धर्म समाज

अन्नपूर्णा जयंती कल 15 दिसंबर को, इस मुहूर्त में करें पूजा

  • अन्नपूर्णा जयंती पर करें इन चीजों का दान...
सनतन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन अन्नपूर्णा जयंती को बहुत ही खास माना गया है जो कि देवी अन्नपूर्णा को समर्पित दिन होता है इस दिन भक्त माता की विधिवत पूजा करते हैं और उपवास आदि भी रखते हैं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां अन्नपूर्णा की पूजा अर्चना करने से घर में अन्न की कमी कभी नहीं होती है।
पंचांग के अनुसार हर साल मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि पर मां अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है और व्रत भी रखा जाता है। मां अन्नपूर्णा की कृपा से जीवन में खुशहाली आती है, इस साल अन्नपूर्णा जयंती का पर्व 15 दिसंबर को मनाया जाएगा। इस दिन दान पुण्य के कार्य करना भी लाभकारी माना जाता है मान्यता है कि अन्नपूर्णा जयंती के दिन अगर सात तरह के अनाज का दान किया जाए तो घर में बरकत बनी रहती है साथ ही साथ सुख समृद्धि भी आती है।
अन्नपूर्णा जयंती की तारीख और मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल मार्गशीर्ष माह में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि का आरंभ 14 दिसंबर को शाम 4 बजकर 58 मिनट पर हो रहा है और इसका समापन अगले दिन यानी की 15 दिसंबर को दोपहर 2 बजकर 31 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार इस साल अन्नपूर्णा जयंती का पर्व 15 दिसंबर को ही मनाया जाएगा। इस दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा शुभ मुहूर्त में करना लाभकारी होता है। ऐसे में देवी अन्नपूर्णा की पूजा अभिजीत मुहूर्त में दोपहर 12 बजे से लेकर 12 बजकर 43 मिनट तक करना लाभकारी होगा।
अन्नपूर्णा जयंती पर करें इन चीजों का दान-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अन्नपूर्णा जयंती के दिन अगर जौ का दान किया जाए तो कुंडली का गुरु मजबूत होकर शुभ फल प्रदान करता है साथ ही तरक्की की राह में आने वाली बाधाएं भी दूर हो जाती है। इसके अलावा इस दिन चावल का धन करना भी शुभ माना जाता है ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि, संपन्नता, धन और सकारात्मकता का प्रवेश होता है और कष्ट दूर हो जाते हैं।
अन्नपूर्णा जयंती के दिन गेहूं का दान करना अच्छा माना जाता है ऐसा करने से कुंडली का सूर्य मजबूत होता है साथ ही भाग्य का साथ मिलता है इस दिन तिल का दान करना भी अच्छा माना जाता है ऐसा करने से शनि दोष से छुटकारा मिल जाता है। इस दिन मूंग दाल का दान करना भी अच्छा माना जाता है ऐसा करने से मानसिक शांति मिलती है इस दिन राई का दान करने से कष्टों में कमी आती है। आप अन्नपूर्णा जयंती के दिन उड़द दाल का दान भी कर सकते हैं। ऐसा करने से कुंडली के ग्रह मजबूत होते हैं।
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मार्गशीर्ष पूर्णिमा कल, जानिए...स्नान-दान का मुहूर्त

सनातन धर्म में पूर्णिमा और अमावस्या को बहुत ही खास माना जाता है जो कि हर माह में एक बार पड़ती है। इस दिन स्नान दान व पूजा पाठ करना लाभकारी माना जाता है हिंदू पंचांग के अनुसार अभी मार्गशीर्ष मास चल रहा है और इस माह पड़ने वाली पूर्णिमा को मार्गशीर्ष पूर्णिमा के नाम से जाना जा रहा है
इस दिन लक्ष्मी पूजा का विधान होता है मान्यता है कि ऐसा करने माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है और दुख परेशानियां दूर हो जाती है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा की तारीख और मुहूर्त की जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा की तारीख और मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 14 दिसंबर दिन शनिवार को शाम 4 बजकर 58 मिनट पर हो रहा है और इस तिथि का समापन 15 दिसंबर दिन रविवार को रात 2 बजकर 31 मिनट पर हो जाएगा। वही उदया तिथि के अनुसार इस साल मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा 15 दिसंबर को मनाई जाएगी।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 12 मिनट से आरंभ हो रहा है और सुबह 5 बजकर 5 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। ब्रह्म मुहूर्त में पूर्णिमा स्नान करना शुभ रहेगा। इसके अलावा दान का मुहूर्त सुबह 7 बजकर 32 मिनट से आरंभ हो रहा है जो कि सुबह 8 बजे तक रहेगा। इस दिन लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त सुबह 7 बजकर 52 मिनट से सुबह 9 बजकर 21 मिनट तक है।
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दत्तात्रेय जयंती आज, जानिए...शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

