धर्म समाज

मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा

 3. चंद्रघंटा- मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा है। इनकी आराधना तृतीया को की जाती है। इनकी उपासना से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। वीरता के गुणों में वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य अलौकिक माधुर्य का समावेश होता है व आकर्षण बढ़ता है।

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नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की साधना

2. ब्रह्मचारिणी- मां दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। मां दुर्गा का यह रूप भक्तों और साधकों को अनंत कोटि फल प्रदान करने वाली है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की भावना जागृत होती है।
 
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माँ दुर्गा के प्रथम रूप शैल पुत्री के पूजन से करे नवरात्रि की शुरूआत

1. शैल पुत्री- मां दुर्गा का प्रथम रूप है शैल पुत्री। पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म होने से इन्हें शैल पुत्री कहा जाता है। नवरात्रि की प्रथम तिथि को शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इनके पूजन से भक्त सदा धन-धान्य से परिपूर्ण पूर्ण रहते हैं।
 
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नवरात्रि पर दुर्गा सप्तशती के साथ करे दुर्गा कवच का पाठ

नवरात्र के मौके पर दुर्गा सप्तशती के पाठ का विशेष अध्यात्मिक महत्व है. दुर्गा सप्तशती के तेरह अध्यायों से पहले तीन प्रथम अंगों- कवच, अर्गला और कीलक स्तोत्र का भी पाठ किया जाता है. कवच का अर्थ है- सुरक्षा  इसमें देवी की वह अमोघ शक्तियां समाहित हैं, जिनका स्मरण करने मात्र से मनोवैज्ञानिक तरीके से लाभ होता है. इसको विज्ञान भी मानता है कि सकारात्मक सोच का प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है।
माँ दुर्गा कवच क्या है?
माँ दुर्गा कवच संसार के अठारह पुराणों में से सबसे शक्तिशाली पुराण मार्कंडेय पुराण का हिस्सा है. यह भगवती दुर्गा कवच एक तरह से दुर्गा माँ का पाठ है जो हमें साहस और हिम्मत प्रदान करता है और दुष्टों से हमारी रक्षा करता है. कहा जाता है कि माँ दुर्गा कवच को भगवान ब्रह्मा ने ऋषि मार्कंडेय को सुनाया था. इस कवच में कुल 47 श्लोक शामिल हैं. वहीँ इन श्लोकों के अंत में 9 श्लोक फलश्रुति रूप में लिखित हैं. फलश्रुति का अर्थ है, ऐसा पाठ जिसे पढने या सुनने से भगवान का आशीर्वाद या फल प्राप्त हो।
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नवरात्रि पर मां को लगाए प्रतिदिन अलग-अलग भोग

 नवरात्रि के अवसर पर भक्तगण मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा करते हुए उनके अनुरूप भोग प्रसाद चढ़ाकर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। आईये जानते हैं किस दिन किस माता को कौन सा भोग पसंद हैं- 

पहला दिन मां शैलपुत्री-
मां शैलपुत्री को सफेद चीजों का भोग लगाया जाता है और अगर यह गाय के घी में बनी हों तो व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है और हर तरह की बीमारी दूर होती है.
दूसरा दिन - मां ब्रह्मचारिणी
दूसरे दिन होती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना के बाद शक्कर और पंचामृत का भोग लगाकर दीर्घायु होने का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।
तीसरा दिन - मां चंद्रघंटा
नवरात्रि के तीसरे दिन माता के स्वरूप चंद्रघंटा का पूजन किया जाता है दूध से बनी मिठाइयों व खीर का भोग लगाने से माँ प्रसन्न होती है।
चौथा दिन - मां कुष्मांडा
मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाकर प्रसाद को किसी ब्राह्मण को दान कर दें और खुद भी खाएं. इससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय क्षमता भी अच्छी हो जाएगी.
पांचवां दिन - मां स्कंदमाता
पांचवे दिन मां के स्कंदमाता स्वरूप को भोग में केले का भोग लगाकर अच्छी सेहत के लिए मां का आशीर्वाद प्राप्त करें।
छठा दिन - मां कात्यायनी
षष्ठी तिथि के दिन मां कात्यायनी का पूजन मधु यानि शहद का प्रसाद लगाकर साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है।
सातवां दिन - मां कालरात्रि
जिंदगी में आने वाले संकटों से अपनी रक्षा करने के लिए माता के कालरात्रि स्वरूप को गुड़ या उससे बनी मिठाइयों का भोग लगाया जाता है.
आठवां दिन - मां महागौरी
नवरात्रि के आठवें दिन माता के महागौरी स्वरूप को नारियल एवं नारियल से बनी मिठाइयां भी उन्हें अर्पित कर सकते हैं।
नौवां दिन - मां सिद्धिदात्री
नवरात्रि के समापन पर माता रानी को हलवा पूरी और चने का भोग लगाकर मां रूपी नौ कन्याओं को घर पर भोजन कराने से मां प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती है।
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शक्ति एवं ऊर्जा का संचार करने वाला पर्व शारदीय नवरात्रि

