धर्म समाज

हरतालिका तीजे के दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए रखे निर्जला उपवास

झूठा सच @ रायपुर :- हिंदू धर्म में हरतालिका तीज व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका व्रत रखा जाता है. ये व्रत निर्जला और निराहर किया जाता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना होती है.ये त्योहार विशेषतौर से उत्तर भारत में मनाया जाता है. हरतालिका तीज के दिन लड़की के मायके से कपड़े, फल, फूल और मिठाई भेजी जाती है. आइए जानते हैं हरतालिका तीज से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में

 हरतालिका तीज शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 8 सितंबर के दिन बुधवार को देर रात 02 बजकर 33 मिनट पर हो रहा है और 09 सितंबर 2021 को रात 12 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगा. इस बार हरतालिका तीज के दिन दो मुहूर्त है एक सुबह के समय में और दूसरा प्रदोष काल में सूर्यास्त के बाद आता है.पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 03 मिनट से सुबह 08 बजकर 33 मिनट पर होगा. इसके अलावा प्रदोष काल में शाम 06 बजकर 33 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक रहेगा.

 हरतालिका पूजा विधि

हरतालिक तीज की पूजा प्रदोषकाल में होती है. इस दिन सुबह – सुबह उठकर स्नान करें और नए वस्त्र पहनकर व्रत और पूजा का संकल्प लें. इसके बाद पूजा स्थल की साफ- सफाई करें और उसके बाद केले के पत्ते पर मिट्टी से बने शिव, पार्वती और भगवान गणेश की पूजा- अर्चना करें. माता पार्वती को श्रृंगार का समान भेंट करें. इस दिन शाम के समय में व्रत कथा अवश्य सुनें और रात में जागरण करें. इसके बाद अगली सुबह व्रत का पारण करें. 

हरतालिका व्रत महत्व

सुहागिन महिलाएं हरतालिका तीज व्रत पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं. इसके अलावा कुंवारी महिलाएं मनचाहे पति की कामना के लिए व्रत रखती है. इस व्रत को करने के पुण्य से घर में सुख- समृद्धि आती है.

पूजा के नियम

1. हरतालिका तीज के दिन भगवान शिव, माता पार्वती और गणेशजी की मिट्टी से मूर्ति बनाएं. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है. पूरे दिन अन्न और जल नहीं ग्रहण करना चाहिए. इस व्रत का पारण अगले दिन सुबह माता पार्वती की पूजा के बाद पानी पीकर तोड़ती है.

2. हरतालिका तीज के दिन व्रत कथा का पाठ करना शुभ माना जाता है.

3. हरतालिका तीज की पूजा सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में करना सबसे शुभ माना जाता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती को वस्त्र अर्पित करना चाहिए
और भी

रविवार को सूर्य को ऐसे चढ़ाएं जल, आरोग्य की होगी प्राप्ति

झूठा सच @ रायपुर :- सूर्यदेव को ग्रहों का राजा माना जाता है. उन्हें कलयुग में एकमात्र दृश्य देवता के तौर पर भी पहचाना जाता है. हिंदू धर्म में सूर्य देव का विशेष महत्व माना गया है. सूर्यदेव के नियमित पूजन से जीवन में शांति और खुशहाली आती है. धार्मिक मान्यता के अनुसार सुबह नहाने के बाद रोजाना सूर्य देवता को जल चढ़ाने और रोज सूर्य नमस्कार करने से जीवन में बड़ा बदलाव होता है. वैदिक काल में भी भगवान सूर्य नारायण की उपासना का उल्लेख किया गया है. धार्मिक ग्रंथों में भी इसका उल्लेख है. महाभारत काल में रानी कुंती को सूर्य देव की कृपा से ही पहले पुत्र की प्राप्ति हुई थी. वहीं वेदों में सूर्य को जीवन, सेहत और शक्ति के देवता के तौर पर मान्यता है. सूर्यनारायण के सामने किए जाने वाले नमस्कार को सर्वांग व्यायाम भी कहा जाता है. 

सूर्य के 3 प्रहर की साधना
सूर्य की दिन में तीन प्रहर की साधना को विशेष फलदायी माना गया है.
1. प्रात:काल के वक्त सूर्य की साधना से आयोग्य प्राप्त होता है.
2. दोपहर में की गई आराधना साधक को मान-सम्मान दिलाती है.
3. शाम के वक्त की गई साधना सौभाग्य को जगाकर संपन्नता लाती है.

सूर्य को ऐसे चढ़ाएं जल
सूर्य को सभी ग्रहों का स्वामी माना जाता है. स्नान के बाद सूर्यनारायण को जल चढ़ाना चाहिए. धार्मिक मान्यता के साथ ही इसका वैज्ञानिक महत्व भी है. नहाने के बाद नीचे सिर्फ अंगोछा (टॉवेल) ही पहनना चाहिए बाकी पूरे बदन पर कपड़ा नहीं होना चाहिए. जल का लोटा लेकर गीले बदन ही सूर्य देवता की ओर मुंह कर के जल को चढ़ाना चाहिए. साथ ही सूर्य से निकलने वाली किरणें शरीर पर पड़ी जल की बूंदों में प्रवेश कर सात रंगों में विभक्त हो जाती हैं और इससे शरीर में जिस रंग की कमी होती है उसकी पूर्ति हो जाती है. इससे हमारे स्वास्थ्य में सुधार होता है और कुछ वक्त में ही शरीर आरोग्य प्राप्त करने लगता है | 
और भी

आज जन्माष्टमी पर बन रहा है खास संयोग, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

आज देशभर में धूम- धाम से जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है. भादों मास में श्री कृष्ण की पूजा का खास महत्व है. कृष्ण जन्माष्टमी के दिन लोग पूरा दिन व्रत और पूजा करते हैं. इस साल श्रीकृष्ण का 5247वां जन्मोत्सव मनाया जा रहा है. हर साल जन्माष्टमी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. 

