देवउठनी एकादशी आज, शुभ मुहूर्त में करें माता तुलसी और शालिग्राम का विवाह
12-Nov-2024 2:43:52 pm
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देवउठनी एकादशी हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनायी जाती है. वैदिक पंचांग के अनुसार, देवउठनी एकादशी तिथि 11 नवंबर की शाम 6 बजकर 46 मिनट पर ही शुरू हो गया है. वहीं इसका समापन 12 नवंबर को शाम 4 बजकर 4 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, इस बार देवउठनी एकादशी या कार्तिक एकादशी का व्रत 12 नवंबर यानी आज रखा जायेगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवउठनी एकादशी पर भगवान शालिग्राम संग तुलसी विवाह का बहुत ही विशेष महत्व होता है. तुलसी विवाह दोपहर 12.30 बजे के बाद कभी भी कर सकते हैं. लेकिन प्रदोष काल में तुलसी विवाह करना अत्यंत लाभकारी होगा. प्रदोष काल में तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 29 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 53 मिनट तक रहेगा.वहीं 13 नवंबर को सुबह 6 बजकर 42 मिनट से 8 बजकर 51 मिनट तक व्रत का पारण किया जायेगा.
हिंदू पंचांग के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को चार महीने के लिए सो जाते हैं और योग निद्रा में चले जाते हैं. ऐसे में इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य करना वर्जित होता है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्रीहरि या भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं. इसलिए इसे देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है. इस दिन सभी देवी-देवता मिलकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. भगवान विष्णु के जागते ही मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि शुरू हो जाते हैं. इस दिन भगवान शालिग्राम संग तुलसी विवाह किया जाता है. ऐसा करने पर वैवाहिक जीवन में आ रही बाधाएं खत्म होती है. साथ ही जिन लोगों के विवाह में रुकावटें आती हैं, वह भी दूर होती है. शास्त्रों के अनुसार, तुलसी-शालिग्राम का विवाह करने पर कन्यादान के बराबर का पुण्य लाभ मिलता है.
सुबह से लेकर शाम तक इन मुहूर्त में करें देवउठनी एकादशी पूजा-
देवउठनी एकादशी पर रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. इस दिन रवि योग सुबह 6 बजकर 42 मिनट से लेकर सुबह 7 बजकर 52 मिनट तक रहेगा. वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 7 बजकर 52 मिनट से 13 नवंबर को सुबह 5 बजकर 40 मिनट तक रहेगा. इस सभी योगों में श्रीहरि का पूजन किया जा सकता है.
चर- सामान्य सुबह 09:23 से रात 10:44 तक
लाभ- उन्नति सुबह 10:44 एएम से दोपहर 12:05 तक
अमृत- सर्वोत्तम दोपहर 12:05 से दोपहर 01:26 तक
शुभ- उत्तम दोपहर 02:47 से शाम 04:08 तक
लाभ- उन्नति शाम 07:08 से रात 08:47 मिनट तक (काल रात्रि)
शुभ- उत्तम रात 10:26 से 12-13 नवंबर को 12:06 तक
देवउठनी एकादशी पूजा-विधि-
देवउठनी एकादशी के दिन व्रत रखा जाता है. इसके बाद प्रदोष काल में तुलसी विवाह किया जाता है. लेकिन आप तुलसी विवाह सुबह में भी कर सकते हैं. इस दिन तुलसी चबुतरा में गन्ने से मंडप बनाया जाता है. साथ ही मंडप के बीच में चौक बनाया जाता है. इस चौक पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र रखें. इसके बाद पूरे विधि-विधान के साथ माता तुलसी और शालिग्राम देवता का का विवाह करें. देवउठनी एकादशी व्रत कथा सुनें. भोर में भगवान के चरणों की विधिवत पूजा करें और फिर भगवान के चरणों को स्पर्श करके उन्हें जगाया जाता है.
