रायपुर @झूठा-सच : मैथिलीशरण गुप्त को काव्य क्षेत्र का शिरोमणि कहा जाता है। वे हिन्दी साहित्य के इतिहास में खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं।उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी थी। 12 दिसंबर 1964 को उन्होंने अंतिम सांस ली थी।
आज उनकी 58वीं पुण्यतिथि के अवसर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उन्हे नमन किया है। श्री बघेल ने उनकी कृतियों को याद करते हुए कहा कि मैथिलीशरण गुप्त जी की राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना से ओतप्रोत खड़ी बोली की रचनाओं ने बड़े वर्ग पर प्रभाव डाला। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनकी रचनाओं के प्रभाव को देखते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि दी थी। उन्होंने खड़ी बोली को काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और नये कवियों को प्रेरित किया। गुप्त जी को उनके कालजयी साहित्य के लिए पद्मभूषण सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि गुप्त जी की रचनाएं भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं जो नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करती रहेगी।