धर्म समाज

माह-ए-रमजान की शुरुआत : पूर्व इमाम ने बताया रमजान का इतिहास

मायने और मकसद; सहरी के साथ पहला रोजा
गुरुवार शाम से माह-ए-रमजान शुरू होने के साथ मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मस्जिदों और अन्य स्थानों पर सुबह तरावीह की विशेष नमाज पढ़ी। शाम को जैसे ही लोगों को चांद दिखने की इत्तिला मिली, लोगों के चेहरों पर खुशी छा गई। बाजारों में भी रमजान से संबंधित जरूरी सामान की खरीदी शुरू कर दी। वहीं आज रमजान माह के पहले शुक्रवार पर सेहरी के साथ बच्चों ने भी रोजा रखा।
रमजान का इतिहास, मायने और मकसद
शाही जामा मस्जिद पड़ाना के पूर्व इमाम मौलाना मुफ्ती मोहम्मद शफीक फलाही साहब ने बताया कि इस्लामिक कैलेंडर में 9वां महीना रमजान का होता है। चांद के हिसाब से गिने जाने वाले इस कैलेंडर में 29 या 30 दिन होते हैं। इस हिसाब से हर साल करीब 10 दिन कम होकर अगला रमजान का महीना शुरू होता है। मसलन इस साल 23 मार्च को रोजे शुरू हुए तो 10 दिन कम होने पर 2022 में 13 मार्च से यह पवित्र महीना शुरू हो सकता है। इसी तरह हर साल 10 दिन का फर्क पड़ता है।
पवित्र महीने का इतिहास
मौलाना मुफ्ती मोहम्मद शफीक साहब ने बताया कि इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक सन 2 हिजरी यानि 1442 वर्ष पूर्व में अल्लाह के हुक्म से मुसलमानों पर रोजे फर्ज (जरूरी) किए गए। इसी महीने में शब-ए-कदर में अल्लाह ने कुरान जैसी नेमत दी। तब से मुस्लिम इस महीने में रोजे रखते आ रहे हैं।
रमजान का असली मकसद
रोजे रखने का मकसद अल्लाह में यकीन को और गहरा करना और इबादत का शौक पैदा करना है। साथ ही सभी तरह के गुनाहों और गलत कामों से तौबा की जाती है। इसके अलावा, नेकी का काम करने को प्रेरित करना, लोगों से हमदर्दी रखना और खुद पर नियंत्रण रखने का जज्बा पैदा करना भी इसका हिस्सा है। रोजा के दौरान भूखे-प्यासे रहने से दूसरे की भूख और प्यास का पता चलता है। बंदा दूसरों के लिए प्याऊ, भोजन वितरण जैसे मानवता के काम आगे आकर करता है।
दान के लिए प्रेरित करने के लिए भी है खास
मौलाना ने बताया कि सन 2 हिजरी में ही जकात (चैरिटी या दान) को भी जरूरी बताया गया है। इसके तहत, अगर किसी के पास साल भर उसकी जरूरत से अलग साढे 52 तोला चांदी या उसके बराबर का नगद या कीमती सामान है तो उसका ढाई फीसदी जकात यानी दान के रूप में गरीब या जरूरतमंद मुस्लिम को दिया जाता है। वहीं, ईद के दिन से ही फितरा (एक तरह का दान है) हर मुस्लिम को अदा करना होता है। इसमें 2 किलो 45 ग्राम गेहूं की कीमत तक की रकम गरीबों में दान की जाती है।
इनको है रोजे से छूट
अगर कोई बीमार हो या बीमारी बढ़ने का डर हो तो रोजे से छूट मिलती है। हालांकि, ऐसा डॉक्टर की सलाह पर ही करना चाहिए। मुसाफिर को, गर्भवती महिला और बच्चे को दूध पिलाने वाली मां को भी रोजे से छूट रहती है। बहुत ज्यादा बुजुर्ग शख्स को भी रोजे से छूट रहती है।
सहरी, इफ्तार और तरावीह
मौलाना ने बताया कि रमजान के दिनों में लोग तड़के उठकर सहरी करते हैं। सहरी खाने का वक्त सुबह सादिक (सूरज निकलने से करीब डेढ़ घंटे पहले का वक्त) होने से पहले का होता है। सहरी खाने के बाद रोजा शुरू हो जाता है। रोजेदार पूरे दिन कुछ भी खा और पी नहीं सकता। शाम को तय वक्त पर इफ्तार कर रोजा खोला जाता है। एहतियात के तौर पर सूरज डूबने के 3-4 मिनट बाद ही रोजा खोलना चाहिए।
फिर रात की ईशा की नमाज (करीब 9 बजे) के बाद तरावीह की नमाज अदा की जाती है। इस दौरान मस्जिदों में कुरान भी पढ़ा जाता है। ये सिलसिला पूरे महीने चलता है। महीने के अंत में 29 का चांद होने पर ईद मनाई जाती है। 29 का चांद नहीं दिखने पर 30 रोजे पूरे कर अगले दिन ईद का जश्न मनाया जाता है।

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