धर्म समाज

रमजान में रोजा रखते समय न करें ये 5 गलतियां, बनी रहेगी सेहत

नई दिल्ली। इस्लामी कैलेंडर का नौंवा महीना माह-ए-रमजान के रूप में मनाया जाता है। रमजान के पाक महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग पूरे 30 दिन तक रोजा रखकर अल्लाह की इबादत करते हैं। इस दौरान रोजेदार पूरे दिन में सिर्फ दो बार सहरी और इफ्तारी के रूप में कुछ खाते हैं। हेल्थ एक्सपर्ट की मानें तो इस दौरान रोजेदारों को अपने खाने-पीने से जुड़ी कुछ गलतियां बिल्कुल नहीं करनी चाहिए। इन गलतियों का असर व्यक्ति की सेहत पर सीधा पड़ता है। ऐसे में आइए जानते हैं आखिर कौन सी हैं वो गलतियां जिन्हें रमजान के दौरान रोजा रखते हुए करने से बचना चाहिए।
रोजा रखते समय भूलकर भी न करें डाइट से जुड़ी ये गलतियां
-रमजान में रोजा रखते समय कभी भी यह सोचकर ज्यादा न खाएं कि आपको पूरा दिन भूखा रहने पड़ेगा। हमेशा सहरी हो या इफ्तारी अपनी डाइट में हेल्दी चीजों को जगह दें। आपकी ज्यादा खाने की सोच आपकी सेहत खराब कर सकती है। 
-रमजान के दौरान अगर आप हृदय रोगी, डायबिटीज के मरीज या फिर ब्लडप्रेशर जैसी अन्य किसी रोग से पीड़ित हैं तो रोजे की वजह से अपनी दवा नहीं छोड़ें, ऐसा करने से आपकी सेहत खराब हो सकती है। 
-रात को सोने से एक घंटे पहले ही खाना-पीना बंद कर दें ताकि आपको रात को नींद अच्छी आ सके। 
-गर्मी में ज्यादा देर बाहर रहने से डिहाइड्रेशन का खतरा बढ़ सकता है। ऐसे में रोजेदार को बाहर धूप में ज्यादा निकलने से बचना चाहिए। 
-सहरी से आधा घंटे पहले और आधे घंटे बाद पानी पीएं, ताकि शरीर में दिन भर पानी की कमी न हो सके। 
-एनीमिया रोगी और गर्भवती महिलाएं रोजा न रखें।
-रमजान के दौरान फ्राइड चीजों की जगह फाइबर युक्त फूड को अपनी डाइट का हिस्सा बनाएं। ऐसा करने से आपको लंबे समय तक भूख नहीं लगेगी और पेट भरा हुआ रहेगा।  
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क्या है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि

चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को चैत्र नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है. इस बार चैत्र नवरात्रि का त्योहार 22 मार्च, बुधवार से प्रारंभ हो चुका है. आपको बता दें कि नवरात्रि के दूसरे दिन मां के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना की जाती है. मां ब्रह्मचारिणी दुष्टों को सन्मार्ग दिखाने वाली हैं. मान्यतानुसार, मां ब्रह्मचारिणी का पूजन करने से आलस्य, अहंकार, लोभ, असत्य, स्वार्थ व ईर्ष्या जैसी दुष्प्रवृत्तियों से मुक्ति मिलती है. इस दिन विधि विधान से मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से बुद्धि, विवेक व धैर्य में वृद्धि होती है.
मां ब्रह्मचारिणी को क्या चढ़ाना चाहिए?
मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल और कमल का फूल अत्यंत प्रिय माना गया है और पूजा के दौरान मां को ये फूल अर्पित करने से मां प्रसन्न होती हैं. मान्यता है कि मां को चीनी और मिश्री काफी पसंद है, इसलिए मां को भोग में चीनी और मिश्री और पंचामृत का भोग लगाना शुभ माना गया है. इसके अलावा मां ब्रह्मचारिणी को दूध से बने व्यंजन अत्यधिक पसंद हैं, तो आप भोग में दूध से बने व्यंजन भी शामिल कर सकते हैं. आप इन चीजों का भोग लगाने के अलावा दान देकर भी मां को प्रसन्न कर सकते हैं.
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
1- नवरात्रि के दूसरे दिन मां को प्रसन्न करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करना चाहिए.
2- घर के मंदीर में दीप प्रज्जवलित करना चाहिए
3- मां दुर्गा का गंगा जल से अभिषेक करें.
4- अब मां दुर्गा को अर्घ्य देना चाहिए
5- मां ब्रह्मचारिणी को अक्षत, सिंदूर और लाल पुष्म अर्पित करने चाहिए और प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं.
6- धूप और दीपक प्रज्जवलित करने के बाद दुर्गा चालीसा का पाठ करना शुभ होता है. इसके बाद आरती भी करनी चीहिए
7- मां को इस दिन सात्विक और मनपसंद चीजों का ही भोग लगाना चाहिए. ऐसा करने से माता प्रसन्न होती है और आपको आशीर्वाद प्रदान करती हैं.
माँ ब्रह्मचारिणी का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:..
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू.
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा.. ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
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नवरात्रि के 9 दिनों के लिए हेल्दी व टेस्टी रेसिपीज

नवरात्रि व्रत में ज्यादातर घरों में फलाहारी आलू और साबूदाने की खिचड़ी ही बनाई-खाई जाती है क्योंकि ये मिनटों में तैयार हो जाती है लेकिन नौ दिनों तक सिर्फ इन्हीं दो चीज़ों को खाना बोरिंग हो सकता है, तो आज नवरात्रि के 9 दिनों के लिए अलग-अलग रेसिपीज़ लेकर आए हैं। जो टेस्टी होने के साथ हेल्दी भी हैं और सबसे अच्छी बात कि इन्हें बनाने में ज्यादा वक्त भी नहीं लगता। बिना और देर किए जान लेते हैं इन्हें बनाने का तरीका।
दूध में बाल आने पर कद्दूकस की हुई लौकी को डालें और दूध के आधा होने तक पकाएं, मिश्रण गाढ़ा हो जाएगा। अब इसमें चीनी, केसर, इलायची मिलाएं और 10 मिनट तक और पकाएं। इसे ठंडा कर हैंड मिक्सर से अच्छी तरह घोट लें। फिर इसमें सूखे मेवे मिलाएं और कुल्फी मोल्ड में डालकर जमा दें। 7-8 घंटे में कुल्फी जम जाती है। पैन में दो चम्मच तेल डालकर जीरा, अदरक, हरी मिर्च का मिश्रण डालें। फिर उबले आलू, नमक, लाल मिर्च पाउडर, नींबू का रस, गरम मसाला और शक्कर सब डालकर 6-7 मिनट भून लें।
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आज है चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन

चैत्र नवरात्रि का आज दूसरा दिन है। इस दिन मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की श्रद्धा पूर्वक पूजा-भक्ति करने से साधक की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती है। इसके लिए साधक श्रद्धा भाव से मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं और मां के निमित्त व्रत भी रखते हैं। सनातन शास्त्रों में मां की महिमा का वर्णन विस्तार पूर्वक किया गया है। आइए, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि जानते हैं-
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने का विधान है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान’चक्र में स्थिर रहता है। मां के मुखमंडल पर कांतिमय आभा झलकती है, जो ममता का अलौकिक स्वरूप है। मां दाहिने हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण की हैं। मां ब्रह्मचारिणी को विद्या की देवी कहा जाता है। साथ ही मां वैराग्य की प्रतिमूर्ति है। इसके लिए विद्यार्थियों को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा जरूर करनी चाहिए।
इस दिन ब्रह्म बेला में उठकर सबसे पहले मां को प्रणाम करें। फिर, गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। तत्पश्चात, नवीन वस्त्र धारण कर आमचन करें और व्रत संकल्प लें। इसके बाद मां की पूजा लाल रंग के फल और फूल, धूप-दीप, अक्षत, कुमकुम आदि से करें। दिनभर उपवास रखें। साधक चाहे तो दिन में एक बार जल और एक फल का सेवन कर सकते हैं। शाम में आरती करने के बाद फलाहार करें।
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चैत्र नवरात्र के पहले दिन देवी मंदिरों में भक्‍तों का तांता