इस खास दिन पर घरों और मंदिरों में विशेष रूप से सजाया जाता है. जन्माष्टमी के दिन कृष्ण भक्त भगवान की भक्ति में डूबे रहते हैं, मंदिरों में रात 12 बजे तक भगवान कृष्ण के गीत गाएं जाते हैं. आइए जानते हैं इस दिनके शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व के बारे में जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त शास्त्रों के अनुसार इस बार जन्माष्टमी के दिन वैसा संयोग बन रहा है जैसा द्वापर युग में श्रीकृष्ण के जन्म पर बना था. इस बार जन्माष्टमी के दिन कई सारे शुभ संयोग बन रहे हैं. कृष्ण जन्मष्टमी पर जयंती और रोहिण नक्षत्र योग बन रहा है. इसके अलावा अष्टमी तिथि पर चंद्रमा वृषभ राशि में मौजूद रहेगा आज कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है. भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 29 अगस्त 2021 को रात 11 बजकर 25 मिनट पर शुरू हो गया जो 30 अगस्त 2021 की रात 02 बजे तक रहेगा. जन्माष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त 11 बजकर 59 मिनट से रात 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा.

जन्माष्टमी की पूजा विधि
जन्माष्टमी के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और स्वच्छ कपड़े पहनकर व्रत और पूजा करने का संकल्प लेते हैं. इस पूरे दिन कृष्ण भक्त व्रत रखते हैं और रात के 12 बजे में कृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं. जन्माष्टमी के दिन श्री कृष्ण की बाल स्वरूप में पूजा होती है. रात्रि में पंचामृत से अभिषेक करें और फिर भगवान कृष्ण को नए वस्त्र, मोर मुकुट, बांसुरी, चंदन, वैजयंती माला, तुलसी, फल, फूल, मेवे, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित करें. फिर लड्डू गोपाल को झूला झुलाएं. इसके बाद माखन मिश्री या धनिया की पंजीरी का भोग लगाएं और बाद में आरती करके प्रसाद को वितरित करें.

जन्माष्टमी का महत्व
जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. खासतौर पर निसंतान दंपत्ति को जन्माष्टमी का व्रत करने से संतान प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से आपकी इच्छा जल्द पूरी होती है. कई लोग जन्माष्टमी के दिन विशेष उपाय करते हैं ताकि उन सभी परेशानियां दूर हो जाएं. ज्योतिषों के अनुसार इन उपायों को करने से आर्थिक समते पारिवारिक समस्याएं दूर हो जाती है. शास्त्रों में कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत को व्रतराज भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से आपकी सारे कष्ट दूर हो जाते हैं कई गुणा फल की प्राप्ति होती है.

पुत्र प्राप्ति मंत्र
ऊं देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।
जिन लोगों की कोई संतान नहीं है उन्हें इस का मंत्र का जाप व्रत रखते हुए 108 बार करना चाहिए.
और भी

आज है बलराम जंयती, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि

झूठा सच @ रायपुर :- भगवान विष्णु के शेषावतार बलराम का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी माह की अष्टमी तिथि के दिन विष्णु जी के आठवें अवतार भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। बलराम ने भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप जन्म लिया था। बलराम जी को हलधर मतलब हलधारण करने वाले के रूप में भी जाना जाता है। इसलिए उनकी जयंती को हल षष्ठी के नाम से भी मनाया जाता है। इस दिन हल की जुताई से उगे हुए अनाज नहीं खाए जाते हैं। इस साल बलराम जंयती 28 अगस्त, दिन शनिवार को पड़ रही है। आइए जानते हैं भगवान बलराम के जन्म की पौराणिक कथा के बारे में....


बलराम जी के जन्म की पौराणिक कथा
भागवत पुराण के अनुसार बलराम या संकर्षण को भगवान विष्णु का शेषावतार माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का अंश माने जाने वाले शेषनाग, उनके हर अवतार के साथ अवश्य धरती पर आते हैं। भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के बड़े भाई के रूप में शेषनाग ने बलराम जी के नाम से अवतार लिआ था। कथा के अनुसार जब मथुरा नरेश कंस अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को विदा कर रहा था, उसी समय आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी में देवकी और वासुदेव की आंठवी संतान को कंस का काल बताया था।

माता रोहणी के गर्भ से बलराम का जन्म
इसलिए कंस ने देवकी और वासुदेव को कारगार में कैद कर दिया था। कंस ने एक-एक करके उनकी छह सांतानों को मार दिया था। लेकिन जब सांतवी संतान के रूप में शेषवतार भगवान बलराम गर्भ में स्थापित हुए। तो श्री हरि ने योग माया से उन्हें माता रोहणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया था। इसलिए उनका जन्म भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप में नंदबाबा के यहां हुआ। बलराम मल्लयुद्ध, कुश्ती और गदायुद्ध में पारंगत थे तथा हाथ में हल धारण करते थे। इसलिए उन्हे हलधर भी कहा जाता है। इनके जन्म को हल षष्ठी के रूप में मनाया जाता है।
और भी

भगवान विष्णु के शेषावतार बलराम कल है जंयती

भगवान विष्णु के शेषावतार बलराम का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी माह की अष्टमी तिथि के दिन विष्णु जी के आठवें अवतार भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। बलराम ने भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप जन्म लिया था। बलराम जी को हलधर मतलब हलधारण करने वाले के रूप में भी जाना जाता है। इसलिए उनकी जयंती को हल षष्ठी के नाम से भी मनाया जाता है। इस दिन हल की जुताई से उगे हुए अनाज नहीं खाए जाते हैं। इस साल बलराम जंयती 28 अगस्त, दिन शनिवार को पड़ रही है। आइए जानते हैं भगवान बलराम के जन्म की पौराणिक कथा के बारे में....