  • भगवान दत्तात्रेय जयंती की मुख्यमंत्री साय ने दी शुभकामनाएं
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था, दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं. जिसकी वजह से इन्हें श्रीगुरुदेवदत्त भी कहा जाता है. श्रीमदभागवत ग्रंथों के अनुसार, दत्तात्रेय जी ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन पूजा-पाठ करने से और उपवास का पालन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं|
दत्तात्रेय जंयती पूजा का शुभ मुहूर्त-
वैदिक पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 14 दिसंबर को शाम 4 बजकर 58 मिनट पर होगी. जिसका समापन 15 दिसंबर दोपहर 2 बजकर 31 मिनट पर होगी. इसलिए दत्तात्रेय जयंती 14 दिसंबर को मनाई जाएगी. वहीं भगवान दत्तात्रेय की पूजा गोधूलि मुहूर्त में की जाती है जिसकी शुरुआत शाम 5 बजकर 23 मिनट पर होगी और समापन 5 बजकर 51 मिनट पर होगा|
दत्तात्रेय जंयती पूजा विधि-
दत्तात्रेय जंयती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ वस्त्र पहनें. उसके बाद व्रत और पूजा का संकल्प लें. शाम को एक चौकी के ऊपर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा स्थापित करें. उन्हें गंगाजल से स्नान करवाएं. सबसे पहले भगवान को सफेद चंदन और कुंकुम से तिलक करें, फिर फूल और माला अर्पित करें. शुद्ध घी का दीपक जलाएं. साथ ही उन्हें तुलसी पत्र और पंचामृत जरूर अर्पित करें, जो साधक इस दिन उपवास का पालन करते हैं, उन्हें व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. इसके बाद अंत में आरती करें . पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा याचना करें।
इन मंत्रों का करें जाप-
दत्तात्रेय जंयती के दिन पूजा के समय इस मंत्र जाप जरूर करें. अगर हो सके तो कम से कम 108 बार इस मंत्र का जाप करें. इसके अलावा मंत्र जाप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें|
ॐ द्रांदत्तात्रेयाय नम:।।
दिगंबरा-दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा।।
ऊं ह्रीं विद्दुत जिव्हाय माणिक्यरुपिणे स्वाहा।।
ॐ दिगंबराय विद्महे योगीश्रारय् धीमही तन्नो दत: प्रचोदयात।।
दत्तात्रेय जयंती का महत्व-
शास्त्रों के अनुसार, भगवान दत्तात्रेय तीन मुख धारण करते हैं. इनके पिता महर्षि अत्रि थे और इनकी माता का नाम अनुसूया था.उनकी तीन भुजाएं और तीन मुख हैं. भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है. भगवान दत्तात्रेय ने प्रकृति, मनुष्य और पशु-पक्षी सहित चौबीस गुरुओं का निर्माण किया था. मान्यता है कि इनके जन्मदिवस पर इनकी पूजा करने से और उपवास रखने से शीघ्र फल मिलते हैं और भक्तों को कष्टों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
भगवान दत्तात्रेय जयंती की मुख्यमंत्री ने दी शुभकामनाएं
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने भगवान दत्तात्रेय की 14 दिसम्बर को जयंती के अवसर पर सभी प्रदेशवासियों को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने भगवान दत्तात्रेय से प्रदेशवासियों के सुख, समृद्धि और खुशहाली की कामना की है। मुख्यमंत्री साय ने कहा है कि भगवान दत्तात्रेय ने हमें अहंकार को त्यागकर ज्ञान के माध्यम से जीवन को सफल बनाने का संदेश दिया है। भगवान दत्तात्रेय को ब्रम्हा, विष्णु और शिव तीनों देवताओं का अंश माना जाता है। माना गया है कि भगवान दत्तात्रेय की पूजा से तीनों देव प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख और  समृद्धि बनी रहती है।
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पौष माह का आरंभ 16 दिसंबर से, करें इन नियमों का पालन

सनातन धर्म में वैसे तो सभी महीनों को महत्वपूर्ण बताया गया है लेकिन पौष माह खास है जो कि हिंदू पंचांग का दसवां महीना होता है। पौष का महीना धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों ही रूप से अहम माना जाता है। इस महीने की शुरुआत मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा के अगले दिन से हो जाती है।
पौष माह में भगवान सूर्यदेव और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है क्योंकि यह महीना श्री सूर्यदेव और जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है मान्यता है कि इस महीने इनकी पूजा अर्चना करने से जीवन के कष्टों का निवारण हो जाता है और सुख समृद्धि में वृद्धि होती है। इस बार पौष माह का आरंभ 16 दिसंबर से हो रहा है और इसका समापन 14 जनवरी को हो जाएगा। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि इस महीने किन नियमों का पालन करना लाभकारी होता है तो आइए जानते हैं।
पौष के महीने में करें इन नियमों का पालन-
आपको बता दें कि पौष माह में पड़ने वाले रविवार के दिन उपवास जरूर करें इस दिन भगवान सूर्यदेव को चावल और खिचड़ी का भोग लगाना चाहिए। इससे सूर्यदेव की कृपा बरसती है। इसके अलावा इस माह पड़ने वाली शुभ तिथि जैसे अमावस्या , एकादशी को पितरों का पूजन करना चाहिए। गरीबों व जरूरतमंदों को दान देना चाहिए इससे पुण्य फलों में वृद्धि होती है।
पौष माह में तामसिक चीजों का सेवन करने से बचना चाहिए। इससे पाप लगता है। इसके अलावा इस पवित्र महीने में तांबे के लोटे से भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करें साथ ही ऊँ सूर्याय नम: इस मंत्र का सभी जाप करें। मान्यता है कि ऐसा करने से सुख सौभाग्य बढ़ता है और रोगों से भी छुटकारा मिल जाता है।
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जानिए...आज (13 दिसंबर 2024) का राशिफल

