धर्म समाज

जानिए कब हैं शनि जयंती

 हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को शनि जयंती मनाई जाती है। शनि जयंती के दिन विधिवत तरीके से शनिदेव की पूजा करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान शनि को न्याय का देवता माना गया है। शनिदेव ही हर इंसान को उसके कर्मों के हिसाब से दंड या फल देते हैं। जहां अच्छे कर्म करने वाले व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है और बुरे लोगों को अपने कर्मों के फल का भुगतान करना पड़ता है। इसलिए शनिदेव की कृपा पाने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति अच्छा कर्म करें। मान्यता है कि शनि जयंती के दिन विधि-विधान के साथ शनिदेव की पूजा करने से व्यक्ति के ऊपर से साढ़ेसाती, ढैय्या, शनि दोष से राहत मिल जाती है। जिससे व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक के साथ-साथ आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है। जानिए शनि जयंती की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।


शनि जयंती का शुभ मुहूर्त

शनि जयंती तिथि- 30 मई 2022

अमावस्या तिथि आरंभ- 29 मई की दोपहर 2 बजकर 54 मिनट से शुरू

अमावस्या तिथि का समापन- 30 मई की शाम 4 बजकर 59 मिनट पर

शनि जयंती पूजा विधि

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें। इसके बाद साफ कपड़े धारण कर लें। भगवान शनि का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प करें। अब शनिदेव की पूजा आरंभ करें। सबसे पहले एक चौकी में काले रंग का कपड़ा बिछाकर शनिदेव की तस्वीर या फिर प्रतीक के रूप में सुपारी रख दें। इसके बाद इसे पंचगव्य और पंचामृत से स्नान करा दें। इसके बाद सिंदूर, कुमकुम, काजल लगाएं और नीले रंग के फूल अर्पित करें इसके बाद श्री फल सहित अन्य फल चढ़ाएं। फिर बाद दीपक और धूप जलाएं। शनि चालीसा के साथ शनि मंत्रों का जाप करें।

शनिदेव मंत्र

ॐ शं शनैश्चराय नमः"

"ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः"

"ॐ शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। सय्योंरभीस्रवन्तुनः।।"
 
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शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के उपाय

आज साल 2022 के अप्रैल महीने का चौथा और बैशाख महीने का पहला शुक्रवार है। सनातन हिन्दू धर्म में शुक्रवार का दिन लक्ष्मीऔर वैभव-विलास का दिन माना जाता है। शुक्रवार के दिन यदि आप मां लक्ष्मी की पूजा विधिवत करते हैं, तो मां लक्ष्मी अपकी हर इच्छा को पूर्ण कर सकती है और आपको हर संकट से मुक्ति मिल सकती है। शास्त्रों में लक्ष्मी मां को धन की देवी माना गया है। मान्यता है कि शुक्रवार के दिन उनकी पूजा आराधना करने से उनका आशीर्वाद बना रहता है। साथ ही सारे कष्ट दूर होते हैं, पैसों की तंगी से छुटकारा मिलता है और घर में सुख-समृद्धि आती है। 

पैसों की किल्लत को दूर करने के लिए हम माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं। माता लक्ष्मी धन और संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है। कहा जाता है कि समुद्र से इनका जन्म हुआ था, और इन्होंने श्री विष्णु से विवाह किया था। इनकी पूजा से धन की प्राप्ति होती है साथ ही वैभव भी मिलता है। यदि लक्ष्मी रुष्ट हो जाएं तो घोर दरिद्रता का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष में शुक्र ग्रह से इनका सम्बन्ध जोड़ा जाता है।माता लक्ष्मी की पूजा से केवल पैसे ही नहीं बल्कि समाज में यश की भी प्राप्ति होती है। इनकी पूजा से दाम्पत्य जीवन बेहतर बनता है। आज के दिन मां लक्ष्मीको प्रसन्न करने के लिए कुछ उपाय भी किए जाते हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे ही उपाय बताने जा रहे हैं जिससे आपके पास बहुत सारा धन  आ सकता है। 

शुक्रवार के उपाय  कहते हैं घर में किसी भी समय लक्ष्मी जी आ सकती है लेकिन शाम का समय ऐसा होता है, जिस समय लक्ष्मी जी का आना संभव होता है इसलिए शाम के समय सारे घर की लाइट जला कर पूरे घर में रोशनी कर देना चाहिए। - कहा जाता है मां लक्ष्मी के समक्ष मोगरे का इत्र अर्पित करना चाहिए और रति और कामसुख के लिए गुलाब का इत्र चढ़ाना चाहिए। इसी के साथ देवी लक्ष्मी के सामने केवड़े का इत्र अर्पित करने से मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। कहा जाता है शुक्रवार के दिन सुबह के समय गो-माता को ताज़ी रोटी खिलाना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होगी और आप पर सदेव अपनी कृपा बनाये रखेंगी। घर में स्वच्छता का जरुर ध्यान दे क्योंकि इससे माता लक्ष्मी जरुर प्रसन्न होती है और साथ ही कभी शाम के समय घर में झाडू न लगाए इससे घर की लक्ष्मी बाहर चली जाती है। - कहा जाता है शुक्रवार के दिन उस जगह जाए जहां मोर नृत्य करते है और उसके बाद वहां की मिट्टी लाकर एक लाल रंग के कपड़े में बांधकर पवित्र जगह में रख दें और उसकी रोज पूजा करें धनलाभ होगा। 

इसके अलावा और क्या करें  घर में तुलसी का पौधा लगाएं और उसकी पूजा करें।  
श्वेत चंदन का तिलक करें।  
पानी में चंदन मिलाकर स्नान करें। 
नहाते समय लक्ष्मी-नारायण का ध्यान करें। 
"श्रीं जगतप्रसूते नमः" मंत्र का जाप करें। 
 लक्ष्मी-नारायण पर चढ़े चंदन से मस्तक पर तिलक करें।
 लक्ष्मी-नारायण पर चढ़ी खीर किसी कन्या को खिलाएं। 
लक्ष्मी नारायण मंदिर में अथवा अपने घर के पूजाघर में लक्ष्मी-नारायण की पूजा करके उन पर गुलाबी फूल चढ़ाएं।
  चांदी का टुकड़ा या चंदन की लकड़ी नदी या नहर में प्रवाहित करें। 
सुगंधित पदार्थ का इस्तेमाल करें। 
संतान प्राप्ति के चाहवान दंपति हरसिंगार का पौधा घर में लगाएं तथा उसको ऐसे सींचे, जैसे अपने छोटे बच्चे की देखभाल करते हैं। 

मां लक्ष्मी के मंत्र  पैसे की तंगी को खतम करने के लिए महालक्ष्मी का ध्यान करके इच्छानुसार देसी खंड और श्रीसूक्त का पाठ करें। इसके बाद चढ़ी हुई देसी खंड किसी सुहागन ब्राह्मणी को दान दें। 

महाउपाय- अगर आपका धन मंदा पड़ गया है तो 12 बुधवार इस प्रयोग को अपनाएं। 12 कौड़ी जलाकर उसकी राख़ बना लें और उस राख को हरे कपड़े में बांधकर जल प्रवाह करें। इनमें से कोई भी उपाय जो आप आसानी से कर सकते हैं, शुक्रवार को कर लें। फिर देखें कैसे आप पर मां लक्ष्मी की कृपा बरसने लगती है।

 मां लक्ष्मी के मंत्र 
1- या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी: पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि: श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्. 
2- विष्णुप्रिये नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं जगद्वते आर्त हंत्रि नमस्तुभ्यं, समृद्धं कुरु मे सदा नमो नमस्ते महांमाय, श्री पीठे सुर पूजिते शंख चक्र गदा हस्ते, महां लक्ष्मी नमोस्तुते 
3- ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् 
4- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम: महालक्ष्मी की आरती ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता ॐ जय लक्ष्मी माता। उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॐ जय लक्ष्मी माता। 

दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॐ जय लक्ष्मी माता। तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता ॐ जय लक्ष्मी माता। जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता ॐ जय लक्ष्मी माता। तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता ॐ जय लक्ष्मी माता। शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॐ जय लक्ष्मी माता। महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ॐ जय लक्ष्मी माता।
 
