धर्म समाज
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क्या आप जानते है झाड़ू से जुड़े वास्तु नियम
- वास्तुशास्त्र और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार झाड़ू को सोमवार के दिन कभी नहीं खरीदना चाहिए
घर में विष्णु यंत्र स्थापना से मिलती है मां लक्ष्मी की विशेष कृपा
सनातन धर्म में विष्णु यंत्र का बहुत महत्व है। वास्तु में विष्णु भाग्योदय यंत्र का प्रयोग शुभता के रूप में किया जाता है। कहते हैं कि इसके ऊपर स्वयं मां लक्ष्मी की कृपा होती है। विष्णु भाग्योदय यंत्र को अपने घर में रखने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। भारतीय ज्योतिष के अनुसार इस यंत्र की स्थापना घर में करने से मां लक्ष्मी सभी प्रकार की आर्थिक तंगी से आपको दूर रखती हैं। घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती है।
शासन-प्रशासन ने शुरू की चारधाम यात्रा की तैयारी, 7 फरवरी को बैठक
बदरीनाथ। अक्षय तृतीया (22 अप्रैल) से चारधाम यात्रा शुरू हो जाएगी। श्री गंगोत्री-यमुनोत्री धाम के कपाट धार्मिक परंपराओं के तहत अक्षय तृतीया के दिन खुलते है। जबकि, श्री बदरीनाथ धाम के कपाट 27 अप्रैल, श्री हेमकुंट साहिब के कपाट मई माह में खुलेंगे।
कल हैं षटतिला एकादशी, जानिये इस एकादशी का महत्व और पढ़े पूरी कथा
धर्मडेस्क@झूठा-सच: एकादशी में एक षटतिला एकादशी भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। षटतिला एकादशी हर साल माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। षटतिला एकादशी का व्रत इस साल 18 जनवरी 2023 यानि बुधवार को रखा जाएगा। षटतिला एकादशी के दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। जो व्यक्ति इस दिन पूरे मन से पूजा-अर्चना करता है उसे पापों और उसे अपने जीवन में हर तरह के कष्ट और रोग से मुक्ति मिलती है। इस दिन तिल के उपाय करने से अनेक तरह की समस्याओं से छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है।
षट्तिला एकादशी का महात्म
एक समय दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि हे महाराज, पृथ्वी पर मनुष्य पराए धन की चोरी, ब्रह्महत्या जैसे बड़े पाप करते हैं, इतना ही नहीं दूसरों को आगे बढ़ता देखकर ईर्ष्या करते हैं। इसके बाद भी उन्हें नरक प्राप्त नहीं होता। आखिर इसका कारण क्या है। ये लोग ऐसा कौनसा का दान और पुण्य कार्य करते हैं जिनसे उनके पाप नष्ट हो जाते हैं। जरा इसके बारे में विस्तार से बताइए।पुलस्त्य मुनि कहने लगे हे महाभाग! आपने मुझे बहुत गंभीर और महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा है। इस प्रश्न से संसार के जीवों का भला होगा। इस राज को तो ब्रह्मा, विष्णु, महेश और इंद्र आदि भी नहीं जानते हैं। लेकिन मैं आपको यह गुप्त भेद जरूर बताऊंगा। उन्होने कहा कि माघ मास जैसे ही लगता है तो मनुष्य को स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए। अपनी इंद्रियों को वश में करके काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या और द्वेष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए। पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उनके कंडे बनाने चाहिए। इसके बाद उन कंडों से 108 बार हवन करना चाहिए। इस दिन अच्छे पुण्य देने वाले नियमों का पालन करना चाहिए। एकादशी के अगले दिन भगवान को पूजा आदि करने के बाद खिचड़ी का भोग लगाएं
षट्तिला एकादशी की व्रत कथा
इस कथा का उल्लेख श्री भविष्योत्तर पुराण में इसस प्रकार उल्लेखित किया गया है। पुराने समय में मृत्यु लोक में एक ब्राह्मण रहती थी। वह हमेशा व्रत और पूजा पाठ में लगी रहती थी। बहुत ज्यादा उपवास आदि करने से वह शारीरिक रुप से कमजोर हो गई थी। लेकिन, उसने ब्राह्मणों को अनुदान करके काफी प्रसन्न रखा। लेकिन, वह देवताओं को प्रसन्न नहीं कर पाई। एक दिन श्रीहरि स्वयं एक कृपाली का रुप धारण कर उस ब्रह्माणी के घर भिक्षा मांगने पहुंचे। ब्रह्माणी ने आक्रोश में आकर भिक्षा के बर्तन में एक मिट्टी का डला फेंक दिया इस व्रत के प्रभाव से जब मृत्यु के बाद वह ब्रह्माणी रहने के लिए स्वर्ग पहुंची तो उसे रहने के लिए मिट्टी से बना एक सुंदर घर मिला। लेकिन, उसमें खाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। उसने दुखी मन से भगवान से प्रार्थना की कि मैंने जीवन भर इतने व्रत आदि, कठोर तप किए हैं फिर यहां मेरे लिए खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं है। इसपर भगवान प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि इसका कारण देवांगनाएं बताएंगी, उनसे पूछो। जब ब्रह्मणी ने देवांगनाओं से जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि तुमने षट्तिला एकादशी का व्रत नहीं किया। पहले षट्तिला एकादशी व्रत का महात्म सुन लो। ब्रहामणी ने उनके कहेनुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से उसके घर पर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया। मनुष्यों को भी मूर्खता आदि का त्याग करके षटतिला एकादशी का व्रत और लोभ न करके तिल आदि का दान करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से आपका कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
