धर्म समाज

आज है करवा चौथ का व्रत, जानें- पूजा की विधि और शुभ मुहूर्त

झूठा सच @ रायपुर :- करवा चौथ (करक चतुर्थी) रविवार 24 अक्टूबर को है। इस बार आठ सालों के बाद विशेष संयोग बन रहा है। रोहिणी नक्षत्र और मंगल योग एक साथ आ रहा है। चन्द्रमा के साथ प्रिय पत्नी रोहिणी के साथ रहना अद्भूत योग का निर्माण कर रहा है। साथ ही रविवार का दिन काफी शुभ संयोग माना जा रहा है।ज्योतिष के जानकार पं. मोहन कुमार दत्त मिश्र बताते हैं कि यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी चंद्रउदय व्यापिनी को किया जाता है। दिनभर उपवास के बाद सुहागन महिलाएं शिव एवं चन्द्रमा को अर्घ्य प्रदान कर पति की दुर्घायु की कामना करेंगी। इस बार चंद्रमा के साथ रोहिणी नक्षत्र का साथ और मार्कण्डेय यग व सत्यभावा योग का निर्माण काफी शुभफलदायक है। ऐसा संयोग भगवान श्रीकृष्ण और सत्यभावा के समय भी बना था। शास्त्रों के अनुसार करवा चौथ का व्रत सुहागिनों के लिए सबसे महत्वपूर्ण व्रत माना गया है। यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं। महिलाएं पूरे दिन व्रत रखकर रात में चलनी से चांद को देखती हैं और अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलती हैं। परंपरा है कि इस मौके पर सुहागन पति के हाथ से ही पानी ग्रहण करती हैं।


शुभ मुहूर्त - करवा चौथ की प्रात:काल सूर्य की उपासना एवं संध्या चन्द्रमा की उपासना करने का विधान है। रविवार को चन्द्रमा का उदय रात्रि 8 बजकर 5 मिनट पर होगा। सुहागन महिलाएं शिव परिवार की पूजा के साथ चन्द्रमा को अर्घ्य देंगी। इस बार 8.58 तक सर्वार्थ सिद्धि योग और रात्रि 9 बजे से 11 बजे तक याचीज योग बन रहा है।

इन बातों का जरूर रखें ध्यान - सुहागगिनों को इस दिन कुछ बातों का ध्यान भी रखना चाहिए। सुहाग सामग्री चूड़ी, लहठी, बिंदी, सिंदूर आदि कचरा के डब्बे में नहीं फेंकाना चाहिए।इतना ही नहीं अगर चूड़ी पहनते समय टूट भी जाए तो उसे संभालकर पूजा स्थान पर रख दें। सबसे खास यह कि अपने मन में पति के अलावा किसी भी अन्य पुरुष का किसी भी तरह का कोई विचार न लाएं। साथ ही इस दिन किसी भी सुहागन को बुरा-भला कहने य् की गलती बिल्कुल भी न करनी चाहिए।44 दिनों तक ये राशि वाले रहें सावधान, धन- हानि होने की संभावना

पूजन-विधि - करवा चौथ के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान करने के बाद स्वच्छ कपडे़ पहन कर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की भी पूजा का विधान हैं। क्योकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या कर शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था। इस लिये शिव-पार्वती की पूजा की जाती है।
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शरद पूर्णिमा पर क्यों खायी जाती है खीर?

झूठा सच @ रायपुर:- शरद पूर्णिमा का खास महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन खीर को चांदनी रात में रखकर खाने से बहुत लाभ होता है। खीर के लिए विशेष तरह के बर्तन का इस्तेमाल करने की भी मान्यता है। विद्वानों के अनुसार खीर को कांच, मिट्टी या चांदी के पात्र में ही रखें। वहीं अगर उत्तम फल पाना है तो फिर इसे चांदी के बर्तन में बनाएं या फिर बनाकर उसमें खीर डालकर चांद की रोशनी में रखें।
क्या हैं खीर के आयुर्वेदिक फायदे
शरद पूर्णिमा का चांद सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। इसका चांदनी (रोशनी) से पित्त, प्यास, और दाह दूर हो जाते है। दशहरे से शरद पूर्णिमा तक रोजाना रात में 15 सो 20 मिनट तक चांदनी का सेवन करना चाहिए। यह काफी लाभदायक है। साथ ही चांदनी रात में त्राटक करने से आपकी आंखों की रोशनी बढ़ेगी। ऐसा कहा जाता है कि वैद्य लोग अपनी जड़ी-बूटी और औषधियां इसी दिन चांद की रोशनी में बनाते-पीसते हैं जिससे यह रोगियों को दोगुना फायदा दें।
 