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गुरु तेग बहादुर की जयंती आज

गुरु तेग बहादुर की जयंती आज, जाने उन से जुडी कुछ खास बातें Subhi21 April 2022 9:20 AM x सिख धर्म के नौवें गुरु श्री तेग बहादुर साहिब का 400वां प्रकाश पर्व 21 अप्रैल, गुरुवार को मनाया जा रहा है। गुरु तेज बहादुर का जन्म वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। सिख धर्म के नौवें गुरु श्री तेग बहादुर साहिब का 400वां प्रकाश पर्व 21 अप्रैल, गुरुवार को मनाया जा रहा है। गुरु तेज बहादुर का जन्म वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। तेज बहादुर जी के बचपन का नाम त्यागमल था।

उनके पिता का नाम गुरु हरगोबिंद सिंह था। गुरु श्री तेग बहादुर साहिब, हगोविंद के पांचवें पुत्र थे और सिखों के आठवें गुरु हरिकृष्ण राय के निधन के बाद उनको गुरु बनाया गया। इन्होंने आनंदपुर साहिब का निर्माण किया और यहीं पर रहने लगे थे।  मुगलों के खिलाफ युद्ध- गुरु तेगबहादुर जी बचपन से ही निडर थे। मात्र 14 वर्ष की आयु में पिता के साथ उन्होंने मुगलों के खिलाफ युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया था। उनकी वीरता से प्रभावित होकर ही उनके पिता ने नाम तेग बहादुर रखा था और एक तलवार भेंट की थी। गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बाद भी इस्लाम कुबूल नहीं किया था। तब तेग बहादुर साहिब ने कहा था कि वह शीश कटा सकते हैं लेकिन अपने केश (बाल) नहीं। गुरु तेग बहादुर ने जब किसी भी हाल में इस्लाम स्वीकार नहीं किया तो औरंगजेब ने उनका शीश कटवा दिया था।

 

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आज के दिन मां लक्ष्मी को मनाने के लिए करें ये उपाय

आज का दिन संसार के पालनकर्ता भगवान विष्‍णु को समर्पित है. इस दिन भगवान‍ विष्‍णु की पूजा करने से मां लक्ष्‍मी भी प्रसन्‍न होती हैं. भगवान विष्‍णु और मां लक्ष्‍मी की कृपा से जीवन की हर कमी दूर हो जाती है. साथ ही सारे दुख-दर्द खत्‍म हो जाते हैं. मां लक्ष्‍मी की कृपा से अपार पैसा और सुख मिलता है. हिंदू धर्म और ज्‍योतिष में कुछ ऐसे उपाय बताए गए हैं, जिन्‍हें गुरुवार के दिन करने से किस्‍मत के बंद ताले भी खुल सकते हैं.गुरुवार के कारगर उपाय गुरुवार को किए गए ये उपाय न केवल भगवान विष्‍णु-मां लक्ष्‍मी का आशीर्वाद दिलाते हैं,
 
बल्कि कुंडली में गुरु ग्रह को भी मजबूत करते हैं. गुरु ग्रह वैवाहिक जीवन, भाग्‍य का कारक ग्रह है. गुरु की सुबह जल्‍दी स्‍नान करके भगवान विष्‍णु और मां लक्ष्‍मी की एक साथ पूजा करें, ऐसा करने से पति-पत्‍नी के बीच कभी दूरी नहीं आती है. वे हमेशा खुशहाल दांपत्‍य का आनंद लेते हैं. मां लक्ष्‍मी की कृपा से खूब धन मिलता है. गुरुवार को केसर, पीले चंदन या फिर हल्दी का दान करें. यदि दान न कर पाएं तो इसका अपने माथे पर तिलक लगाएं. इससे कुंडली में गुरु मजबूत होकर शुभ फल देने लगता है. गुरु ग्रह संबंधी दोष को दूर करने के लिए गुरुवार के दिन स्‍नान करने के पानी में चुटकी भर हल्दी डालकर स्नान करें. साथ ही स्‍नान करते समय 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें.
 
गुरुवार के दिन हो सके तो पीले रंग के कपड़े पहनें. गुरुवार का व्रत रखें और केले के पौधे को जल चढ़ाएं. इससे शादी में आ रही रुकावटें दूर होंगी. वहीं विवाहित लोग यदि ये व्रत करते हैं तो इससे उनके दांपत्‍य जीवन में कभी कोई समस्‍या नहीं आती है. इस दिन सत्यनारायण की व्रत कथा भी जरूर सुनें या पढ़े. भगवान विष्‍णु की पूजा करते समय उनके सामने घी का दीया जलाएं, उन्‍हें पीले रंग के फूलों के साथ तुलसी दल अर्पित करें. गुरुवार की सुबह चने की दाल और थोड़ा-सा गुड़ घर के मुख्य द्वार पर रख दें. ऐसा करना घर में सुख-समृद्धि लाता है. बाद में इसे गाय को खिला दें.
 
कोई भी व्रत या अनुष्‍ठान बिना दान के पूरा नहीं होता है. गुरुवार के दिन भी अपनी सामर्थ्‍य के अनुसार ब्राह्मणों को पीले रंग की वस्तुएं जैसे- चने की दाल, फल आदि दान करें. हमेशा याद रखें कि गुरुवार के दिन न तो किसी को उधार दें और न हीं किसी से उधार लें. इससे कुंडली में गुरु निर्बल होता है और जातक आर्थिक तंगी झेलता है. गुरुवार के दिन कुछ मंत्रों का जाप करना भी जीवन में खूब धन-संपदा देगा. ये मंत्र हैं - ॐ बृं बृहस्पतये नम:, ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:, ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:, ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:, ॐ गुं गुरवे नम:.
 
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हनुमान जी की चालीसा करने से हर मुश्किल का होगा समाधान

हनुमान जयंती का पावन पर्व कल है। प्रभु श्री राम के अन्नय भक्त हनुमान जी का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा को हुआ था। इस दिन देशभर में हनुमान जी का जन्मदिवस मनाया जाता है। खास बात यह है कि मंगलवार और शनिवार दोनों ही हनुमान जी की पूजा के उपयुक्त दिन हैं। ऐसे में शनिवार के दिन हनुमान जयंती होने से इसका महात्म्य और भी बढ़ गया है। इस दिन बंजरंग बली की पूजा से जहां सभी प्रकार के भय और कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसलिए हनुमान जयंती के दिन व्रत पूजा और विभिन्न उपाय करने से बजरंगबली की कृपा जरूर मिलती है।

हनुमानजी का प्रताप चारों युगों में रहा है और आगे भी रहेगा, क्योंकि वे अजर-अमर हैं। उन्हें अमरत्व का वरदान मिला हुआ है। वे जब तक चाहें शरीर में रहकर इस धरती पर मौजूद रह सकते हैं। सिर्फ इस बात के लिए ही हनुमान चालीसा का आधुनिक दुनिया में महत्व नहीं बढ़ जाता है बल्कि इसलिए कि पूरे ब्रह्मांड में हनुमानजी ही एकतात्र ऐसे देवता हैं जिनकी भक्ति से हर तरह के संकट तुरंत ही हल हो जाते हैं और यह एक चमत्कारिक सत्य है।
 
हनुमान चालीसा अवधी में लिखी एक काव्यात्मक कृति है जिसमें प्रभु राम के महान भक्त हनुमान के गुणों एवं कार्यों का चालीस चौपाइयों में वर्णन है। यह अत्यन्त लघु रचना है जिसमें पवनपुत्र श्री हनुमान जी की सुन्दर स्तुति की गई है। इसमें बजरग बली‍ की भावपूर्ण वन्दना तो है ही, श्रीराम का व्यक्तित्व भी सरल शब्दों में उकेरा गया है। 'चालीसा' शब्द से अभिप्राय 'चालीस' (40) का है क्योंकि इस स्तुति में 40 छन्द हैं (परिचय के 2 दोहों को छोड़कर)। हनुमान चालीसा भगवान हनुमान को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्तों द्वारा की जाने वाली प्रार्थना हैं जिसमें 40 लाइनें होती है इसलिए इस प्रार्थना को हनुमान चालीसा कहा जाता है इस हनुमान चालीसा को तुलसीदास जी द्वारा लिखा गया है जिसे बहुत शक्तिशाली माना जाता है।
 
