सिंगापुर में आम चुनाव का एलान : 23 अप्रैल से नामांकन, 3 मई को मतदान
15-Apr-2025 3:41:04 pm
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- राष्ट्रपति के संसद भंग करने के बाद फैसला
सिंगापुर। सिंगापुर में 14वें आम चुनावों का एलान हो गया है। चुनाव विभाग ने तारीखों का एलान करते हुए कहा कि देशभर में तीन मई को मतदान होगा। जबकि नामांकन 23 अप्रैल से शुरू होंगे। इससे पहले राष्ट्रपति थर्मन शानमुगरत्नम ने प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग की सलाह पर संसद को भंग कर दिया। राजनीतिक दलों ने भी चुनाव को लेकर कमर कस ली। यहां मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ पीएपी और विपक्षी वर्कर्स पार्टी के बीच है।
सिंगापुर की सत्ता पर 1965 से कायम पीपुल्स एक्शन पार्टी (पीएपी) प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग के नेतृत्व में अपना किला बचाने का प्रयास कर रही है। वोंग ने पिछले साल मई में सिंगापुर के चौथे नेता के रूप में शपथ ली थी। इस चुनाव में वे मजबूत जीत हासिल करना चाहते हैं, क्योंकि सरकार के प्रति मतदाताओं के बढ़ते असंतोष के कारण 2020 के चुनावों में पीएपी को झटका लगा था। '
पीएपी प्रमुख के रूप में अपने पहले आम चुनाव में वोंग असंतुष्ट युवा मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश में है। उन्होंने फॉरवर्ड सिंगापुर योजना शुरू की जिसका उद्देश्य सिंगापुर के लोगों को यह कहने का मौका देना है कि अगली पीढ़ी के लिए अधिक संतुलित, जीवंत और समावेशी एजेंडा कैसे विकसित किया जाए? इसके साथ ही पीएपी में नई जान फूंकने के लिए 30 से ज्यादा नए उम्मीदवार उतारने का एलान किया है। वोंग ने चेतावनी दी है कि आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच आपके कॉकपिट में कौन है, यह मायने रखता है, क्योंकि अमेरिकी टैरिफ वैश्विक व्यापार प्रणाली को प्रभावित करते हैं।
सिंगापुर बनाम दुनिया बड़ी चुनौती
पिछले दिनों पीएम लॉरेंस वोंग ने फेसबुक पोस्ट में कहा था कि हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती राजनीतिक दलों के बीच नहीं है, बल्कि सिंगापुर बनाम दुनिया है हमारा मिशन अपने देश को स्थिरता, प्रगति और उम्मीद की एक चमकती हुई किरण बनाए रखना। जबकि सिंगापुर दुनिया के सबसे धनी देशों में से एक के रूप में विकसित हुआ है, यह रहने के लिए सबसे महंगे शहरों में से एक भी बन गया है।
इन मुद्दों पर घिर रही पीएपी
चुनाव में सत्तारूढ़ पीएपी के सामने कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो मुसीबत बन सकते हैं। बढ़ती आय असमानता, महंगी होती आवास व्यवस्था, आप्रवासन के कारण बढ़ती भीड़ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध जैसे मुद्दों ने पीएपी की सत्ता पर पकड़ को कमजोर कर दिया है।