धर्म समाज

जानिए चैत्र नवरात्रि कब से होगें प्रारंभ?

इन दिनों चैत्र का महीना चल रहा है। हिंदू धर्म में चैत्र महीने का खास महत्व होता है। चैत्र का महीना हिंदी कैलेंडर का पहला महीना होता है। इसी महीने में बहुत सारे व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। चैत्र के महीने में ही चैत्र नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि के दौरान 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा आराधना की जाती है। चैत्र प्रतिपदा तिथि को घटस्थापना की जाती है और अष्टमी व नवमी तिथि पर कन्या पूजन के बाद व्रत का पारण किया जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार साल भर में कुल मिलाकर 4 नवरात्रि आती हैं जिसमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। इस बार चैत्र नवरात्रि का त्योहार 2 अप्रैल से शुरु होकर 11 अप्रैल तक रहेगी। मां दुर्गा के भक्त चैत्र नवरात्रि के 9 दिनों तक उपवास रखते हुए पूजा और साधना करते हैं। इस बार घोड़े पर सवार होकर आएंगी माता धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक नवरात्रि पर मां दुर्गा पृथ्वी पर अलग-अलग वाहनों से आती हैं जिसका विशेष महत्व होता है। दिन के अनुसार मां दुर्गा का वाहन तय होता है। इस बार चैत्र नवरात्रि शनिवार से शुरू हो रहे हैं ऐसे देवी दुर्गा घोड़े पर सवार होकर पृथ्वी पर आएंगी।

चैत्र घटस्थापना का शुभ मुहूर्त इस साल चैत्र घटस्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 2 अप्रैल 2022, शनिवार की सुबह 06:22 बजे से 08:31 मिनट तक रहेगा। यानी कि कुल अवधि 02 घण्टे 09 मिनट की रहेगी। इसके अलावा घटस्थापना को अभिजित मुहूर्त दोपहर 12:08 बजे से 12:57 बजे तक रहेगा। वहीं प्रतिपदा तिथि 1 अप्रैल 2022 को सुबह 11:53 बजे से शुरू होगी और 2 अप्रैल 2022 को सुबह 11:58 पर खत्‍म होगी।
 
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ : अप्रैल 01, 2022 को सुबह 11 बजकर 54 से शुरू

प्रतिपदा तिथि समाप्त : अप्रैल 02, 2022 को सुबह 11 बजकर 57 पर समाप्त चैत्र घटस्थापना शनिवार, अप्रैल 2, 2022 को घटस्थापना शुभ मुहूर्त: सुबह 6 बजकर 22 मिनट से 8 बजकर 31 मिनट तक घटस्थापना का अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:08 बजे से 12:57 बजे तक रहेगा। घटस्थापना विधि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन सुबह उठकर स्नान आदि करके साफ वस्त्र पहनें। फिर मंदिर की साफ-सफाई करके गंगाजल छिड़कें। इसके बाद लाल कपड़ा बिछाकर उस पर थोड़े चावल रखें। मिट्टी के एक पात्र में जौ बो दें और इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश में चारों ओर अशोक के पत्ते लगाएं और स्वास्तिक बनाएं। फिर इसमें साबुत सुपारी, सिक्का और अक्षत डालें।

इसके बाद एक नारियल पर चुनरी लपेटकर कलावा से बांधें और इस नारियल को कलश के ऊपर पर रखते हुए देवी दुर्गा का आहवाहन करें। फिर दीप जलाकर कलश की पूजा करें। ध्यान रखें कि कलश स्टील सा किसी अन्य अशुद्ध धातु का नहीं होना चाहिए। कलश के लिए सोना, चांदी, तांबा, पीतल के धातु के अलावा मिट्टी का घड़ा काफी शुभ माना गया है। घटस्थापना को लेकर मान्यता मान्यता है कलश स्थापना से घर में सुख- समृद्धि का वास होता है। क्योंकि सबसे पहले कलश की ही पूजा की जाती है और उसके बाद मां दुर्गा की आराधना शुरू होती है। दरअसल कशल के मुख पर भगवान विष्णु का वास होता है और कंठ में रुद्र मतलब भगवान शिव का और मूल में ब्रह्मा जी का वास होता है। इसलिए एक कलश की पूजा करने से त्रिदेव की पूजा हो जाती है।
 
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होलिका दहन आज, जानिए होलिका का शुभ मुहूर्त, नियम, पूजा विधि

होलिका दहन आज 17 मार्च 2022 को किया जाएगा. इस बार होलिका दहन की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त केवल 09:20 बजे से 10:31 बजे तक रहेगा. इस 1 घंटे 10 मिनट के समय में ही विधि-विधान से होलिका दहन करना शुभ रहेगा. साथ ही यह भी सावधानी बरतनी होगी कि इस दौरान कोई गलती न करें. यदि होलिका दहन करते समय कुछ सावधानियां न बरतीं जाएं तो यह पूरी जिंदगी का दुख दे सकती हैं.


होलिका दहन में जरूर पालन करें ये नियम

  • होलिका दहन सही मुहूर्त पर ही करें. अशुभ मुहूर्त में होलिका दहन करना अशुभ फल देता है. होलिका दहन हमेशा भद्रा रहित समय में करना चाहिए.
  •  होलिका दहन के स्थान को पहले गंगाजल से शुद्ध करें और फिर डंडा बीच में रखकर उसके चारों ओर सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास रखें. होलिका की मूर्ति रखें.
  • विधि-विधान से पूजा करें. पूजा में दीपक, धूप, एक माला, गन्ना, चावल, काले तिल, कच्चा सूत, जल और पापड़ चढ़ाएं. इसके अलावा चावल, चने की झाड़ और गेंहू की बालियां भी डालें
  •  पूजा में हनुमान जी और शीतला माता को प्रणाम करें. इसके बाद अग्नि जलाएं और होलिका दहन करें.
  • होलिका दहन की अगली सुबह यानी होली खेलने वाले दिन होलिका दहन के स्थान पर एक लोटा ठंडा पानी जरूर डालें.