 
तुलिसदास ने ऐसे की थी हनुमान चालीसा की रचना

इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं। मान्यता के मुताबिक तुलसीदास ने बड़े ही विषम परिस्थितियों में हनुमान चालीसा की रचना की थी। बात 1600 ईस्वी की है। यह काल अकबर और तुलसीदास जी के समय का काल था। एक बार तुलसीदास जी मथुरा जा रहे थे, रात होने से पहले उन्होंने अपना पड़ाव आगरा में डाला, लोगों को पता लगा कि तुलसीदास जी आगरा में पधारे हैं। यह सुन कर उनके दर्शनों के लिए लोगों का तांता लग गया। 
जब यह बात अकबर को पता लगी तो उन्होंने बीरबल से पूछा कि यह तुलसीदास कौन हैं। तब बीरबल ने बताया, इन्होंने ही रामचरित मानस का अनुवाद किया है, यह रामभक्त तुलसीदास जी हैं, मैं भी इनके दर्शन करके आया हूँ। अकबर ने भी उनके दर्शन की इच्छा व्यक्त की और कहा मैं भी उनके दर्शन करना चाहता हूं।
बादशाह अकबर ने अपने सिपाहियों की एक टुकड़ी को तुलसीदास जी के पास भेजा और तुलसीदास जी को बादशाह का पैगाम सुनाया कि आप लालकिले में हाजिर हों। यह पैगाम सुन कर तुलसीदास जी ने कहा कि मैं भगवान श्रीराम का भक्त हूं, मुझे बादशाह और लालकिले से मुझे क्या लेना-देना और लालकिले जाने के लिए साफ मना कर दिया

जब यह बात बादशाह अकबर तक पहुंची तो बहुत बुरी लगी और बादशाह अकबर गुस्से में लालमलाल हो गया, और उन्होंने तुलसीदास जी को जंजीरों से जकड़वा कर लाल किला लाने का आदेश दिया। जब तुलसीदास जी जंजीरों से जकड़े लाल किला पहुंचे तो अकबर ने कहा की आप कोई करिश्माई व्यक्ति लगते हो, कोई करिश्मा करके दिखाओ। तुलसी दास ने कहा मैं तो सिर्फ भगवान श्रीराम जी का भक्त हूं, कोई जादूगर नहीं हूं जो आपको कोई करिश्मा दिखा सकूं।अकबर यह सुन कर और आगबबूला हो गया और उसने आदेश दिया कि इनको जंजीरों से जकड़ कर काल कोठरी में डाल दिया जाये।

दूसरे दिन इसी आगरा के लाल किले पर लाखों बंदरों ने एक साथ हमला बोल दिया, पूरा किला तहस नहस कर डाला। लाल किले में त्राहि-त्राहि मच गई। तब अकबर ने बीरबल को बुला कर पूछा कि यह क्या हो रहा है? तब बीरबल ने कहा हुज़ूर आप करिश्मा देखना चाहते थे तो देखिये। अकबर ने तुरंत तुलसीदास जी को काल कोठरी से निकलवाया और जंजीरें खोल दी गईं।

तुलसीदास जी ने बीरबल से कहा मुझे बिना अपराध के सजा मिली है। मैंने काल कोठरी में भगवान श्रीराम और हनुमान जी का स्मरण किया, मैं रोता जा रहा था। और रोते-रोते मेरे हाथ अपने आप कुछ लिख रहे थे। यह 40 चौपाई, हनुमान जी की प्रेरणा से लिखी गई हैं। कारागार से छूटने के बाद तुलसीदास जी ने कहा जैसे हनुमान जी ने मुझे कारागार के कष्टों से छुड़वाकर मेरी सहायता की है, उसी तरह जो भी व्यक्ति कष्ट में या संकट में होगा और इसका पाठ करेगा, उसके कष्ट और सारे संकट दूर होंगे। इसको हनुमान चालीसा के नाम से जाना जायेगा। अकबर बहुत लज्जित हुए और तुलसीदास जी से माफ़ी मांगी और पूरी इज़्ज़त और पूरी हिफाजत, लाव-लश्कर से मथुरा भिजवाया।

आज हनुमान चालीसा का पाठ सभी लोग कर रहे हैं। और हनुमान जी की कृपा उन सभी पर हो रही है। और सभी के संकट दूर हो रहे हैं। हनुमान जी को इसीलिए "संकट मोचन" भी कहा जाता है
हनुमान चालिसा को आप हर रोज यहां पढ़ सकते हैं...
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुँचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे। कांधे मूंज जनेउ साजे।।
शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वंदन।।
बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानु। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोई अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकन्दन राम दुलारे।।
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुह्मरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अंत काल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बन्दि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।

दोहा
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
जय श्रीराम, जय हनुमान, जय हनुमान।
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हनुमान जयंती पर करें ये उपाय, हर मनोकामना होगी पूरी

बजरंगबली के भक्त चैत्र नवरात्र और राम नवमी के बाद अब हनुमान जयंती की तैयारी में जुटे हैं। इस बार हनुमान जयंती 16 अप्रैल के दिन मनाई जाएगी। इस बार की हनुमान जयंती इस लिए भी खास है, क्योंकि इस दिन पूर्णिमा के साथ शनिवार भी पड़ रहा है। जिसके कारण इस दिन किए गए पूजा पाठ का फल कई गुना अधिक मिलेगा।

मान्यता के मुताबिक चैत्र मास की पूर्णिमा पर हनुमान जी प्रकट हुए। हनुमान जी की मां का नाम अंजना है। श्री केसरी हनुमान जी के पिता जी का नाम है। हनुमान जी का बचपन का नाम मारुति था। हनुमान जी के 5 छोटे भाई है। पहले गुणों के आधार पर नाम दिया जाता था। हनुमान जी बहुत तेज दौड़ते थे इसलिए उनको वायुपुत्र कहा गया। हनुमान जी बहुत ज्ञानी और कलाकार हैं। गोस्वामी जी भी हनुमान की कला के प्रशंसक हैं। हनुमान जी बंदर नहीं है। हनुमान जी वन में रहने वाले नर हैं। हनुमान जी सामवेद के ज्ञाता हैं। कई सारे वाद्य यंत्र हनुमान जी को बजाना आते हैं।

वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड सर्ग 35वें श्लोक में लिखा है कि जन्म लेते ही हनुमान जी को भूख लगी। इसलिए माता अंजना फल लेने चली गईं, उस समय सूर्य का उदय हो रहा था। भूख से व्याकुल हनुमान जी ने सूर्य को भी फल समझा और वे उन्हें खाने को आकाश मंडल में दौड़े। उसी दिन राहु भी ग्रहण के चलते सूर्य के समीप था। हनुमान जी ने सूर्य रथ के पास आए हुए राहु को ऐसा झटका मारा की वह मूर्छित हो गया।

होश आने र क्रोध में राहुल इंद्र के पास गया और कहा कि मुझसे भी बलवान राहू सूर्य को ग्रहण लगाने के लिए आया है। इंद्र वहां आए और हनुमान जी पर वज्र से प्रहार कर दिया जिसके प्रभाव से उनकी ठोढ़ी टूट गई। वहीं दूसरी तरफ, हनुमद् उपासना कल्पद्रुम ग्रंथ में वर्णित है कि चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार के दिन मूंज की मेखला से युक्त और यज्ञोपवीत से भूषित हनुमान जी उत्पन्न हुए। इस विषय के ग्रंथों में इन दोनों के उल्लेख मिलते हैं।

मान्यता के मुताबिक मंगलवार को हनुमान जी की विशेष पूजा-आराधना करने से भक्तों को सदैव हनुमानजी की कृपा प्राप्त होती है। मंगलवार के अलावा शनिवार का दिन भी बजरंगबली का दिन माना जाता है। जो व्यक्ति शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करता उसे शनि की बुरी नजर नहीं लगती है। मान्यता के मुताबिक हनुमान जी कलयुग में जीवित देवता है और ऐसी मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धापूर्वक और भक्ति भाव से हनुमान जी की उपासना करता है उसकी हर मनोकामना जरूर पूरी करते हैं। शास्त्रों हनुमानजी को प्रसन्न करने के कुछ उपाय बताए गए है जिसे करने से बजरंगबली जरूर प्रसन्न होते हैं और हर मनोकामना पूरी करते है।

हनुमान जयंती पर बजरंगबली की पूजा विधि...

