धर्म समाज

आज से शुरू हुईं गुप्‍त नवरात्रि

आषाढ़ महीने की नवरात्रि गुप्‍त नवरात्रि होती हैं. ये आषाढ़ के शुक्‍ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होती हैं. इस साल 30 जून 2022, गुरुवार यानी कि आज से गुप्‍त नवरात्रि शुरू हो रही हैं, जो कि 9 जुलाई को समाप्‍त होंगी. आज भक्‍तगण घटस्‍थापना करेंगे और 9 दिन तक मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा-आराधना करेंगे. गुप्‍त नवरात्रि गुप्‍त रूप से साधना-सिद्धि के लिहाज से विशेष मानी जाती हैं. वहीं प्रत्‍यक्ष नवरात्रि में उत्‍सव होता है.

गुप्‍त नवरात्रि के पहले ही बने कई शुभ योग

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2022 के पहले दिन 30 जून को गुरु पुष्य योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, आडल योग और विडाल योग बन रहे हैं. साथ पुष्‍य नक्षत्र भी रहेगा. इन सभी योगों को बेहद शुभ माना गया है. वहीं प्रतिपदा तिथि 29 जून को सुबह 08:21 बजे से 30 जून की सुबह 10:49 बजे तक रहेगा. ऐसे में 30 जून की सुबह ही घटस्‍थापना करना शुभ रहेगा.

गुप्त नवरात्रि के जरूरी नियम

गुप्‍त नवरात्रि के दौरान दोनों समय मां अंबे की पूजा-आराधना करें. घटस्‍थापना की है तो शाम के समय आरती अवश्‍य करें.
नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान तामसिक भोजन न करें. नॉनवेज-शराब, लहसुन-प्‍याज आदि का गलती से भी सेवन न करें.
किसी के साथ बुरा न करें. ना ही कोई अनैतिक कार्य करें.
ब्रह्मचर्य का पालन करें.
इस दौरान ना तो गुस्‍सा करें और ना ही किसी से विवाद करें. ऐसा करने से मां नाराज हो सकती हैं |
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3 शुभ योगों में शुरू होगी जगन्नाथ रथ यात्रा

उज्जैन:-  उड़ीसा के पुरी में निकाली जाने वाली इस धार्मिक यात्रा को देखने के लिए लाखों भक्त यहां आते हैं और भगवान जगन्नाथ का रथ खींचकर स्वयं को धन्य समझते हैं। जगन्नाथ का अर्थ है पूरी सृष्टि के स्वामी। ये भगवान श्रीकृष्ण का ही एक नाम है। जगन्नाथ मंदिर हिंदुओं को चार धामों में से एक है। इस मंदिर से जुड़ी कई चमत्कारी मान्यताएं और परंपराएं है जिस पर आसानी से विश्वास नहीं किया जा सकता। इस बार जगन्नाथ रथयात्रा की शुरूआत 1 जुलाई, शुक्रवार से हो रही है। रथयात्रा से जुड़ी हर तैयारी पूरी कर ली गई है। पुरी में भक्तों का जुटने लगे हैं। आगे जानिए जगन्नाथ रथयात्रा से जुड़ी खास बातें…

3 शुभ योगों में आरंभ होगी रथयात्रा
इस बार जगन्नाथ रथयात्रा का आरंभ बहुत ही शुभ योग में हो रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार, 1 जुलाई, शुक्रवार को पूरे दिन पुष्य नक्षत्र रहेगा जो कि नक्षत्रों का राजा है। इसके अलावा इस दिन सर्वार्थसिद्धि और अमृतसिद्धि नाम के 2 अन्य शुभ योग भी बन रहे हैं, ये भी पूरे दिन रहेंगे। इतने सारे शुभ योग एक ही दिन होने से इस तिथि का महत्व और भी बढ़ गया है। पंचांग के अनुसार पुष्य नक्षत्र का आरंभ 30 जून, गुरुवार की रात लगभग 12 बजे से होगा, जो अगले दिन यानी 1 जुलाई, शुक्रवार की रात लगभग 2 बजे तक रहेगा।

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा मंदिर परिसर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है। गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर कहते हैं। जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर की दूरी लगभग 3 किमी है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा गुंडिचा मंदिर आते हैं, जहां उनकी मौसी पादोपीठा (विशेष मिठाई) खिलाकर उनका स्वागत करती हैं। पादोपीठा उस परंपरागत पूजा को भी कहते हैं। यहां भगवान जगन्नाथ 9 दिनों तक विश्राम करते हैं और इसके बाद पुन: मंदिर में लौट आते हैं। 

जब रथयात्रा पुन: मंदिर की ओर आती है तो इसे बहुड़ा यात्रा कहते हैं।गुंडिचा मंदिर एक खूबसूरत बगीचे के बीच में स्थित है। मंदिर का निर्माण हल्के भूरे रंग के बलुआ पत्थर से किया गया है। यह मंदिर देउला शैली में विशिष्ट कलिंग वास्तुकला का उदाहरण है। मंदिर परिसर चार हिस्सों में विभाजित है। विमान (गर्भगृह) जगमोहन (असेंबली हॉल), नाटा-मंडप (त्योहार हॉल) और भोग-मंडप (प्रसाद का हॉल)। एक छोटे से मार्ग से जुड़ा एक रसोईघर भी है। इसे गॉड्स समर गार्डन रिट्रीट कहा जाता है।
 
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आज है आषाढ़ माह की मासिक शिवरात्रि

आज यानी 27 जून को आषाढ़ माह की मासिक शिवरात्रि है। हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि का व्रत किया जाता है। भगवान भोलेनाथ को समर्पित ये तिथि शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखती है। मान्यता है कि प्रत्येक शिवरात्रि पर विधि पूर्वक व्रत और पूजन करने से भगवान शिव अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। प्रत्येक माह में पड़ने वाली ये तिथि भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। इसलिए इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। जो व्यक्ति मासिक शिवरात्रि का व्रत विधि-विधान से रखता है उसे भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उसके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और संतान प्राप्ति, रोगों से मुक्ति के लिए भी मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है। 

 
मासिक शिवरात्रि 2022 तिथि
आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 27 जून दिन सोमवार को तड़के 03 बजकर 25 मिनट पर हो रही है। अलगे दिन ये तिथि 28 जून मंगलवार को सुबह 05 बजकर 52 मिनट पर समाप्त हो रही है। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर मासिक शिवरात्रि का व्रत 27 जून, दिन सोमवार को रखा जाएगा।
मासिक शिवरात्रि व्रत और पूजा का महत्व
मासिक शिवरात्रि का व्रत बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि शिव मंत्र 'ॐ नमः शिवाय' का पूरे दिन जाप करने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं। जो भक्त इस दिन उपवास करता है, उसे मोक्ष, मुक्ति की प्राप्ति होती है और वह स्वस्थ और समृद्ध जीवन व्यतीत करता है।