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मां सिद्धिदात्री की आराधना से आज होगा नवरात्रि का समापन

9. सिद्धिदात्री- मां सिद्धिदात्री की आराधना नवरात्रि की नवमी के दिन किया जाता है। इनकी आराधना से जातक अणिमा, लघिमा, प्राप्ति,प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसांयिता, दूर श्रवण, परकाया प्रवेश, वाक् सिद्धि, अमरत्व, भावना सिद्धि आदि समस्तनव-निधियों की प्राप्ति होती है।

 

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आज हैं दुर्गा अष्टमी जानें नवरात्रि हवन की विधि

झूठा सच @ रायपुर :-  शारदीय नवरात्रि में आज अष्टमी तिथि के अवसर पर मां दुर्गा के आठवें स्वरूप मां महागौरी की पूजा की जाती है. मान्यता है कि महागौरी प्रसन्न होकर भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं और पापों का नाश करती हैं. नवरात्रि के दिन में हर दिन देवी मां के अलग स्वरूप के पूजन के दौरान भक्तों को अलग लाभ मिलता है. लेकिन अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन महाअष्टमी के दिन घर पर कन्या को बुलाकर उनका पूजन करने का विधान है. कुछ लोग इस दिन नवरात्रि के नौ दिनों का उद्यापन कर देते हैं, वहीं कुछ लोग महानवमी के दिन कन्या पूजन करते हैं. इस दिन देवी मां की कृपा पाने के लिए कुछ विशेष उपाय हैं, जिन्हें करने से घर में सुख-समृद्धि आएगी साथ ही देवी मां की हमेशा आप पर कृपा बनी रहेगी.


मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए करें ये उपाय
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि मां दुर्गा भक्तों द्वारा सच्चे मन से की गई व्रत, पूजा से प्रसन्न होकर उनकी हर मनोकामना पूरी करती हैं, लेकिन यदि कुछ ऐसे उपाय हैं, जिन्हें आज के दिन कर लिया जाए, तो देवी मां की जातक पर विशेष कृपा होती है.

1. सुहागिन को दें श्रृंगार का सामान: महाअष्टमी के दिन सुहागिन को लाल रंग की साड़ी और श्रृंगार का सामान भेंट देने से घर परिवार में सुख-समृद्धि आएगी और घर में धन की कमी नहीं होगी. इसके साथ ही चांदी का सिक्का भी दे सकते हैं.

2. मां को अर्पित करें ये समान: महाअष्टमी के दिन कन्या पूजन के साथ ही लाल रंग की चुनरी में सिक्के और बताशे रख कर देवी मां को अर्पित करें. ऐसा करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं जल्द पूरी करती हैं.

3. कन्या पूजन: अष्टमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है. इस दिन कन्याओं को घर बुलाकर उनका मनपसंद भोजन कराएं. उन्हें जरूरत की चीजें भेंट करें, ऐसा करने से देवी मां का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है.

4. तुलसी के पास जलाएं 9 दीपक: महा अष्टमी पर तुलसी के पास 9 दीपक जलाएं और फिर परिक्रमा करें. ऐसा करने से रोगों से मुक्ति मिलती है. घर से ​नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सुख समृद्धि का वास होता है.

5. करें ये विशेष उपाय: अष्टमी के दिन मां दुर्गा को लौंग की माला अर्पित करें. इसके बाद लाल गुलाब के फूल से पूजा करें. ऐसा करने से देवी मां आपके हर कष्ट को दूर करेंगी |
 
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मां कालरात्रि की पूजा अर्चना आज

7. कालरात्रि- नवरात्रि की सप्तमी के दिन मांं काल रात्रि की आराधना का विधान है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है। तेज बढ़ता है।

 

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मां का छठवां रूप कात्यायनी की पूजा अर्चना आज

