शनि दोष से छुटकारा पाने के उपाय जानिए
11-Dec-2021 4:26:33 pm
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शनिवार का दिन शनिदेव के पूजन और उनकी कृपा पाने के लिए खास होता है. कहते हैं कि शनि देवकी कुदृष्टि से बचने के लिए शनिवार के दिन विशेष पूजा-अर्चना करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है. उन्हीं के नाम पर इस दिन का नाम शनिवार रखा गया है. बता दें कि शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है. कहते हैं कि हमारे अच्छे-बुरे कर्मों का फल शनिदेव देते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार एक बार उनकी पत्नी ने शनिदेव को श्राप दे दिया था, कि वे जिसकी ओर भी अपनी नजर डालेंगे, उसका नाश हो जाएगा. इसलिए जब किसी व्यक्ति पर शनिदेव की वक्र दृष्टि पड़ती है, तो उसे दुष्प्रभाव सहना ही पड़ता है.कहते हैं कि जिन लोगों पर शनि की साढ़े साती या ढैय्या आदि महादशा चल रही होती है, उन्हें शनि पूजन करना चाहिए. शनिवार के दिन शनि मंदिर में या पीपल के पेड़ के नीच सरसों के तेल का दीया जलाएं. इसमें काले तिल डाल दें और मंदिर में बैठ कर शनि स्तुति का पाठ करें. ऐसा करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है.
शनिदेव की स्तुति
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: ।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: ।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: ।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥9॥
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