      बच्‍चों की बेहतरी के लिए कर लें ये उपाय

  • बच्‍चों की बेहतरी के लिए उनको बुरी नजर से बचाने के लिहाज से भी होलिका दहन बहुत खास है. इस दिन होलिका दहन में नारियल गोला, सुपारी और सिक्के डालने बच्‍चों का दिमाग तेज होता है. उनके मन में गलत विचार नहीं आते हैं. साथ ही वे बुरी आदतों से दूर रहते हैं. यह उपाय बच्चे को जीवन में खूब सफलता दिलाता है और धनवान बनाता है | 
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होलिका दहन पर जरूर करें ये उपाय, बदल जाएगी किस्मत

होली से एक दिन पहले आज देशभर में होलिका दहन का पर्व मनाया जाएगा। धर्म शास्त्र में होलिका दहन का खास महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक होलिका दहन सुख-समृद्धि और धन-वैभव के लिहाज से बेहद खास होता है। मान्यता के मुताबिक होलिका दहन के बाद परिक्रमा करते हुए अगर अपनी इच्छा कह दी जाए तो वो सच हो जाती है। ऐसा भी माना जाता है कि होलिका दहन के दिन सफेद खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए। होलिका की बची हुई अग्नि और भस्म को अगले दिन सुबह अपने घर ले जाने से सभी नकारात्मक उर्जा दूर होती है।

ऐसे करें होलिका दहन

होलिका दहन के स्थान को जल साफ करें, अगर संभव हो तो गंगाजल से शुद्ध करें। होलिका डंडा बीच में रखें, यह डंडा भक्त प्रहलाद का प्रतीक होता है। इसके बाद डंडे के चारों तरफ पहले चन्दन लकड़ी डालें। इसके बाद सामान्य लकड़ियां, उपले और घास चढ़ाएं। इसके बाद कपूर से अग्नि प्रज्वलित करें। होलिका दहन में पहले श्री गणेश हनुमान जी और शीतला माता भैरव जी की पूजा करें। अग्नि में रोली, पुष्प, चावल, साबूत मूंग, हरे चने, पापड़, नारियल आदि चीजें चढ़ाएं। इसके साथ ही मन्त्र -ॐ प्रह्लादये नमः को बोलते हुए परिक्रमा करें।

होलिका की अग्नि में अर्पित करें ये चीज

अच्छे स्वास्थ्य के लिए के लिए होलिका की अग्नि में काले तिल के दाने अर्पित करना चाहिए। बीमारी से मुक्ति के लिए होलिका की अग्नि में हरी इलाइची और कपूर अर्पित करें। धन लाभ के लिए लिका की अग्नि चन्दन की लकड़ी अर्पित करें। रोजगार के लिए होलिका की अग्नि में पीली सरसों अर्पित करें। विवाह और वैवाहिक समस्याओं के लिए हवन सामग्री अर्पित करें।

होलिका पूजन मंत्र
अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै: 
अतस्तां पूजयिष्यामि भूति भूति प्रदायिनीम।

नवविवाहित महिलाओं को जलती हुई होलिका नहीं देखनी चाहिए

मान्यता के मुताबिक नवविवाहित महिलाओं को जलती हुई होलिका बिल्कुल नहीं देखनी चाहिए। इसके पीछे की वजह ये मानी जाती है कि होलिका में एक पुराने साल की बुरी बलाओं को जलाया जाता है। इसका अर्थ ये भी माना जाता है कि आप पुराने साल के शरीर को जला रहे हैं। होलिका की आग को जलते हुए शरीर का प्रतीक माना जाता है, ऐसे में मान्यता है कि नवविवाहित कन्याओं को होलिका से उठती लपटों को नहीं देखना चाहिए। साथ ही ये भी मान्यता है कि गर्भवती महिलाओं को भी होलिका दहन करने नहीं देखना चाहिए।

होली से जुड़ी प्रचलित कहानी

होली पर्व से जुड़ी हुई अनेक कहानियां हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही भगवान मानने लगा था। उसने अपने राज्य में भगवान के नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से नाराज होकर हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग कभी भी नहीं छोड़ा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में जल नहीं सकती।

हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आदेश का पालन हुआ, परन्तु आग में बैठने पर होलिका तो आग में जलकर भस्म हो गई, परन्तु प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ।अधर्म पर धर्म की, नास्तिक पर आस्तिक की जीत के रूप में भी देखा जाता है। उसी दिन से प्रत्येक वर्ष ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में होलिका जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।
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होलिका दहन पर जरूर करें ये आसान उपाय

देश में होली और होलिका दहन की तैयारी जोरों पर है। कल यानी 17 मार्च को जहां होलिका दहन का पर्व मनाया जाएगा, वहीं 18 मार्च को रंगों का त्योहार होली खेली जाएगी। हिन्दू पंचांग के अनुसार, होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। वहीं इससे एक दिन पहले होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है। होलिका दहन के दिन लकड़ी की पूजा कर उसकी परिक्रमा की मान्याता है।
 
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक होलिका दहन के समय कुछ ऐसी चीजें डालने का प्रचलन है जिससे घर के संकट दूर होते हैं और परिवार में खुशियां आती हैं। मान्यता है कि होली और दीवाली ऐसे विशेष अवसर हैं जब हर प्रकार की साधनाएं, तांत्रिक क्रियाएं तथा छोटे छोटे उपाय भी सार्थक हो जाते हैं। आइये इस संबंध में ज्योतिर्विद् मदन गुप्ता सपाटू से जानते हैं कि होलिका दहन का क्या उपाय करने चाहिए जिससे घर में सुख, शांति और समृद्धि आए। घर में पैसों की कमी दूर हो। 
 
