धर्म समाज

शाकम्भरी महोत्सव में शामिल हुए मंत्री डॉ. डहरिया

रायपुर। नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया रायपुर जिले के आरंग नगर में हरदिहा पटेल मरार समाज द्वारा आरंग परिक्षेत्रीय वार्षिक सम्मेलन में आयोजित शाकम्भरी महोत्सव में शामिल हुए। मंत्री डॉ. डहरिया ने शाकम्भरी महोत्सव को सम्बोधित करते हुए सभी को बधाई एवं शुभकामनाएं दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता रविसुदन पटेल अध्यक्ष हरदिहा पटेल समाज ने किया। इस अवसर पर पटेल समाज की मांग पर डॉ. डहरिया ने शाकम्भरी भवन में बाउंड्रीवॉल निर्माण के शेष कार्य को पूर्ण करने के लिए 05 लाख रूपये की प्रदान करने की घोषणा की। कार्यक्रम में अध्यक्ष नगर पंचायत आरंग श्री चंद्रशेखर चंद्राकार, अध्यक्ष जनपद पंचायत आरंग श्री खिलेश्वर देवांगन सहित रानी पटेल, भारती देवांगन, नरसिंग साहू, मंगलमूर्ति अग्रवाल, सूरज लोधी, धनेश्वरी खिलावन निषाद, राममोहन लोधी, दीपक चंद्राकार, सूरज सोनकर, गणेश बांधे, भरत लोधी, राजेश्वरी साहू, उपेंद्र साहू, गोपाल प्रसाद पटेल, होरीलाल पटेल, विनय कुमार पटेल, रमाशंकर पटेल, लक्ष्मीनारायण पटेल, चंद्रकांत पटेल, नरेंद्र पटेल, प्रदीप पटेल, अरविंद पटेल, ईश्वर पटेल, महेश पटेल, भोलाराम पटेल, आशमति पटेल, दुर्पति पटेल, रूपकुमारी पटेल, केशर पटेल, शकुन पटेल, पोषण पटेल, भूषण पटेल, एवं महेंद्र कुमार पटेल उपस्थित थे।
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राजदेवता माधोराय की शाही जलेब के साथ अंतर्राष्ट्रीय मंडी में महोत्सव शुरू

मंडी। राजदेवता माधोराय की शाही जलेब के साथ रविवार को अंतर्राष्ट्रीय मंडी शिवरात्रि महोत्सव-2023 का आगाज धूमधाम से हुआ। प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद मेले का शुभारंभ करने के बहाने सुखविंदर सिंह सुक्खू पहली बार मंडी शहर में पधारे। मुख्यमंत्री ने राजदेवता माधोराय के मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद रियासतकाल से निकलने वाली इस शाही जलेब में शिरकत की। इसके बाद मुख्यमंत्री ने पड्डल मैदान में ध्वजारोहण कर एक सप्ताह तक चलने वालने मेले का विधिवत शुभारंभ किया। इस बार की जलेब की विशेषता यह रही कि इसमें हिमाचली व मंडयाली संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाले सांस्कृतिक दलों ने अपने-अपने क्षेत्र के परंपरागत पहनावे के साथ झूमते-नाचते प्रतिनिधित्व किया। बालीचौकी क्षेत्र के दल द्वारा मशहूर फागली नृत्य के अलावा मुखैाटा नृत्य, महिलाओं की नाटी के साथ-साथ मंडी का नागरीय नृत्य की झलक भी जलेब में देखने को मिली।
इसके अलावा प्रजापिता ब्रह्मकुमारी संस्था की ओर से शिवरात्रि को लेकर विशेष झांकी और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की झांकी भी जलेब में शामिल की गई, जिसमें बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ मुहिम का प्रचार किया गया। माधोराय की जलेब में सबसे आगे पुलिस के घुड़सवार, पुलिस और होमगार्ड बैंड, पुलिस के जवान, महिला पुलिस, होमगार्ड्स, पूर्व सैनिक लीग की टुकड़ियों के साथ-साथ सांस्कृतिक छटा बिखेरते सांस्कृतिक दलों ने शिरकत की। शिवरात्रि महोत्सव के दौरान निकलने वाली माधोराय की जलेब में बालीचौकी क्षेत्र के देवता छानणू-झमाहूं की जोड़ी ढोल-नगाड़ों की लय पर झूमते हुए सबसे आगे चल रही थी। इसके पश्चात देव कोटलू नारायण, देव सरोली मार्कंडेय, देव शैटी नाग, देवी डाहर की अंबिका, देव विष्णू मतलोड़ा, देव मगरू महादेव, देव चपलांदू नाग, श्रीदेव बायला नारायण, देव बिटठु नारायण, देव लक्ष्मीनारायण पखरोल, चौहारघाटी के देव हुरंग नारायण, देव घड़ौनी नारायण, देव पशाकोट नारायण, देव पेखरू का गहरी, देव चुंजवाला शिव, देव तुंगासी ब्रम्हा, देवी सरस्वती महामाया, देवी नाऊ अंबिका के बाद राज माधव की चांदी की कुर्सी और उसके पीछे राजदेवता की पालकी चल रही थी जबकि राजदेवता माधोराय की पालकी के पीछे देव शुकदेव डगाहंढु, देव शुकदेव मड़घयाल, देव जलौणी गणपति, देव शेषनाग टेपर, देव झाथीवीर और देव टूंडीवीर शामिल रहे।
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शादी की 50वीं सालगिरह पर नेत्रदान की घोषणा

