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नवरात्रि में इन कार्यों को करने से मिलेगा माता का आशीर्वाद

9 अप्रैल से चैत्र मास की नवरात्रि का आरंभ हो चुका है जो कि 17 अप्रैल को समाप्त हो जाएगा। यह पर्व पूरे नौ दिनों तक चलता है जिसमें माता रानी के नौ अलग अलग स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाती है और व्रत आदि भी रखा जाता है माना जाता है कि ऐसा करने से देवी की कृपा बरसती है लेकिन अगर आप किसी कारणवश इस बार उपवास नहीं कर पाए है और कलश स्थापना की है तो ऐसे में दुखी या परेशान होने की जरूरत नहीं है नवरात्रि के नौ दिनों में कुछ खास कार्यों को करने से भी देवी मां की कृपा प्राप्त की जा सकती है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा उन्हीं कार्यों के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
चैत्र नवरात्रि में अगर आप व्रत व कलश स्थापना नहीं कर पाएं है तो ऐसे में आप नौ दिनों में माता के सभी नौ रूपों की पूजा व मंत्र जाप करके अपनी मनोकामना को पूरा कर देवी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं प्रतिपदा के दिन मां शैलपुत्री की पूजा जरूर करें माता के समक्ष घी का दीपक जलाएं और नैवेद्य अर्पित कर उनके मंत्रों का जाप करें।
वही दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा कर उन्हें भोग लगाएं और उनके मंत्रों का जाप सच्चे मन से करें ऐसा करने से लाभ मिलता है। वही तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा करें और उन्हें दूध से बनी चीजों का भोग लगाएं। इसके अलावा चतुर्थी पर मां कुष्माण्डा की पूजा कर उनके मंत्रों का जाप जरूर करें।
पंचमी ​तिथि पर स्कंधमाता की पूजा कर उन्हें केले का भोग लगाए इसके बाद माता के मंत्रों का जाप करें। षष्ठी पर कात्यायनी माता की पूजा कर उनके मंत्रों का जाप करें सप्तमी पर मां कालरा​त्रि की पूजा और मंत्र जाप करें। अष्टमी के दिन महागौरी का ध्यान करे और उनके मंत्रों का जाप करें। इसके बाद नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा कर उनके मंत्रों का जाप जरूर करें। माना जाता है कि ऐसा करने से सुख समृद्धि और संपन्नता आती है।
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चैत्र नवरात्रि : आज इस शुभ योग में करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

चैत्र मास की नवरात्रि का आरंभ कल यानी 9 अप्रैल दिन मंगलवार से हो चुका है और इसका समापन 17 अप्रैल को हो जाएगा। आज नवरात्रि का दूसरा दिन है जो कि माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप को समर्पित किया गया है इस दिन भक्त देवी दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से माता की कृपा प्राप्त होती है।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से साधक को विजय प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है और घर परिवार में सुख शांति व समृद्धि बनी रहती है, ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त और योग के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
ब्रह्मचारिणी पूजा का शुभ मुहूर्त-
चैत्र नवरात्रि की द्वितीया तिथि 10 अप्रैल को शाम 5 बजकर 32 मिनट तक है ऐसे में माता की उपासना कर सकते हैं आज यानी नवरात्रि के दूसरे दिन प्रीति योग का शुभ संयोग बन रहा है। इसके अलावा बालव और कौलव करण के भी योग का निर्माण हो रहा है।
शिववास योग का निर्माण-
ज्योतिष अनुसार नवरात्रि के दूसरे दिन महादेव मां गौरी के साथ रहेंगे। इस समय में पूजा करना अत्यंत लाभकारी होगा। आज के दिन शिववास यानी की भगवान शिव संध्याकाल 5 बजकर 32 मिनट तक मां गौरी के साथ रहेंगे। ऐसे में आज के दिन रुद्राभिषेक करने से घर परिवार में सुख समृद्धि का आगमन होता है और कष्ट दूर हो जाते हैं इस योग में साधना आराधना पुण्य प्रदान करती है।
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साल में सिर्फ 5 घंटे के लिए खुलता है यहां माता का दरबार

  • बिना तेल के नौ दिनों तक जलती हैं ज्योति
गरियाबंद। छत्तीसगढ़ में अनेक प्राचीन मंदिर हैं जो लोगों के आस्था का केंद्र बना हुआ हैं। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर निरई माता का मंदिर स्थित है। आमतौर पर मंदिरों में जहां दिन भर देवी-देवताओं की पूजा होती है, तो वहीं निरई माता का मंदिर साल में एक बार चैत्र नवरात्र के प्रथम रविवार को सिर्फ 5 घंटे के लिए यानी सुबह 4 बजे से 9 बजे तक माता के दर्शन किए जा सकते हैं। बाकी दिनों में यहां आना प्रतिबंधित होता है।
इस दिन यहां भक्तों का मेला लगता है। श्रद्धालु दूर-दूर से छत्तीसगढ़ के अलावा दूसरे राज्य से भी मातारानी के दर्शन को आते हैं। साथ ही यहां महिलाओं के लिए भी कई खास नियम बनाए गए हैं। कहते हैं कि निरई माता मंदिर में हर साल चैत्र नवरात्र के दौरान अपने आप ही ज्योति प्रज्जवलित होती है। यह चमत्कार कैसे होता है, यह आज तक पहेली ही बना हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि यह निरई देवी का ही चमत्कार है कि बिना तेल के ज्योति नौ दिनों तक जलती रहती है।
महिलाओं को निरई माता मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं-
निरई माता मंदिर में महिलाओं को प्रवेश और पूजा-पाठ की इजाजत नहीं है। यहां सिर्फ पुरुष ही पूजा-पाठ की रीतियों को निभाते हैं। महिलाओं के लिए इस मंदिर का प्रसाद खाना भी वर्जित है। कहते हैं कि महिलाएं अगर मंदिर का प्रसाद खा लें तो उनके साथ कुछ न कुछ अनहोनी हो जाती है।
ग्रामीण बताते है कि लोग माता के दर्शन को लालायित रहते हैं। भक्त निरई माता की जयकारे के साथ ऊंची पहाड़ी पर चढ़ते हैं। निरई माता निराकार हैं। जिसका कोई आकार नहीं, निरंक है। निरई माता के मंदिर में सिंदूर, सुहाग, श्रृंगार, कुमकुम, गुलाल, बंदन नहीं चढ़ाया जाता है।
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नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी को है समर्पित

