धर्म समाज

सकट चौथ पर चंद्रमा को ऐसे दें अर्घ्य, मिट जाएंगे सभी कष्ट

सनातन धर्मी शुक्रवार को माघ कृष्ण चतुर्थी यानी सकट चौथ मना रहे हैं। इसे संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं। इसके अलावा चतुर्थी को माघ कृष्ण चतुर्थी, तिल चौथ, वक्रतुंडी चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन गणेश भगवान तथा संकटा माता की पूजा का विधान है। संकष्ट का अर्थ है कष्ट या विपत्ति, कष्ट का अर्थ है क्लेश, सम उसके आधिक्य का द्योतक है। पूजन से किसी भी प्रकार के संकट, कष्ट का निवारण संभव है। शुक्रवार को रात 9 बजकर 19 मिनट पर चंद्रमा का उदय होगा।
गणेश पूजा और चंद्रमा को अर्घ्य देने का सही तरीका-
इस दिन व्रत रखा जाता है। व्रत का आरम्भ ‘गणपतिप्रीतये संकष्टचतुर्थीव्रतं करिष्ये’ इस प्रकार संकल्प करके करते हैं। सायं काल में गणेशजी का और चंद्रोदय के समय चंद्र का पूजन करके अर्घ्य देते हैं।
उपवास का संकल्प लेकर व्रती सवेरे से चंद्रोदय काल तक नियमपूर्वक रहे। मन को काबू में रखे। चंद्रोदय होने पर मिट्टी की गणेश मूर्ति बनाकर उसे स्थापित करें। गणेश जी के साथ उनके आयुध और वाहन भी होने चाहिए।
मिट्टी में गणेशजी की स्थापना करके षोडशोपचार से विधि पूर्वक उनका पूजन करें। तिल के लडडू का नैवेद्य लगाएं। फिर तांबे के पात्र में लाल चन्दन, कुश, दूर्वा, फूल, अक्षत, दधि और जल एकत्र करके चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
इस प्रकार गणेश जी को यह दिव्य तथा पापनाशन अर्घ्य देकर यथाशक्ति उत्तम ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात स्वयं भी उनकी आज्ञा लेकर भोजन करें। इस प्रकार कल्याणकारी व्रत का पालन करके मनुष्य धन-धान्य से संपन्न होता है।
गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें-
इस दिन गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ अत्यंत शुभकारी होता है। गणेश भगवान को दूध (कच्चा), पंचामृत, गंगाजल से स्नान कराकर, पुष्प, वस्त्र आदि समर्पित करके तिल तथा गुड़ के लड्डू, दूर्वा का भोग जरूर लगाएं। लड्डू की संख्या 11 या 21 रखें।
गणेश जी को मोदक (लड्डू), दूर्वा घास तथा लाल रंग के पुष्प अति प्रिय हैं। गणेश अथर्वशीर्ष में कहा गया है- यो दूर्वांकुरैंर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति अर्थात जो दूर्वांकुर के द्वारा भगवान गणपति का पूजन करता है वह कुबेर के समान हो जाता है। यो मोदकसहस्रेण यजति स वांछित फलमवाप्रोति अर्थात जो सहस्र (हजार) लड्डुओं (मोदकों) द्वारा पूजन करता है, वह वांछित फल को प्राप्त करता है।

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