महामाया मंदिर में महाजोत का होगा प्रज्वलन
रायपुर। हिन्दू नव संवत्सर 2080 की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि बुधवार से हुई। चैत्र नवरात्रि पर देवी मंदिरों में सुबह प्रतिमा का अभिषेक कर श्रृंगार किया गया। मंदिरों में घट पूजा की जा रही है। अभिजीत मुहूर्त में 11.30 बजे जोत प्रज्ज्वलित की जायेगी। पुरानी बस्ती के महामाया मंदिर के प्रधान पुजारी और बैगा के नेतृत्व में विधिवत पूजा-अर्चना की गई।
घट स्थापना के पश्चात महाजोत प्रज्वलित की जाएगी। इसके पश्चात श्रद्धालुओं की मनोकामना जोत प्रज्वलित होगी।सुबह से श्रद्धालुओं का तांता लगा है। ज्यादातर देवी मंदिरों में दोपहर 11.36 से 12.24 के अभिजीत मुहूर्त में विधिवत मंत्रोच्चार के साथ ज्योत प्रज्वलन किया जाएगा।
24 घंटे खुला रहेगा मंदिर, तीन बार लगेगा महाभोग
महामाया मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला ने बताया कि नवरात्रि के दौरान अष्टमी तिथि तक 24 घंटे मंदिर खुला रहेगा। मंदिर में प्रतिदिन तीन बार माता को महाभोग अर्पित करके महाआरती की जाएगी। रात्रि में भजन गायक माता के गुणगान में जसगीत की प्रस्तुति देंगे।
महाजोत का प्रज्वलन
महामाया मंदिर में महाजोत से ज्योति लेकर हजारों श्रद्धालुओं की जोत प्रज्वलित की जाएगी। पुरानी बस्ती के महामाया मंदिर, शीतला मंदिर, ब्राह्मणपारा के कंकाली मंदिर, कुशालपुर के दंतेश्वरी मंदिर, आकाशवाणी तिराहा स्थित काली मंदिर, रावांभाठा के बंजारी मंदिर समेत 25 से अधिक देवी मंदिरों में जोत कलश सजाने का कार्य पूरा कर लिया गया है।
पंचक काल और नौका पर सवार होकर आ रही देवी दुर्गा, शुभ फलदायी
नवरात्र की पूर्व संध्या पर मंगलवार को पंचक काल प्रारंभ हुआ। पंचक काल को पूजा-अर्चना के लिए शुभ माना जाता है। बुधवार को शुरू हो रही चैत्र नवरात्र पर देवी दुर्गा का आगमन नौका पर और प्रस्थान हाथी पर हो रहा है। ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा का आगमन नौका पर हो तो इसे शुभदायी माना जाता है। देवी मां के भक्तों और राज्य, देश के लिए चैत्र नवरात्र शुभदायी रहेगी।
महामाया मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला के अनुसार देवी पुराण के श्लोक शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे। गुरौ शुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्तिता अर्थात प्रतिपदा तिथि यदि सोमवार या रविवार को पढ़े तो मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर पधारतीं हैं। शनिवार-मंगलवार को माता का आगमन घोड़े पर और गुरुवार-शुक्रवार को डोली पर होता है। बुधवार को देवी मां नौका पर सवार होकर आती है।
सूर्याेदय तिथि का महत्व
चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 21 मार्च को रात्रि 10.52 बजे से प्रारंभ हुई जो 22 मार्च की रात्रि 8.20 बजे तक रहेगी। चूंकि सूर्योदय पर पड़ने वाली तिथि को महत्व दिया जाता है, इसलिए प्रतिपदा तिथि 22 मार्च को मनाई जाएगी।
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
शुभ मुहूर्त - सुबह 6.23 से 7.32 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त - सुबह 11.05 से 12.35 बजे तक
अनेक योगों का संयोग
नवरात्र के दौरान अनेक योगों का संयोग बन रहा है। नवरात्र में चार सर्वार्थ सिद्धि, चार रवि योग, दो अमृत सिद्धि योग, बुद्धादित्य योग, गजकेसरी योग, द्वि-पुष्कर योग और गुरु पुष्य योग का संयोग शुभदायी है।
दुर्गा सप्तशती का करें पाठ
ज्योतिषाचार्य डा. दत्तात्रेय होस्केरे के अनुसार नवरात्र के नौ दिनों में दुर्गा सप्तशती पाठ करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। दुर्गा सप्तशती में 700 श्लोक हैं। साथ ही देवी कवच, अर्गला स्त्रोतं, कीलक और सिद्ध कुंजिका स्तोत्रं का पाठ करना चाहिए।
राशि पाठ
मेष पहला अध्याय
वृषभ दूसरा अध्याय
मिथुन सातवां अध्याय
कर्क पांचवां अध्याय
सिंह तीसरा अध्याय
कन्या दसवां अध्याय
तुला छठा अध्याय
वृश्चिक आठवां अध्याय
धनु 11 वां अध्याय
मकर आठवां अध्याय
कुंभ चतुर्थ अध्याय
मीन नौवां अध्याय
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सर्व हिंदू समाज ने निकाली भव्य शोभायात्रा

बड़ी संख्या में शामिल हुए लोग
कटघोरा। चैत्र नवरात्र और हिंदू नव वर्ष विक्रम संवत 2080 के आगमन की पूर्व संध्या कटघोरा कस्बे में सर्व हिंदू समाज ने भव्य शोभायात्रा निकाली. इसमें भगवा ध्वज और आकर्षक झांकियों के साथ बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए. भजन कीर्तन करते हुए लोगों ने नगर भ्रमण किया. शोभायात्रा का समापन राधा सागर तालाब में 11 हजार दीपदान के साथ किया गया.
चैत्र नवरात्र पर्व की शुरुआत हिंदू नव वर्ष प्रतिपदा से हो रही है. इसके साथ कई सहयोग जुड़े हुए हैं, जिनका पौराणिक और धार्मिक महत्व है. प्रकृति परिवर्तन की बेला में मनाए जाने वाले हिंदू नव वर्ष को लेकर कटघोरा नगरीय क्षेत्र में काफी उत्साह देखा गया. सर्व हिंदू समाज ने इस अवसर पर उत्सव मनाते हुए अग्रसेन भवन से विशाल शोभायात्रा निकाली. इसमें केसरिया ध्वज के साथ बच्चों से लेकर मातृशक्ति और पुरुष शामिल हुए.
गाजे बाजे और झांकियों ने शोभायात्रा को विशेष आकर्षण प्रदान किया. बताया गया कि हिंदू नव वर्ष अपने आप में विशिष्ट है और इस पर हमें गर्व है. नगर में अनेक स्थानों पर सामाजिक संगठनों की ओर से शोभायात्रा का स्वागत सत्कार किया गया. सर्व हिंदू समाज के इस आयोजन को निर्विघ्न संपन्न करने के लिए पुलिस ने आवागमन को डायवर्ट करने के साथ जरूरी सुरक्षा व्यवस्था भी की.
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चैत्र नवरात्रि : बुढ़ी मां मंदिर में ज्योत प्रज्जवलित

