धर्म समाज

हनुमान जी प्रसन्न करने के लिए करें इस चालीसा का पाठ

आज 06 अप्रैल दिन गुरुवार को हनुमान जयंती है. इस दिन हनुमान जी की पूजा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है और हनुमान जी भी जल्द प्रसन्न होते हैं. वहीं हिंदू धर्म में सुंदरकांड और रामचरित मानस का पाठ हनुमान जयंती के दिन अवश्य करना चाहिए. क्योंकि कलयुग में पवनपुत्र हनुमान ऐसे देवता हैं, जिन्हें आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है. इस दिन सुंदरकांड का पाठ करने से व्यक्ति के अंदर कई सकारात्मक बदलाव आते हैं. तो ऐसे में आइए आज हम आपको अपने इस लेख में बताएंगे कि किस दिन से पाठ करना लाभदायक माना जाता है.
जानें किस दिन से पाठ करना लाभदायी होता है
पवनपुत्र हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए तुलसीदास द्वारा रचित सुंदरकांड का पाठ करना बहुत शुभ माना जाता है. ऐसा करने से व्यक्ति में जीवन में आने वाली सभी परेशानियां दूर हो जाती है. इस दिन नियमित रूप से सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए. इससे सकारात्मक शक्तियां अंदर आती हैं. अगर आप किसी फल की प्राप्ति करना चाहते हैं, तो सुंदरकांड का पाठ मंगलवार या फिर शनिवार के दिन अवश्य करना चाहिए. क्योंकि शनिवार और मंगलवार का दिन बजरंगबली के लिए सबसे खास माना जाता है. सुंदरकांड का पाठ करने के दौरान स्वच्छता का खास ख्याल रखना चाहिए. सबसे पहले हनुमान जी की मूर्ति स्थापित करें. फिर उनकी विधिवत पूजा-अर्चना करें. सुंदरकांड का पाठ करने से पहले गणेश जी की वंदना जरूर करें.
हनुमान जी की करें आरती
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे ।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाए ।
लंका जारि सिया सुधि लाये ॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
लंका जारि असुर संहारे ।
सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे ।
लाये संजिवन प्राण उबारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
पैठि पताल तोरि जमकारे ।
अहिरावण की भुजा उखारे ॥
बाईं भुजा असुर दल मारे ।
दाहिने भुजा संतजन तारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें ।
जय जय जय हनुमान उचारें ॥
कंचन थार कपूर लौ छाई ।
आरती करत अंजना माई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
जो हनुमानजी की आरती गावे ।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥
लंक विध्वंस किये रघुराई ।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥

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