- हनुमानजी को तुलसी के पत्ते बहुत प्रिय होते हैं जो भक्त हनुमान जी की पूजा में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल करता है उसके जीवन में उसे सुख, समृद्धि, वैभव और तरक्की प्राप्त होती है।
- जिन हनुमान भक्तों के घरों पर नियमित रूप से हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, सुंदरकांड और रामचरितमानस का पाठ होता रहता है उन्हें हमेशा हनुमान जी की कृपा मिलती है।
- हनुमानजी शंकर भगवान के अवतार है जो भक्त प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर गंगाजल और बेलपत्र अर्पित करता है बजरंगबली उसकी हर एक मुराद पूरी करते हैं
- घर में हर तीसरे माह हनुमान यज्ञ या साल में एक बार हनुमान जयंती पर सुंदरकांड का पाठ जरूर करवाएं।
- हनुमान जयंती पर बजरंग बली को प्रसन्न करने के लिए चोला जरूर चढ़ाना चाहिए। इससे आपकी मनोकामना पूरी होती है।
- हनुमान जी का दर्शन कर उनका विधिवत पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन कर नैवेद्य में लड्डू, ऋतु फल, खुर्मा इत्यादि अर्पित करना चाहिए।
- हनुमान चालीसा, सुंदरकांड, हनुमान बाहुक, हनुमत सहस्त्रनाम, हनुमान मंत्र इत्यादि का पाठ-जप करना चाहिए।
- हनुमान जी के प्रसन्न होने से जीवन में आने वाले सभी संकटों से मुक्ति मिलती है। साथ ही जीवन सुखमय होता है।
 
 
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भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए आज के ही दिन करें ये उपाय

हिंदू धर्म में सोमवार का भगवान शिव यानि भोलेनाथ को समर्पित है.इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाती है. मान्यता है कि भगवान शिव की पूजा करने पर उनके साथ माता पार्वती भी प्रसन्न होती हैं. इस दिन महिलाएं व्रत भी रखती है और अपनी मनोकामना को पूरा करने का आशीर्वाद भी मांगती हैं.ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक सोमवार के दिन यदि कुछ विशेष उपाय किए जाएं तो भगवान शिव की कृपा बनी रहती है. साथ ही ही घर में सुख-समृद्धि का वास होता है. यहां हम सोमवान को किए जाने वाले विशेष उपाय बता रहे हैं.

सोमवार के दिन जरूर करें ये उपाय
  • भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सोमवार के दिन सफेद, हरे, पीले, लाल या आसमानी रंग के वस्त्र घारण कर पूजा करें.
  • पूजा में भगवान शिव अक्षत यानि चावल अर्पित करें. लेकिन ध्यान रखें चावल को कोई भी दाना खंडित यानि टूटा हुआ नहीं होना चाहिए.
  • भगवान शिव को चंदन, बेल पत्र, धतूरा और गंगाजल अर्पित करें. इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा बरसाते है।.
  • यदि आपके जीवन में धन संबंधी संकट चल रहा है तो सोमवार के दिन शिव रक्षा स्त्रोत का पाठ करना लाभकारी होगा.
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आज दुर्गाष्टमी पर करें मां महागौरी की पूजा

आज यानी 9 अप्रैल,शनिवार के दिन चैत्र नवरात्रि महाअष्टमी यानी दुर्गा अष्टमी मनाई जा रही है। चैत्र नवरात्रि के चलते आदिशक्ति श्री दुर्गाजी का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं,नवरात्रि के आठवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं,उपासक सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है। उसके पूर्व संचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं और भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं रहते। धन-धन्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए इस दिन क्या करें और किन कार्यों को भूलकर भी नहीं करना चाहिए

महागौरी की उपासना

ये धन,वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं।अष्टमी तिथि के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात कलश पूजन करके मां की विधि-विधान से पूजा करें। इस दिन मां को सफेद पुष्प अर्पित करें,मां की वंदना मंत्र का उच्चारण करें। आज के दिन मां को हलुआ, पूरी, सब्जी, काले चने एवं नारियल का भोग लगाएं। माता रानी को चुनरी अर्पित करें।

कन्या पूजन

भक्तों के लिए यह देवी अन्नपूर्णा का स्वरूप हैं इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। अष्टमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन 10 साल तक की कन्याओं को घर बुलाकर उन्हें आदर पूर्वक सात्विक और सुमधुर भोजन कराएं एवं उन्हें जरूरत की चीजें भेंट करें,ऐसा करने से देवी मां का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
 
श्रृंगार की वस्तुएं भेंट दें-

महाअष्टमी के दिन देवी माता के मंदिर में या फिर किसी सुहागिन महिला को लाल रंग की साड़ी और श्रृंगार का सामान भेंट देने से घर में सुख-सौभाग्य आता है।

शुभ रंगों के वस्त्र पहनें-

जब भी आप पूजा में बैठें तो मां के प्रिय रंग लाल,पीले,गुलाबी और हरे रंग के वस्त्रों का प्रयोग करें,देवी की पूजा करते समय काले-नीले रंग के कपड़े पहनने से बचें।

दीप जलाएं-

इस दिन तुलसी के पास शुद्ध घी का दीपक जलाएं और फिर परिक्रमा करें,ऐसा करने से परिवार के सदस्य निरोग रहते हैं एवं घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होकर सुख समृद्धि का वास होता है।
क्या नहीं करें-

अष्टमी के दिन माता की पूजा करने के बाद दिन में सोना नहीं चाहिए,दिन में सोना सेहत की दृष्टि से भी ठीक नहीं माना गया है।यदि आपने घर में मां दुर्गा की अखंड ज्योति जलाई है तो घर खाली नहीं छोड़ना चाहिए।

इस दिन अपनी दाढ़ी-मूंछ या बाल नहीं कटवाने चहिए। अगर व्रत नहीं भी किया है लेकिन घर में यदि कलश की स्थापना की गई है तो भी परिवार के लोगों को इन चीजों से परहेज करना चाहिए।

कन्या,सृष्टि सृजन श्रृंखला का अंकुर होती है। यह पृथ्वी पर प्रकृति स्वरूप माँ शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। सिर्फ आज ही नहीं बल्कि कभी भी कन्याओं और स्त्रियों का अपमान नहीं करें।
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आज है नवरात्रि का सातवां दिन

 झूठा सच @ रायपुर :-   नवरात्रि में मां दुर्गा के सातवें स्वरूप कालरात्रि की आराधना की जाती है, मां कालरात्रि की पूजा से भूत प्रेत, अकाल मृत्यु ,रोग, शोक आदि सभी प्रकार की परेशानियों से छुटकारा मिलता है। 8 अप्रैल यानी आज चैत्र नवरात्रि की सप्तमी तिथि है। मां दुर्गा को कालरात्रि का रूप शुम्भ, निशुम्भ और रक्तबीज को मारने के लिए लेना पड़ा था। मां कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत ही भयानक है। लेकिन मां का हृदय अत्यंत ही कोमल है। मां अपने भक्तों को सभी प्रकार की परेशानियों से मुक्ति दिलाती है। देवी कालरात्रि का पूजन मात्र करने से समस्त दुखों एवं पापों का नाश हो जाता है। देवी कालरात्रि के ध्यान मात्र से ही मनुष्य को उत्तम पद की प्राप्ति होती है साथ ही इनके भक्त सांसारिक मोह माया से मुक्त हो जाते हैं। माता कालरात्रि की पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व, मां कालरात्रि की पूजा विधि, देवी कालरात्रि की कथा, कालरात्रि का मंत्र और माता कालरात्रि की आरती