रायपुर। राजधानी रायपुर के डॉ राजेंद्र नगर स्थित बुढ़ी मां का मंदिर लोगों की आस्था के अनुरूप जन सहयोग से सन 1971 में बनाया गया था। प्रतिवर्ष इस मंदिर में शारदीय एवं चैत्र नवरात्रि में ज्योत प्रज्जवलित की जाती है। नौ दिनों में माता की विशेष पूजा करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं
पहले दिवस माता शैलपुत्री की पूजा, इन्हें गाय का घी या उससे बने भोग लगाएं। इनकी पूजा से मूलाधार चक्र जागृत होगा और सभी सिद्धियां स्वत: प्राप्त होंगी। दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा, माता को शक्कर का भोग प्रिय है। इनकी पूजा से तप, त्याग, वैरागय, संयम व सदाचार की प्राप्ति होती है। तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा, माता को दूध का भाेग लगाएं। माता के इस रूप की पूजा से साधक को सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। चौथे दिन माता कुष्मांडा की पूजा, माता को मालपूआ का भाेग प्रिय है। पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा, माता को केले का भोग लगाना चाहिए। छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा, माता को शहद अति प्रिय है। इन्हें इसी का भाेग लगाए। सातवें दिन माता के कालरात्रि स्वरूप की पूजा, माता को गुड़ का भोग लगाया जाता है। इस स्वरूप के स्मरण से भूत, पिशाच व भय समाप्त हो जाते हैं। आठवें दिन माता महागौरी की पूजा, माता को हलवे-पूरी का भोग लगाया जाता है। नौवें दिन माता के सिद्धिदात्री रूप की पूजा, मां को खीर पसंद है।
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चैत्र नवरात्रि पर करें इन मंत्रों का जाप, मां दुर्गा होंगी प्रसन्न

चैत्र नवरात्रि 22 मार्च से आरंभ हो रही है। चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा की इन ये मंत्र जाप से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और जीवन में कल्याण करती हैं। इन मंत्रों के जाप से नवदुर्गा आपकी मनोकामनाओं को पूरी करेंगी। नवरात्रि के 9 दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का पूजन होता है। ऐसे में हर दिन मां दुर्गा की आरधन करने के लिए दिन के अनुसार मंत्र जाप करने चाहिए। मां दुर्गा के ये नौ स्वरूप हैं मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कूष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां सिद्धिदात्री और मां महागौरी। देवी दुर्गा ने ये नौ स्वरुप अलग अलग उद्दश्यों की पूर्ति के लिए धारण किए थे। आइए जानते हैं किन मंत्रों के जाप से मां दुर्गा के 9 स्वरूपों को प्रसन्न किया जा सकता है।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:
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गुड़ी पड़वा 22 मार्च को, जानिए गुड़ी पड़वा से जुड़े तथ्य...

चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन हिंदू धर्म में कई चीजों की शुरुआत होती है. विक्रम संवत लगता है, हिंदु नववर्ष शुरू होगा, चैत्र नवरात्रि शुरू हो रही है और गुड़ी पड़वा का पर्व भी इसी दिन पड़ता है. इस साल ये खास दिन 22 मार्च दिन बुधवार है. हिंदू धर्म में गुड़ी पड़वा का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन मराठी लोग गुड़ी पड़वा मनाते हैं और ये खासतौर पर वहीं का त्योहार है. इस साल गुड़ी पड़वा 22 मार्च, 2023 को पड़ रहा है और इस पर्व को देश के अलग-अलग हिस्सों में दूसरे नामों से जाना जाता है. चलिए आपको इसकी पूरी डिटेल बताते हैं.
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गुड़ी पड़वा से जुड़ी हर छोटी-बड़ी महत्वपूर्णं बातें
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा की शुरुआत 21 मार्च 2023 दिन मंगलवार की रात 9 बजकर 22 मिनट से होगी. इसकी समाप्ति 22 मार्च 2023 दिन बुधवार की शाम 6 बजकर 50 मिनट पर होगी. उदय तिथि के अनुसार 22 मार्च को गुड़ी पड़वा मनाया जाएगा. गुड़ी पड़वा के पूजा का शुभ मुहूर्त 22 मार्च 2023 की सुबह 6 बजकर 29 मिनट से 7 बजकर 39 मिनट तक है. गुड़ी पड़वा मनाने के पीछे के 4 मुख्य कारण होते हैं. इसमें पहला कारण है कि ऐसा माना जाता है कि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था. इसलिए ये दिन उनकी पूजा करके उन्हें ही समर्पित कर देते हैं. इसका दूसरा कारण है कि इस दिन से नवरात्रि का प्रारंभ भी होता है और घर घर दुर्गा मां का आगमन होता है. तीसरा कारण ये है कि इस दिन किसान नई फसलें उगाते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन हिंदू धर्म को मानने वालों को अपने-अपने घरों में नारंगी ध्वजा फहराना चाहिए जिससे निगेटिव एनर्जी घर में प्रवेश ना करे.
इस दिन मराठी लोग गुड़ी लगाते हैं. बांस के ऊपर चांदी, तांबे या पीतल का उल्टा कलश रखते हैं. वहीं उसे सुंदर साड़ी से सजाया जाता है. गुड़ी को नीम के पत्ते, आम के डंठल और लाल फूलों से भी सजाते हैं. गुड़ी को ऊंची जगह रखते हैं जिससे वो दूर से दिखाई दे. कई लोग इसे घर के मुख्य द्वार के खिलड़की पर सजा देते हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इस दिन ब्राह्मांड की रचना की थी इसलिए गुड़ी को ब्रह्मध्वज भी कहते हैं. कई जगह ऐस भी मान्यता है कि 14 साल के वनवास के बाद प्रभु श्री राम अयोध्या लौटने की खबर इसी दिन आई थी. गुड़ी लगाने के पीछे की मान्यता है कि घर में सुख-समृद्धि आती है.
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भोरमदेव महोत्सव के समापन पर अलका चंद्राकर ने दी मनमोहक प्रस्तुति

कवर्धा। शहर में आयोजित दो दिवसीय भोरमदेव महोत्सव का समापन सोमवार देर रात को हुआ. समापन से पहले जिले के अलग-अलग सिद्धपीठ मंदिरों के पुराजियों ने मंत्रोच्चारण के साथ विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर कार्यक्रम की शुरुआत की. समापन समारोह में लोक गायिका अलका चंद्राकर ने पारंपरिक गीत, कर्मा, ददरिया और जसगीत से समा बांधा.
सोमवार शाम 4 बजे से स्थानीय कलाकार और स्कूली बच्चों ने मनमोहक प्रस्तुति दी. उसके बाद देश के कई ख्याति प्राप्त कलाकारो ने अपनी प्रस्तुति दी. सारेगामा पा के विजेता बॉलीवुड के मशहूर कलाकार इशिता विश्वकर्मा ने अपने अंदाज में कई नए और पुराने फिल्मी गाने गाकर दर्शकों का दिल जीता. वहीं लोक गायिका अलका चंद्राकार ने पूरा भोरमदेव महोत्सव का माहौल बदल दिया.
अलका चंद्राकार ने छत्तीसगढ़ की पारंपरिक गीत, कर्मा, ददरिया और जस गीत से समा बांधा. अलका चंद्राकार के गीतों पर दर्शक अपने आप को रोक नहीं पाए और अपने सीट से उठकर झूमते नजर आए. दर्शकों को मनाने में पुलिस के पसीने छूट गए. रविवार को भीड़ कम थी, भोरमदेव महोत्सव में सोमवार को मौसम ने साथ दिया, जिसके चलते हजारों की संख्या में महेमान कलाकारों को सुनने पहुंचे.
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हर्षोल्लास से मनाया जाएगा रजत जयंती समारोह