मेष राशि- सकारात्मक परिणाम देने वाले ऊर्जा आप में व्याप्त है। स्वास्थ्य थोड़ा मध्यम रहेगा। प्रेम-संतान की स्थिति मध्यम है। व्यापार सही चलेगा। और दिनों से बेहतर फील करेंगे। लाल वस्तु पास रखें।
वृषभ राशि- अज्ञात भय सताएगा। नेत्र पीड़ा, सिरदर्द संभव है। प्रेम, संतान की स्थिति मध्यम। व्यापार लगभग ठीक है। हरी वस्तु पास रखें
मिथुन राशि- आय की स्थिति निरंतर चलती रहेगी। रुका हुआ धन वापस मिलेगा। कुछ नए स्तोत्र भी बनेंगे। प्रेम, संतान की स्थिति अच्छी। व्यापार अच्छा। स्वास्थ्य मध्यम है। हरी वस्तु पास रखें।
कर्क राशि- स्वास्थ्य में सुधार होगा। प्रेम,संतान मध्यम रहेगा। व्यापारिक दृष्टिकोण से शुभ समय रहेगा। कोर्ट-कचहरी में विजय मिलेगा। राजनीतिक स्थिति मजबूत होगी। लाल वस्तु पास रखें।
सिंह राशि- भाग्य साथ देगा। रोजी-रोजगार में तरक्की करेंगे। कार्यों की विघ्न-बाधा खत्म होगी। स्वास्थ्य अच्छा है। प्रेम, संतान मध्यम है। व्यापार अच्छा है। पीली वस्तु पास रखें।
कन्या राशि- परिस्थितियां प्रतिकूल हैं। वाहन धीरे चलाएं। कोई रिस्क न लें। स्वास्थ्य मध्यम है। व्यापार लगभग ठीक रहेगा। लाल वस्तु का दान करें।
तुला राशि- आनंददायक जीवन गुजारेंगे। नौकरी चाकरी की स्थिति अच्छी होगी। प्रेमी-प्रेमिका की मुलाकात संभव है। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा। लाल वस्तु का दान करें।
वृश्चिक राशि- शत्रुओं पर दबदबा कायम रहेगा। स्वास्थ्य मध्यम रहेगा। प्रेम, संतान मध्यम रहेगा। व्यापार लगभग ठीक रहेगा। लाल वस्तु पास रखें।
धनु राशि- भावुकता पर काबू रखें। लिखने-पढ़ने में समय व्यतीत करें। लिखने-पढ़ने के लिए अच्छा समय है। स्वास्थ्य मध्यम। प्रेम-संतान मध्यम। व्यापार ठीक है। लाल वस्तु पास रखें।
मकर राशि- भूमि, भवन, वाहन की खरीदारी के प्रबल योग हैं। स्वास्थ्य, प्रेम व व्यापार बहुत अच्छा है। कलह से बचें। काली जी को प्रणाम करते रहें।
कुंभ राशि- व्यापारिक स्थिति सुदृढ़ होगी। अपनों का साथ होगा। स्वास्थ्य में सुधार होगा। प्रेम, संतान मध्यम होगा। हरी वस्तु पास रखें।
मीन राशि- वाणी में विराम रखें। निवेश अभी न करें। स्वास्थ्य मध्यम रहेगा। प्रेम-संतान ठीक ठाक। व्यापार भी ठीक है। शिव जी का जलाभिषेक करना शुभ रहेगा।
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पौष मास की शुरुआत 16 दिसंबर 2024 से…

  • ग्रहों के राजा सूर्य की आराधना से हर रुका काम पूरा होगा
सनातन कैलेण्डर के दसवें माह पौष की शुरुआत 16 दिसंबर से हो रही है। इसका समापन 13 जनवरी को समाप्त होगा। यह माह ग्रहों के राजा भगवान सूर्यदेव को समर्पित होता है।
इस माह भगवान विष्णु के साथ सूर्यदेव की पूजा अर्चना विधि-विधान के साथ करने से सुख-समृद्धि और वैभव के साथ तेज, बल और बुद्धि की प्राप्ति होती है। हालांकि इस माह में मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं।
पिंडदान व तर्पण का भी विशेष महत्व-
इस माह पाणिग्रहण संस्कार करने से भी सनातनी बचते हैं, क्योंकि गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार व वैवाहिक कार्यक्रम के लिए शुभ मुहूर्त नहीं होते हैं। पौष माह में प्रमुख त्योहारों में 6 जनवरी को गुरु नानक जयंती व लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी को मनाया जाएगा।
मध्य प्रदेश में ग्वालियर के ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने अनुसार, मान्यता है कि इस माह में पिंडदान और तर्पण करने से जातक को पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में शुभ फल की प्राप्ति होती है वहीं, सूर्य देव की पूजा करने से साधक को तेज, बल और बुद्धि की प्राप्ति होती है। जीवन में कभी भी धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है। विधिपूर्वक पिंडदान करने से पूर्वजों को बैकुंठ की प्राप्ति होती है और पितृ दोष से छुटकारा मिलता है।
पौष माह का महत्व-
इस माह में प्रत्येक दिन तांबे के लोटे में लाल रंग के फूल, लाल चंदन जल और गंगाजल डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। इस दौरान 'ऊँ सूर्याय नम:' मंत्र का जप करें। माना जाता है कि सूर्य देव को जल देने से रुके हुए काम पूरे होते हैं और मनचाही नौकरी प्राप्त होती है।
पौष मास में गंगा, यमुना, अलकनंदा, शिप्रा, नर्मदा, सरस्वती जैसी नदियों में, प्रयागराज के संगम में स्नान करने तीर्थ दर्शन करने की भी परंपरा है। इस हिंदी महीने में व्रत-उपवास, दान और पूजा-पाठ के साथ ही पवित्र नदियों में नहाने का भी महत्व बताया है।
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प्रदोष व्रत आज, जानिए...शिव साधना का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त

सनातन धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन प्रदोष व्रत को बहुत ही खास माना गया है जो कि हर माह में दो बार पड़ता है। यह तिथि भगवान शिव को समर्पित होती है इस दिन भक्त शिव की विधिवत पूजा करते हैं और दिनभर उपवास आदि भी रखते हैं।
माना जाता है कि ऐसा करने से महादेव की कृपा बरसती है और जीवन की सारी दुख परेशानियां खत्म हो जाती हैं दिसंबर का माह का पहला प्रदोष व्रत आज यानी 13 दिसंबर दिन शुक्रवार को मनाया जा रहा है शुक्रवार को प्रदोष पड़ने के कारण इसे शुक्र प्रदोष व्रत के नाम से जाना जा रहा है तो आज हम आपको पूजा का शुभ मुहूर्त भी बता रहे हैं।
प्रदोष व्रत की तारीख और मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार दिसंबर माह का पहला प्रदोष व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाएगा। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का आरंभ 12 दिसंबर को 10 बजकर 26 मिनट पर हो रहा है और त्रयोदशी तिथि का समापन 13 दिसंबर को शाम 7 बजकर 40 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में दिसंबर माह का पहला प्रदोष व्रत 13 दिसंबर को किया जाएगा।
पूजन का शुभ समय-
आपको बता दें कि 13 दिसंबर को प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष काल शाम को 5 बजकर 26 मिनट से शाम 7 बजकर 40 मिनट तक रहेगा। इस दौरान आप भगवान शिव की पूजा अर्चना कर सकते हैं शुक्रवार के दिन पड़ने के कारण यह शुक्र प्रदोष व्रत कहलाएगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन उपवास आदि करके भगवान शिव की विधिवत पूजा अर्चना करने से जीवन का कल्याण होता है और कष्टों का अंत हो जाता है।
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शुक्र प्रदोष व्रत कल मनाया जाएगा