कालरात्रि जय-जय-महाकाली ।

काल के मुह से बचाने वाली ॥

दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा ।

महाचंडी तेरा अवतार ॥

पृथ्वी और आकाश पे सारा ।

महाकाली है तेरा पसारा ॥

खडग खप्पर रखने वाली ।

दुष्टों का लहू चखने वाली ॥

कलकत्ता स्थान तुम्हारा ।

सब जगह देखूं तेरा नजारा ॥

सभी देवता सब नर-नारी ।

गावें स्तुति सभी तुम्हारी ॥

रक्तदंता और अन्नपूर्णा ।

कृपा करे तो कोई भी दुःख ना ॥

ना कोई चिंता रहे बीमारी ।

ना कोई गम ना संकट भारी ॥

उस पर कभी कष्ट ना आवें ।

महाकाली मां जिसे बचाबे ॥

तू भी भक्त प्रेम से कह ।

कालरात्रि मां तेरी जय ॥

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रामनवमी कब है, जानिए इसकी शुभ तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि

 सनातन हिंदू धर्म में प्रत्येक त्योहार का एक विशेष महत्व है। नवरात्रि भी उन्हीं में से एक है। वैसे तो पूरे साल में चार बार नवरात्रि आती है लेकिन इनमें से शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से इन नवरात्रि की शुरुआत होती है। इन दिनों में मां के 9 स्वरुपों की पूजा की जाती है। भक्तों में नवरात्रि को लेकर बहुत उत्साह देखने को मिलता है। नवरात्रि के आखिरी दिन राम नवमी का पर्व मनाया जाता है। भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में ये पर्व मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन राम जी का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन रामनवमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन विधिविधान के साथ भगवान राम और माता सीता की पूजा अर्चना की जाती है। 

रामनवमी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।

राम नवमी का शुभ मुहूर्त 2022
राम नवमी तिथि- 10 अप्रैल 2022, रविवार
नवमी तिथि प्रारंभ - 10 अप्रैल को देर रात 1:32 मिनट से शुरू
नवमी तिथि समाप्त- 11 अप्रैल को सुबह 03:15 मिनट पर तक
पूजा का मुहूर्त- 10 अप्रैल को सुबह 11: 10 मिनट से 01: 32 मिनट तक

रामनवमी का महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान राम को विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि त्रेता युग में धरती पर असुरों का उत्पात बढ़ गया था। असुर ऋषियों के यज्ञ को खंडित कर दिया करते थे। धरती पर आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए भगवान विष्णु ने धरती पर श्रीराम के रूप में अवतार लिया था। भगवान श्रीराम ने धर्म की स्थापना के लिए पूरे जीवन अपार कष्टों को सहा और एक आदर्श नायक के रूप में स्वयं को स्थापित किया। उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहा जाता है। कठिन से कठिन परिस्थितियों में श्रीराम ने धर्म का त्याग नहीं किया और न ही अनीति का वरण किया। इस सब गुणों के चलते उन्हें उत्तम पुरुष की संज्ञा मिली और मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया।

राम नवमी पूजा विधि
राम नवमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण करें।
इसके बाद पूजास्थल को स्वच्छ करके भगवान राम की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
इसके बाद उन्हें कुमकुम, सिंदूर, रोली, चंदन, आदि से तिलक लगाएं।
इसके बाद चावल और तुलसी अर्पित करें। राम नवमी के दिन श्री राम को तुलसी अर्पित करने से वे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।
पूजा में देवी-देवताओं को फूल अर्पित करें और मिठाई का भोग लगाएं।

फिर घी का दीपक और धूपबत्ती जलाकर श्री रामचरित मानस , राम रक्षा स्तोत्र या रामायण का पाठ करें।
श्री राम, लक्ष्मण जी और मां सीता की आरती करें और लोगों में प्रसाद वितरण करें।
श्री राम के इन मंत्रों का करें जाप

'रां रामाय नम:'
भगवान श्रीराम का यह मंत्र बेहद ही प्रभावशाली होता है। इस मंत्र को श्रीराम पूजा में 108 बार जपें। इस मंत्र को सच्चे मन से जपने से भक्तगणों की सारी विपदाएं नष्ट हो जाती हैं। आरोग्य जीवन के लिए भी यह राम मंत्र कारगर है।

ॐ नमो भगवते रामचंद्राय'
भगवान श्रीराम का जीवन संपूर्ण मानव जाति के लिए एक आदर्श है। इसलिए राम नवमी के दिन आप श्रीराम से जुड़ा यह मंत्र 108 बार जपें। इस मंत्र के जाप से आपके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।
'ॐ दशरथाय विद्महे सीता वल्लभाय धीमहि तन्नो श्रीराम: प्रचोदयात्।
यह श्रीराम गायत्री मंत्र है। शास्त्रों में ऐसा लिखा गया है कि इसके जप से व्यक्ति के सारे संकट दूर हो जाते हैं। उसके जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

श्रीराम की आरती
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं।
नव कंजलोचन, कंज – मुख, कर – कंज, पद कंजारुणं।।
कंन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील – नीरद सुन्दरं।
पटपीत मानहु तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतवरं।।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव – दैत्यवंश – निकन्दंन।
रधुनन्द आनंदकंद कौशलचन्द दशरथ – नन्दनं।।
सिरा मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषां।
आजानुभुज शर – चाप – धर सग्राम – जित – खरदूषणमं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर – शेष – मुनि – मन रंजनं।
मम हृदय – कंच निवास कुरु कामादि खलदल – गंजनं।।
मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो।।
एही भाँति गौरि असीस सुनि सिया सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनिपुनि मुदित मन मन्दिरचली।।
दोहा
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।

श्री राम की दूसरी आरती
आरती कीजे श्रीरामलला की । पूण निपुण धनुवेद कला की ।।
धनुष वान कर सोहत नीके । शोभा कोटि मदन मद फीके ।।
सुभग सिंहासन आप बिराजैं । वाम भाग वैदेही राजैं ।।
कर जोरे रिपुहन हनुमाना । भरत लखन सेवत बिधि नाना ।।
शिव अज नारद गुन गन गावैं । निगम नेति कह पार न पावैं ।।
नाम प्रभाव सकल जग जानैं । शेष महेश गनेस बखानैं
भगत कामतरु पूरणकामा । दया क्षमा करुना गुन धामा ।।
सुग्रीवहुँ को कपिपति कीन्हा । राज विभीषन को प्रभु दीन्हा ।।
खेल खेल महु सिंधु बधाये । लोक सकल अनुपम यश छाये ।।
दुर्गम गढ़ लंका पति मारे । सुर नर मुनि सबके भय टारे ।।
देवन थापि सुजस विस्तारे । कोटिक दीन मलीन उधारे ।।
कपि केवट खग निसचर केरे । करि करुना दुःख दोष निवेरे ।।
देत सदा दासन्ह को माना । जगतपूज भे कपि हनुमाना ।।
आरत दीन सदा सत्कारे । तिहुपुर होत राम जयकारे ।।
कौसल्यादि सकल महतारी । दशरथ आदि भगत प्रभु झारी ।।
सुर नर मुनि प्रभु गुन गन गाई । आरति करत बहुत सुख पाई ।।
धूप दीप चन्दन नैवेदा । मन दृढ़ करि नहि कवनव भेदा ।।
राम लला की आरती गावै । राम कृपा अभिमत फल पावै ।।

 

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चैत्र नवरात्रि के छठे दिन करें मां कात्यायनी की पूजा, जानिए कथा,पूजा विधि

आज चैत्र नवरात्रि का छठा दिन है। नवरात्र के छठे दिन देवी के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा का विधान है। मां के इस रूप के प्रगट होने की बड़ी ही अद्भुत कथा। माना जाता है कि देवी के इसी स्वरूप ने महिषासुर का मर्दन किया था। देवीभागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप की पूजा गृहस्थों और विवाह के इच्छुक लोगों के लिए बहुत ही फलदायी है।

महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया। महर्षि कात्यायन के नाम पर ही देवी का नाम कात्यायनी हुआ। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। यह दानवों, असुरों और पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी कहलाती हैं।

