हिंदुस्तान

मोदी 3.0 के 100 दिन : पीएम मोदी पर कांग्रेस का तीखा हमला

  • बेरोजगारी संकट पर कार्रवाई करने में नाकाम रही सरकार : जयराम रमेश
नई दिल्ली। कांग्रेस ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला। सबसे पुरानी पार्टी ने दावा किया कि कल अस्थिर और संकटों से घिरी मोदी सरकार के 100 दिन पूरे हो गए। कई यू-टर्न और घोटालों के बीच यह एक बार फिर भारत में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी संकट को लेकर कुछ भी करने में नाकाम रही। 
कांग्रेस के संचार प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि नॉन बायोलॉजिकल पीएम और उनके तेजतर्रार अर्थशास्त्रियों ने लगातार जॉबलेस ग्रोथ के विचार पर हमला किया है, लेकिन 2014 के बाद से जो हकीकत देखी गई है, वह शायद इससे कहीं ज्यादा भयावह है वो है-रोजगार में कटौती।
उन्होंने कहा, 'इस अस्थिर और संकटों से घिरी सरकार के सौ दिन पूरे हो गए। कई यू-टर्न और कई घोटालों के बीच यह एक बार फिर भारत में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी संकट को लेकर कुछ भी करने में विफल रही है। बेरोजगारी एक ऐसा मुद्दा है जिसकी भयावहता को लेकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कम से कम पिछले पांच वर्षों से लगातार आवाज उठा रही है।'
उन्होंने आगे कहा कि इस संकट को सरकार ने खुद पैदा किया है। तुगलकी नोटबंदी के कारण रोजगार सृजन करने वाले एमएसएमई के खत्म होने, जल्दबाजी में लागू जीएसटी, बिना तैयारी के लगाए गए कोविड-19 लॉकडाउन और चीन से बढ़ते आयात के कारण बेरोजगारी ने निश्चित रूप से भयावह रूप धारण कर लिया है। बाकी बची कसर चुनिंदा बड़े बिजनेस समूहों के पक्ष में नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री की आर्थिक नीतियों ने पूरी कर दी। भारत की बेरोजगारी दर आज 45 वर्षों में सबसे अधिक है, स्नातक युवाओं के बीच बेरोजगारी दर 42 फीसदी है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह संकट कितना भयावह है, इसे साबित करने के लिए आंकड़े भरे पड़े हैं। दो विनाशकारी ट्रेंड स्पष्ट रूप से सामने हैं। पहला रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करने में विफलता। हर साल लगभग 70-80 लाख युवा श्रम बल में शामिल होते हैं, लेकिन 2012 और 2019 के बीच, रोजगार में वृद्धि लगभग न के बराबर हुई - केवल 0.01 फीसदी। वहीं, इस रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि 2022 में शहरी युवाओं (17.2 फीसदी) के साथ-साथ ग्रामीण युवाओं (10.6 फीसदी) के बीच भी बेरोजगारी दर बहुत अधिक थी। शहरी क्षेत्रों में महिला बेरोजगारी दर 21.6 फीसदी के साथ काफी ज्यादा थी
जयराम रमेश ने आगे कहा कि सिटी ग्रुप की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि भारत को अपने युवाओं को रोजगार देने के लिए अगले 10 वर्षों तक हर साल 1.2 करोड़ नौकरियों के अवसर पैदा करने होंगे। यहां तक कि सात फीसदी जीडीपी ग्रोथ भी हमारे युवाओं के लिए पर्याप्त नौकरियां पैदा नहीं कर पाएंगी। नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री की सरकार में, देश ने औसतन केवल 5.8 फीसदी जीडीपी ग्रोथ हासिल की है। अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में मोदी सरकार का पूरी तरह से विफल होना बेरोजगारी संकट का मूल कारण है।
उन्होंने कहा कि दूसरा नियमित वेतन वाली औपचारिक नौकरियों का काम होना। कांग्रेस नेता ने कहा कि आईएलओ की इस रिपोर्ट से पता चलता है कि मोदी सरकार ने कम वेतन वाले अनौपचारिक क्षेत्र के रोजगार का प्रतिशत बढ़ा दिया है, जिनमें किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा नहीं होती है। 2019-22 तक औपचारिक रोज़गार 10.5 फीसदी से घटकर 9.7 फीसदी हो गया। इसके अलावा, भारत की केवल 21 फीसदी श्रम शक्ति के पास नियमित वेतन वाली नौकरी है, जो कि कोविड के पहले के समय से 24 फीसदी से कम है। कोविड के बाद की रिकवरी के-शेप्ड रही है, जिसमें एकमात्र लाभार्थी अरबपति वर्ग रहा है। इस बीच वेतनभोगी मध्यम वर्ग के लिए रास्ते बंद हो रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा, 'कई दशकों में पहली बार, नरेंद्र मोदी के कुप्रबंधन के कारण कृषि में श्रमिकों की वास्तविक संख्या बढ़ रही है। यह आर्थिक आधुनिकीकरण की मूल अवधारणा के ख़िलाफ़ है, जिससे दुनिया भर में हर विकसित देश गुजरा है। श्रमिक कारखानों से वापस खेतों की ओर जाने को मजबूर हैं - कुल रोजगार में कृषि की हिस्सेदारी 2019-22 से 42 फीसदी से बढ़कर 45.4 फीसदी हो गई है।'
जयराम रमेश ने पीएम मोदी पर हमला जारी रखा। कहा, 'भारत का दुर्भाग्य यह है कि नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री और उनकी सरकार इस वास्तविकता को स्वीकार ही नहीं कर रहे हैं। वे इसके बजाय तेजी से बढ़ते जॉब मार्केट का दावा कर रहे हैं। स्वघोषित परमात्मा के अवतार ने आरबीआई केएलईएमएस के आंकड़ों का इस्तेमाल करके दावा किया है कि अर्थव्यवस्था ने 80 मिलियन नौकरियां पैदा की है। लेकिन, इस बात के पर्याप्त सबूत सामने आए हैं कि यह आंकड़े बेरोजगारी का सही आकलन करने के लिए ठीक नहीं है। क्योंकि रोजगार वृद्धि का जो दावा किया गया है उसमें एक बड़ा हिस्सा महिलाओं द्वारा किए जाने वाले अवैतनिक घरेलू काम को रोजगार के रूप में दर्ज कर दिया गया है।'
उन्होंने कहा कि दूसरी बात वास्तव में, औपचारिक क्षेत्र की नियमित वेतन वाली नौकरियों के कम होने का स्वाभाविक नतीजा कम वेतन वाली, अनौपचारिक नौकरियों में वृद्धि है आर्थिक उपहास की यह बात आरबीआई केएलईएमएस में स्पष्ट रूप से सामने आई है, जो एक खतरे की घंटी है, लेकिन सरकार बेशर्मी से इसका प्रचार कर रही है। 

 

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