प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन रखा जाता है. हर माह कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत रखने की परंपरा है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। यह पोस्ट शिव भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रदोष व्रत का नाम भी उस सप्ताह के दिन के नाम पर रखा गया है जिस दिन यह पड़ता है। इस बार प्रदोष व्रत शुक्रवार को रखा गया है इसलिए इसे शुक्र प्रदोष कहा जाता है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के लिए कुछ विशेष उपाय करने से अलग फल मिलता है। तो आइए आचार्य इंदु प्रकाश से जानिए शुक्र प्रदोष के दिन कौन से कार्य करने चाहिए।
पारिवारिक जीवन में आ रही समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए शुक्र प्रदोष के दिन शिव मंदिर में जाकर मौली यानि मौली लपेटें। कलावे का घंटा भगवान शिव और माता पार्वती के चारों ओर सात बार घुमाएं। नहीं, जब आप धागे को सात बार लपेट लें तो उसे हाथ से ही तोड़ दें। दूसरी बात यह है कि धागे को तोड़ने के बाद उसे बांधें नहीं, उसे ऐसे ही मोड़कर छोड़ दें।
शुक्र प्रदोष के दिन अपने विशेष कार्य की सफलता के लिए दूध में थोड़ा केसर मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। दूध चढ़ाते समय मन ही मन “ओम नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।
संतान के साथ रिश्ते बेहतर करने के लिए शुक्र प्रदोष के दिन एक कटोरी में थोड़ा सा शहद लें, उस शहद को उंगली से निकालकर भगवान शिव को अर्पित करें। भोग लगाने के बाद कटोरी में बचा हुआ शहद बच्चों को अपने हाथों से खिलाएं।
अगर आपको व्यापार में निवेश करने में परेशानी हो रही है तो शुक्र प्रदोष के दिन भगवान शंकर को 11 बेलपत्र के पत्ते चढ़ाएं।
अपने परिवार की सुख-शांति के लिए शुक्र प्रदोष की शाम को शिव मंदिर में जाकर एक घी का दीपक और एक तेल का दीपक जलाएं। आपको बता दें कि घी का दीपक देवताओं को प्रसन्न करने के लिए होता है और तेल का दीपक देवताओं को प्रसन्न करने के लिए होता है। यह इच्छाओं को पूरा करने का काम करता है। घी के दीपक में एक खड़ी सफेद सूती बत्ती और एक क्षैतिज बत्ती भी डालें। तेल के दीपक में क्षैतिज लाल बत्ती।
अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए शुक्र प्रदोष के दिन शिव मंदिर जाएं और भगवान को सूखा नारियल अर्पित करें और साथ ही भगवान शिव से अपने स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करें। यदि आप शाम के समय प्रदोष के समय किसी शिव मंदिर में नारियल चढ़ाने जाएं तो और भी अच्छा है।
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मार्गशीर्ष पूर्णिमा 15 दिसंबर को, जानिए...स्नान-दान का शुभ मुहूर्त

सनातन धर्म में पूर्णिमा और अमावस्या को बहुत ही खास माना जाता है जो कि हर माह में एक बार पड़ती है। इस दिन स्नान दान व पूजा पाठ करना लाभकारी माना जाता है हिंदू पंचांग के अनुसार अभी मार्गशीर्ष मास चल रहा है और इस माह पड़ने वाली पूर्णिमा को मार्गशीर्ष पूर्णिमा के नाम से जाना जा रहा है। इस दिन लक्ष्मी पूजा का विधान होता है मान्यता है कि ऐसा करने माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है और दुख परेशानियां दूर हो जाती है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा की तारीख और मुहूर्त की जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा की तारीख और मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 14 दिसंबर दिन शनिवार को शाम 4 बजकर 58 मिनट पर हो रहा है और इस तिथि का समापन 15 दिसंबर दिन रविवार को रात 2 बजकर 31 मिनट पर हो जाएगा। वही उदया तिथि के अनुसार इस साल मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा 15 दिसंबर को मनाई जाएगी।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 12 मिनट से आरंभ हो रहा है और सुबह 5 बजकर 5 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। ब्रह्म मुहूर्त में पूर्णिमा स्नान करना शुभ रहेगा। इसके अलावा दान का मुहूर्त सुबह 7 बजकर 32 मिनट से आरंभ हो रहा है जो कि सुबह 8 बजे तक रहेगा। इस दिन लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त सुबह 7 बजकर 52 मिनट से सुबह 9 बजकर 21 मिनट तक है।
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नए साल का पहला एकादशी व्रत 19 जनवरी 2025 को