मासिक शिवरात्रि पूजा विधि
मासिक शिवरात्रि के दिन सर्वप्रथम सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहने और घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। यदि घर में शिवलिंग है तो शिवलिंग का गंगा जल, दूध, आदि से अभिषेक करें।शिव जी को बेल पत्र चढ़ाएं। इस दिन भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती की पूजा अर्चना भी करें। भगवान भोलेशंकर और मां पार्वती को भोग लगाएं। पूजा के दौरान ''ऊॅं नम: शिवाय'' मंत्र का जप करें। इसके बाद भगवान शिव की आरती करें।

शिवजी को प्रसन्न करने के लिए करें ये उपाय
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्नानादि करके सफेद, हरे, पीले, लाल या आसमानी रंग के वस्त्र धारण करके पूजा करें। मासिक शिवरात्रि के दिन दही, सफेद वस्त्र, दूध और शक्कर का दान करना श्रेष्ठ माना जाता है, इन चीजों का दान करने से भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों पर प्रसन्न होते हैं।मासिक शिवरात्रि के दिन अक्षत, चंदन, धतूरा, दूध, आक, गंगा जल, और बेल पत्र आदी चढ़ाना चाहिए। इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और अपना शुभ आशीर्वाद देते हैं। यदि कोई जातक आर्थिक तंगी से गुजर रहा है तो उसे मासिक शिवरात्रि की शाम को कच्चे चावल में काले तिल मिलाकर दान करना चाहिए।
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जानिए कब से शुरू हो रही जगन्नाथ रथ यात्रा

उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। जहां हर साल आषाढ़ माह में भव्य रथ यात्रा का आयोजन होता है। हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का बहुत अधिक महत्व है। जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ विराजमान हैं, जो कि श्रीहरि विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का ही रूप माने जाते हैं। जगन्नाथ का अर्थ होता है जगत के नाथ। आषाढ़ मास की द्वितीय तिथि को ये रथ यात्रा शुरू होती है और शुक्ल पक्ष के 11 वें दिन भगवान की वापसी के साथ इस यात्रा का समापन होता है। इस साल रथ यात्रा के उत्सव की शुरुआत 01 जुलाई 2022, दिन शुक्रवार से हो रही है। इस रथ यात्रा में भक्तों की भारी भिड़ देखने को मिलती है। मान्यता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होने से व्यक्ति के जीवन से सभी दुख, दर्द और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।

 जानिए इससे जुड़ी खास बातें और महत्व

प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल के द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ (भगवान श्रीकृष्ण) अपनी मौसी के घर जाते हैं। इस दौरान उनके साथ बड़े भाई बलराम और छोटी बहन सुभद्रा भी जाती हैं। इन्हें तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर किया जाता है। इसके बाद तीनों को रथ यात्रा के जरिए उनकी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर में ले जाया जाता है।गुंडीचा मौसी का मंदिर, जगन्नाथ मंदिर से करीब तीन किलोमीटर दूर है। इस दौरान लाखों भक्त श्रध्दा भाव से भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचकर उन्हें गुंडिचा मंदिर ले जाते हैं। इसके बाद आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथी को तीनों वापस अपने स्थान पर लाया जाता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व

हिंदू धर्म में विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा का बहुत ही अधिक महत्व है। इस रथ यात्रा में देश-विदेश से लाखों लोग शामिल होने के लिए आते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस रथ यात्रा में शामिल होने से व्यक्ति के जीवन से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। हिंदू धर्म में जगन्नाथ पुरी धाम को मुक्ति का द्वार कहा गया है।कहा जाता है कि जो भक्त इस रथ यात्रा में शामिल होकर भगवान के रथ को खींचते है तो उन्हें 100 यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। इसके अलावा इस यात्रा में शामिल होने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।भगवान जगन्नाथ की यात्रा एक त्योहार के रुप में धूम-धाम से मनाई जाती है। यात्रा में शामिल होने के लिए देश भर सेश्रद्धालु यहां पहुंचे हैं। पुराणों में वर्णन है कि आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है।
 
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आज करें श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम् का पाठ, दूर होगी समस्या

शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने से व्यक्ति को जीवन में धन, धान्य, वैभव, सुख-समृद्धि की प्राप्त होती है. मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए आज का दिन बेहद खास है. आज आषाढ़ माह की योगिनी एकादशी है. आज के दिन विधि-विधान के साथ लक्ष्मी-नारायण की पूजा करने से भक्तों को भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है.आज शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा से अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति होती है. मान्यता है कि आज के दिन मां लक्ष्मी के 8 स्वरूपों की अराधना करने के लिए अष्टलक्ष्मी स्तोत्र पाठ का जाप करना चाहिए. इससे व्यक्ति को धन, धान्य, संतान, धैर्य, विजय, विद्या आदि की प्राप्ति होती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अष्टलक्ष्मी स्तोत्र एक प्रकार से मां लक्ष्मी का महामंत्र है. इसे नियमित रूप से भी किया जा सकता है.

अष्टलक्ष्मी स्तोत्र पाठ विधि
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मां लक्ष्मी के इस स्तोत्र का पाठ करने के लिए मां को कमल का फूल, गुला का फूल, सिंदूर, कमल गट्टा, अक्षत, कुमकुम, नारियल आदि अर्पित करें. इसके बाद माता को खीर, सफेद बर्फी या फिर दूध से बनी हुई चीजों का भोग लगाएं. इसके बाद अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का आरंभ करें. समापन के बाद मां की आरती घी के दीपक और कपूर से करें. और मां से अपनी मनोकामना पूर्ति की कामना करें.
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र पाठ
आदि लक्ष्मी
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि चंद्र सहोदरि हेममये।
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनी मंजुल भाषिणि वेदनुते।
पङ्कजवासिनि देवसुपूजित सद-गुण वर्षिणि शान्तिनुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम्।
धान्य लक्ष्मी
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये।
क्षीर समुद्भव मङ्गल रुपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते।
जय जय हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्ष्मि परिपालय माम्।
 