  • आपके घर, दूकान, प्रतिष्ठान को नजर लग गई हो या प्रतिद्वंदी ने कुछ करा दिया हो तो, होलिका दहन की सायं मुख्य द्वार की दहलीज पर लाल गुलाल छिड़कें, उस पर आटे का दोमुखी दिया थोड़ा सा सरसों का तेल डाल कर जलाएं। समस्याओं के निराकरण की प्रार्थना करें और दीपक ठंडा होने पर होलिका में डाल आएं। लाभ होगा।
  • कमल गटटे् की माला से ओम् महालक्ष्म्यै नमः का जाप करें। यही माला धारण कर के होलिका के निकट देसी घी का दीपक जला कर आर्थिक संपन्नता की प्रार्थना करें, शीघ्र लाभ होता है।
  • यदि कोई बहुत बीमार है या दवा नहीं लग रही तो एक मुट्ठी पीली सरसों, एक लौंग, काले तिल, एक छोटा टुकड़ा फिटकड़ी, एक सूखा नारियल लेकर उस पर 7 बार उल्टा घुमा के होलिका में दहन कर दें।
  • यदि कोई आत्मीय आपका कहना नहीं मानता या आपका शत्रु ही बन गया हो तो उसका नाम लेते हुए होलिका की रात, लाल चंदन की माला से इस मंत्र का जाप करें- ओम् कामदेवाय विद्महे पुष्पबाणाय धीमहि तन्नो अनंग प्रचोदयात!!
  • व्यापार वृद्धि तथा नजर उतारने के लिए, दूकान, आफिस या कार्यालय में सायंकाल एक सफेद कपड़े पर गेहूं और सरसों की 7-7 ढेरियां रखें। इन पर एक एक काली मिर्च रखें। 7 निम्बू के 2-2 टुकड़े कर के इन ढेरियों पर रखें। निम्न मंत्र का 7 बार पाठ करें- ओम् कपालिनी स्वाहा! पाठ समाप्ति पर इस सारी सामग्री की पोटली बनाकर लाल मौली से गांठ लगाकर बांध लें और दूकान या घर में एक सिरे से आरंभ कर के चारों कोनों पर घुमा कर बाहर ले आएं। इस पोटली को होलिका में डाल दें।
  • दूकान, आफिस, फैक्ट्री या मकान में अक्सर होने वाली या अचानक चोरी या नुक्सान, के बचाव हेतु- सूखा नारियल और तांबे का पैसा घर या दूकान में सात बार चारों कोनों में घुमा कर होलिका में डालें
  • धनवृद्धि हेतु होलिका में यह मंत्र 'ओम् श्रीं हृीं श्रीं महालक्ष्मय नमः' 108 बार पढ़ते जाएं और शक्कर की आहुति देते जाएं।
  • कार्यसिद्धि के लिए, खोपे के दो आधे-आधे कटोरे की शक्ल में टुकड़े कर लें। इस में कपूर, काले तिल, बर्फी, सिंदूर, हरी इलायची, लौंग रख के इस मंत्र की एक माला करें- ओम् हृीं क्लीं फट् स्वाहा! सामग्री को काले कपड़े में बांध कर होलिका में 7 परिक्रमा करके अर्पित कर दें।
  • दांपत्य जीवन में मिठास लाने के लिए रुई की 108 बत्तियां देसी घी में भिगो के होलिका में संबंध सुधार की अनुनय सहित परिक्रमा करते हुए एक-एक करके डालें। यह उपाय माता-पिता अपने बच्चों बर-वधु की फोटो पर घुमा कर भी कर सकते हैं।
  • यदि आपको लगता है कि किसी ने आपके उपर तांत्रिक अभिचार किया हुआ है जिसके कारण आपकी प्रगति ठप्प हो गई है तो देसी घी में भीगे दो लौंग ,एक बताशा,एक पान का पत्ता होलिका दहन में अर्पित करें। दूसरे दिन वहां की राख लेकर शरीर पर मलें और नहा लें। तांत्रिक अभिचार दूर हो जाएगा।
  • यदि आपको लगता है कि बच्चे को किसी की नजर लग गई है तो देसी घी में भीगे पांच लौंग, एक बताशा,एक पान का पत्ता होलिका दहन में अर्पित करें। दूसरे दिन वहां की राख ला के ताबीज में भर के बच्चे को पहनाएं।
  • यदि आपके घर को बुरी नजर लग गई है उसे उतारने का यह स्वर्णिम अवसर है। देसी घी में भीगे दो लौंग, एक बताशा, मिश्री ,एक पान का पत्ता होलिका दहन में अर्पित करें। दूसरे दिन वहां की राख लेकर लाल कपड़े में बांध के घर में रखें।
  • यदि कोई आपकी धन वापसी में बेईमानी कर रहा है और आप मुकदमे में नहीं पड़ना चाहते हैं तो होलिका दहन स्थल पर धन न लौटाने वाले का नाम जमीन पर अनार की लकड़ी से त्रिकोण के अन्दर लिखें और उस पर हरा गुलाल छिड़क दें। होलिका माता से धन वापसी की प्रार्थना करें। अगले दिन वहां से राख उठा के जल में उस व्यक्ति का नाम लेते हुए प्रवाहित कर दें।
  • यदि सरकार या व्यक्ति विशेष से बाधा है तो होलिका में उल्टे चक्कर लगाते हुए आक की जड़ के 7 टुकड़े, विरोधी का नाम लेते हुए डालें।
  • यदि व्यापार में लगातार घाटा या आर्थिक हानि हो रही है तो होलिका दहन की सायं दूकान या मकान के मुख्य द्वार की चौखट पर गुलाल छिड़कें, उस पर आटे का बना चार मुखी दीपक जलाएं। उस दीपक को जलती होलिका में डाल आएं।
  • गंभीर रोग यदि मेडिकल उपचार से भी ठीक नहीं हो रहा तो देसी घी में भीगे दो लौंग, एक बताशा, मिश्री, एक पान का पत्ता होलिका दहन में अर्पित करें। दाएं हाथ में 4 गोमती चक्र लेके रोग मुक्ति की प्रार्थना करें। गोमती चक्र रोगी की पलंग के चारों पायों में चांदी की तार से बांध दें। या फिर गोमती चक्र पीड़ित के उपर से 21 बार विपरीत दिशा में घुमाएं और होलिका में फेंक दें।या दक्षिण दिशा में फेंकें। या दो लौंग, काले तिल, सरसों, नारियल 21 बार उसार के अग्नि में डालें।
  • यदि पति या पत्नि किसी के चंगुल मे हैं तो होली की 7 परिक्रमा करते हुए औरत या उस पुरुष का नाम लें 7 गोमती चक्र डालते जाएं।
  • यदि राज्यप्रकोप हो तो तेजफल और गेहूं की एक मुट्ठी होलिका में डालें ।
  • किसी प्रकार का विवाद, दोस्तों से मनमुटाव हो तो एक मुट्ठी चावल और 7 फूटी कौड़ियां होलिका में भस्मित करें
  • किसी प्रकार का भाइयों से मनमुटाव या भूमि विवाद हो तो 11 नीम की पत्तियां और लाल चंदन, होलिका दहन में अर्पित करें।
  • गले या वाणी या त्वचा संबंधी रोगों के लिए हरी मूंग की एक मुट्ठी डालें।
  • पिता या किसी बुजुर्ग से विवाद समाप्ति हेतु, हल्दी की 7 गांठें और एक मुटठी चने की दाल डालें
  • खांसी, अस्थ्मा से पीड़ित व्यक्ति के उपर से सात बार उल्टा घुमा के 48 बादाम होलिका में समर्पित करें।
  •  पु़त्र या पुत्री से परेशानी हो या वह कहने में न हो तो सूखे प्याज लहसुन और हरा नींबू डालें।
  • धन न टिकता हो तो होली के दिन 5 कौड़ियां, लाल कपड़े में बांध कर तिजोरी, केश बॉक्स में रखें।
ये अनुभूत पारंपरिक तथा आंचलिक उपाय हैं जिन्हें सदियों से हमारे देश में प्रयोग कर लाभ उठाया जा रहा है। आप भी आजमा सकते हैं।
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आमलकी एकादशी आज, इन बातों का रखें विशेष ध्यान

हिंदी कैलेंडर के अनुसार साल भर में 24 एकादशी व्रत होते हैं। यानी हर माह में दो एकादशी तिथि पड़ती है। वहीं फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो हिंदू धर्म के अनुसार सभी एकादशियों का काफी महत्व माना गया है, लेकिन इन सब में आमलकी एकादशी को सर्वोत्तम स्थान पर रखा गया है। अमालकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। आमलकी एकादशी को रंगभरी एकदशी भी कहते हैं। यह अकेली ऐसी एकादशी है जिसका भगवान विष्णु के अलावा भगवान शंकर से भी संबंध है। रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की विशेष पूजा बाबा विश्वानाथ की नगरी वाराणसी में होती है। रंगभरी एकादशी के पावन पर्व पर भगवान शिव के गण उनपर और जनता पर जमकर अबीर-गुलाल उड़ाते हैं। आंवले के पूजन के कारण इस एकादशी को आंवला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का भी विधान है। इस बार अमालकी एकादशी आज यानी 14 मार्च, सोमवार के दिन पड़ रही है। यदि आप आमलकी एकादशी व्रत रखते हैं, तो आपको कुछ नियमों का पालन करना होगा क्योंकि यह अन्य एकादशी व्रतों से थोड़ा सा भिन्न है।