रायपुर। हासवानी परिवार ने अपने परिवार के मुखिया की शादी की 50वी सालगिरह सामाजिक सन्देश देते हुए उत्साह के साथ मनाई। घनश्याम दास हासवानी, लीला हासवानी, सुदामा हासवानी, पुष्पा हासवानी ने अपनी शादी की 50 वी सालगिरह के अवसर पर नवदृष्टि फाउंडेशन के माधयम से नेत्रदान की घोषणा कर घोषणा पत्र संस्था के कुलवंत भाटिया,प्रभुदयाल उजाला,हरमन दुलई को सौंपा हासवानी परिवार द्वारा नवदृष्टि फाउंडेशन को सामाजिक कार्यों हेतु 5100rs की राशि दी एवं गरीबों व् जरुरतमंदो को भोजन करवाया।
नवदृष्टि फाउंडेशन के सदस्य जितेंद्र हासवानी ने कहा उनके माता पिता की शादी की 50वी सालगिरह को परिवार धूम धाम से मानना चाहता था पर पिता की इच्छा थी की सेलेब्रेशन की साथ नेत्रदान व् सामाजिक कार्य भी हों ताकि आने वाली पीढ़ी समाज के प्रति जागरूक हो.
नेत्रदान की घोषणा के समय शदाणी दरबार रायपुर के संत डॉ युधिष्ठिर लाल शदाणी की उपस्तिथि में हासवानी परिवार के सदस्य जितेंद्र हासवानी, वर्षा हासवानी,विजय हासवानी,श्रीमती पलक हासवानी,नरेंद्र हासवानी,दिशा हासवानी माता पिता के साथ खड़े रहे एवं उपस्थित मेहमानों ने ताली बजा कर हासवानी दम्पति के निर्णय का स्वागत किया। हरमन दुलई ने कहा हमारी संस्था के जागरूकता अभियान का परिणाम है की अब लोग अपने शुभ अवसरों पर नेत्रदान,देहदान की घोषणा कर रहे हैं एवं मौज मस्ती के साथ साथ सामाजिक सन्देश भी दे रहे हैं.
नवदृष्टि फाउंडेशन की ओर से अनिल बल्लेवार ,कुलवंत भाटिया,राज आढ़तिया, प्रवीण तिवारी,मुकेश आढ़तिया, हरमन दुलई,किरण भंडारी, रितेश जैन,जितेंद्र हासवानी,उज्जवल पींचा ,सत्येंद्र राजपूत,सुरेश जैन,राजेश पारख,पियूष मालवीय,विकास जायसवाल मुकेश राठी,प्रभु दयाल उजाला, प्रमोद बाघ ,सूरज साहू संतोष राजपुरोहित,चेतन जैन,दीपक बंसल,जितेंद्र कारिया,अभिजीत पारख,सपन जैन,मोहित अग्रवाल ने हासवानी परिवार के निर्णय का स्वागत किया व हासवानी दम्पति को शुभकामनाएं दी.
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रुद्राक्ष धारण करते समय किन बातों का रखें ख्याल

फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। हिंदू धर्म में प्रमुख त्योहारों में से महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव की विधिवत पूजा करने का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का शुभ विवाह हुआ था। इस दिन विधिवत पूजा और व्रत रखने के साथ कुछ उपाय भी अपना सकते हैं। इसके अलावा आप चाहे तो रुद्राक्ष भी धारण कर सकते हैं। रुद्राक्ष को भगवान शंकर का अंश रूप माना जाता है। जानिए रुद्राक्ष धारण करते समय किन बातों का रखें ख्याल। भगवान शिव के आंसुओं से उत्पन्न हुए रुद्राक्ष को धारण करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा मिल जाता है। इसके साथ ही कई रोगों से भी बचाव होता है।
रुद्राक्ष पहनने के नियम
शास्त्रों के अनुसार, रुद्राक्ष को हमेशा गले, कलाई या फिर हृदय में ही धारण करना चाहिए।
अगर हाथ में पहन रहे है तो 12 दाने, हृदय में 108 दाने और गले में पहन रहे है, तो 36 दानों वाली माला पहनें।
अगर आप अधिक रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहते हैं, तो हृदय तक लाल रंग के धागे में रुद्राक्ष का एक दाना पहन सकते हैं।
रुद्राक्ष को सोमवार, महाशिवरात्रि या फिर सावन महीने में ही पहन सकते हैं।
रुद्राक्ष को कभी भी काले रंग के धागे में नहीं पहनना चाहिए।
किसी को उपहार में न ही रुद्राक्ष दें और न ही किसी दूसरे से लें।
शास्त्रों के अनुसार, रुद्राक्ष को कभी भी श्मशान घाट नहीं ले जाना चाहिए। इससे अशुभ फल मिलता है।
नवजात के जन्म के दौरान या जहां नवजात शिशु का जन्म होता है वहां भी रुद्राक्ष ले जाने से बचना चाहिए।
महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान रुद्राक्ष पहनने से बचना चाहिए। माना जाता है कि इस दौरान रुद्राक्ष पहनने से वह अशुद्ध हो जाता है।
रुद्राक्ष धारण करने के मांस-मदिरा का सेवन बिल्कुल भी न करें।
कभी भी रुद्राक्ष को गंदा न रखें। समय-समय पर गंगाजल से रुद्राक्ष को साफ करते रहें, जिससे उसकी पवित्रता बनी रहे।
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महाशिवरात्रि के दिन करें शिव और पार्वती की संपूर्ण चालीसा का पाठ