  • एकादशी व्रत 2025 की लिस्ट
एकादशी व्रत सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन भगवान श्रीहरि की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। हर माह कृष्ण एकादशी और शुक्ल पक्ष के दिन एकादशी व्रत रखा जाता है। इस प्रकार वर्ष में कुल 24 एकादशियाँ होती हैं। अधिकमास में 24 की जगह 26 एकादशियां मनाई जाती हैं। तो आज जानते हैं कि नए साल यानी कि पहली एकादशी व्रत कब होगा। 2025 और पूजा के लिए सबसे अच्छा समय कब होगा।
नए साल का पहला एकादशी व्रत 19 जनवरी 2025 को रखा जाएगा। हिंदू कैलेंडर में दिसंबर से जनवरी को पौष माह भी कहा जाता है। ऐसे में पावशु मास में पड़ने वाली एकादशी को पावशु पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी को वैकुंठ एकादशी भी कहा जाता है।
पंचांग के अनुसार पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 9 जनवरी 2025 को दोपहर 12:22 बजे से हो रहा है. एकादशी तिथि 10 जनवरी को सुबह 10:19 बजे समाप्त होगी. पौष पुत्रदा एकादशी 11 जनवरी को मनाई जाएगी. शुभ समय सुबह 7:15 बजे से 8:21 बजे तक है।
एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा करने से सुख-समृद्धि बढ़ती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति सच्चे मन से पुत्रदा एकादशी का व्रत रखता है और विधि-विधान से पूजा करता है, उसे जल्द ही संतान की प्राप्ति होती है। जिन लोगों के पहले से ही बच्चे हैं, अगर वे पुत्रदा एकादशी का व्रत रखते हैं तो उनकी संतान लंबी उम्र तक जीवित रहती है।
एकादशी व्रत 2025 लिस्ट-
तिथि एकादशी व्रत नाम
10 जनवरी 2025, शुक्रवार      पौष पुत्रदा एकादशी
25 जनवरी 2025, शनिवार    षटतिला एकादशी
08 फरवरी 2025, शनिवार      जया एकादशी
24 फरवरी 2025, सोमवार      विजया एकादशी
10 मार्च 2025, सोमवार              आमलकी एकादशी
25 मार्च 2025, मंगलवार      पापमोचिनी एकादशी
08 अप्रैल 2025, मंगलवार      कामदा एकादशी
24 अप्रैल 2025, गुरुवार              वरुथिनी एकादशी
08 मई 2025, गुरुवार      मोहिनी एकादशी
23 मई 2025, शुक्रवार          अपरा एकादशी
06 जून 2025, शुक्रवार              निर्जला एकादशी
21 जून 2025, शनिवार              योगिनी एकादशी
06 जुलाई 2025, रविवार              देवशयनी एकादशी
21 जुलाई 2025, सोमवार      कामिका एकादशी
05 अगस्त 2025, मंगलवार      श्रावण पुत्रदा एकादशी
19 अगस्त 2025, मंगलवार      अजा एकादशी
03 सितंबर 2025, बुधवार      परिवर्तिनी एकादशी
17 सितंबर 2025, बुधवार      इन्दिरा एकादशी
03 अक्टूबर 2025, शुक्रवार      पापांकुशा एकादशी
17 अक्टूबर 2025, शुक्रवार      रमा एकादशी
02 नवंबर 2025, रविवार              देवुत्थान एकादशी
15 नवंबर 2025, शनिवार      उत्पन्ना एकादशी
01 दिसंबर 2025, सोमवार      मोक्षदा एकादशी
15 दिसंबर 2025, सोमवार    सफला एकादशी
30 दिसंबर 2025, मंगलवार    पौष पुत्रदा एकादशी 
एकादशी व्रत नियम-
मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ एकादशी व्रत का पालन करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है। व्रत करने वाले को दशमी तिथि से ही संयम और नियमों का पालन शुरू कर देना चाहिए। जातक को एकादशी के दिन व्रत रखकर, द्वादशी तिथि को पारण करना चाहिए। 
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गुरुवार को करें विष्णु चालीसा का पाठ, मनोकामना होगी पूरी

हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा अर्चना को समर्पित होता है वही गुरुवार का दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए विशेष माना गया है इस दिन भक्त प्रभु की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं
मगर इसी के साथ ही अगर हर गुरुवार के दिन विष्णु चालीसा का पाठ भक्ति भाव से किया जाए तो भगवान प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की सारी इच्छाओं को पूरा कर देते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं विष्णु चालीसा पाठ।
विष्णु चालीसा-
॥ दोहा ॥
विष्णु सुनिए विनय
सेवक की चितलाय।
कीरत कुछ वर्णन करूँ
दीजै ज्ञान बताय॥
॥ चौपाई ॥
नमो विष्णु भगवान खरारी।
कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥ 1 ॥
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी।
त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥ 2 ॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत।
सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥ 3 ॥
तन पर पीताम्बर अति सोहत।
बैजन्ती माला मन मोहत॥ 4 ॥
शंख चक्र कर गदा बिराजे।
देखत दैत्य असुर दल भाजे॥ 5 ॥
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे।
काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥ 6 ॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन।
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥ 7 ॥
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन।
दोष मिटाय करत जन सज्जन॥ 8 ॥
पाप काट भव सिन्धु उतारण।
कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥ 9 ॥
करत अनेक रूप प्रभु धारण।
केवल आप भक्ति के कारण॥ 10 ॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा।
तब तुम रूप राम का धारा॥ 11 ॥
भार उतार असुर दल मारा।
रावण आदिक को संहारा॥ 12 ॥
आप वाराह रूप बनाया।
हिरण्याक्ष को मार गिराया॥ 13 ॥
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया।
चौदह रतनन को निकलाया॥ 14 ॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया।
रूप मोहनी आप दिखाया॥ 15 ॥
देवन को अमृत पान कराया।
असुरन को छबि से बहलाया॥ 16 ॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया।
मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया॥ 17 ॥
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।
भस्मासुर को रूप दिखाया॥ 18 ॥
वेदन को जब असुर डुबाया।
कर प्रबन्ध उन्हें ढुँढवाया॥ 19 ॥
मोहित बनकर खलहि नचाया।
उसही कर से भस्म कराया॥ 20 ॥
असुर जलंधर अति बलदाई।
शंकर से उन कीन्ह लड़ाई॥ 21 ॥
हार पार शिव सकल बनाई।
कीन सती से छल खल जाई॥ 22 ॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी।
बतलाई सब विपत कहानी॥ 23 ॥
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।
वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥ 24 ॥
देखत तीन दनुज शैतानी।
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥ 25 ॥
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी।
हना असुर उर शिव शैतानी॥ 26 ॥
तुमने धुरू प्रहलाद उबारे।
हिरणाकुश आदिक खल मारे॥ 27 ॥
गणिका और अजामिल तारे।
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥ 28 ॥
हरहु सकल संताप हमारे।
कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥ 29 ॥
देखहुँ मैं निज दरश तुम्हारे।
दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥ 30 ॥
चहत आपका सेवक दर्शन।
करहु दया अपनी मधुसूदन॥ 31 ॥
जानूं नहीं योग्य जप पूजन।
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥ 32 ॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण।
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥ 33 ॥
करहुँ आपका किस विधि पूजन।
कुमति विलोक होत दुख भीषण॥ 34 ॥
करहुँ प्रणाम कौन विधिसुमिरण।
कौन भाँति मैं करहुँ समर्पण॥ 35 ॥
सुर मुनि करत सदा सिवकाई।
हर्षित रहत परम गति पाई॥ 36 ॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई।
निज जन जान लेव अपनाई॥ 37 ॥
पाप दोष संताप नशाओ।
भव बन्धन से मुक्त कराओ॥ 38 ॥
सुत सम्पति दे सुख उपजाओ।
निज चरनन का दास बनाओ॥ 39 ॥
निगम सदा ये विनय सुनावै।
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥ 40 ॥
इति श्री विष्णु चालीसा ||
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15 दिसंबर की रात 10:11 बजे धनु राशि में प्रवेश करेंगे सूर्य