इस वर्ष 2021 में शारदीय नवरात्रि 07 अक्टूबर दिन गुरुवार से चित्रा नक्षत्र, वैधृति योग में प्रारम्भ हो रही है। यह नवरात्रि प्रकृति की मौलिक शक्ति की आराधना के साथ जन-जन में शक्ति एवं ऊर्जा का संचार करने वाला पवित्र पक्ष है। 07 अक्टूबर को दिन में 03 बजकर 28 मिनट तक आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि रहेगी। अत: शाम को द्वितीया का चन्द्र-दर्शन तुला राशि में होगा। चन्द्रमा अपनी उच्च राशि में होने के कारण वृष एवं तुला राशि वालों के लिए अति फलदायक रहेगा।
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7 अक्टूबर को घर -घर विराजेंगी माँ दुर्गा, जानिए उनके 9 स्वरूपों के बारें में ...

शारदीय नवरात्रि इस बार 7 अक्टूबर, गुरुवार से प्रारंभ होकर 14 अक्टूबर तक रहेंगे। हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। देवी भागवत के अनुसार मां भगवती ही ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के रूप में सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करती हैं। भगवान शंकर के कहने पर रक्तबीज, शुंभ-निशुंभ, मधु-कैटभ आदि दानवों का संहार करने के लिए माँ पार्वती ने असंख्य रूप धारण किए किंतु नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के मुख्य नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।

प्रथम शैलपुत्री

नवरात्र पूजन के प्रथम दिन कलश पूजा के साथ ही माँ दुर्गा के पहले स्वरुप 'शैलपुत्री जी' का पूजन किया जाता है। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं। माँ शैलपुत्री देवी पार्वती का ही स्वरुप हैं जो सहज भाव से पूजन करने से शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।

द्वितीय ब्रह्मचारिणी

माँ दुर्गा की नवशक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए इन्होंने हजारों वर्षों तक घोर तपस्या की थी। इनकी पूजा से अनंत फल की प्राप्ति एवं तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है। इनकी उपासना से साधक को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।

तृतीय चंद्रघंटा

बाघ पर सवार मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति देवी चंद्रघंटा है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है, इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनकी आराधना से साधकों को चिरायु, आरोग्य, सुखी और संपन्न होने का वरदान प्राप्त होता है तथा स्वर में दिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। प्रेत-बाधादि से ये अपने भक्तों की रक्षा करती है।

चतुर्थ कूष्माण्डा

नवरात्र के चौथे दिन शेर पर सवार माँ के कूष्माण्डा स्वरुप की पूजा की जाती हैं। इन्हीं के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। देवी कूष्मांडा अपने भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं

पंचम स्कंदमाता

भगवान स्कंद(कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरुप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। यह कमल के आसान पर विराजमान हैं इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। स्कंदमाता की साधना से साधकों को आरोग्य, बुद्धिमता तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है।

षष्टम कात्यायनी

मां कात्यायनी देवताओं और ऋषियों के कार्य को सिद्ध करने के लिए महर्षि कात्यान के आश्रम में प्रकट हुईं इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। यह देवी दानवों और शत्रुओं का नाश करती है। देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरुप की पूजा करने से शरीर कांतिमान हो जाता है। इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है।

सप्तम कालरात्रि

सातवां स्वरुप है माँ कालरात्रि का। इन्हें तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाली देवी बताया गया है। ये देवी अपने उपासकों को अकाल मृत्यु से भी बचाती हैं। इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही भूत, प्रेत, राक्षस और सभी नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं। माँ कालरात्रि की पूजा से ग्रह-बाधा भी दूर होती हैं।

अष्टम महागौरी

दुर्गाजी की आठवीं शक्ति देवी महागौरी भक्तों के लिए देवी अन्नपूर्णा स्वरुप हैं इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। इनकी पूजा से धन, वैभव और सुख-शांति की प्राप्ति होती हैं। उपासक सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।

नवम सिद्धिदात्री

माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं को भी माँ सिद्धिदात्री से ही सिद्धियों की प्राप्ति हुई है। इनकी उपासना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।भक्त इनकी पूजा से यश,बल और धन की प्राप्ति करते हैं ।
 
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गणेश चतुर्थी पर भूलकर भी ना देखें चांद,जानें क्या हैं वजह

पौराण‍िक कथा के अनुसार, एक बार गणेशजी कई सारे लड्डुओं को लेकर चंद्रलोक से आ रहे थे, रास्ते में उनको चंद्रदेव मिले. गणेशजी के हाथों में ढेर सारे लड्डू और उनके बड़े उदर को देखकर चंद्र देव हंसने लगे. इससे गणपत‍िजी को क्रोध आ गया और उन्होंने चंद्रमा को श्राप देते हुए कहा कि तुम्हें अपने रूप पर बहुत घमंड है न जो मेरा उपहास उड़ाने चले हो, मैं तुमको क्षय होने का श्राप देता हूं. 