 आमलकी एकादशी व्रत के महत्वपूर्ण नियमों के बारे में।

  • आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी की पूजा करनी चाहिए।
  • आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी की पूजा करनी चाहिए, यदि संभव न हों तो श्री विष्णु की पूजा कर सकते हैं।
  • आमलकी एकादशी की पूजा के समय आंवले का भी भोग विष्णु जी को अवश्य लगाएं।
  • मान्यता है कि भगवान विष्णु को आंवला अतिप्रिय है इसलिए आमलकी एकादशी की पूजा के समय आंवले का भी भोग विष्णु जी को अवश्य लगाएं।
  • पूजा के समय आमलकी एकादशी व्रत कथा का पाठ या श्रवण जरुर करना चाहिए। ऐसा करने से साधक की सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
  • आमलकी एकादशी के दिन मन, वचन और कर्म से व्रत रखें।
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आज है रंगभरी एकादशी

आज फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी मनाई जा रही है। एकादशी तिथि पर भगवान श्री हरि विष्णु की पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी, आंवला एकादशी और आमलका एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी मनाई जाती है। रंगभरी एकदशी अकेली ऐसी एकादशी है जिसका भगवान विष्णु के अलावा भगवान शंकर से भी संबंध है। रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की विशेष पूजा बाबा विश्वानाथ की नगरी वाराणसी में होती है। रंगभरी एकादशी के पावन पर्व पर भगवान शिव के गण उनपर और जनता पर जमकर अबीर-गुलाल उड़ाते हैं। रंगभरी एकादशी के दिन से ही वाराणसी में रंगों उत्सव का आगाज होता है जो लगातार 6 दिनों तक चलता है। आइए जानते हैं रंगभरी एकादशी तिथि, पूजा मुहूर्त एवं महत्व के साथ भगवान शिव से इसके संबंध के बारे में।

रंगभरी एकादशी तिथि और मुहूर्त

  • एकादशी तिथि आरंभ- 13 मार्च, रविवार प्रातः 10: 21 मिनट पर
  • एकादशी तिथि समाप्त- 14 मार्च, सोमवार दोपहर 12:05 मिनट पर
  • रंगभरी एकादशी का शुभ मुहूर्त आरंभ- 14 मार्च, दोपहर 12: 07 मिनट से
  • रंगभरी एकादशी का शुभ मुहूर्त समाप्त-14 मार्च, दोपहर 12: 54 मिनट तक

रंगभरी एकादशी का महत्व

रंगभरी एकादशी का विशेष महत्व है। इस एकादशी का संबंध भगवान शंकर और माता पार्वती से भी है। कहते हैं कि इस दिन भगवान शिव पहली बार माता पार्वती को काशी में लेकर आए थे। कहते हैं जब बाबा विश्वनाथ माता गौरी को पहली बार गौना कराकर काशी लाए थे तब उनका स्वागत स्वागत रंग, गुलाल से हुआ था। यही कारण है कि इस वजह से हर साल काशी में रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ और माता गौरा का धूमधाम से गौना कराया जाता है। इस दिन बाबा विश्वनाथ और माता पार्वती की पूरे नगर में सवारी निकाली जाती है और उनका स्वागत लाल गुलाल और फूलों से होता है। रंगभरी एकादशी को काशी विश्वनाथ मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन होता है।
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शनिवार को न करें ये काम,बनी रहेगी शनिदेव की कृपा

आज साल 2022 के मार्च महीने का दूसरा और फाल्गून महीने का चौथा शनिवार है। मान्यता के मुताबिक शनिवार का दिन शनिदेव का होता है। शास्त्रों में शनिदेव को न्याय का देवता कहा गया है। नाराज होने से राजा को रंक बना देते हैं तो खुश होने पर भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। शनिदेव को खुश करना आसान नहीं हैं। लेकिन सच्ची निष्ठा और पवित्र ह्रदय से किए गए काम से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।

शनिदेव की नियमानुसार पूजा और व्रत करने से शनिदेव की कृपा होती है और सारे दुख खत्म हो जाते हैं। वहीं अगर शनिदेव नाराज हो जाते हैं तो मनुष्य पर कई तरह के संकट आते हैं। बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका बना हुआ काम बिगड़ जाता है।

खासकर शनिवार को तो कुछ न कुछ नुकसान जरूर होता है। अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा ही होता है, तो आपको शनि को शांत करने के लिए कुछ उपाय करने के साथ विशेष पूजन विधि से शनिदेव को प्रसन्न करने का प्रयास करना चाहिए।आज हम आपको कुछ ऐसे उपाय बता रहें हैं जिनसे आप शनिदेव को प्रसन्न कर सकते हैं। शनिदेव के प्रसन्न होने पर आपके जीवन के हर दुख का अंत हो जाएगा।
 
शनिवार के उपाय जिससे आप पर शनिदेव की कृपा बनी रहेग
 
- ब्रह्म मुहूर्त में पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और 'ऊं शं शनैश्चराय नम:' मंत्र का जाप करें। फिर पीपल को     छूकर प्रणाम करने के बाद सात परिक्रमा करें।
- शनिवार को तेल से बने पदार्थ भिखारी को खिलाने से शनि देव प्रसन्न होते हैं।
- शाम को अपने घर में गूगुल का धूप जलाएं।
- भिखारियों को काले उड़द का दान करें।
- जल में काले उड़द को प्रवाहित करें।
- शनिवार को सुंदरकांड का पाठ सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करता है।
- चींटियों को गोरज मुहूर्त में तिल चौली डालें।
- शनिवार के दिन उड़द, तिल, तेल, गुड़ का लड्डू बना लें और जहां हल न चला हो वहां गाड़ दें।
- शनिवार की रात में रक्त चन्दन से 'ऊं ह्वीं भोजपत्र पर लिख कर नित्य पूजा करने से अपार विद्या, बुद्धि की प्राप्ति होती है।
- शनिवार को काले कुत्ते, काली गाय को रोटी और काली चिड़िया को दाने डालने से जीवन की रूकावटें दूर होती हैं।
शनि देव को न्याय और कर्मफल का देवता माना जाता है। वो व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार अच्छे कर्म का अच्छा फल तथा बुरे कार्मों का बुरा फल प्रदान करते हैं। लेकिन कई अंजाने में कई ऐसे काम हो जाते हैं, जिनके कारण हमें बुरे फल भुगतने पड़ते हैं। आज हम आपको कुछ ऐसे ही कामों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनसे शनि देव नाराज हो जाते हैं। ऐसे में शनिवार को ऐसे कामों से बचने की कोशिश करें।

 शनिवार को न करें ये काम 

- शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार को सरसों का तेल का दान करना या उसका दिया जलाना लाभदायक होता है। परन्तु इस दिन सरसों का तेल खरीदकर घर में नहीं लाना चाहिए और न ही दुकान से खरीदना चाहिए। पहले से खरीद कर रखे हुए तेल का ही उपयोग करना चाहिए।
 
