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कैबिनेट सरकार ने मंजूर किया MLAs की सैलरी बढ़ाने का प्रस्ताव

दिल्ली :- सरकार ने विधायकों की तनख्वाह में बंपर बढ़ोतरी का फैसला लिया है. नए फैसले के मुताबिक, अब दिल्ली के एक विधायक को प्रति माह 90 हज़ार रुपये मिलेंगे, जिसमें सैलरी और भत्ता सभी शामिल होंगे. दिल्ली कैबिनेट ने मंगलवार को इस प्रस्ताव को मंजूरी दी है.कैबिनेट के मुताबिक, अब विधायक की प्रति माह सैलरी 30 हज़ार रुपये होगी, पहले ये 12 हज़ार रुपये तक थी. वहीं, वेतन-भत्ता मिलाकर ये सैलरी 90 हज़ार रुपये हो जाएगी, जो अभी तक सिर्फ 54 हज़ार रुपये थी सूत्रों के मुताबिक, साल 2015 में दिल्ली सरकार ने विधायकों के वेतन बढ़ाने का कानून दिल्ली विधानसभा से पास करके केंद्र सरकार को भेजा था, जिसको केंद्र सरकार ने अस्वीकार कर दिया है. तब केंद्र सरकार ने विधायकों के वेतन और भत्ता के मामले में कुछ सुझाव भी दिए थे., अब इन्हीं के आधार पर दिल्ली कैबिनेट ने इसपर मुहर लगा दी है.दिल्ली में विधायकों की सैलरी में पिछले करीब 10 साल यानी 2011 से बढ़ोतरी नहीं हुई थी. दिल्ली कैबिनेट द्वारा पास किया गया नया प्रस्ताव अब केंद्र सरकार की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. केंद्र की मंजूरी के बाद दिल्ली सरकार दोबारा दिल्ली विधानसभा में बिल लेकर आएगी

नए सैलरी स्ट्रक्चर के मुताबिक
 
1. बेसिक वेतन- 30,000
2. चुनाव क्षेत्र भत्ता- 25,000
3. सचिवालय भत्ता- 15,000
4. वाहन भत्ता- 10,000
5. टेलीफोन- 10,000
कुल सैलरी- ₹90,000
 
 
 इस फैसले पर दिल्ली सरकार के सूत्रों का कहना है कि दिल्ली अभी भी उन राज्यों में से एक है, जो अपने विधायकों को सबसे कम वेतन और भत्ता देता है. कई भाजपा, कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों द्वारा शासित राज्य अपने विधायकों को बहुत अधिक वेतन प्रदान करते हैं, जबकि दिल्ली में रहने का खर्च भारत के अधिकांश हिस्सों की तुलना में बहुत अधिक है.इसके अलावा, कई राज्य अपने विधायकों को कई अन्य सुविधाएं और भत्ते प्रदान करते हैं, जो दिल्ली सरकार नहीं प्रदान करती है. जैसे- हाउस किराया भत्ता, कार्यालय किराया और कर्मचारियों के खर्च, कार्यालय उपकरणों को खरीदने के लिए भत्ता, उपयोग के लिए वाहन, चालक भत्ता आदि प्रदान नहीं करती है. 
 
अलग-अलग राज्यों में विधायकों का वेतन भत्ता 
1. उत्तराखंड - 1.98 लाख
2. हिमाचल प्रदेश - 1.90 लाख
3. हरियाणा- 1.55 लाख
4. बिहार - 1.30 लाख
5. राजस्थान- 1,42,500
6. तेलंगाना- 2,50,000
7. आंध्र प्रदेश- 1,25,000
8. गुजरात- 1,05,000
9. उत्तर प्रदेश- 95,000
10. दिल्ली- 90,000

 

 

 

 

 

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