धर्म समाज

शिव-पार्वती के प्रेम को समर्पित हरितालिका तीज की व्रत

हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का व्रत रखा जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और परिवार की कुशलता के लिए व्रत रखती हैं। इस बार यह पावन पर्व 11 अगस्त, बुधवार को पड़ेगा। यह त्योहार उत्तर भारत के अनेक प्रांतों में बहुत जोश और उमंग के साथ मनाया जाता है। सावन का महीना आते ही आसमान काले मेघों से आच्छादित हो जाता है और वर्षा की फुहारें पड़ते ही प्रकृति नवरूप को प्राप्त करती है, इस समय पृथ्वी चारों तरफ हरियाली की चादर ओढ़ लेती है। तीज का सम्पूर्ण रंग प्रकृति के रंग में मिलकर अपनी अनुपम छठा बिखेरता है प्रकृति भी अपने सौंदर्य में लिपटी मानो इसी समय का इंतजार कर रही होती है


अर्धांगनी रूप में स्वीकार किया

मान्यता है कि पूरे श्रावण मास में शिव-पार्वती पृथ्वी पर निवास करते हैं और अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी, इससे प्रसन्न होकर शिव ने सावन महीने के शुक्ल पक्ष की हरियाली तीज के दिन ही मां पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया था। अखंड सौभाग्य का प्रतीक यह त्योहार भारतीय परंपरा में पति-पत्नी के प्रेम को और प्रगाढ़ बनाने तथा आपस में श्रद्धा और विश्वास कायम रखने का त्योहार है इसके आलावा यह पर्व पति-पत्नी को एक दूसरे के लिए त्याग करने का संदेश भी देता है। इस दिन कुंवारी कन्याएं व्रत रखकर अपने लिए शिव जैसे वर की कामना करती हैं वहीं विवाहित महिलाएं अपने सुहाग को भगवान शिव तथा पार्वती से अक्षुण बनाये रखने की कामना करती हैं।

सोलह श्रृंगार का है महत्व

हरियाली तीज में हरी चूड़ियां, हरे वस्त्र पहनने, सोलह शृंगार करने और मेहंदी रचाने का विशेष महत्व है। इस त्योहार पर विवाह के पश्चात पहला सावन आने पर नवविवाहित लड़कियों को ससुराल से पीहर बुला लिया जाता है। लोकमान्य परंपरा के अनुसार नव विवाहिता लड़की के ससुराल से इस त्योहार पर सिंजारा भेजा जाता है जिसमेंवस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी, घेवर-फैनी और मिठाई इत्यादि सामान भेजा जाता है। इस दिन महिलाएं मिट्टी या बालू से मां पार्वती और शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा करती हैं। पूजन में सुहाग की सभी सामग्री को एकत्रित कर थाली में सजाकर माता पार्वती को चढ़ाना चाहिए। नैवेध में भगवान को खीर पूरी या हलुआ और मालपुए से भोग लगाकर प्रसन्न करें। तत्पश्चात भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाकर तीज माता की कथा सुननी या पढ़नी चाहिए। पूजा के बाद इन मूर्तियों को नदी या किसी पवित्र जलाशय में प्रवाहित कर दिया जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव और देवी पार्वती ने इस तिथि को सुहागन स्त्रियों के लिए सौभाग्य का दिन होने का वरदान दिया है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो सुहागन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं,उनको सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

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