कब है गणगौर पर्व और क्या है इसका महत्व
11-Mar-2023 2:33:16 pm
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गणगौर पर्व की शुरुआत फाल्गुन मास की पूर्णिमा यानी होलिका दहन के साथ हो जाती है, जो चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि तक चलता है... यह शिव जी और माता गौरा का त्योहार गणगौर के रूप में मनाया जाता है। इसलिए इस साल गणगौर 8 मार्च से शुरू होकर 24 मार्च 2023 को समाप्त होगा।
गणगौर पूजा 2023 तिथि और शुभ मुहूर्त, गणगौर 2023 की तिथि- 24 मार्च 2023, शुक्रवार, तृतीया तिथि प्रारंभ- 23 मार्च 2023 को शाम 6 बजकर 20 मिनट पर, तृतीया तिथि समापन- 24 मार्च 2023 को शाम 4 बजकर 59 मिनट।
गणगौर 2023 धार्मिक महत्व
गणगौर व्रत का विशेष महत्व है। चैत्र शुक्ल तृतीया का दिन गणगौर पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को सुहागन और कुंवारी कन्याएं धूमधाम से मनाती है। इस दिन माता पार्वती और शिव जी की पूजा करने का विधान है। महिलाएं पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य के लिए और कुंवारी कन्याएं मनचाहा पति पाने के लिए इस व्रत को रखती हैं।
गणगौर लोकपर्व होने के साथ-साथ रंगबिरंगी संस्कृति का अनूठा उत्सव है। यह पर्व विशेष तौर पर केवल महिलाओं के लिए ही होता है।
शिव-पार्वती हमारे आराध्य हैं, पूज्य हैं। इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। इस दिन सुहागिनें दोपहर तक व्रत रखती हैं। महिलाओं नाच-गाकर, पूजा-पाठ कर हर्षोल्लास से यह त्योहार मनाती हैं।
कैसे करें गणगौर व्रत
चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए। इस दिन से विसर्जन तक व्रती को एकासना (एक समय भोजन) रखना चाहिए। इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईसर का रूप माना जाता है। जब तक गौरीजी का विसर्जन नहीं हो जाता (करीब आठ दिन) तब तक प्रतिदिन दोनों समय गौरीजी की विधि-विधान से पूजा कर उन्हें भोग लगाना चाहिए। गौरीजी की इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएँ जैसे काँच की चूड़ियाँ, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि चढ़ाई जाती हैं। सुहाग की सामग्री को चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण किया जाता है। इसके पश्चात गौरीजी को भोग लगाया जाता है। भोग के बाद गौरीजी की कथा कही जाती है। कथा सुनने के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियों को अपनी मांग भरनी चाहिए। कुँआरी कन्याओं को चाहिए कि वे गौरीजी को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) को गौरीजी को किसी नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर उन्हें स्नान कराएं। चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर डोल या पालने में बिठाएं। इसी दिन शाम को गाजे-बाजे से नाचते-गाते हुए महिलाएं और पुरुष भी एक समारोह या एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर विसर्जित करें। इसी दिन शाम को उपवास छोड़ा जाता है।