धैर्य लक्ष्मी
जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि मन्त्र स्वरुपिणि मन्त्रमये।
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते।
भवभयहारिणि पापविमोचनि साधु जनाश्रित पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि सदापालय माम्।
गज लक्ष्मी
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये।
रधगज तुरगपदाति समावृत परिजन मंडित लोकनुते।
हरिहर ब्रम्ह सुपूजित सेवित ताप निवारिणि पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम्।
सन्तान लक्ष्मी
अयि खगवाहिनी मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये।
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि सप्तस्वर भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम्।
विजय लक्ष्मी
जय कमलासनि सद-गति दायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये।
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्करदेशिक मान्यपदे।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयक्ष्मि परिपालय माम्।
विद्या लक्ष्मी
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये।
मणिमय भूषित कर्णविभूषण शान्ति समावृत हास्यमुखे।
नवनिद्धिदायिनी कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम्।
धन लक्ष्मी
धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमी दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये।
घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते।
जय जय हे कामिनि धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम्।
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विष्णुवक्षःस्थलारूढे भक्तमोक्षप्रदायिनी।।
शङ्ख चक्र गदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलम शुभ मङ्गलम।
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योगिनी एकादशी कल, जानिए पूजा एवं शुभ मुहूर्त

धर्मशास्त्रों में आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहा गया है। इस दिन सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के निमित्त व्रत-पूजा करने का विधान है। जो इस वर्ष 24 जून,शुक्रवार को है। पदमपुराण के अनुसार पृथ्वी पर अश्वमेघ यज्ञ का जो फल होता है,उससे सौगुना अधिक फल एकादशी व्रत करने वाले को मिलता है।

योगिनी एकादशी का महत्व

वेदांगों के पारगामी विद्वान ब्राह्मण को सहस्त्र गोदान करने से जो पुण्य होता है,उससे सौ गुना पुण्य एकादशी व्रत करने वाले को होता है। इनमें 'योगिनी एकादशी 'तो प्राणियों को उनके सभी प्रकार के अपयश और चर्म रोगों से मुक्ति दिलाकर जीवन सफल बनाने में सहायक होती है। यह देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुंदर रूप,गुण और यश देने वाली है। इस व्रत का फल 88 हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के फल के समान है। योगिनी एकादशी महान पापों का नाश करने वाली और महान पुण्य-फल देने वाली है। इसके पड़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। योगिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख और समृद्धि का वास होता है। साथ ही भगवान विष्णु जी के साथ-साथ मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पूजा विधि

इस दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें या घर में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।इसके बाद पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठे और मंदिर में दीपक जलाएं। फिर भगवान विष्णु को पंचामृत से अभिषेक कराएं व उनको फूल और तुलसी दल अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु को सात्विक चीज़ों का भोग लगाकर कपूर से आरती करें। इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ पीपल के वृक्ष की पूजा का भी विधान है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस दिन आसमान के नीचे सांयकाल घरों,मंदिरों,पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीप प्रज्वलित करने चाहिए,गंगा आदि पवित्र नदियों में दीप दान करना चाहिए। रात्रि के समय भगवान नारायण की प्रसन्नता के लिए नृत्य,भजन-कीर्तन और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए। जागरण करने वाले को जिस फल की प्राप्ति होती है,वह हज़ारों बर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता |

कथा

योगिनी एकादशी के सन्दर्भ में श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई थी जिसमें राजा कुबेर के श्राप से कोढ़ी होकर हेममाली नामक यक्ष मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि ने योगबल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया,और योगिनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी। यक्ष ने ऋषि की बात मान कर व्रत किया और दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया।

मंत्र
भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने के लिए यथाशक्ति इन मंत्रों का जप करें।

*'ऊँ नमो नारायणाय'

*'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:'

* शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।

लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं

वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥

शुभमुहूर्त

एकादशी तिथि शुरू - 23 जून को रात 09 बजकर 40 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त- 24 जून को रात 11बजकर 13 मिनट तक
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जानिए कब हैं सावन का पहला सोमवार

हिंदू धर्म में सावन महीने का विशेष महत्व है। सावन का महीना देवों के देव महादेव को अतिप्रिय है। सावन मास में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा का विधान है। मान्यता है कि सावन मास में भगवान शंकर की पूजा व सोमवार व्रत करने से मनोकामना पूरी होती है। इस साल सावन का पवित्र महीना जुलाई से शुरू हो रहा है और अगस्त तक रहेगा।


सावन 2022 कब से कब तक रहेगा 

साल 2022 में सावन 14 जुलाई से शुरू होगा और 12 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा के साथ समाप्त होगा।
27 जून से कुंभ समेत इन 3 राशियों के शुरू होंगे अच्छे दिन, मंगलदेव की रहेगी विशेष कृपा

सावन का पहला और आखिरी सोमवार कब

सावन का पहला दिन 14 जुलाई 2022, गुरुवार को है। सावन का पहला सोमवार 18 जुलाई को पड़ेगा। सावन का दूसरा सोमवार 25 जुलाई, तीसरा 01 अगस्त और चौथा सोमवार 08 अगस्त को पड़ेगा। सावन का आखिरी दिन 12 अगस्त, शुक्रवार को है।

भगवान शिव को ये चीजें करें अर्पित-

भगवान सिव को सावन मास में पूजा के दौरान धतूरा, बेलपत्र, भांग के पत्ते, दूध, काले तिल और गुड़ आदि अर्पित करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव की कृपा सदैव बनी रहती है।

सावन मास में न करें ये काम-

सावन महीने में शरीर पर तेल लगाने की मनाही होती है। शास्त्रों के अनुसार, इस महीने में दिन के समय नहीं सोना चाहिए। इस महीने बैंगन का सेवन करने की मनाही होती है। बैंगन को अशुद्ध माना जाता है। भगवान शिव को केतकी का फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।
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गुरुवार को इन 5 राशि वालों पर रहेगी मां लक्ष्मी की विशेष कृपा

