जाता है मुक्त
भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंग में भीमाशंकर का छठा स्थान है। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 110 किलोमीटर दूर सह्याद्रि पर्वत पर स्थित है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग काफी बड़ा और मोटा है, जिसके कारण इस मंदिर को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है।
बता दें कि भीमाशंकर मंदिर के पास ही एक नदी बहती है, जिसको लेकर मान्यता है कि जब यहां भीमा असुर और भगवान शिव के बीच युद्ध चल रहा था तब भगवान शिव के शरीर से पसीने की कुछ बूंदें निकलीं। इसी पसीने से भीमा नदी का निर्माण हुआ। भीमा नदी यहीं से बहती है जो कृष्णा नदी में जाकर मिल जाती है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा शिव पुराण में वर्णित है, जिसमें कुंभकर्ण का पुत्र भीमा भगवान राम से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए तपस्या करता है, उसे ब्रह्मा से अजेय होने का वरदान प्राप्त होता है। इसके बाद वह अत्याचार करने लगता है। जिससे त्रस्त होकर देवता और ऋषि महादेव की शरण में जाते हैं। फिर भगवान शिव और भीमा के बीच भयंकर युद्ध होता है, जिसमें अंततः भगवान शिव भीमा का वध कर देते हैं और यहां ज्योतिर्लिंग स्वरूप में विद्यमान हो जाते हैं।
मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सभी पापों का नाश हो जाता है और भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। शिव पुराण में कहा गया है कि भीमाशंकर मंदिर में पूजा करने से भक्त अपने पापों और बुरे कर्मों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिव पुराण के अलावा, कई प्राचीन ग्रंथों में भी भीमाशंकर मंदिर के महत्व का उल्लेख किया गया है।
यहां गुप्त भीम भी है। यह भीमा नदी का उद्गम स्थल है। भीमाशंकर मंदिर से 3 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित, गुप्त भीम वह स्थान है, जहां भीमा नदी एक शिला पर रखे गए लिंग के ऊपर तीव्र बल से बहती है।
वैसे भीमाशंकर के बारे में बता दें कि इसके आसपास 108 तीर्थ स्थान हैं। इनमें प्रमुख तीर्थ स्थान सर्वतीर्थ, ज्ञानतीर्थ, मोक्ष तीर्थ, पापमोचन तीर्थ, क्रीड़ा तीर्थ, भीमा उद्गम तीर्थ, भाषा तीर्थ, आदि हैं।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में इस मंदिर की महिमा के बारे में वर्णित है...
यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च । सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥
जो डाकिनी और शाकिनी वृन्द में प्रेतों द्वारा सदैव सेवित होते हैं, उन भक्तहितकारी भगवान भीमाशंकर को मैं प्रणाम करता हूं।
भीमाशंकर मंदिर के पास ही कमलजा मंदिर भी है जो कि भारत वर्ष में बहुत प्रसिद्ध मंदिर माना गया है। कमलजा माता को माता पार्वती का अवतार ही माना जाता है। यहीं भीमाशंकर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित हनुमान झील एक शानदार जगह है, जहां आप एक शांत दिन बिता सकते हैं।
यहीं पास में पार्वती हिल्स है, जहां की छटा बेहद मनोरम है। इसके साथ ही यहां मंदिर के पश्चिमी भाग में स्थित तालाब मंदिर के पीछे की ओर स्थित है। ऋषि कौशिक ने अपने गुरु का पिंडदान इसी पवित्र स्थल पर किया था। ऐसा माना जाता है कि इस तालाब में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसे मोक्ष कुंड तीर्थ कहते हैं। भीमाशंकर मंदिर के दक्षिण की ओर स्थित सर्वतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध यह तालाब सीधे भगवान के मंदिर से जुड़ा हुआ है और यहीं से भीमा नदी निकलती है और बहती है। वहीं गुप्त भीम मार्ग पर स्थित गणपति मंदिर है। मान्यता है कि श्री भीमाशंकर के दर्शन के बाद इन भगवान गणेश के दर्शन भी करने चाहिए। इस गणपति के दर्शन के बाद ही भीमाशंकर यात्रा पूरी मानी जाती है। यह मंदिर भीमाशंकर से लगभग 1.30 किलोमीटर दूर स्थित है।
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इस दिन सूर्य देव करने जा रहे हैं राशि परिवर्तन

  • जानें आपके जीवन पर क्या होगा असर
पंचांग के अनुसार, 16 जुलाई यानी बुधवार को सूर्य देव कर्क राशि में गोचर करेंगे. इस दिन सूर्य का गोचर सुबह 05 बजकर 40 मिनट पर होगा. ऐसे में 16 जुलाई 2025 को कर्क संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा. आइए जानते हैं कि इस कर्क संक्रांति का आपकी राशि पर क्या असर हो सकता है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कर्क संक्रांति का सभी 12 राशियों पर पर पड़ेगा अलग-अलग प्रभाव-