बलराम जी के जन्म की पौराणिक कथा
भागवत पुराण के अनुसार बलराम या संकर्षण को भगवान विष्णु का शेषावतार माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का अंश माने जाने वाले शेषनाग, उनके हर अवतार के साथ अवश्य धरती पर आते हैं। भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के बड़े भाई के रूप में शेषनाग ने बलराम जी के नाम से अवतार लिआ था। कथा के अनुसार जब मथुरा नरेश कंस अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को विदा कर रहा था, उसी समय आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी में देवकी और वासुदेव की आंठवी संतान को कंस का काल बताया था।
 
माता रोहणी के गर्भ से बलराम का जन्म
इसलिए कंस ने देवकी और वासुदेव को कारगार में कैद कर दिया था। कंस ने एक-एक करके उनकी छह सांतानों को मार दिया था। लेकिन जब सांतवी संतान के रूप में शेषवतार भगवान बलराम गर्भ में स्थापित हुए। तो श्री हरि ने योग माया से उन्हें माता रोहणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया था। इसलिए उनका जन्म भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप में नंदबाबा के यहां हुआ। बलराम मल्लयुद्ध, कुश्ती और गदायुद्ध में पारंगत थे तथा हाथ में हल धारण करते थे। इसलिए उन्हे हलधर भी कहा जाता है। इनके जन्म को हल षष्ठी के रूप में मनाया जाता है।
 
डिसक्लेमर
'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

 

 

और भी

भगवान विष्णु के शेषावतार बलराम कल है जंयती

भगवान विष्णु के शेषावतार बलराम का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी माह की अष्टमी तिथि के दिन विष्णु जी के आठवें अवतार भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। बलराम ने भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप जन्म लिया था। बलराम जी को हलधर मतलब हलधारण करने वाले के रूप में भी जाना जाता है। इसलिए उनकी जयंती को हल षष्ठी के नाम से भी मनाया जाता है। इस दिन हल की जुताई से उगे हुए अनाज नहीं खाए जाते हैं। इस साल बलराम जंयती 28 अगस्त, दिन शनिवार को पड़ रही है। आइए जानते हैं भगवान बलराम के जन्म की पौराणिक कथा के बारे में....


बलराम जी के जन्म की पौराणिक कथा
भागवत पुराण के अनुसार बलराम या संकर्षण को भगवान विष्णु का शेषावतार माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का अंश माने जाने वाले शेषनाग, उनके हर अवतार के साथ अवश्य धरती पर आते हैं। भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण के बड़े भाई के रूप में शेषनाग ने बलराम जी के नाम से अवतार लिआ था। कथा के अनुसार जब मथुरा नरेश कंस अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को विदा कर रहा था, उसी समय आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी में देवकी और वासुदेव की आंठवी संतान को कंस का काल बताया था।
 
माता रोहणी के गर्भ से बलराम का जन्म
इसलिए कंस ने देवकी और वासुदेव को कारगार में कैद कर दिया था। कंस ने एक-एक करके उनकी छह सांतानों को मार दिया था। लेकिन जब सांतवी संतान के रूप में शेषवतार भगवान बलराम गर्भ में स्थापित हुए। तो श्री हरि ने योग माया से उन्हें माता रोहणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया था। इसलिए उनका जन्म भगवान कृष्ण के बड़े भाई के रूप में नंदबाबा के यहां हुआ। बलराम मल्लयुद्ध, कुश्ती और गदायुद्ध में पारंगत थे तथा हाथ में हल धारण करते थे। इसलिए उन्हे हलधर भी कहा जाता है। इनके जन्म को हल षष्ठी के रूप में मनाया जाता है।
 
डिसक्लेमर
'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

 

 

और भी

संतान की सलामती के लिए महिलाओं ने रखा संकष्टी बहुला चतुर्थी का व्रत

 झूठा सच@रायपुर :- तान की सलामती और उसके लंबी दीर्घायु के लिए महिलाओं ने आज संकष्टी संग बहुला चतुर्थी का व्रत रखा है । इस दिन भगवान श्री गणेश के निमित्त व्रत किया जाता है । भाद्र कृष्ण पक्ष चतुर्थी को बहुला चौथ का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है इसे श्री संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है । ज्योतिष आचार्य ने बताया है कि इस दिन चंद्रमा मीन राशि में विराजमान रहेगा और उत्तराभाद्र नक्षत्र तृतीय और शूल योग का समावेश रहेगा |


 बहुला चौथ व्रत का विधि-विधान
  • बहुला चौथ में सौभाग्यवती माताएं पूजा-अर्चना कर अपने संतान की लंबी आयु अच्छे स्वास्थ धन ऐश्वर्य उन्नति के लिए कामना करेंगे.
  • वही आज के दिन चंद्रमा को देखने का बड़ा महत्व है। चंद्रमा को देखकर माताएं अपना व्रत तोड़ती हैं। आज रात 8:30 बजे माताएं चंद्रोदय के बाद शिव पार्वती और गणेश की पूजा कर चंद्रमा को उजला फूल …

 

 

 

और भी

संतान की लंबी आयु के लिए रखें हरषष्टी व्रत, जानिए पूजन की विधि

झूठा सच @ रायपुर :- भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी व्रत है। यह पर्व बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है | चूंकि बलराम जी का प्रधान शस्त्र हल और मूसल है | इसीलिए बलराम को हलधर के नाम से भी जाना जाता है । इस दिन को हल षष्ठी, हरछठ या ललही छठ के रूप में मनाया जाता है | इस दिन गाय के दूध और दही का सेवन करना भी वर्जित है। इस दिन व्रत करने का भी विधान है।

