जानकी जयंती 21 फरवरी को, जानिए...महत्व
13-Feb-2025 3:39:27 pm
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सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन जानकी जयंती को बेहद ही खास माना जाता है। इसे सीता अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी तिथि पर राजा जनक को सीता जी की प्राप्ति हुई थी और जनक ने देवी सीता को अपनी संतान के रूप में स्वीकार किया था।
जानकी जयंती के दिन भगवान श्रीराम के साथ माता सीता की पूजा और व्रत करना उत्तम माना जाता है मान्यता है कि ऐसा करने से इनकी कृपा प्राप्त होती हैं। तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि इस साल जानकी जयंती का त्योहार कब मनाया जाएगा, तो आइए जानते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार जानकी जयंती यानी फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ 20 फरवरी दिन गुरुवार को सुबह 9 बजकरा 58 मिनट पर होगा। वही इस तिथि का समापन 21 फरवरी दिन गुरुवार को सुबह 11 बजकर 57 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में जानकी जयंती का त्योहार 21 फरवरी दिन गुरुवार को देशभर में मनाया जाएगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जानकी जयंती के शुभ दिन पर सुबह उठकर स्नान आदि करें इसके बाद भगवान राम और माता सीता की विधिवत पूजा करें और दिनभर उपवास भी रखें। हो सके तो इस दिन राम सीता के मंदिर जाकर दर्शन करें मान्यता है कि ऐसा करने से सीता राम की कृपा प्राप्त होती है।
जानकी स्तोत्र-
नीलनीरज-दलायतेक्षणां लक्ष्मणाग्रज-भुजावलम्बिनीम्।
शुद्धिमिद्धदहने प्रदित्सतीं भावये मनसि रामवल्लभाम्।
रामपाद-विनिवेशितेक्षणामङ्ग-कान्तिपरिभूत-हाटकाम्।
ताटकारि-परुषोक्ति-विक्लवां भावये मनसि रामवल्लभाम्।।
कुन्तलाकुल-कपोलमाननं, राहुवक्त्रग-सुधाकरद्युतिम्।
वाससा पिदधतीं हियाकुलां भावये मनसि रामवल्लभाम्।।
कायवाङ्मनसगं यदि व्यधां स्वप्नजागृतिषु राघवेतरम्।
तद्दहाङ्गमिति पावकं यतीं भावये मनसि रामवल्लभाम्।।
इन्द्ररुद्र-धनदाम्बुपालकै: सद्विमान-गणमास्थितैर्दिवि।
पुष्पवर्ष-मनुसंस्तुताङ्घ्रिकां भावये मनसि रामवल्लभाम्।।
संचयैर्दिविषदां विमानगैर्विस्मयाकुल-मनोऽभिवीक्षिताम्।
तेजसा पिदधतीं सदा दिशो भावये मनसि रामवल्लभाम्।।
।।इति जानकीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
जानकी स्तुति-
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।।1।।
दारिद्र्यरणसंहर्त्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम्।
विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम्।।2।।
भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम्।
पौलस्त्यैश्वर्यसंहत्रीं भक्ताभीष्टां सरस्वतीम्।।3।।
पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम्।
अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम्।।4।।
आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम्।
प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम्।।5।।
नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम्।
नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम्।।6।।
पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्ष:स्थलालयाम्।
नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम्।।7।।
आह्लादरूपिणीं सिद्धिं शिवां शिवकरीं सतीम्।
नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम्।
सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा।।8।।