मेष राशि-
मेष राशि वालों के लिए सूर्य का यह गोचर आपके चौथे भाव में होगा, जो सुख, माता, भूमि और भवन का भाव है. इस दौरान आपको घरेलू जीवन में कुछ बदलाव देखने को मिल सकते हैं. माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें. संपत्ति से जुड़े मामलों में सावधानी बरतें|
वृषभ राशि-
वृषभ राशि के जातकों के लिए सूर्य का गोचर तीसरे भाव में होगा, जो पराक्रम, छोटे भाई-बहन और संचार का भाव है. इस अवधि में आपके संचार कौशल में वृद्धि हो सकती है. भाई-बहनों के साथ संबंध मजबूत होंगे. यात्रा के योग बन सकते हैं|
मिथुन राशि-
मिथुन राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर दूसरे भाव में होगा, जो धन, वाणी और परिवार का भाव है. इस दौरान आपको आर्थिक मामलों में सावधानी बरतनी होगी. वाणी पर नियंत्रण रखें, अन्यथा परिवार में मतभेद हो सकते हैं|
कर्क राशि-
कर्क राशि के जातकों के लिए सूर्य का गोचर आपकी अपनी राशि में (पहले भाव में) होगा, जो व्यक्तित्व और स्वास्थ्य का भाव है. इस अवधि में आपके आत्मविश्वास में वृद्धि होगी. हालांकि, स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें, खासकर आंखों और सिर से संबंधित समस्याओं का ध्यान रखें|
सिंह राशि-
सिंह राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर बारहवें भाव में होगा, जो व्यय, हानि और विदेश यात्रा का भाव है. इस दौरान आपको खर्चों पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता होगी. विदेश यात्रा के योग बन सकते हैं, लेकिन सावधानी बरतें|
कन्या राशि-
कन्या राशि के जातकों के लिए सूर्य का गोचर ग्यारहवें भाव में होगा, जो आय, लाभ और बड़े भाई-बहन का भाव है. इस अवधि में आपकी आय में वृद्धि के योग बन सकते हैं. सामाजिक दायरे में सक्रिय रहेंगे और नए संबंध स्थापित होंगे|
तुला राशि-
तुला राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर दसवें भाव में होगा, जो करियर, पिता और मान-सम्मान का भाव है. इस दौरान आपको कार्यक्षेत्र में सफलता मिल सकती है. पिता के साथ संबंधों में सुधार होगा. पदोन्नति या नए अवसर प्राप्त हो सकते हैं|
वृश्चिक राशि-
वृश्चिक राशि के जातकों के लिए सूर्य का गोचर नवें भाव में होगा, जो भाग्य, धर्म और उच्च शिक्षा का भाव है. इस अवधि में आपको भाग्य का साथ मिलेगा. धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ेगी और उच्च शिक्षा के अवसर प्राप्त हो सकते हैं|
धनु राशि-
धनु राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर आठवें भाव में होगा, जो आयु, अनुसंधान और अचानक लाभ का भाव है. इस दौरान आपको स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना होगा. गुप्त विद्याओं में रुचि बढ़ सकती है. अचानक धन लाभ के योग बन सकते हैं|
मकर राशि-
मकर राशि के जातकों के लिए सूर्य का गोचर सातवें भाव में होगा, जो विवाह, साझेदारी और सार्वजनिक संबंध का भाव है. इस अवधि में वैवाहिक जीवन में कुछ चुनौतियां आ सकती हैं. साझेदारी के व्यापार में सावधानी बरतें|
कुंभ राशि-
कुंभ राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर छठे भाव में होगा, जो रोग, शत्रु और ऋण का भाव है. इस दौरान आपको स्वास्थ्य का ध्यान रखना होगा. शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी और ऋण से मुक्ति मिल सकती है|
मीन राशि-
मीन राशि के जातकों के लिए सूर्य का गोचर पांचवें भाव में होगा, जो संतान, शिक्षा और प्रेम संबंध का भाव है. इस अवधि में संतान से संबंधित शुभ समाचार मिल सकते हैं. शिक्षा के क्षेत्र में सफलता मिलेगी और प्रेम संबंधों में मधुरता आएगी|
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कब है सावन मास की शिवरात्रि, जानें तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में सावन माह को अत्यंत शुभ और पवित्र माना गया है। यह महीना विशेष रूप से भगवान शिव को समर्पित होता है। पूरे सावन भर श्रद्धालु शिवजी की उपासना करते हैं और जलाभिषेक से उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। इस दौरान पड़ने वाली मासिक शिवरात्रि का महत्व और भी बढ़ जाता है। मासिक शिवरात्रि हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है, लेकिन जब यह तिथि सावन महीने में पड़ती है, तो इसका आध्यात्मिक महत्व कई गुना अधिक हो जाता है।