हरछठ के दिन व्रत करने से श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है और जिनकी पहले से संतान है, उनकी संतान की आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है। इस बार 28 अगस्त को यह व्रत रख जाएगा। इस दिन बलराम के साथ-साथ भगवान शिव, पार्वती जी,गणेश, कार्तिकेय जी, नंदी और सिंह आदि की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।
 
इस दिन महिलाएं पड़िया वाली भैंस के दूध से बने दही और महुवा को पलाश के पत्ते पर खा कर व्रत का समापन करती हैं। इस दिन गाय के दूध और दही का सेवन करना भी वर्जित माना जाता है। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार षष्ठी तिथि 28 अगस्त को रात 8 बजकर 56 मिनट तक है
 
हरछठ की पूजा विधि
इस दिन सुबह सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर गोबर ले आएं। इसके बाद साफ जगह को इस गोबर से लीप कर तालाब बनाएं। इस तालाब में झरबेरी, ताश और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हरछठ को गाड़ दें। इसके बाद विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करें।
 
पूजा के लिए सतनाजा (यानी सात तरह के अनाज जिसमें आप गेंहू, जौ, अरहर, मक्का, मूंग और धान) चढ़ाएं इसके बाद हरी कजरियां, धूल के साथ भुने हुए चने और जौ की बालियां चढ़ाएं। इसके बाद कोई आभूषण और हल्दी से रंगा हुआ कपड़ा चढ़ाएं। इसके बाद भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन करें। इसके बाद हरछठ की कथा सुनें।
 
हरछठ की व्रत कथा
एक ग्वालिन गर्भवती थी। उसका प्रसव काल नजदीक था, लेकिन दूध-दही खराब न हो जाए, इसलिए वह उसको बेचने चल दी। कुछ दूर पहुंचने पर ही उसे प्रसव पीड़ा हुई और उसने झरबेरी की ओट में एक बच्चे को जन्म दिया। उस दिन हल षष्ठी थी। थोड़ी देर विश्राम करने के बाद वह बच्चे को वहीं छोड़ दूध-दही बेचने चली गई। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने गांव वालों ठग लिया। इससे व्रत करने वालों का व्रत भंग हो गया। इस पाप के कारण झरबेरी के नीचे स्थित पड़े उसके बच्चे को किसान का हल लग गया। दुखी किसान ने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और चला गया।
 
ग्वालिन लौटी तो बच्चे की ऐसी दशा देख कर उसे अपना पाप याद आ गया। उसने तत्काल प्रायश्चित किया और गांव में घूम कर अपनी ठगी की बात और उसके कारण खुद को मिली सजा के बारे में सबको बताया। उसके सच बोलने पर सभी ग्रामीण महिलाओं ने उसे क्षमा किया और आशीर्वाद दिया। इस प्रकार ग्वालिन जब लौट कर खेत के पास आई तो उसने देखा कि उसका मृत पुत्र तो खेल रहा था | 
 

 

और भी

रक्षाबंधन के दिन करें इस अष्टलक्ष्मी मंत्र का जाप, नहीं होगी कोई कष्ट

22 अगस्त को सावन के महीने का आखिरी दिन है. इस दिन श्रावण पूर्णिमा है, साथ ही रक्षा बंधन का पावन त्योहार भी है. पूर्णिमा की तिथि 21 अगस्त को शाम 07:02 बजे शुरू होगी और 22 अगस्त को शाम 05:33 बजे समाप्त होगी. कहा जाता है कि सावन मास की इस पूर्णिमा तिथि पर महादेव के साथ साथ भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाए तो बहुत शुभ होता है ऐसे में भोलेनाथ के साथ मां लक्ष्मी और नारायण की भी कृपा घर में बनी रहती है और जीवनभर धन धान्य आदि की कमी नहीं होती. अगर आपके घर पर आर्थिक संकट है तो आपके लिए पूर्णिमा का दिन और भी खास है क्योंकि इस दिन से लेकर अगले 40 दिनों तक आप अष्ट लक्ष्मी प्रयोग करके माता लक्ष्मी को बेहद प्रसन्न कर सकते हैं. ये अचूक प्रयोग आपके जीवन में धन की ऐसी वर्षा करेगा कि आप जीवन भर कभी धन संबन्धी कष्टों का सामना नहीं करेंगे. 

ऐसे होगा अष्टलक्ष्मी प्रयोग

अष्टलक्ष्मी प्रयोग को करने के लिए सबसे पहले लक्ष्मी माता का ऐसा चित्र खरीदकर लाएं जिसमें वे कमल पर आसीन हों और उनके दोनों तरफ हाथी उनकी सेवा कर रहे हों. इस प्रकार की लक्ष्मी को ज्येष्ठा लक्ष्मी कहा जाता है. इसके बाद लक्ष्मी माता की तस्वीर और यंत्र की पूर्णिमा के दिन से लेकर अगले 40 दिनों तक रोजाना पूजा करें और कमलगट्टे की माला से 'ओम श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊं महालक्ष्म्यै नम:' मंत्र का नियमित रूप से जाप करें. आपको रोजाना कम से कम 29 माला का जाप करना है. इस तरह रोजाना जाप करने से 40 दिनों में सवा लाख जाप संपन्न हो जाएंगे.

40वें दिन कन्याओं को कराएं भोज

40वें दिन आपको इसी मंत्र से कमलपत्र, बिल्वपत्र या दुग्धस्रावित स्निग्ध औषधियों से बनी खीर से 108 आहुति देकर हवन करना है. हवन के बाद 5 या 7 कन्याओं को घर पर बुलाकर उन्हें भोजन कराएं और खीर खिलाएं. उनका पूजन करें और यथा सामर्थ्य दक्षिणा देकर, उनके पैर छूकर सम्मानपूर्वक विदा करें. इतना सब पूर्ण करने के बाद मंत्र सिद्ध हो जाएगा. इसके बाद आपके जीवन में धन से जुड़ी तमाम समस्याएं अपने आप खत्म होने लगेंगी. व्यापार में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होगी. नौकरी में प्रमोशन होगा और आप तेजी से आगे बढ़ते जाएंगे. 40 दिन पूरे होने के बाद भी आप लक्ष्मी जी प्रतिमा और उनके यंत्र का नियमित पूजन करें और उस मंत्र का श्रद्धानुसार जाप करते रहें.
 
