भगवान शिव और बेलपत्र का क्या है संबंध, शास्त्रों में बताया गया है महत्व
12-Jul-2024 3:30:16 pm
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महादेव स्वभाव से भोले हैं, इसलिए उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है। जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से भगवान शिव की पूजा करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। जल्द ही सावन का महीना शुरू होने वाला है। यह माह पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित माना जाता है। आषाढ़ माह के खत्म होने के बाद सावन महीना शुरू होता है। इस बार सावन महीने की शुरुआत बहुत दुर्लभ संयोग में हो रही है।
भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र जरूर शामिल किया जाता है। बेलपत्र महादेव को प्रिय होता है। इसे अर्पित करने से वे प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। आइए, जानते हैं कि भगवान शिव और बेलपत्र का क्या संबंध है और इसे चढ़ाने के क्या नियम हैं।
बेलपत्र से जुड़ी पौराणिक कथा-
शिवपुराण के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले विष से संसार संकट में पड़ गया। इसलिए भगवान शिव ने ब्रह्मांड की रक्षा के लिए उस विष को अपने गले में धारण कर लिया। इससे शिव के शरीर का तापमान बढ़ने लगा और पूरा ब्रह्मांड आग की तरह जलने लगा।
इसके कारण पृथ्वी पर सभी प्राणियों का जीवन कठिन हो गया। सृष्टि के हित में विष के प्रभाव को खत्म करने के लिए देवताओं ने भगवान शिव को बेलपत्र दिए। बेलपत्र खाने से विष का असर कम हो गया, तभी से भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
बेलपत्र चढ़ाने के नियम-
सभी देवताओं की पूजा के कई नियम बताए गए हैं। भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने के लिए भी शास्त्रों में कुछ नियम हैं।
इसके अनुसार भगवान शिव को बेलपत्र हमेशा चिकनी सतह की तरफ से चढ़ाना चाहिए।
भगवान शिव को कटे हुए बेलपत्र नहीं चढ़ाना चाहिए।
भगवान शिव को 3 पत्तों से कम का बेलपत्र न चढ़ाएं।
विषम संख्या जैसे 3,5,7 वाले बेलपत्र ही चढ़ाने चाहिए।
3 पत्तों वाले बेलपत्र को भगवान शिव के त्रिदेव और त्रिशूल का रूप माना जाता है।
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