कामदा एकादशी की पूजा विधि जानिए
01-Apr-2023 2:20:12 pm
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महीने में दो एकादशी पड़ती हैं. चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहते हैं और ये 1 अप्रैल दिन शनिवार को पड़ रही है. इस व्रत को करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी और आपको भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलेगी. 1 अप्रैल के दिन व्रत करें, कथा करें और आरती करें लेकिन उसके साथ आपको कुछ उपाय भी करने चाहिए जिससे आपकी पूजा सफल हो और आपकी आर्थिक समस्या भी खत्म हो जाएग. ये उपाय आपकी आर्थिक समस्याओं को दूर कर सकता है जिसे आपको जरूर करना चाहिए.
कामदा एकादशी पर करें ये उपाय
1 अप्रैल दिन शनिवार को ही रखना है. भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्यारी है और उस दिन अगर आप उन्हें तुलसी के 5 पत्तों में हल्दी लगाकर चढ़ाते हैं तो शुभ होगा. पत्तियों चढ़ाते हुए आपको ”ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्” मंत्र का जाप भी करना है. ऐसा करने से आपकी आर्थिक परेशानी दूर होगी और आपके घर में धन के स्त्रोत बढ़ेंगे. अगर आप किसी का उधाल लिया पैसा लौटाने में अमसर्थ हो रहे हैं तो कामदा एकादशी के दिन ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:’ मंत्रों का 5 माला जाप करेंगे तो इस समस्या से छुटकारा मिलेगा. इसके साथ ही भोजन को खाना खिलाना आपके लिए धन कमाने के स्रोत को खोल देगा. अगर आपको नौकरी में परेशानी आ रही है तो कामदा एकादशी के दिन एकम मुट्ठी कच्चे चावलों को कुमकुम से रंगकर लाल सूती वस्त्र में बांधकर विष्णु मंदिर में चढ़ाएं, समस्या दूर हो जाएगी.
कामदा एकादशी की पूजा विधि
1 अप्रैल को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें. संभव हो तो गंगा स्नान आपके लिए शुभ हो सकता है और अगर ये संभव नहीं है तो नहाने के पानी में दो बूंद गंगाजल मिला सकते हैं. इसके बाद भगवान विष्णु का नाम लेते हुए तुलसी के पौधे में जल दें. इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के पास अपने व्रत का संकल्प लें और जरूरतमंदों को कुछ ना कुछ दान करें. दिनभर व्रत रहने के बाद शाम के समय आप कुछ फलहारी कर सकते हैं. शाम के समय कामदा एकादशी व्रत कथा पढ़ें, विष्णु जी की आरती उतारें और भूखों को खाना खिलाएं. अगले दिन अपने व्रत का पारण करें और इससे आपके व्रत का समापन हो जाएगा.
कामदा एकादशी व्रत कथा
एका राज्य था,जिसका नाम भोगीापुर था. उस राज्य में राजा पुंडरीक शासन किया करते थे. वह राज्य धन-धा्य और ऐश्वर्य से भरा था. उसके राज्य में प्रेमी जोड़ा रहता था. जिसका नाम ललित और ललिता था. वे दोनों एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे. एक दिन की बात है, जब राजा पुंडरीक की सभा लगी थी, उसमें ललित अपने सभी कलाकारों के साथ संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा था. उस समय जब उसने ललिता को देखा, तो उसके सुर गड़बड़ होने लग गए. तब वहां उपस्थित सभी सेवकों ने राजा पुंडरीक को ये बात बताई. इस पर राजा पुंडरीक क्रोधित होकर ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया. तब श्राप के कारण ललित राक्षस बन गया और उस दौरान उसका शरीर 8 योजन का हो गया. उसके बाद वह जंगल में रहने लग गया. उसके पीछे ललिता भी जंगल में पीछे भागते हुए चली गई. राक्षस होने की वजह से ललित का जीवन बहुत कष्टमय हो गया.
एक बार ललिता विंध्याचल पर्वत पर गई, वहां श्रृंगी ऋषि का आश्रम था. ललिता ने श्रृंगी ऋषि को प्रणाम किया और अपने आने का कारण बताया. तब श्रृंगी ऋषि ने कहा कि तुम परेशान मत हो. तुम कामदा एकदाशी के दिन व्रत रखो और उससे मिलने वाले फल को अपने पति ललित को समर्पित कर दो. इससे तुम्हारा पति राक्षस योनि से बाहर आ जाएगा.
वहीं अगले साल जब चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को व्रत आया, तब ललिता मे श्रृंगी श्रषि के द्वारा बताए गए व्रत को पूरे नियम से किया. ललिता ने भगवान विष्णु की अराधना की. इस दिन उसने कुछ नहीं खाया. फिर ललिता ने अगले दिन व्रत का पारण किया और अपने पति ललित के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की.
तब भगवान विष्णु की कृपा से ललित राक्षस योनि से मुक्त हो गया. फिर दोनों साथ रहने लग गए. एक बार की बात है, स्वर्ग से विमान आया है. वह दोनों प्रेमी जोड़ा उसपर बैठकर स्वर्ग चले गए