धर्म समाज

जानिए कब है महाशिवरात्रि

हिंदू धर्म में भगवान शिव को समर्पित महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 1 मार्च 2022, मंगलवार को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की पूजा करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है।
 
महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त 2022

1 मार्च को महाशिवरात्रि सुबह 03 बजकर 16 मिनटसे शुरू होकर बुधवार को 2 मार्चको सुबह 10 बजे तक रहेगी। रात्रि में पूजन का शुभ समय शाम 06 बजकर 22 मिनट से शुरू होकर रात 12 बजकर 33 मिनट तक होगी। महाशिवरात्रि चार पहर की पूजा का समय- पहले पहर की पूजा 1 मार्च को शाम 06 बजकर 21 मिनट से रात 09 बजकर 27 मिनट तक रहेगी। दूसरी पहर की पूजा 1 मार्च को रात 09 बजकर 27 मिनट से रात 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगी। दूसरी पहर की पूजा रात 12 बजकर 33 मिनट से सुबह 3 बजकर 39 मिनट तक रहेगी। चौथे पहर की पूजा 2 मार्च को सुबह 03 बजकर 39 मिनट से 06 बजकर 45 मिनट तक रहेगा।

व्रत पारण का शुभ समय
 
2 मार्च दिन बुधवार को 06 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। महाशिवरात्रि पूजा विधि- 1. मिट्टी या तांबे के लोटे में पानी या दूध भरकर ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि जालकर शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। 2. महाशिवरात्रि के दिन शिवपुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप करना चाहिए। साथ ही महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है। 3. शास्त्रों के अनुसार, महाशिवरात्रि का पूजा निशील काल में करना उत्तम माना गया है। हालांकि भक्त अपनी सुविधानुसार भी भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं।
 
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जानिए कौन हैं 10 महाविद्या और क्या हैं इनके मंत्र

गुप्ता नवरात्रि का पर्व माता की विशेष साधना का पर्व है. मां दुर्गा के दसो रूपों को दसमहाविद्या के रूप में जाना जाता है. तंत्र क्रिया या सिद्धि प्राप्ति के लिए इन 10 महाविद्याओं का विशेष महत्व होता है. इनके नाम हैं - काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला. प्रत्येक रूप का अपना नाम, कहानी,गुंण, और मंत्र हैं.

काली सबसे पहले माता सती ने मां काली का रूप धारण किया उनका वह रूप भयभीत करने वाला था. उनका रंग काला और केस खुले और उलझे हुए थे. उनकी आंखों में गहराई थी और भौहें तलवार की तरह प्रतीत हो रही थी. कपालों की माला धारण किए हुए उनकी गर्जना से दसों दिशाएं भयंकर ध्वनि से भर गई. मां काली का उल्लेख और उनके कार्यों की रूपरेखा चंडी पाठ में दी गई है. काली मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा तारा श्री तारा महाविद्या इस सृष्टि के केंद्रीय सर्वोच्च नियामक और क्रिया रूप दसमहाविद्या में से द्वितीय विद्या के रूप में सुसज्जित हैं.

इनका रंग नीला है और इनकी जीभ बाहर को है जो भय उत्पन्न करती है और वह एक बाघ की खाल पहने हुए हैं. इनकी तीन आंखें हैं. शक्ति का यह स्वरूप सर्वदा मोक्ष प्राप्त करने वाला तथा अपने भक्तों को समस्त प्रकार से घोर संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाला है. तारा मंत्र - ऊँ ह्नीं स्त्रीं हुम फट मां षोडशी 10 महाविद्या में मां षोडशी भगवती का तीसरा स्वरूप है. जिन्हें त्रिपुरसुंदरी भी कहा गया है. भगवान सदाशिव की तरह मां त्रिपुर सुंदरी के भी चार दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर मुख होने से तंत्र शास्त्रों में पंचवक्त्र अर्थात पांच मुख वाली कहा गया है.

षोडशी साधना सुख के साथ-साथ मुक्ति के लिए भी की जाती है. त्रिपुर सुंदरी साधना, शरीर, मन, और भावनाओं को नियंत्रण करने की शक्ति प्रदान करती हैं. षोडशी मंत्र - ऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम: मां भुवनेश्वरी मां भुवनेश्वरी चौथी महाविद्या है. भुवन का अर्थ है ब्रह्मांड और ईश्वरी का अर्थ है शासक इसीलिए वे ब्रह्मांड की शासक हैं. वे राज राजेश्वरी के रूप में भी जानी जाती हैं और ब्रह्मांड की रक्षा करतीं हैं.

वे कई पहलुओ में त्रिपुर सुंदरी से संबंधित है. माँ भुवनेस्वरी को आदि शक्ति के रूप में जाना जाता है यानी शक्ति के शुरुआती रूपों में से एक हैं. यह शाकम्भरी के नाम से भी प्रसिद्ध है. भुवनेश्वरी मंत्र - ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नम: मां भैरवी 10 महाविद्याओं में मां भैरवी पांचवा स्वरूप हैं. भैरवी देवी का एक क्रुद्ध और दिल दहला देने वाला रूप है जो प्रकृति में मां काली से शायद ही अभी वाच्य है.
 
देवी भैरवी भैरव के समान ही हैं जो भगवान शिव का एक उग्र रूप है जो सर्वनाश से जुड़ा हुआ है. भैरवी मंत्र - ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा: छिन्नमस्तिका 10 महाविद्या देवी का छठा स्वरूप है उन्हें प्रचंड चंडिका के नाम से भी जाना जाता है. छिन्नमस्तिका देवी के हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है तथा दूसरे हाथ में कटार है. देवी छिन्नमस्ता की उत्पत्ति के बारे में कई कहानियां हैं और कई पुराणों में भी इनका अलग-अलग उल्लेख है और उनकी मानें तो देवी ने कोई बड़ा और महान कार्य पूरा करने के लिए ही यह रूप धरा था.
 
छिन्नमस्तिका मंत्र - श्रीं ह्नीं ऎं वज्र वैरोचानियै ह्नीं फट स्वाहा मां धूमावती मां धूमावती दसमहाविद्या का सातवां स्वरूप है विशेषताओं और प्रकृति में उनकी तुलना देवी अलक्ष्मी, देवी जेष्ठा और देवी नीर्ती के साथ की जाती है. ये तीनो देवियां नकारात्मक गुणों का अवतार हैं लेकिन साथ ही वर्ष के एक विशेष समय पर उनकी पूजा भी की जाती है.
 
देवी धूमावती की साधना अत्यधिक गरीबी से छुटकारा पाने के लिए की जाती है. शरीर को सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करने के लिए भी उनकी पूजा की जाती है. धूमावती मंत्र - ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा: मां बगलामुखी बगलामुखी 10 महाविद्याओं में 8वीं महाविद्या है और इनको स्तंभन शक्ति की देवी भी माना जाता है. सौराष्ट्र में प्रकट हुए महा तूफान को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने तपस्या की थी और इसी तपस्या के फलस्वरूप मां बगलामुखी का प्राकट्य हुआ था. मां बगलामुखी को पितांबरा के नाम से भी जाना जाता है. पितांबरा आत्मा का ऐसा स्वरूप है जो पीत अर्थात पीला वस्त्रों से, पीत आभूषणों से, स्वर्ण आभूषणों से, और पीत पुष्पों से सुसज्जित है.
 