और भी

ओणम का पर्व दस दिनों तक मनाया जाता है, जानिए इसका महत्व

केरल के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला ओणम राज्य के सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक है. यह हर साल अगस्त और सितंबर के बीच मनाया जाता है. इसे थिरु-ओणम या थिरुवोनम के रूप में भी जाना जाता है. इस साल यह पर्व 21 अगस्त को पड़ रहा है. ये त्योहार 12 अगस्त से शुरू हो चुका है और 23 अगस्‍त तक चलेगा. 

क्यों मनाया जाता हैं ओणम:-  विष्णु भगवान के दूसरे अवतार की कथा इस त्योहार में बताई गयी है. एसा माना जाता है कि साल में एक बार पाताल लोक से राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने धरती लोक पर आते हैं. इस दिन वामन अवतार और राजा बलि की पूजा के साथ उनका स्वागत किया जाता है, जिसकी खुशी में यह त्योहार बहुत ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है. वहीं इस पर्व का खेती से भी गहरा संबंध रहा है. इस दिन किसान नई फसल उगने की खुशी में भी मनाते हैं.

आपको बता दें, ओणम त्योहार में भगवान की 10 दिन दस अलग अलग रुपों की पूजा की जाती है और त्योहार को मनाया जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा खास होता है दसवें दिन का महोत्सव भगवान विष्णु को समर्पित इस पूजा को इन 10 प्रकार से मनाया जाता है- 1. एथम 2. चिथिरा 3. चोधी 4. विसाकम 5. अनिजाम 6. थ्रिकेता 7. मूलम 8. पूरादम 9. उथिरादम 10. थिरुवोणम. ओणम के प्रत्येक दिन का अपना नाम, महत्व और गतिविधियां होती हैं, जो लोग इस त्योहार का आनंद लेने के लिए करते हैं. ओणम के बाद के कुछ उत्सव भी होते हैं जो दस दिनों के बाद भी जारी रहते हैं.

 

और भी

जानिए कब है सावन पुत्रदा एकादशी

सावन माह में भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भगवान शिव आदि हैं और अंत भी। उनसे जीवन भी है और मृत्यु भी। उनकी कृपा से तो काल भी डरते हैं क्योंकि वे स्वयं महाकाल हैं। इस सावन माह में शिव पूजा के साथ पुत्रदा एकादशी का बहुत महत्व है। जो लोग दाम्पत्य जीवन में संतान सुख से वंचित हैं, उन लोगों के लिए सावन पुत्रदा एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। सावन पुत्रदा एकादशी के नाम से ही आपको इस व्रत के उद्देश्य के बारे में पता लग रहा होगा अर्थात् पुत्र को देने वाली एकादशी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस एकादशी व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है। सावन पुत्रदा एकादशी के दिन व्रत रखते हुए भगवान विष्णु की आराधना की जाती है और भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरुप की पूजा करते हुए संतान की कामना करते हैं। इस वर्ष सावन पुत्रदा एकादशी 18 अगस्त दिन बुधवार को है। जागरण अध्यात्म में आज हम जानते हैं श्रावण पुत्रदा एकादशी तिथि, पूजा मुहूर्त, मंत्र और पारण समय के बारे में।

सावन पुत्रदा एकादशी 2021 पूजा मुहूर्त - हिन्दी पंचांग के अनुसार, सावन शुक्ल एकादशी तिथि 18 अगस्त को प्रात: 03:20 बजे प्रारंभ होगी और इसका समापन 18 अगस्त की देरी रात 01:05 बजे होगा।

पुत्र प्राप्ति का मंत्र
ऊं देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद इस मंत्र का जाप करें। यह भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरुप से जुड़ा मंत्र है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के समान पुत्र की कामना की गई है।

पुत्रदा एकादशी 2021 पारण - जो लोग व्रत रखेंगे, उनको व्रत का पारण अगले दिन 19 अगस्त को करना होगा। उस दिन आप प्रात: 06:32 बजे से प्रात: 08:29 बजे के बीच पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण कर सकते हैं। पारण करने के बाद ही व्रत को पूरा माना जाता है।

पुत्रदा एकादशी महत्व - पौराणिक मान्यता है कि सच्चे मन से पुत्रदा एकादशी का व्रत करने और विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत के पुण्य से व्यक्ति को मृत्यु के पश्चात भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ में स्थान प्राप्त होता है।
 
और भी

सावन के आखिरी सोमवार पर जरूर करें ये पाठ

भगवान शिव का षडक्षर स्तोत्र, शंकर जी को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने का सरल और अत्यंत प्रभावशाली उपाय है। पुराणों में वर्णित षडक्षर स्तोत्र में भगवान शिव के स्वरूप और उनकी महिमा की व्याख्या की गई है। इस षडक्षर स्तोत्र में भगवान शिव के अनादि अनंत स्वरूप का वर्णन करने का प्रयास किया गया है। मान्यता है कि भगवान शिव के षडक्षर स्तोत्र का पाठ कर शंकर जी की स्तुति करने से भगवान शिव अवश्य प्रसन्न होते हैं। 

सावन का महीना भगवान शिव का प्रिय माह है। इस माह में भगवान शिव को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है। 22 अगस्त को पूर्णिमा के दिन सावन का महीना समाप्त हो रहा है तथा कल 16 अगस्त को सावन का आखिरी सोमवार है। मान्यता है कि इस दिन विधि पूर्वक भगवान शिव का पूजन करना तथा षडक्षर स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान शिव अपने भक्तों के सभी संकट दूर करते हैं तथा उनकी सभी मनोकामना पूरी करते हैं....