2 जून 2022 को गुरुवार है। गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है। इस दिन प्रभु श्रीहरि जी की पूजा करने से मनोकामना पूरी होने की मान्यता है। 2 जून को ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के कारण कुछ राशि वालों को जबरदस्त लाभ होगा, जबकि कुछ राशि वालों को नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। जानें 2 जून 2022 की लकी राशियां-
मेष- आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे। अति उत्साही होने से बचें।जीवनसाथी के स्वास्थ्‍य का ध्यान रखें। माता-पिता का सानिध्य मिलेगा। खर्चों की अधिकता से चिन्तित रहेंगे। जीवनसाथी के परिवार की किसी महिला से धन लाभ हो सकता है।
वृषभ- मन प्रसन्न रहेगा। कार्यक्षेत्र की स्थिति में सुधार होगा।लेखनाद-बौद्धिक कार्यों में सम्मान की प्राप्ति‍ हो सकती है। आत्मविश्वास से परिपूर्ण रहेंगे। पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगी। आय में कमी आ सकती है। स्‍वास्‍थ्‍य का ध्‍यान रखें।
मिथुन- वाणी में मधुरता रहेगी। धैर्यशीलता बनाए रखने के प्रयास भी करते रहें।दैनिक कार्यों में व्यवधान आ सकते हैं। मन में नकारात्मक विचारों का प्रभाव रहेगा। व्यर्थ के विवादों से बचें। मित्रों से मतभेद हो सकते हैं। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 
कर्क- मन प्रसन्न रहेगा। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी।पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। रहन-सहन अव्यवस्थित हो सकता है। मानसिक शान्ति रहेगी। सन्तान की ओर से सुखद समाचार मिल सकते हैं। भाई-बहनों से विवाद हो सकता है। 
सिंह-  मानसिक शान्ति रहेगी। नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा।नौकरी में तरक्की के योग बन रहे हैं। आय में वृद्धि होगी। आत्मविश्वास में कमी आएगी। मानसिक तनाव हो सकता है। संचित धन की भी कमी आ सकती है।
कन्या- मन प्रसन्न रहेगा। शैक्षिक कार्यों में मान-सम्मान की प्राप्ति होगी।परिश्रम अधिक रहेगा। बातचीत में सन्तुलित रहें। मन अशान्त रहेगा। आत्मविश्वास में कमी आएगी। पिता को स्वास्थ्य विकार हो सकते हैं। आय बढ़ोतरी के योग बन रहे हैं। 
तुला- संयत रहें। मन परेशान हो सकता है।घर-परिवार में धार्मिक कार्य होंगे। परिवार में मान-सम्मान में वृद्धि हो सकती है। विश्वास से परिपूर्ण रहेंगे। आय में कमी एवं खर्चों की अधिकता हो सकती है। रहन-सहन अव्यवस्थित हो सकता है। 
वृश्चिक- बातचीत में संयत रहें। नौकरी में उच्च पद की प्राप्ति हो सकती है।कार्यक्षेत्र का विस्तार होगा। वाहन सुख में वृद्धि होगी। क्षणे रुष्टा-क्षणे तुष्टा के भाव रहेंगे। शैक्षिक कार्यों में मान-सम्मान में वृद्धि होगी। मित्रों का सहयोग मिलेगा। 
धनु- मन अशान्त रहेगा। नौकरी में परिवर्तन के योग बन रहे हैं।किसी दूसरे स्थान पर जा सकते हैं। वाहन के संचालन पर खर्च बढ़ सकते हैं। पारिवारिक समस्याएं परेशान कर सकती हैं। नौकरी में अफसरों से मतभेद बढ़ेंगे।
मकर- पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। भवन सुख में वृद्धि हो सकती है।पिता से धन की प्राप्ति‍ के योग बन रहे हैं। उपहार में वस्त्र प्राप्‍त‍ हो सकते हैं। आत्मसंयत रहें। भावनाओं को वश में रखें। परिवार की समस्याएं परेशान कर सकती हैं। 
कुंभ- आय में कमी एवं खर्च अधिक की स्थिति से परेशान हो सकते हैं। माता-पिता का सहयोग मिलेगा।स्वास्थ्‍य का ध्यान रखें। आत्मविश्वास में कमी रहेगी। लेखनादि‍-बौद्धिक कार्यों में मान-सम्मान बढ़ेगा। यात्रा के योग बन रहे हैं।
मीन- मन अशान्त रहेगा। क्षणे रुष्टा-क्षणे तुष्टा की मनःस्थिति रहेगी।लेखनादि-बौद्धिक कार्यों में सम्मान की प्राप्ति हो सकती है। धार्मिक संगीत के प्रति रुझान बढ़ेगा। नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा। तरक्की के योग बन रहे हैं।
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महेश नवमी के दिन करें भगवान शिव की पूजा, जानें और महत्व

भगवान शिव को सभी देवों का देव कहा जाता है। इसलिए उनको महादेव भी कहा जाता है। साल भर में कई तिथियां व पर्व ऐसे आते हैं जिनमें भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इनमें से एक है महेश नवमी।ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन को महेश नवमी पर्व के रुप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन ही माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई थी। लेकिन माहेश्वरी समाज ही नहीं सभी शिवभक्त महेश नवमी पर विशेष पूजा अर्चना करते हैं।इस बार 9 जून को महेश नवमी है। इस दिन व्रत रखने के साथ ही भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। वहीं, ज्येष्ठ महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाने से हर तरह के पाप दूर हो जाते हैं।

महेश नवमी की पूजा विधि
पंडित के मुताबिक महेश नवमी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान शिव का जलाभिषेक करें। जलाभिषेक के बाद भोलेनाथ को बेलपत्र, भांग, धतूरा, पुष्प आदि अर्पित करें। शिव मंत्र के जप के साथ ही शिव चालीसा का पाठ करें।

महेश नवमी को लेकर प्रचलित है यह कथा

महेश नवमी को लेकर ऐसा माना जाता है कि माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे। एक बार शिकार के दौरान उन्हें ऋषियों ने श्राप दे दिया। तब इस दिन भगवान शिव ने उन्हें श्राप से मुक्त कर उनके पूर्वजों की रक्षा की। इसके साथ ही उन्हें हिंसा छोड़कर अहिंसा का मार्ग बताया। महादेव ने अपनी कृपा से इस समाज को माहेश्वरी नाम दिया।

भगवान शिव के इन मंत्रों का करें जाप

ॐ नमः शिवाय।

ॐ नमो नीलकण्ठाय।

ॐ पार्वतीपतये नमः।

ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।

ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर.

ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।

ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा।

ऊर्ध्व भू फट्।

इं क्षं मं औं अं।

प्रौं ह्रीं ठः।

इस विधि से करें पूजा अर्चना

इस दिन सुबह जल्दी उठकर नहाएं और व्रत का संकल्प लें।

उत्तर दिशा की ओर मुंहकर के भगवान शिव की पूजा करें।

गंध, फूल और बिल्वपत्र से भगवान शिव-पार्वती की पूजा करें।

दूध और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करें।

शिवलिंग पर बिल्वपत्र, धतूरा, फूल और अन्य पूजन सामग्री चढ़ाएं।

इस प्रकार महेश नवमी के दिन भगवान शिव का पूजन करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है।
 
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शनि जयंती पर पूजा में न करें ये काम, जानें क्यों

शनि जयंती 30 मई को है. इस दिन ज्येष्ठ अमावस्या है. इस तिथि को शनि देव का जन्म सूर्य देव और माता छया के घर हुआ था. शनि देव लोगों को उनके कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं. हर कोई चाहता है कि शनि देव उससे प्रसन्न रहें, ताकि उनके जीवन में कोई समस्या न आए, कार्यों में सफलता प्राप्त हो. शनि देव के प्रसन्न होने से साढ़ेसाती या ढैय्या की पीड़ा से शांति मिलती है. शनि देव की कृपा प्राप्ति के लिए भक्त पूजा पाठ, दान और अन्य ज्योतिष उपाय करते हैं, ताकि उनका जीवन सुखमय हो.

काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट कहते हैं कि देवी देवताओं को प्रसन्न करना जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण यह भी है कि वे हमारे किसी कर्म या व्यवहार से नाराज न हों. यदि वे नाराज हो जाएंगे, तो फिर कई प्रकार की समस्याएं आने लगेंगी. आइए जानते हैं कि शनि जयंती के दिन हमें वे कौन से कार्य हैं, जिनको नहीं करना चाहिए, ताकि शनि देव नाराज न हों. शनि देव नाराज होंगे, तो समझ लीजिए कि जीवन में कई प्रकार की दिक्कतें शुरु हो जाएंगी. आपका बुरा वक्त शुरु हो जाएगा.

शनि जयंती 2022 न करें ये काम
1. सबसे पहले तो आपको अपने व्यवहार और वाणी पर संयम रखना चाहिए. इस दिन आप किसी को कटु वचन न बोलें और न ही किसी के साथ गलत व्यवहार करें.
2. यदि आपके घर नौकर हैं, सफाई कर्मचारी काम करते हैं, तो उनके साथ गलत व्यवहार न करें. उनके साथ अच्छे से पेश आएं.
3. गलत संगत न करें. जुआ, शराब, मांस-मदिरा आदि का सेवन न करें.
4. कोढ़ी, रोगी, असहाय, अपाहिज व्यक्ति आपसे मदद मांगते हैं, तो आप उनको अनदेखा न करें. जो लोग ऐसे व्यक्तियों की मदद करते हैं, उन पर शनि देव प्रसन्न रहते हैं.
5. अपने परिवार के बड़े बुजुर्गों का अपमान न करें. उनका तिरस्कार न करें. उनके प्रति मन में गलत भावनाएं न रखें.
6. शनिवार, शनि अमावस्या या शनि जयंती के अवसर पर दाढ़ी, बाल या नाखून न काटें. यह वर्जित माना गया है.
7. जीवों के प्रति हिंसात्मक व्यवहार न करें. जीवों पर दया करें, उनको भोजन और पानी के अतिरिक्त प्रेम भी दें.
8. व्यभिचार, चोरी, लालच, धोखा आदि न करें.
9. भूखे और प्यासे लोगों को अपने घर से न भगाएं. वैसे भी हिंदू धर्म में पानी और भोजन कराना पुण्य का कार्य है.
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शनि जयंती पर बन रहे हैं बड़े शुभ और अद्भुत संयोग

शनि जयंती का दिन शनि देव की पूजा-उपासना करने, उनके प्रकोप से राहत पाने के लिए अहम दिन होता है. इसलिए धर्म और ज्‍योतिष में शनि जयंती के दिन व्रत रखने, पूजा करने, उपाय करने की सलाह दी जाती है. इस साल शनि जयंती 30 मई, सोमवार के दिन पड़ रही है. इसके अलावा शनि जयंती पर सालों बाद एक अद्भुत संयोग भी बन रहा है, जिससे इस दिन का महत्‍व कई गुना बढ़ गया है. इस कारण शनि के प्रकोप से राहत पाने के लिए इस शनि जयंती पर कुछ उपाय जरूर कर लेने चाहिए.

शनि जयंती पर बन रहा है अद्भुत संयोग
शनि जयंती ज्‍येष्‍ठ महीने की अमावस्‍या को मनाई जाती है. इस साल यह सोमवार को पड़ रही है, इसलिए यह सोमवती अमावस्‍या होगी. साथ ही इस दिन वट सावित्री का त्‍योहार भी मनाया जाएगा. 30 साल बाद शनि जयंती के दिन शनि ग्रह अपनी ही राशि कुंभ में रहेंगे. इसके अलावा इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा. शनि जयंती पर इतने सारे संयोग का बनना बेहद शुभ है.

शनि जयंती पूजा शुभ मुहूर्त
अमावस्‍या तिथि 29 मई की दोपहर 02:54 बजे से शुरू होगी और 30 मई की शाम 04:59 बजे खत्‍म होगी. 30 मई को ही शनि जयंती मनाई जाएगी. शनि जयंती के दिन सुबह जल्‍दी स्‍नान करके शनि मंदिर जाएं. शनि देव की मूर्ति पर तेल चढ़ाएं, दीपक जलाएं. शनि देव को फूल माला और प्रसाद अर्पित करें. काली उड़द, तिल, काला वस्‍त्र चढ़ाएं.

शनि जयंती के दिन जरूर करें ये काम
  • शनि के प्रकोप से बचने के लिए शनि जयंती के दिन कुछ उपाय जरूर करें.
  • शनि जयंती के दिन संभव हो तो व्रत करें. शनि मंदिर जाकर तेल अर्पित करें. इस दिन शनि चालीसा का पाठ करें.
  • शनि कर्मों के अनुसार फल देते हैं. लिहाजा शनि जयंती के दिन अच्‍छे काम करें. किसी गरीब व्‍यक्ति को भोजन कराएं. दान दें. किसी असहाय की मदद करें. वैसे तो जितना हो सके असहाय, गरीब, बुजुर्ग, महिलाओं की मदद करें, इससे शनि देव बहुत प्रसन्‍न होते हैं.
  • शनि मंत्रों का जाप करें. 'ओम् शं अभयहस्ताय नमः', 'ओम् शं शनैश्चराय नमः' और 'ओम् नीलांजनसमाभामसं रविपुत्रं यमाग्रजं छायामार्त्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम्' बेहद प्रभावी मंत्र हैं. इन मंत्रों का कम से कम 108 बार जाप करें |
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आज करें माता लक्ष्मी की पूजा

आज ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि है. आज शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी की पूजा के लिए समर्पित है. आज माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उनको लाल गुलाब, कमल का फूल, कमलगट्टा आदि अर्पित करें. बताशा, सफेद बर्फी, खीर या फिर दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं. उसके बाद श्रीसूक्त का पाठ करें. कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से अपार धन प्राप्ति का योग बनता है. इस दिन आप मां दुर्गा, शीतला माता की भी पूजा कर सकते हैं. इन देवियों की पूजा करने से शक्ति, उत्तम स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है. मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए उनके मंत्रों का जाप कर सकते हैं.

आज शुक्रवार के दिन आप भौतिक सुख, विलासिता पूर्ण जीवन, रोमांस आदि के कारक ग्रह शुक्र को प्रबल बनाने के उपाय कर सकते हैं. शुक्र ग्रह के मजबूत होने से सुख एवं सुविधाओं में बढ़ोत्तरी होती है. इसके लिए आपको शुक्र ग्रह के मंत्र का जाप करना चाहिए या फिर शुक्रवार का व्रत रख सकते हैं. इसके अलावा आप शुक्रवार को चावल, दही, शक्कर, सफेद वस्त्र, इत्र, सौंदर्य सामग्री आदि का दान कर सकते हैं. ऐसा करने से शुक्र ग्रह मजबूत होगा. आइए पंचांग से जानें आज का शुभ और अशुभ मुहूर्त और जानें कैसी होगी आज ग्रहों की चाल.