दुर्ग। आन्ध्र स्वाभिमान एसोसिएशन की एक आवश्यक बैठक अम्बेडकर पार्क सेक्टर -1 भिलाई में एसोसियेशन के अध्यक्ष के. उमाशंकर राव की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। उपस्थित समाज प्रमुखों एवं सदस्यों ने सर्व सम्मति से रजत जयंती समारोह हर्षोल्लास से मनाया जाने तथा अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर आयोजन को सफल बनाने संकल्पित हुए। अध्यक्ष के. उमाशंकर राव ने बताया कि वर्ष 1997 में सामाजिक एकता को मजबूत करने, प्रतिभावान मेधावी छात्र - छात्राओं को सम्मान कर प्रोत्साहित सम्मान करना, राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय खिलाड़ियों सम्मान कर प्रोत्साहित करना, समाज प्रमुखों, समाज सेवकों तथा अन्य क्षेत्र में प्रतिभावान युवा एवं युवतियों को विशिष्ठ सेवा सम्मान कर प्रोत्साहित किया गया।
रजत जयंती समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कर हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जायेगा। राव ने बताया कि उक्त अयोजन को सफल बनाएं जानें हेतु प्रभारियों की नियुक्ति अतिशीघ्र किया जाएगा। बैठक में मुख्य रूप से सर्वश्री उपाध्यक्ष एम वेंकट राव, सचिव के ईश्वर राव, सहसचिव के प्रसाद राव, कोषाधिकारी एम ईश्वर राव, सम्माननीय कार्य समिति सदस्य जी राजू (पूर्व पार्षद)पी जगदीश राव, पी दुर्योधन राव, जी हरिकृष्ण, वी राजा राव, के पापा राव, एम धर्मा राव, डी येसय्या, सी हरीकृष्णा, वी वैकुंठ राव, जी माधव राव, गोपाल राव यादव, qहेमंत राव, ए गजपति राव, कोनेरू पापा राव, डी शंकर राव, एन भास्कर राव, सी एच अप्पला स्वामी, शंकर राव, डी चिन्ना राव, एम कामेश्वर राव,पी शेखर, के राजेंदर, एम कृष्णा उपस्थित होकर आयोजन को सफल बनाएं जानें हेतु संकल्पित हुए।
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किसे धारण करना चाहिए दो मुखी रुद्राक्ष

दो मुखी रुद्राक्ष भगवान अर्धनारीश्वर का प्रतीक
दो मुखी रुद्राक्ष भगवान अर्धनारीश्वर का प्रतीक हैं, जो एक व्यक्ति के शरीर में पुरुष और महिला की संलयन ऊर्जा को दर्शाता हैं। नेपाल से प्राप्त दो मुखी रुद्राक्ष दुर्लभ हैं क्योंकि यह बाजार में सबसे मूल्यवान मनका है।
इसके अलावा यह भारत के विभिन्न राज्यों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हरिद्वार से भी प्राप्त किया जाता है। जहाँ आप दो मुखी रुद्राक्ष को भारी मात्रा में पा सकते हैं।
दो मुखी रुद्राक्ष विभिन्न प्रकारों में आते हैं जो व्यक्तियों को उनकी राशि के अनुसार मिलते हैं। आम तौर पर यह चार रंगों में आता है: सफेद, लाल, पीला और काला।
इन अलग-अलग दो मुखी रुद्राक्ष का उपयोग अलग-अलग उद्देश्यों के लिए किया जाता है और अलग-अलग लाभ प्रदान करता है। विशेषज्ञ और ज्योतिषी दो मुखी रुद्राक्ष को सही प्रक्रिया के साथ पहनने का सुझाव देते हैं ताकि यह आपको सौभाग्य और विशेष लाभ प्रदान करे।
दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने के लिए सोमवार सबसे उत्तम दिन है। साथ ही आप इसे रविवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को भी पहन सकते हैं। दो मुखी रुद्राक्ष को सही विधि से धारण करने से लाभ होता है।
दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने से पहले पवित्र मनके को गाय के कच्चे दूध और गंगाजल से धोकर स्नान कराएं और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। साथ ही यह असली मनका अगर आप पूजा स्थान और शिव मंदिर में धारण करते हैं तो यह अधिक काम करेगा।
रुद्राक्ष की पूजा किसी साफ स्थान पर करें और कोशिश करें कि इसे लाल धागे में धारण करें। बीज मंत्र ‘ओम अर्धनारीश्वर देवै नमः’ का जाप करना भी महत्वपूर्ण है।
पुराणों के अनुसार दो मुखी रुद्राक्ष से विशिष्ट मंत्र जुड़े हुए हैं। पद्म पुराण के अनुसार आप ॐ ॐ नमः का उच्चारण कर सकते हैं। ॐ श्री नमः का बीज मंत्र स्कंद पुराण के अनुसार है। वहीं ॐ नमः का जाप शिव पुराण के अनुसार करते हैं।
इसके अलावा ॐ ॐ नमः का जाप भी लाभकारी होता है। दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने वाला व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है।
यह मनका रहस्यमय शक्तियों और सकारात्मक ऊर्जाओं को धारण करता है जो किसी व्यक्ति को हानिकारक प्रभावों से बचाता है। यह रुद्राक्ष धारण करने वाले के जीवन को सकारात्मकता और अच्छी चीजों से भर देता है।
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गणेश रुद्राक्ष को धारण करने के क्या है फायदे

गणेश रुद्राक्ष को धारण करने के कुछ फायदे इस प्रकार से हैं-
गणेश रुद्राक्ष को धारण करने से हर प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है, साथ ही इससे विघ्नों का नाश होता है।
गणेश रुद्राक्ष धारण करने से पढ़ाई में सफलता मिलती है। किसी भी परीक्षा में बैठने वाले छात्रों के लिए गणेश रुद्राक्ष अत्यंत लाभकारी होता है। भगवान गणेश को बुद्धि का देवता माना जाता है इसलिए विद्यार्थियों को गणेश रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए।
गणेश रुद्राक्ष धारण करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है। इससे धन और वैभव में वृद्धि होती है।
गणेश रुद्राक्ष बौद्धिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे धारण करने से विद्यार्थियों की एकाग्रता में वृद्धि होती है।
गणेश रुद्राक्ष धारण करने से बुध ग्रह के सभी नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाते हैं। इसलिए इस रुद्राक्ष को बहुत ही चमत्कारी रुद्राक्ष माना जाता है।
गणेश रुद्राक्ष किसी के मार्ग में नकारात्मकता और बाधाओं को दूर करता है। यह पहनने वाले की भौतिकवादी इच्छाओं को पूरा करता है।
गणेश रुद्राक्ष शरीर को स्वस्थ और रोग मुक्त बनाता है। यह तनाव और डिप्रेशन से राहत दिलाता है। साथ ही यह चिंता को भी कम करता है।
गणेश रुद्राक्ष धारण करने से सभी प्रकार के क्लेशों से मुक्ति मिलती है। यह फलदायी रुद्राक्ष अनेक समस्याओं का स्वत: ही समाधान कर सकता है। गणेश रुद्राक्ष धारण करने वाला व्यक्ति जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करता है।
भगवान गणेश भगवान शिव के पुत्र हैं, इसलिए भगवान शिव और देवी पार्वती (महा देवी) का आशीर्वाद इसे धारणा करने से मिलता है।
गणेश रुद्राक्ष धारण करने से बुध के अशुभ प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
यदि किसी व्यक्ति की याददाश्त कमजोर है या उसे अपने कार्यों को करने में एकाग्रता की कमी है तो उसे गणेश रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। गणेश रुद्राक्ष के शुभ प्रभाव से याददाश्त और एकाग्रता बढ़ती है।
गणेश रुद्राक्ष के द्वारा मानसिक समस्याओं को भी दूर किया जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति को कोई मानसिक विकार या मानसिक रोग है तो उसे गणेश रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होगा।
गणेश रुद्राक्ष धारण करने के बाद व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। साथ ही अगर आप अपने फैसले लेने में अटके हुए हैं तो आपको गणेश रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
गणेश रुद्राक्ष पर भगवान गणेश की कृपा होती है और इसे धारण करने वाले व्यक्ति को व्यापार में बहुत लाभ होता है। यह रुद्राक्ष स्वतः ही आपकी सफलता के मार्ग खोलता है। साथ ही अगर आप कोई नया व्यापार शुरू करने वाले हैं तो गणेश रुद्राक्ष धारण करने से आपको अधिक लाभ होगा।
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क्या है गणेश रुद्राक्ष जानिए...