  शिव षडक्षर स्तोत्रम् ||

ॐकारं बिंदुसंयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिनः ।

कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः ॥१॥

नमंति ऋषयो देवा नमन्त्यप्सरसां गणाः ।

नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नमः ॥२॥

महादेवं महात्मानं महाध्यानं परायणम् ।

महापापहरं देवं मकाराय नमो नमः ॥३॥

शिवं शांतं जगन्नाथं लोकानुग्रहकारकम् ।

शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नमः ॥४॥

वाहनं वृषभो यस्य वासुकिः कंठभूषणम् ।

वामे शक्तिधरं देवं वकाराय नमो नमः ॥५॥

यत्र यत्र स्थितो देवः सर्वव्यापी महेश्वरः ।

यो गुरुः सर्वदेवानां यकाराय नमो नमः ॥६॥

षडक्षरमिदं स्तोत्रं यः पठेच्छिवसंनिधौ ।

शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥७॥

 
और भी

नागपंचमी पर जरूर करें इन चीजों का सेवन

वन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन नागों की पूजा करने व सर्प को दूध से स्नान कराने का विधान है. इस साल नाग पंचमी का त्योहार आज 13 अगस्त को मनाया जा रहा है. मान्यता है कि आज के दिन नाग देवता की पूजा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है, साथ ही घर में धन धान्य की कमी नहीं रहती. ये भी माना जाता है कि नाग पंचमी पर सर्प के पूजन से परिवार के लोगों को नाग के डर से छुटकारा मिलता है. यदि कुंडली में काल सर्प दोष हो तो वो निष्प्रभावी हो जाता है. नाग पंचमी के दिन 4 चीजें खाने की बात भी कही गई है. ये चीजें स्वाद में मीठी, खट्टी, कड़वी व तीखी होनी चाहिए. माना जाता है कि इससे सर्प दंश से रक्षा होती है. जानिए आज के दिन कौन सी चीजें खाना जरूरी है.

खीर जरूर खाएं  -  नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा के दौरान खीर का भोग लगाया जाता है. साथ ही इस दिन लोगों के बीच भी खीर खाने का चलन है. माना जाता है कि नाग पंचमी के दिन ही आस्तिक मुनि ने अपने तपोबल से राजा जनमेजय द्वारा किए जा रहे यज्ञ में जल रहे नागों को बचाया था और उन्हें दूध से स्नान कराया था. इससे नागों की जलन शांत हुई थी. उसी दिन से नागलोक में सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन उत्सव मनाया जाने लगा. इस दिन उत्सव के तौर पर कुल देवी, देवताओं और नागदेवता को खीर का भोग लगाया जाता है. पूजा के ​बाद इस मीठी खीर को खाने से नाग देवता और अन्य देवी देवताओं की कृपा परिवार पर बनी रहती है.

दही में पके चावल - इस दिन छाछ या दही में चावल को पकाकर नाग देवता को चढ़ाना चाहिए और फिर इसे स्वयं भी ग्रहण करना चाहिए. इससे सर्प जाति में आने के भय से छुटकारा मिलता है. बिहार के कुछ इलाकों में विशेष अवसरों के दौरान दही में चावल को पकाकर खाया जाता है.

नींबू का सेवन करें - कहा जाता है कि नाग देवता की पूजा के बाद इस दिन नींबू जरूर खाना चाहिए. यदि आप नींबू खाएंगे तो इससे नाग देवता के दांत भी खट्टे हो सकते हैं. इसलिए पूजा के बाद नींबू खाना न भूलें.

नीम की पत्तियां चबाएं - आज के दिन नीम की पत्तियों को भी चबाना चाहिए. नीम की पत्तियां कड़वी होती हैं और नाग पंचमी के दिन एक कड़वी चीज को खाने के लिए कहा गया है. ऐसे में आज के दिन नीम की पत्तियां खाने की प्रथा काफी समय से चली आ रही है.
 
और भी

आज है कल्कि जयंती,जानिए शुभ मुहूर्त

पुराणों के अनुसार, कलयुग के अंत में भगवान विष्णु का अंतिम अवतार होगा। इस अवतार में भगवान विष्णु कल्कि के रूप में जन्म लेंगे। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान कल्कि कलयुग में फैले द्वेष का पूर्ण विनाश करके धर्म का निर्माण करने के लिए जन्म लेंगे। सावन के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान कल्कि की जयंती मनाई जाती है। यह आज 13 अगस्त दिन शुक्रवार को है। भगवान विष्णु का यह पहला अवतार है, जिसकी जयंती जन्म से पहले मनाई जाती रही है। आइये जानते हैं भगवान कल्कि की जयंती तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा का सही विधि-विधान।


कल्कि जयंती तिथि

कल्कि जयंती का शुभ मुहूर्त शुक्रवार, 13 अगस्त 2021 शाम 04 बजकर 24 मिनट से शाम 07 बजकर 02 मिनट तक

शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि का प्रारंभ : 13 अगस्त 2021 दिन शुक्रवार, दोपहर 01 बजकर 42 मिनट से

शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि का समापन : 14 अगस्त 2021 दिन शनिवार, सुबह 11 बजकर 50 मिनट तक