  • जानिए...पूजा विधि और महत्त्व
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्माचरिणी की पूजा का विधान है. मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप माता ब्रह्मचारिणी का है. ब्रह्मचारिणी का अर्थ, ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ आचरण से है, यानी ये देवी तप का आचरण करने वाली हैं. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ये हिमालय की पुत्री थीं तथा नारद के उपदेश के बाद भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए इन्होंने कठोर तप किया. जिस कारण इनका नाम तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी पड़ा. मां का यह रूप काफी शांत और मोहक है. माना जाता है कि जो भक्त मां के इस रूप की पूजा करता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. मां का यह स्‍वरूप आपको ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए प्रेरित करता है. तो चलिए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी भोग रेसिपी और मंत्र.
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरुप-
मां ब्रह्मचारिणी स्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बांए हाथ में कमण्डल लिए हुए सुशोभित है. तप, त्याग और शक्ति की देवी हैं मां ब्रह्माचरिणी.
नवरात्रि के दूसरे दिन करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है. माता को शक्कर से बनी चीजें काफी प्रिय हैं. आप माता को शक्कर से बनी इस चीज का भोग लगा सकते हैं. पूरी रेसिपी के लिए यहां क्लिक करें.
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि-
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनें. इसके बाद मंदिर को अच्छे से साफ करें. देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और प्रार्थना करें. इसके बाद देवी को पंचामृत स्नान कराएं, फिर अलग-अलग तरह के फूल,अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें. देवी को सफेद और सुगंधित फूल चढ़ाएं. इसके अलावा कमल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं.
माता ब्रह्मचारिणी के मंत्र-
या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू.
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमाः
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गुड़ी पड़वा के मौके पर नीम मिश्रित जल से हुआ बाबा महाकाल का स्नान

उज्जैन। ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में भी आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा गुड़ी पड़वा धूमधाम से मनाई गई। इस दौरान पुजारियों ने कोटितीर्थ कुंड पर सूर्य को अर्घ्य देकर नवसंवत्सर का स्वागत किया। इसके बाद बाबा महाकाल को नीम के जल से स्नान कराकर पंचामृत पूजन अभिषेक किया गया। पुजारियों द्वारा भगवान को नीम-मिश्री का शर्बत अर्पित किया गया। इसके बाद भक्तों को प्रसादी वितरित की जाएगी। महाकाल मंदिर में आज मंदिर के शिखर पर नई ध्वजा भी स्थापित की गई.
पुजारी पं. महेश शर्मा ने बताया कि ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में भी यह परंपरा है। जिसका पालन समय-समय पर किया जाता है। चैत्र मास में ऋतु परिवर्तन तब होता है जब चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिंदू नववर्ष प्रारंभ होता है। यह महीना गर्मियों की शुरुआत का प्रतीक है। इसके प्रभाव से वात, कफ, पित्त बढ़ता है। यह कई बीमारियों का कारण बनता है। वात, कफ, पित्त के निदान के लिए नीम का सेवन महत्वपूर्ण है। आयुर्वेद में भी नीम मिश्री के सेवन को अमृत बताया गया है। नीम के पानी से नहाने से त्वचा रोग ठीक हो जाते हैं। इसलिए ज्योतिर्लिंग की परंपरा में पूरे विश्व को आयुर्वेद के माध्यम से समय का बोध, तिथियों का महत्व और स्वस्थ रहने का संदेश दिया जाता है। इसलिए इस दिन भगवान महाकाल को नीम युक्त जल से स्नान कराया जाता है। साथ ही नीम का पानी भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
भांग और ड्राईफूट से बना मेकअप-
विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में आज चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि मंगलवार को सुबह चार बजे भस्म आरती के दौरान पंडे पुजारी ने गर्भगृह में स्थापित भगवान की सभी मूर्तियों का पूजन कर जलाभिषेक किया। दूध, दही, घी, शकर फलों के रस से बने पंचामृत से भगवान महाकाल का पूजन किया गया। इसके बाद घंटा-घड़ियाल बजाकर सबसे पहले हरिओम जल अर्पित किया गया। कपूर आरती के बाद बाबा महाकाल को चांदी का मुकुट और रुद्राक्ष व फूलों की माला पहनाई गई. आज के शृंगार की खास बात यह रही कि एकम भस्मारती में आज बाबा महाकाल का शृंगार अलग रूप में किया गया। जिसमें बाबा महाकाल का भांग और सूखे मेवों से शृंगार किया गया. शृंगार के बाद बाबा महाकाल के ज्योतिर्लिंग को कपड़े से ढककर जलाभिषेक किया गया। भस्म आरती में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए, जिन्होंने बाबा महाकाल के इस दिव्य स्वरूप के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
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अप्रैल में कब मनाई जाएगी विनायक चतुर्थी, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

हिंदू धर्म में विनायक चतुर्थी उत्सव भगवान शिव के पुत्र गणपति बप्पा को समर्पित है। हर महीने कृष्ण चतुर्थी और शुक्ल पक्ष में भगवान गणेश की विशेष पूजा करने की परंपरा है। जीवन में सुख-शांति के लिए भी व्रत रखा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इससे साधक को सभी प्रकार की समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है और गणपति बप्पा प्रसन्न रहते हैं। आइए जानते हैं अप्रैल में विनायक चतुर्थी की पूजा का शुभ समय और विधि के बारे में।
शुभ विनायक चतुर्थी समय-
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारम्भ 11 अप्रैल को 15:03 बजे होगा। इसके अलावा, यह 12 अप्रैल को 13:11 बजे समाप्त होगा। ऐसे में उदय तिथि के अनुसार 12 अप्रैल को विनायक चतुर्थी मनाई जाएगी.
विनायक चतुर्थी पूजा विधि-
विनायक चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पहले उठें और देवी-देवताओं का ध्यान करके दिन की शुरुआत करें। इसके बाद स्नान कर साफ कपड़े पहन लें। साथ ही मंदिर को गंगा जल छिड़क कर शुद्ध करें। - अब चौकी पर साफ कपड़ा बिछाकर गणपति बप्पा की मूर्ति या तस्वीर रखें. फिर उन्हें फूल और सिन्नबार अर्पित करें। इसके बाद दीपक जलाएं और आरती करें. पूजा के दौरान मंत्र जाप और गणेश चालीसा का पाठ करना फलदायी माना जाता है। अंत में सुख, समृद्धि और धन में वृद्धि के लिए प्रार्थना करें। भोग लगाने के बाद लोगों को प्रसाद बांटें।
विघ्न निवारण मंत्र-
गणपतिर्विघ्नराजो लम्बातुण्डो गजाननः।
द्वैमतुरषा हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥
विनायकश्चरूकर्णः पशुपालो भवत्मजा।
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत् क्वचित्।
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नवरात्र पर 30 साल बाद बन रहा सबसे अद्भुत संयोग