बगलामुखी मंत्र- ऊँ ह्नीं बगुलामुखी देव्यै ह्नीं ओम नम: (1) ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ॐ स्वाहा (2) देवी मातंगी महाविद्याओं में 9वीं देवी मातंगी वैदिक सरस्वती का तांत्रिक रूप है और श्री कुल के अंतर्गत पूजी जाती हैं. यह सरस्वती ही हैं और वाणी, संगीत, ज्ञान, विज्ञान, सम्मोहन, वशीकरण, मोहन की अधिष्ठात्री हैं. इंद्रजाल विद्या जादुई शक्ति में देवी पारंगत है साथ ही वाक् सिद्धि संगीत तथा अन्य ललित कलाओं में निपुण है.
 
मातंगी मंत्र - ऊँ ह्नीं ऐ भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा: देवी कमला देवी कमला 10 महाविद्याओं में दसवीं देवी हैं. देवी कमला को देवी का सबसे सर्वोच्च रूप माना जाता है जो उनके सुंदर पहलु को पूर्णता दर्शाता है. उनकी केवल देवी लक्ष्मी के साथ तुलना ही नहीं की जाती है बल्कि इन्हे देवी लक्ष्मी के रूप में भी पूजा जाता है. इन्हे तांत्रिक लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है.

 
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गुप्त नवरात्रि में जानिए मां बगलामुखी के प्रादुर्भाव की पौराणिक कथा

माघ माह की गुप्त नवरात्रि में आदि शक्ति मां दुर्गा की दस महाविद्याओं के पूजन का विधान है। मां बगलामुखी दस महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या हैं।इनकी उपासना शत्रु नाश, वाकसिद्धी और वाद विवाद में विजय मिलती है। इनमें संपूर्ण ब्राह्मण्ड की शक्ति का समावेश है, इनकी उपासना से भक्त के जीवन की हर बाधा दूर होती है और शत्रुओ का नाश होता है। इसके साथ ही मां बगलामुखी बुरी शक्तियों का भी नाश करती है। देवी को बगलामुखी, पीताम्बरा, बगला, वल्गामुखी, वगलामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है। इनका प्रसिद्धि मंदिर मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित है। आइए जानते हैं मां बगलामुखी के प्रादुर्भाव की पौराणिक कथा के बारे में....

मां बगलामुखी की पौराणिक कथा पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सतयुग में ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा। चारों ओर हाहाकार मच गया। संसार की रक्षा करना असंभव हो गया। जिसे देख कर जगत का संचालन करने वाले भगवान विष्णु चिंतित हो उठे।समस्या का कोई हल न पा कर उन्होंने शिव जी का स्मरण किया। भगवान शिव ने कहा आदिशक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता। अत: आप उनकी शरण में ही जाएं। विष्णु जी ने सौराष्ट्र में हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंच कर कठोर तप किया। भगवान विष्णु के तप से महात्रिपुरसुंदरी प्रसन्न हुईं। विष्णु जी के कहने पर आदि शक्ति के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ। इस तेज के प्रभाव से ये भयावह ब्रह्मांडीय तूफान रुक गया।

मां बगलामुखी का प्रादुर्भाव वातावरण शांत होने के बाद देवी शक्ति का यह तेज मां बगलामुखी के रूप में प्रादुर्भाव हुआ। भगवती बगलामुखी देवी ने प्रसन्न होकर भगवान विष्णु जी को इच्छित वर दिया और सृष्टि का संचालन फिर से सुचारू रूप से होने लगा। मां बगलामुखी को वीर रति भी कहा जाता है ,इनके शिव को महारुद्र कहा जाता है। तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं। जबकि गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं।
 
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आज हैं बसंत पंचमी जानिए पूजा करने का शुभ मुहूर्त और विध‍ि

वसंत पंचमी का दिन ज्ञान, संगीत, कला, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की देवी सरस्वती मां को समर्पित है. वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है. वसंत पंचमी को श्री पंचमी और सरस्वती पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. लोग ज्ञान प्राप्त करने और सुस्ती, आलस्य और अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिए देवी सरस्वती की पूजा करते हैं. बच्चों को शिक्षा देने के इस दिन अक्षर-अभ्यसम या विद्या-अरम्भम/प्रसाना नाम का अनुष्‍ठान किया जाता है,
 
जो वसंत पंचमी के प्रसिद्ध अनुष्ठानों में से एक है. 
बसंत पंचमी तारीख और मुहूर्त पंचमी तिथ‍ि कब से शुरू :
05 फरवरी 2022 को सुबह 03:
47 बजे से शुरू पंचमी तिथ‍ि कब खत्‍म होगी:
06 फरवरी सुबह 03:46 बजे तक बसंत पंचमी:
शन‍िवार, 5 फरवरी 2022 बसंत पंचमी मुहूर्त:
शनिवार सुबह 07:07 बजे से दोपहर 12:
35 बजे तक बसंत पंचमी मध्‍याहन :
शनिवार दोपहर 12:35 पूजा की अवध‍ि :
05 घंटे 28 मिनट
 
सरस्वती आरती
!! जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता, सद्दग़ुण वैभव शालिनि, त्रिभुवन विख्याता,
ॐ जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता !!
!! चंद्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी, सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी,
ॐ जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता !!
!! बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला, शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला,
ॐ जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता !!
!! देवि शरण जो आए, उनका उद्धार किया, पैठि मंथरा दासी, रावण संहार किया,
ॐ जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता !!
!! विद्या ज्ञान प्रदायिनि ज्ञान प्रकाश भरो,मोह, अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो ,
ॐ जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता !!
!! धूप दीप फल मेवा, मां स्वीकार करो, ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो,
ॐ जय सरस्वती माता,मैया जय सरस्वती माता !!
!! मां सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे, हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावे,
ॐ जय सरस्वती माता,मैया जय सरस्वती माता
 
बसंत पंचमी को मां सरस्‍वती की पूजा विधि
1. स्‍नान कर पीला वस्‍त्र धारण करें. इसके बाद पूजा का स्‍थान साफ करें और मां सरस्वती की प्रतिमा को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें.
2. रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, पीले या सफेद रंग के फूल चढाएं. मां को तिल और दूध की बनी मिठाई या पीली मिठाई और अक्षत अर्पित करें.
3. अगर आप छात्र हैं तो पूजा के स्थान पर अपनी किताबें, कलम रखें. संगीत क्षेत्र के जातक वाद्य यंत्र रखें. 4. मां सरस्वती की चालीसा का पाठ करें और आरती करें. 5. मां का प्रसाद सभी में वितरित करें |
 

 

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गुप्त नवरात्रि में की जाती है 10 देवियों की पूजा , जानिए महत्व

झूठा सच @ रायपुर :-  गुप्त नवरात्रि शुरू हो गई है. यह 10 फरवरी तक चलेगी. इस नवरात्रि की पूजा को गुप्त रूप से किया जाता है, इसलिये इसे गुप्‍त नवरात्र‍ि कहा जाता है. गुप्‍त नवरात्रि माघ व आषाढ़ महीने में आती है. बता दें, गुप्त नवरात्रि में माता के नौ रूपों की नही बल्कि 10 महाविद्याओं की पूजा की  जाती है. इस वीडियो में जानिए क्या है

चैत्र और शारदीय नवरात्रि में दुर्गा मां के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है. वहीं, गुप्त नवरात्रि के दौरान 10 देवियों की पूजा की जाती है. जिनके नाम इस प्रकार हैं- मां काली, मां तारा देवी, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और मां कमला देवी हैं.