- शनिवार को लोग सरसों के तेल के साथ काला तिल भी दान करते हैं, लेकिन ध्यान रखें कि तेल की ही तरह काला तिल भी शनिवार को नहीं खरीदना चाहिए। ऐसा करने से शनि देव प्रसन्न होने के बजाए नाराज हो सकते हैं।
 
- शनिवार को लोहा या लोहे से बने समान नहीं खरीदना चाहिए। इस दिन लोहे का दान करना उचित है, परन्तु खरीदना उचित नहीं माना जाता है।
 
- शनिवार को जूते-चप्पल का दान करने से शनि के दोष दूर होते हैं, परन्तु ध्यान रखें कि इस दिन किसी व्यक्ति से जूते-चप्पल का उपहार न लें और न ही दें।
 
- गरीब, कमजोर या वृद्ध का अपमान नहीं करना चाहिए, न ही उन्हें परेशान करना चाहिए। ऐसा करने वाले व्यक्ति से शनि देव कभी प्रसन्न नहीं होते हैं।
 
- शनिवार के दिन उत्तर और पूर्व दिशा में यात्रा करने से बचना चाहिए, ये आपके जीवन में कष्ट का कारण बन सकती है।
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मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए शुक्रवार को करें ये आसान उपाय

हिंदू धर्म में हर एक दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। उसी तरह शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी का है। शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी का व्रत रखने के अलावा पूजा-अर्चना करने से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शुक्रवार के दिन कुछ उपाय करने से कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति भी मजबूत होती है। शुक्र मजबूत होने से मान-सम्मान के साथ राजा की तरह व्यक्ति रहता है।
 
शुक्रवार के दिन धन और यश की प्राप्ति के लिए कुछ उपाय करना काफी शुभ साबित होगा। जानिए किन उपायों को करने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती हैं।
 
शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी को लाल बिंदी, चुनरी, चूड़िया सहित अन्य सोलह श्रृंगार अर्पित करना चाहिए। इससे सौभाग्य की वृद्धि होती है, साथ ही पति की उम्र लंबी होती है।
 
शुक्रवार के दिन लक्ष्मी स्त्रोत, कनकधारा स्तोत्र या फिर श्री सूक्त का पाठ करना चाहिए। इससे धन का अभाव खत्म होता है और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है।
 
शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी को कमल या फिर गुलाब का फूल अर्पित करें। मां को यह फूल अति प्रिय है। उनके चरणों में .यह फूल अर्पित करने से तरक्की, सुख-समृद्धि के योग बनते हैं।
 
मां लक्ष्मी की पूजा करने के बाद प्लेट में चार कपूर के टुकड़े में 2 लौंग रखकर आरती करना चाहिए। इससे मां जल्द प्रसन्न होती हैं।

शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी के नाम का दीपक जलाते समय रूई के बदले कलावा की बत्ती बनाकर जलाएं। इससे मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती हैं।

शुक्रवार के दिन कमलगट्टे की माला से मां लक्ष्मी का मंत्र 'ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मी नमः:' का जाप करें।

हर मनोकामना पूर्ण करने के लिए खीर का दान शुक्रवार को करना शुभ माना जाता है। शुक्रवार के दिन साफ खीर बनाकर मां लक्ष्मी को भोग लगा दें। इसके बाद इस खीर को छोटी कन्याओं को प्रसाद के रूप में बांट दें।
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होलाष्‍टक आज से शुरू, इन 8 दिनों में भूलकर भी न करें ये काम

हिंदू धर्म में हर पर्व-त्‍योहार, खास मौकों के लिए कुछ खास नियम बनाए गए हैं, जिनका जरूर पालन करना चाहिए. वरना कई तरह के नुकसान झेलने पड़ते हैं. होली के त्‍योहार और उससे पहले लगने वाले 8 दिनों के होलाष्‍टक को लेकर भी ऐसे ही नियम हैं. फाल्‍गुन मास की पूर्णिमा के दिन किए जाने वाले होलिका दहन से पहले 8 दिन तक होलाष्‍टक रहते हैं. इस दौरान कुछ शुभ काम नहीं किए जाते हैं. हालांकि भगवान की पूजा-उपासना करने के लिए यह समय उत्‍तम माना गया है. इस साल आज यानी कि 10 मार्च 2022, गुरुवार से होलाष्‍टक शुरू हो रहे हैं. जो कि 17 मार्च को होलिका दहन के दिन खत्‍म होंगे.

होलाष्‍टक में न करें ये काम

शास्‍त्रों में कहा गया है कि होलाष्‍टक के 8 दिन में भगवान की भक्ति करना बहुत अच्‍छा होता है. होलाष्‍टक के दौरान एक परंपरा है कि पेड़ की एक शाखा को भगवान विष्‍णु के परमभक्‍त प्रहलाद का रूप मानकर जमीन पर लगा दिया जाता है और उस पर रंगीन कपड़ा बांध दिया जाता है. इसके बाद अगले 8 दिनों तक उस पूरे क्षेत्र में कोई शुभ काम जैसे- शादी, मुंडन, गृह प्रवेश आदि नहीं होता है और केवल भगवान की पूजा-उपासना की जाती है.

  • होलाष्टक के 8 दिन तक कोई भी मांगलिक कार्य न करें. इस दौरान 16 संस्कार जैसे नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार आदि गलती से भी नहीं करने चाहिए. ऐसा करने से वे बुरा फल देते हैं.
  • होलाष्‍टक के दौरान हवन, यज्ञ कर्म आदि भी नहीं करनी चाहिए.
  • होलाष्‍टक के दौरान नवविवाहित लड़कियों को अपने मायके में ही रहना चाहिए. इसीलिए आमतौर पर होलाष्‍टक से पहले ही नवविवाहित लड़कियों को मायके से बुलावा आ जाता है.
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महाशिवरात्रि आज जानें, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

प्रत्येक वर्ष की फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव को अत्यंत ही प्रिय महाशिवरात्रि का व्रत किया जाता है। वैसे तो पूरे साल की प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शंकर को समर्पित मास शिवरात्रि का व्रत किया जाता हैं। लेकिन वर्ष भर में की जाने वाली सभी शिवरात्रियों में से फाल्गुन कृष्ण पक्ष की शिवरात्रि का बहुत अधिक महत्व है। माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन से ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ था। जानिए महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि।

महाशिवरात्रि मनाने का कारण
 
ईशान संहिता में बताया गया है कि-
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्याम आदिदेवो महानिशि।
शिवलिंग तयोद्भूत: कोटि सूर्य समप्रभ:॥
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महानिशीथकाल में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए थे।
कई मान्यताओं में माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ है।
पुराणों में भी शिवरात्रि का वर्णन मिलता है । कहते हैं शिवरात्रि के दिन जो व्यक्ति बिल्व पत्तियों से शिव जी की पूजा करता है और रात के समय जागकर भगवान के मंत्रों का जाप करता है, उसे भगवान शिव आनन्द और मोक्ष प्रदान करते हैं |
 
महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त
महानिशीथकाल: 2 मार्च को रात 11 बजकर 43 मिनट से लेकर 12 बजकर 33 मिनट तक
पहला प्रहर का मुहूर्त- 1 मार्च शाम 6 बजकर 21 मिनट से रात्रि 9 बजकर 27 मिनट तक
दूसरे प्रहर का मुहूर्त- 1 मार्च रात्रि 9 बजकर 27 मिनट से 12 बजकर 33 मिनट तक
तीसरे प्रहर का मुहूर्त- 1 मार्च रात्रि 12 बजकर 33 मिनट से सुबह 3 बजकर 39 मिनट तक
चौथे प्रहर का मुहूर्त- 2 मार्च सुबह 3 बजकर 39 मिनट से 6 बजकर 45 मिनट तक
महाशिवरात्रि पारण मुहूर्त - 2 मार्च को सुबह 6 बजकर 45 मिनट के बाद
 
महाशिवरात्रि की पूजा विधि
शिवरात्रि का व्रत नित्य और काम्य दोनों है | इस व्रत के नित्य होने के विषय में वचन है कि जो व्यक्ति तीनों लोकों के स्वामी रुद्र की भक्ति नहीं करता, वह सहस्त्र जन्मों तक भ्रमित रहता है। लिहाजा ऐसा बताया गया है कि पुरुष या नारी को प्रति वर्ष शिवरात्रि पर भक्ति के साथ महादेव की पूजा करनी चाहिए। नित्य होने के साथ यह व्रत काम्य है, क्योंकि इसके करने से शुभ फल मिलते हैं।
 
शिवरात्रि के दिन सबसे पहले चन्दन के लेप से आरम्भ कर सभी उपचारों के साथ शिव पूजा करनी चाहिए और साथ ही पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराना चाहिए। इसके बाद 'ऊँ नमः शिवाय' मंत्र का जाप करना चाहिए, साथ ही शिव पूजा के बाद गोबर के उपलों की अग्नि जलाकर तिल, चावल और घी की मिश्रित आहुति देनी चाहिए। इस तरह 5 बार होम के बाद किसी भी एकसाबुत फल की आहुति दें। सामान्यतया लोग सूखे नारियल की आहुति देते हैं । व्यक्ति यह व्रत करके, ब्राह्मणों को खाना खिलाकर और दीपदान करके स्वर्ग को प्राप्त कर सकता है।
 
महा शिवरात्रि की पूजा विधि के विषय में भी अलग-अलग मत हैं-
 
सनातन धर्म के अनुसार शिवलिंग स्नान के लिये रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घृत और चौथे प्रहर में मधु, यानि शहद से स्नान करना चाहिए।
चारों प्रहर में शिवलिंग स्नान के लिये मंत्र भी हैं-
प्रथम प्रहर में- 'ह्रीं ईशानाय नमः'
दूसरे प्रहर में- 'ह्रीं अघोराय नमः'
तीसरे प्रहर में- 'ह्रीं वामदेवाय नमः'
चौथे प्रहर में- 'ह्रीं सद्योजाताय नमः' मंत्र का जाप करना चाहिए।
वहीं दूसरे, तीसरे और चौथे प्रहर में व्रती को पूजा, अर्घ्य, जप और कथा सुननी चाहिए, स्तोत्र पाठ करना चाहिए। साथ ही अर्घ्यजल के साथ क्षमा मांगनी चाहिए, लेकिन व्यक्तिगत रूप से मेरा विश्वास क्षमा मांगने में नहीं है क्योंकि क्षमा तो दूसरों से मांगी जाती है। मैंने तो खुद को शिव जी को अर्पित कर दिया है-
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः
विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेनिद्रियाणाम्।
सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः
चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्।।
अर्थात् "मैं समस्त संदेहों से परे, बिना किसी आकार वाला, सर्वगत, सर्वव्यापक, सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित हूं, मैं सदैव समता में स्थित हूं, न मुझमें मुक्ति है और न बंधन, मैं चैतन्य रूप हूं, आनंद हूं, शिव हूं, शिव हूं"।

 

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आज महाशिवरात्रि पर करें ये आसान उपाय होंगे भगवान शिव प्रसन्न

शास्त्रों में बताया गया है कि महाशिवरात्रि के दिन मनुष्य को अपनी मनोकामना के अनुसार शिव की पूजा करनी चाहिए। अपनी पूजा से शिव को यह बताएं कि आप शिव से क्या चाहते हैं। जो व्यक्ति सांसारिक मोह माया से मुक्त होना चाहते हैं। शिव की चरणों में स्थान पाने की कामना रखते हैं। उनके लिए शास्त्रों में कहा गया है कि महाशिवरात्रि के दिन गंगाजल और दूध से भगवान शिव का अभिषेक करें। ऐसे व्यक्तियों को महाशिवरात्रि की रात में जागरण करके शिव पुराण का पाठ करना या सुनना चाहिए। शिव भजन से भी लाभ मिलता है।

आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए

जो व्यक्ति काफी समय से वाहन खरीदने के लिए प्रयास कर रहे हैं,लेकिन कामयाबी नहीं मिल रही है। तो महाशिवरात्रि के दिन दही से भगवान शिव का अभिषेक करें। आर्थिक समस्याओं के कारण जो लोग परेशान और चिंतित रहते हैं उनके लिए महाशिवरात्रि पर शिव जी की पूजा का खास विधान है। ऐसे लोगों को शहद और घी से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। प्रसाद के तौर पर भोलेनाथ को गन्ना अर्पित करें।
 
अच्छी सेहत के लिए

जो व्यक्ति अक्सर बीमार रहते हैं या जिनके स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव बना रहता है उन्हे महाशिवरात्रि के मौके का लाभ उठाना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि भोलेनाथ कालों के भी काल हैं जिनके सामने यम भी हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। इसलिए महाशिवरात्रि के दिन बेहतर स्वास्थ्य की इच्छा रखने वालों को जल में दुर्वा मिलाकर शिव जी को अर्पित करना चाहिए। जितना अधिक संभव हो महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।

सुखद वैवाहिक जीवन के लिए

विवाह के लिए सर्वोत्तम मंत्र है "ॐ पार्वतीपतये नमः"। इस मंत्र के जाप से भगवान भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती का आशीर्वाद भी मिलता है और विवाह में आ रही समस्याएं दूर हो जाती हैं।
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आज है महाशिवरात्रि व्रत

01 मार्च 2022, मंगलवार को महाशिवरात्रि का त्योहार है। हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव की आराधना, तपस्या और श्रद्धा से महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर उपवास और पूजा से भगवान शिव को प्रसन्न किया जाता है। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव का अभिषेक करने का विशेष महत्व होता है। महाशिवरात्रि पर राशिनुसार शिवलिंग अभिषेक का महत्व...
 