 6. कात्यायनी- मां का छठवां रूप कात्यायनी है। छठे दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है। कात्यायनी साधक को दुश्मनों का संहार करने में सक्षम बनाती है। इनका ध्यान गोधूली बेला में करना होता है।

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आज कुष्मांडा के साथ करे माँ स्कंदमाता का पूजन

4. कुष्मांडा- चतुर्थी के दिन मांं कुष्मांडा की आराधना की जाती है। इनकी उपासना से सिद्धियों, निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु व यश में वृद्धि होती है।

5. स्कंदमाता- नवरात्रि का पांचवां दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी है। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती है।

 

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मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा

 3. चंद्रघंटा- मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा है। इनकी आराधना तृतीया को की जाती है। इनकी उपासना से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। वीरता के गुणों में वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य अलौकिक माधुर्य का समावेश होता है व आकर्षण बढ़ता है।

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नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की साधना

2. ब्रह्मचारिणी- मां दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। मां दुर्गा का यह रूप भक्तों और साधकों को अनंत कोटि फल प्रदान करने वाली है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की भावना जागृत होती है।
 
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माँ दुर्गा के प्रथम रूप शैल पुत्री के पूजन से करे नवरात्रि की शुरूआत

1. शैल पुत्री- मां दुर्गा का प्रथम रूप है शैल पुत्री। पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म होने से इन्हें शैल पुत्री कहा जाता है। नवरात्रि की प्रथम तिथि को शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इनके पूजन से भक्त सदा धन-धान्य से परिपूर्ण पूर्ण रहते हैं।
 
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नवरात्रि पर दुर्गा सप्तशती के साथ करे दुर्गा कवच का पाठ

नवरात्र के मौके पर दुर्गा सप्तशती के पाठ का विशेष अध्यात्मिक महत्व है. दुर्गा सप्तशती के तेरह अध्यायों से पहले तीन प्रथम अंगों- कवच, अर्गला और कीलक स्तोत्र का भी पाठ किया जाता है. कवच का अर्थ है- सुरक्षा  इसमें देवी की वह अमोघ शक्तियां समाहित हैं, जिनका स्मरण करने मात्र से मनोवैज्ञानिक तरीके से लाभ होता है. इसको विज्ञान भी मानता है कि सकारात्मक सोच का प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है।
माँ दुर्गा कवच क्या है?
माँ दुर्गा कवच संसार के अठारह पुराणों में से सबसे शक्तिशाली पुराण मार्कंडेय पुराण का हिस्सा है. यह भगवती दुर्गा कवच एक तरह से दुर्गा माँ का पाठ है जो हमें साहस और हिम्मत प्रदान करता है और दुष्टों से हमारी रक्षा करता है. कहा जाता है कि माँ दुर्गा कवच को भगवान ब्रह्मा ने ऋषि मार्कंडेय को सुनाया था. इस कवच में कुल 47 श्लोक शामिल हैं. वहीँ इन श्लोकों के अंत में 9 श्लोक फलश्रुति रूप में लिखित हैं. फलश्रुति का अर्थ है, ऐसा पाठ जिसे पढने या सुनने से भगवान का आशीर्वाद या फल प्राप्त हो।
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नवरात्रि पर मां को लगाए प्रतिदिन अलग-अलग भोग

 नवरात्रि के अवसर पर भक्तगण मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा करते हुए उनके अनुरूप भोग प्रसाद चढ़ाकर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। आईये जानते हैं किस दिन किस माता को कौन सा भोग पसंद हैं- 

पहला दिन मां शैलपुत्री-
मां शैलपुत्री को सफेद चीजों का भोग लगाया जाता है और अगर यह गाय के घी में बनी हों तो व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है और हर तरह की बीमारी दूर होती है.
दूसरा दिन - मां ब्रह्मचारिणी
दूसरे दिन होती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना के बाद शक्कर और पंचामृत का भोग लगाकर दीर्घायु होने का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।
तीसरा दिन - मां चंद्रघंटा
नवरात्रि के तीसरे दिन माता के स्वरूप चंद्रघंटा का पूजन किया जाता है दूध से बनी मिठाइयों व खीर का भोग लगाने से माँ प्रसन्न होती है।
चौथा दिन - मां कुष्मांडा
मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाकर प्रसाद को किसी ब्राह्मण को दान कर दें और खुद भी खाएं. इससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय क्षमता भी अच्छी हो जाएगी.
पांचवां दिन - मां स्कंदमाता
पांचवे दिन मां के स्कंदमाता स्वरूप को भोग में केले का भोग लगाकर अच्छी सेहत के लिए मां का आशीर्वाद प्राप्त करें।
छठा दिन - मां कात्यायनी
षष्ठी तिथि के दिन मां कात्यायनी का पूजन मधु यानि शहद का प्रसाद लगाकर साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है।
सातवां दिन - मां कालरात्रि
जिंदगी में आने वाले संकटों से अपनी रक्षा करने के लिए माता के कालरात्रि स्वरूप को गुड़ या उससे बनी मिठाइयों का भोग लगाया जाता है.
आठवां दिन - मां महागौरी
नवरात्रि के आठवें दिन माता के महागौरी स्वरूप को नारियल एवं नारियल से बनी मिठाइयां भी उन्हें अर्पित कर सकते हैं।
नौवां दिन - मां सिद्धिदात्री
नवरात्रि के समापन पर माता रानी को हलवा पूरी और चने का भोग लगाकर मां रूपी नौ कन्याओं को घर पर भोजन कराने से मां प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती है।
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शक्ति एवं ऊर्जा का संचार करने वाला पर्व शारदीय नवरात्रि

इस वर्ष 2021 में शारदीय नवरात्रि 07 अक्टूबर दिन गुरुवार से चित्रा नक्षत्र, वैधृति योग में प्रारम्भ हो रही है। यह नवरात्रि प्रकृति की मौलिक शक्ति की आराधना के साथ जन-जन में शक्ति एवं ऊर्जा का संचार करने वाला पवित्र पक्ष है। 07 अक्टूबर को दिन में 03 बजकर 28 मिनट तक आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि रहेगी। अत: शाम को द्वितीया का चन्द्र-दर्शन तुला राशि में होगा। चन्द्रमा अपनी उच्च राशि में होने के कारण वृष एवं तुला राशि वालों के लिए अति फलदायक रहेगा।
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7 अक्टूबर को घर -घर विराजेंगी माँ दुर्गा, जानिए उनके 9 स्वरूपों के बारें में ...

शारदीय नवरात्रि इस बार 7 अक्टूबर, गुरुवार से प्रारंभ होकर 14 अक्टूबर तक रहेंगे। हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। देवी भागवत के अनुसार मां भगवती ही ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के रूप में सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करती हैं। भगवान शंकर के कहने पर रक्तबीज, शुंभ-निशुंभ, मधु-कैटभ आदि दानवों का संहार करने के लिए माँ पार्वती ने असंख्य रूप धारण किए किंतु नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के मुख्य नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।

प्रथम शैलपुत्री

नवरात्र पूजन के प्रथम दिन कलश पूजा के साथ ही माँ दुर्गा के पहले स्वरुप 'शैलपुत्री जी' का पूजन किया जाता है। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं। माँ शैलपुत्री देवी पार्वती का ही स्वरुप हैं जो सहज भाव से पूजन करने से शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।

द्वितीय ब्रह्मचारिणी

माँ दुर्गा की नवशक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए इन्होंने हजारों वर्षों तक घोर तपस्या की थी। इनकी पूजा से अनंत फल की प्राप्ति एवं तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है। इनकी उपासना से साधक को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।

तृतीय चंद्रघंटा

बाघ पर सवार मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति देवी चंद्रघंटा है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है, इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनकी आराधना से साधकों को चिरायु, आरोग्य, सुखी और संपन्न होने का वरदान प्राप्त होता है तथा स्वर में दिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। प्रेत-बाधादि से ये अपने भक्तों की रक्षा करती है।

चतुर्थ कूष्माण्डा

नवरात्र के चौथे दिन शेर पर सवार माँ के कूष्माण्डा स्वरुप की पूजा की जाती हैं। इन्हीं के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। देवी कूष्मांडा अपने भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं

पंचम स्कंदमाता

भगवान स्कंद(कार्तिकेय) की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरुप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। यह कमल के आसान पर विराजमान हैं इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। स्कंदमाता की साधना से साधकों को आरोग्य, बुद्धिमता तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है।

षष्टम कात्यायनी

मां कात्यायनी देवताओं और ऋषियों के कार्य को सिद्ध करने के लिए महर्षि कात्यान के आश्रम में प्रकट हुईं इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। यह देवी दानवों और शत्रुओं का नाश करती है। देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरुप की पूजा करने से शरीर कांतिमान हो जाता है। इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है।

सप्तम कालरात्रि

सातवां स्वरुप है माँ कालरात्रि का। इन्हें तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाली देवी बताया गया है। ये देवी अपने उपासकों को अकाल मृत्यु से भी बचाती हैं। इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही भूत, प्रेत, राक्षस और सभी नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं। माँ कालरात्रि की पूजा से ग्रह-बाधा भी दूर होती हैं।

अष्टम महागौरी

दुर्गाजी की आठवीं शक्ति देवी महागौरी भक्तों के लिए देवी अन्नपूर्णा स्वरुप हैं इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। इनकी पूजा से धन, वैभव और सुख-शांति की प्राप्ति होती हैं। उपासक सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।

नवम सिद्धिदात्री

माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं को भी माँ सिद्धिदात्री से ही सिद्धियों की प्राप्ति हुई है। इनकी उपासना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।भक्त इनकी पूजा से यश,बल और धन की प्राप्ति करते हैं ।
 
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गणेश चतुर्थी पर भूलकर भी ना देखें चांद,जानें क्या हैं वजह

पौराण‍िक कथा के अनुसार, एक बार गणेशजी कई सारे लड्डुओं को लेकर चंद्रलोक से आ रहे थे, रास्ते में उनको चंद्रदेव मिले. गणेशजी के हाथों में ढेर सारे लड्डू और उनके बड़े उदर को देखकर चंद्र देव हंसने लगे. इससे गणपत‍िजी को क्रोध आ गया और उन्होंने चंद्रमा को श्राप देते हुए कहा कि तुम्हें अपने रूप पर बहुत घमंड है न जो मेरा उपहास उड़ाने चले हो, मैं तुमको क्षय होने का श्राप देता हूं. 


गणेश चतुर्थी की एक और कथा म‍िलती है इसके अनुसार एक बार गणेशजी अपने वाहन मूषक पर सवार थे. मूषकराज को अचानक एक सांप दिखाई दिया जिसे देखकर वे डर के मारे उछल पड़े जिसकी वजह से उनकी पीठ पर सवार गणेश जी भी भूमि पर जा गिरे. गणेशजी तुरंत उठे और उन्होंने इधर-उधर देखा कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा. तभी उन्हें किसी के हंसने की आवाज सुनाई दी. यह चंद्रदेव थे. गणेश जी अपने गिरने पर चंद्रदेव को हंसता देख रूष्ट हो गए और चंद्रमा को श्राप दिया क‍ि तुम्हारा क्षय होगा | 

 
 
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भगवान गणेश के आगमन पर ही होता है अक्षत का इस्तेमाल, जानिए इसके महत्त्व

झूठा सच @ रायपुर :-   गजानन गणपति को समर्पित 10 दिनों तक चलने वाला महापर्व गणेश महोत्सव आने ही वाला है. 10 सितंबर शुक्रवार से इस महोत्सव का आगाज होगा और ये 19 सितंबर रविवार को अनंत चौदस तक चलेगा. हर साल इस गणेश उत्सव को देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है. इस त्योहार को लेकर सबसे ज्यादा धूम महाराष्ट्र में होती है. चतुर्थी के दिन गणपति के भक्त ढोल नगाड़ों के साथ उन्हें अपने घर लेकर आते हैं.


इसके बाद गणपति की मूर्ति को घर में स्थापित किया जाता है. लोग अपनी श्रद्धानुसार 5, 7 या 9 दिनों तक गणपति को अपने घर में बैठाकर रखते हैं. इस दौरान उनकी खूब सेवा की जाती है. पूजा अर्चना की जाती है और पसंदीदा भोग अर्पित किए जाते हैं. गणपति की पूजा में अक्षत का विशेष महत्व होता है. जिस समय गजानन को घर पर लाया जाता है, तब विशेष पूजा का आयोजन होता है. इस दौरान गणपति का स्वागत हल्दी और कुमकुम के साथ मिले अक्षत के साथ किया जाता है. साथ ही चतुर्थी के दिन गणपति की पूजा के लिए दोपहर का समय श्रेष्ठ माना जाता है. यहां जानिए ऐसा क्यों किया जाता है !

इसलिए होता है अक्षत का इस्तेमाल
गणपति को शुभकर्ता माना जाता है और अक्षत को खुशी और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि गणपति के आगमन के दौरान यदि उन पर अक्षत यानी चावल अर्पित किए जाएं तो इससे घर की तमाम बाधाएं दूर हो जाती हैं और शुभता के साथ समृद्धि भी घर में आती है. इसके अलावा ये भी मान्यता है कि अक्षत चढ़ाने से गणपति के साथ सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है और घर में सकारात्मकता आती है. चूंकि अक्षत को सादा नहीं चढ़ाना चाहिए, इसलिए उसे हल्दी या कुमकुम में मिक्स कर दिया जाता है. इस बार अगर आप भी अपने घर में गणपति को लाने की तैयारी कर रहे हैं तो अक्षत को हल्दी या कुमकुम में मिक्स करके ही गणपति का स्वागत करें. साथ ही मिक्स करते समय ये ध्यान रखें कि चावल टूटे नहीं. पूजा में हमेशा साबुत अक्षत का ही इस्तेमाल करना चाहिए. 

दोपहर में पूजन का समय इसलिए है श्रेष्ठ
गणेश चतुर्थी के दिन को गणपति के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि गणपति का जन्म भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को दोपहर के समय हुआ था. आमतौर पर मंदिरों में 12 बजे के बाद पूजा अर्चना नहीं होती, लेकिन गणेश चतुर्थी के दिन गणपति के पूजन के लिए दोपहर का समय श्रेष्ठ माना जाता है. चतुर्थी के दिन गणेश स्‍थापना का शुभ मुहूर्त दोपहर 12:17 बजे से रात 10 बजे तक रहेगा. लेकिन बेहतर है कि आप दोपहर के समय ही गणपति की स्थापना करें और उन्‍हें दूर्वा, पान, सुपारी, सिंदूर, अक्षत आदि अर्पित करें. साथ ही पसंदीदा भोग लगाएं. इसके बाद उनकी स्तुति वगैरह करें.
 
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भौमवती अमावस्या आज ,जानिए इसके महत्त्व एवं पूजा की विधि

झूठा सच @ रायपुर :- आज भाद्रपद कृष्ण पक्ष की उदया तिथि अमावस्या और मंगलवार का दिन है। अमावस्या तिथि आज सुबह 6 बजकर 21 मिनट तक थी। उसके बाद भाद्रपद शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि लग गई है। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार, मंगलवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को भौमवती अमावस्या के नाम से जाना जाता है, लिहाजा आज भौमवती अमावस्या है। 

भौम अमावस्या 2021 की तिथि और समय
अमावस्या प्रारंभ- 6 सितंबर, सुबह 7 बजकर 38 मिनट पर
अमावस्या समाप्त- 7 सितंबर सुबह 6 बजकर 21 मिनट तक

भौमवती अमावस्या का महत्व
किसी भी माह की अमावस्या को स्नान- दान और श्राद्ध आदि का बहुत महत्व है। यह अमावस्या 2 दिनों की थी। इसलिए श्राद्ध आदि की अमवस्या तो सोमवार को मनायी जा चुकी है और आज उदयातिथि अमावस्या में तीर्थ स्थलों पर स्नान दान किया जा रहा होगा। अमावस्या के दिन स्नान-दान या श्राद्ध आदि करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है, पितर प्रसन्न होते हैं और पितरों के आशीर्वाद से सारे काम पूरे होते हैं।

भौमवती अमावस्या पर करें ये उपाय
अगर आप चाहते हैं कि आपके परिवार पर कभी किसी प्रकार की समस्या ना आये, तो आज आप हाथी के पैर के नीचे की मिट्टी लाकर यानी जिस भी जगह पर हाथी चला हो, उस जगह की थोड़ी-सी मिट्टी लाकर अपने घर में संभालकर रखें और जब कभी आपके घर में कोई शुभ काम हो तो उस मिट्टी से अपने और अपने परिवार वालों के माथे पर तिलक करें। अगर आप कर्ज से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आज एक साफ-सुथरे लोटे में जल भरकर हनुमान जी के सामने रखें। साथ ही चमेली के तेल का दीपक जलाएं । उसके बाद इन पंक्तियों का 108 बार जाप करें । पंक्ति इस प्रकार है-

अग्ने सख्यं वृणीमहे'
इस प्रकार जाप पूरा हो जाने के बाद उस लोटे के जल को पेड़-पौधों में डाल दें और दीपक को घर में इस्तेमाल कर लें। अगर आपके बिजनेस में लगातार उतार-चढ़ाव आ रहे हैं, तो आज मिट्टी से बना हाथी घर लाएं और उसे उचित स्थान पर रखें। अब उस पर लाल कपड़ा ओढ़ाएं। इसके बाद धूप-दीप, पुष्प आदि से उसकी पूजा करें। पूजा के बाद वहीं पर बैठकर मंगल के मंत्र का जाप करें। मंगल का मंत्र है – 'ॐ भूमि पुत्राय नमः।'

अगर आप अपने किसी खास कार्य में बिना किसी रूकावट के सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो आज एक चॉकलेटी रंग का कपड़ा लेकर उसे त्रिकोण आकृति में काट लें और उस पर केसरिया सिन्दूर में चमेली का तेल मिलाकर 18 बिन्दियां लगाएं। इसके बाद उस कपड़े को घर से दूर किसी विरानी जगह पर छोड़ आयें और घर आने के बाद मंगल के इस मंत्र का एक माला, यानी 108 बार जाप करें। मंत्र है - ॐ भौमाय नमः
 
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हरतालिका तीजे के दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए रखे निर्जला उपवास

झूठा सच @ रायपुर :- हिंदू धर्म में हरतालिका तीज व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका व्रत रखा जाता है. ये व्रत निर्जला और निराहर किया जाता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना होती है.ये त्योहार विशेषतौर से उत्तर भारत में मनाया जाता है. हरतालिका तीज के दिन लड़की के मायके से कपड़े, फल, फूल और मिठाई भेजी जाती है. आइए जानते हैं हरतालिका तीज से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में

 हरतालिका तीज शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 8 सितंबर के दिन बुधवार को देर रात 02 बजकर 33 मिनट पर हो रहा है और 09 सितंबर 2021 को रात 12 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगा. इस बार हरतालिका तीज के दिन दो मुहूर्त है एक सुबह के समय में और दूसरा प्रदोष काल में सूर्यास्त के बाद आता है.पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 03 मिनट से सुबह 08 बजकर 33 मिनट पर होगा. इसके अलावा प्रदोष काल में शाम 06 बजकर 33 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक रहेगा.

 हरतालिका पूजा विधि

हरतालिक तीज की पूजा प्रदोषकाल में होती है. इस दिन सुबह – सुबह उठकर स्नान करें और नए वस्त्र पहनकर व्रत और पूजा का संकल्प लें. इसके बाद पूजा स्थल की साफ- सफाई करें और उसके बाद केले के पत्ते पर मिट्टी से बने शिव, पार्वती और भगवान गणेश की पूजा- अर्चना करें. माता पार्वती को श्रृंगार का समान भेंट करें. इस दिन शाम के समय में व्रत कथा अवश्य सुनें और रात में जागरण करें. इसके बाद अगली सुबह व्रत का पारण करें. 

हरतालिका व्रत महत्व

सुहागिन महिलाएं हरतालिका तीज व्रत पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं. इसके अलावा कुंवारी महिलाएं मनचाहे पति की कामना के लिए व्रत रखती है. इस व्रत को करने के पुण्य से घर में सुख- समृद्धि आती है.

पूजा के नियम

1. हरतालिका तीज के दिन भगवान शिव, माता पार्वती और गणेशजी की मिट्टी से मूर्ति बनाएं. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है. पूरे दिन अन्न और जल नहीं ग्रहण करना चाहिए. इस व्रत का पारण अगले दिन सुबह माता पार्वती की पूजा के बाद पानी पीकर तोड़ती है.

2. हरतालिका तीज के दिन व्रत कथा का पाठ करना शुभ माना जाता है.

3. हरतालिका तीज की पूजा सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में करना सबसे शुभ माना जाता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती को वस्त्र अर्पित करना चाहिए
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