वैदिक पंचांग के अनुसार, कल यानी 9 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा विधि-विधान से की जाती है। बता दें कि इस साल की नवरात्रि बहुत ही शुभ मानी जा रही है, क्योंकि मां शैलपुत्री घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं। ज्योतिषियों के अनुसार, इस बार की चैत्र नवरात्रि पर पूरे 30 साल बाद दुर्लभ और अद्भूत संयोग बनने वाला है। बता दें कि नवरात्रि के पहले दिन अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, शश योग और अश्विनी नक्षत्र जैसे अद्भूत संयोग बन रहा है। माना जाता है कि जब भी ये 4 दुर्लभ संयोग एक साथ बनते हैं तो पृथ्वी पर मौजूद सभी प्राणियों पर प्रभाव पड़ता है। तो आज इस खबर में जानेंगे कि नवरात्रि पर किन-किन राशियों को जबरदस्त लाभ मिलने वाला है।
मेष राशि-
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, नवरात्रि पर चार अद्भूत संयोग बनने से मेष राशि वाले लोगों पर मां दुर्गा मेहरबान रहेंगी। मां दुर्गा की कृपा से जातक को सभी कार्यों में सफलता मिलेगी। जो लोग नौकरी कर रहे हैं उनके पद में प्रमोशन हो सकता है। साथ ही कारोबार में जमकर वृद्धि होगी। जो लोग शादीशुदा नहीं हैं उनके लिए रिश्तों की बातचीत चल सकती है। छात्रों के लिए नवरात्र बहुत ही शुभ रहेगा। करियर से संबंधित अचानक खुशखबरी सुनने को मिल सकता है।
मिथुन राशि-
चैत्र माह की नवरात्रि पर मिथुन राशि वाले लोगों को लाभ ही लाभ होगा। बता दें कि मिथुन राशि वाले लोगों को कारोबार में जमकर मुनाफा हो सकता है। साथ ही किसी बड़े कारोबारी से मुलाकात हो सकती है। यह मुलाकात बहुत ही शुभ और लाभदायक रहने वाला है। पैतृक संपत्ती से धन का लाभ होगा। साथ ही माता जी की ओर से भी धन की प्राप्ति हो सकती है।
कर्क राशि-
ज्योतिषियों के अनुसार, चैत्र नवरात्रि के पहले दिन चार अद्भूत संयोग का फल कर्क राशि वाले लोगों के लिए अनुकूल साबित होगा। वैवाहिक जीवन में खुशियां बनी रहेंगी। साथ ही जीवन में सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेंगे। जो लोग राजनीति के क्षेत्र में जाना चाहते हैं उनके लिए यह नवरात्रि बहुत ही शुभ रहेगा। नवरात्रि के कुछ दिन बाद किसी बड़े नेता से मुलाकात हो सकती है। यह मुलाकात आगे के लिए बहुत ही शुभ रहेगी।
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चैत्र नवरात्रि का पहला दिन माता शैलपुत्री से प्रारंभ

