धर्म समाज

सुहागिन महिलाओं के लिए वट पूर्णिमा बेहद खास

  • निर्जला व्रत से टलता है पति पर अकाल मृत्यु का खतरा
  • इस कथा के बिना अधूरा माना जाता है वट पूर्णिमा व्रत
सनातन धर्म में वट पूर्णिमा बेहद खास मानी गई है. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और विधि विधान से बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं. इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और बरगद के पेड़ के चारों ओर धागा बांधती हैं. इस दिन वट वृक्ष की पूजा का विधान है.
इस साल 2024 में वट पूर्णिमा व्रत के दिन कई शुभ संयोग बन रहे हैं ऐसे में सुहागिनों को इसका लाभ मिलेगा. मान्यता है ऐसा करने से पति पर अकाल मृत्यु का खतरा नहीं रहता. पंचांग के अनुसार, इस बार पूर्णिमा तिथि 21 जून शुक्रवार को सुबह 7:32 बजे शुरू होगी और 22 जून को सुबह 6:38 बजे समाप्त होगी. इस तरह वट पूर्णिमा का व्रत 21 जून को ही रखा जाएगा.
इस दिन करेंगे उपाय-
1. इस दिन तांबे के एक लोटे में पानी भरकर उसमें कच्चा दूध मिलाकर एक बताशा डालें और उसे जल को पीपल के पेड़ में अर्पित करें दें. रुका हुआ धन प्राप्त होगा और व्यापार में भी लाभ होगा.
2. माता लक्ष्मी के चित्र या मूर्ति के समक्ष 11 कौड़ियां को अर्पित करें और उस पर हल्‍दी से तिलक लगाएं. इसके पश्चात दूसरे दिन सुबह इन कौड़ियों को लाल कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी में रख दें. इससे आर्थिक तंगी दोर होगी.
3. पति पत्नी दोनों मिलकर इस दिन व्रत रखें और चंद्र देव को दूध से अर्ध्य दें. इससे इससे उनके जीवन में आ रही सभी बाधाएं दूर होगी.
4. वट के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है. इसलिए इस दिन वट वृक्ष की विधिवत पूजा करके परिक्रमा करेंगे तो घर में सुख-शांति, और धनलक्ष्मी का वास होगा.
5. कर्ज से मुक्ति के लिए 11 दिनों तक शाम के समय बरगद के पेड़ के पास आटे का चौमुखा दीपक बनाकर उसमें घी डालकर बत्ती लगाएं. ऐसा करने से कर्ज मुक्ति मिलेगी और आर्थिक तंगी दूर होगी.
वट पूर्णिमा व्रत कथा-
वट पूर्णिमा व्रत सावित्री और उनके पति सत्यवान को समर्पित त्योहार माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री राजा अश्वपति की पुत्री थीं और अत्यंत सुंदर और अच्छे स्वभाव वाली थीं। सावित्री का विवाह सत्यवान नामक युवक से कर दिया गया। सत्यवान बहुत धर्मात्मा और भगवान का सच्चा भक्त था। एक दिन नारद जी ने सावित्री से कहा कि सत्यवान की आयु बहुत कम है। ऐसे में सावित्री ने सत्यवान के प्राणों के लिए कठिन तपस्या की। लेकिन जब समय आया, तो यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। तब सावित्री ने अपने पतित्व के बल पर यमराज को रोक लिया। इसके कारण यमराज ने सावित्री से वरदान मांगने को कहा।
सावित्री ने 3 अलग-अलग वरदान मांगे थे, लेकिन अंततः सावित्री ने पुत्र का वरदान मांगा था और यमराज ने बिना सोचे-समझे यह वरदान सावित्री को दे दिया था, लेकिन पति के बिना पुत्र का जन्म संभव नहीं है। इसलिए अपना वचन पूरा करने के लिए यमराज को सावित्री के पति सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े। वट सावित्री व्रत और वट पूर्णिमा व्रत के दिन इस कथा को जरूर सुनना चाहिए। इसके साथ ही व्रत पूरा माना जाता है। व्रत के प्रभाव से पति की अकाल मृत्यु से रक्षा होती है।

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