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अरविंद जोशी : हर दशक में बदलती रही है मार्केटिंग की विजुअल लैंग्गुएज

सफलता.कॉम द्वारा विजुअल लैंग्गुएज इन मार्केटिंग विषय पर आयोजित किये गए मास्टर क्लास सेशन में एडजिनी फाउंडर अरविंद जोशी ने कहा कि अक्सर जब हम विजुअल कम्युनिकेशन की बात करते हैं तो हम टेक्स्ट और विजुअल को दो भागों में बांट देते हैं लेकिन वास्तविकता यह है कि टेक्स्ट विजुअल का ही एक पार्ट है आप ऑडियो और विजुअल को दो भागों में बांट सकते हैं। क्योंकि जो सारी प्रथाएं विजुअल के ऊपर लागू होती हैं वहीं सारी प्रथाएं टेक्स्ट के ऊपर भी लागू होती हैं। लेकिन ऑडियो की अपनी अलग प्रथाएं हैं। उन्होंने कहा जैसे हम किसी को एक विजुअल दिखाते हैं इतनी दूरी से कि आप उसमें लिखे टेक्स्ट को पढ़ नहीं पा रहे लेकिन देख पा रहे हैं। तो आप उसे देखकर ये जरूर बता सकते हैं कि सामने जो लाइन्स लिखी हैं वह हिंदी में हैं या रोमन में हैं, रशियन में हैं या बंगाली भाषा में हैं। इससे ये पता चलता कि जो टेक्स्ट फॉर्म में एड लिखा है उसे पढ़ने से पहले आप उसे देखते ही उसकी एक पोजिशनिंग कर लेते हैं। कि ये है क्या ? ये उसी तरह है जैसे हम किसी इंसान से बात करने से पहले ये तय करते हैं कि ये अमीर है या गरीब है। फ्रेंडली दिख रहा है, बोलचाल में ठीक होगा बगैरह बगैरह। या उसके बोलने के अनुसार आप अपनी पोजिशनिंग चेंज कर लेते हैं या वैसा ही होता है जैसा आपने पहले से सोच लिया था।
90 के दशक में ब्रांड हिदी में टाइल और इंग्लिश में लिखते थे टैग लाइन
उन्होंने कहा कि दशक पर दशक विजुअल लैंग्गुएज की बात करें तो 90s के दशक में पेप्सी का जो एड बना था। उसमें रोमन में लिखा था ये दिल मांगे मोर, कारगिल की वजह से ये और मशहूर हो गया था। कई ब्रांड्स इंडिया में फिल्मों के नाम हिंदी में पर टैग लाइन इंग्लिश में डालते डालने का रिवाज था। उस समय के ब्रांड अपना नाम हिंदी में और टैगलाइन को रोमन में इस्तेमाल करते थे। इसका कारण देश में हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं की राजनीति भी है और दोनों भाषाओं का क्लास के साथ भी एक संबंध है। अगर आप मिडिल क्लास लोअर क्लास के हैं तो हिंदी या रोमन और अगर आप अपर क्लास के हैं तो अंग्रेजी। क्योंकि अंग्रेजी पॉवर की भाषा है। वहीं हिंदी भाव की भाषा है मासेज को कम्युनिकेट करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही भाषा का देश की आर्थिक शक्ति के साथ भी संबंध है। साथ ही भाषा आपकी सामाजिक स्थिति से भी जुड़ी हुई है।  
हिंदी अंग्रेजी के बजाया डेढ़ गुना ज्यादा स्पेस लेती है