सनातन परंपरा में रुद्राक्ष को न केवल भगवान शिव बल्कि सभी देवी-देवताओं और नवग्रहों का आशीर्वाद माना जाता है। सनातन धर्म में गणेश रुद्राक्ष को बहुत ही पवित्र और चमत्कारी बीज माना गया है।
जिसे धारण करने से व्यक्ति सभी प्रकार के संकटों से बचता है और जीवन से जुड़े सभी क्षेत्रों में उसे मनोवांछित सफलता प्राप्त होती है। इसे धारण करने से भगवान श्री गणेश की कृपा से व्यक्ति की बड़ी से बड़ी मनोकामना पलक झपकते ही पूरी हो जाती है।
उसके जीवन से जुड़े सभी दोष दूर हो जाते हैं और उसे किसी प्रकार का भय नहीं रहता। हिंदू धर्म में भगवान गणेश को बुद्धि का देवता माना जाता है। ऐसे में उनसे जुड़ा यह रुद्राक्ष भी जातक की बुद्धि को बढ़ाने वाला माना जाता है।
विद्यार्थियों के लिए गणेश रुद्राक्ष अत्यंत फलदायी माना गया है। गणेश रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति पर भगवान श्री गणेश की विशेष कृपा बरसती है। ऐसा माना जाता है कि गणेश रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति के जीवन से संबंधित सभी ज्ञात और अज्ञात शत्रु नष्ट हो जाते हैं।
इसे पहनने से हमेशा सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। रुद्राक्ष का संबंध केवल धर्म से ही नहीं बल्कि ज्योतिष से भी है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गणेश रुद्राक्ष का संबंध बुध ग्रह से है, जिसे धारण करने से कुंडली में स्थित बुध ग्रह से जुड़े दोष दूर हो जाते हैं और इसकी शुभता प्राप्त होती है।
ऐसे में नवग्रहों में बुद्धि के कारक माने जाने वाले बुध ग्रह की अनुकूलता के लिए गणेश रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। परीक्षा-प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए गणेश रुद्राक्ष बेहद शुभ साबित होता है।
मान्यता है कि गणेश रुद्राक्ष धारण करने से विद्यार्थियों की एकाग्रता बढ़ती है। गणेश रुद्राक्ष की शुभता जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिलाती है। भूलने की आदत वाले बच्चों के लिए गणेश रुद्राक्ष चमत्कारी फल प्रदान करता है।
गणपति की कृपा बरसाने वाले इस रुद्राक्ष को धारण करने से पढ़ने-लिखने वाले बच्चों की स्मरण शक्ति बढ़ती है। गणेश रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति के करियर और बिजनेस में आ रही सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं और उसे जीवन में मनचाही सफलता प्राप्त होती है।
अधिष्ठाता देवता: भगवान गणेश
सत्तारूढ़ ग्रह: बुध
बीज मंत्र: “श्री गणेशाय नमः”
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कैसे करे असली रुद्राक्ष की पहचान ?