20 मई 2022 का पंचांग
आज की तिथि – ज्येष्ठ कृष्णपक्ष पंचमी
आज का करण – कौलव
आज का नक्षत्र – उत्तराषाढा
आज का योग – शुभ
आज का पक्ष – कृष्ण
आज का वार – शुक्रवार
सूर्योदय-सूर्यास्त और चंद्रोदय-चंद्रास्त का समय
सूर्योदय – 05:56:00 AM
सूर्यास्त – 07:15:00 PM
चन्द्रोदय – 23:52:00
चन्द्रास्त – 09:16:00
चन्द्र राशि– धनु
हिन्दू मास एवं वर्ष
शक सम्वत – 1944 शुभकृत
विक्रम सम्वत – 2079
काली सम्वत – 5123
दिन काल – 13:39:37
मास अमांत – वैशाख

मास पूर्णिमांत – ज्येष्ठ
शुभ समय – 11:50:24 से 12:45:02 तक
अशुभ समय (अशुभ मुहूर्त)
दुष्टमुहूर्त– 08:11:50 से 09:06:28 तक, 12:45:02 से 13:39:41 तक
कुलिक– 08:11:50 से 09:06:28 तक
कंटक– 13:39:41 से 14:34:19 तक
राहु काल– 10:56 से 12:36 तक
कालवेला/अर्द्धयाम– 15:28:58 से 16:23:36 तक
यमघण्ट– 17:18:15 से 18:12:53 तक
यमगण्ड– 15:42:37 से 17:25:04 तक
गुलिक काल– 07:36 से 09:16 तक

 

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आज है बुध पूर्णिमा

आज वैशाख पूर्णिमा है। वैशाख पूर्णिमा को सभी तिथियों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। मान्यता के मुताबिक वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुध का जन्म हुआ था, इसलिए वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा  के नाम से भी जाना जाता है। वैशाख पूर्णिमा के दिन इस साल का पहला चंद्रग्रहण भी लगने जा रहा है। इस दिन भगवान विष्णु, भगवान चंद्रदेव और भगवान बुद्ध की पूजा का विधान है। हिंदू धर्म में महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का 9वां अवतार माना गया है।

वैसे तो पूर्णिमा हर महीने में आती है, लेकिन धर्म शास्त्र में वैशाख मास के पूर्णिमा का खास महात्म्य है। इस दिन को काफी शुभ माना जाता है। इन दिनों भगवान विष्णु का पसंदीदा महीना वैशाख चल रहा है। इस महीने में जगत के पालनहार भगवान नारायण की पूजा आधारना का विशेष महत्व है। ब्रह्मा जी ने वैशाख माह को सभी हिंदू महीनों में उत्तम कहा है।
 
वैशाख पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के भक्त अपने आराध्य की खास तरीके से पूजा अर्चना करते हैं। वैशाख पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की भी पूजा आराधना की मान्यता है।पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के परम मित्र और सहपाठी सुदामा जब द्वारका में श्रीकृष्ण से मिलने आए तो भगवान ने उन्हें इस व्रत का महत्व बताया। इस व्रत के प्रभाव से ही सुदामा की दरिद्रता का नाश हो गया।
 
वैशाख पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
बुद्ध पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त रविवार 15 मई को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट से शुरू होकर सोमवार 16 मई को 9 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। 16 मई को उदया तिथि के कारण वैशाख पूर्णिमा के सभी नियम, व्रत, पूजा सोमवार को ही किए जाएंगे।

वैशाख पूर्णिमा के दिन जरूर करें ये काम
- वैशाख पूर्णिमा का व्रत रख रहे तो इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें या ऐसा संभव न हो तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगा जल डालकर स्नान करें।
- स्नान करने के बाद घर के सबसे मेन गेट में हल्दी व चंदन से स्वास्तिक व ओम बना लें। इसे घर में नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है।
- स्नान के बाद सूर्य के मंत्रों का जाप करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दें।
- इसकेबाद घर के मंदिर या पूजा स्थल पर दीपक जलाएं।
- वैशाख पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इससे हर मनोकामना पूरी होती है।
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आज है विनायक चतुर्थी, जानें पूजा विधि

वैशाख माह का विनायक चतुर्थी व्रतआज है. आज व्रत रखते हैं और गणेश जी का पूजन करते हैं. विनायक चतुर्थी व्रत हर माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को होती है और सं​कष्टी चतुर्थी व्रत कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है. विनायक चतुर्थी का व्रत रखने और गणेश जी की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, सुख, सौभाग्य, सफलता एवं समृद्धि प्राप्त होती है. संकट और कष्ट दूर होते हैं. पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं विनायक चतुर्थी व्रत एवं पूजा विधि के बारे में. विनायक चतुर्थी 2022 पूजा मुहूर्त वैशाख शुक्ल चतुर्थी तिथि का प्रारंभ: 04 मई, दिन बुधवार, प्रात: 07:32 बजे से वैशाख शुक्ल चतुर्थी तिथि का समापन: 05 मई, दिन गुरुवार, सुबह 10:00 बजे गणेश पूजन मुहूर्त: आज सुबह 10:58 बजे से दोपहर 01:38 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग: पूरे दिन रवि योग: पूरे दिन सुकर्मा योग: शाम 05:07 बजे से विजय मुहूर्त: दोपहर 02:31 बजे से दोपहर 03:25 बजे तक राहुकाल: दोपहर 12:18 बजे से दोपहर 01:58 बजे तक  विनायक चतुर्थी पूजा मंत्र ओम गं गणपतये नम: विनायक चतुर्थी व्रत एवं पूजा विधि 1. आज प्रात: स्नान के बाद साफ वस्त्र पहनें. संभव हो तो लाल या गुलाबी रंग का कपड़ा पहनें. 2. अब आप हाथ में जल, फूल और अक्षत् लेकर विनायक चतुर्थी व्रत एवं पूजा का संकल्प करें. 3. पूजा के शुभ मुहूर्त में पीले रंग वाली चौकी पर गणेश जी की स्थापना करें. फिर उनको लाल फूल, अक्षत्, फल, शक्कर, धूप, दीप, गंध, माला आदि अर्पित करें. इसके बाद दूर्वा की 21 गांठ उनके मस्तक पर चढ़ाएं.  4. अब आप गणेश जी को मोदक का भोग लगाएं या मोतीचूर के लड्डू का भी भोग लगा सकते हैं. 5. इसके पश्चात गणेश चालीसा, विनायक चतुर्थी व्रत कथा, गणेश मंत्र आदि का पाठ एवं जाप करें. 6. फिर घी के दीपक, कपूर या फिर तिल के तेल से गणेश जी की आरती करें. 7. दोपहर तक विनायक चतुर्थी की पूजा कर लें. आज के दिन चंद्रमा न देखें. 8. पूजा के बाद प्रसाद वितरण करें और स्वयं भी ग्रहण करें. दिनभर फलाहार करें और रात्रि के समय में मीठा भोजन करके व्रत को पूरा करें |
 
