धर्म समाज

क्या होता है दरिद्र योग?

कैसे बनता है और जातक पर इसके क्या प्रभाव होते हैं?
मनुष्य की कुंडली में कई ऐसे शुभ योग होते हैं जो जीवन में सफलता, धन, यश और सुख समृद्धि प्रदान करते हैं। वहीं कुछ योग ऐसे भी होते हैं जो इंसान की असफलता, कमजोर भाग्य और आर्थिक असफलता के भी कारण बनते हैं। ज्योतिष शास्त्र में इन्हें ही दरिद्र योग कहा जाता है। अगर किसी इंसान की कुंडली में दरिद्र योग बन जाए तो जीवनभर उसे बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसे लोगों के बने बनाए काम बिगड़ जाते हैं। दरिद्र योग को वैदिक ज्योतिष में एक अशुभ योग माना गया है। इसकी प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में ग्यारहवें भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो तो ऐसी कुंडली में दरिद्र योग बनता है। यह योग जातक को पेशे, प्रतिष्ठा, वित्त और कई अन्य समस्याओं से संबंधित समस्याओं से परेशान कर सकता है।
कब और कैसे बनता है दरिद्र योग?
ज्योतिष शास्त्र की मानें तो जब कोई  शुभ ग्रह किसी अशुभ ग्रह के संपर्क में आते हैं तो दरिद्र योग का निर्माण होता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब देवगुरु बृहस्पति  छठे से लेकर बारहवें भाव में विराजित हों तो दरिद्र योग का निर्माण होता है। इसके अलावा जब शुभ योग केंद्र में हो और धन भाव में पाप ग्रह विराजित हो तब भी लोग दरिद्र योग का शिकार होते हैं। इसके साथ ही चंद्रमा से चौथे स्थान पर पाप ग्रह के होने से भी दरिद्र योग बनता है।
दरिद्र योग से बचने के उपाय
वैदिक ज्योतिषशास्त्र में दरिद्र योग से बचने के कुछ विशेष उपाय बताएं गए हैं। आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में।  
दरिद्र योग के दुष्प्रभाव से बचने के लिए अपने घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक बनाना चाहिए। 
माता-पिता और जीवनसाथी का सदैव सम्मान करें। 
तीन धातु का छल्ला मध्यमा उंगली में या तीन धातु का कड़ा भी हाथ में धारण कर सकते हैं।
दरिद्र योग के लिए गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें। 
इसके अलावा दरिद्र योग के नाश के लिए गीता के 11 अध्याय का पाठ करना सबसे उत्तम माना जाता है। 
शनि से संबंधित दरिद्र योग है तो हर शनिवार को उपवास करें। 
108 बार शनि के महामंत्र का जाप करें। 
साथ ही किसी गरीब और जरूरतमंद को खाने की वस्तुएं दान करें।
 

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