इस साल महाशिवरात्रि पर वरियान योग, सर्वार्थ सिद्धि बन रहा है।
फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि यानी 18 फरवरी 2023, शनिवार को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। इसी के कारण इस दिन भगवान शिव के साथ मां पार्वती की पूजा करने से वह जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और सुख-समृद्धि, धन-संपदा का आशीर्वाद देते हैं। इस साल महाशिवरात्रि पर वरियान योग, सर्वार्थ सिद्धि बन रहा है। ऐसे में महाशिवरात्रि के दिन जलाभिषेक करने के साथ-साथ माता पार्वती और शिव जी की चालीसा पढ़ना लाभकारी सिद्ध होगा। शवि-पार्वती चालीसा का पाठ करने से हर तरह के कष्टों से छुटकारा मिल जाएगा। इसके साथ ही धन धान्य की प्राप्त होगी। जानिए शिव और पार्वती की संपूर्ण चालीसा।
पार्वती चालीसा
॥ दोहा ॥
जय गिरी तनये दक्षजे शम्भू प्रिये गुणखानि।
गणपति जननी पार्वती अम्बे! शक्ति! भवानि।
॥ चौपाई ॥
ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे, पंच बदन नित तुमको ध्यावे।
षड्मुख कहि न सकत यश तेरो, सहसबदन श्रम करत घनेरो।।
तेऊ पार न पावत माता, स्थित रक्षा लय हिय सजाता।
अधर प्रवाल सदृश अरुणारे, अति कमनीय नयन कजरारे।।
ललित ललाट विलेपित केशर, कुंकुंम अक्षत् शोभा मनहर।
कनक बसन कंचुकि सजाए, कटी मेखला दिव्य लहराए।।
कंठ मंदार हार की शोभा, जाहि देखि सहजहि मन लोभा।
बालारुण अनंत छबि धारी, आभूषण की शोभा प्यारी।।
नाना रत्न जड़ित सिंहासन, तापर राजति हरि चतुरानन।
इन्द्रादिक परिवार पूजित, जग मृग नाग यक्ष रव कूजित।।
गिर कैलास निवासिनी जय जय, कोटिक प्रभा विकासिनी जय जय।
त्रिभुवन सकल कुटुंब तिहारी, अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी।।
हैं महेश प्राणेश तुम्हारे, त्रिभुवन के जो नित रखवारे।
उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब, सुकृत पुरातन उदित भए तब।।
बूढ़ा बैल सवारी जिनकी, महिमा का गावे कोउ तिनकी।
सदा श्मशान बिहारी शंकर, आभूषण हैं भुजंग भयंकर।।
कण्ठ हलाहल को छबि छायी, नीलकण्ठ की पदवी पायी।
देव मगन के हित अस किन्हो, विष लै आपु तिनहि अमि दिन्हो।।
ताकी, तुम पत्नी छवि धारिणी, दुरित विदारिणी मंगल कारिणी।
देखि परम सौंदर्य तिहारो, त्रिभुवन चकित बनावन हारो।।
भय भीता सो माता गंगा, लज्जा मय है सलिल तरंगा।
सौत समान शम्भू पहआयी, विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी।।
तेहि कों कमल बदन मुरझायो, लखी सत्वर शिव शीश चढ़ायो।
नित्यानंद करी बरदायिनी, अभय भक्त कर नित अनपायिनी।।
अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनी, माहेश्वरी, हिमालय नन्दिनी।
काशी पुरी सदा मन भायी, सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी।।
भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री, कृपा प्रमोद सनेह विधात्री।
रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे, वाचा सिद्ध करि अवलम्बे।।
गौरी उमा शंकरी काली, अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली।
सब जन की ईश्वरी भगवती, पतिप्राणा परमेश्वरी सती।।
तुमने कठिन तपस्या कीनी, नारद सों जब शिक्षा लीनी।
अन्न न नीर न वायु अहारा, अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा।।
पत्र घास को खाद्य न भायउ, उमा नाम तब तुमने पायउ।
तप बिलोकी ऋषि सात पधारे, लगे डिगावन डिगी न हारे।।
तब तव जय जय जय उच्चारेउ, सप्तऋषि, निज गेह सिद्धारेउ।
सुर विधि विष्णु पास तब आए, वर देने के वचन सुनाए।।
मांगे उमा वर पति तुम तिनसों, चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों।
एवमस्तु कही ते दोऊ गए, सुफल मनोरथ तुमने लए।।
करि विवाह शिव सों भामा, पुनः कहाई हर की बामा।
जो पढ़िहै जन यह चालीसा, धन जन सुख देइहै तेहि ईसा।।
॥ दोहा ॥
कूटि चंद्रिका सुभग शिर, जयति जयति सुख खानि,
पार्वती निज भक्त हित, रहहु सदा वरदानि।
शिव चालीसा
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम,देहु अभय वरदान॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला।सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये।मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी।बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ।या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा।तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी।देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ।लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा।सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी।पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं।सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई।अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई।नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा।जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी।करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई।संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं।जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन।मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय।सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई।ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी।पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई।निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे।ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा।ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे।अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी।जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम उठि प्रातः ही,पाठ करो चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना,पूर्ण करो जगदीश॥
मगसिर छठि हेमन्त ॠतु,संवत चौसठ जान।
स्तुति चालीसा शिवहि,पूर्ण कीन कल्याण॥
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महाशिवरात्रि : इन पांच राशि वालों पर शनि की साढे़साती का प्रभाव

महाशिवरात्रि-2023 : दिनांक 18 फरवरी दिन शनिवार यानी की कल महाशिवरात्रि है. इस दिन सभ भक्त भगवान शिव की बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ पूजा अर्चना करते हैं. इस दिन ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति व्रत रखता है और भगवान शिव की उपासना करता है, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. इस साल महाशिवरात्रि क के दिन शनि प्रदोष व्रत का भी शुभ संयोग बन रहा है. इस साल त्रयोदशी और चतुर्दशी तिथि दोनों एक ही दिन है. वहीं शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित है, जबकि प्रदोष व्रत और महाशिवरात्रि भगवान शिव को समर्पित है. इस दिन अगर आप भगवान शिव की विधि विधान के साथ पूजा करते हैं, तो आपको शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती से मुक्ति मिल जाती है. तो ऐसे में आइए आज हम आपको अपने इस लेख में कुछ खास उपायों के बारे में बताएंगे, जिससे आपके ऊपर भगवान शिव और शनिदेव की कृपा बनी रहेगी और अशुभ प्रभाव से भी छुटकारा मिलता है.
इन पांच राशि वालों पर शनि की साढे़साती का प्रभाव
फिलहाल अभी शनि कुंभ राशि में हैं. शनि के कुंभ राशि में होने से मकर और मीन राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है. कर्क और वृश्चिक राशि के जातकों पर शनि की ढैय्या का प्रभाव है. वहीं जिस भी जातक के राशि में शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या चल रही है, तो उन्हें आर्थिक, शारीरिक और मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ता है.
महाशिवरात्रि के दिन शनि के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए करें ये उपाय
1. भगवान शिव का जलाभिषेक करें.
2. इस दिन भगवान शिव को पंचामृत, बेलपत्र, भांग, धतूरा आदि अर्पित करना चाहिए.
3. शिवचालिसा का पाठ करना चाहिए.
4. इस दिन ऊं नम: शिवाय का जाप करना चाहिए.
5. शनिवार के दिन किसी गरीब को कुछ दान करें.
6. शनिवार को काले कुत्ते, गाय को रोटी, चिंटी और काली चीड़िया को दाने डालना चाहिए.
7. शनिवार को शाम में नीम की लकड़ी पर काले तिल से हवन करना चाहिए.
8. शनिवार के दिन विभूति, चंदन फिर भस्म लगाना चाहिए. ऐसा करने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं.
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स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अमरकंटक में की पूजा-अर्चना

