स्कंद षष्ठी पर जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, पूरी होगी हर मनोकामना
04-Mar-2025 3:24:46 pm
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हिंदू धर्म में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि बहुत विशेष मानी गई है. हर महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि स्कंद षष्ठी के रूप में मनाई जाती है. ये दिन भगवान शिव के बड़े बेटे भगवान कार्तिकेय को समर्पित किया गया है. हर माह शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा और व्रत किया जाता है. भगवान कार्तिकेय की पूजा और व्रत करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास बना रहता है|
हिंदू मान्यताओं के अनुसार हिंदू मान्यताओं के अनुसार, स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तीकेय की पूजा और व्रत करने से भी प्रकार से रोगों से छुटकारा मिलता है. दुख दूर होते हैं. इस दिन पूजा के दौरान स्कंद षष्ठी की व्रत कथा भी अवश्य पढ़नी चाहिए. इस दिन पूजा के समय स्कंद षष्ठी की व्रत कथा पढ़ने से जीवन में सफलता प्राप्त होती है. साथ ही हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है.वहीं अगर इस दिन स्कंद षष्ठी की व्रत कथा नहीं पढ़ी जाती तो पूजा और व्रत का फल प्राप्त नहीं होताकल है स्कंद षष्ठी का व्रत? द्रिक पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि की शुरुआत कल यानी मंगलवार 4 मार्च को दोपहर 3 बजकर 16 मिनट पर हो रही है. वहीं इस तिथि का समापन 5 मार्च बुधवार को दोपहर 12 बजकर 51 मिनट पर हो जाएगा. ऐसे में फाल्गुन माह की षष्ठी तिथि का व्रत कल ही रखा जाएगा|
स्कंद षष्ठी व्रत कथा पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सती राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कुदकर भस्म हो गईं. इसके बाद भगवान शिव तपस्या में लीन हो गए. उनके तपस्या में लीन हो जाने के कारण सृष्टि में शक्तियां ही नहीं रह गईं. इस परिस्थिति का लाभ दैत्य तारकासुर ने उठाया. उसने सृष्टि को शक्तिहीन देखकर देवलोक में धावा बोलकर देवताओं को पराजित कर दिया. इसके बाद उसने देवलोक में आतंक मचा दिया. इतना ही नहीं उसने धरती लोक में भी अन्याय और अत्याचार की सारी सिमाएं पार कर दीं. फिर देवताओं ने तारकासुर के अंत के लिए ब्रह्माजी से प्रार्थना की. इस पर ब्रह्मा जी ने देवताओं को बताया कि भगवान शिव का पुत्र ही तारकासुर का संहार कर सकेगा|
इसके बाद इंद्र समेत सभी देवाताओं ने भगवान शिव को समाधि से जगाने की कोशिश की. इसके लिए उन्होंने कामदेव की सहायता ली. कामदेव ने अपने वाणों से भगवान शिव पर फूल फेंके, जिसकी वजह से भगावन शिव की तपस्या भंग हो गई. इसके बाद क्रोध में आकर भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख खोल दी और कामदेव भस्म हो गए. हालांकि तपस्या भंग होने की वजह से भगवान शिव ने माता पार्वती की ओर खुद को आकर्षित पाया. फिर इंद्र और अन्य देवताओं के समस्या बताने के बाद भगवान शिव माता पार्वती के अनुराग की परीक्षा ली|
माता पार्वती की तपस्या के बाद शुभ घड़ी में भोलेनाथ के साथ उनका विवाह हुआ. दोनों के विवाह के बाद भगवान कार्तिकेय जन्म हुआ. मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय का जन्म शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को ही हुआ था. इसके बाद सही समय पर भगवान कार्तिकेय तारकासुर का वध किया. फिर देवताओं को उनका स्थान प्राप्त हुआ|