  • जानिए... तिथि, समय, घटस्थापना मुहूर्त और पूजा विधि
चैत्र नवरात्रि का नौ दिवसीय शुभ त्योहार हिंदू चंद्र-सौर कैलेंडर के पहले दिन से शुरू होता है। इस वर्ष, यह 9 अप्रैल को है। यह त्योहार गर्मियों की शुरुआत का प्रतीक है और अन्य भारतीय त्योहारों जैसे महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा और कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में उगादी के साथ मेल खाता है। चैत्र नवरात्रि का त्योहार मां दुर्गा और उनके नौ दिव्य अवतारों की पूजा को समर्पित है। 9 अप्रैल को, हिंदू भक्त चैत्र नवरात्रि के पहले दिन को मनाते हैं और देवी के अवतार मां शैलपुत्री की पूजा करते हैं। वे घटस्थापना का बहुत महत्वपूर्ण अनुष्ठान भी करते हैं। जैसा कि हम त्योहार का पहला जश्न मनाते हैं, यहां आपको देवी शैलपुत्री और चैत्र नवरात्रि के पहले दिन की तारीख, समय, घटस्थापना मुहूर्त, पूजा विधि, रंग, सामग्री और बहुत कुछ के बारे में जानने की जरूरत है।
माँ शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ दिव्य अवतारों में से एक हैं। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन हिंदू भक्त उनकी पूजा करते हैं। समृद्धि और सभी सौभाग्यों की प्रदाता मानी जाने वाली माँ शैलपुत्री की भक्त प्रकृति माँ के रूप में जयजयकार करते हैं और उनसे अपनी आध्यात्मिक जागृति के लिए प्रार्थना करते हैं। देवी चंद्रमा को नियंत्रित करती हैं। द्रिक पंचांग के अनुसार, मां पार्वती का जन्म भगवान हिमालय की बेटी के रूप में हुआ था और आत्मदाह के बाद उन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना गया। संस्कृत में शैल का अर्थ है पर्वत, पुत्री का अर्थ है बेटी और शैलपुत्री पर्वत की बेटी है।
देवी शैलपुत्री बैल पर सवार हैं और उन्हें वृषारूढ़ा के नाम से जाना जाता है। उनके दो हाथ हैं - उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल है। वह पवित्रता, मासूमियत, शांति और शांति का प्रतीक है।
चैत्र नवरात्रि का पहला दिन 9 अप्रैल है। द्रिक पंचांग के अनुसार, नीचे पूजा का समय और शुभ मुहूर्त देखें:
घटस्थापना मुहूर्त: सुबह 6:02 बजे से 10:16 बजे तक
घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त: 9 अप्रैल सुबह 11:57 बजे से दोपहर 12:48 बजे तक
प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल को रात 11:50 बजे शुरू हो रही है
प्रतिपदा तिथि 9 अप्रैल को रात्रि 8:30 बजे समाप्त होगी
वैधृति योग 8 अप्रैल को सायं 6 बजकर 14 मिनट से प्रारंभ हो रहा है
वैधृति योग 9 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 18 मिनट पर समाप्त हो रहा है
चंद्र दर्शन का समय: शाम 6:44 बजे से शाम 7:29 बजे तक
चैत्र नवरात्रि 2024 दिन 1: रंग, पूजा विधि, सामग्री और अनुष्ठान
द्रिक पंचांग के अनुसार, नवरात्रि के तीसरे दिन से जुड़ा रंग सफेद है। इस दिन, भक्त जल्दी उठते हैं, स्नान करते हैं, मां शैलपुत्री और आदि शक्ति से आशीर्वाद लेते हैं और घटस्थापना या कलश स्थापना से जुड़े अनुष्ठान करते हैं। घटस्थापना शारदीय नवरात्रि के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। घटस्थापना के लिए भक्त घर में किसी पवित्र स्थान पर कलश स्थापित करते हैं। मटके के पास नौ दिनों तक दीया जलाते हैं। वे एक पैन में मिट्टी और नवधान्य के बीज भी रखते हैं और उसे पानी से भर देते हैं।
कलश में गंगा जल भरा जाता है। जल में कुछ सिक्के, सुपारी और अक्षत (कच्चा चावल और हल्दी पाउडर) डाला जाता है। कलश के चारों ओर आम के पांच पत्ते रखकर नारियल से ढक दिया जाता है। फिर, भक्त माँ शैलपुत्री के पास एक तेल का दीपक, अगरबत्ती, फूल, फल और मिठाई रखते हैं। देवी को देसी घी का विशेष भोग भी लगाया जाता है।
चैत्र नवरात्रि 2024 दिन 1 : पूजा मंत्र, प्रार्थना, स्तुति और स्तोत्र:
1) ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः
2) वन्दे वांच्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्
वृषारूढं शूलधरं शैलपुत्रीं यशस्विनीम्
3) या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
4) प्रथमा दुर्गा त्वमहि भवसागरः तारानिम्
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्
त्रिलोजानानि त्वमहि परमानन्द प्रदीयमान्
सौभाग्यरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्
चराचरेश्वरी त्वमहि महामोह विनाशिनीम्
मुक्ति भुक्ति दायिनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्।
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अयोध्या में पहली नवरात्रि उत्सव एक भव्य अवसर में बदलने के लिए तैयार

  • राम लला को प्रतिदिन पहनाए जाएंगे नए वस्त्र
अयोध्या। रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या में पहली नवरात्रि उत्सव एक भव्य अवसर में बदलने के लिए तैयार है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा- "मंगलवार से चैत्र नवरात्रि शुरू हो रहा है, जो 17 अप्रैल यानी भगवान राम के जन्म तक चलेगा। इस दौरान राम लला की मूर्ति को प्रति दिन नए वस्त्र पहनाए जाएंगे।"
मंदिर ट्रस्ट ने राम लला को पहनाए जाने वाले वस्त्रों की झलक भी सोशल मीडिया पर साझा की है। इन वस्त्रों को बुनी हुई और हाथ से काती गई खादी सूती से बनाया गया है। मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी आमद को ध्यान में रखते हुए ट्रस्ट ने सभी से मोबाइल फोन नहीं लाने की अपील की है।
ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा, "अगर आप जल्दी से राम लला के दर्शन करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको सबसे पहले अपने मोबाइल फोन और जूतों को खुद से दूर रखना होगा। अगर आप ऐसा करते हैं, तो बहुत मुमकिन है कि आप जल्दी से भगवान राम के दर्शन कर सकेंगे।" इस बीच, आगामी उत्सव को ध्यान में रखते हुए अर्धसैनिक बलों और पुलिस को बड़ी संख्या में तैनात किया गया है। आसपास के जिलों की पुलिस को भी सुरक्षा-व्यवस्था बनाए रखने के लिए काम में लगाया गया है।
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नवरात्रि में करें हल्दी के ये चमत्कारी उपाय

  • जीवन में आएगी खुशहाली
चैत्रर नवरात्रि आरंभ 9 अप्रैल से होने वाला है। इस दौरान माता के 9 स्वरूपों की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाएगा। चैत्र नवरात्रि में हल्दी से जुड़े कुछ उपायों को करना शुभ माना जाता है। ऐसे करने जीवन की परेशानियाँ खत्म होती हैं। हिन्दू धर्म में हल्दी का खास महत्व होता है। मांगलिक कार्यों और पूजा में इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करता है।
धनलाभ के लिए आजमाएं ये खास उपाय-
हल्दी के साथ 5 कौड़ियों को डालकर पीले रंग के वस्त्र में बांध दें। अब इसे तिजोरी या घन के स्थान पर रख दें। मान्यताएं हैं ऐसा करने से धन-समृद्धि में वृद्धि होती है। आर्थिक तंगी नहीं होती है।
शुक्रवार के दिन करें ये खास उपाय-
चैत्र नवरात्रि के दौरान शुक्रवार के दिन एक लाल रंग के कपड़े में हल्दी, चावल और केसर बांध दें। इसे माँ लक्ष्मी के चरणों में समर्पित करें। पूजा के बाद इस कपड़े में थोड़ा सा चावल निकाल कर तिजोरी में रख लें। ऐसा करने से धन और अन्न की कभी कमी नहीं होती।
सुख-समृद्धि के लिए-
नवरात्रि की पूजा के दौरान पूजा की थाली पर हल्दी से स्वस्तिक बनाएं। एक मुट्ठी भीगे हुए पीले चावल थाली में रख दें। फिर इसमे ऊपर मिट्टी के दीपक में घी और हल्दी डालकर जलाएं। ऐसा करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। बुरी नजर से छुटकारा मिलता है।
छठवें दिन करें ये काम-
चैत्र नवरात्रि के छठवें दिन माँ कात्यानी को 3 हल्दी की गाँठ अर्पित जरें। मंत्रों का जाप करें। पूजा के बाद हल्दी को अपने पास कर लें। ऐसा करने से विवाह के योग बनते हैं। माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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जानिए...कब हैं साल का दूसरा सूर्य ग्रहण