रायपुर। बद्रिकाश्रम के ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद शनिवार को अमरकंटक पहुंचे। यहां नर्मदा मंदिर में पूजा-अर्चना कर उन्होंने देश की खुशहाली की कामना की। शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने स्वामी निश्चलानंद सरस्वती पर पलटवार करते हुए कहा कि अगर हमारे गुरु ने मेरी नियुक्ति नहीं की है, तो उनके सब शिष्यों ने मुझे कैसे शंकराचार्य के रूप में स्वीकार कर लिया।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी वह मर्यादा तो बताएं, जिसका मैंने कभी उल्लंघन किया हो। अमर्यादित आचरण किसी भी शंकराचार्य का न तो वे बर्दाश्त करेंगे और न हम करेंगे। वहीं उन्होंने निश्चलानंद के आरोपों के जवाब में कहा कि हम लोग उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनके द्वारा ही हमें नुकसान पहुंचाया जा रहा है। उन्होंने वसीयत प्रमाणित होने की बात भी कही।
साथ ही स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने स्पष्ट किया कि उन्होंने केवल बागेश्वर धाम के बारे में नहीं कहा, बल्कि हर उस चमत्कार का दावा करने वाले के खिलाफ कहा है। उन्होंने कहा कि अगर चमत्कार है, तो फिर दुनिया में लोग परेशान क्यों हैं, मर क्यों रहे हैं और बीमार क्यों हो रहे हैं। अमरकंटक के बाद शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद भाटापारा के लिए रवाना हो गए। उनके समर्थक श्रीधर शर्मा ने बताया कि शंकराचार्य जी का यह आकस्मिक प्रवास था। यहां उन्होंने मां नर्मदा के दर्शन करते हुए विधिवत पूजा-अर्चना की।
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पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज आज रायपुर में

रायपुर। जगद्गुरु पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज आज शाम कवर्धा जिले के रणवीरपुर से राजधानी रायपुर पहुंचेंगे। भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से पूरे भारतवर्ष की यात्रा पर निकले शंकराचार्य महाराज रायपुर के रांवाभाठा स्थित श्री शंकराचार्य आश्रम श्री सुदर्शन संस्थान में ठहरेंगे। 12 फरवरी रविवार को सुबह 11 बजे हिन्दू राष्ट्र विषय पर संगोष्ठी दिव्य सत्संग दर्शन लाभ देंगे। इस कार्यक्रम में सभी श्रद्धालु बड़ी संख्या में मौजूद रहेंगे। इसी क्रम में रविवार सायंकाल रायपुर से रवाना होंगे। आनंद वाहिनी की प्रदेश अध्यक्ष सीमा तिवारी ने यह जानकारी देते हुए सभी सनातन धर्मावलंबियो को उक्त कार्यक्रम में बड़ी संख्या में उपस्थित होकर दर्शनलाभ लेने का आग्रह किया है.
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नाचा-गम्मत कार्यशाला का समापन

आज के 'झूठ के दौर' में नाचा प्रहसन 'लबर-झबर' ने समाज को दिखाया आईना
रायपुर। आदिवासी लोककला अकादमी रायपुर और छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ की ओर से छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के रतनपुर में जारी 20 दिवसीय आवासीय नाचा-गम्मत कार्यशाला का समापन हुआ। 20 जनवरी से हो रही कार्यशाला में छत्तीसगढ़ के युवाओं ने नाचा विधा में निखार लाने अपनी कला का प्रदर्शन किया। इसमें नाचा के प्रख्यात गुरु और संगीत नाटक अकादमी सम्मान से सम्मानित काशीराम साहू के निर्देशन में 25 युवाओं को नाचा की विभिन्न विधाओं में गहन प्रशिक्षण दिया गया।
सामाजिक संदेश देने नाचा को बेहतर माध्यम बनाएं: नवल शुक्ल
इस मौके पर आदिवासी लोककला अकादमी के अध्यक्ष नवल शुक्ल ने अपने उद्बोधन में उम्मीद जताई कि यहां से सीखकर जाने वाले कलाकार और बेहतर ढंग से नाचा का मंचन करेंगे। सामाजिक संदेश देने नाचा को बेहतर माध्यम बनाएंगे।
20 दिन में सीखा नाटक की बारिकयां
यहां पर नवोदित कलाकारों को प्रशिक्षण दे रहे नाचा गुरु काशीराम साहू ने बताया कि पूरे 20 दिन हम सबने एक दूसरे से सीखने की कोशिश की। युवाओं में बहुत से ऐसे प्रतिभागी थे, जो पहली बार नाचा के तौर-तरीकों से परिचित हुए, लेकिन सभी ने बेहत अंदाज और गंभीरता से इसे सीखा। उन्होंने उम्मीद जताई कि आगे नाचा विधा को नई ऊंचाई देने में इन युवा कलाकारों का महत्वपूर्ण योगदान रहेगा।
प्रहसन ने दर्शकों को खूब गुदगुदाया
नाचा गुरु काशीराम साहू के मार्गदर्शन में 'सच पर लबर झबर के चलवा चलती', 'लेड़गा','सियान के सिखौना' और 'कंजूस बनिया' प्रहसन तैयार किए गए थे। इनमें से 'सच पर लबर झबर के चलवा चलती' का समापन हुआ। 
दिया सामाजिक संदेश 
यह नाटक मूल रूप से समाज में झूठ के बढ़ते चलन पर प्रहार करते हुए सामाजिक संदेश पर आधारित था। दर्शक  इस  प्रहसन पर हंस-हंस कर लोटपोट हो गए। कार्यशाला  में शामिल  सभी  कलाकारों  ने  इस  अवसर पर दर्शकों और आदिवासी लोककला अकादमी रायपुर का आभार जताया।
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महाशिवरात्रि के दिन जरूर करें रुद्राभिषेक, ग्रह दोष से मिलेगा मुक्ति

