रुक्मिणी अष्टमी 23 दिसंबर को, जानिए...पूजा का शुभ मुहूर्त
21-Dec-2024 12:29:15 pm
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- इस विधि से करें देवी रुक्मिणी की पूजा
सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन रुक्मिणी अष्टमी को खास माना जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है और उपवास भी रखा जाता है मान्यता है कि ऐसा करने से देवी कृपा प्राप्त होती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी रुक्मिणी माता लक्ष्मी का ही रूप हैं इनकी पूजा करने से आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है तो आज हम आपको अपने इस लेख दवारा रुक्मिणी अष्टमी की तारीख और पूजा का शुभ मुहूर्त बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
रुक्मिणी अष्टमी की तारीख और मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ 22 दिसंबर को दोपहर 2 बजकर 31 मिनट पर हो रहा है और इस तिथि का समापन अगले दिन 23 दिसंबर को शाम 5 बजकर 7 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार रुक्मिणी अष्टमी का पर्व 23 दिसंबर को मनाया जाएगा। इस पावन दिन भगवान कृष्ण के साथ देवी रुक्मिणी की पूजा करना लाभकारी होगा।
आपको बता दें कि रुक्मिणी अष्टमी को रुक्मिणी जयंती के नाम से भी जाना जाता है जो कि हिंदू चंद्र माह पौष में कृष्ण पक्ष के आठवें दिन मनाया जाता है। इस पर्व को देवी रुक्मिणी के जन्म लेने के उत्सव में मनाया जाता है।
इस विधि से करें देवी रुक्मिणी की पूजा-
- 23 दिसंबर, सोमवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। शुभ मुहूर्त से पहले पूजा सामग्री एक स्थान पर लाकर रख लें और पूजा स्थान को गंगाजल से छिड़ककर शुद्ध कर लें।
- तय स्थान पर पूजा के लिए एक लकड़ी की चौकी रखें और इसके ऊपर देवी रुक्मिणी और भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। सबसे पहले कुमकुम से तिलक करें, फूलों की माला पहनाएं।
- शुद्ध घी का दीपक जलाएं। श्रीकृष्ण को पीले और देवी रुक्मिणी को लाल वस्त्र अर्पित करें। अबीर, गुलाल, फूल हल्दी, इत्र, आदि चीजें चढ़ाते रहें। खीर का भोग लगाएं, इसमें तुलसी के पत्ते भी जरूर डालें।
- दिन भर उपवास करें। संभव न हो तो एक समय फलाहार कर सकते हैं। रात में सोए नहीं, जागरण करें, देवी रुक्मिणी के भजन-कीर्तन करें या मंत्र जाप भी कर सकते हैं। अगले दिन व्रत का पारण करें।
भगवान श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के विवाह की कथा-
श्रीमद्भागवत के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया तो देवी लक्ष्मी भी रुक्मिणी के रूप में धरती पर आईं। देवी रुक्मिणी के पिता का नाम भीष्मक और भाई का नाम रुक्मी था। देवी रुक्मिणी के भाई रुक्मी उनका विवाह शिशुपाल से करना चाहते थे। लेकिन देवी रुक्मिणी, श्रीकृष्ण को अपना पति मान चुकी थीं। जब ये बात श्रीकृष्ण को पता चली तो उन्होंने रुक्मिणी का हरण कर लिया और द्वारिक ले आए। द्वारिका में ही इनका विवाह हुआ।