गणेश चतुर्थी की एक और कथा म‍िलती है इसके अनुसार एक बार गणेशजी अपने वाहन मूषक पर सवार थे. मूषकराज को अचानक एक सांप दिखाई दिया जिसे देखकर वे डर के मारे उछल पड़े जिसकी वजह से उनकी पीठ पर सवार गणेश जी भी भूमि पर जा गिरे. गणेशजी तुरंत उठे और उन्होंने इधर-उधर देखा कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा. तभी उन्हें किसी के हंसने की आवाज सुनाई दी. यह चंद्रदेव थे. गणेश जी अपने गिरने पर चंद्रदेव को हंसता देख रूष्ट हो गए और चंद्रमा को श्राप दिया क‍ि तुम्हारा क्षय होगा | 

 
 
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भगवान गणेश के आगमन पर ही होता है अक्षत का इस्तेमाल, जानिए इसके महत्त्व

झूठा सच @ रायपुर :-   गजानन गणपति को समर्पित 10 दिनों तक चलने वाला महापर्व गणेश महोत्सव आने ही वाला है. 10 सितंबर शुक्रवार से इस महोत्सव का आगाज होगा और ये 19 सितंबर रविवार को अनंत चौदस तक चलेगा. हर साल इस गणेश उत्सव को देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है. इस त्योहार को लेकर सबसे ज्यादा धूम महाराष्ट्र में होती है. चतुर्थी के दिन गणपति के भक्त ढोल नगाड़ों के साथ उन्हें अपने घर लेकर आते हैं.


इसके बाद गणपति की मूर्ति को घर में स्थापित किया जाता है. लोग अपनी श्रद्धानुसार 5, 7 या 9 दिनों तक गणपति को अपने घर में बैठाकर रखते हैं. इस दौरान उनकी खूब सेवा की जाती है. पूजा अर्चना की जाती है और पसंदीदा भोग अर्पित किए जाते हैं. गणपति की पूजा में अक्षत का विशेष महत्व होता है. जिस समय गजानन को घर पर लाया जाता है, तब विशेष पूजा का आयोजन होता है. इस दौरान गणपति का स्वागत हल्दी और कुमकुम के साथ मिले अक्षत के साथ किया जाता है. साथ ही चतुर्थी के दिन गणपति की पूजा के लिए दोपहर का समय श्रेष्ठ माना जाता है. यहां जानिए ऐसा क्यों किया जाता है !

इसलिए होता है अक्षत का इस्तेमाल
गणपति को शुभकर्ता माना जाता है और अक्षत को खुशी और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि गणपति के आगमन के दौरान यदि उन पर अक्षत यानी चावल अर्पित किए जाएं तो इससे घर की तमाम बाधाएं दूर हो जाती हैं और शुभता के साथ समृद्धि भी घर में आती है. इसके अलावा ये भी मान्यता है कि अक्षत चढ़ाने से गणपति के साथ सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर में सकारात्मकता आती है. चूंकि अक्षत को सादा नहीं चढ़ाना चाहिए, इसलिए उसे हल्दी या कुमकुम में मिक्स कर दिया जाता है. इस बार अगर आप भी अपने घर में गणपति को लाने की तैयारी कर रहे हैं तो अक्षत को हल्दी या कुमकुम में मिक्स करके ही गणपति का स्वागत करें. साथ ही मिक्स करते समय ये ध्यान रखें कि चावल टूटे नहीं. पूजा में हमेशा साबुत अक्षत का ही इस्तेमाल करना चाहिए. 

दोपहर में पूजन का समय इसलिए है श्रेष्ठ
गणेश चतुर्थी के दिन को गणपति के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि गणपति का जन्म भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को दोपहर के समय हुआ था. आमतौर पर मंदिरों में 12 बजे के बाद पूजा अर्चना नहीं होती, लेकिन गणेश चतुर्थी के दिन गणपति के पूजन के लिए दोपहर का समय श्रेष्ठ माना जाता है. चतुर्थी के दिन गणेश स्‍थापना का शुभ मुहूर्त दोपहर 12:17 बजे से रात 10 बजे तक रहेगा. लेकिन बेहतर है कि आप दोपहर के समय ही गणपति की स्थापना करें और उन्‍हें दूर्वा, पान, सुपारी, सिंदूर, अक्षत आदि अर्पित करें. साथ ही पसंदीदा भोग लगाएं. इसके बाद उनकी स्तुति वगैरह करें.
 
