धर्म समाज

बैकुंठ चतुदर्शी को भगवान श्रीहरिहर भक्तों देंगे दर्शन

सूबे की गोठ नई सड़क पर प्रदेश का एक मात्र हरिहर मंदिर हैं। यह श्री हरि व देवाधिदेव महादेव एक ही विग्रह में विराजमान हैं। यह मंदिर ढाई सौ वर्ष प्राचीन माना जाता है। यह विग्रह स्वयं भू प्रकट है। श्रीहरिहर के कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुदर्शी (बैकुंट चतुदर्शी) को दर्शनों का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता हैं बैकुंठ चतुदर्शी को एक साथ श्री हरि और भगवान शिव के एक साथ दर्शन करने से हर मनोकामना पूर्ण होने के साथ पर लोकगमन पर वैंकुट की प्राप्ति होती है। बैकुंठ श्रीविष्णु व माता लक्ष्मी का निवास माना जाता है।
सालभर खुलते हैं पट, सेवा होती है-
मंदिर के पुजारी दिलीप पराडकर ने बताया कि यह भ्रांति गलत है कि श्री हरि-हर मंदिर के पट केवल बैकुंठ चतुदर्शी को खोलते हैं।इस मंदिर के 12 माह पट खुले रहते हैं और श्रीहरि-हर की परंपरा के अनुसार पूजा-अर्चना होती है। बैकुंठ चतुदर्शी को श्रीहरिहर का प्रकाट्योत्सव परंपरागत रूप से मनाया जाता है। इसलिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां श्री हरि-हर के दर्शन करने के लिए आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि श्री हरि के भस्मासुर का अंत करने के बाद भगवान शिव श्री विष्णु से भेंट करने के लिए बैकुंठ चतुदर्शी को आये थे। तभी से यह उत्सव मनाया जाता है। यहां श्रद्धालु भोग दीपावली पर बने पकवान गुजिया व पपड़ी का लगाते हैं।
अपने घर की मनोकामना पूर्ण होती है-
बैकुंठ चतुदर्शी करने के लिए आने वाले श्रद्धालु मंदिर आसपास रखे ईट-पत्थर से दो से तीन मंजिल का मकान बनाते हैं और उसमें दीपक जलाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां पत्थरों से प्रतीकात्मक मकान बनाने से अगली बैकुंठ चतुदर्शी तक स्वयं का घर बनने की मनोकामना पूर्ण होती है।इसी विश्वास के साथ यह लोग मकान बनाते हैं।इसके साथ ही बैकुंठ चतुदर्शी को दर्शन मात्र से हर मनोकानना पूर्ण होने के साथ बैकुंठ लोक प्राप्ति होती है।
बैकुंठ चतुदर्शी को होता है आलोकिक श्रृंगार-
मंदिर के पुजारी ने बताया कि वैकुंट चतुदर्शी को भगवान श्रीहरि-हर का प्रकाट्योत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है।तड़के विग्रह का अभिषेक किया जाता है और अलोकिक श्रृंगार किया जाता है। मंदिर के पट सूर्यास्त से पहले ही खुल दिये जाते हैं। सुबह से लेकर देर रात तक श्रद्धालु भगवान के दिव्य एवं अलोकिक दर्शन के लिए आते हैं और सुख-समृद्धि के साथ श्री हरिहर की कृपा की कामना करते हैं। यह सिलसिला दो सदी से चला आ रहा है। मंदिर रंग-रोगन भी किया गया है।
बैकुंठ चतुदर्शी-
बैकुंठ चतुर्दशी गुरुवार 14 नवंबर को मनाया जायेगा। बैकुंठ चतुर्दशी का प्रारंभ सुबन नौ बजकर 43 मिनिट से समापन 15 नवंबर सुबह छह बजकर 19 मिनिट पर निशिता काल।
वैकुंठ चतुर्दशी 2024 कार्तिक महीने की चतुर्दशी को मनाई जाती है और इसे भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों के अनुयायी एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में मानते हैं।
भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा भक्त करते हैं, और उनका आशीर्वाद भी मांगते हैं। हालांकि, दोनों देवताओं की पूजा समारोह दिन के दौरान अलग-अलग समय पर किए जाते हैं।
एक ही प्रतिमा में श्रीहरि, शिव, माता लक्ष्मी व पार्वती विराजमान हैं।
मंदिर के पुजारी का दावा है कि मूर्ति पूर्ण भारत में एक ही मूर्ति है, जिसमें हरि और हर एक ही प्रतिमा में विराजमान है। इसी मूर्ति में मां लक्ष्मी, मां पार्वती एवं चारों के वाहन, हाथी, गरुड़, नंदी और शेर भी विराजमान हैं। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन सुबह पांच बजे आरती होती है, उसके पश्चात भगवान का अभिषेक किया जाएगा।

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