रुद्राक्ष खरीदने से पहले व्यक्ति के मन में एक ही प्रश्न आता है कि “असली रुद्राक्ष की पहचान कैसे की जाती है? अधिकांश रुद्राक्ष व्यापारियों के विपरीत हमारे पास इसका उत्तर है। इसके लिए हमें यह पता लगाना है, कि रुद्राक्ष के आंतरिक बीजों की संख्या मुखी की संख्या के बराबर होनी चाहिए, जो इसकी बाहरी संरचना पर है। यदि बीजों की संख्या मुखी की संख्या के बराबर नहीं है, तो रुद्राक्ष की बाहरी सतह पर छेड़छाड़ होने की संभावना होती है।
इसे एक विशेषज्ञ द्वारा आसानी से पता लगाया जा सकता है। परीक्षण के कुछ अपवाद हैं, जो इस प्रकार हैं-
रुद्राक्ष की कुछ किस्मों में बीजों की संख्या मुखी की संख्या से अधिक होती है। उदाहरण के लिए यदि रुद्राक्ष के एक या एक से अधिक मुखी प्राकृतिक रूप से विकसित नहीं हुए हैं, तो रुद्राक्ष के आंतरिक भाग में बीजों की संख्या अधिक होगी।
इसे आप ऐसे समझ सकते हैं, कि अगर एक रुद्राक्ष के मुख कम विकसित हुए हैं। लेकिन उसके अंदर के बीजों की संख्या अधिक है। तो यह सिर्फ एक एक्सपर्ट ही बता सकता है, कि रुद्राक्ष असली है या नकली।
यह टेस्ट नेपाली और इंडोनेशियाई मूल के रुद्राक्षों के लिए अच्छा है। रुद्राक्ष की असलियत पता करने के लिए यह सबसे नजदीकी जांच है, इस जांच की भी कुछ सीमाएं हैं।
कई बार जब रुद्राक्षों को काटा जाता है तो हमने देखा है कि बीज अच्छी तरह से विकसित नहीं होते हैं और इसलिए बहुत ही सूक्ष्म गुहा या बिंदु की तरह दिखाई देते हैं।
खैर अब हर बार रुद्राक्ष का टेस्ट करने के लिए कोई मनका काटने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि रुद्राक्ष का एक्स-रे करवाना होगा। ऐसे में जो बीज अच्छी तरह से विकसित नहीं होते हैं, वे अच्छी तरह से सामने नहीं आ सकते।
इस कारण एक्स-रे या एक साधारण व्यक्ति के लिए एक्स-रे की व्याख्या करना कठिन होता है। ब्लर एक्स-रे के आधार पर निष्कर्ष निकालना भी कठिन होता है। यह एकमात्र सबसे अच्छा टेस्ट है जो रुद्राक्ष की प्रामाणिकता को साबित कर सकता है।
अगर आप जानना चाहते हैं कि रुद्राक्ष की असलीयत की जांच कैसे करें? तो आप हमारे द्वारा नीचे बताए गए टेस्ट को भी आजमा सकते हैं। लेकिन इन टेस्ट पर पूरी तरह से डिपेंड होना सही नहीं है।
फ्लोटिंग इन वॉटर टेस्ट
‘पानी में डूबने वाला रुद्राक्ष असली है और पानी में तैरने वाला रुद्राक्ष डुप्लीकेट’ जैसा परीक्षण केवल एक मिथक है। हम इस प्रकार के टेस्ट को कभी भी एक असली रुद्राक्ष की पहचान करने के लिए सही नहीं बता सकते।
रुद्राक्ष में फंसे पदार्थ या नमी के आधार पर असली रुद्राक्ष या तो तैर सकता है या पानी में डूब सकता है। एक असली रुद्राक्ष जो तेल से सना हुआ नहीं है, बहुत सूखा और वजन में हल्का होता है।
इसी प्रकार जो मनका भारी या तेल से सना हुआ हो या पानी में कुछ समय के लिए रखा हो, वह उसमें नमी के कारण डूब जाएगा। हाल ही में पेड़ से तोड़ा गया मनका, उसमें नमी के कारण डूब सकता है।
वही मनका यदि किसी बॉक्स में कुछ वर्षों तक पड़ा रहता है तो वह अपने सूखेपन के कारण पानी में डुबोने पर तैरने लगेगा है। इसके अलावा, वही सूखा मनका अगर कुछ घंटों या दिनों के लिए पानी में रखा जाए तो वह पानी को सोख लेगा और धीरे-धीरे डूबने लगेगा।
जब एक रुद्राक्ष एक गिलास पानी में डूबा हुआ होता है, तो यह गिलास के नीचे से ऊपर तक पानी में नमी के स्तर के आधार पर अपना उत्प्लावन स्तर खोज लेता है।
इस प्रकार यह सिद्ध हो चुका है कि कोई भी प्रामाणिक मनका या तो तैरेगा या उस मनके में नमी के आधार पर डूब सकता है। ऐसा इसलिए भी होता है कि रुद्राक्ष का मनका कांच के केंद्र में उत्प्लावन स्तर की ओर अग्रसर होता है।
इसी प्रकार अगर एक रुद्राक्ष के अंदर धातु की कोई बूंद गिरा दी जाए, तो वह पानी में डूब जाएगा। इस प्रकार यह भी कहना सही नहीं है, कि पानी में डूबने पर रुद्राक्ष असली ही होगा।
यहां तक कि अगर कुछ लोग पानी की जांच के पक्ष में हैं, तो किसी को उनसे एक साधारण सा सवाल पूछने की जरूरत है। रुद्राक्ष मूल हो सकता है लेकिन वॉटर टेस्ट उस पर मौजूद मुखी (पहलुओं) की वास्तविकता को कैसे साबित करता है।
मुखी को पानी में डूबने वाले असली भारी रुद्राक्ष पर उकेरा जा सकता है। इसलिए किसी भी मामले में, यह साबित नहीं किया जा सकता है कि रुद्राक्ष का मनका असली है या नकली। यह सिर्फ यह साबित करता है कि यह सूखा है या नम रुद्राक्ष है, और कुछ नहीं।
दूध का परीक्षण (मिल्क टेस्ट)
कई धोखेबाज़ या अज्ञानी विक्रेताओं द्वारा अक्सर यह दावा किया जाता है कि एक असली रुद्राक्ष जब दूध के जार में रखा जाता है। तो दूध का रंग बदल देता है। कई बार ऐसा होता है कि किसानों द्वारा रुद्राक्ष की माला को कीड़ों से बचाने के लिए मिट्टी से लेप कर दिया जाता है।
इसलिए एक बार जब मिट्टी से लिपटे रुद्राक्ष को दूध में डाल दिया जाता है तो वह अपना लेप खोने लगता है और दूध के रंग में बदलाव लाता है। यह लेप नकली मनके पर भी किया जा सकता है जो दूध में वही बदलाव लाएगा।
इसके अलावा भले ही कुछ लोग मानते हैं कि इसमें कुछ अर्थ या तर्क है, फिर भी यह परीक्षण रुद्राक्ष के मुखी की प्रामाणिकता को साबित नहीं करता है। यह आमतौर पर नकली रुद्राक्ष की बिक्री को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
कॉपर कॉइन टेस्ट
रुद्राक्ष के मनके की प्रामाणिकता को साबित करने के लिए कई अन्य मापदंड लिखे गए हैं जैसे दो सिक्कों के बीच घूमना और रुद्राक्ष को एक रात के लिए उसमें भिगोने के बाद दूध का रंग बदलना।
लेकिन ये सभी एक सही मानदंड नहीं हैं क्योंकि चुंबकीय क्षेत्र वाला एक मनका घूमता है और अगर मनका मिट्टी से रंगा जाता है तो वह अपना रंग खो देता है। इसलिए हमें इन शंकाओं और झूठी धारणाओं की परवाह नहीं करनी चाहिए।
डुप्लीकेट रुद्राक्ष
डुप्लीकेट रुद्राक्ष पूरी दुनिया में अलग-अलग जगहों पर पाए जाते हैं। लेकिन उत्तरांचल, भारत और पूरे नेपाल में ऋषिकेश और हरिद्वार जैसे स्थानों में आसानी से मिल जाते हैं। इसके अलावा आजकल रुद्राक्ष की माला नकली नहीं होती है लेकिन उन पर लगे मुखी नकली होते हैं।
एक कुशल कारीगर कम कीमत वाले रुद्राक्ष के मुखी को बड़े करीने से अतिरिक्त कट देकर उसे उच्च मुखी रुद्राक्ष मनके में परिवर्तित कर सकता है, जो उसे अधिक कीमत दिलाएगा।
इसी तरह वह कम कीमत वाले रुद्राक्ष मनका पर कुछ मुखी (पहलुओं) को छुपा सकता है, जिससे उसे कम मुखी मनका में परिवर्तित किया जा सकता था, जिससे उसे अधिक कीमत मिलेगी। केवल अनुभवी आंख ही इसका पता लगा सकती है।
ये कारीगर दो या तीन कम कीमत वाले मोतियों को एक साथ जोड़ने के लिए सुपरफाइन गोंद का उपयोग करते हैं और उन्हें एक अत्यधिक कीमत वाले गौरीशंकर या अत्यधिक कीमत वाले त्रिजुडी रुद्राक्ष में परिवर्तित करते हैं।
फिर भी इन चिपके हुए मोतियों को उबले हुए (उबलते नहीं) पानी में पूरी तरह से डुबाकर पता लगाया जा सकता है। ऐसी संभावना है कि यह गर्म पानी गोंद को अंदर से ढीला कर देगा और कृत्रिम रूप से जुड़े दो या तीन मोती को एक दूसरे से अलग कर देगा।
लेकिन आजकल कारीगरों द्वारा सुपरफाइन गोंद के उपयोग के कारण यह संभावना है कि मनके अलग न हों, इसलिए अंततः यह अनुभवी आंख ही है जो इसका पता लगा सकती है।
कई अन्य पेड़ जो एलियोकार्पाके ग्रैनिट्रस परिवार से संबंधित नहीं हैं, उन पर फल लगते हैं जो रुद्राक्ष के मनके के समान दिखते हैं। यह बहुत ही भ्रामक हो सकता है। क्योंकि एक सामान्य आंख को अंतर का तुरंत एहसास नहीं हो सकता है।
अंतत: खुद को समझाने या रुद्राक्ष की माला खरीदने का एकमात्र तरीका भरोसे पर है। रुद्राक्ष एक वास्तविक सप्लायर से खरीदना चाहिए जो लोगों के प्रति जवाबदेह हो।
रुद्राक्ष खरीदना रत्न खरीदने जैसा है जिसमें खरीदार केवल एक विश्वसनीय सप्लायर से खरीदते हैं। इस प्रकार खरीदारों को इन मोतियों को खरीदने से पहले अन्य सप्लायर्स से भी संपर्क करना चाहिए।
इसलिए हमारा आपसे यही आग्रह है, कि जब भी आप कोई रुद्राक्ष खरीदें तो किसी trusted source से ही खरीदें। असल में किसी भी रुद्राक्ष की असलियत का पता लगाने का कोई वास्तविक तरीका नहीं है।
सिर्फ एक अनुभवी व्यक्ति ही असली और नकली में फर्क कर सकता है। लेकिन आँखें कभी भी धोखा दे सकती है। तो हमारी आपसे यही राय है, आप पूरी जांच के बाद ही रुद्राक्ष खरीदें। सस्ता रुद्राक्ष कभी भी खरीदने की कोशिश न करें।
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कितने तरह के होते हैं रुद्राक्ष ?