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भौमवती अमावस्या आज ,जानिए इसके महत्त्व एवं पूजा की विधि

झूठा सच @ रायपुर :- आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष की उदया तिथि अमावस्या और मंगलवार का दिन है। अमावस्या तिथि आज सुबह 6 बजकर 21 मिनट तक थी। उसके बाद भाद्रपद शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि लग गई है। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार, मंगलवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को भौमवती अमावस्या के नाम से जाना जाता है, लिहाजा आज भौमवती अमावस्या है। 

भौम अमावस्या 2021 की तिथि और समय
अमावस्या प्रारंभ- 6 सितंबर, सुबह 7 बजकर 38 मिनट पर
अमावस्या समाप्त- 7 सितंबर सुबह 6 बजकर 21 मिनट तक

भौमवती अमावस्या का महत्व
किसी भी माह की अमावस्या को स्नान- दान और श्राद्ध आदि का बहुत महत्व है। यह अमावस्या 2 दिनों की थी। इसलिए श्राद्ध आदि की अमवस्या तो सोमवार को मनायी जा चुकी है और आज उदयातिथि अमावस्या में तीर्थ स्थलों पर स्नान दान किया जा रहा होगा। अमावस्या के दिन स्नान-दान या श्राद्ध आदि करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है, पितर प्रसन्न होते हैं और पितरों के आशीर्वाद से सारे काम पूरे होते हैं।

भौमवती अमावस्या पर करें ये उपाय
अगर आप चाहते हैं कि आपके परिवार पर कभी किसी प्रकार की समस्या ना आये, तो आज आप हाथी के पैर के नीचे की मिट्टी लाकर यानी जिस भी जगह पर हाथी चला हो, उस जगह की थोड़ी-सी मिट्टी लाकर अपने घर में संभालकर रखें और जब कभी आपके घर में कोई शुभ काम हो तो उस मिट्टी से अपने और अपने परिवार वालों के माथे पर तिलक करें। अगर आप कर्ज से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आज एक साफ-सुथरे लोटे में जल भरकर हनुमान जी के सामने रखें। साथ ही चमेली के तेल का दीपक जलाएं । उसके बाद इन पंक्तियों का 108 बार जाप करें । पंक्ति इस प्रकार है-

अग्ने सख्यं वृणीमहे'
इस प्रकार जाप पूरा हो जाने के बाद उस लोटे के जल को पेड़-पौधों में डाल दें और दीपक को घर में इस्तेमाल कर लें। अगर आपके बिजनेस में लगातार उतार-चढ़ाव आ रहे हैं, तो आज मिट्टी से बना हाथी घर लाएं और उसे उचित स्थान पर रखें। अब उस पर लाल कपड़ा ओढ़ाएं। इसके बाद धूप-दीप, पुष्प आदि से उसकी पूजा करें। पूजा के बाद वहीं पर बैठकर मंगल के मंत्र का जाप करें। मंगल का मंत्र है – 'ॐ भूमि पुत्राय नमः।'

अगर आप अपने किसी खास कार्य में बिना किसी रूकावट के सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो आज एक चॉकलेटी रंग का कपड़ा लेकर उसे त्रिकोण आकृति में काट लें और उस पर केसरिया सिन्दूर में चमेली का तेल मिलाकर 18 बिन्दियां लगाएं। इसके बाद उस कपड़े को घर से दूर किसी विरानी जगह पर छोड़ आयें और घर आने के बाद मंगल के इस मंत्र का एक माला, यानी 108 बार जाप करें। मंत्र है - ॐ भौमाय नमः
 
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हरतालिका तीजे के दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए रखे निर्जला उपवास

झूठा सच @ रायपुर :- हिंदू धर्म में हरतालिका तीज व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका व्रत रखा जाता है. ये व्रत निर्जला और निराहर किया जाता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना होती है.ये त्योहार विशेषतौर से उत्तर भारत में मनाया जाता है. हरतालिका तीज के दिन लड़की के मायके से कपड़े, फल, फूल और मिठाई भेजी जाती है. आइए जानते हैं हरतालिका तीज से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में

 हरतालिका तीज शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 8 सितंबर के दिन बुधवार को देर रात 02 बजकर 33 मिनट पर हो रहा है और 09 सितंबर 2021 को रात 12 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगा. इस बार हरतालिका तीज के दिन दो मुहूर्त है एक सुबह के समय में और दूसरा प्रदोष काल में सूर्यास्त के बाद आता है.पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 03 मिनट से सुबह 08 बजकर 33 मिनट पर होगा. इसके अलावा प्रदोष काल में शाम 06 बजकर 33 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक रहेगा.