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आज धूमधाम से मनेगी ईद

अल्लाह अपने बंदों को 30 रोजा का इनाम ईद के रूप में देता है। ईद प्यार, मोहब्बत और खुशियों का त्योहार है। सभी लोग आपसी गिले शिकवे मिटा कर मिलजुल इस त्योहार को मनाते हैं। ईद से एक दिन पहले सभी चांद रात के दिन ईद के चांद का दीदार करते हैं। सउदी अरेबिया में ईद के एक दिन बाद भारत में ईद मनाई जाती है। रविवार को ईद का चांद का नहीं दिखा, इसलिए मंगलवार को ईद मनाई जाएगी। इस दिन लोग अपने से छोटों को ईदी देते हैं। इस दिन लोग एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते हैं।
 
आप भी इस मोके पर दें अपनों शुभकामना संदेश आए, कभी ना दूर हो आपके चहरे से मुस्कान, हर दिन ऐसे मेहमान बनकर आए. चांद रात मुबारक ! आज के दिन चारो और खुशियों की फ़िज़ा है आई हर कोई कर रहा है सजदा खुदा को, अपनों को दे रहा ईदी आपको भी मुबारक को ये ईद रात को नया चांद मुबारक, चांद को चांदनी मुबारक, फलक को सितारे मुबारक, सितारों को बुलंदी मुबारक, और आपको चांद रात मुबारक प्यार व भाईचारे से भरपूर इन मैसेज से अपनों को भेजें ईद की मुबारकबाद अपनों को इस चुनिंदा मैसेज से भेजें अक्षय तृतीया की बधाई अपनों को इस चुनिंदा मैसेज से भेजें अक्षय तृतीया की बधाई आप का हर दिन ईद के दिन से कम न हो आप का हर दिन ईद के दिन से कम न हो विष्णु भगवान की पूजा, इन चीजों का दान बदल देगा दुर्भाग्य को सौभाग्य मे विष्णु भगवान की पूजा, इन चीजों का दान बदल देगा दुर्भाग्य को सौभाग्य मे
 

 

 

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परशुराम जयंती आज,जानिए महत्व एवं पूजा मुहूर्त

परशुराम जयंती वैशाख शुक्‍ल की तृतीया को मनाई जाती है. इस दिन अक्षय तृतीया का पर्व भी मनाया जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ था. भगवान परशुराम, भोलेनाथ के परम भक्‍त हैं और उनको प्रसन्‍न करने के लिए परशुराम जी ने कठोर तपस्या की थी. परशुराम जी की तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर भगवान शिव ने परशुराम को परशु यानी कि फरसा दिया था. इसलिए उन्‍हें परशुराम कहा जाता है. परशुराम जी को भगवान विष्‍णु का अवतार भी माना जाता है. पौराणिक कथाओं में वे अपने प्रताप, ज्ञान, भक्ति के अलावा अपने गुस्‍से के लिए भी जाने जाते हैं. 
 
परशुराम जयंती इस साल परशुराम जयंती आज यानी कि 3 मई को मनाई जाएगी. माना जाता है कि भगवान परशुराम का जन्‍म धरती पर राजाओं द्वारा फैलाए गए अधर्म, पाप को खत्‍म करने के लिए हुआ था. उन्‍हें भगवान शिव का एकमात्र शिष्‍य भी माना जाता है. परशुराम जी से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं मशहूर हैं. परशुराम जयंती शुभ मुहूर्त और पूजा विधि वैशाख शुक्‍ल की तृतीया 3 मई, मंगलवार की सुबह 05:20 बजे से शुरू होगी और 4 मई, बुधवार की सुबह 07:30 बजे तक रहेगी.
 
परशुराम जयंती के दिन सुबह जल्‍दी स्‍नान करके व्रत का संकल्‍प लें. एक चौकी पर पीले या लाल रंग का साफ कपड़ा बिछाकर भगवान परशुराम की तस्‍वीर या मूर्ति स्‍थापित करें. चंदन-अक्षत से तिलक लगाने के बाद उन्‍हें फूल, फल, मिठाई अर्पित करें. घी का दीपक लगाएं. मंत्र जाप करें. धूप दिखाएं. आखिर में आरती करें |
 
 
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अक्षय तृतीया आज ,जानिए महत्व एवं पूजा मुहूर्त

आज अक्षय तृतीया है। शास्त्रों में अक्षय तृतीया एक अबूझ मुहूर्त है यानी ऐसी तिथि जिसमें किसी तरह का शुभ कार्य या शुभ खरीदारी करने के लिए मुहूर्त नहीं देखा जाता है। बिना शुभ मुहूर्त के सभी तरह के शुभ कार्य की शुरुआत की जा सकती है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 03 मई को है। अक्षय तृतीया को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय का मतलब होता है जिसका कभी भी क्षय या नाश न होना। मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन शुभ खरीदारी या शुभ कार्य करने पर हमेशा इसमें वृद्धि होती है। अक्षय तृतीया के दिन शुभ कार्य करने, दान, स्नान और जप आदि करने पर कभी भी शुभ फल की कमी नहीं होती है। 

वहीं खासतौर पर अक्षय तृतीया के दिन विशेष तौर पर सोने के आभूषण की खरीदारी की जाती है। मान्यता है इस दिन सोने और चांदी के आभूषण खरीदने से व्यक्ति के जीवन में माता लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है जिससे व्यक्ति का जीवन सुख,समृद्धि और वैभव का वास रहता है। आइए जानते हैं अक्षय तृतीया का महत्व और खास बातें अक्षय तृतीया का महत्व शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया पूरे एक वर्ष में उन साढ़े तीन शुभ मुहूर्त में से एक जिसे अबूझ मुहूर्त माना गया है। अबूझ मुहूर्त में किसी भी तरह के शुभ कार्य को करने के लिए पंडित से मुहूर्त नहीं निकला जाता है। अक्षय तृतीया के दिन सभी तरह के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। अक्षय तृतीया के दिन सोने से बने आभूषण की खरीदारी करना बहुत ही शुभ होता है। अक्षय तृतीया की तिथि पर भगवान परशुराम और हयग्रीव अवतार हुए थे। 