नई दिल्ली। सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है. इस वर्ष आश्विन अमावस्या 2 अक्टूबर को पड़ेगी। इसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है। सनातन शास्त्रों में आश्विन मास के कृष्ण पक्ष से लेकर अमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष मनाया जाता है। इस समय पितर धरती पर आते हैं। इसलिए आश्विन अमावस्या के दिन लोग अपने पितरों के लिए तर्पण और पिंडदान करते हैं। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और दान दिया जाता है। गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों को तर्पण करने से पूर्वज (मृतक) प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा से मनुष्य इस नश्वर संसार में सभी संभव सांसारिक सुख प्राप्त करता है। ज्योतिषियों के मुताबिक, साल का दूसरा सूर्य ग्रहण आश्विन अमावस्या तिथि पर लगेगा। आइए और हम सभी को आश्विन अमावस्या के दिन पड़ने वाले साल के दूसरे सूर्य ग्रहण के बारे में बताएं।
सनातन पंचांग के अनुसार आश्विन अमावस्या 1 अक्टूबर को रात 9 बजकर 39 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन तक रहेगी. घंटा। 3 अक्टूबर (अंग्रेजी कैलेंडर), 00:18 बजे समाप्त होगा। इसलिए आश्विन अमावस्या 2 अक्टूबर को मनाई जाती है।
दूसरा सूर्य ग्रहण कब लगेगा?-
ज्योतिषियों के मुताबिक आश्विन अमावस्या को साल का दूसरा सूर्य ग्रहण लगेगा। इस वर्ष आश्विन अमावस्या यानि की अमावस्या है। गांधी जयंती, 2 अक्टूबर को होगी. यह सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। इस प्रयोजन के लिए सूतक मान्य नहीं है। इस साल का दूसरा सूर्य ग्रहण दुनिया भर के कई देशों में दिखाई देगा। हालांकि ग्रहण के दौरान महामृत्युंजय मंत्र का जाप जरूर करें। महामृत्युंजय मंत्र का जाप राहु के हानिकारक प्रभावों को कम करता है।
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कल नवरात्रि का पहला दिन, ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा

नई दिल्ली। नवरात्रि का पहला दिन कल है, नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना की जाती है. हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है. नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त में घटस्थापना करते हैं. जिसे कलश स्थापना भी कहा जाता है. जौ बोने के साथ-साथ कई लोग अखंड ज्योति भी जलाते हैं. इस बार चैत्र नवरात्रि 09 अप्रैल 2024, मंगलवार से शुरू होकर 17 अप्रैल 2024, तक है. भक्त मां दुर्गा के नौ रूपों की 9 दिनों तक भक्ति भाव से पूजा करते हैं. माना जाता है जो भक्त मां कि भक्ति और श्रद्धा से आराधना करते हैं, मां दुर्गा 9 दिनों तक उनके घरों में विराजमान रहकर उनपर अपनी कृपा बरसाती हैं. माना जाता है कि देवी दुर्गा ने 9 अलग-अलग अवतार लेकर राक्षसों का अंत किया था. और भक्त उन्हें इन्हीं 9 रूपों में पूजते हैं. नवरात्रि के नौ दिनों को बेहद ही पावन माना जाता है. नौ दिनों तक मास, शराब आदि का सेवन नहीं किया जाता. कई लोग इन नौ दिनों तक प्याज, लहसुन का भी सेवन नहीं करते हैं. तो चलिए जानते हैं नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की कैसे करें पूजा और क्या है भोग रेसिपी.
नवरात्रि 2024 माता शैलपुत्री भोग-
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप को गाय के घी और दूध से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है. आप माता को गाय के दूध से बनी बर्फी, खीर या घी से बने हलवे का भोग लगा सकते हैं. गाय के दूध से बनी बर्फी को आप व्रत के दौरान भी खा सकते हैं.
मां शैलपुत्री मंत्र-
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।
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सोमवती अमावस्या आज, महिलाओं ने की पति की लंबी आयु की कामना

नई दिल्ली। सोमवती अमावस्य का पर्व सोमवार को पूरे देश में श्रद्धा भक्ति के साथ मनाया गया। इस अवसर पर महिलाओं ने नदियों में स्नान कर और पीपल के वृृक्ष की परिक्रमा कर पति की लंबी आयु व सुख-समृद्धि की कामना की।
इस मौके पर हरिद्वार में सुबह से ही श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगा रहे हैं। हर की पैड़ी पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ है। ब्रह्म कुंड से लेकर गंगा के विभिन्न घाटों पर श्रद्धालु स्नान कर रहे है। जिला प्रशासन ने पूरे क्षेत्र को 29 जोन और 39 सेक्टर में बांटकर व्यवस्था को बनाने का प्रयास किया है। नोडल अधिकारी व एसपी सिटी स्वतंत्र कुमार सिंह ने बताया कि बीती रात 12 बजे से ही यातायात प्लान लागू कर दिया गया है। इसी प्रकार संगम नगरी प्रयागराज में भी गंगा में स्नान कर व पीपल के वृक्ष की परिक्रमा कर महिलाओ ने पति की लंबी आयु की कामना की। देश के दूसरे भागों में भी लोग भक्ति भाव से पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
इस बार सोमवती अमावस्या पर बहुत ही दुलर्भ संयोग है। इंद्र योग बन रहा है। इस दिन स्नान, दान करने से पितृ तो प्रसन्न होते ही हैं, उनका आशीर्वाद बना रहता है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक इस दिन समस्त शिव परिवार और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा अर्चना करनी चाहिए। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की अमावस्या तिथि आठ अप्रैल की सुबह तीन बजकर 31 मिनट से मध्य रात्रि 11 बजकर 50 मिनट तक है। इस दौरान स्नान, दान, पूजा-अर्चना की जा सकती है।
इस दिन पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए और पितरों का तर्पण भी करना चाहिए। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। सोमवती अमावस्या के दिन समस्त शिव परिवार और माता लक्ष्मी को चावल की खीर का भोग अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और देवी-देवता मनोवांछित फल की कामना को पूरा करते हैं।
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सोमवती अमावस्या स्नान के लिए पुलिस ने रूट प्लान घोषित किया