 हरतालिका पूजा विधि

हरतालिक तीज की पूजा प्रदोषकाल में होती है. इस दिन सुबह – सुबह उठकर स्नान करें और नए वस्त्र पहनकर व्रत और पूजा का संकल्प लें. इसके बाद पूजा स्थल की साफ- सफाई करें और उसके बाद केले के पत्ते पर मिट्टी से बने शिव, पार्वती और भगवान गणेश की पूजा- अर्चना करें. माता पार्वती को श्रृंगार का समान भेंट करें. इस दिन शाम के समय में व्रत कथा अवश्य सुनें और रात में जागरण करें. इसके बाद अगली सुबह व्रत का पारण करें. 

हरतालिका व्रत महत्व

सुहागिन महिलाएं हरतालिका तीज व्रत पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं. इसके अलावा कुंवारी महिलाएं मनचाहे पति की कामना के लिए व्रत रखती है. इस व्रत को करने के पुण्य से घर में सुख- समृद्धि आती है.

पूजा के नियम

1. हरतालिका तीज के दिन भगवान शिव, माता पार्वती और गणेशजी की मिट्टी से मूर्ति बनाएं. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है. पूरे दिन अन्न और जल नहीं ग्रहण करना चाहिए. इस व्रत का पारण अगले दिन सुबह माता पार्वती की पूजा के बाद पानी पीकर तोड़ती है.

2. हरतालिका तीज के दिन व्रत कथा का पाठ करना शुभ माना जाता है.

3. हरतालिका तीज की पूजा सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में करना सबसे शुभ माना जाता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती को वस्त्र अर्पित करना चाहिए
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रविवार को सूर्य को ऐसे चढ़ाएं जल, आरोग्य की होगी प्राप्ति

झूठा सच @ रायपुर :- सूर्यदेव को ग्रहों का राजा माना जाता है. उन्हें कलयुग में एकमात्र दृश्य देवता के तौर पर भी पहचाना जाता है. हिंदू धर्म में सूर्य देव का विशेष महत्व माना गया है. सूर्यदेव के नियमित पूजन से जीवन में शांति और खुशहाली आती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार सुबह नहाने के बाद रोजाना सूर्य देवता को जल चढ़ाने और रोज सूर्य नमस्कार करने से जीवन में बड़ा बदलाव होता है. वैदिक काल में भी भगवान सूर्य नारायण की उपासना का उल्लेख किया गया है. धार्मिक ग्रंथों में भी इसका उल्लेख है. महाभारत काल में रानी कुंती को सूर्य देव की कृपा से ही पहले पुत्र की प्राप्ति हुई थी. वहीं वेदों में सूर्य को जीवन, सेहत और शक्ति के देवता के तौर पर मान्यता है. सूर्यनारायण के सामने किए जाने वाले नमस्कार को सर्वांग व्यायाम भी कहा जाता है. 

सूर्य के 3 प्रहर की साधना
सूर्य की दिन में तीन प्रहर की साधना को विशेष फलदायी माना गया है.
1. प्रात:काल के वक्त सूर्य की साधना से आयोग्य प्राप्त होता है.
2. दोपहर में की गई आराधना साधक को मान-सम्मान दिलाती है.
3. शाम के वक्त की गई साधना सौभाग्य को जगाकर संपन्नता लाती है.

सूर्य को ऐसे चढ़ाएं जल
सूर्य को सभी ग्रहों का स्वामी माना जाता है. स्नान के बाद सूर्यनारायण को जल चढ़ाना चाहिए. धार्मिक मान्यता के साथ ही इसका वैज्ञानिक महत्व भी है. नहाने के बाद नीचे सिर्फ अंगोछा (टॉवेल) ही पहनना चाहिए बाकी पूरे बदन पर कपड़ा नहीं होना चाहिए. जल का लोटा लेकर गीले बदन ही सूर्य देवता की ओर मुंह कर के जल को चढ़ाना चाहिए. साथ ही सूर्य से निकलने वाली किरणें शरीर पर पड़ी जल की बूंदों में प्रवेश कर सात रंगों में विभक्त हो जाती हैं और इससे शरीर में जिस रंग की कमी होती है उसकी पूर्ति हो जाती है. इससे हमारे स्वास्थ्य में सुधार होता है और कुछ वक्त में ही शरीर आरोग्य प्राप्त करने लगता है | 
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आज जन्माष्टमी पर बन रहा है खास संयोग, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

आज देशभर में धूम- धाम से जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है. भादों मास में श्री कृष्ण की पूजा का खास महत्व है. कृष्ण जन्माष्टमी के दिन लोग पूरा दिन व्रत और पूजा करते हैं. इस साल श्रीकृष्ण का 5247वां जन्मोत्सव मनाया जा रहा है. हर साल जन्माष्टमी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. 