गुप्त नवरात्र में इस बार रवियोग व सर्वार्थसिद्धि योग के रूप में अतिविशिष्ट मुहूर्त आ रहे हैं. दरअसल, यह उन लोगों के लिये खास है जो नया काम शुरू करना चाहते हैं. घर खरीदना हो, या भूमि पूजन करनी हो या गाडी खरीदनी हो, इस दौरान सभी शुभ काम कर सकते हैं. इस दौरान खरीदारी या निवेश लाभकारी होगा. इसी दौरान वसंत पचंमी व नर्मदा जयंती जैसे महापर्व भी आ रहे हैं, इसकी वजह से यह गुप्‍त नवरात्र‍ि और भी खास बन गई है.

गुप्त नवरात्रि पूजा विधि

शारदीय और चैत्र नवरात्रि की तरह ही गुप्त नवरात्रि में कलश की स्थापना की जा सकती है. अगर आपने कलश की स्थापना की है तो आपको सुबह और शाम यानी दोनों समय दुर्गा चालीसा या सप्तशती का पाठ और मंत्र का जाप करना होगा. इसके अलावे आप दोनों समय मां दुर्गा की आरती करें. दोनों समय आप मां को भोग भी लगाएं. कहा जाता है कि गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा को भोग में लौंग और बताशा चढ़ाना चाहिए | 
 
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आज से शुरू हो रही हैं गुप्त नवरात्रि जानिए पूजा की विधि एवं महत्व

 झूठा सच @ रायपुर :-  साल में 4 नवरात्रि होती हैं, इनमें से दो गुप्त नवरात्रि होती हैं. पहली गुप्त नवरात्रि माघ के महीने में पड़ती है और दूसरी आषाढ़ माह में होती हैं. गुप्त नवरात्रि पर मां दुर्गा के दस महाविद्या स्वरूपों की पूजा की जाती है. गुप्त नवरात्रि में माता रानी की गुप्त रूप से साधना की जाती है. इस बार गुप्त नवरात्रि आज 2 फरवरी से शुरू हो रही है. गुप्त नवरात्रि पर दो शुभ योग रवियोग और सर्वार्थसिद्धि योग भी बन रहे हैं, इस कारण गुप्त नवरात्रि की महत्ता कहीं ज्यादा बढ़ गई है. जानिए गुप्त नवरात्रि से जुड़ी खास बातें.

ये है घट स्थापना का शुभ मुहूर्त माघ माह के गुप्त नवरात्रि प्रतिपदा तिथि 01 फरवर 2022 को सुबह 11:15 बजे शुरू होगी और 02 फरवरी बुधवार को सुबह 08:31 बजे समाप्त होगी. उदया तिथि के हिसाब से व्रत की शुरुआत 2 फरवरी 2022, दिन बुधवार को होगी. घट स्थापना शुभ मुहूर्त- सुबह 07 बजकर 10 मिनट से सुबह 8 बजकर 30 मिनट तक रहेगा. अति शुभ समय 08:02 मिनट तक है. तंत्र मंत्र की सिद्धि करने वाली नवरात्रि गुप्त नवरात्रि को तंत्र-मंत्र को सिद्ध करने वाली नवरात्रि माना गया है. तंत्र साधना वालों के लिए ये नौ दिन विशेष रूप से फलदायी माने जाते हैं. इस नवरात्रि में तंत्र जादू-टोना सीखने वाले साधक कठिन भक्ति कर माता को प्रसन्न करते हैं. मान्यता है कि इस नवरात्रि में की जाने वाली विशेष पूजा से तमाम कष्ट दूर हो जाते हैं. गुप्त नवरात्रि की पूजा भी गुप्त रूप से की जाती है. पूजा, मंत्र, पाठ और प्रसाद सभी चीजों को गुप्त रखा जाता है, तभी साधना फलित होती है.
 
इन दस महाविद्याओं की होती है पूजा गुप्त नवरात्रि पर दसमहाविद्याओं की पूजा की जाती है. इनके नाम हैं मां कालिके, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता चित्रमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां धूम्रवती, माता बगलामुखी, मातंगी, कमला देवी. इस बार गुप्त नवरात्रि आठ दिन की पड़ रही है. ये 2 फरवरी से शुरू होगी और 10 फरवरी को इसका समापन होगा. ये है पूजा विधि सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पूजा या व्रत का संकल्प लें. कलश स्थापना से पहले मंदिर की अच्छे से साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़कें. इसके बाद मिट्टी के पात्र में जौ के बीज को बोएं और उसके बाद कलश रखकर स्थापना करें. गुप्त नवरात्रि के दौरान सात तरह के अनाज, पवित्र नदी के रेत, पान, हल्दी, सुपारी, चंदन, रोली, रक्षा धागा, जौ, कलश, फूल, अक्षत और गंगाजल से पूजन करें | 
 

 

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कल से शुरू हो रही हैं गुप्त नवरात्रि, इस दौरान कर लें ये काम, माँ दुर्गा होगी प्रसन

गुप्त नवरात्रि के दौरान लाल आसन पर बैठकर माता की उपासना करें. लाल कपड़े में 9 लौंग रखकर पूरे नौ दिन माता को चढ़ाएं. रोजाना कपूर से माता की आरती करें. नवरात्रि समाप्त होने के बाद सारे लौंग लाल कपड़े में बांधकर सुरक्षित रखें. इससे धन की समस्या दूर होगी.


बिजनेस में धन लाभ के लिए

माघ गुप्त नवरात्रि के दौरान रोज शाम के वक्त मां लक्ष्मी की पूजा करें. साथ ही मां लक्ष्मी के सामने घी का दीपक जलाएं. इसके अलावा श्रीसूक्त का पाठ करें. गुप्त नवरात्रि के दौरान किसी दिन कच्चे सूत को हल्दी से रंगकर पीला कर लें. इसके बाद इसे मां लक्ष्मी को समर्पित करके गले में धारण करें. बिजनेस में धन लाभ का योग बनेगा

कर्ज से मुक्ति पाने के लिए

गुप्त नवरात्रि के दौरान प्रतिदिन सुबह मां दुर्गा की पूजा करें. पूजन के वक्त माता को लाल फूल चढ़ाएं. इसके बाद उनके सामने सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें. इतना करने के बाद माता से कर्ज से मुक्ति की प्रार्थना करें.

हर प्रकार से आर्थिक गुप्त नवरात्रि के दौरान कर लें ये 5 काम, माँ दुर्गा होगी प्रसनसमृद्धि के लिए

गुप्त नवरात्रि के दौरान रोजाना सुबह और शाम मां दुर्गा की उपासना करें. सुबह की पूजा में माता को सपेद फूल और शाम की पूजा में लाल पुष्प अर्पित करें. इसके अलावा दोनों वक्त 'ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ज्वल हं सं लं फट् स्वाहा' इस मंत्र का 108 बार जाप करें. नवमी के दिन कन्या भोजन कराकर उन्हें उपहार देकर उनसे आशीर्वाद लें.