हिंदू धर्म के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन इनकी पूजा करने से भगवान शिव अपने भक्तों की सभी इच्छा पूरी कर देते हैं और उनपर विशेष कृपा बरसाते हैं. इस दिन भगवान शिव की पूजा अलग-अलग तरीकों से की जाती है. महाशिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक करने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है और कष्टों से मुक्ति मिल जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन अगर आप समस्त परिवार के साथ रुद्राभिषेक करते हैं, तो जीवन में आपको अपार सफलता मिलती है. तो आइए आज हम आपको अपने इस लेख में बताएंगे कि महाशिवरात्रि के दिन रूद्राभिषेक करना क्यों शुभ फलदायी साबित होता है और इसका क्या महत्व होता है.
भगवान शिव के क्रोध को कम करता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार हैं, जो क्रोध को दर्शाता है और अगर महाशिवरात्रि के दिन उनके किसी भी रौद्र रुप को शांत करना चाहते हैं, तो रुद्राभिषेक जरूर करना चाहिए. रुद्राभिषेक करने के होते हैं ये फायदे-
ग्रह दोष को करता है ठीक
अगर आप महाशिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक करने की सोच रहे हैं, तो जरूर करें. साथ ही अगर आपके कुंडली में किसी भी तरह का ग्रह दोष है, तो उससे मुक्ति मिल जाती है. ग्रहों की शांति और मुक्ति के लिए इस दिन नियमित रूप से रुद्राभिषेक जरूर करें. कई बार ऐसा होता है, कि हमारे साथ ऐसी घटनाएं घटित हो जाती है, जिनका कारण पता लगाना बेहद मुश्किल हो जाता है. ये ,ब ग्रह दोष की वजह से होता है. इसलिए इस दिन रुद्राभिषेक जरूर करें.
मनवांछित फल प्राप्ति के लिए करें रुद्राभिषेक
यदि आप महाशिवरात्रि के दिन विधि-विधान के साथ रुद्राभिषेक करते हैं तो आपके लिए ये बेहद शुभ है. अगर आपको नौकरी में समस्याएं उत्पन्न हो रही है और धन हानि हो रही है या फिर आपके मन का कोई इच्छा पूरा नहीं हो रहा है, तो आपको रुद्राभिषेक जरूर करना चाहिए. इससे आपकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाएंगी.
घर की नकारात्मकता को दूर करता है
अगर आपके घर नकारात्मक ऊर्जा का वास होता है, तो आपको महाशिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक जरूर करना चाहिए. इससे जीवन में आ रही सभी परेशानियां दूर हो जाती है.
रुद्राभिषेक करने से मन रहता है शांत
शिवलिंग में एक अलग प्रकार की ऊर्जा होती है, जो मन को प्रभावित करती है. इसलिए रुद्राभिषेक करने से मन को शांति मिलती है और मानसिक बिमारियों से भी मुक्ति मिलती है. शरीर को नई ऊर्जा मिलती है.
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कुंभ राशि में अस्त हुए शनि, 7 को मकर राशि में आएगा बुध

ग्रह-नक्षत्रों की भविष्यवाणी : फिर 13 फरवरी को कुंभ राशि में बनेगा सूर्य-शनि का योग
फरवरी के पहले ही सप्ताह में शनि अस्त हो रहे हैं। इसके एक दिन बाद बुध का राशि परिवर्तन होगा। फिर 5 दिन बाद सूर्य राशि बदलेगा। शनि की चाल में बदलाव के साथ इन दो ग्रहों का परिवर्तन कई मायनों में खास होगा।
शनि अस्त होंगे तो बुध और सूर्य का राशि परिवर्तन कई उतार-चढ़ाव लाएगा। कुछ दिनों के लिए त्रिग्रही योग भी बनेगा। ज्योतिषियों के मुताबिक इन ग्रहों की चाल में बदलाव होने के करण सोने में उतार-चढ़ाव आएगा। कृषि और बिजनेस में भी फायदा होगा।
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि रविवार, 5 फरवरी को करीब शाम 7 बजे कुंभ राशि में अस्त होंगे। इसके बाद 10 मार्च को इसी राशि में वे अपनी सामान्य अवस्था में वापस आएंगे। इसके बाद मंगलवार, 7 फरवरी को बुध मकर राशि में सूर्य के साथ आ जाएगा। जिससे मकर राशि में बुध-सूर्य होने से बुधादित्य योग बनेगा। फिर सोमवार, 13 फरवरी को सूर्य मकर राशि से निकलकर कुंभ राशि में शनि के साथ आ जाएगा। इससे कुंभ राशि में सूर्य, शुक्र और शनि का त्रिग्रही योग रहेगा।
इन ग्रहों की चाल में बदलाव होने से अचानक मौसम परिवर्तन होने के योग बनेंगे। देश में कई जगहों पर अचानक ठंड बढ़ सकती है। साथ ही शेयर मार्केट में बड़ी उथल-पुथल होने के योग बनेंगे। इन ग्रहों के कारण प्रशासनिक फैसलों से देश में विवाद बढ़ाने की आशंका रहेगा। लोगों में मतभेद बढ़ सकते हैं। अधिकारियों के भ्रष्टाचार उजागर हो सकते हैं।
अव्यवस्था के कारण सरकारी नौकरीपेशा लोगों के कामकाज में रुकावटें आ सकती हैं। इस ग्रह स्थिति के कारण लोगों के दिल-दिमाग में अनिश्चितता रहेगी। कई लोगों के साथ क्या करें, क्या न करें की स्थिति बनी रहेगी और किस्मत का साथ भी नहीं मिल पाएगा।
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी बताते हैं कि सूर्य-बुध के शुभ योग से कृषि क्षेत्र यानी फसलों का उत्पादन बढ़ेगा। शेयर मार्केट से जुड़े लोगों को फायदा मिलेगा। बड़े निवेश और लेन-देन होंगे। मीडिया और वकालात से जुड़े लोगों के लिए अच्छा समय रहेगा। इस शुभ योग से स्टूडेंट्स को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने के नए मौके मिलेंगे। साथ ही व्यापारिक क्षेत्रों में फायदा होने के भी योग बन रहे हैं।
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आज से शुरू हुआ फाल्गुन मास, 18 फरवरी को रहेगा महा शिवरात्रि पर्व

7 मार्च को होगा होलिका दहन
आज से फाल्गुन महीना शुरू हो गया है। जो 7 मार्च तक रहेगा। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक नए साल का पहला महीना चैत्र और आखिरी फाल्गुन होता है। इसे फागुन मास भी कहा जाता है। इसके बाद हिंदू नव वर्ष शुरू हो जाता है। फाल्गुन तीज-त्योहारों वाला महीना होता है। साथ ही इसमें मौसमी बदलाव भी होते हैं। वसंत ऋतु की शुरुआत इसी हिंदी महीने में होती है ।
फाल्गुन महीने के शुरुआती 13 दिन बाद शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। ये पर्व चौदहवीं तिथि यानी कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर मनाया जाता है। पुराणों के मुताबिक इस तिथि पर ही भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे। ये पर्व इस बार 18 फरवरी को है।
फाल्गुन महीने के खत्म होने पर यानी आखिरी दिन होलिका दहन होता है जो कि 7 मार्च को है। इसके बाद रंगो का त्योहार मनाते हैं। जो 8 को मनेगा। वहीं इस बार ऐसा हो रहा है जब इस हिंदी महीने के खत्म होने के बाद वसंत ऋतु शुरू होगी। ये 14 मार्च से 15 मई तक रहेगी।
शास्त्रोक्त मान्यता है कि फाल्गुन मास की पूर्णिमा को महर्षि अत्रि और देवी अनुसूया से चंद्रमा की उत्पत्ति हुई थी। इस कारण इस दिन चंद्रमा की विशेष आराधना कर चंद्रमा से मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना की जाती है।
मौसम में अच्छे बदलाव
फाल्गुन महीने में ही पतझड़ आता है। इसके बाद वसंत आता है। वसंत ऋतु के आने से पहले ही फाल्गुन महीने के दौरान मौसम में सुखद और सकारात्मक बदलाव होने लगते हैं। जो मन को भाते हैं। आयुर्वेद के जानकारों का कहना है कि इस मौसम में ही शरीर में ताकत बढ़ती है। साथ ही शरीर के तीन दोष यानी वात, पित्त और कफ में बैलेंस बना रहता है। इसलिए फाल्गुन को सुखद महीना भी कहा जाता है।
भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण आराधना का महीना
इस हिंदी महीने में भगवान विष्णु की आराधना करने से उनकी कृपा मिलती है। साथ ही भगवान श्री कृष्ण की आराधना विभिन्न तरह के सुगंधित फूलों से करने का विधान बताया गया है। फाल्गुन में श्री कृष्ण की पूजा करने से समृद्धि और सुख बढ़ता है।
इस महीने में शंख में सुगंधित जल और दूध भरकर भगवान का अभिषेक करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। इस महीने भगवान श्री कृष्ण को माखन-मिश्री का नैवेद्य लगाने से आरोग्य और समृद्धि मिलती है।
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जगदलपुर में शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती की आज धर्मसभा