इस खास दिन पर घरों और मंदिरों में विशेष रूप से सजाया जाता है. जन्माष्टमी के दिन कृष्ण भक्त भगवान की भक्ति में डूबे रहते हैं, मंदिरों में रात 12 बजे तक भगवान कृष्ण के गीत गाएं जाते हैं. आइए जानते हैं इस दिनके शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व के बारे में जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त शास्त्रों के अनुसार इस बार जन्माष्टमी के दिन वैसा संयोग बन रहा है जैसा द्वापर युग में श्रीकृष्ण के जन्म पर बना था. इस बार जन्माष्टमी के दिन कई सारे शुभ संयोग बन रहे हैं. कृष्ण जन्मष्टमी पर जयंती और रोहिण नक्षत्र योग बन रहा है. इसके अलावा अष्टमी तिथि पर चंद्रमा वृषभ राशि में मौजूद रहेगा आज कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है. भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 29 अगस्त 2021 को रात 11 बजकर 25 मिनट पर शुरू हो गया जो 30 अगस्त 2021 की रात 02 बजे तक रहेगा. जन्माष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त 11 बजकर 59 मिनट से रात 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा.

जन्माष्टमी की पूजा विधि
जन्माष्टमी के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और स्वच्छ कपड़े पहनकर व्रत और पूजा करने का संकल्प लेते हैं. इस पूरे दिन कृष्ण भक्त व्रत रखते हैं और रात के 12 बजे में कृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं. जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण की बाल स्वरूप में पूजा होती है. रात्रि में पंचामृत से अभिषेक करें और फिर भगवान कृष्ण को नए वस्त्र, मोर मुकुट, बांसुरी, चंदन, वैजयंती माला, तुलसी, फल, फूल, मेवे, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित करें. फिर लड्डू गोपाल को झूला झुलाएं. इसके बाद माखन मिश्री या धनिया की पंजीरी का भोग लगाएं और बाद में आरती करके प्रसाद को वितरित करें.

जन्माष्टमी का महत्व
जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. खासतौर पर निसंतान दंपत्ति को जन्माष्टमी का व्रत करने से संतान प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से आपकी इच्छा जल्द पूरी होती है. कई लोग जन्माष्टमी के दिन विशेष उपाय करते हैं ताकि उन सभी परेशानियां दूर हो जाएं. ज्योतिषों के अनुसार इन उपायों को करने से आर्थिक समते पारिवारिक समस्याएं दूर हो जाती है. शास्त्रों में कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत को व्रतराज भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से आपकी सारे कष्ट दूर हो जाते हैं कई गुणा फल की प्राप्ति होती है.

पुत्र प्राप्ति मंत्र
ऊं देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।
जिन लोगों की कोई संतान नहीं है उन्हें इस का मंत्र का जाप व्रत रखते हुए 108 बार करना चाहिए.
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आज है बलराम जंयती, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि

झूठा सच @ रायपुर :- भगवान विष्णु के शेषावतार बलराम का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी माह की अष्टमी तिथि के दिन विष्णु जी के आठवें अवतार भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। बलराम ने भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप जन्म लिया था। बलराम जी को हलधर मतलब हलधारण करने वाले के रूप में भी जाना जाता है। इसलिए उनकी जयंती को हल षष्ठी के नाम से भी मनाया जाता है। इस दिन हल की जुताई से उगे हुए अनाज नहीं खाए जाते हैं। इस साल बलराम जंयती 28 अगस्त, दिन शनिवार को पड़ रही है। आइए जानते हैं भगवान बलराम के जन्म की पौराणिक कथा के बारे में....


बलराम जी के जन्म की पौराणिक कथा
भागवत पुराण के अनुसार बलराम या संकर्षण को भगवान विष्णु का शेषावतार माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का अंश माने जाने वाले शेषनाग, उनके हर अवतार के साथ अवश्य धरती पर आते हैं। भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के बड़े भाई के रूप में शेषनाग ने बलराम जी के नाम से अवतार लिआ था। कथा के अनुसार जब मथुरा नरेश कंस अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को विदा कर रहा था, उसी समय आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी में देवकी और वासुदेव की आंठवी संतान को कंस का काल बताया था।

माता रोहणी के गर्भ से बलराम का जन्म
इसलिए कंस ने देवकी और वासुदेव को कारगार में कैद कर दिया था। कंस ने एक-एक करके उनकी छह सांतानों को मार दिया था। लेकिन जब सांतवी संतान के रूप में शेषवतार भगवान बलराम गर्भ में स्थापित हुए। तो श्री हरि ने योग माया से उन्हें माता रोहणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया था। इसलिए उनका जन्म भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप में नंदबाबा के यहां हुआ। बलराम मल्लयुद्ध, कुश्ती और गदायुद्ध में पारंगत थे तथा हाथ में हल धारण करते थे। इसलिए उन्हे हलधर भी कहा जाता है। इनके जन्म को हल षष्ठी के रूप में मनाया जाता है।
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भगवान विष्णु के शेषावतार बलराम कल है जंयती