 
मेष राशि- महाशिवरात्रि के दिन मेष राशि के जातकों को गाय के घी और शहद से शिवलिंग पर अभिषेक करना चाहिए। इससे जीवन स्तर उत्तम बना रहेगा।

वृषभ राशि- वृषभ राशि के जातकों को महाशिवरात्रि के दिन दूध, शहद मिलाकर शिवजी का पूजन करना चाहिए। इससे सफलता प्राप्त हासिल होगी।

मिथुन राशि- मिथुन राशि के जातक लंबे वक्त से बीमार हैं तो उन्हें शिवलिंग पर दूध में भांग और शक्कर मिलाकर अभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से रोगों से छुटकारा मिल जाएगा।

कर्क राशि- शिवरात्रि के दिन कर्क राशि के जातकों को गंगाजल में केसर, दूध और शहद मिलाकर शिवलिंग पर अभिषेक करना चाहिए। इससे लंबे वक्त से चले आ रहे है विवाद समाप्त हो जाते हैं।

सिंह राशि- सिंह राशि के जातकों को मुकदमें में विजय प्राप्त करने के लिए गन्ने का रस और नींबू मिलाकर शिवजी पर अर्पित करना चाहिए।

कन्या राशि- कन्या राशि के लोगों को शिवरात्रि के दिन घी, दही मिलाकर शिवलिंग पर अभिषेक करना चाहिए। इससे धन लाभ होगा।

कर्क राशि- शिवरात्रि के दिन कर्क राशि के जातकों को गंगाजल में केसर, दूध और शहद मिलाकर शिवलिंग पर अभिषेक करना चाहिए। इससे लंबे वक्त से चले आ रहे है विवाद समाप्त हो जाते हैं।

सिंह राशि- सिंह राशि के जातकों को मुकदमें में विजय प्राप्त करने के लिए गन्ने का रस और नींबू मिलाकर शिवजी पर अर्पित करना चाहिए।
 
कन्या राशि- कन्या राशि के लोगों को शिवरात्रि के दिन घी, दही मिलाकर शिवलिंग पर अभिषेक करना चाहिए। इससे धन लाभ होगा।

तुला राशि- महाशिवरात्रि के पर्व पर तुला राशि के जातकों को पंचामृत से शिवपूजन करना चाहिए इससे आपके अधूरे कार्य पूर्ण होंगे।

वृश्चिक राशि- वृश्चिक राशि के लोगों को शिवरात्रि के दिन दूध,गाय का घी,शक्कर,केसर मिलाकर पूजन करना चाहिए। ऐसा करने से संकटो से मुक्ति मिल जाती है।

धनु राशि- शिवरात्रि के पावन पर्व पर धनु राशि के जातकों को दही,शहद मिलाकर महादेव की पूजा करनी चाहिए। इससे संतान सुख की प्राप्ति होती है।

मकर राशि- मकर राशि के जातक यदि विरोधी को परास्त करना चाहते हैं तो उन्हें शिवरात्रि के दिन दूध, गंगाजल और शक्कर से शिवजी की पूजा करनी चाहिए।

कुंभ राशि- कुंभ राशि के लोगों को बेल के रस और जल से शिवपूजन करना चाहिए। ऐसा करने से प्रमोशन और धनलाभ की प्राप्ति होती है।

मीन राशि- मीन राशि के जातक यदि मान-सम्मान में वृद्धि करना चाहते हैं तो शिवरात्रि के दिन गंगाजल, दूध और दही से पूजा करें।
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महाशिवरात्रि पर शिव जी को ऐसे करे प्रसन्न

महाशिवरात्रि पर पूजा करने के लिए सबसे पहले भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान कराएं। साथ ही केसर के 8 लोटे जल चढ़ाएं और पूरी रात्रि का दीपक जलाएं। इसके अलावा चंदन का तिलक लगाएं। बेलपत्र, भांग, धतूरा भोलेनाथ का सबसे पसंदीदा चढ़ावा है। इसलिए तीन बेलपत्र, भांग, धतूरा, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र व दक्षिणा चढ़ाएं और सबसे बाद में केसर युक्त खीर का भोग लगा कर सबको प्रसाद बांटें।

हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का अलग ही महत्व है। इस दिन भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिव भक्त विशेष उपाय और पूजा करते हैं। इस बार महाशिवरात्रि का ये पावन पर्व 1 मार्च 2022 को है। हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह हुआ था, जिसे हर साल महाशिवरात्रि के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन शिवजी के भक्त श्रद्धा और विश्वास के साथ व्रत रखते हैं और विधि-विधान से उनकी आराधना करते हैं। मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ पृथ्वी पर मौजूद सभी शिवलिंग में विराजमान होते हैं। इसलिए महाशिवरात्रि के दिन की गई शिव की उपासना से कई गुना अधिक फल प्राप्त होता है। महाशिवरात्रि 1 मार्च को सुबह 3:16 से 2 मार्च को सुबह 10:00 बजे तक रहेगी। वहीं पूजा-अर्चना के लिए पहला मुहूर्त सुबह 11:47 से 12:34 तक और शाम 6:21 से रात्रि 9:27 तक है। इन मुहूर्त के अनपरूप आप कभी भी भगवान शिव की उपासना कर सकते हैं।


 
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सूर्य व गुरु की युति 12 साल बाद इस राशि मे... राशिफल जानिए

इस राशि में पहले से ही देवगुरु बृहस्पति विराजमान थे। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंभ राशि में सूर्य व गुरु की 15 मार्च 2022 तक युति रहेगी। गुरु व सूर्य के बीच मित्रता का भाव है। ऐसे में ग्रहों की युति कुंभ राशि वालों के लिए बेहद लाभकारी रहेगी। हालांकि इस दौरान तीन राशियों के जातकों को सावधान रहने की सलाह दी जाती है।

मेष - इस अवधि में आपका आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। आपका भाग्य साथ देगा। आर्थिक पक्ष को मजबूती मिलेगी। इस अवधि में शुरू किए गए कार्य सफल होंगे।

मिथुन- गुरु सूर्य की युति पार्टनरशिप में व्यवसाय करने वाले जातकों के लिए लाभकारी रहेगी। इस दौरान नौकरी पेशा करने वाले जातकों को करियर में नए अवसर मिलेंगे।

सिंह- अपने रिश्ते को शादी में बदलने की कोशिश करने वालों के लिए यह अवधि शुभ है। इस दौरान आप रिश्ते को आगे बढ़ाने की बात कर सकते हैं।

धनु- धनु राशि वालों के लिए गुरु व सूर्य की युति जीवन में साहस व पराक्रम लेकर आएगी। इस दौरान आप कुछ बड़ा हासिल करने में सक्षम रहेंगे।
 
सावधान रहने की सलाह.........
 