25 हजार से ज्यादा लोग होंगे शामिल, मंत्री लखमा के साथ दिग्गज नेताओं ने की मुलाकात
जगदलपुर। पुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जगदलपुर पहुंच गए है। सोमवार की देर रात तक उनका भव्य स्वागत किया गया। जिन-जिन जगहों से उनका काफिला गुजरा वहां उन पर फूल बरसाए गए। आज वे जगदलपुर के लालबाग मैदान में विशाल धर्म सभा लेंगे। इस धर्मसभा में पूरे बस्तर संभाग से करीब 25 हजार से ज्यादा लोगों की जुटने की संभावना है।
शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती के जगदलपुर पहुंचने के बाद देर रात तक लोग उनसे मिलने पहुंचते रहे। प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने भी उनका स्वागत किया। साथ ही कवासी लखमा ने भी उनके साथ काफी समय बिताया। कवासी लखमा के साथ कई दिग्गज नेताओं ने उनसे मुलाकात की।
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क्या आप जानते है झाड़ू से जुड़े वास्तु नियम

  • वास्तुशास्त्र और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार झाड़ू को सोमवार के दिन कभी नहीं खरीदना चाहिए
ऐसी कई सारी चीज़े है जिनका प्रयोग व्यक्ति रोजमर्रा के जीवन में करता है जिसमें से एक झाड़ू भी है इसका इस्तेमाल साफ सफाई आदि के लिए किया जाता है ज्योतिष और वास्तुशास्त्र में तो झाड़ू को महत्वपूर्ण बताया ही गया है लेकिन धार्मिक तौर पर भी इसे विशेष माना जाता है अगर मान्यताओं की बात करें तो झाड़ू को धन की देवी माता लक्ष्मी से जुड़ा जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि झाड़ू में मां लक्ष्मी का वास होता है इसलिए इसका प्रयोग करने से पहले इससे जुड़े नियमों का जानना जरूरी होता है वास्तुशास्त्र में झाड़ू को खरीदने या कहे घर लाने से जुड़ी बातें बताई गई है जिसके अनुसार कुछ ऐसे दिन है जिन पर झाड़ू भूलकर भी नहीं खरीदना चाहिए अगर कोई ऐसा करता है तो उसे अशुभ परिणाम झेलना पड़ सकता है तो आज हम आपको बता रहे है कि किस दिन झाड़ू की खरीदारी करना अशुभ होता है।
झाड़ू से जुड़े वास्तु नियम
वास्तुशास्त्र और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार झाड़ू को सोमवार के दिन कभी नहीं खरीदना चाहिए क्योंकि सप्ताह का पहला दिन यानी सोमवार शिव पूजा को समर्पित होता है साथ ही इस दिन नई झाड़ू का प्रयोग करना भी अच्छा नहीं माना जाता है इससे दरिद्रता घर में वास करती है। वही झाड़ू को कभी भी शुक्ल पक्ष में नहीं खरीदना चाहिए इससे आर्थिक संकट का व्यक्ति को सामना करना पड़ सकता है।
शुक्ल पक्ष में झाड़ू खरीदना दुर्भाग्य का भी सूचक माना जाता है। वही रविवार का दिन धार्मिक तौर पर सूर्य भगवान को समर्पित होता है ऐसे में इस दिन अगर नई झाड़ू घर में खरीदकर लाया जाए तो कई परेशानियों का सामना परिवार को करना पड़ सकता है। वही अगर शनिवार के दिन झाड़ू घर लगाया जाता है तो भी इससे धन हानि का सामना करना पड़ सकता है साथ ही शनिदोष भी लगता है।
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घर में विष्णु यंत्र स्थापना से मिलती है मां लक्ष्मी की विशेष कृपा

सनातन धर्म में विष्णु यंत्र का बहुत महत्व है। वास्तु में विष्णु भाग्योदय यंत्र का प्रयोग शुभता के रूप में किया जाता है। कहते हैं कि इसके ऊपर स्वयं मां लक्ष्मी की कृपा होती है। विष्णु भाग्योदय यंत्र को अपने घर में रखने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। भारतीय ज्योतिष के अनुसार इस यंत्र की स्थापना घर में करने से मां लक्ष्मी सभी प्रकार की आर्थिक तंगी से आपको दूर रखती हैं। घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती है।

क्या है इस यंत्र की विशेषता ?
विष्णु यंत्र जैसी शक्तियां आपको और कहीं नहीं मिलेंगीं। इस यंत्र को सिद्ध करने से सभी कार्यों में सफलता प्राप्ति होती है। व्यापार में वृद्धि और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। विवाह में आने वाली अड़चने दूर होती हैं। इस यंत्र की स्थापना से आपको अनेक लाभ हो सकते हैं।
विष्णु यंत्र के लाभ
विष्णु यंत्र की स्थापना से आपको अपने सभी कार्यों में सफलता मिलती है। विष्णु भाग्योदय यंत्र को अपने घर अथवा दुकान में स्थाापित करने से आपको कभी भी धन की कमी नहीं होगी। इस यंत्र की नियमित पूजा करने से आर्थिक संकटों से जूझ रहे लोगों को राहत मिलती है। इस यंत्र से आपके विवाह में आ रही कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। अगर आप अपने बिजनेस को आगे बढ़ाना चाहते हैं या बिजनेस में घाटा हो रहा है तो आपको इस यंत्र को अपने ऑफिस या दुकान में जरूर स्थानपित करने से लाभ होता है।
इस प्रकार ये विष्णु यंत्र आपकी सभी कष्टों को दूर करके आपके जीवन को सुख और समृद्धि से भर सकता है। विष्णु यंत्र आप की कुंडली के बुध ग्रह को बलशाली बनाता है आप को ग्रहों के बुरे प्रभावों से बचाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह आप को जीवन पथ पर साहस के साथ आगे बढ़ने में मदद करता है। इस पवित्र विष्णु यंत्र की पूजा करने से आप भगवान विष्णु के आशीर्वाद के पात्र बन सकते हैं। इस यंत्र की पूजा करने से आप का आत्मविश्वास व साहस बढ़ेगा, जो आप को चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार करेगा। विष्णु यंत्र की पूजा बहुत उत्तम मानी है, जो जीवन में शांति व समृद्घि भी लेकर आती है।
डिसक्लेमर- 'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें
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शासन-प्रशासन ने शुरू की चारधाम यात्रा की तैयारी, 7 फरवरी को बैठक