भगवान विष्णु के शेषावतार बलराम का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी माह की अष्टमी तिथि के दिन विष्णु जी के आठवें अवतार भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। बलराम ने भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप जन्म लिया था। बलराम जी को हलधर मतलब हलधारण करने वाले के रूप में भी जाना जाता है। इसलिए उनकी जयंती को हल षष्ठी के नाम से भी मनाया जाता है। इस दिन हल की जुताई से उगे हुए अनाज नहीं खाए जाते हैं। इस साल बलराम जंयती 28 अगस्त, दिन शनिवार को पड़ रही है। आइए जानते हैं भगवान बलराम के जन्म की पौराणिक कथा के बारे में....


बलराम जी के जन्म की पौराणिक कथा
भागवत पुराण के अनुसार बलराम या संकर्षण को भगवान विष्णु का शेषावतार माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का अंश माने जाने वाले शेषनाग, उनके हर अवतार के साथ अवश्य धरती पर आते हैं। भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के बड़े भाई के रूप में शेषनाग ने बलराम जी के नाम से अवतार लिआ था। कथा के अनुसार जब मथुरा नरेश कंस अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को विदा कर रहा था, उसी समय आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी में देवकी और वासुदेव की आंठवी संतान को कंस का काल बताया था।
 
माता रोहणी के गर्भ से बलराम का जन्म
इसलिए कंस ने देवकी और वासुदेव को कारगार में कैद कर दिया था। कंस ने एक-एक करके उनकी छह सांतानों को मार दिया था। लेकिन जब सांतवी संतान के रूप में शेषवतार भगवान बलराम गर्भ में स्थापित हुए। तो श्री हरि ने योग माया से उन्हें माता रोहणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया था। इसलिए उनका जन्म भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप में नंदबाबा के यहां हुआ। बलराम मल्लयुद्ध, कुश्ती और गदायुद्ध में पारंगत थे तथा हाथ में हल धारण करते थे। इसलिए उन्हे हलधर भी कहा जाता है। इनके जन्म को हल षष्ठी के रूप में मनाया जाता है।
 
डिसक्लेमर
'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

 

 

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भगवान विष्णु के शेषावतार बलराम कल है जंयती

भगवान विष्णु के शेषावतार बलराम का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी माह की अष्टमी तिथि के दिन विष्णु जी के आठवें अवतार भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। बलराम ने भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप जन्म लिया था। बलराम जी को हलधर मतलब हलधारण करने वाले के रूप में भी जाना जाता है। इसलिए उनकी जयंती को हल षष्ठी के नाम से भी मनाया जाता है। इस दिन हल की जुताई से उगे हुए अनाज नहीं खाए जाते हैं। इस साल बलराम जंयती 28 अगस्त, दिन शनिवार को पड़ रही है। आइए जानते हैं भगवान बलराम के जन्म की पौराणिक कथा के बारे में....


बलराम जी के जन्म की पौराणिक कथा
भागवत पुराण के अनुसार बलराम या संकर्षण को भगवान विष्णु का शेषावतार माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का अंश माने जाने वाले शेषनाग, उनके हर अवतार के साथ अवश्य धरती पर आते हैं। भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के बड़े भाई के रूप में शेषनाग ने बलराम जी के नाम से अवतार लिआ था। कथा के अनुसार जब मथुरा नरेश कंस अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को विदा कर रहा था, उसी समय आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी में देवकी और वासुदेव की आंठवी संतान को कंस का काल बताया था।
 
माता रोहणी के गर्भ से बलराम का जन्म
इसलिए कंस ने देवकी और वासुदेव को कारगार में कैद कर दिया था। कंस ने एक-एक करके उनकी छह सांतानों को मार दिया था। लेकिन जब सांतवी संतान के रूप में शेषवतार भगवान बलराम गर्भ में स्थापित हुए। तो श्री हरि ने योग माया से उन्हें माता रोहणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया था। इसलिए उनका जन्म भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप में नंदबाबा के यहां हुआ। बलराम मल्लयुद्ध, कुश्ती और गदायुद्ध में पारंगत थे तथा हाथ में हल धारण करते थे। इसलिए उन्हे हलधर भी कहा जाता है। इनके जन्म को हल षष्ठी के रूप में मनाया जाता है।
 
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संतान की सलामती के लिए महिलाओं ने रखा संकष्टी बहुला चतुर्थी का व्रत