कौन-कौन हैं दस महाविद्या

गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्या काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुनेश्‍वरी, छिन्‍नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी की गुप्त तरीके से पूजा-उपासना का विधान है.| 
 
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2 फरवरी से मनाई जाएगी गुप्त नवरात्रि, जानें तिथि, पूजा विधि और महत्व

शक्ति आराधना का पावन पर्व गुप्त नवरात्रि माघ माह शुक्लपक्ष प्रतिपदा 02 फरवरी से मनाया जाएगा। आदिकाल से ही नवरात्रि को सनातन धर्म का सबसे पवित्र और शक्ति दायक पर्व माना गया है। एक वर्ष में चार नवरात्रि दो गुप्त और दो सामन्य कहे गए हैं। गुप्त नवरात्रि माघ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा और आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा को आरंभ होता है। यह नवरात्रि गुप्त साधनाओं के लिए परम श्रेष्ठ कहा गया है। इस समय की गई साधना जन्मकुंडली के समस्त दोषों को दूर करने वाली तथा चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और कोक्ष को देने वाली होती है। इसका सबसे महत्वपूर्ण समय मध्यरात्रि 12 बजे से सूर्योदय तक अधिक प्रभावशाली बताया गया है।

निगम शास्त्र में संपूर्ण विश्व की रचना का आधार सूर्य को माना गया है। ‘सूर्य रश्मितो जीवो भी जायते’ अर्थात- सूर्य की किरणों से ही जीव की उत्पत्ति हुई अतः सूर्य ही जगतपिता है। इन्हीं की संक्रांतियों के अनुसार ही नवरात्रि पर्व माना गया है जैसे, गुप्त नवरात्रि मकर संक्रांति तथा आषाढ़ संक्रांति के मध्य पड़ते हैं। यह सायन संक्रांति के नवरात्रि हैं जिनमें मकर संक्रांति उत्तरायण और कर्क (आषाढ़) संक्रांति दक्षिणायन की होती है। बाकी दो गुप्त नवरात्रि के अतिरिक्त सामान्य नवरात्रि चैत्रशुक्ल प्रतिपदा और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है। माघ शुक्ल प्रतिपदा में गुप्त नवरात्रि शिशिर और बसंत ऋतु के संक्रमण काल में आरंभ होता है। सूर्य की मकर संक्रांति के मध्य सभी देवता जो शक्तिहीन हो गये थे माघ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक माँ श्री महाशक्ति की आराधना करते हैं। जिसके फलस्वरूप उनमें नई ऊर्जाशक्ति का संचार होता है और उन्हें भौतिक त्रिबिध तापों से मुक्ति मिलती है। तांत्रिक जगत में गुप्त नवरात्रि का अधिक महत्व होता है। सामान्य जन इसमें मंत्र जाप और पूजा पाठ करके अपनी शक्तियों को बढ़ाकर इन चार दुखों के देवताओं के प्रकोप से बचे रहते हैं। गुप्त नवरात्रि के मध्य ‘माँ आदि शक्ति का

महामंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ का प्रतिदिन जप करने से समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है।

कैसे करें पूजा
इस दिन भक्तगण माँ की पूजा के लिए सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर कलश, नारियल-चुन्नी, श्रृंगार का सामान, अक्षत,हल्दी, फल-फूल पुष्प आदि यथा संभव सामग्री साथ रख लें। कलश सोना, चांदी, तामा, पीतल या मिटटी का होना चाहिए, लोहे अथवा स्टील का कलश पूजा मे प्रयोग नहीं करना चाहिए। कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक आदि लिखें। पूजा आरम्भ के समय ‘ऊं पुण्डरीकाक्षाय’ नमः कहते हुए अपने ऊपर जल छिडकें।

घी का दीपक जलाते हुए
ॐ दीपो ज्योतिः परब्रह्म दीपो ज्योति: जनार्दनः। दीपो हरतु में पापं पूजादीप नमोस्तु ते।। यह मंत्र पढ़ते हुए दीप प्रज्ज्वलित करें। माँ दुर्गा की मूर्ति के बाईं तरफ श्री गणेश की मूर्ति रखें। पूजा स्थल के उत्तर-पूर्व भाग में पृथ्वी पर सात प्रकार के अनाज नदी की रेत और जौ ॐ भूम्यै नमः कहते हुए डालें। इसके उपरांत कलश में जल-गंगाजल, लौंग, इलायची,पान, सुपारी, रोली, मोली, चन्दन, अक्षत, हल्दी, रुपया पुष्पादि डालें। अब कलश में थोड़ा और जल-गंगाजल डालते हुए ॐ वरुणाय नमः मंत्र पढ़ें और कलश को पूर्ण रूप से भर दें। इसके बाद आम की टहनी (पल्लव) डालें यदि आम की पल्लव न हो तो पीपल, बरगद, गूलर अथवा पाकर का पल्लव भी कलश के ऊपर रखने का बिधान है। जौ अथवा कच्चा चावल कटोरे मे भरकर कलश के ऊपर रखें उसके ऊपर चुन्नी से लिपटा हुआ नारियल रखकर कलश को माथे के समीप लाएं और वरुण देवता को प्रणाम करते हुए रेत पर कलश स्थापित करें।

पूजा के समय यदि आपको कोई भी मंत्र नहीं आता हो तो केवल दुर्गा सप्तशती में दिए गए नवार्ण मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे। माँ शक्ति का यह अमोघ मंत्र है। आपके पास जो भी यथा संभव सामग्री हो उसी से आराधना करें। संभव हो श्रृंगार का सामान और नारियल-चुन्नी जरूर चढ़ाएं। सर्वप्रथम माँ का ध्यान, आवाहन, आसन, अर्घ्य, स्नान, उपवस्त्र, वस्त्र, श्रृंगार का सामान, सिन्दूर, हल्दी, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, मिष्ठान, रितुफल, नारियल आदि जो भी सुलभ उसे अर्पित करें। पूजन के बाद आरती और क्षमा प्रार्थना अवश्य करें | 
 
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षटतिला एकादशी पर विष्णु की पूजा कर पाए धन ,धान्य और सौभाग्य का वरदान

षटतिला एकादशी व्रत विधि 
सुबह स्‍नान कर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें.
इसके बाद गंध, फूल, धूप दीप, पान सहित विष्णु भगवान की षोड्षोपचार (सोलह सामग्रियों) से पूजा करें.
उड़द और तिल वाली  खिचड़ी बनाकर भगवान विष्‍णु को भोग लगाएं. रात में हवन करें. 
108 बार ॐ नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा के मंत्र का जाप करते हुए  तिल से हवन करें. 
सुब्रह्मण्य नमस्तेस्तु महापुरुषपूर्वज।
गृहाणाध्र्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते।।
का जाप करते हुए अर्घ्‍य दें. 
 
भगवान विष्‍णु की आरती करें और उसके बाद तिल युक्त भोजन करें. 