  • 14 जनवरी 2025 को कब समाप्त होगा खरमास
दिसंबर में अब महज चंद दिन ही शुभ कार्य होंगे। इसके बाद 15 दिसंबर से एक माह के लिए रोक लग जाएगी। 15 दिसंबर से धनुर्मास (खरमास/मलमास) लग रहा है। मलमास 14 जनवरी तक रहेगा।
पंडित विपिन कृष्ण भारद्वाज ने बताया कि 15 दिसंबर की रात 10:11 बजे सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेंगे और इसी के साथ मलमास शुरू हो जाएगा। 14 जनवरी 2025 को सुबह 8:55 बजे सूर्य के मकर राशि मे प्रवेश करते ही खरमास समाप्त हो जाएगा।
खरमास समाप्त होते ही शुभ व मांगलिक कार्यों से रोक हट जाएगी। पंडित विपिनकृष्ण भारद्वाज ने बताया कि सूर्य के बृहस्पति की धनुराशि में गोचर करने से खरमास शुरू होता है। यह स्थिति मकर संक्रांति तक रहती है।
शादी, जनेऊ संस्कार, मुंडन संस्कार, गृह प्रवेश सहित सभी मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। वर को सूर्य का बल और वधू को बृहस्पति का बल होने के साथ ही दोनों को चंद्रमा का बल होने से ही विवाह के योग बनते हैं।
इस पर ही विवाह की तारीख निर्धारित होती है। इस बार सूर्य देव धनु राशि में बाघ पर सवार होकर प्रवेश करेंगे। इनका उपवाहन अश्व रहेगा। संक्रांति नक्षत्र का नाम घौरा रहेगा।
आगामी दिनों में सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए विशेष ध्यान देने वाले योग बनेंगे। नई योजनाओं की सौगात भी दे सकती है। आम आदमी के सभी प्रयास सफल होंगे और लाभ ही लाभ होगा।
साल में दो बार लगते हैं मलमास-
पंडित भारद्वाज के मुताबिक जब गुरु की राशि धनु में सूर्य आते हैं तब खरमास का योग बनता है। वर्ष में दो मलमास लगते हैं, जिनमें पहला धनुर्मास और दूसरा मीन मास आता है। यानी सूर्य जब-जब बृहस्पति की राशियों धनु और मीन में प्रवेश करता है तब खर या मलमास होता है। क्योंकि सूर्य के कारण बृहस्पति निस्तेज हो जाते हैं। इसलिए सूर्य के गुरु की राशि में प्रवेश करने से विवाह संस्कार आदि कार्य निषेध माने जाते हैं।
मलमास के बाद के शुभ मुहूर्त-
16 जनवरी को नौ रेखीय
18 जनवरी को छह रेखीय
19 जनवरी को सात रेखीय
21 व 30 को नौ रेखीय
22 जनवरी को छह रेखीय
03 फरवरी को सात रेखीय
04 फरवरी काे आठ रेखीय
06 फरवरी को सात रेखीय
07 फरवरी को सात रेखीय
13 फरवरी को सात रेखीय
14 फरवरी को सात रेखीय
15 फरवरी को सात रेखीय
18 फरवरी को छह रेखीय
20 फरवरी को आठ रेखीय
21 फरवरी को सात रेखीय
25 फरवरी को सात रेखीय

 

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निमाड़ के संत सियाराम बाबा जी का देवलोकगमन

  • मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने दी श्रद्धांजलि
रायपुर। निमाड़ के संत सियाराम बाबा का बुधवार सुबह मोक्षदा एकादशी पर सुबह 6 बजकर 10 मिनट पर निधन हो गया। नर्मदा के भट्यान तट पर आज शाम 4 बजे उन्हें अंतिम विदाई दी जाएगी। वे पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे।
संत सियाराम बाबा का आश्रम मध्यप्रदेश में खरगोन जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर भट्यान गांव में नर्मदा किनारे स्थित है। गांव के लोग बाबा से जुड़ी कई चमत्कारिक घटनाएं बताते हैं। बाबा के दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु नर्मदा किनारे स्थित इस गांव में आते हैं। उनके नाम से ही गांव प्रसिद्ध हो चुका है। देश-विदेश से लोग इनके दर्शनों के लिए आते हैं।
सीएम विष्णुदेव साय ने कहा, प्रभु श्रीराम के परम भक्त और निमाड़ के दिव्य संत, पूज्य श्री सियाराम बाबा जी के देवलोकगमन का समाचार संत समाज एवं उनके असंख्य अनुयायियों के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
मां नर्मदा के सेवक, पूज्य संत सियाराम जी ने अपने जीवन में सत्संग, साधना और सेवा के माध्यम से जो अलौकिक प्रेरणा दी, वह सदा अनुकरणीय रहेगी। प्रभु श्रीराम से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्यात्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें और उनके समस्त भक्तों को इस कठिन घड़ी में संबल प्रदान करें। ॐ शांति।
 
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गीता जयंती आज, इस शुभ मुहूर्त में करें भगवान कृष्ण की पूजा