इसीलिए आजतक ब्रांड्स के एड में अंग्रेजी और हिंदी का बैलेंस इस्तेमाल होता आ रहा है। अंग्रेजी हिंदी के बजाय कम स्पेस लेता है। वहीं हिंदी अंग्रेजी से ज्यादा स्पेस लेती है। अक्षरों के ऊपर और नीचे तक मात्राएं जाती हैं। अंग्रेजी से ये डेढ़ से 2 गुना ज्यादा स्पेस लेती है। उन्होंने कहा इसी तरह एड पर लिखी विजुअल लैंग्गुएज को तो लोग समझते हैं लेकिन विजुअल एड की साइंस को लोग नहीं समझते। हां इतना जरूर है कि विजुअल एड का इस्तेमाल हर कोई कर रहा है।
ये भी सीखें 
डिजिटल मार्केटिंग 
मास्टर डिजिटल मार्केटिंग 
हर दशक में दो तरह की एड विजुअल प्रथाएं चलती हैं
एड की दशक दर दशक पहचान बदली जैसे 60 के दशक में जितने भी बॉलीवुड हीरो (राजकपूर, देव आनंद या बलराज साहनी) थे वो सलीके से बाल बनाते थे और कपड़े भी सलीके से पहनते थे। तो ये उस जमाने का ट्रेंड था। तो इसी तरह हर दशक में दो तरह की प्रथाएं एड में चलती रहीं। एक वो जिसमें ब्रांड्स मार्केटिंग में बनी बनाई प्रथा को फॉलो करते थे और दूसरा वो जिसमें उस प्रथा के विपरीत कुछ ब्रांड्स अपनी मार्केटिंग करते हैं। जैसे हर दशक में एक हवा ऐसी चलती है जिसमें नए ट्रेंड्स सेट होते हैं और समाज पुराने ट्रेंड्स को छोड़कर उन नए ट्रेंड्स की ओर चलने लगता है।
लंबे बाल, चश्मा या कपड़ों का स्टायल हर चीज बयां करती है अलग पहचान
जैसे 60s, 70s के बाद 80s, 90s के दशक में हीरो के कपड़े और स्टाइल बदलते गए। नब्बे के दशक में लंबे बाल वाले अभिनेता पसंद किये जाने लगे। पेंट में बेल बॉटम का चलन बढ़ा। साथ ही चश्में का प्रयोग भी एक आइडेंटिटी के लिये किया जाने लगा। जैसे हम फिल्म में अमिताभ बच्चन जब चश्मा पहनता था तो सीधा साधा आदमी और जब उतार देता था तो एंग्री यंगमैन फाइट करने वाला। इसी तरह रब ने बना दी जोड़ी में शाहरूख खान चश्में में सीधे साधे हैं और बिना चश्में के एकदम अलग अंदाज में।
अपनी नॉलेज परखें
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पास्ट को ब्लैक एंड व्हाइट में दिखाने का चलन
साथ ही पुरानी फिल्मों से पास्ट को ब्लैक एंड व्हाइट में दर्शाये जाने की प्रथा चल रही है जिसका आज भी लोग पालन कर रहे हैं। लेकिन आज की प्रथाओं में पास्ट को दिखाने की जो दूसरी प्रथा है वो है स्लो मोशन में विजुअल्स को मूव करना। या फिर उसमें ब्लैक एंड व्हाइट के बजाय किसी एक कलर का फिल्टर लगा देंगे। जैसे मान लो ग्रीन कलर का फिल्टर लगा दिया तो पास्ट के विजुअल्स आपको हल्के ग्रीन आवरण में दिखेंगे।
हर दशक में रंग के मतलब अलग अलग हो जाते हैं