वृषभ- आपके कार्यस्थल में कुछ परेशानियां सामने आ सकती हैं। इस दौरान आप गुस्से का शिकार हो सकते हैं। कार्यस्थल पर आपकी छवि खराब करने की कोशिश की जा सकती है। 

कर्क- कर्क राशि वालों को अचानक धन हानि का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए पैसों के लेन-देन में सावधानी बरतें। बेवजह खर्च से बचें।

कन्या- कन्या राशि के जातकों को सेहत के प्रति सचेत रहने की जरूरत है। माता की सेहत का ध्यान रखें।
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आज मनाई जा रही है गुरु रविदास जयंती

झूठा सच @ रायपुर :- इस साल गुरु रविदास जयंती 16 फरवरी 2022 को मनाई जा रही है. संत रविदास का जन्म हिन्दू कैलेंडर के आधार पर माघ माह की पूर्णिमा तिथि को हुआ था, इसलिए हर साल माघ पूर्णिमा को रविदास जयंती मनाते हैं. रविदास जयंती और माघी पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है. यह संत गुरु रविदास की 645वीं जयंती होगी |  

 

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माघ पूर्णि‍मा के अवसर पर श्रद्धालुओं ने लगाई डुबकी

माघ पूर्णिमा मुख्य दिनों में से एक है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, माघ मास के दौरान पवित्र स्नान और तपस्या दोनों ही विशेष महत्व रखते हैं. बता दें कि माघ पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा  के नाम से भी जाना जाता है. यह माघ महीने का सबसे अंतिम और महत्वपूर्ण दिन है. आज के दिन लोग गंगा, यमुना, सरस्वती नदी के संगम स्थल प्रयाग में स्नान पूजा करके गाय, तिल, काले तिल अन्य जरूरी चीजें दान में देते हैं. आज के दिन सत्यनारायण की कथा सुनना बेहद लाभकारी माना जाता है. इसके अलावा लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है. जिन लोगों की कुंडली में चंद्र दोष होता है वे आज के दिन चंद्र देव की पूजा करके अपने इस दोष को दूर कर सकते हैं. वहीं जिन लोगों के घर में आर्थिक तंगी है वे लक्ष्मी की कृपा से अपने जीवन में सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य तीनों को प्राप्त कर सकते हैं

 

पूजा करने की विधि
1  व्यक्ति को माघ पूर्णिमा के दिन सूर्योदय होने से पहले नित्यक्रम आदि से निवृत्त होकर स्नान आदि करना होगा.
2 उसके बाद सूर्यदेव को जल में लाल चंदन को मिलाकर जल को अर्पण करके व्रत का संकल्प करना होगा.
3 व्यक्ति अच्छे विचारों के साथ आज के दिन विष्णु भगवान की पूजा, पितरों का श्राद्ध और दान आदि करता है तो उसे अपने जीवन में सुख और समृद्धि दोनों प्राप्त होती है.
4 व्यक्ति को मुख्यतौर पर तिल और काले तिल विशेष जरूर दान के रूप में देने चाहिए.
 
दान और स्नान का महत्व
 
मान्यताओं के अनुसार, इस माह में प्रयागराज के तट पर कई कल्पवासी मौजूद है. आज कल्पवास का आखिरी दिन भी है. ऐसे में व्यक्ति गंगा में स्नान कर, भक्ति भजन कर, भगवान विष्णु की आराधना कर, अपनी सभी मनोकामना को पूरा और मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त करता है |
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माघ पूर्णि‍मा कल, जानें शुभ मुहूर्त और महत्‍व

माघ पूर्णिमा हिंदू कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण दिन है. धार्मिक ग्रंथों में माघ मास के दौरान मनाए गए पवित्र स्‍नान की महिमा और तपस्या का वर्णन है. ऐसा माना जाता है कि माघ महीने में हर एक दिन दान कार्य करने के लिए विशेष होता है. माघ पूर्णिमा, जिसे माघी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, माघ महीना का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन है. लोग माघी पूर्णिमा पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम स्थल प्रयाग में पवित्र स्‍नान, भिक्षा, गाय और होम दान जैसे कुछ अनुष्ठान करते हैं.
 
महत्‍व : - माघ के दौरान लोग पूरे महीने में सुबह जल्दी गंगा या यमुना में स्‍नान करते हैं. पौष पूर्णिमा से शुरू होने वाला दैनिक स्‍नान माघ पूर्णिमा पर समाप्त होता है. ऐसा माना जाता है कि इस दौरान किए गए सभी दान कार्य आसानी से फलित होते हैं. इसलिए लोग अपनी क्षमता के अनुसार जरूरतमंदों को दान देते हैं. यह कल्पवास का अंतिम दिन भी है. प्रयाग में गंगा नदी के तट पर लगाया एक महीने का तपस्या शिविर लगाया जाता है, जिसे कल्‍पवास कहा जाता है.
 
माघ पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती भी मनाई जाती है.
शुभ मुहूर्त :
माघ पूर्ण‍िमा कब  : बुधवार 16 फरवरी 2022
पूर्ण‍िमा तिथ‍ि कब से शुरू  : 15 फरवरी को रात 09:42
पूर्ण‍िमा तिथ‍ि कब समाप्‍त होगी : 16 फरवरी को रात 10:25 बजे
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जया एकादशी पर करें भगवान विष्णु की आरती

हिंदू धर्म में हर माह की एकादशी तिथि का बड़ा महत्व माना गया है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत से मोक्ष की प्राप्ति होती है. वहीं माघ के शुक्ल पक्ष की एकदशी के जया एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के जगदीश स्वरूप की पूजा का विधान है. भगवान जगदीश को पुष्प, जल, अक्षत, रोली तथा विशिष्ट सुगंधित पदार्थों को अर्पित करने से उनकी विशेष कृपा मिलती है. इस बार ये व्रत 12 फरवरी, 2022 यानि आज रखा गया है.

आर्थिक संकटों से मुक्ति के लिए करें ये खास उपाय 1- पीपल के पत्ते से भगवान विष्णु की पूजा करें. 2- पीपल के पत्ते पर 12 साबुत बादाम रखकर भगवान विष्णु को अर्पित करें. इसके बाद इन बादामों को काले कपड़ें में बांधने के बाद घर में कहीं छुपाकर रख दें. 3- ॐ जगदीश्वराये नमो नमः मंत्र का जाप करें. 4- जया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा भी जरूर पढ़ें या फिर सुनें, तभी व्रत का पूरा फल मिलेगा.
 
जया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था. देवगण, संत, दिव्य पुरूष सभी उत्सव में उपस्थित थे. उस समय गंधर्व गीत गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं. इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था. जितनी सुरीली उसकी आवाज़ थी उतना ही सुंदर रूप था. उधर गंधर्व कन्याओं में एक सुंदर पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी. पुष्यवती और माल्यवान एक-दूसरे को देखकर सुध-बुध खो बैठते हैं और अपनी लय व ताल से भटक जाते हैं.
 
उनके इस कृत्य से देवराज इंद्र नाराज़ हो जाते हैं और उन्हें श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगोगे. श्राप के प्रभाव से वे दोनों प्रेत योनि में चले गए और दुख भोगने लगे. पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था. दोनों बहुत दुखी थे. एक समय माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था. पूरे दिन में दोनों ने सिर्फ एक बार ही फलाहार किया था. रात्रि में भगवान से प्रार्थना कर अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे. इसके बाद सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई. अंजाने में ही सही लेकिन उन्होंने एकादशी का उपवास किया और इसके प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई और वे पुन: स्वर्ग लोक चले गए | 

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