  • एसएसपी प्रमेंद्र सिंह डोबले ने अधिकारियों को दिये आवश्यक दिशा-निर्देश
उत्तराखंड। सोमवार को होने वाले सोमवती अमावस्या स्नान के लिए पुलिस ने रूट प्लान घोषित कर दिया है. रविवार की रात 12 बजे से सोमवार को स्नान समाप्ति तक शहर में भारी वाहनों का प्रवेश वर्जित रहेगा. एसएसपी प्रमेंद्र सिंह डोबले ने अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिये हैं.
एसपी ट्रैफिक पंकज गैरोला ने बताया कि सोमवती स्नान को लेकर रूट प्लान जारी कर दिया गया है। कई राज्यों से आने वाले वाहनों के लिए रूट और पार्किंग स्थल तय कर दिए गए हैं. दिल्ली, मेरठ, मुजफ्फरनगर से स्नान के लिए आने वाले वाहन नारसन, मंगलौर, कोर कॉलेज, ख्याति ढाबा, गुरुकुल कांगड़ी, शंकराचार्य चौक होते हुए हरिद्वार आएंगे और अलकनंदा, दीनदयाल, पंतद्वीप, चमकधार द्वीप पर पार्क होंगे।
अधिक दबाव बढ़ने के कारण मंगलौर से नगला को अमरती अंडरपास, लंढौरा, लक्सर, सुल्तानपुर, फेरुपुर, एसएम तिराहा से श्रीयंत्र पुलिया पार्किंग बैरागी कैंप की ओर मोड़ दिया जाएगा। पंजाब, हरियाणा से आने वाले वाहन सहारनपुर, मंडावर, भगवानपुर, सालियर, बिजौली चौक, एनएच 344, नगला अमरती, कोर कॉलेज, बहादराबाद बाईपास, हरिलोक तिराहा, गुरुकुल कांगड़ी होते हुए हरिद्वार आएंगे और अलकनंदा, दीनदयाल, दीनदयाल पर पार्क होंगे।
दिल्ली से आने वाली पर्यटक बसें, ट्रैक्टर-ट्रॉलियां ऋषिकुल ग्राउंड, सेफ पार्किंग, हरीराम इंटर कॉलेज में पार्क की जाएंगी। नजीबाबाद, यूपी से आने वाले छोटे वाहनों को चिड़ियापुर, श्यामपुर, चंडी चौक, चंडी चौक होते हुए दीनदयाल, पंतद्वीप, चमगादड़ टापू पर पार्क किया जाएगा। देहरादून-ऋषिकेश की ओर से आने वाले वाहनों को नेपाली फार्म, रायवाला, दूधाधारी तिराहा से मोतीचूर पार्किंग स्थल तक भेजा जाएगा।
नजीबाबाद, यूपी से हरिद्वार आने वाले हल्के वाहन/बसें रोडवेज बस स्टैंड गौरी शंकर पार्किंग में रुकेंगी। नजीबाबाद से देहरादून जाने वाले वाहन 4.2.25 से गौरी शंकर, हनुमान चौक, दक्षिणी काली तिराहा, भीमगोरा, बैराज, हाईवे, चंडीघाट चौक अंडरपास से यू-टर्न लेकर देहरादून के लिए प्रस्थान करेंगे। आवश्यक सेवाओं के अलावा नजीबाबाद से हरिद्वार की ओर आने वाले भारी वाहनों को मंडावली से लक्सर, पथरी, सिंहद्वार होते हुए बालावाली पुल तक भेजा जाएगा।
देहरादून-ऋषिकेश, विक्रम की ओर से आने वाले ऑटो को जयराम मोड़ से यू-टर्न लेकर वापस भेजा जाएगा। ज्वालापुर से आने वाले ऑटो विक्रम शिवमूर्ति तिराहा से तुलसी चौक होते हुए देवपुरा तिराहा वापस आएंगे। जगजीतपुर से आने वाले सिंहद्वार से लौटेंगे। कनखल से आने वाले लोग तुलसी चौक से होकर लौटेंगे। बीएचईएल की ओर से आने वाले विक्रम/ऑटो, ई-रिक्शा टिबड़ी गेट, पुराना रानीपुर मोड से भगत सिंह चौक होते हुए ऋषिकुल तिराहा के अंदर वापस आएंगे।
सोमवार 8 अप्रैल को होने वाले सोमवती अमावस्या स्नान पर्व की तैयारियों का जायजा लेने के लिए एडीजी एपी अंशुमन और आईजी गढ़वाल करण सिंह नाग्याल शनिवार को हरिद्वार पहुंचे। मेला नियंत्रण भवन में बैठक कर आवश्यक निर्देश दिये गये. मेले के क्षेत्र को पांच सुपर जोन, 16 जोन और 39 सेक्टर में बांटा गया है.
मेला नियंत्रण भवन पहुंचने पर एडीजी एपी अंशुमन और आईजी गढ़वाल करण सिंह नाग्याल को सलामी दी गई। एडीजी एपी अंशुमन ने कहा कि चुनाव के बीच पड़ने वाली सोमवती अमावस्या का स्नान काफी चुनौतीपूर्ण होता है. स्नानार्थियों के लिए भारी भीड़ होने की संभावना है। सभी तैयारियां पूरी रखें. अनावश्यक भीड़भाड़ को समाप्त कर यातायात योजना को ठोस ढंग से क्रियान्वित करें।
आईजी करण सिंह नाग्याल ने कहा कि मेला क्षेत्र से अस्थायी अतिक्रमण हटाया जाए। मनसा देवी, चंडी देवी रोपवे का भी भौतिक निरीक्षण किया जाय। एसएसपी प्रमेंद्र सिंह डोबले ने सोमवती स्नान उत्सव को लेकर यातायात और भीड़ नियंत्रण का खाका साझा किया और बैकअप प्लान के बारे में जानकारी दी.
उन्होंने बताया कि सुरक्षा की दृष्टि से मेला क्षेत्र को पांच सुपर जोन, 16 जोन तथा 39 सेक्टर में बांटा गया है। बैठक में एसपी ग्रामीण स्वप्न किशोर सिंह, एसपी सिटी स्वतंत्र कुमार सिंह, एएसपी संचार विपिन कुमार, एएसपी अपराध/यातायात पंकज कुमार गैरोला, सीओ सिटी जूही मनराल आदि मौजूद रहे।
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कब मनाया जाएगा ईद-उल-फितर का पर्व, जानें महत्व