सांसारिक स्वरूप में मां कात्यायनी शेर पर सवार रहती हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। सुसज्जित आभा मंडल युक्त देवी मां का स्वरूप मन मोहक है। इनके बांए हाथ में कमल व तलवार और दाहिने हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है। नवरात्र की षष्ठी तिथि के दिन देवी के इसी स्वरूप की पूजा होती है। क्योंकि इसी तिथि में देवी ने जन्म लिया था और महर्षि ने इनकी पूजा की थी।

मान्यता के अनुसार, नवरात्र के छठे दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित रहता है। योग साधना में आज्ञा चक्र का महत्वपूर्ण स्थान है। आज्ञाचक्र मानव शरीर में उपस्थित 7 चक्रों में सर्वाधिक शक्तिशाली है। इस दिन ध्यान का प्रयास करने से भक्त को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं। जो भी भक्त मां के इस स्वरूप का पूजन करते हैं, उनके चेहरे पर एक अलग कांति रहती है। वह इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक सुख का अनुभव करता है। उसका तेज देखते ही बनता है।

आज इस मंत्र से करें मां का पूजन, मिलेगा लाभ
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

यह है शुभ रंग
नवरात्र के छठे दिन लाल रंग के वस्त्र पहनें। यह रंग शक्ति का प्रतीक होता है। मां कात्यायी को मधु यानी शहद युक्त पान बहुत पसंद है। इसे प्रसाद स्वरूप अर्पण करने से देवी अति प्रसन्न होती हैं।
गोपियों ने की थी मां कात्यायनी की पूजा

माना जाता है कि- भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने कालिन्दी यमुना के तट पर मां कात्यायनी की ही पूजा की थी । इसलिए देवी मां को ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी पूजा जाता है । साथ ही आपको बता दूं कि- ग्रहों में इनका आधिपत्य बृहस्पति ग्रह, यानी गुरु पर रहता है और आज गुरुवार का दिन भी है। लिहाजा गुरु संबंधी परेशानियों से छुटकारा पाने के लिये भी आज मां कात्यायनी की पूजा करना आपके लिये विशेष हितकारी हो | 
 
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आज है स्कंदमाता की पूजा,जानें विधि और शुभ मुहूर्त

 आज चैत्र नवरात्र का पांचवां दिन है। इस दिन देवी के पांचवें स्वरूप स्‍कंदमाता की पूजा की जाती है। कंदमाता को प्रेम और वात्‍सल्‍य की देवी कहा जाता है। मान्यता के मुताबिक स्कंदमाता की आराधना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। संतान प्राप्ति के लिए स्कंदमाता की आराधना करना लाभकारी माना गया है। माता को लाल रंग प्रिय है इसलिए इनकी आराधना में लाल रंग के पुष्प जरूर अर्पित करना चाहिए।


चवां दिन- शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त- 04:34 AM से 05:20 AM
विजय मुहूर्त- 02:30 PM से 03:20 PM
गोधूलि मुहूर्त- 06:29 PM से 06:53 PM
अमृत काल- 04:06 PM से 05:53 PM
सर्वार्थ सिद्धि योग- पूरे दिन

स्कंदमाता पूजा विधि

- सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- मां की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं।
- स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें।
- मां को रोली कुमकुम भी लगाएं।
- मां को मिष्ठान और पांच प्रकार के फलों का भोग लगाएं।

 मां स्कंदमाता का अधिक से अधिक ध्यान करें।
- मां की आरती अवश्य करें।

ऐसे करें माता की पूजा
कुश अथवा कंबल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा करनी चाहिए। पौराणिक तथ्‍यों के अनुसार, स्‍‍कंदमाता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं, जिन्‍हें माहेश्‍वरी और गौरी के नाम से भी जाना जाता है।

स्‍कंदमाता का मंत्र
सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया |
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||
या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

स्कंदमाता की पूजा का महत्व
- मान्‍यता है कि संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण करने के लिए दंपत्तियों को इस दिन सच्‍चे मन से मां के इस स्वरूप की आराधना करनी चाहिए इससे उनकी मुराद पूरी होती है।
- भगवान कार्तिकेय यानी स्‍कन्‍द कुमार की माता होने के कारण दुर्गाजी के इस पांचवें स्‍वरूप को स्‍कंदमाता कहा जाता है।
- देवी के इस स्वरूप मेंभगवान स्‍कंद बालरूप में माता की गोद में विराजमान हैं। माता के इस स्‍वरूप की 4 भुजाएं हैं। शुभ्र वर्ण वाली मां कमल के पुष्‍प पर विराजित हैं।

इसी कारण इन्‍हें पद्मासना और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन सिंह है। स्‍कंदमाता को सौरमंडल की अधिष्‍ठात्री देवी माना जाता है। एकाग्रता से मन को पवित्र करके मां की आराधना करने से व्‍यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

माता का भोग और भेंट
स्‍कंदमाता को भोग स्‍वरूप केला अर्पित करना चाहिए। मां को पीली वस्‍तुएं प्रिय होती हैं, इसलिए केसर डालकर खीर बनाएं और उसका भी भोग लगा सकते हैं। नवरात्र के पांचवें दिन लाल वस्‍त्र में सुहाग की सभी सामग्री लाल फूल और अक्षत के समेत मां को अर्पित करने से महिलाओं को सौभाग्‍य और संतान की प्राप्ति होती है। जो भक्त देवी स्कंद माता का भक्ति-भाव से पूजन करते हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है। देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि रहती है।

स्‍कंदमाता के स्वरूप की कथा
देवी पुराण के अनुसार तारकासुर नाम का एक असुर था। उसने कठोर तप करके ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसका अन्त यदि हो तो महादेव से उत्पन्न पुत्र से ही हो। तारकासुर ने सोचा कि महादेव तो कभी विवाह करेंगे नहीं और न ही उनके पुत्र होगा। इसलिए वह अजर अमर हो जायेगा।

तारकासुर ने आतंक मचाना शुरू कर दिया। त्रिलोक पर अधिकार कर लिया। समस्त देवगणों ने महादेव से विवाह करने का अनुरोध किया। महादेव ने पार्वती से विवाह किया। तब स्कंदकुमार का जन्म हुआ और उन्होंने तारकासुर का अन्त कर दिया।

 
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जानिए आज का शुभ मुहूर्त और राहुकाल का समय

झूठा सच @ रायपुर :- हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय एवं काल की सटीक गणना की जाती है। पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास एवं पक्ष आदि की जानकारी देते हैं। 

आज का शुभ मुहूर्त और राहुकाल का समय।
तिथि चतुर्थी 15:48 तक
नक्षत्र कृत्तिका 16:53 तक
करण
विष्टि
बावा
15:48 तक
28:52 तक
पक्ष शुक्ल पक्ष
वार मंगलवार
योग प्रीति 07:58 तक
सूर्योदय 06:10
सूर्यास्त 18:36
चंद्रमा वृषभ
राहुकाल 15:30 − 17:03
विक्रमी संवत् 2079
शक सम्वत 1944
मास चैत्र
शुभ मुहूर्त अभिजीत 11:58 − 12:48

पंचांग के पांच अंग तिथि

हिन्दू काल गणना के अनुसार 'चन्द्र रेखांक' को 'सूर्य रेखांक' से 12 अंश ऊपर जाने के लिए जो समय लगता है, वह तिथि कहलाती है। एक माह में तीस तिथियां होती हैं और ये तिथियां दो पक्षों में विभाजित होती हैं। शुक्ल पक्ष की आखिरी तिथि को पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या कहलाती है। तिथि के नाम - प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या/पूर्णिमा।

नक्षत्र: आकाश मंडल में एक तारा समूह को नक्षत्र कहा जाता है। इसमें 27 नक्षत्र होते हैं और नौ ग्रहों को इन नक्षत्रों का स्वामित्व प्राप्त है। 27 नक्षत्रों के नाम- अश्विन नक्षत्र, भरणी नक्षत्र, कृत्तिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, घनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र।

वार: वार का आशय दिन से है। एक सप्ताह में सात वार होते हैं। ये सात वार ग्रहों के नाम से रखे गए हैं - सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार।

योग: नक्षत्र की भांति योग भी 27 प्रकार के होते हैं। सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहा जाता है। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम - विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातीपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति।