सावन शिवरात्रि 2025 तिथि-
पंचांग के अनुसार सावन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 23 जुलाई 2025 को सुबह 4:39 बजे से होगी और यह तिथि अगले दिन 24 जुलाई को रात 2:28 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार सावन शिवरात्रि का व्रत 23 जुलाई, बुधवार को रखा जाएगा।
शिव पूजन का शुभ मुहूर्त-
सावन मासिक शिवरात्रि पर भगवान शिव की विशेष पूजा रात्रि के समय की जाती है, जिसे निशिता काल कहा जाता है। इस बार पूजा का सर्वोत्तम समय 24 जुलाई को रात 12:07 बजे से 12:48 बजे तक रहेगा। इस मुहूर्त में कुल 41 मिनट का समय होगा, जो कि शिव पूजन और जलाभिषेक के लिए सबसे शुभ माना गया है।
सावन शिवरात्रि का धार्मिक महत्व-
मान्यताओं के अनुसार सावन की शिवरात्रि का दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि इस दिन किया गया व्रत और पूजन वैवाहिक जीवन में प्रेम, सामंजस्य और सुख-शांति बनाए रखता है। यह व्रत विशेष रूप से कुंवारी कन्याओं और विवाहित महिलाओं के लिए फलदायक माना जाता है।
इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध, शहद, बेलपत्र, धतूरा और आक चढ़ाकर शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। भक्तों का मानना है कि इस दिन शिव जी की सच्चे मन से की गई उपासना सारे पापों को नष्ट करती है और मोक्ष की प्राप्ति कराती है।
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शिव को क्यों प्रिय है बेलपत्र, सावन में क्यों बढ़ जाता है इसका महत्व

भगवान शिव की भक्ति और पूजा को बेलपत्र के बिना अधूरा ही माना जाता है. देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए उन पर चढ़ाए जाने वाली सामग्री में बेलपत्र का सर्वश्रेष्ठ स्थान है. मान्यता है की सावन में इसे शिव पर अर्पित करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है|
वैसे तो पूरे साल ही भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र का होना अनिवार्य माना जाता है लेकिन सावन के महीने में इसे शिव को अर्पित करने का महत्व और महिमा का ही गुना बढ़ जाती है. बेलपत्र से आरोग्य और सौभाग्य दोनों के वृद्धि होती है. बेल के पत्र क कई आध्यात्मिक, धार्मिक और आयुर्वेदिक महत्व हैं तो चलिए जानते हैं बेलपत्र भगवान के शिव की पूजा के लिए इतना खास क्यों है| शिव को इतना प्रिय क्यों है बेलपत्र ?
बेलपत्र से जुड़ी पौराणिक कथाएं-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसके पीछे दो कथाएं प्रचलित हैं. पहली मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब कालकूट विष निकला तो भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण कर लिया, जिस कारण से शिव का शरीर तपने लगा. विष के प्रभाव से शिव का कंठ जल रहा था तब देवताओं ने उनकी जलन को शांत करने के लिए बेलपत्र के साथ जल जल चढ़ाना शुरू कर दिया. जिससे शिव को शांति और ठंडक मिली, तभी से भगवान शंकर को बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा चली आ रही है|
दूसरी मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने वर्षों तक जंगल में तपस्या की थी जहां बेल के पत्र चढ़ाकर ही भगवान शंकर को प्रसन्न किया था और शिव ने उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था. तभी से शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा है. भगवान शिव को यह अति प्रिय है|
बेलपत्र से जुड़ी अन्य मान्यताएं-
स्कंद पुराण के अनुसार बेल के पेड़ का जन्म माता पार्वती के स्वेद यानी की पसीने से हुआ था. बेलपत्र के पूरे ही पेड़ को पवित्र माना जाता है और इसमें देवी लक्ष्मी का वास भी बताया जाता है. यही कारण है कि भगवान शिव को इसे अर्पित करने पर सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
शिव पुराण में भी बेलपत्र की महिमा का बखान किया गया है उसमें कहा गया है कि बेलपत्र के दर्शन, स्पर्श और शिव को अर्पण करने से सभी पापों का नाश हो जाता है और ऐसा व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति करता है.