ईद-उल-फितर का त्योहार मुस्लिम समुदाय के लिए बेहद खास है. यह त्यौहार न केवल देश में बल्कि देश के बाहर भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। ईद-उल-फितर को ईद शिरीन भी कहा जाता है। मुस्लिम समुदाय के लोग रमजान के पूरे महीने रोजा रखते हैं और खुदा की इबादत करते हैं। आपकी जानकारी के लिए: ईद-उल-फितर की तारीख केवल चंद्रमा को देखकर ही निर्धारित की जा सकती है। इस साल रमजान 12 मार्च 2024 से शुरू हुआ। साथ ही हम आपको बताएंगे कि इस बार ईद किस दिन होगी।
ईद-उल-फितर 2024 कब है?-
ईद-उल-फितर दसवें इस्लामी महीने शव्वाल के पहले दिन और पवित्र रमजान महीने के आखिरी दिन चांद दिखने के बाद मनाया जाता है। ईद की सही तारीख अभी तय नहीं हुई है. अनुमान है कि ईद 10 अप्रैल को मनाई जाएगी जब 29वें दिन के अंत में चंद्रमा दिखाई देगा। यदि इसे 30वें महीने के उपवास की समाप्ति के बाद मनाया जाता है, तो 11 अप्रैल को ईद मनाना संभव है। ईद की तारीख चांद देखकर तय की जाती है.
ईद-उल-फितर का अर्थ-
मुस्लिम समुदाय के लोग ईद के महीने में रोजा रखने की ताकत देने के लिए खुदा का शुक्रिया अदा करते हैं. ईद के दिन सुबह लोग प्रार्थना करते हैं और उसके बाद ईद का जश्न शुरू हो जाता है। इस समारोह में लोग नए कपड़े पहनते हैं। वे एक-दूसरे को गले लगाते हैं और बधाई देते हैं। उपहारों का आदान-प्रदान भी होगा। इस दिन खासतौर पर मीठी सेवइयां बनाई जाती हैं. इसके अलावा, लोग अपनी आय का कुछ हिस्सा प्रसाद के माध्यम से दान करते हैं, जिससे इस त्योहार का महत्व और भी बढ़ जाता है।
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अक्षय तृतीया 10 मई को, जानिए...पूजा का शुभ मुहूर्त

अक्षय तृतीया, जिसे आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है, महत्वपूर्ण महत्व रखती है और इसे हिंदुओं के लिए एक पवित्र दिन माना जाता है। यह वैशाख माह के शुक्ल पक्ष के दौरान होता है। बुधवार और रोहिणी नक्षत्र के साथ अक्षय तृतीया का संयोग विशेष रूप से शुभ माना जाता है। 'अक्षय' शब्द का तात्पर्य शाश्वत या कभी न घटने वाला है। इसलिए, माना जाता है कि इस दिन किए गए जप, यज्ञ, पितृ-तर्पण या दान-पुण्य जैसे किसी भी आध्यात्मिक अभ्यास से शाश्वत लाभ मिलते हैं जो व्यक्ति के साथ अनिश्चित काल तक बने रहते हैं।
इसके अलावा, अक्षय तृतीया को सौभाग्य और सफलता लाने वाला माना जाता है। बहुत से लोग इस दिन सोना खरीदना पसंद करते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सोना खरीदने से समृद्धि आती है और भविष्य में धन में वृद्धि होती है। चूंकि यह अक्षय दिन है, इसलिए माना जाता है कि इस अवसर पर खरीदा गया सोना कभी कम नहीं होता, बल्कि समय के साथ बढ़ता रहता है।
यह दिन हिंदू त्रिदेवों के संरक्षक देवता भगवान विष्णु से जुड़ा है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रेता युग, हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान के चार युगों में से एक, अक्षय तृतीया पर शुरू हुआ था। आमतौर पर, अक्षय तृतीया और भगवान विष्णु के छठे अवतार की जयंती, परशुराम जयंती एक साथ आती है, हालांकि तृतीया तिथि के शुरुआती समय के आधार पर, परशुराम जयंती अक्षय तृतीया से एक दिन पहले पड़ सकती है।
इस वर्ष, अक्षय तृतीया 10 मई, 2024 को है, जो शुक्रवार है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान परशुराम, नर-नारायण और हयग्रीव का अवतार हुआ था। इसके अतिरिक्त सतयुग, त्रेतायुग और कलियुग की शुरुआत भी अक्षय तृतीया से ही मानी जाती है। अक्षय का अर्थ है कभी न ख़त्म होने वाली खुशी, जो कभी कम नहीं होती, शाश्वत और सफलता, और तृतीया का अर्थ है 'तीसरा'।
अक्षय तृतीया तिथि-
पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 10 मई 2024 को सुबह 4:17 बजे शुरू होगी और 11 मई 2024 को सुबह 2:50 बजे समाप्त होगी.
पूजा मुहूर्त-
10 मई 2024 को अक्षय तृतीया के दौरान पूजा का शुभ समय सुबह 5:45 बजे से दोपहर 12:05 बजे तक है. इस दिन लक्ष्मी-नारायण और कलश पूजा की जाती है और नए उद्यम शुरू करना शुभ माना जाता है, क्योंकि पूरा दिन शुभ माना जाता है।
खरीदारी का मुहूर्त-
माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर शुभ अनुष्ठान करने के साथ-साथ सोना-चांदी और संपत्ति खरीदने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने का शुभ समय 11 मई 2024 को सुबह 5:45 बजे से 2:50 बजे तक है।
चौघड़िया मुहूर्त-
प्रातःकाल का मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत)- प्रातः 5:45 से प्रातः 10:30 तक
दोपहर का मुहूर्त (चार)- शाम 4:51 बजे से शाम 6:26 बजे तक
दोपहर का मुहूर्त (शुभ)- दोपहर 12:05 बजे से दोपहर 1:41 बजे तक
रात्रि मुहूर्त (लाभ)- रात्रि 9:16 बजे से रात्रि 10:40 बजे तक।
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शनि प्रदोष व्रत पर ऐसे करें शिव पूजा, जानें पूजा विधि