करण: एक तिथि में दो करण होते हैं। एक तिथि के पूर्वार्ध में और एक तिथि के उत्तरार्ध में। ऐसे कुल 11 करण होते हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं - बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं और भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
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आज नवरात्र के चौथे दिन पर मां कूष्माण्डा की करें पूजा अर्चना

 झूठा सच @ रायपुर :- आज चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है. आज मां कूष्माण्डा की विधि विधान से पूजा करते हैं. चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मां कूष्माण्डा की आराधना करते हैं. मां कूष्माण्डा शेर पर सवार रहती हैं. वे अपनी 8 भुजाओं में कमल, कमंडल, धनुष, बाण, चक्र, अमृत कलश, गदा और जप माला धारण करती हैं. कूष्माण्डा का मतलब कुम्हड़ा से है. देवी को कुम्हड़ा प्रिय है, इसलिए उनका नाम कूष्माण्डा पड़ा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी कूष्माण्डा ने ही पूरे ब्रह्मांड की रचना की है. मां दुर्गा ने अधर्म और अत्याचार के अंत के लिए कूष्माण्डा अवतार लिया था. मां कूष्माण्डा की कृपा से सभी संकटों और दुखों का अंत होता है एवं मनोकामनाएं पूरी होती हैं. आइए जानते हैं मां कूष्माण्डा की पूजा विधि, मुहूर्त, मंत्र और आरती के बारे में.


मां कूष्माण्डा का पूजा मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 04 अप्रैल दिन सोमवार को दोपहर 01:54 बजे से शुरु हुई है. इसका समापन आज 05 अप्रैल को 03:45 पीएम पर हो रहा है. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार मां कूष्माण्डा की पूजा की तिथि आज ही है.आज सुबह 08 बजे तक प्रीति योग है और उसके बाद आयुष्मान योग प्रारंभ हो रहा है, वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग सुबह 06:07 बजे से शाम 04:52 बजे तक है. ऐसे में आप मां कूष्माण्डा की पूजा सुबह से ही कर सकते हैं. इस दिन का शुभ समय 11:59 एएम से दोपहर 12:49 पीएम बजे तक है.

मां कूष्माण्डा की पूजा विधि
आज सुबह आप स्नान के बाद मां कूष्माण्डा का ध्यान करें. फिर उनको अक्षत्, लाल फूल, सिंदूर, कुमकुम, धूप, दीप, गंध, फल, सफेद कुम्हड़ा आदि अर्पित करें. फिर मां कूष्माण्डा को हलवा या दही का भोग लगाना चाहिए. इस दौरान मां कूष्माण्डा के पूजा मंत्रों का उच्चारण करते रहें. पूजा के अंत में गाय के घी का दीपक जलाएं और उससे मां कूष्माण्डा की आरती करें.

देवी कूष्माण्डा का पूजा मंत्र
ओम देवी कूष्माण्डायै नमः

बीज मंत्र
ऐं ह्री देव्यै नम:

प्रार्थना मंत्र
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

मां कूष्मांडा की आरती

कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली। शाकंबरी मां भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

मां के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो मां संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
 

 

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आज है गणगौर तीज, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज मनाई जाती हैं। इस बार गणगौर तीज का व्रत 4 अप्रैल 2022 दिन सोमवार यानि आज मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में गणगौर पूजा का विशेष महत्व माना गया है। इस पर्व में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा विधि विधान से की जाती है। यहां गण का अर्थ भगवान शिव एवं गौर का अर्थ माता पार्वती से है। खासतौर पर गणगौर तीज का व्रत मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाता है। गणगौर का पर्व चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होकर चैत्र शुक्ल की तृतीया को गणगौर तीज पर व्रत पूजन के साथ समापन होता है। इस तरह यह पर्व पूरे 16 दिनों तक चलता है। यह दिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु एवं सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं, जबकि विवाह योग्य कन्याएं मनपसंद वर या जीवनसाथी की कामना से गणगौर तीज व्रत रखती हैं। 

गणगौर तीज का महत्व पूजा सामग्री, विधि और शुभ मुहूर्त।

उदयातिथि के आधार पर गणगौर तीज व्रत 04 अप्रैल को रखा जाएगा।

गणगौर तीज 2022 तिथि

तृतीया तिथि आरंभ: 03 अप्रैल, रविवार दोपहर 12:38 बजे से

तृतीया तिथि समाप्त : 04 अप्रैल, सोमवार दोपहर 01:54 बजे पर

उदयातिथि के आधार पर गणगौर तीज व्रत 04 अप्रैल को रखा जाएगा।

गणगौर तीज 2022 पूजा मुहूर्त

शुभ मुहूर्त आरंभ: 04 अप्रैल, सोमवार, दोपहर 11:59 बजे से

शुभ मुहूर्त समाप्त: 04 अप्रैल, सोमवार,दोपहर 12:49 बजे पर

गणगौर तीज पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं|

गणगौर तीज पर बन रहे हैं शुभ योग

प्रीति योग आरंभ: 04 अप्रैल, सोमवार प्रातः 07:43 बजे से

प्रीति योग समाप्त:05 अप्रैल, मंगलवार, प्रातः 07:59 बजे तक

रवि योग आरंभ: 04 अप्रैल, सोमवार दोपहर 02:29 बजे से

रवि योग समाप्त: 05 अप्रैल, मंगलवार प्रातः 06:07 बजे पर

गणगौर तीज का महत्व

गणगौर तीज कुंवारी और विवाहित महिलाएं अपने सौभाग्य और अच्छे वर की कामना करने के लिए करती हैं। इस दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की आराधना की जाती है। 17 दिन चलने वाले इस पर्व का समापन चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर होता है। कुंवारी, विवाहित और नवविवाहित महिलाएं इस दिन नदी, तालाब या शुद्ध स्वच्छ शीतल सरोवर पर जाकर गीत गाती हैं और गणगौर को विसर्जित करती हैं। यह व्रत विवाहित महिलाएं पति से सात जन्मों का साथ, स्नेह, सम्मान और सौभाग्य पाने के लिए करती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता गवरजा यानि मां पार्वती होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं और आठ दिनों के बाद इसर जी यानि भगवान शिव उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं। इसलिए यह त्योहार होली की प्रतिपदा से आरंभ होता है। इस दिन से सुहागिन स्त्रियां और कुंवारी कन्याएं मिट्टी के शिव जी यानि गण एवं माता पार्वती यानि गौर बनाकर उनका प्रतिदिन पूजन करती हैं। इसके बाद चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर यानि शिव पार्वती की विदाई की जाती है। जिसे गणगौर तीज कहा जाता है।
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नवरात्रि के तीसरे दिन करे मां चंद्रघंटा की पूजा

इस समय चैत्र नवरात्रि चल रही हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में मां के नौ रूपों की पूजा- अर्चना की जाती है। आज नवरात्रि का तीसरा दिन है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां के तृतीय स्वरूप माता चंद्रघंटा की पूजा- अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता चंद्रघंटा को राक्षसों की वध करने वाला कहा जाता है। ऐसा माना जाता है मां ने अपने भक्तों के दुखों को दूर करने के लिए हाथों में त्रिशूल, तलवार और गदा रखा हुआ है। माता चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र बना हुआ है, जिस वजह से भक्त मां को चंद्रघंटा कहते हैं। आइए जानते हैं माता चंद्रघंटा की पूजा विधि, महत्व, मंत्र और कथा...

माता चंद्रघंटा की पूजा विधि...