बेलपत्र में तीन देवताओं का स्वरुप माना जाता है. इसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है. यही कारण है कि इसे देवों के देव को समर्पित किया जाता है.
बेलपत्र को भगवान के त्रिनेत्र से जोड़कर भी देखा जाता है|
वहीं बेलपत्र को तीन गुणों से जोड़कर भी देखा जाता है. इसे तम, रज और सत का प्रतीक माना जाता है|
बेल पत्र के आयुर्वेदिक गुण-
इन्हीं सब मान्यताओं के साथ इसके कई फायदे बताए जाते हैं. आयुर्वेदिक गुणों की बात करें तो इसमें एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं. बेल के पत्ते शरीर को शीतलता प्रदान करते हैं साथ ही बेल का फल भी गर्मी को शांत करने का काम करता है. यही कारण है कि जब कालकूट विष से शिव का शरीर जल रहा था तो बेलपत्र उन पर अर्पित किए गए थे. इन्हीं सब वजहों से शिव पर बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा युगों से चली आ रही है और यह शिव को अति प्रिय माना जाता है|
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अच्छी रोटी, अच्छा कपड़ा और मकान कभी भी आत्मिक सुख नहीं देंगे : मनीष सागरजी

रायपुर। धर्म क्या है! यह आपको पैसा, प्रॉपर्टी या प्रसिद्धि नहीं देगा। यह सुख, शांति और आनंद के साथ जीवन जीने की कला है। अच्छी रोटी, अच्छा कपड़ा और अच्छा मकान कभी आपको आत्मिक सुख नहीं देंगे। ये सब साधन पास होंगे, तब भी मन के भीतर यह बात आ ही जाएगी कि कम कमाएंगे, चलेगा। जीवन में शांति चाहिए। विवेकानंद नगर स्थित श्री ज्ञान वल्लभ उपाश्रय में सोमवार को उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी मनीष सागरजी महाराज साहब ने यह बातें कही। वे धर्मसभा को सच्चे श्रावक के कर्तव्य विषय पर संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने बताया कि शांति की तलाश में इंसान ने 2 मूल रास्ते बनाए। पहला संसार का। दूसरा धर्म का। संसार का रास्ता खोजने वालों ने कहा कि खूब साधन-सामग्रियां जुटाओ। प्रसिद्धि कमाओ। धर्म के रास्ते चलने‌ वालों ने लालसाएं खत्म करने की बात सुझाई। तृष्णाएं हटाने, राग-द्वेष छोड़ने को कहा। मन-आत्मा निर्मल करो। दोष हटाओ। गुण बढ़ाओ। यही स्थायी शांति और आनंद का वास्तविक मार्ग है। उदाहरण के तौर जब आप व्रत रखते और उसे छोड़ते हैं तो खुशी इस बात की नहीं होती कि मैंने भोजन नहीं किया या भोजन कर लिया। आनंद इस बात का होता है कि मैंने भोजन करने की 'इच्छा' पर विजय प्राप्त कर ली है। यही धर्म का रास्ता है। आपके सुख के मार्ग में इच्छाएं सबसे बड़ी बाधा है। इच्छाओं को जीतना सीखिए। क्षमा, विनय, संतोष और सरलता वो धर्म हैं, जिसके जरिए अपनी तमाम तृष्णाओं को जीता जा सकता है। याद रखिए, इच्छा विजय करते हुए ही धर्म हो सकता है। इच्छाओं की पूर्ति के साथ कभी धर्म नहीं हो सकता।
श्रावक और श्रमण, यह इच्छाओं पर विजय प्राप्त करने के मार्ग
इच्छाओं पर विजय प्राप्त करने के 2 मार्ग हैं। पहला श्रावक और दूसरा श्रमण। श्रावक धर्म का पालन गृहस्थ करते हैं। श्रमण धर्म साधु मानते हैं। दोनों एक ही मार्ग हैं। श्रावक से थोड़ा ऊपर बढ़ गए, तो वह श्रमण मार्ग है। इनमें से कौन सा रास्ता सही है! आप कह सकते हैं श्रावक धर्म क्योंकि श्रमण में तकलीफ ज्यादा और सुख कम है। हालांकि जब आप यह बात समझेंगे कि इच्छाओं पर जितना ज्यादा जितना विजय प्राप्त करेंगे, उतना ज्यादा सुख है तो आपको श्रमण मार्ग ज्यादा उचित लगेगा। इसे आप स्तर के हिसाब से भी समझना चाहें तो श्रावक से ऊपर श्रमण और उसके बाद भगवान बनने का मार्ग प्रशस्त होता है। ऐसे में तो सबसे ज्यादा दुखी भगवान हो जाएंगे।
