यूक्रेन के बाद भारतीय मेडिकल छात्रों का नया ठिकाना उज्बेकिस्तान
11-Dec-2023 3:50:29 pm
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- भारत के शिक्षकों की भी नियुक्ति
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बड़ी संख्या में भारतीय मेडिकल छात्रों को यूक्रेन छोड़कर लौटना पड़ा था और उनके पास अपना कोर्स आगे जारी रखने का कोई रास्ता नहीं था। तब समरकंद यूनिवर्सिटी ने ही उनके लिए अपने दरवाजे खोले और करीब 1,000 छात्रों को समायोजित किया।उज्बेकिस्तान की समरकंद यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने वाले भारतीय मेडिकल छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी है। 93 साल पुराने इस विश्वविद्यालय में 2021 तक भारतीय छात्रों की संख्या 100-150 तक ही रहती थी लेकिन 2023 में आंकड़ा 3,000 के ऊपर पहुंच गया। यह बदलाव जंग के कारण यूक्रेन के संस्थानों के दरवाजे बंद होने के कारण आया है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण बड़ी संख्या में भारतीय मेडिकल छात्रों को यूक्रेन छोड़कर लौटना पड़ा था और उनके पास अपना कोर्स आगे जारी रखने का कोई रास्ता नहीं था। तब समरकंद यूनिवर्सिटी ने ही उनके लिए अपने दरवाजे खोले और करीब 1,000 छात्रों को समायोजित किया। स्टेट समरकंद मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. जफर अमीनोव ने बताया, भारतीय छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी है और हम यह सुनिश्चित करने में जुटे हैं कि यह ट्रेंड इसी तरह बना रहे। हमारी भरसक कोशिश है कि छात्रों को किसी भी तरह की असुविधा का सामना न करना पड़े।
भारतीय शिक्षकों को भी बुलाया
अमीनोव ने कहा, हमने इस साल भारत से 40 से अधिक शिक्षकों को अपने यहां नियुक्त किया है। वह बताते है कि वैसे तो यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी ही है लेकिन संस्थान नहीं चाहता कि उच्चारण की वजह से छात्रों को कोई दिक्कत हो। इसलिए उन्हें भारतीय शिक्षकों की मौजूदगी से फायदा होगा। इसके अलावा, संस्थान अपने प्रबंधन में भी भारतीय शिक्षकों की मदद ले रहा है।
यूक्रेन का विकल्प बनाने की कोशिश
यूक्रेन उन भारतीय छात्रों का पसंदीदा गंतत्व स्थल रहा है, जो मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेश जाना चाहते थे। लेकिन रूस-यूक्रेन जंग ने हालात को एकदम बदल दिया है। ऐसे में उज्बेकिस्तान के इस संस्थान ने खुद को यूक्रेन का विकल्प बनाने की कोशिश की। इसी वजह से यहां उन छात्रों को पढ़ाई जारी रखने का मौका दिया गया जो यूक्रेन में अपना कोर्स पूरा नहीं कर पाए थे।
छह साल का कोर्स लेकिन पढ़ाई सस्ती
भारत में साढ़े पांच के कोर्स की तुलना में उजबेकिस्तान में एमबीबीएस की अवधि छह साल की है। लेकिन शिक्षण का माध्यम अंग्रेजी है, माहौल भी शांतिपूर्ण है और व्यावहारिक ज्ञान के मामले में भी यहां पूरा ध्यान दिया जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि यहां पढ़ाई करना अपेक्षाकृत सस्ता भी है। सलाहकारों का मानना है कि भारतीय छात्रों की संख्या में यह वृद्धि अस्थायी नहीं है। आने वाले समय में यह संख्या और बढ़ सकती है।
छात्रों को पसंद आ रहा सुरक्षित माहौल
कंसल्टेंसी फर्म एमडी हाउस के निदेशक और संस्थान में आधिकारिक प्रवेश भागीदार सुनील शर्मा कहते हैं कि यूक्रेन के दरवाजे बंद होने के बाद छात्रों का ध्यान उज्बेकिस्तान की तरफ गया। बिहार के एक छात्र मोहम्मद आफताब ने कहा, अच्छी बात यह है कि यहां शांतिपूर्ण माहौल है। भाषा की बाधा जैसी कोई समस्या नहीं है। वहीं, हरियाणा के गुड़गांव निवासी विशाल कटारिया का कहना है कि वह ऐसे देश में रहकर पढ़ना चाहते थे जहां माहौल भारत के जैसा ही हो।