इसी तरह आज अगर रंग की बात की जाए तो वह अपने अलग मतलब लेकर लोगों पर प्रभाव छोड़ता है। जैसे सैफरॉन कलर या भगवा रंग को आज कुछ लोग सनातन, देश प्रेम, भाजपा, आरएसएस, हिंदी संगठन या हिंदू धर्म से जोड़कर देखने लगे हैं। वहीं हरे रंग का मतलब कुछ लोग पाकिस्तान या दूसरी कौम को समझने लगे हैं। जबकि रंगों का अपना अलग नेचर है उनका अपना अलग मतलब है। इन्हीं रंगों की परिभाषा अमेरिका, इंग्लैड, या पेरिस में अलग है। जैसे भगवा रंग सूर्य के उगने और छिपने पर आसमान पर आता है तो ये उसका रंग है। केसर का रंग होने के कारण केसरिया है। इसी तरह हरा रंग प्रकृति का रंग है। इसलिये हरा है। लेकिन भारत में ही हरेक सदी में इन्हीं रंगों का मतलब अलग अलग समझा जाता रहा है। तो आपको एक एडवरटाइजर के रूप में बहुत ध्यान रखने की जरूरत है। यानी आप जो भी रंग का इस्तेमाल कर रहे हैं उसका यूनिवर्सल मतलब, ब्रांड से उसका संबंध और सामाजिक मायने क्या हैं ये जरूर आप पता कर लें। पर्पल एक स्पर्चुअल फीलिंग देता है, रेड एग्रेशन की फीलिंग देता है और ब्लू एक शांति की फीलिंग देता है। तो युवा एड पर काम करने से पहले रंगों के यूनिवर्सल मीनिंग को जरूर सर्च कर लें। लेकिन ये कलर का सेंस हर भौगोलिक परिस्थिति, देश और समाज, व सदी में बदल जाता है।
पश्चिमी कला का इतिहास जरूर पढ़ें एडवरटाइजिंग में कॅरिअर बनाने जा रहे युवा
इसलिए सभी युवाओं को जो एडवरटाइजिंग में करिअर बनाने जा रहे हैं वर्ल्ड आर्ट के बारे में पड़ना चाहिए। पश्चिमी कला का इतिहास आप जरूर पढ़ें। यानी आपको पता होना चाहिए कि किस तरह के बड़े आर्टिस्ट थे, कहां से आर्ट शुरू हुई है पहले कैसी आर्ट बनती थी। पेंटिंग की कला, फोटोग्रॉफी और फिल्म इन तीन बड़ी कलाओं ने कैसे एडवरटाइजिंग को कैसे प्रभावित किया। पहले जो पोस्टर आर्ट आते थे वो फ्रांस के कलाकारों द्वारा प्रभावित थे। जिसमें हेनरी तौलूस लात्रे फ्रांस के बड़े कलाकार थे। वही चलन पोस्टर में अब तक चला आ रहा है। आज के हर एड में इस आर्ट का कहीं न कहीं हस्तक्षेप है। लात्रे जापान की आर्ट से बहुत प्रभावित थे। उस स्टाइल को इस्तेमाल करके इन्होंने दुनियां के पहले पोस्टर डिजाइन किये। कैबरे डांस, स्ट्रिप्टीज की एड इन्होंने डिजाइन की। जोकि जापान की स्टाइल से प्रभावित थी और कॉमिक बुक की तरह उसे बनाया गया। विजुअल आर्ट में कॉमिक बुक, पोस्टर आर्ट आदि का प्रयोग किया जाता है।
विमल, रेमंड्स और सर्फ के एड देखकर समझ सकते हैं दशक दर दशक का बदलाव
कपड़ों के ब्रांड्स विमन, रेमंड्स के पुराने एड को युवा देखकर समझ सकते हैं। बैगी पेंट्स, बेल बॉटम, सेमी कलर, फुल कलर हर तरह के एड आपको देखने को मिल जाएंगे। सर्फ के पुराने एड्स अस्सी या नब्बे के दशक से युवा देख लें। तब महिलाओं को गृहणी के रूप में दिखाया जाता था। जबकि आज वो दौर बदल चुका है। पहले ब्लू कलर का इस्तेमाल पहले वो एड में कम करते थे अब ब्लू का इस्तेमाल उनके एड में बढ़ गया है। क्योंकि रिन से उनका कम्प्टीशन था वो ब्लू कलर का इस्तेमाल करते थे।

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