नवरात्रि के तीसरे दिन विधि- विधान से मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप माता चंद्रघंटा की अराधना करनी चाहिए। मां की अराधना उं देवी चंद्रघंटायै नम: का जप करके की जाती है। माता चंद्रघंटा को सिंदूर, अक्षत, गंध, धूप, पुष्प अर्पित करें। आप मां को दूध से बनी हुई मिठाई का भोग भी लगा सकती हैं। नवरात्रि के हर दिन नियम से दुर्गा चालीस और दुर्गा आरती करें।
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नवरात्रि के पहले दिन होती है माता शैलपुत्री की पूजा, जानें पूजा की विधि

 आज से शुरू हो रहे हैं. नवरात्रों की शुरुआत कलश स्थापना और 9 दिन जलने वाली अखंड ज्योति से होती है. वहीं पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है. नवरात्रि का पहला दिन माता शैलपुत्री को समर्पित है. इस दिन न केवल हवन और पूजा होती है बल्कि शैलपुत्री से जुड़ी कथा सुननी भी जरूरी होती है. ऐसे में शैलपुत्री की कथा के बारे में पता होना जरूरी है. आज का हमारा लेख शैलपुत्री की कथा पर ही है. आज हम आपको अपने लेख के माध्यम से बताएंगे कि पूजा विधि और शैलपुत्री की कथा. पढ़ते हैं

माता शैलपुत्री की पूजा सामग्री

एक छोटी चुनरी, एक बड़ी चुनरी, कलावा, चौकी, कलश, कुमकुम, पान, सुपारी, कपूर, जौ, नारियल, लौंग.
बताशे, आम के पत्ते, केले का फल, देसी घी, धूप, दीपक, अगरबत्ती, माचिस.मिट्टी का बर्तन, माता का श्रृंगार का सामान, देवी की प्रतिमा या फोटो, फूलों की माला.गोबर का उपला, सूखे मेवा, मावे की मिठाई, लाल फूल, एक कटोरी गंगाजल और दुर्गा सप्तशती या दुर्गा स्तुति आदि का पाठ जरूर करें.

माता शैलपुत्री की कथा

माता शैलपुत्री का दूसरा नाम सती भी है. एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का निर्णय लिया इस यज्ञ में सभी देवी देवताओं को निमंत्रण भेजा लेकिन भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा. देवी सती को उम्मीद थी कि उनके पास भी निमंत्रण जरूर आएगा लेकिन निमंत्रण ना आने पर वे दुखी हो गईं. वह अपने पिता के यज्ञ में जाना चाहती थीं लेकिन भगवान शिव ने उन्हें साफ इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि जब कोई निमंत्रण नहीं आया है तो वहां जाना उचित नहीं. लेकिन जब सती ने ज्यादा बार आग्रह किया तो शिव को भी अनुमति देनी पड़ी. प्रजापति दक्ष के यज्ञ में पहुंचकर सती को अपमान महसूस हुआ. सब लोगों ने उनसे मुंह फेर लिया. केवल उनकी माता ने उन्हें स्नेह से गले लगाया. 

वहीं उनकी बहने उपहास उड़ा रही थीं और भोलेनाथ को भी तिरस्कृत कर रही थीं. खुद प्रजापति दक्ष भी माता सती का अपमान कर रहे थे. इस प्रकार का अपमान सहन ना करने पर सती अग्नि में कूद गई और अपने प्राण त्याग दिए. जैसे ही भगवान शिव को इस बात का पता चला कि क्रोधित हो गए और पूरे यज्ञ को ध्वस्त कर दिया. उसके बाद सती ने हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया. जहां उनका नाम शैलपुत्री पड़ा. कहते हैं मां शैलपुत्री काशी नगर वाराणसी में वास करती हैं | 
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आज है चैत्र नवरात्रि

हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र का महीना हिंदू नववर्ष का पहला महीना माना जाता है और इसी माह में मां दुर्गा की पूजा आराधना का त्योहार चैत्र नवरात्रि मनाया जाता है। हिंदू पंचाग के अनुसार कुल मिलाकर चार नवरात्रि मनाए जाते हैं। इनमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि के इस पावन पर्व पर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करने का विधान है। 

नवरात्रि के प्रथम दिन शैलपुत्री माता की पूजा होती है और इसी तरह क्रमशः ब्रह्मचारिणी माता, चंद्रघंटा माता, कूष्मांडा माता, स्कंदमाता, कात्यायनी माता, कालरात्रि माता, महागौरी माता और सिद्धिदात्री माता की पूजा की जाती है। इन नौ दिनों में भक्त श्रद्धा-भाव के साथ माता की कृपा पाने के लिए उपवास रखते हैं। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 02 अप्रैल, शनिवार यानी आज से शुरू हो चुके हैं। जिसका समापन 11 अप्रैल, सोमवार के दिन होगा। चैत्र के महीने में आने वाली नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि और शरद ऋतु में आने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है।

घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
चैत्र प्रतिपदा की तिथि पर घट स्थापना की जाती है। इस बार चैत्र नवरात्रि पर घट स्थापना का शुभ मुहूर्त 02 अप्रैल को प्रातः 06 बजकर 10 मिनट से 08 बजकर 29 मिनट तक है। ऐसे में चैत्र नवरात्रि पर घटस्थापना का शुभ मुहूर्त कुल 02 घंटे 18 मिनट तक रहेगा।

ऐसी रहेगी ग्रहों की स्थिति
चैत्र नवरात्रि में मकर राशि में शनि देव, मंगल के साथ रहेंगे, जो पराक्रम में वृद्धि करेंगे। शनिवार से नवरात्रि का प्रारंभ शनिदेव का स्वयं की राशि मकर में मंगल के साथ रहना निश्चित ही सिद्धि कारक है। इससे कार्य में सफलता, मनोकामना की पूर्ति, साधना में सिद्धि मिलेगी। चैत्र नवरात्रि के दौरान कुंभ राशि में गुरु, शुक्र के साथ रहेगा। मीन में सूर्य, बुध के साथ, मेष में चंद्रमा, वृषभ में राहु, वृश्चिक में केतु विराजमान रहेंगे।

बनेंगे ये शुभ योग
चैत्र नवरात्रि में रवि पुष्य नक्षत्र के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग नवरात्रि को स्वयं सिद्ध बनाएंगे। सर्वार्थ सिद्धि योग का संबंध लक्ष्मी से होता है। ऐसा माना जाता है कि इस योग में कार्य का आरंभ करने से कार्य की सिद्धि होती है। वहीं रवियोग समस्त दोषों को नष्ट करने वाला माना गया है। इसमें किया गया कार्य शीघ्र फलीभूत होता है।

चैत्र नवरात्रि का धार्मिक महत्व
चैत्र नवरात्रि नवसंवतसर की पहली नवरात्रि मानी जाती है। इसलिए इस नवरात्रि का धार्मिक महत्व है। ब्रह्म पुराण के अनुसार नवरात्रि के पहले दिन आद्यशक्ति प्रकट हुई थी। और ऐसी मान्यता है कि देवि के आदेश पर ब्रह्मा जी ने चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को सृष्टि के निर्माण की शुरुआत की थी। मत्स्य पुराण के अनुसार चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इसके बाद श्री विष्णु ने भगवान राम के रूप में अपना सातवां अवतार भी चैत्र नवरात्रि में ही लिया था। इसलिए चैत्र नवरात्रि का महत्व स्वतः ही बढ़ जाता है।

चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की होती है पूजा
हिंदू धर्म में नवरात्रि को बेहद पावन पर्व माना गया है चाहे वह गुप्त नवरात्रि हो, शारदीय नवरात्रि हो या फिर चैत्र नवरात्रि। इन नौ दिनों में मां के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। प्रथम दिन माता शैलपुत्री के पूजन से नवरात्रि का आरंभ होता है और फिर क्रमश: दूसरा दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरा चंद्रघंटा, चौथा कूष्मांडा, पांचवां स्कंदमाता, छठवां कात्यायनी, सातवां कालरात्रि, आठवां मां महागौरी और नौवां दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित होता है।

इस बार यह होगा मां दुर्गा का वाहन
धार्मिक मान्यताओं की मानें तो प्रत्येक नवरात्रि में मां दुर्गा अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर आती हैं और विदाई के वक्त माता रानी का वाहन अलग होता है। इस बार भी चैत्र नवरात्रि में देवी दुर्गा घोड़े पर सवार होकर पृथ्वी पर आएंगी। ऐसा इसलिए क्योंकि इस बार नवरात्रि शनिवार के दिन से आरंभ हो रही है और दिन के अनुसार ही देवी अपने वाहन का चयन करती हैं। नवरात्रि का अंतिम दिन सोमवार है और इसलिए इस बार जाते समय मां दुर्गा का वाहन भैंसा होगा।
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