श्रावक भी 2 तरह के हैं, एक की इच्छाएं बेकाबू, दूसरे की मर्यादित
श्रावक भी 2 तरह के हो सकते हैं। एक की इच्छाएं बेकाबू हो सकती हैं। दूसरे की इच्छाएं मर्यादित रह सकती हैं। हमें दूसरा रास्ता चुनना है क्योंकि सुखी वही रहेंगे, जिन्होंने सीमित आवश्यकताओं और बंधी हुई मर्यादाओं वाली जिंदगी का रास्ता चुना है। संभव है कि कुछ लोगों को मर्यादित जीवन दुख का कारण लगे पर हकीकत में हमारे दुख का कारण अमर्यादित और स्वच्छंद जीवन जीने की इच्छा है। श्रावक जीवन के कर्तव्यों को बोझ न मानें। अपनाने योग्य चीजों को भीतर से स्वीकार कर लें। सारी तकलीफें खुद ब खुद दूर हो जाएंगी। दुख का कारण आपके मन की इच्छाएं हैं। श्रावक जीवन के कर्तव्य नहीं।
आत्मशोधन और कर्म विजय तप 13 जुलाई से
सहजानंदी चातुर्मास समिति के प्रचार-प्रसार सचिव चंद्रप्रकाश ललवानी और मनोज लोढ़ा ने बताया कि 13 जुलाई से आत्मशोधन तप शुरू होने जा रहा है। इसके तहत एक दिन उपवास, दूसरे दिन ब्यासना रहेगा। दोनों वक्त के ब्यासने की व्यवस्था श्रीसंघ की ओर से की जाएगी। जिन्हें भी तप करना है, उन्हें श्रीसंघ के पास अपना रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी है क्योंकि इंतजाम उसी हिसाब से किए जाएंगे। तपस्या की कड़ी में कर्म विजय तप भी किया जाएगा। इसके तहत प्रतिदिन एकासना किया जाना है।
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पति की रक्षा और प्रेम बढ़ाने मंगला गौरी व्रत के दिन करें ये खास उपाय

हिंदू धर्म में खास व पवित्र माने जाना वाला सावन माह 11 जुलाई से शुरू होने वाला है। सावन के पावन माह में भगवान शिव के साथ-साथ मां पार्वती की भी आराधना की जाती है। जिस तरह सावन का प्रत्येक सोमवार महादेव को समर्पित है। वहीं इस माह में पड़ने वाले मंगलवार मां गौरी को समर्पित है। मां मंगला गौरी आदि शक्ति माता पार्वती का ही मंगल रूप हैं। सावन के प्रत्येक मंगलवार के दिन मां मंगला गौरी का व्रत व पूजन किया जाता है। मान्यता है कि मां मंगला गौरी का व्रत व पूजन करने से मां पार्वती से अखंड सौभाग्य के आशीर्वाद की प्राप्ति होता है व कुंवारी कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है। मां मंगला गौरी व्रत के दिन मां पार्वती की पूजा के दौरान कुछ उपायों को करने से मंगल दोष दूर होता है और मन की हर इच्छा पूरी होती है। तो आइए जानते हैं मंगला गौरी व्रत के दिन कौन से उपाय करने चाहिए।
मंगला गौरी के उपाय-
सावन के मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखा जाता है। उस दिन माता मंगला गौरी की विधिपूर्वक पूजा करें। उसके बाद श्री मंगला गौरी मंत्र ओम गौरीशंकराय नमः का जाप करें। इस उपाय को करने से मां मंगला गौरी के आशीर्वाद से मंगल दोष शांत होता है और विवाह में होने वाली देरी दूर होती है।
मंगला गौरी व्रत के दिन मां गौरी को लाल साड़ी, सिंदूर, चूड़ी, मेहंदी, बिंदी आदि चढ़ाएं। इस उपाय को करने से सुहाग की रक्षा होती है और वैवाहिक जीवन में प्रेम बना रहता है।
मंगला गौरी व्रत के दिन दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से मां की मूर्ति को स्नान कराएं और उनके समक्ष घी का दीपक जलाएं। यह उपाय करने से रोग, दरिद्रता और संकट दूर होते हैं। इस दिन 5 या 7 कन्याओं को घर बुलाकर भोजन करवाएं और उन्हें उपहार जैसे- चूड़ी, बिंदी, रुमाल, फल दें। ऐसा करने से वैवाहिक सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है।
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