त्रेतायुग का प्रांरभ भी इसी तिथि को हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन उत्तराखंड स्थिति श्री बद्रीनाथ जी के कपाट खुलते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही महाभारत के युद्ध का समापन हुआ था। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही द्वापर युग का समापन हुआ था। धार्मिक कथाओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सुदामा भगवान कृष्ण से मिलने पहुंचे थे। अक्षय तृतीया के शुभ दिन वृंदावन के बांके बिहारी जी के मंदिर में श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं। साल में केवल एक बार इसी तिथि के दिन ही ऐसा होता है। 

 अक्षय तृतीया के दिन से ही वेद व्यास और भगवान गणेश ने महाभारत ग्रंथ लिखना शुरू किया था। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही मां गंगा का धरती पर आगमन हुआ था। अक्षय तृतीया के शुभ दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है। इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि अक्षय तृतीया के दिन किया गया दान-पुण्य कर्म का फल कभी नष्ट नहीं होता।इस तिथि पर सभी तरह के मांगलिक और शुभ कार्य बिना पंचाग देखे किए जाते हैं। अक्षय तृतीया के दिन विवाह करना, सोना खरीदना, माता लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व होता है 

अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त : 05:39 से 12:18:तक अवधि : 6 घंटे 39 मिनट शास्त्र कहते हैं कि, 'न क्षयः इति अक्षयः' अर्थात जिसका क्षय नहीं होता वह अक्षय है। वर्ष में चैत्र माह के शुक्लपक्ष की नवमी (रामनवमी) ,वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया,(अक्षय तृतीया) आश्विन माह शुक्लपक्ष की दशमी (विजय दशमी) और कार्तिक माह शुक्लपक्ष की एकादशी इन्हें स्वयं सिद्ध या अक्षय मुहूर्त के नाम से जाना जाता है। इनमें भी वैशाख माह की तृतीया को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस दिन रोहिणी नक्षत्र और बुधवार का दिन भी हो तो यह और भी अमोघफल देने वाली हो जाती है। अक्षय तृतीया पर बना शुभ योग शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त माना गया है। इस तिथि पर किसी भी शुभ और मांगलिक कार्य के लिए मुहूर्त देखने के आवश्कता नहीं होती है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अक्षय तृतीया 03 मई को सुकर्मा योग में मनाई जाएगी।

अक्षय तृतीया के दिन शोभन और मातंग योग, तैतिल करण,रोहिणी नक्षत्र और वृष राशि का चंद्रमा रहेगा। मंगलवार, 03 मई के दिन अक्षय तृतीया रोहिणी नक्षत्र के संयोग से मातंग नाम का शुभ योग बन रहा है। इस योग में किए गए कार्य का फल अक्षय रहता है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन रोहिणी नक्षत्र पड़ने को बहुत ही शुभ माना गया है। इसके अलावा इस अक्षय तृतीया पर पांच ग्रहों की शुभ स्थिति भी देखने को मिलेगी। ज्योतिष गणना के अनुसार इस बार अक्षय तृतीया पर सूर्य,चंद्रमा,शुक्र उच्च राशि में और गुरु और शनि अपनी स्वराशि में रहेंगे। इस तरह के शुभ योग और नक्षत्र में खरीदरी, निवेश और लेन-देन के लिए पूरा दिन बहुत ही शुभ रहने वाला होगा। अक्षय तृतीया पर क्यों खरीदते हैं सोने के आभूषण? हर वर्ष अक्षय तृतीया के त्योहार के दिन सोने के आभूषण खरीदने की परंपरा निभाई जाती है। मान्यता है इस दिन खरीदा गया सोना सुख,समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक होता है। ऐसा माना जाता है इस दिन खरीदा गया सोना या निवेश किया गया धन कभी भी खत्म नहीं होता। मान्यता है अक्षय तृतीया के दिन खरीदे गए सोने और निवेश का स्वयं भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी रक्षा और उसमें वृद्धि करते हैं।
 
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आज है वरुथिनी एकादशी का मुहूर्त, मंत्र, व्रत एवं पूजा​ विधि

आज वरुथिनी एकादशी व्रत है. हर वर्ष वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को यह व्रत रखा जाता है. आज वरुथिनी एकादशी व्रत रखने और भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने की परंपरा है. पूजा के दौरान विष्णु सहस्रनाम, वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ और भगवान विष्णु की आरती करना आवश्यक होता है. यह व्रत करने से शारीरिक कष्ट एवं मानसिक दुख दूर होता है और विष्णु कृपा से स्वर्ग की प्राप्ति होती है, जैसा कि यह व्रत करने से राजा मांधाता को पुण्य फल प्राप्त हुआ था. पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं वरुथिनी एकादशी  मुहूर्त, मंत्र, व्रत एवं पूजा​ विधि के बारे में.
 
वरुथिनी एकादशी 2022 पूजा मुहूर्त
वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ: 26 अप्रैल, दिन मंगलवार, 01:37 एएम से
वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का समापन: 27 अप्रैल, दिन बुधवार, 12:47 एएम पर
ब्रह्म योग: 26 अप्रैल को शाम 07:06 बजे तक
त्रिपुष्कर योग: 26 अप्रैल, देर रात 12:47 से अगली सुबह 05:44 बजे तक
दिन का शुभ समय: दिन में 11:53 बजे से दोपहर 12:45 बजे तक
वरुथिनी एकादशी पूजा मंत्र
ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम:
 
व्रत एवं पूजा विधि
सुबह स्नान के बाद व्रत एवं पूजा का संकल्प करते हैं. उसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापना करें और उनकी पूजा करते हैं. पूजा में पंचामृत, पीले फूल, फल, पान, सुपारी, अक्षत्, तुलसी का पत्ता, धूप, दीप, कपूर, चंदन, रोली आदि का उपयोग करते हैं. इन वस्तुओं को अर्पित करते समय ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण करते हैं.

इसके बाद विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम और वरुथिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करते हैं. इसके बाद घी के दीपक या कपूर से भगवान विष्णु की आरती ओम जय जगदीश हरे…करते हैं. व्रत कथा का पाठ करने से व्रत का पुण्य लाभ पता चलता है. व्रत कथा में राजा मांधाता की कहानी है, जिसमें वे किस प्रकार से कष्ट से मुक्ति प्राप्त करते हैं और विष्णु कृपा से स्वर्ग जाते हैं.पूजा के बाद शाम को संध्या आरती करते हैं और रात्रि के समय में भगवत जागरण करते हैं. फिर अगले दिन स्नान के बाद पूजा और दान करते हैं. सूर्योदय के पश्चात पारण करके व्रत को पूरा करते हैं |
 
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