बदरीनाथ। अक्षय तृतीया (22 अप्रैल) से चारधाम यात्रा शुरू हो जाएगी। श्री गंगोत्री-यमुनोत्री धाम के कपाट धार्मिक परंपराओं के तहत अक्षय तृतीया के दिन खुलते है। जबकि, श्री बदरीनाथ धाम के कपाट 27 अप्रैल, श्री हेमकुंट साहिब के कपाट मई माह में खुलेंगे।

चारधाम यात्रा शुरू होने में दो माह का समय बचा है। सरकार, शासन और जिला प्रशासन ने यात्रा की तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। मंडलायुक्त सुशील कुमार ने चारधाम प्रशासन संगठन की सात फरवरी को बैठक बुलाई है। नगर निगम ऋषिकेश के स्वर्ण जयंती सभागार में चारधाम यात्रा से जुड़े तमाम विभागों के अधिकारी हिस्सा लेंगे।
यात्रा प्रशासन संगठन के विशेष कार्याधिकारी व अपर आयुक्त नरेंद्र सिंह क्वीरियाल ने बताया कि बैठक में चारधाम यात्रा व्यवस्थाओं की तैयारियों की रुपरेखा तय होगी। बैठक में पर्यटन विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, पुलिस उप महानिरीक्षक, गढ़वाल मंडल के समस्त जिलाधिकारी, उप जिलाधिकारी, पुलिस, पर्यटन, चिकित्सा, परिवहन, बिजली, पेयजल, सीमा सड़क संगठन, राष्ट्रीय राजमार्ग, पीडब्ल्यूडी, पेयजल, खाद्यान्न, नगर निगम, पंचायती राज, वन विभाग, दूरसंचार, श्री बदरी-केदार मंदिर समिति, गुरुद्वारा हेमकुंट साहिब, स्थानीय परिवहन कंपनियों के प्रतिनिधि एवं शीर्ष अधिकारी शामिल होंगे।
अपर आयुक्त क्वीरियाल ने बताया कि अक्षय तृतीया (22 अप्रैल) से चारधाम यात्रा शुरू हो जाएगी। श्री गंगोत्री-यमुनोत्री धाम के कपाट धार्मिक परंपराओं के तहत अक्षय तृतीया के दिन खुलते है। जबकि, श्री बदरीनाथ धाम के कपाट 27 अप्रैल, श्री हेमकुंट साहिब के कपाट मई माह में खुलेंगे। श्री केदारनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि 18 फरवरी शिवरात्रि के दिन तय की जाएगी।
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कल हैं षटतिला एकादशी, जानिये इस एकादशी का महत्व और पढ़े पूरी कथा

धर्मडेस्क@झूठा-सच: एकादशी में एक षटतिला एकादशी भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। षटतिला एकादशी हर साल माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। षटतिला एकादशी का व्रत इस साल 18 जनवरी 2023 यानि बुधवार को रखा जाएगा। षटतिला एकादशी के दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। जो व्यक्ति इस दिन पूरे मन से पूजा-अर्चना करता है उसे पापों और उसे अपने जीवन में हर तरह के कष्ट और रोग से मुक्ति मिलती है। इस दिन तिल के उपाय करने से अनेक तरह की समस्याओं से छुटकारा प्राप्त किया जा सकता है। 

 

षट्तिला एकादशी का महात्म

एक समय दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि हे महाराज, पृथ्वी पर मनुष्य पराए धन की चोरी, ब्रह्महत्या जैसे बड़े पाप करते हैं, इतना ही नहीं दूसरों को आगे बढ़ता देखकर ईर्ष्या करते हैं। इसके बाद भी उन्हें नरक प्राप्त नहीं होता। आखिर इसका कारण क्या है। ये लोग ऐसा कौनसा का दान और पुण्य कार्य करते हैं जिनसे उनके पाप नष्ट हो जाते हैं। जरा इसके बारे में विस्तार से बताइए।पुलस्त्य मुनि कहने लगे हे महाभाग! आपने मुझे बहुत गंभीर और महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा है। इस प्रश्न से संसार के जीवों का भला होगा। इस राज को तो ब्रह्मा, विष्णु, महेश और इंद्र आदि भी नहीं जानते हैं। लेकिन मैं आपको यह गुप्त भेद जरूर बताऊंगा। उन्होने कहा कि माघ मास जैसे ही लगता है तो मनुष्य को स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए। अपनी इंद्रियों को वश में करके काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या और द्वेष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए। पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उनके कंडे बनाने चाहिए। इसके बाद उन कंडों से 108 बार हवन करना चाहिए। इस दिन अच्छे पुण्य देने वाले नियमों का पालन करना चाहिए। एकादशी के अगले दिन भगवान को पूजा आदि करने के बाद खिचड़ी का भोग लगाएं

 