षट्तिला एकादशी का व्रत
यह व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। दरअसल, इस एकादशी पर छह प्रकार के तिलों का प्रयोग किया जाता है। जिसके कारण इसका नामकरण षट्तिला एकादशी व्रत पड़ा। इस व्रत को रखने से मनुष्यों को अपने बुरे पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को रखने से जीवन में सुख समृद्धि आती है।
षट्तिला एकादशी की पूजा विधि
षट्तिला एकादशी के दिन शरीर पर तिल के तेल से मालिश करना, तिल के जल में पान एंव तिल के पकवानों का सेवन करने का विधान है। सफेद तिल से बनी चीजें खाने का महत्व अधिक बताया गया है। इस दिन विशेष रुप से हरि विष्णु की पूजा अर्चना की जानी चाहिए। जो लोग व्रत रख रहें है वह भगवान विष्णु की पूजा तिल से करें। तिल के बने लड्डू का भोग लगाएं। तिलों से निर्मित प्रसाद ही भक्तों में बांटें। व्रत के दौरान क्रोध, ईर्ष्या आदि जैसे विकारों का त्याग करके फलाहार का सेवन करना चाहिए। साथ ही रात्रि जागरण भी करना चाहिए। इस दिन ब्रह्मण को एक भरा हुआ घड़ा, छतरी, जूतों का जोड़ा, काले तिल और उससे बने व्यंजन, वस्त्रादि का दान करना चाहिए।
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षट्तिला का मतलब है 6 तिल यानि 6 तरीके से तिल का प्रयोग. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो तिल के दिव्य प्रयोगों से जीवन में ग्रहों के कारण आ रही बाधाओं को दूर किया जा सकता है.तिल पौधे से प्राप्त होने वाला एक बीज है. इसके अंदर तैलीय गुण पाये जाते हैं. तिल के बीज दो तरह के होते हैं- सफेद और काले. पूजा के दीपक में या पितृ कार्य में तिल के तेल का प्रयोग ज्यादा होता है. शनि की समस्याओं के निवारण के लिए काले तिल का दानों का प्रयोग किया जाता है. षट्तिला एकादशी में तिल के प्रयोग को बहुत ही श्रेष्ठ माना गया है. इसमें 6 तरीकों से तिल का प्रयोग होता है.
धर्मडेस्क@झूठा-सच: हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। पद्मपुराण में एकादशी का बहुत ही महात्मय बताया गया है एवं उसकी विधि विधान का भी उल्लेख किया गया है।इन्ही में से एक हैं षटतिला एकादशी.हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 17 जनवरी 2023 यानि आज शाम 6 बजकर 5 मिनट से लेकर अगले दिन 18 जनवरी 2023 को शाम 4 बजकर 3 मिनट तक रहेगी. उदिया तिथि के चलते 18 जनवरी को षट्तिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा. इसका पारण 19 जनवरी सुबह 07.15 से लेकर सुबह 09.29 तक किया जाएगा.
षट्तिला एकादशी के 6 प्रयोग
- तिल स्नान
- तिल का उबटन
- तिल का हवन
- तिल का तपर्ण
- तिल का भोजन
- तिल का दान
कैसे रखें षट्तिला एकादशी का व्रत?
षट्तिला एकादशी का व्रत दो प्रकार से रखा जाता है- निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत. निर्जल व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए. सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए. इस व्रत में तिल स्नान, तिल युक्त उबटन लगाना चाहिए. तिल युक्त जल और तिल युक्त आहार का ग्रहण करना चाहिए.
पूजन विधि
षटतिला एकादशी के दिन गंध, फूल, धूप दीप, पान सहित विष्णु भगवान की षोडशोपचार से पूजा की जाती है. इस दिन उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाने की परंपरा है. रात को तिल से 108 बार 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा' मंत्र से हवन करें. रात को भगवान के भजन करें और अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं.
षटतिला एकादशी पर न करें ये काम
- इस दिन तामसिक भोजन (लहसुन-प्याज) के अलावा मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन सात्विक भोजन करना चाहिए।
- इस दिन जिस व्यक्ति से व्रत रखा है वह ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करें। इसके साथ ही जमीन में ही विश्राम करें।
- इस दिन अपने क्रोध को शांत रखना चाहिए। किसी से वाद विवाद नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही किसी से झूठ न बोले।
- इस दिन चावल के अलावा बैंगन का सेवन करने से बचना चाहिए।
- इस दिन पेड़-पौधों को बिल्कुल नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।
- इस दिन दातुन नहीं करना चाहिए। क्योंकि इस दिन टहनियों को तोड़ने की मनाही होती है।
षटतिला एकादशी पर करें ये काम
- षटतिला एकादशी के दिन गंगा स्नान जरूर करना चाहिए।
- इस दिन दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन तिल से बनी चीजों का विशेष रूप से दान करें।
- इस दिन भगवान विष्णु को तिल का भोग लगाने के साथ पंचामृत में तिल मिलाकर स्नान करना चाहिए।
- स्नान करने वाले पानी में तिल जरूर डालने चाहिए।
- इस एकादशी पर व्रत की कथा सुनने के बाद हवन के समय तिल की आहुति जरूर दें।
- षटतिला एकादशी के दिन तिल से पितरों का तर्पण जरूर करें।