 झूठा सच@रायपुर :- तान की सलामती और उसके लंबी दीर्घायु के लिए महिलाओं ने आज संकष्टी संग बहुला चतुर्थी का व्रत रखा है । इस दिन भगवान श्री गणेश के निमित्त व्रत किया जाता है । भाद्र कृष्ण पक्ष चतुर्थी को बहुला चौथ का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है इसे श्री संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है । ज्योतिष आचार्य ने बताया है कि इस दिन चंद्रमा मीन राशि में विराजमान रहेगा और उत्तराभाद्र नक्षत्र तृतीय और शूल योग का समावेश रहेगा |


 बहुला चौथ व्रत का विधि-विधान
  • बहुला चौथ में सौभाग्यवती माताएं पूजा-अर्चना कर अपने संतान की लंबी आयु अच्छे स्वास्थ धन ऐश्वर्य उन्नति के लिए कामना करेंगे.
  • वही आज के दिन चंद्रमा को देखने का बड़ा महत्व है। चंद्रमा को देखकर माताएं अपना व्रत तोड़ती हैं। आज रात 8:30 बजे माताएं चंद्रोदय के बाद शिव पार्वती और गणेश की पूजा कर चंद्रमा को उजला फूल …

 

 

 

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संतान की लंबी आयु के लिए रखें हरषष्टी व्रत, जानिए पूजन की विधि

झूठा सच @ रायपुर :- भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी व्रत है। यह पर्व बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है | चूंकि बलराम जी का प्रधान शस्त्र हल और मूसल है | इसीलिए बलराम को हलधर के नाम से भी जाना जाता है । इस दिन को हल षष्ठी, हरछठ या ललही छठ के रूप में मनाया जाता है | इस दिन गाय के दूध और दही का सेवन करना भी वर्जित है। इस दिन व्रत करने का भी विधान है।

हरछठ के दिन व्रत करने से श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है और जिनकी पहले से संतान है, उनकी संतान की आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है। इस बार 28 अगस्त को यह व्रत रख जाएगा। इस दिन बलराम के साथ-साथ भगवान शिव, पार्वती जी,गणेश, कार्तिकेय जी, नंदी और सिंह आदि की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।
 
इस दिन महिलाएं पड़िया वाली भैंस के दूध से बने दही और महुवा को पलाश के पत्ते पर खा कर व्रत का समापन करती हैं। इस दिन गाय के दूध और दही का सेवन करना भी वर्जित माना जाता है। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार षष्ठी तिथि 28 अगस्त को रात 8 बजकर 56 मिनट तक है
 
हरछठ की पूजा विधि
इस दिन सुबह सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर गोबर ले आएं। इसके बाद साफ जगह को इस गोबर से लीप कर तालाब बनाएं। इस तालाब में झरबेरी, ताश और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हरछठ को गाड़ दें। इसके बाद विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करें।
 
पूजा के लिए सतनाजा (यानी सात तरह के अनाज जिसमें आप गेंहू, जौ, अरहर, मक्का, मूंग और धान) चढ़ाएं इसके बाद हरी कजरियां, धूल के साथ भुने हुए चने और जौ की बालियां चढ़ाएं। इसके बाद कोई आभूषण और हल्दी से रंगा हुआ कपड़ा चढ़ाएं। इसके बाद भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन करें। इसके बाद हरछठ की कथा सुनें।
 
हरछठ की व्रत कथा
एक ग्वालिन गर्भवती थी। उसका प्रसव काल नजदीक था, लेकिन दूध-दही खराब न हो जाए, इसलिए वह उसको बेचने चल दी। कुछ दूर पहुंचने पर ही उसे प्रसव पीड़ा हुई और उसने झरबेरी की ओट में एक बच्चे को जन्म दिया। उस दिन हल षष्ठी थी। थोड़ी देर विश्राम करने के बाद वह बच्चे को वहीं छोड़ दूध-दही बेचने चली गई। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने गांव वालों ठग लिया। इससे व्रत करने वालों का व्रत भंग हो गया। इस पाप के कारण झरबेरी के नीचे स्थित पड़े उसके बच्चे को किसान का हल लग गया। दुखी किसान ने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और चला गया।
 
ग्वालिन लौटी तो बच्चे की ऐसी दशा देख कर उसे अपना पाप याद आ गया। उसने तत्काल प्रायश्चित किया और गांव में घूम कर अपनी ठगी की बात और उसके कारण खुद को मिली सजा के बारे में सबको बताया। उसके सच बोलने पर सभी ग्रामीण महिलाओं ने उसे क्षमा किया और आशीर्वाद दिया। इस प्रकार ग्वालिन जब लौट कर खेत के पास आई तो उसने देखा कि उसका मृत पुत्र तो खेल रहा था | 
 

 

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