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मार्गशीर्ष मास का पहला प्रदोष व्रत, जानिए...तिथि, मुहूर्त और व्रत के नियम

सनातन धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन प्रदोष व्रत को बहुत ही खास माना गया है जो कि हर माह में दो बार पड़ता है। यह तिथि भगवान शिव को समर्पित होती है इस दिन भक्त शिव की विधिवत पूजा करते हैं और दिनभर उपवास आदि भी रखते हैं
माना जाता है कि ऐसा करने से महादेव की कृपा बरसती है और जीवन की दुख परेशानियां भी दूर हो जाती है साथ ही सुखी जीवन का आशीर्वाद मिलता है। मार्गशीर्ष मास के पहले प्रदोष व्रत की तारीख और मुहूर्त की जानकारी आइए जानते हैं।
गुरु प्रदोष व्रत की तारीख-
हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का आरंभ 28 नवंबर को सुबह 6 बजकर 23 मिनट पर होगा और इस तिथि का समापन 29 नवंबर को सुबह 8 बजकर 39 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में मार्गशीर्ष मास का प्रदोष व्रत 28 नवंबर दिन गुरुवार को किया जाएगा। गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने के कारण ही इसे गुरु प्रदोष के नाम से जाना जा रहा है।
गुरु प्रदोष व्रत के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त यानी प्रदोष पूजा मुहूर्त शाम को 5 बजकर 24 मिनट से लेकर शाम को 8 बजकर 6 मिनट तक रहेगा। ऐसे में भक्तों को पूजा पाठ के लिए 2 घंटे 2 4 मिनट का समय प्राप्त हो रहा है
प्रदोष व्रत के नियम-
प्रदोष व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठें। सूर्योदय से पहले स्नान करें और फिर उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का संकल्प लें।
व्रत का संकल्प लेने के बाद पूजा स्थाल की अच्छा से साफ सफाई करें और भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करें। जल में कच्चा दूध, दही, शहद और गंगाजल मिलाकर अभिषेक करना है।
इसके बाद शिव परिवार का पूजन करें और फिर भगवान शिव को बेलपत्र, फूल, धूप, दीप आदि अर्पित करें। साथ ही माता पार्वती को श्रृंगार का सामान अर्पित करें।
इसके बाद प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें और शिव चालीसा का पाठ करें। सबसे अंत में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें।
पूजा के पाठ भोजन बनाकर सबसे पहले गाय को खिलाएं। इसके बाद खुद भोजन करके अपना उपवास खोलें।

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