तुलसी मंत्र-
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरै। नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।ॐ सुभद्राय नम: मातस्तुलसि गोविंद हृदयानंद कारिणी,नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते।। महाप्रसादजननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।। ॐ श्री तुलस्यै विद्महे।विष्णु प्रियायै धीमहि।तन्नो वृंदा प्रचोदयात्।।
देवउठनी एकादशी व्रत कथा-
देवउठनी एकादशी की कथा, प्राचीन समय में एक नगर में एक राजा रहता था. उस राज्य के सभी लोद विधिवत एकादशी का व्रत रखते थे और पूजा करते थे. एकादशी के दिन किसी भी जानवर, पक्षी या पशु को अन्न नहीं दिया जाता था. उस नगर के राजा के दरबार में एक बाहरी व्यक्ति एक नौकरी पाने के लिए आया. तब राजा ने कहा कि काम तो मिलेगा लेकिन हर महीने दो दिन एकादशी व्रत पर अन्न नहीं मिलेगा. नौकरी मिलने की खुशी पर उस व्यक्ति ने राजा की शर्त मान ली. उसे अगले महीने एकादशी के व्रत पर अन्न नहीं दिया गया. व्रत में उसे केवल फलाहार दिया गया था लेकिव उसकी भूख नहीं मिटी जिससे वह व्यक्ति चिंतित हो गया. वह राजा के दरबार में पहुंचा और उन्हें बताया कि फल खाने से उसका पेट नहीं भरेगा. वह अन्न के बिना मर जाएगा. उसने राजा से अन्न के लिए प्रार्थना की.
इस पर राजा ने कहा कि आपको पहले ही बताया गया था कि एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा. लेकिन उस व्यक्ति ने फिर से अन्न पाने की विनती की. उसकी हालत को समझते हुए राजा ने उसे भोजन देने का आदेश दिया. उसे दाल, चावल और आटा दिया गया था. फिर उस व्यक्ति नदी के किनारे स्नान करके भोजन बनाया. जब भोजन बन गया, तो उसने भगवान विष्णु को आमंत्रण देते हुए कहा कि श्रीहरि भोजन तैयार है, आइए आप सबसे पहले इसे खाइए. आमंत्रण पाकर भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए. उसने अपने देवताओं के लिए भोजन निकाला और वे खाने लगे. फिर उस व्यक्ति ने भी भोजन किया और अपने काम पर चला गया. इसके बाद भगवान विष्णु भी वैकुंठ लौट आए. अगली एकादशी पर उसने राजा से दोगुना अन्न की मांग की. उसने बताया कि पिछली बार वह भूखा था क्योंकि उसके साथ भगवान ने भी भोजन किया था.
उस व्यक्ति की यह बात सुनकर राजा आश्चर्यचकित हो गया. राजा ने कहा कि हमें विश्वास नहीं है कि भगवान ने भी आपके साथ खाना खाया है. राजा की इस बात पर व्यक्ति ने कहा कि आप स्वयं जाकर देख सकते हैं कि क्या यह सच है. फिर एकादशी के दिन उसे दोगुना अन्न दिया गया था. वह अन्न लेकर नदी के किनारे गया. उस दिन राजा भी एक पेड़ के पीछे छिपकर सब कुछ देख रहा था. उस व्यक्ति ने पहले नदी में स्नान किया. फिर भोजन बनाया और भगवान विष्णु से कहा कि खाना तैयार है और आप इसे खा लें, लेकिन विष्णु जी नहीं आए. उस व्यक्ति ने श्रीहरि को कई बार बुलाया लेकिन वे नहीं आए. तब उसने कहा कि अगर आप नहीं आएंगे तो मैं नदी में कूदकर अपनी जान दे दूंगा. फिर भी श्रीहरि नहीं आए. तब वह नदी में छलांग लगाने के लिए आगे बढ़ा. तभी भगवान विष्णु प्रकट हुए और उसे कूदने से बचा लिया. इसके बाद श्रीहरि विष्णु उसके साथ भोजन किया. फिर उसे अपने साथ वैकुंठ लेकर चले गए. यह देखकर राजा हैरान हो गया. अब राजा को समझ आ गया कि एकादशी व्रत को पवित्र मन और शुद्ध आचरण से करते हैं, तभी पूरा व्रत का लाभ मिलता है. उस दिन से राजा ने भी पवित्र मन से एकादशी व्रत किया और भगवान विष्णु पूजा की. जीवन के अंत में राजा के सभी पाप मिट गए और उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई.