धर्म समाज

शनि देव की नजर से कोई बच नहीं पाता

शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित है. वो रंक से राजा हो जाता है और जिस पर शनि देव का क्रोध बरसता है उन्हें अपने जीवन में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस दिन शनिदेव की पूजा करने और सरसों का तेल चढ़ाने से शनि देव प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर उनकी कृपा बरसती है. मान्यताओं के अनुसार, शनि देव अति क्रोधी स्वभाव के हैं. कहते हैं कि शनि देव प्रसन्न होते हैं वो रंक से राजा हो जाता है और जिस पर शनि देव का क्रोध बरसता है उन्हें अपने जीवन में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. शनिदेव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं. आइये आपको बताते हैं कैसे करें शनि देव की पूजा और पौराणिक कथा से जानते हैं उनकी पत्नी ने क्यों दिया उन्हें श्राप.
 
इस विधि से करें शनिदेव की पूजा
 
सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठें और नहा धोकर साफ कपड़े पहनकर तब पीपल के वृक्ष पर जल अर्पण करें. -सरसों के तेल का दीपक जलाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. इसलिए शनिवार के दिन शनिदेव के सामने सरसों के तेल का दीपक जरूर जलाएं. शनिवार के दिन सरसों का तेल गरीबों को दान करें. शनिदेव के नामों का उच्चारण करने से वह प्रसन्न होते हैं. जो लोग शनिवार के दिन शनिदेव के मंदिर जाकर आराधना नहीं कर सकते हैं ऐसे लोग घर पर ही शनिदेव के मंत्रों और शनि चालीसा का जाप कर सकते हैंशनिदेव को तेल के साथ ही तिल, काली उदड़ या कोई काली वस्तु भी भेंट करें. -इस दिन शनि मंदिर में शनिदेव के साथ ही हनुमान जी के दर्शन करना शुभ माना जाता है.
 
शनिदेव की पत्नी ने क्यों दिया था श्राप
 
ब्रह्मपुराण में वर्णित कथा के अनुसार, न्याय के देवता शनि भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे. वे सदैव कृष्ण भगवान की पूजा में व्यस्त रहते और उनके ध्यान में लीन हो जाते थे. युवा आवस्था में उनका विवाह चित्ररथ की कन्या से कर दिया गया था. उनकी पत्नी परम पतिव्रता, तेजस्वी और ज्ञानवान थी लेकिन शनिदेव शादी के बाद भी सारा दिन भगवान कृष्ण की आराधना में ही मग्न रहते थे. एक दिन चित्ररथ ऋतुकाल का स्नान करने के बाद पुत्र प्राप्ति के लिए शनिदेव के पास गई. इस समय भी शनिदेव भगवान कृष्ण के ध्यान में मग्न थे और उन्होंने अपनी पत्नी की ओर देखा तक नहीं इसे अपना अपमान समझकर पत्नी ने शनिदेव को श्राप दे दिया. शनिदेव की पत्नी ने उनको यह श्राप दिया कि वह जिसे भी नजऱ उठा कर देखेंगे वह नष्ट हो जाएगा. शनिदेव का जब ध्यान टूटा तो उन्होंने अपनी पत्नी को मनाया और उन्हें अपनी गलती का एहसास भी हुआ. शनिदेव ने अपनी पत्नी से क्षमा भी मांगी लेकिन शनिदेव की पत्नी के पास यह श्राप निष्फल करने की शक्ति नहीं थी. तब से शनिदेव अपना सिर नीचा करके चलते हैं.

 

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