आज षटतिला एकादशी है और आज के दिन भगवान विष्‍णु की विधिवत पूजा करने तथा व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं. इसके महत्‍व को आप इस बात से समझ सकते हैं | भगवान विष्णु ने स्‍वयं इस व्रत की कथा और उसका महत्‍व, नारद जी को सुनाई थी. ऐसा कहा जाता है कि आज के दिन जो व्‍यक्‍त‍ि तिल या तिल से बनी चीजों का दान करता है, तिल से बनी चीजों का सेवन करता है और तिल के पानी से स्‍नान करता है, उसके जीवन में कभी धन की कमी नहीं होती. उसके शत्रुओं की पराजय होती है और उसे जीवन में सफलता प्राप्‍त होती है |
 
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षटतिला एकादशी के दिन करे तिल का इस्तेमाल

हिंदु धर्म में एकादशीतिल का इस्तेमाल षटतिला एकादशी के दिन तिल का बहुत महत्व होता है. तिल का इस्तेमाल आप कई तरह से कर सकते हैं. आप नहाने के लिए इस्तेमाल होने वाले पानी में कुछ तिल मिला सकते हैं. नहाते समय शरीर पर लगाने के लिए तिल का पेस्ट तैयार करें. तिल को अग्नि में अर्पित करें, गरीबों को दान करें और इस दिन तिल का भी सेवन करें. षटतिला एकादशी व्रत का पालन करने वाले भक्त को सुबह स्नान करना चाहिए. पूजा घर को सजाना चाहिए. कृष्ण और विष्णु की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करनी चाहिए. कृष्ण के नामों के विष्णु सहस्रनाम के जाप के साथ पूजा करनी चाहिए. भगवान को तुलसी जल, नारियल, फूल, धूप, फल और प्रसाद चढ़ाएं और दिन भर भगवान का स्मरण करते रहें. अगले दिन सुबह द्वादशी के दौरान पूजा दोहराएं और प्रसाद ग्रहण करने के बाद उपवास खोलें. 
                                
फिरोजा पहनते ही चमक जाती है किस्‍मत, मिलती है बेशुमार लोकप्रियता और पैसा षटतिला एकादशी व्रत नियम षटतिला एकादशी के दिन सुबह के दौरान शुरू होता है और द्वादशी की सुबह तक चलता है. द्वादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद पारण के दौरान व्रत खोला जाता है. व्रत में कुछ भी न खाने का विधान है. कुछ भक्त इस दिन अकेले तिल का सेवन करते हैं. अगर आप किसी स्वास्थ्य स्थिति में हैं तो ऐसे में भक्त दूध और फल ले सकते हैं. षटतिला एकादशी व्रत के लाभ षटतिला एकादशी व्रत को पूरी आस्था और भक्ति के साथ करने से भक्त को उसके सभी जन्मों में धन, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है. इस दिन गरीबों को भोजन, कपड़े, कीमती सामान और धन दान करना महान पुण्य प्रदान करता है. षटतिला एकादशी व्रत रखने से घर में कभी भी भोजन और समृद्धि की कमी नहीं होती है. 
 
सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. ये शुभ दिन चंद्र पखवाड़े के प्रत्येक ग्यारहवें दिन पड़ता है. प्रत्येक मास में दो एकादशी होने के कारण एक साल में 24 एकादशी पड़ती हैं. शुक्ल और कृष्ण पक्ष के दौरान एक महीने में दो एकादशी होती हैं. इनमें से माघ मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं. षटतिला एकादशी को तिल्दा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस बार षटतिला एकादशी का व्रत 28 जनवरी को शुक्रवार के दिन रखा जाएगा. ये दिन भगवान विष्णु को समर्पित है. इस दिन भक्त उपवास रखते हैं. इस दिन तिल के इस्तेमाल का अत्यधिक महत्व है. इस दिन आप अलग-अलग तरीकों से तिल का इस्तेमाल कर सकते हैं |
 
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शनिवर को करें शनिदेव की ये आरती

इस दिन उन्ही देवता की पूजा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है. इसी प्रकार शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित है. इस दिन शनि देव की पूजा का विधान है. सच्ची श्रद्धा से शनिवार के दिन उनकी पूजा-अर्चना आदि करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं और सभी की मनोकामनाएं शीघ्र पूरी करते हैं. बता दें कि शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं. अत: मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से भी शनि की समस्त बाधाएं दूर हो जाती हैं.
 
शनिदेव को न्याय का देवता माना गया है. अच्छे कर्म करने वालों को शुभ फल देते हैं और बुरे कर्म करने वालों को दंड देते हैं. इसलिए व्यक्ति को हमेशा जीवन में अच्छे कर्म ही करने चाहिए. साथ ही, शनिदेव की कृपा के लिए शनिवार को विशेष पूजा-अर्चना करनी चाहिए. मान्यता है कि इस दिन शनिदेव की पूजा-आरती करने से बिगड़े काम भी बन जाते हैं. इसलिए शनिवार के दिन शनिदेव की ये आरती अवश्य करें.

आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।
वेद विमल यश गाऊं मेरे प्रभुजी॥
पहली आरती प्रहलाद उबारे।
हिरणाकुश नख उदर विदारे॥
दूसरी आरती वामन सेवा।
बलि के द्वार पधारे हरि देवा॥
तीसरी आरती ब्रह्म पधारे।
सहसबाहु के भुजा उखारे॥
चौथी आरती असुर संहारे।
भक्त विभीषण लंक पधारे॥
पांचवीं आरती कंस पछारे।
गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले॥
तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा।
हरषि-निरखि गावें दास कबीरा॥
 
शनिदेव की आरती जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव.... श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव.... क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव.... मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव.... देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
 
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संकष्टी चतुर्थी पर करें इन मंत्रों से गणेश जी को प्रसन्न

 हिंदी पंचांग के अनुसार, वर्ष के प्रत्येक महीने के दोनों पक्षों की चतुर्थी को क्रमशः संकष्टी चतुर्थी और विनायक चतुर्थी मनाई जाती है। इस प्रकार 21 जनवरी को माघ महीने के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा-उपासना की जाती है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, लंबोदर, गजानन, गणपति, बप्पा, गणेश आदि भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से गणपति बप्पा की पूजा करता है। उसके जीवन से सभी दुःख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही जीवन में मंगल का आगमन होता है। अगर आप भी भगवान गणेश जी को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो संकष्टी चतुर्थी पर इन मंत्रों का जाप अवश्य करें-


गणेश स्तुति का मंत्र

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।

उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥

2.श्री गणेश जी का गायत्री मंत्र

ऊँ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।

3.धन-संपत्ति प्राप्ति का मंत्र

ऊँ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा.

4.र्विघ्न हरण का मंत्र

वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।

निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा॥

5.बाधांए दूर करने का मंत्र

एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।

विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥

6.कृपा करो गणनाथ

प्रभु-शुभता कर दें साथ।

रिद्धि-सिद्धि शुभ लाभ

प्रभु, सब हैं तेरे पास।।

7. अभीष्ट फल प्राप्ति का मंत्र

नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं।

गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च॥

गणेश कवच

संसारमोहनस्यास्य कवचस्य प्रजापति:।

ऋषिश्छन्दश्च बृहती देवो लम्बोदर: स्वयम्॥

धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोग: प्रकीर्तित:।

सर्वेषां कवचानां च सारभूतमिदं मुने॥

ॐ गं हुं श्रीगणेशाय स्वाहा मे पातुमस्तकम्।

द्वात्रिंशदक्षरो मन्त्रो ललाटं मे सदावतु॥

ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं गमिति च संततं पातु लोचनम्।

तालुकं पातु विध्नेशःसंततं धरणीतले॥

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीमिति च संततं पातु नासिकाम्।

ॐ गौं गं शूर्पकर्णाय स्वाहा पात्वधरं मम॥

दन्तानि तालुकां जिह्वां पातु मे षोडशाक्षर:॥

ॐ लं श्रीं लम्बोदरायेति स्वाहा गण्डं सदावतु।

ॐ क्लीं ह्रीं विघन्नाशाय स्वाहा कर्ण सदावतु॥

बुधवार को करें बुध कवच का पाठ, दूर होगा बुध दोष

बुधवार को करें बुध कवच का पाठ, दूर होगा बुध दोष

 

ॐ श्रीं गं गजाननायेति स्वाहा स्कन्धं सदावतु।

ॐ ह्रीं विनायकायेति स्वाहा पृष्ठं सदावतु॥

ॐ क्लीं ह्रीमिति कङ्कालं पातु वक्ष:स्थलं च गम्।

करौ पादौ सदा पातु सर्वाङ्गं विघन्निघन्कृत्॥

प्राच्यां लम्बोदर: पातु आगन्य्यां विघन्नायक:।

दक्षिणे पातु विध्नेशो नैर्ऋत्यां तु गजानन:॥
 

पश्चिमे पार्वतीपुत्रो वायव्यां शंकरात्मज:।

कृष्णस्यांशश्चोत्तरे च परिपूर्णतमस्य च॥

ऐशान्यामेकदन्तश्च हेरम्ब: पातु चो‌र्ध्वत:।

अधो गणाधिप: पातु सर्वपूज्यश्च सर्वत:॥

स्वप्ने जागरणे चैव पातु मां योगिनां गुरु:॥

इति ते कथितं वत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम्।

संसारमोहनं नाम कवचं परमाद्भुतम्॥

श्रीकृष्णेन पुरा दत्तं गोलोके रासमण्डले।

वृन्दावने विनीताय मह्यं दिनकरात्मज:॥

मया दत्तं च तुभ्यं च यस्मै कस्मै न दास्यसि।

परं वरं सर्वपूज्यं सर्वसङ्कटतारणम्॥

गुरुमभ्य‌र्च्य विधिवत् कवचं धारयेत्तु य:।

कण्ठे वा दक्षिणेबाहौ सोऽपि विष्णुर्नसंशय:॥

अश्वमेधसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च।

ग्रहेन्द्रकवचस्यास्य कलां नार्हन्ति षोडशीम्॥

इदं कवचमज्ञात्वा यो भजेच्छंकरात्मजम्।

शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्र: सिद्धिदायक:॥
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जानिए मकर संक्रांति की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त

दान पुण्य के त्योहार मकर संक्रांति  का सनातन धर्म में खास महत्व है. हिंदू धर्म में इस त्योहार को 14 जनवरी दिन शुक्रवार को धूम धाम से मनाया जा रहा है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में चलते हैं. यही कारण है कि सूर्य की मकर संक्रांति कहा जाता है. खास बात ये भी है कि इसी दिन खरमास का समापन हो जाता है और शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं. तो से में आइए जानते हैं मकर संक्रांति पर गंगा स्नान और दान पुण्य करने के विशेष महत्व के बारे में सभी कुछ.
 
जानिए क्या है स्नान और दान का महत्व:- सनातम धर्म की मान्या के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही राजा भागीरथ के तप से गंगा प्रभाव‍ित होकर उनके पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम पहुंच गई थीं और फिर वहां पहुंचकर सोते हुए समुद्र में जाकर वह म‍िली थीं. इसी दिन राजा भागीरथ ने गंगा के पावन जल से अपने पूर्वजों को प्रप्त किया था. मान्यता है कि यही कारण है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा में स्नान करने का सबसे ज्यादा फलदायी फलदायी माना गया है. कहते हैं कि अगर इस दिन गंगा में स्नान करते हैं तो सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और सीधा प्रभु के चरणों में शरण मिलती है. अगर आप गंगा में स्नान नहीं कर पाते हैं तो घर पर भी इस दिन स्नान करने का अति महत्व है.

मकर संक्रांति 2022 शुभ मुहूर्त मकर संक्रांति का क्षण या सूर्य का मकर राशि में प्रवेश: दोपहर 02 बजकर 43 मिनट पर मकर संक्रांति का पुण्य काल: दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 45 मिनट तक मकर संक्रान्ति महा पुण्य काल: दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से शाम 04 बजकर 28 मिनट तक. ऐसे करें संक्रांति के दिन पूजा कहा जाता है कि इस दिन सूर्यदेव की आराधना किया जाना सबसे ज्यादा फलदायी होता है. यही कारण है कि इस दिन सूर्य देव को जल, अक्षत, गेहूं, गुड़, लाल वस्त्र, तांबा, सुपारी, लाल फूल और दक्षिणा आदि से पूज जाता है. सूर्य पूजा के बाद ही इस दिन क्षमता के अनुसार किसी जरुतमंद को दान करना चाहिए. दान पुण्य के समय तक व्रत रखा जाता है, और दान के बाद ही व्रत को खोला जाता है.

इन नामों से प्रचलित है मकर संक्रांति देश के अलग अलग हिस्सों में मकर संक्रांति को अलग अलग नाम से मनाया जाता है. दक्षिण भारत में पोंगल, गुजरात और राजस्थान में इसे उत्तरायण कहा जाता है और कई राज्यों में पतंग उड़ाने का भी इस दिन खास महत्व होता है. हरियाणा और पंजाब में इस त्योहार को माघी और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश इस दिन खिचड़ी कहा जाता है| 
 
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मकर संक्रांति पर कौन सी राशि की चमकेगी किस्‍मत

आज मकर संक्रांति है और देशभर में इस मौके पर सुबह से लोग पवित्र सरोबरों में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। धार्मिक ग्रंथों में मकर संक्रांति के पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। मकर संक्रांति पर सूर्य का राशि परिवर्तन होता है इस दिन बनने वाले शुभ योग में पूजा, स्नान और दान करने से कई प्रकार की मुसीबतों से छुटकारा मिलता है वहीं जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। इसके साथ ही मकर संक्रांति का पर्व कई प्रकार के दोषों को भी दूर करता है।
 
मेष राशि -  पदोन्नति की संभावना, सरकार से लाभ, धनाागमन,प्रतिष्ठित जनों से मित्रता के योग है। चहुंमुखी विकास होगा। विद्युत या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदें। ओम् सूर्याय नमः का जाप करें। गुड़ व गेहूं का दान करें।

वृषभ राशि -  सुख साधन बढ़ेंगे। मकान ,वाहन का क्रय अत्यंत शुभ रहेगा। दूध दही सफेद वस्तुओं का दान करें। मिथ्यारोप, धन हानि, अत्याधिक व्यय, राज्य पक्ष से चिंता हो सकती है। कनक दान करें।
 
मिथुन राशि - परिवार में सदस्यों की वृद्धि, संतान प्राप्ति संभावित। हरी सब्जी ,हरी मूंग की दाल या हरे फल, मिठाई दान करें। कंप्यूटर, मोबाइल ले सकते हैं। सूर्य का गोचर शारीरिक व्याधि, ज्वर, मानहानि, पत्नी को पीड़ा दे सकता है। गुड़़ का हलुवा गरीबों को खिलाएं।
 
कर्क राशि - फ्रिज, ए.सी, वाटर प्योरिफायर या वाटर कूलर खरीदें। सिर पीड़ा, उदर रोग, धन हानि, यात्रा, शत्रुओं से झगड़ा आदि दिखता है। सूर्य को तिल डाल कर जल अर्पित करें। चावल का दान लाभ देगा।
 
सिंह राशि-  सूर्य की उपासना करें। सरकार से लाभ होगा। ओम् घृणि सूर्याय नमः का जाप करें। सोने के आभूषण या गोल्ड क्वाएन खरीदना धन वृद्धि करेगा। शत्रुओं पर विजय, कार्यसिद्धि, रोग नाश, सरकार से लाभ, वस्त्र का क्रय आदि करवाता है सूर्य।गेहूं या बेकरी आयटम्ज का दान करें।
 
कन्या राशि - जल में तिल डाल कर स्नान करें। नया मोबाइल, ब्रॉड बैंड कनेक्शन, टीवी तथा संचार संबंधी उपकरण खरीदें। क्रेडिट कार्ड या ऋण लेकर कुछ न खरीदें। किसी प्रियजन को मोबाइल भेंट करें या जरुरतमंद को दान करें। सूर्य संतान से चिंता दे सकता है।यात्रा ध्यान से करें, संतान की सेहत का ध्यान रखें,वाद विवाद से बचें, मतिभ्रम न होने दें। जल में तिल डाल कर नहाएं। गााय को चारा दें।
 
तुला राशि- हर तरफ से धन धान्य की प्राप्ति। तिल का उबटन लगाएं। इस अवसर पर चांदी खरीदें और वर्षांत तक मालामाल हो जाएं।,जमीन जायदाद संबंधी समस्याएं, मान हानि, घरेलू झगड़ों से परेशानी, शारीरिक कमजोरी। खिचड़ी और खीर का दान करें।
 
वृश्चिक राशि -  रुका धन आने की संभावना। कोर्ट केस में विजय।शत्रु दबे रहेंगे। इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदें। गज्जक , रेवड़ी का दान फलेगा।रोग मुक्ति, राज्यपक्ष मजबूत, मान प्रतिष्ठा की प्राप्ति, पुत्र व मित्रों, समाज से सम्मान देगा। जल में गुड़ डाल कर सूर्य को अर्पित करें।
 
धनु राशि- शिक्षा क्षेत्र, कंपीटीशन आदि में सफलता। सोने का सिक्का या मूर्ति सामर्थ्यानुसार खरीद कर पूजा स्थान पर स्थापित करें। खिचड़ी स्वयं बनाकर 9 निर्धन मजदूरों को खिलाएं। सिर, नेत्र पीड़ा, दुष्ट लोगों से मिलन, व्यापार हानि, संबंधियों से वैमनस्य करा सकता र्है। नेत्रहीनों को भोजन करवाएं। चने की दाल का दान करें।
 
मकर राशि- गरीबों में सवा किलो चावल और सवा किलो काले उड़द या इसकी खिचड़ी दान करें। सूर्य का गोचर मान हानि, कायों में देरी, उ उदेश्यहीन भ्रमण, मित्रों से मनमुटाव, सेहत खराब कर सकता है। तांबे के बर्तन धर्मस्थान पर दान दें।
 
कुंभ राशि - विदेश यात्रा, नेत्र कष्ट, अधिक व्यय, पद की हानि करवा सकता है सूर्य का गोचर। मरीजों को मीठा दलिया खिलाएं। काला सफेद कंबल या गर्म वस्त्र दान करें।
 
मीन राशि - सूर्य का भ्रमण धन लाभ, नवीन पद, मंगल कार्य, राज्य कृपा, तरक्की, धन प्राप्ति देता है। वाहन सुख। प्रापर्टी का ब्याना देना या बुकिंग ,दीर्घकालीन निवेश के लिए सर्वोत्तम मुहूर्त। तिल के लडडू या बेसन से बनी चीजें दान करें।
 

 

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मंगलवार के दिन इस उपाय को करने से नहीं होगी पैसे की कमी

राम भक्‍त हनुमान को कलयुग में जागृत देव कहा जाता है. श्री हनुमान अपने भक्‍तों के सभी कष्‍ट हर लेते हैं. उनकी कृपा हो जाए तो व्‍यक्‍त‍ि क कभी पैसे की तंगी का सामना नहीं करना पडता है. अगर आप हमेशा पैसे की तंगी से जूझते हैं, काम होते होते रुके जाते हैं और समाज में सम्‍मान नहीं मिल रहा है, तो हर मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करें. मंगलवार को हनुमान जी का दिन माना जाता है. इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ आपको कई समस्‍याओं से मुक्‍त‍ि दिला सकता है. मंगलवार को हनुमान चालीसा पढने से क्‍या-क्‍या लाभ मिलते हैं, यहां जानिये ने 'रामयुग' सीरीज में किया 'हनुमान चालीसा' का पाठ, सामने आया

1. आर्थ‍िक समस्‍या दूर होगी: अगर आप कर्ज में डूबे हुए और लाख कोशिशों के बावजूद आपकी स्‍थ‍िति में सुधार नहीं हो रहा है. तो मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करें. आपको ना केवल कर्ज से मुक्‍त‍ि मिलेगी, बल्‍क‍ि आपकी आय भी धीरे-धीरे बढने लगेगी. 

 2. बढेगा आत्‍मविश्‍वास: हनुमान चालीसा का पाठ करने से आत्‍मविश्‍वास में वृद्ध‍ि होती है. मंगलवार को या रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ करें और अपने आत्‍मविश्‍वास में अभूतपूर्व मजबूती दखेंगे. आत्‍मविश्‍वास आने से आपको हर क्षेत्र में सफलता हासिल होगी. 

खत्‍म होगा डर: मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करने से जातक को भय से मुक्‍त‍ि प्राप्‍त होती है. जीवन में आने वाले छोटे-छोटे बदलावों और अज्ञात शक्‍त‍ियों से लगने वाला डर समाप्‍त हो जाता है. जातक भगमुक्‍त होकर अपना जीवन खुशहाल जी पाता है.

रोग से मुक्‍त‍ि : हनुमान चालीसा में भी इस बात का वर्णन है कि श्री हनुमान रोग और कष्‍टों से रक्षा करते हैं. जो व्‍यक्‍त‍ि हनुमान चालीसा का पाठ करता है, वह रोगों से दूर रहता है

बुरी नजर से रक्षा: श्री हनुमान अपने भक्‍तों को बुरी नजर से बचाते हैं. हनुमान चालीसा का पाठ करने वाले जातकों पर बुरी नजर का साया नहीं पडता.
 
 
 
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जानिए कब मनाई लोहड़ी का पर्व

जनवरी 2022 में कई प्रमुख त्योहार पड़ने वाले हैं. जिसमें से एक लोहड़ी भी है. लोहड़ी का पर्व पौष कृष्ण एकादशी को पड़ता है. लेकिन तारीख के हिसाब से लोहड़ी 13 जनवरी को पड़ने वाली है. लोहड़ी पर्व को मुख्य रूप से किसानों द्वारा मनाया जाता है. इसके अलावा इस दिन को किसानों के नए साल रूप में भी मनाया जाता है. लोहड़ी पर अलाव जलाकर उसमें गेहूं की बालियां दी जाती हैं. साथ ही इस पर्व पर पंजाबी समुदाय के लोग भांगड़ा कर इस पर्व को मनाते हैं.