भगवान कल्कि की पूजा विधि :  इस दिन सबसे पहले प्रातःकाल स्‍नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर व्रत का संकल्‍प लेना चाहिए। पूजा के स्थान को साफ सुथरा कर लेना चाहिए। इसके बाद भगवान कल्कि की प्रतिमूर्ति को गंगाजल से नहलाकर वस्त्र पहनाएं। पूजा स्थान पर एक चौकी रखकर उस पर लाल कपड़ा फैलाकर भगवान कल्कि को स्‍थापित करें। धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्‍प और अगरबत्‍ती आदि की मदद से पूजा करें। पूजा के उपरांत भगवान कल्कि को याद करते हुए दुखों के विनाश की कामना करनी चाहिए। सबसे अंत में सभी भक्तजनों के बीच प्रसाद वितरित करें।

 

और भी

कल हैं सावन के तीसरे सोमवार, जानें मुहूर्त एवं पूजा

सावन के सोमवार का शिवभक्तों को बेसब्री से इंतजार रहता है। सावन का महीना 25 जुलाई से प्रारंभ है, 09 अगस्त को सावन का तीसरा सोमवार पड़ रहा है।इस साल सावन में चार ही सोमवार पड़ रहे हैं। ये सावन के शुक्ल पक्ष का पहला सोमवार है। इस सोमवार की शुरूआत अश्लेषा नक्षत्र में हो रही है जिस कारण इस दिन भगवान शिव का पूजन विशेष रूप से फलदायी है। इस दिन शंकर जी के मंत्रों का जाप और रुद्राभिषेक करने से इच्छित मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। आइए जानते हैं 


सावन के तीसरे सोमवार का विशेष मुहूर्त और पूजन विधि...

विशेष मुहूर्त - पंचांग के अनुसार सावन का तीसरा सोमवार 09 अगस्त को पड़ रहा है। ये सावन के शुक्ल पक्ष का पहला सोमवार है और सावन का आखिरी सोमवार 16 अगस्त को पड़ेगा। सावन के तीसरे सोमवार की शुरूआत अश्लेषा नक्षत्र में हो रही है जो कि 09 बजकर 05 मिनट तक रहेगा। इस दिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा और द्वितीया तिथि रहेगी। इस सोमवार पर भगवान शिव का पूजन विशेष फल दायी है। अगर आप इस दिन कोई विशेष पूजा करवा रहे हो तो अभिजित मुहूर्त में करना शुभ होगा। अभिजित मुहूर्त 11.37 बजे से 12.30 तक रहेगा। इस काल में की हुई पूजा सर्वाधिक फल प्रदायनी मानी जाती है।

पूजन विधि - अवढ़रदानी शिव तो सच्चे श्रद्धाभाव से जल और बेल पत्र चढ़ाने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन शास्त्र विहित विधि से शिव पूजन करने के लिए इस दिन प्रातः काल में उठ कर नहाना चाहिए। नहा कर सबसे पहले भगवान शिव को जल अर्पित कर व्रत का संकल्प लें। भगवान शिव को उनकी प्रिय वस्तुएं दूध, दही, शहद, धी, भांग, धतूरा, मदार का फूल आदि चढ़ाए। शंकर जी के मंत्रों और स्तोत्रों से उनकी स्तुति करें और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करें।
 

 

 

और भी

आज है हरियाली अमावस्या, इस मौके पर अपनी राशि के अनुसार लगाए पौधे

सावन मास में पड़ने वाली अमावस्या को ही हरियाली अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। भारत की जलवायु के अनुसार इस महीने में वर्षा ऋतु का आगमन होता है। इस माह में चारों ओर हरियाली छायी रहती है इस करण ही इस अमावस्या को हरियाली अमावस्या भी कहा जाता है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार इस अमावस्या की तिथि पर भी पितरों की आत्मा की शांति के लिए स्नान, दान और तर्पण का विधान है। साथ ही हरियाली अमावस्या पर पितृ दोष से मुक्ति के लिए पेड़ लगाने की भी मान्यता है। माना जाता है इस दिन पेड़-पौधे लगाने और उनकी सेवा करने से सभी कष्ट और संकट दूर होते हैं तथा कुण्डली में व्याप्त पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। आइए जानते हैं इस हरियाली अमावस्या पर राशि के अनुसार कौन सा पौधे लगाने से आपके संकट और पितृ दोष दूर होगा...

1-मेष राशि – मेष राशि के जातकों के लिए इस अमावस्या पर आंवले का पौधा लगाना सबसे उत्तम है।

2- वृष राशि – वृष राशि के जातक जामुन का पौधा लगाएं तो उनके सारे कष्ट समाप्त हो जाएंगे।

3- मिथुन राशि – मिथुन राशि वालों को इस अमावस्या पर चंपा के फूलों का पौधा लगान चाहिए।

4- कर्क राशि – कर्क राशि के जातक ज्योतिष के अनुसार पीपल का पौधा लगांए।

5- सिंह राशि – सिंह राशि के जातकों को पितृ दोष से मुक्ति के लिए बरगद का पेड़ लगाना चाहिए।

6- कन्या राशि – कन्या राशि के जातके इस अमावस्या पर बेल का पेड़ लगाएं, भगवान शिव उन पर अवश्य कृपा करेंगे।

7- तुला राशि – तुला राशि वालों को अर्जुन का पेड़ लगाना चाहिए।

8- वृश्चिक राशि – वृश्चिक राशि के जातक इस अमावस्या पर नीम का पौधा लगाना चाहिए।

9- धनु राशि – धुन राशि के जातक कनेर का पेड़ लागांए।

10- मकर राशि – मकर राशि के जातकों को शमी का वृक्ष लगाना चाहिए

11- कुंभ राशि – कुभं राशि के जातक इस अमावस्या पर आम का पौधा लगाएं।

12- मीन राशि – मीन राशि के जातकों बेर का पौधा लगान चाहिए ।
और भी

नागपंचमी कब है जानें पूजा मुहूर्त और महत्व

 सर्पों और नाग देवता के पूजन का त्योहार, नाग पंचमी सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मानाया जाता है। इस साल नाग पंचमी का त्योहार 13 अगस्त, दिन शुक्रवार को पड़ रहा है। इस दिन विशेष रूप से नागों की पूजा- अर्चना की जाती है। हिंदू धर्म में प्राचीन काल से नागों और सर्पों की पूजा का विधान है। पौरिणिक मान्यता के अनुसार नागपंचमी के दिन अनंत या शेष नाग, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक नाग का स्मरण और पूजन करना चाहिए। इसके अलावा आज हम आपको कुछ ऐसे उपाय बता रहे हैं जिन्हें नाग पंचमी के दिन करने से सर्प दोष से मुक्ति और धन- सम्पदा की प्राप्ति होती है.. 


