झूठा-सच डेस्क | जल्लीकट्टू खेल को पुराने समय में "येरुथाझुवुथल" से भी जाना जाता था. जिसका मतलब है जल्लीकट्टू को गले लगाना. जल्ली का मतलब है "सिक्के" और कट्टू का मतलब "बैग" जिसका मतलब है सिक्कों से भरा हुआ बैग. जो बैल के सींगों पर बंधा होता है और जीतने वाले यानी विजेता को ये बैग मिल जाता है.पहले समय में पैसों से भरा एक बैग बैल के सींग पर बांध दिए जाते थे. जहां विजेता को जीत के दौरान वो बैग दिया जाता था. लेकिन अब केवल ये खेल बैग तक ही सीमित नहीं रह गया है बल्कि इन दिनों बैल पर भारी भरकम रकम के दांव भी लगाए जाते हैं.
जल्लीकट्टू का लोकप्रिय खेल तमिलनाडु से लेकर आंध्र प्रदेश तक में खेला जाता है. अब जल्लीकट्टू का जब भी जिक्र आता है, तो लोगों के घायल होने की खबरें आती हैं. भगदड़ की खबरें आती हैं और कौन इस खेल में जीता, वो अखबारों की सुर्खियों में आ जाता है. लेकिन ये जल्लीकट्टू है क्या, और क्यों लोग ये खतरनाक खेलते हैं जिसमें जान की बाजी लगा दी जाती है. आइए, हम समझाते हैं.
क्या है जल्लीकट्टू?
जल्लीकट्टू( JalliKattu ) तमिल नाडु के ग्रामीण इलाकों का एक परंपरागत खेल है जो पोंगल के त्यौहार पर आयोजित कराया जाता है. इस खेल में बैलों से इंसानों की लड़ाई कराई जाती है. जल्लीकट्टू को तमिलनाडु के गौरव ( Pride of Tamil Nadu ) तथा संस्कृति का प्रतीक कहा जाता है. ये 2000 साल पुराना खेल है जो उनकी संस्कृति से जुड़ा है. जल्लीकट्टू खेल को पुराने समय में येरुथाझुवुथल ( Eru thazhuvuthal ) से भी जाना जाता था.जल्लीकट्टू का मुख्य खेल मदुरई के पास अलंगनल्लूर में आयोजित किया जाता है.
ये है जल्लीकट्टू के नियम
जल्लीकट्टू खेल में प्रतियोगी को एक समय में बैल के कूबड़ को पकड़ने की कोशिश करनी होती है. बैल को वश में करने के लिए इसकी पूंछ और सींग को पकड़ा जाता है. और बैल को एक लंबी रसी से भी बंधा जाता है. और जीतने के लिए एक समय सीमा में बैल को काबू में करना होता है. अगर तय समय में प्रतियोगी ऐसा नहीं कर पाता है, तो वो हारा हुआ मान लिया जाता है.
संगम साहित्य में भी जल्लीकट्टू का जिक्र
ये खेल पोंगल त्योहार के समय आयोजित किया जाता है. ये खेल काफी पुराने समय का है. मदुरई के पास एक पेंटिंग मिली थी. जिसमें एक आदमी बैल को वश करते हुए नजर आ रहा है. जल्लीकट्टू का जिक्र संगम लिटरेचर में भी है. लेकिन माना जाता रहा है कि जल्लूकट्टू कुछ सालों पहले ही शुरू हुआ है. ऐसा कहा जाता है ये खेल इतना क्रूर नहीं था. लोकिन ये खेल तब ज्यादा कॉम्पिटेटिव माने जाने लगा जब नए जमाने में बैल पर दांव लगाए जाने लगा. बीच में कुछ समय में जल्लीकट्टू का खेल लगभग खत्म हो गया था. साथ ही बैलों के साथ क्रूरता भी नहीं होती थी. कई बार भड़के बैल भीड़ में भी घुस जाते हैं, जिसकी वजह से काफी लोग घायल भी होते हैं, तो कई बार दर्शकों की मौतों की भी खबरें सामने आती रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने लगाया था प्रतिबंध
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इस खेल पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद तमिलनाडु में खेल को शुरू करने की मांग होने लगी. सरकार ने अध्यादेश लाकर इस खेल को फिर अनुमति दे दी. लेकिन इस अध्यादेश को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
जल्लीकट्टू बैल असाधारण हैं.
जल्लीकट्टू खेल में जो बैल हिस्सा लेते हैं वे "कंगयम नस्ल" से आते हैं जो भयंकर और जुझारू नस्ल है. ये सामान्य से अधिक मजबूत होते हैं. इन सांडों पर थोड़ा सा उकसाने पर हमला करने का खतरा है. जल्लीकट्टू में प्रचलित एक और नस्ल है "बांगुर बैल" जो अपनी स्पीड के लिए जाना जाता है. जल्लीकट्टू बैल को उनके मालिकों द्वारा बहुत अच्छी तरह से खिलाया – पिलाया जाता है, जिससे वे और भी मजबूत बनते हैं. एक अनुमान के अनुसार, 1990 में एक मिलियन कंगायम बैल थे और अब केवल 15,000 के करीब रह गए हैं.
क्या कहती है पेटा नियम
पेटा और अन्य कई पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये खेल न केवल क्रूर है बल्कि बैल को शराब का सेवन कराया जाता है और उकसाने के लिए उनकी आंखों पर मिर्च रगड़ी जाती है. उन्हें वश में करने के लिए न केवल उनकी पूंछ को पकड़ा जाता है. बल्कि उनकी पूंछ मोड़ दी जाती है. और ये काफी दर्दनाक होता है. अखाड़े में प्रवेश के लिए उन्हें उकसाने के लिए क्रूरता के कई अन्य कार्य किए जाते हैं.