लहड़ी 2022 का महत्व पंजाबी परंपरा के मुताबिक लोहड़ी फसल की कटाई और बुआई से जुड़ा हुआ पर्व है. लोहड़ी के अवसर पर लोग जलाकर इसके आसपास नाचते और गाते हैं. आग में गुड़, तिल, रेवड़ी, गजक आदि डाले जाते हैं. तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मिठाई आदि बांटे जाते हैं. इस पर्व को पंजाब में फसल कटने के बाद मनाया जाता है. दुल्ला भट्टी की कहानी लोहड़ी पर्व में दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने की परंपरा बहुत पुरानी है. इस दिन आग के चोरो ओर लोग घेरकर बैठते हैं फिर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनी जाती है.
 
दरअसर इस कहानी को सुनने का विशेष महत्व है. माना जाता है कि मुगल शासन के दौरान अकबर के समय दुल्ला भट्टी नाम का एक व्यक्ति पंजाब में रहता था. उस जमाने में अमीर व्यापारी सामान से साथ-साथ शहर की लड़कियों को बेचा करते थे. उस समय दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाई. मान्यता है कि उसी समय से हर साल लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी की याद में उनकी कहानी सुनाई जाती है | 
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मैरी क्रिसमस कह कर ही क्यों शुभकामनाएं देते हैं लोग , जानें वजह ...

हर साल 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्योहार मनाया जाता है. आमतौर पर आपने देखा होगा कि क्रिसमस के लिए बधाई देते समय लोग एक दूसरे को Merry Christmas बोलते हैं Happy Christmas नहीं. आप भी शायद ऐसा ही करते होंगे. अगर किसी के मुंह से हैप्पी क्रिसमस निकल जाए तो उसे ठीक करके वो लोग फिर से मैरी क्रिसमस कहते हैं, जैसे हैप्पी क्रिसमस कहकर उन्होंने कुछ गलत कह दिया हो.जाहिर है कि ऐसे में मन में ये सवाल तो उठेगा ही कि आखिर क्रिसमस को विश करते हुए ही मैरी क्रिसमस क्यों कहा जाता है, किसी और त्योहार पर पर हैप्पी की जगह मैरी शब्द क्यों इस्तेमाल नहीं किया जाता? यहां जानिए इसके बारे में.

मैरी और हैप्पी के बीच का अंतर समझें
साधारण शब्दों में समझे तो मैरी का अर्थ और हैप्पी का अर्थ अर्थ एक ही होता है. 'मैरी' शब्द का अर्थ है आनंदित. ये शब्द जर्मनिक और ओल्ड इंग्लिश से मिलकर बना है. फर्क सिर्फ इतना है कि 'हैप्पी' व्यवहारिक भाषा में बोला जाने वाला शब्द है जबकि 'मैरी' भावनात्मक स्थिति में. मैरी शब्द में भावनाओं के साथ साथ आनंद और प्रेम का भाव भी छिपा होता है. चूंकि ईसाह मसीह ईसाई धर्म के संस्थापक थे. ईसाई धर्म के लोग उन्हें परम पिता परमेश्वर मानते हैं और ईश्वर का बेटा मानते हैं. ऐसे में उनके जन्मदिन के अवसर पर अपनी भावनाओं और आनंद की अनुभूति को जाहिर करने के लिए वे हैप्पी की बजाय मैरी शब्द का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि इस मामले में कुछ लोगों का तर्क ये भी है कि यीशू की मां का नाम मरियम था जिन्हें 'मैरी' के नाम से भी जाना जाता है. यीशू के जन्मदिन पर लोग उन्हें उनकी मां के साथ याद करते हुए मैरी क्रिसमस बोलते हैं.

 

 
चार्ल्स डिकेंस को जाता है श्रेय
इस शब्द को प्रचलित करने का श्रेय इंग्लिश साहित्यकार चार्ल्स डिकेंस को जाता है. आज से करीब 175 साल पहले प्रकाशित किताब 'अ क्रिसमस कैरोल' में उन्होंने बार-बार मैरी शब्द का उपयोग किया गया था. कहा जाता है कि यहीं से क्रिसमस को विश करने के लिए मैरी शब्द चलन में आ गया. इससे पहले तक लोग हैप्पी क्रिसमस कहकर ही आपस में एक दूसरे को विश किया करते थे. इंग्लैंड में आज भी कई लोग हैप्पी क्रिसमस बोलते हैं. आप हैप्पी क्रिसमस और मैरी क्रिसमस में से कुछ भी बोल सकते हैं क्योंकि दोनों ही शब्द सही हैं. हालांकि मैरी का इस्तेमाल सिर्फ क्रिसमस को विश करने के लिए ही किया जाता है. कहा जाता है कि मैरी शब्द हैप्पी शब्द से ज्यादा पुराना है | 
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जानिए कब है पौष अमावस्या

 नए साल 2022 का प्रारंभ कुछ दिनों में ही होने वाला है. हिन्दू कैलेंडर के पौष माह का कृष्ण पक्ष चल रहा है. इस माह की 15वीं तिथि यानी अमावस्या  का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व होता है. पौष अमावस्या के दिन स्नान, दान का महत्व है. इस दिन पितरों को भी याद किया जाता है और उनकी तृप्ति के लिए पिंडदान, तर्पण या श्राद्ध कर्म​ किया जाता है. जिन लोगों को पितृ दोष होता है, वे लोग भी अमावस्या के दिन ही उपाय करते हैं. आइए जानते हैं कि पौष अमावस्या कब है और नए साल 2022 में कब कब अमावस्या है?

पौष अमावस्या 2022 तिथि
पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का प्रारंभ 02 जनवरी 2022 दिन रविवार को तड़के 03 बजकर 41 मिनट पर हो रहा है. इस ति​थि का समापन उसी दिन देर रात 12 बजकर 02 मिनट पर हो रहा है. ऐसे में पौष माह की अमावस्या 02 जनवरी 2022 को है.

नए साल 2022 की अमावस्या तारीखें

02 जनवरी, रविवार: पौष अमावस्या
01 फरवरी, मंगलवार: माघ अमावस्या, मौनी अमावस्या
02 मार्च, बुधवार: फाल्गुन अमावस्या
01 अप्रैल, शुक्रवार: चैत्र अमावस्या
30 अप्रैल, शनिवार: वैशाख अमावस्या
30 मई, सोमवार: ज्येष्ठ अमावस्या
29 जून, बुधवार: आषाढ़ अमावस्या
28 जुलाई, गुरुवार: श्रावण अमावस्या
27 अगस्त, शनिवार: भाद्रपद अमावस्या
25 सितंबर, रविवार: अश्विन अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या
25 अक्टूबर, मंगलवार: कार्तिक अमावस्या
23 नवंबर, बुधवार: मार्गशीर्ष अमावस्या
23 दिसंबर, शुक्रवार: पौष अमावस्या

वैसे तो हर अमावस्या हत्वपूर्ण होती है, लेकिन इसमें भी मौनी अमावस्या, कार्तिक अमावस्या और सर्वपितृ अमावस्या काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. मौनी अमावस्या और कार्तिक अमावस्या के दिन नदी स्नान और दान का महत्व है, लेकिन सर्वपितृ अमावस्या पितरों के लिए विशेष होता है. सर्वपितृ अमावस्या पितृ पक्ष में होता है. इस तिथि को आप अपने सभी ज्ञात और अज्ञात पितरों की आत्मा को तृप्त कर सकते हैं और उनके लिए श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि कर सकते हैं | 

 

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