सनातन धर्म में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन प्रदोष व्रत को बेहद ही खास माना गया है जो कि शिव पूजा को समर्पित होता है इस दिन भक्त भगवान शिव की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं पंचांग के अनुसार हर माह की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत किया जाता है जो कि माह में दो बार आता है।
अभी चैत्र मास चल रहा है और इस माह का प्रदोष व्रत 6 अप्रैल दिन शनिवार यानी आज किया जाएगा। शनिवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने के कारण इसे शनि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जा रहा है इस दिन शिव साधना अगर विधि विधान से की जाए तो सुख समृद्धि और संपन्नता का आशीर्वाद मिलता है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा शिव पूजा की संपूर्ण विधि बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
शनि प्रदोष व्रत पूजा विधि-
आपको बता दें कि प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें इसके बाद संध्याकाल के समय शुभ मुहूर्त में पूजन करें। पूजा में गाय के कच्चे दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल आदि लेकर शिव का अभिषेक करें। इसके बाद बेलपत्र पर चंदन लगाकर भगवान शिव को अर्पित करें फिर पुष्प, धतूरा, आक के पुष्प आदि शिवलिंग पर चढ़ाएं।
इन सभी चीजों को अर्पित करने के बाद शिव को प्रसन्न करने के लिए शनि प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें। इसके बाद भगवान शिव की आरती करें और भोग लगाएं। आप चाहें तो इस दिन शिव चालीसा और मंत्र का जाप भी कर सकते हैं ऐसा करने से भोलेबाबा की कृपा प्राप्त होती है और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
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चैत्र नवरात्रि में करें ये उपाय, कई परेशानियों से मिलेगा छुटकारा

नई दिल्ली। साल भर में दो बार नवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है। पहली नवरात्रि चैत्र माह में मनाई जाती है वहीं दूसरी नवरात्रि आश्विन माह में मनाई जाती है। साल 2024 में 9 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है और इसका समापन 17 अप्रैल को होगा। नवरात्रि को लेकर देशभर में अलग ही उत्साह और उल्लास देखने को मिलता है। चैत्र नवरात्रि मां दुर्गा की पूजा का पर्व है। इस दौरान नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के नौ दिनों तक भक्तजन मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के उपाय करते रहते हैं। अगर आप भी जीवन के संकटों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आपको इस बार चैत्र नवरात्रि के दौरान कुछ उपाय जरूर करना चाहिए।
आर्थिक तंगी से छुटकारा पाने के लिए करें यह उपाय-
चैत्र नवरात्रि के 9 दिन न केवल आध्यात्मिकता और आत्मिक शुद्धि का समय है, बल्कि समृद्धि और सुख शांति प्राप्ति का भी अवसर है। यदि आप आर्थिक तंगी से परेशान हैं, तो चैत्र नवरात्रि के दौरान आप मां दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष उपाय कर सकते हैं। नवरात्रि के दौरान एक चांदी का सिक्का अपनी तिजोरी में रख दें। सबसे पहले चांदी के सिक्के को गंगाजल से धोकर मां दुर्गा को अर्पित करें। इसके बाद सिक्के को अपनी तिजोरी में सबसे सुरक्षित स्थान पर रखें। ऐसा माना जाता है कि इस उपाय को करने से मां दुर्गा आपकी आर्थिक समस्याओं को दूर करेंगे और आपके घर में धन-धान्य की वृद्धि हो करेंगी।
सकारात्मक ऊर्जा पाने के लिए करें यह उपाय-
चैत्र नवरात्रि, मां दुर्गा की पूजा का पावन पर्व न केवल आध्यात्मिकता और आत्मिक शुद्ध का समय है, बल्कि घर में सुख शांति लाने का भी अवसर है। यदि आपके घर में अक्सर लड़ाई झगड़े होते रहते हैं और नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव रहता है, तो आप चैत्र नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा को लाल फूल चढ़कर और फिर घर की पूर्व दिशा में मिट्टी में गाड़कर नकारात्मकता दूर कर सकते हैं। यह माना जाता है कि लाल रंग सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है और मां दुर्गा को लाल फूल चढ़ाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।वहीं, पूर्व दिशा को सूर्योदय की दिशा माना जाता है, जो नई शुरुआत और सकारात्मक का प्रतीक है। इसलिए घर की पूर्व दिशा में फूल गाड़ने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर में सकारात्मक का वातावरण बनता है।
मन शांत और एकाग्रता बढ़ाने के लिए करें यह उपाय-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि के दौरान विधि विधान से मां दुर्गा की पूजा करने और दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से बिगड़े काम बनने लगते हैं और भाग्य का पूर्ण साथ मिलता है। दुर्गा सप्तशती मां दुर्गा का महिमा मंडित ग्रंथ है। इसका पाठ करने से मन को शांति मिलती है, पापों का नाश होता है और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। इतना ही नहीं दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वैवाहिक सुख पाने के लिए करें यह उपाय-
नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा को मोगरा के फूल अर्पित करें। मां दुर्गा को मोगरा का फूल अत्यंत प्रिय है। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा को मोगरा का फूल चढ़ाने से घर में सुख समृद्धि आती है और धन-धान्य की वृद्धि होती है। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा को मोगरा का फूल चढ़ाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मकता दूर होती है। इसके अलावा मोगरा का फूल प्रेम और वैवाहिक सुख का प्रतीक है। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा को मोगरा का फूल चढ़ाने से अविवाहित लोगों को योग्य जीवन साथी मिलता है। इस फूल को मां दुर्गा को अर्पित करने से पति-पत्नी के बीच प्रेम और बंधन मजबूत होता है।
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