  • जानिए...पूजा विधि और महत्व
गीता जयंती हर साल मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. इस दिन मोक्षदी एकादशी भी मनाई जाती है. श्रीमद्भगवागीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मानाई जाती है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण और वेदव्यास जी की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन उपवास और श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करने से व्यक्ति का मन पवित्र होता है साथ ही जीवन में सुख शांति बनी रहती है|
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 11 दिसंबर 2024 को सुबह 3 बजकर 42 मिनट पर होग. वहीं तिथि का समापन 12 दिसंबर को रात्रि 1 बजकर 9 मिनट पर होगी. जिसके अनुसार, गीता जयंती 11 दिसंबर को मनाई जाएगी. इस साल गीता की 5161 वीं वर्षगांठ हैं|
गीता जयंती शुभ मुहूर्त-
गीता जयती के दिन भगवान कृष्ण की पूजा और भगवात गीता का पाठ करने के लिए अमृत काल सबसे शुभ माना जाता है. इस बार मार्गशीर्ष मास के दिन अमृत काल की शुरुआत सुबह 9 बजकर 34 मिनट पर शुरू होगी. जो की 11 बजकर 3 मिनट तक रहेगी. इस दौरान श्रीकृष्ण की पूजा करने के साथ भगवाग गीता का पाठ कर सकते हैं|
गीता जयंती पूजा विधि-
गीता जंयती के दिन स्नान कर पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए. इसके बाद मंदिर की सफाई करें और भगवान सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें. पूजा के दौरान श्रीमद्भगवद गीता का पाठ करना बहुत ही शुभ माना जाता है. अब अक्षत और फूल से ग्रंथ की पूजा करें और पाठ का प्रारंभ करें. साथ ही भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें. इस दिन लोगों को गीता ग्रंथ का दान करना चाहिए. मान्यता है कि इस काम को करने से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं|
गीता जयंती पर करें इन श्लोक का पाठ-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते। सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
गीता जंयती का महत्व-
गीता जयंती के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश दिए थे. महाभारत के युद्ध में बहुत से वीर योद्धाओं ने अपनी जान गवाई थी. यह भीषण युद्ध पाडवों और कौरवो के बीच हुआ था. जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने उपदेश देकर अर्जुन का मनोबल बढ़ाया था. भगवद गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक है, जो मनुष्यों को जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में विस्तार ज्ञान प्रदान करते हैं. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने के साथ गीता का पाठ करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है साथ ही जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है|
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मोक्षदा एकादशी आज, इस विधि से करें पूजा

सनातन धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन एकादशी व्रत को बेहद ही खास माना जाता है साल में कुल 24 एकादशी के व्रत किए जाते हैं लेकिन अगहन यानी की मार्गशीर्ष मास में पड़ने वाली मोक्षदा एकादशी को बेहद ही खास माना जाता है जो कि सभी पापों का नाश करने वाली एकादशी होती हैं
इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है और व्रत आदि भी रखा जाता है मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत पूजा करने से जीवन की सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं और सुख समृद्धि में वृद्धि होती है। इस साल मोक्षदा एकादशी का व्रत 11 दिसंबर को मनाया जा रहा है। तो आज हम आपको पूजा की सरल विधि बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
मोक्षदा एकादशी की तारीख और मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 11 दिसंबर को देर रात 3 बजकर 42 मिनट से आरंभ होगी और इस तिथि का समापन 12 दिसंबर को देर रात 1 बजकर 9 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में मोक्षदा एकादशी का व्रत 11 दिसंबर को किया जाएगा। मोक्षदा एकादशी व्रत का पाारण करने के लिए 12 दिसंबर को सुबह 7 बजकर 5 मिनट से लेकर 9 बजकर 9 मिनट का समय शुभ रहेगा। इसी बीच व्रत का पारण करना लाभकारी होगा।
बता दें कि एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है मान्यता है कि इस दिन एकादशी व्रत का पारण करने से व्रत पूजा का पूर्ण फल साधक को मिलता है और जीवन की सारी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं।
मोक्षदा एकादशी की पूजा विधि-
आपको बता दें कि एकादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें इसके बाद साफ वस्त्रों को धारण कर देवी देवताओं का ध्यान करें। इस दिन पीले रंग के वस्त्र धारण करना अच्छा माना जाता है इसके बाद भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित करें। अब एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें इसके बाद पीले चंदन और हल्दी के कुमकुम का तिलक लगाएं। अब माता लक्ष्मी को सोलह श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें इसके बाद घी का दीपक जलाकर आरती करें और मंत्र जाप करें। फिर मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा का पाठ करें। भगवान को केले, मिठाई और पंचामृत का भोग चढ़ाएं। अगले दिन व्रत का पारण करें।
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इल्तिजा मुफ्ती को धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जवाब, ‘हिंदुत्व बीमारी नहीं दवा है’

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती द्वारा दिए विवादित बयान का बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने जवाब दिया है। इल्तिजा को उन्होंने मूर्ख कहा है।
उन्होंने कहा, " हिन्दुत्व एक जीवन शैली है। हिन्दुत्व एक जीवन जीने की विचार धारा है। इस संसार में एकता के लिय सबसे अति आवश्यक हिन्दुत्व है। इल्तिजा मुफ़्ती जो कह रही हैं कि हिन्दुत्व एक बीमारी है। मैं कहना चाहता हूं कि उनका यह बयान काफी शर्मनाक है। मुझे लगता है कि उन्हें वो मूर्ख हैं उन्हें अपने दिमाग का इलाज कराना चाहिए। हिन्दुत्व इस देश और पूरी दुनिया के लिय एक दवा है। हिन्दुत्व वो है जो वसुधैव कुटुम्बकम की चर्चा करता है। हिन्दुत्व वो है जो सब में राम देखता है। हिंदुत्व वो है जो नर में नारायण देखता है। हिंदुत्व वह है जो बेटी में गौरी देखता है।
बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने हिंदुओं से अपील की है कि आप लोग आगे आकर इस बात को पुरजोर तरीके से उठाओ ताकि ऐसे लोगों को पता चल सके कि हिंदुत्व बीमारी है या दवा।
बता दें कि हाल ही में इल्तिजा मुफ्ती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा था, "भगवान राम को अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए और असहाय होकर देखना चाहिए कि नाबालिग मुस्लिम लड़कों को केवल इसलिए चप्पलों से पीटा जाता है, क्योंकि वे उनका नाम जपने से इनकार करते हैं। हिंदुत्व एक ऐसी बीमारी है, जिसने लाखों भारतीयों को प्रभावित किया है और भगवान के नाम को कलंकित किया है।"
इस बयान का भाजपा नेताओं ने विरोध किया था। जिसके बाद इल्तिजा ने रविवार को कहा, "हिंदुत्व और हिन्दुइज्म में बहुत फर्क है। हिन्दुत्व वह नफरत फैलाने वाली फिलॉसफी है जो वीर सावरकर भारत में फैलाते थे। उनकी फिलॉसफी यह थी कि यह देश हिंदुओं का है। आपको किसी मुस्लिम बच्चे की पिटाई करनी है तो आप जय श्री राम के नारे का इस्तेमाल कर रहे हैं। मैं डंके की चोट पर कहती हूं कि 'हिंदुत्व' एक बीमारी है। इस बीमारी का इलाज हमें करना पड़ेगा।"
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मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से किस प्रकार की मोक्ष की प्राप्ति होती