  • नाग पंचमी के दिन चांदी के नाग-नागिन का जोड़ा बनवा कर शंकर जी के मंदिर में या नाग देवता के मंदिर में चढ़ाने से कुण्डली से सर्प दोष तो दूर ही होता है, साथ ही धन लाभ भी होता है। 
  •  नाग पंचमी के दिन चांदी के नाग-नागिन और स्वास्तिक का पूजन करें। नाग-नागिन के जोड़े को दूध चढ़ाएं और स्वास्तिक पर बेल पत्र अर्पित कर ऊं नागेन्द्रहाराय नमः मंत्र का जाप करें। इन अभिमंत्रित नाग-नागिन के जोड़े को भगवान शिव को अर्पित कर दें और स्वास्तिक को गले में धारण करें। ऐसा करने से सर्प भय से मुक्ति मिलती है।
  • जिस व्यक्ति की कुण्डली में राहु-केतु की महादशा के कारण बने हुए काम बिगड़ रहे हों।उन्हें इस नाग पंचमी पर चांदी या पंच धातु के नाग-नागिन का जोड़ा शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। 
  •  नाग पंचमी के दिन घर के मुख्य द्वार पर गोबर या मिट्टी से नाग देवता की आकृति बना कर उनका पूजन करें और इस मंत्र का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं और सर्प दोष, सर्प भय से मुक्ति प्रदान करते हैं और घर में समृद्धि का आगमन होता है। 
  •  नाग पंचमी के दिन भगवान शिव के वासुकी नाग और भगवान विष्णु के शेषनाग का पूजन करने से भी सभी संकट दूर होते हैं और घर में धन-धान्य की वर्षा होती है।

।।ॐ नवकुलाय विद्महे, विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प प्रचोदयात।।

 
और भी

शिव-पार्वती के प्रेम को समर्पित हरितालिका तीज की व्रत

हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का व्रत रखा जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और परिवार की कुशलता के लिए व्रत रखती हैं। इस बार यह पावन पर्व 11 अगस्त, बुधवार को पड़ेगा। यह त्योहार उत्तर भारत के अनेक प्रांतों में बहुत जोश और उमंग के साथ मनाया जाता है। सावन का महीना आते ही आसमान काले मेघों से आच्छादित हो जाता है और वर्षा की फुहारें पड़ते ही प्रकृति नवरूप को प्राप्त करती है, इस समय पृथ्वी चारों तरफ हरियाली की चादर ओढ़ लेती है। तीज का सम्पूर्ण रंग प्रकृति के रंग में मिलकर अपनी अनुपम छठा बिखेरता है प्रकृति भी अपने सौंदर्य में लिपटी मानो इसी समय का इंतजार कर रही होती है


अर्धांगनी रूप में स्वीकार किया

मान्यता है कि पूरे श्रावण मास में शिव-पार्वती पृथ्वी पर निवास करते हैं और अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी, इससे प्रसन्न होकर शिव ने सावन महीने के शुक्ल पक्ष की हरियाली तीज के दिन ही मां पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया था। अखंड सौभाग्य का प्रतीक यह त्योहार भारतीय परंपरा में पति-पत्नी के प्रेम को और प्रगाढ़ बनाने तथा आपस में श्रद्धा और विश्वास कायम रखने का त्योहार है इसके आलावा यह पर्व पति-पत्नी को एक दूसरे के लिए त्याग करने का संदेश भी देता है। इस दिन कुंवारी कन्याएं व्रत रखकर अपने लिए शिव जैसे वर की कामना करती हैं वहीं विवाहित महिलाएं अपने सुहाग को भगवान शिव तथा पार्वती से अक्षुण बनाये रखने की कामना करती हैं।

सोलह श्रृंगार का है महत्व

हरियाली तीज में हरी चूड़ियां, हरे वस्त्र पहनने, सोलह शृंगार करने और मेहंदी रचाने का विशेष महत्व है। इस त्योहार पर विवाह के पश्चात पहला सावन आने पर नवविवाहित लड़कियों को ससुराल से पीहर बुला लिया जाता है। लोकमान्य परंपरा के अनुसार नव विवाहिता लड़की के ससुराल से इस त्योहार पर सिंजारा भेजा जाता है जिसमेंवस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी, घेवर-फैनी और मिठाई इत्यादि सामान भेजा जाता है। इस दिन महिलाएं मिट्टी या बालू से मां पार्वती और शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा करती हैं। पूजन में सुहाग की सभी सामग्री को एकत्रित कर थाली में सजाकर माता पार्वती को चढ़ाना चाहिए। नैवेध में भगवान को खीर पूरी या हलुआ और मालपुए से भोग लगाकर प्रसन्न करें। तत्पश्चात भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाकर तीज माता की कथा सुननी या पढ़नी चाहिए। पूजा के बाद इन मूर्तियों को नदी या किसी पवित्र जलाशय में प्रवाहित कर दिया जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव और देवी पार्वती ने इस तिथि को सुहागन स्त्रियों के लिए सौभाग्य का दिन होने का वरदान दिया है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो सुहागन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करके भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं,उनको सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
और भी