षट्तिला एकादशी की व्रत कथा

इस कथा का उल्लेख श्री भविष्योत्तर पुराण में इसस प्रकार उल्लेखित किया गया है। पुराने समय में मृत्यु लोक में एक ब्राह्मण रहती थी। वह हमेशा व्रत और पूजा पाठ में लगी रहती थी। बहुत ज्यादा उपवास आदि करने से वह शारीरिक रुप से कमजोर हो गई थी। लेकिन, उसने ब्राह्मणों को अनुदान करके काफी प्रसन्न रखा। लेकिन, वह देवताओं को प्रसन्न नहीं कर पाई। एक दिन श्रीहरि स्वयं एक कृपाली का रुप धारण कर उस ब्रह्माणी के घर भिक्षा मांगने पहुंचे। ब्रह्माणी ने आक्रोश में आकर भिक्षा के बर्तन में एक मिट्टी का डला फेंक दिया  इस व्रत के प्रभाव से जब मृत्यु के बाद वह ब्रह्माणी रहने के लिए स्वर्ग पहुंची तो उसे रहने के लिए मिट्टी से बना एक सुंदर घर मिला। लेकिन, उसमें खाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। उसने दुखी मन से भगवान से प्रार्थना की कि मैंने जीवन भर इतने व्रत आदि, कठोर तप किए हैं फिर यहां मेरे लिए खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं है। इसपर भगवान प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि इसका कारण देवांगनाएं बताएंगी, उनसे पूछो। जब ब्रह्मणी ने देवांगनाओं से जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि तुमने षट्तिला एकादशी का व्रत नहीं किया। पहले षट्तिला एकादशी व्रत का महात्म सुन लो। ब्रहामणी ने उनके कहेनुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से उसके घर पर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया। मनुष्यों को भी मूर्खता आदि का त्याग करके षटतिला एकादशी का व्रत और लोभ न करके तिल आदि का दान करना चाहिए। इस व्रत के प्रभाव से आपका कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

षट्तिला एकादशी का व्रत

यह व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। दरअसल, इस एकादशी पर छह प्रकार के तिलों का प्रयोग किया जाता है। जिसके कारण इसका नामकरण षट्तिला एकादशी व्रत पड़ा। इस व्रत को रखने से मनुष्यों को अपने बुरे पापों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत को रखने से जीवन में सुख समृद्धि आती है।

 

षट्तिला एकादशी की पूजा विधि

षट्तिला एकादशी के दिन शरीर पर तिल के तेल से मालिश करना, तिल के जल में पान एंव तिल के पकवानों का सेवन करने का विधान है। सफेद तिल से बनी चीजें खाने का महत्व अधिक बताया गया है। इस दिन विशेष रुप से हरि विष्णु की पूजा अर्चना की जानी चाहिए। जो लोग व्रत रख रहें है वह भगवान विष्णु की पूजा तिल से करें। तिल के बने लड्डू का भोग लगाएं। तिलों से निर्मित प्रसाद ही भक्तों में बांटें। व्रत के दौरान क्रोध, ईर्ष्या आदि जैसे विकारों का त्याग करके फलाहार का सेवन करना चाहिए। साथ ही रात्रि जागरण भी करना चाहिए। इस दिन ब्रह्मण को एक भरा हुआ घड़ा, छतरी, जूतों का जोड़ा, काले तिल और उससे बने व्यंजन, वस्त्रादि का दान करना चाहिए।

 

 
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आज शाम से लगेगी षटतिला एकादशी, भूलकर भी न करें ये गलतियां

   षट्तिला का मतलब है 6 तिल यानि 6 तरीके से तिल का प्रयोग. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो तिल के दिव्य प्रयोगों से जीवन में ग्रहों के कारण आ रही बाधाओं को दूर किया जा सकता है.तिल पौधे से प्राप्त होने वाला एक बीज है. इसके अंदर तैलीय गुण पाये जाते हैं. तिल के बीज दो तरह के होते हैं- सफेद और काले. पूजा के दीपक में या पितृ कार्य में तिल के तेल का प्रयोग ज्यादा होता है. शनि की समस्याओं के निवारण के लिए काले तिल का दानों का प्रयोग किया जाता है. षट्तिला एकादशी में तिल के प्रयोग को बहुत ही श्रेष्ठ माना गया है. इसमें 6 तरीकों से तिल का प्रयोग होता है.

 धर्मडेस्क@झूठा-सच: हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। पद्मपुराण में एकादशी का बहुत ही महात्मय बताया गया है एवं उसकी विधि विधान का भी उल्लेख किया गया है।इन्ही में से एक हैं षटतिला एकादशी.हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 17 जनवरी 2023 यानि आज शाम 6 बजकर 5 मिनट से लेकर अगले दिन 18 जनवरी 2023 को शाम 4 बजकर 3 मिनट तक रहेगी. उदिया तिथि के चलते 18 जनवरी को षट्तिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा. इसका पारण 19 जनवरी सुबह 07.15 से लेकर सुबह 09.29 तक किया जाएगा.


षट्तिला एकादशी के 6 प्रयोग

  • तिल स्नान
  • तिल का उबटन
  • तिल का हवन
  • तिल का तपर्ण
  • तिल का भोजन
  • तिल का दान

कैसे रखें षट्तिला एकादशी का व्रत?

षट्तिला एकादशी का व्रत दो प्रकार से रखा जाता है- निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत. निर्जल व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए. सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए. इस व्रत में तिल स्नान, तिल युक्त उबटन लगाना चाहिए. तिल युक्त जल और तिल युक्त आहार का ग्रहण करना चाहिए.

पूजन विधि

षटतिला एकादशी के दिन गंध, फूल, धूप दीप, पान सहित विष्णु भगवान की षोडशोपचार से पूजा की जाती है. इस दिन उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाने की परंपरा है. रात को तिल से 108 बार 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा' मंत्र से हवन करें. रात को भगवान के भजन करें और अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं.

 षटतिला एकादशी पर न करें ये काम

  • इस दिन तामसिक भोजन (लहसुन-प्याज) के अलावा मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन सात्विक भोजन करना चाहिए।
  • इस दिन जिस व्यक्ति से व्रत रखा है वह ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करें। इसके साथ ही जमीन में ही विश्राम करें।
  • इस दिन अपने क्रोध को शांत रखना चाहिए। किसी से वाद विवाद नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही किसी से झूठ न बोले।
  • इस दिन चावल के अलावा बैंगन का सेवन करने से बचना चाहिए।
  • इस दिन पेड़-पौधों को बिल्कुल नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए।
  • इस दिन दातुन नहीं करना चाहिए। क्योंकि इस दिन टहनियों को तोड़ने की मनाही होती है।

 षटतिला एकादशी पर करें ये काम

  • षटतिला एकादशी के दिन गंगा स्नान जरूर करना चाहिए।
  • इस दिन दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन तिल से बनी चीजों का विशेष रूप से दान करें।
  • इस दिन भगवान विष्णु को तिल का भोग लगाने के साथ पंचामृत में तिल मिलाकर स्नान करना चाहिए।
  • स्नान करने वाले पानी में तिल जरूर डालने चाहिए।
  • इस एकादशी पर व्रत की कथा सुनने के बाद हवन के समय तिल की आहुति जरूर दें।
  • षटतिला एकादशी के दिन तिल से पितरों का तर्पण जरूर करें।

 

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