मोक्षदा एकादशी : सनातन धर्म में मोक्षदा एकादशी का व्रत हर साल मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मोक्षदा एकादशी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इसलिए मोक्षदा एकादशी के अवसर पर गीता जयंती भी मनाई जाती है। द्रिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष मोक्षदा एकादशी 11 दिसंबर को मनाई जाएगी. मोक्षदा एकादशी का व्रत जीवन में सौभाग्य, समृद्धि और खुशहाली लाने वाला माना जाता है। साधक को मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। बताओ क्या मोक्षदा एकादशी व्रत करने से मोक्ष प्राप्त होता है?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मोक्षदा एकादशी के दिन, कई योद्धाओं ने कुरुक्षेत्र के युद्ध में वीरगति प्राप्त की और मोक्ष प्राप्त किया। इस व्रत को करने से व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता बल्कि पुण्य फल की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से आत्मा और मन शुद्ध रहता है। व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति का उदय होता है। कहा जाता है कि इस दिन गीता का पाठ करने और उसकी शिक्षाओं का पालन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष का अर्थ है जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति या सुख और दुख से मुक्त जीवन। भगवान श्रीकृष्ण से हजारों लोगों को ज्ञान प्राप्त हुआ है। ज्ञान प्राप्त करने का अर्थ है मोक्ष का मार्ग देखना और उस पर चलना। ऐसे बहुत से लोग थे जो भगवान कृष्ण से कुछ भी हासिल नहीं कर सके क्योंकि उनके और भगवान कृष्ण के बीच अहंकार या आत्म-ज्ञान की दीवार थी।
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खरमास के दौरान सूर्य देव को जरूर चढ़ाएं ये चीजें

  • जीवन में नहीं आएंगी बाधाएं
खरमास हिंदू धर्म में एक विशेष अवधि है जो लगभग एक महीने तक चलती है. इस दौरान सूर्य देव धनु और मीन राशि में विचरण करते हैं. खरमास के दौरान कई शुभ कार्यों को करने से परहेज किया जाता है. खरमास के दौरान विवाह, सगाई, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्यों को करने से बचा जाता है|
पंचांग के अनुसार, जब सूर्य धनु और मीन राशि में प्रवेश करता है, तो उसे खरमास कहा जाता है. यह साल में दो बार आता है और लगभग 30 दिनों तक रहता है. 2024 का दूसरा खरमास 15 दिसंबर 2024 को रात 10 बजकर 19 मिनट पर शुरू होगा. जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेगा. इसे धनु संक्रांति भी कहते हैं. खरमास का समापन 2025 की मकर संक्रांति पर होगा, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा|
खरमास में सूर्य देव की ऐसे करें पूजा-
खरमास में सुबह जल्दी उठकर सूर्योदय से पहले स्नान करें.
एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर सूर्य देव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें.
पूजा स्थल को साफ-सुथरा करके फूल, दीपक आदि से सजाएं.
सूर्य देव को जल, फूल, धूप, दीप आदि अर्पित करें.
सूर्य भगवान की पूजा करते समय आदित्य हृदय स्तोत्र का जाप करें.
पूजा के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को दान अवश्य करें.
खरमास में सूर्यदेव को अर्पित करें ये चीजें-
सूर्य देव को लाल रंग बहुत प्रिय है. इसलिए पूजा के समय लाल रंग के फूल जैसे गुलाब, गेंदा आदि चढ़ाने चाहिए.
गुड़ को सूर्य देव को बहुत प्रिय माना जाता है. इसे सूर्य भगवान को अर्पित करने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है और बीमारियां दूर रहती हैं.
तांबे के लोटे में जल भरकर सूर्य देव को अर्पित करना बहुत शुभ माना जाता है.
गेंहू को सूर्य देव को चढ़ाने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और परेशानियां भी धीरे-धीरे दूर होने लगती हैं.
लाल चंदन को सूर्य देव को अर्पित करने से मन शांत होता है और सभी बाधाएं खत्म होने लगती है.
खरमास में सूर्य देव की विधि-विधान से पूजा करने से अशुभ प्रभाव कम होते हैं और सूर्य देव की रोजाना पूजा करने से मन शांत होता है.
इन बातों का रखें खास ध्यान-
खरमास के दौरान सभी शुभ कार्यों पर रोक नहीं होती है. कुछ लोग इन कार्यों को भी करते हैं. खरमास के दौरान धार्मिक कार्यों जैसे पूजा-पाठ, ध्यान, जप आदि पर ध्यान देना चाहिए. खरमास के दौरान सूर्य देव की नियमित पूजा करने से लाभ मिलता है. इस दौरान मन को शांत रखने का प्रयास करें और क्रोध, लोभ, मोह आदि से दूर रहें और जरूरतमंदों को दान अवश्य करें. खरमास के दौरान सावधानी बरतने और धार्मिक कार्यों पर ध्यान देने से जीवन में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है|
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