रुद्राक्ष को उनके मुख या चेहरे के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
रुद्राक्ष को उनके मुख या चेहरे के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। रुद्राक्ष जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है, यह एक पेड़ का फल है। इसमें आम तौर पर 5 कंपार्टमेंट होते हैं और प्रत्येक कंपार्टमेंट में एक ही बीज होता है।
दो कंपार्टमेंट के बीच जोड़ने वाली दीवार को फल की सतह पर खांचे या रेखा द्वारा दर्शाया जाता है। इसे मुख या मुखी कहते हैं। मुखों की संख्या रुद्राक्ष के प्रकार का निर्धारण करती है।
1. एक मुखी रुद्राक्ष
इसका शासक ग्रह सूर्य और देवी लक्ष्मी है। एक मुखी रुद्राक्ष परम वास्तविकता और भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करता है। इसका स्वामी ग्रह सूर्य है और इसे सूर्य के बुरे प्रभावों को कम करने के लिए पहना जाता है।
यह काम और ध्यान के लिए एकाग्रता और पहनने वाले की इच्छा शक्ति को बढ़ाता है। यह सिर के रोगों से बचाता है। यह सुख-समृद्धि भी देता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या एक होती है।
2. दो मुखी रुद्राक्ष
इसका रूलिंग ग्रह चंद्रमा और देवता अर्थनेश्वर (शिव और पार्वती रूपम) है। दो मुखी रुद्राक्ष पहनने वाले के लिए वैवाहिक आनंद, खुशी, शांति और सद्भाव के लिए उपयोगी है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या दो होती है।
यह विवाह और संतान प्राप्ति में आ रही बाधाओं को दूर करता है। साथ ही यह सामाजिक और व्यक्तिगत संबंधों के लिए अच्छा है। यह उर्वरता बढ़ाता है, भौतिक इच्छाओं को पूरा करता है। चन्द्रमा के अशुभ प्रभाव को दूर करता है।
3. तीन मुखी रुद्राक्ष
इसका सत्तारूढ़ ग्रह मंगल और देवी मा सरस्वती है। तीन मुखी रुद्राक्ष स्मृति, आत्मविश्वास, रचनात्मक बुद्धि और एकाग्रता को बढ़ाता है। यह डिप्रेशन, हीन भावना से पीड़ित लोगों के लिए अच्छा है।
साथ ही यह मस्तिष्क रोगों में सहायक और मंगल का शुभ फल देता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या तीन होती है। इस प्रकार आप तीन मुखी रुद्राक्ष की जांच कर सकते हैं।
4. चार मुखी रुद्राक्ष
इसका शासक ग्रह बुध और देव भगवान ब्रह्मा: है। सृष्टि के भगवान ब्रह्मा जी चार मुखी रुद्राक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं। ब्रह्मा जी, चार सिर वाले भगवान जिन्हें ब्रह्मांड का निर्माता कहा जाता है। इस प्रकार के रुद्राक्ष से बुद्धि, तर्क, मानसिक शक्ति और बुद्धि में वृद्धि होती है।
यह ध्यान के लिए अच्छा है। ज्ञान, सीखने और एकाग्रता में सुधार के लिए चार मुखी बुद्धिजीवियों, कलाकारों, वैज्ञानिकों, व्याख्याताओं, लेखकों, छात्रों, पत्रकारों, दुभाषियों, शिक्षकों आदि के लिए उपयुक्त है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या चार होती है।
5. पाँच मुखी रुद्राक्ष
इसका रूलिंग ग्रह बृहस्पति और देव भगवान रुद्र है। बुरी शक्ति के विनाशक शिव पांच मुखी रुद्राक्ष के देव है, यह रुद्राक्ष आमतौर पर उपलब्ध हैं। रुद्राक्ष के पेड़ के लगभग 90% मोती पांच मुखी होते हैं। यह स्वास्थ्य, मानसिक शांति और खुशी प्रदान करता है।
इसे पहनने वाले में पांच तत्वों यानी अग्नि, वायु, आकाश, जल और पृथ्वी को नियंत्रित और संतुलित करने की शक्ति होती है। यह सफलता और सकारात्मक सोच के लिए अच्छा है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या पाँच होती है।
6. छः मुखी रुद्राक्ष
इसका शासक ग्रह शुक्र और देव भगवान कार्तिकेय है। छह मुखी रुद्राक्ष को कार्तिकेय का प्रतिनिधित्व करने के लिए कहा जाता है जो भगवान शिव के पुत्र थे। यह विपरीत लिंग के प्रति प्रेम और आकर्षण से संबंधित मामलों के लिए अच्छा है।
यह आराम, सद्भाव, आकर्षण और शिष्टता देता है। यह कला, रचनात्मकता, साहित्य, संगीत आदि के लिए रुचि पैदा करने के लिए उपयोगी है। यह भावनात्मक और संवेदनशील व्यक्तियों के लिए अच्छा है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या छः होती है।
7. सात मुखी रुद्राक्ष
इसका रूलिंग ग्रह शनि और देव भगवान सप्तऋषि (सात महान सिद्ध ऋषि) है। सात मुखी रुद्राक्ष स्वास्थ्य और धन के लिए अच्छा है। इसके अन्य लाभ सफलता, आनंद, शांति और खुशी हैं। यह बिजनेस और करियर के लिए अच्छा है।
ऐसा कहा जाता है कि इससे शनि के दुष्प्रभाव दूर होते हैं। यह पहनने वाले को न्याय, अधिकार, ज्ञान और सम्मान की भावना देता है। सर्दी, खांसी, गठिया, टीबी, ब्रोंकाइटिस को रोकने के लिए अच्छा है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या सात होती है।
8. आठ मुखी रुद्राक्ष
इसका शासक ग्रह राहु और देव भगवान गणेश है। आठ मुखी रुद्राक्ष बाधाओं को दूर करता है। यह इच्छा शक्ति को बढ़ाता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है। यह बिजनेस और करियर के लिए बहुत अच्छा है। यह अनिद्रा और मानसिक समस्याओं के लिए अच्छा है।
यह अहंकार, फिजूलखर्ची और पेट के रोगों को दूर करता है। यह सौभाग्य लाता है। यह राहु के दुष्प्रभाव को कम करता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या आठ होती है।
9. नौ मुखी रुद्राक्ष
इसका रूलिंग ग्रह केतु और देवी मां दुर्गा है। नौ मुखी रुद्राक्ष केतु के बुरे प्रभाव को कम करता है। यह पहनने वाले को आत्मविश्वास, शक्ति, निडरता और स्वास्थ्य प्रदान करता है। यह पाप, अधर्म, अन्याय, क्रूरता, आलस्य और बुरी आदतों को दूर करने के लिए अच्छा है।
यह आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष प्राप्त करने में मदद करता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या नौ होती है।
10. दस मुखी रुद्राक्ष
भगवान विष्णु दस मुखी रुद्राक्ष पर शासन करते हैं। यह बाधाओं और पिछले पापों (कर्म कार्यों) को दूर करने के लिए अच्छा है। यह घबराहट, अनिर्णय, शर्म और क्रोध को दूर करता है। यह आध्यात्मिक जागृति और सकारात्मक विचारों के लिए सहायक है।
इसे लगभग कोई भी पहन सकता है। यह मन की शांति देता है और दुश्मनों, काली या बुरी नजर से बचाता है। यह भ्रम दूर करता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या दस होती है।
11. ग्यारह मुखी रुद्राक्ष
भगवान शिव के ग्यारह रूपम (एकद रुद्र) ग्यारह मुखी रुद्राक्ष का उपयोग लगभग सभी उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यह सामान्य रूप से सफलता, आराम, मन की शांति, समृद्धि, स्वास्थ्य, इच्छाओं की पूर्ति और आध्यात्मिक सफलता देता है।
यह स्थिरता और आत्मविश्वास लाता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या ग्यारह होती है।
12. बारह मुखी रुद्राक्ष
सुल्पानी रूपम (सूर्य के देवता) बारह मुखी रुद्राक्ष के देव हैं। यह पहनने वाले को ऊर्जा और जीवन शक्ति देता है। यह स्वास्थ्य, अधिकार, प्रभाव, सम्मान, प्रतिभा, राजनीति में सफलता, व्यापार, प्रशासन और बौद्धिक खोज का लाभ देता है।
बारह मुखी राजनेताओं, व्यापारियों, प्रशासकों आदि के लिए अनुकूल है। यह हड्डियों के रोगों में अच्छा है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या बारह होती है।
13. तेरह मुखी रुद्राक्ष
इंद्र देव यानि आनंद के देवता इस रुद्राक्ष पर शासन करने वाले देव हैं। तेरह मुखी रुद्राक्ष नेतृत्व गुणों, संचार और विपणन कौशल को बढ़ाने के लिए उपयोगी है। यह किसी के कार्यों के लिए तेजी से परिणाम आकर्षित करता है, अवसर और शारीरिक शक्ति देता है।
यह मुश्किलों को आसानी से पार करने में मददगार है और रिश्तों को टूटने से बचाता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या तेरह होती है।
14. चौदह मुखी रुद्राक्ष
भगवान शिव रूपम चौदह मुखी रुद्राक्ष के देव है। यह व्यक्ति के मानसिक पहलुओं को जगाने में शक्तिशाली है। यह दूरदर्शी गुणों को बढ़ाता है। यह किसी व्यक्ति को शनि के दुष्प्रभाव से बचाता है विशेष रूप से साढ़े साती (7.5 वर्ष) और ढय (2.5 वर्ष) के प्रभाव से।
यह व्यापार और वित्त में लाभ लाता है। यह व्यवसायियों और रोमांच चाहने वाले व्यक्तियों के लिए अच्छा है। यह घाटे में चल रहे बिजनेस को फिर से खड़ा करने में सहायक है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या चौदह होती है।
15. पंद्रह मुखी रुद्राक्ष
भगवान पशुपतिनाथ इस रुद्राक्ष के देव हैं, जो मुक्ति के भगवान (मोक्ष या मुक्ति) है। पंद्रह मुखी रुद्राक्ष अंतर्ज्ञान शक्ति पैदा करता है और मानसिक शक्ति बढ़ाता है। यह किसी व्यक्ति के ऊर्जा स्तर को बनाए रखने में मदद करता है।
पदोन्नति और आर्थिक प्रगति चाहने वालों के लिए यह अच्छा है। यह जाने-अनजाने में किए गए किसी के पिछले पापों के बुरे प्रभावों को कम करता है। इस रुद्राक्ष के अंदर कंपार्टमेंट और बाहर रेखाओं की संख्या पंद्रह होती है।
16. गौरीशंकर रुद्राक्ष
शिव और पार्वती रूपम यह विशेष लेकिन प्राकृतिक रुद्राक्ष है जो तीन रुद्राक्षों के एक साथ जुड़ने पर बनता है। ऐसा कहा जाता है कि यह हिंदू ट्रिनिटी का प्रतिनिधित्व करता है। जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) है।
इस रुद्राक्ष को धारण करने वाले को स्वास्थ्य, धन, शक्ति और ज्ञान जैसी सभी चीजें प्राप्त होती हैं। गौरी शंकर रुद्राक्ष में “नव ग्रह दोष” को दूर करने की शक्ति है, जो हिंदू ज्योतिष के अनुसार सभी 9 ग्रहों के बुरे प्रभाव हैं।
यह वैवाहिक कलह और पारिवारिक समस्याओं को दूर करता है। इस रुद्राक्ष की पहचान करना बहुत आसान है। आप तीन एक साथ जुड़े रुद्राक्ष को देखकर इसका पता लगा सकते हैं।
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नवरात्रि के नौ दिनों देवी के अलग-अलग स्वरूपों की होगी पूजा

हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। इसे पूरे 9 दिनों तक मनाया जाता है और देवी के भक्तों में इसे लेकर काफी उत्साह रहता है। बता दें कि साल भर में कुल 4 नवरात्रि होती हैं जिनमें दो मुख्य नवरात्रि मानी जाती हैं एक चैत्र और दूसरी शारदीय नवरात्रि।
चैत्र नवरात्रि हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होती है और नवमी तिथि को इसका समापन होता है। प्रतिपदा तिथि के दिन सभी भक्त अपने घरों में घट स्थापना कर देवी का आव्हन करते हैं और इसके 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ सिद्ध स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाती है। आइए जानते हैं प्रतिपदा से नवमी तिथि तर सभी देवियों के नाम व घटस्थापना की विधि-
नवरात्रि में घट स्थापना या कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। कलश स्थापना को घट स्थापना भी कहा जाता है। मान्यता है कि नवरात्रि में कलश स्थापना करने से मां दुर्गा का आह्वान किया जाता है और इसके बाद नौं दिनों तक मां शक्ति घरों में विराजमान रहकर भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं।
कैसे करें घटस्थापना?
नवरात्रि के पहले दिन सुबह स्नान कर मंदिर की सफाई करें या फिर जमीन पर माता की चौकी लगाएं। इसके बाद सबसे पहले भगवान गणेश जी का नाम लें और मां दुर्गा के नाम की अखंड ज्योत जलाएं और मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालें। मिट्टी में जौ के बीच डाल दें। इसके बाद कलश या लोटे पर मौली बांधें और उस पर स्वास्तिक बनाएं।
लोटे (कलश) पर कुछ बूंद गंगाजल डालकर उसमें दूब, साबुत सुपारी, अक्षत और सवा रुपया डाल दें और फिर लोटे (कलश) के ऊपर आम या अशोक 5 पत्ते लगाएं और नारियल को लाल चुनरी में लपेटकर रखें। अब इस कलश को जौ वाले मिट्टी के पात्र के बीचो बीच रख दें और फिर माता के सामने व्रत का संकल्प लें और अपना व्रत शुरू करें।
नवरात्रि के 9 दिन और देवी के नौं स्वरुप
- 22 मार्च 2023 दिन बुधवार- पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा
- 23 मार्च 2023, गुरुवार - दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
- 24 मार्च 2023, शुक्रवार- तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा
- 25 मार्च 2023, शनिवार- चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा
- 26 मार्च 2023, रविवार- पंचमी को मां स्कंदमाता की पूजा
- 27 मार्च 2023, सोमवार- छठा दिन मां कात्यायनी देवी की पूजा
- 28 मार्च 2023, मंगलवार- सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा
- 29 मार्च 2023, बुधवार- आठवां दिन मां महागौरी की पूजा
- 30 मार्च 2023, गुरुवार, राम नवमी - नवमी तिथि को मां सिद्धिदात्री की पूजा
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ये पौधे लाते हैं घर में पॉजिटिव एनर्जी

पेड़-पौधे (Plants) घर की खूबसूरती बढ़ाने का काम करते हैं
पेड़-पौधे (Plants) घर की खूबसूरती बढ़ाने का काम करते हैं। साथ में इनसे घर में पॉजिटिव एनर्जी (Positive Energy) का वास भी होता है। लेकिन वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) में बताया गया है की पेड़ पौधे भी सोच समझकर लगाने चाहिए। क्योंकि कई पेड़ पौधे ऐसे होते हैं जो घर में नेगेटिव एनर्जी को बढ़ाने का काम करते हैं। लेकिन यदि वास्तु के अनुसार घर में पेड़ पौधे लगाए जाएं तो इससे पॉजिटिव एनर्जी का संचार होता है, और सभी सदस्यों के जीवन पर भी इसका बड़ा पॉजिटिव असर देखने को मिलता है। आइये जानते हैं कि वो कौन से पेड़ पौधे हैं जिन्हें घर में लगाना चाहिए।
तुलसी का पौधा (Vastu Tips for Plant)
हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे का बड़ा महत्व माना जाता है। हर घर में इसकी पूजा की जाती है। वास्तु (Vastu Shastra) के अनुसार भी तुलसी के पौधे को घर में रखना शुभ माना जाता है। मान्यता है की तुलसी के पौधे को घर में लगाने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। जिस घर में तुलसी की पूजा होती उस घर में गहन की भी कमी नहीं होती।
मनी प्लांट
वास्तु में मनी प्लांट के पौधे को भी शुभ माना जाता है। अगर आप अपने घर में दक्षिण-पूर्व दिशा में मनी प्लांट लगाते हैं तो इससे घर में धन लाभ होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की दक्षिण-पूर्व दिशा में मनी प्लांट लगाना शुभ माना जाता है। दरअसल मनी प्लांट को वास्तु के नियम के अनुसार लगाने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं।
एलोवेरा (Vastu Tips for Plant)
एलोवेरा के पौधे में कई प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं। उसके अलावा इसे वास्तु की दृष्टि से भी बहुत शुभ माना जाता है। अगर आप अपने घर से नेगेटिव एनर्जी को बाहर का रास्ता दिखाना चाहते हैं तो मनी प्लांट को उत्तर या पूर्व दिशा में रखें। ऐसा करने से घर में शांति बनी रहती है। मनी प्लांट को लकी प्लांट भी माना जाता है। साथ ही इसके इस्तेमाल से आपकी स्किन और हेयर भी बड़ी हेल्दी रहते हैं।
स्नैक प्लांट
स्नैक प्लांट देखने में बहुत खूबसूरत लगता है। इसे घर में लगाने से घर किम रौनक बढ़ जाती है। इसके अलावा स्नैक प्लांट का वास्तु की दृष्टि से भी बेहद शुभ माना जाता है। इस पौधे को लगाने से घर में सकारात्मकता बनी रहती है और घर के सदस्यों की सेहत भी दुरुस्त रहती है। इसके अलावा यह पौधा घर की अशुद्धियों को दूर कर देता है और जहां लगा होता है वहां ताजगी बनाए रखता है। इस पौधे को कंप्यूटर टेबल के पास लगाना सबसे अच्छा मानते हैं।
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