कजरी तीज व्रत कथा, जानिए...इसका महत्व और पूजा विधि
12-Aug-2025 3:27:38 pm
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सावन और भाद्रपद के पवित्र महीनों में आने वाली कजरी तीज का विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व होता है। यह व्रत हरियाली तीज के बाद मनाया जाता है और इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अपने वैवाहिक जीवन की खुशहाली के लिए व्रत रखती हैं। इस वर्ष कजरी तीज का पर्व 12 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा। इस व्रत में पूजा के साथ-साथ एक पौराणिक कथा सुनना और सुनाना अनिवार्य माना जाता है, जिसके सुनने मात्र से ही पुण्य प्राप्त होता है। मान्यता है कि इस कथा को सुने बिना व्रत अधूरा माना जाता है। आइए जानते हैं कजरी तीज व्रत की पौराणिक कथा के बारे में।
कजरी तीज व्रत कथा-
बहुत समय पहले, एक गाँव में एक गरीब ब्राह्मण और उसकी पत्नी रहते थे। उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी, जिसके कारण वे मुश्किल से दो वक्त का भोजन जुटा पाते थे। जब भाद्रपद माह की कजरी तीज का त्योहार आया, तो ब्राह्मण महिला ने अपने पति से कहा कि आज वह कजरी तीज का व्रत रख रही है और उसे पूजा के लिए बेसन चाहिए।
ब्राह्मण बहुत परेशान हो गया क्योंकि उसके पास आटा खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। उसने अपनी पत्नी से कहा, "मेरे पास आटा खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं, मैं क्या करूँ?" इस पर पत्नी ने दृढ़ता से कहा, "तुम कुछ भी करो, चाहे चोरी करो या डकैती, लेकिन मेरे लिए आटा ज़रूर लाओ।" पत्नी की बात सुनकर ब्राह्मण बहुत दुखी हुआ, लेकिन वह उसके व्रत को सफल बनाना चाहता था। रात में वह चुपके से एक साहूकार की दुकान में घुस गया। वहाँ से उसने सवा किलो चना, घी और चीनी ली और आटा गूँथकर घर जाने लगा। उसी समय साहूकार के नौकर जाग गए और चोर-चोर चिल्लाने लगे।
साहूकार जाग गया और उसने ब्राह्मण को पकड़ लिया। ब्राह्मण ने बिना किसी डर के साहूकार को पूरी कहानी सुनाई और कहा कि वह चोर नहीं है, बल्कि अपनी पत्नी के व्रत के लिए सत्तू लेने आया था। उसने साहूकार से एक बार उसकी तलाशी लेने का अनुरोध किया। जब साहूकार ने ब्राह्मण की तलाशी ली, तो उसे सत्तू के अलावा कुछ नहीं मिला। ब्राह्मण की सत्यनिष्ठा और अपनी पत्नी के प्रति उसके प्रेम को देखकर साहूकार की आँखें भर आईं। उसने ब्राह्मण को न केवल सत्तू दिया, बल्कि उसकी पत्नी को अपनी धर्मबहन मानकर उसे आभूषण, धन और सोलह श्रृंगार की वस्तुएँ भी भेंट कीं।
ब्राह्मण खुशी-खुशी सारा सामान लेकर घर लौट आया। उसने अपनी पत्नी को सारी बात बताई। दोनों ने मिलकर पूरी श्रद्धा से कजरी माता की पूजा की। माता के आशीर्वाद से उनके घर में सुख-समृद्धि आई और उनके जीवन के दुख दूर हो गए। कथा के अनुसार, जिस प्रकार कजरी माता के आशीर्वाद से गरीब ब्राह्मण का भाग्य बदल गया, उसी प्रकार जो भी विवाहित स्त्री सच्चे मन से इस व्रत को करती है, उसे अखंड सौभाग्य और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
कजरी तीज व्रत पूजा विधि-
इस दिन महिलाएं सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लेती हैं। मिट्टी या लकड़ी के चौकी पर नीम की टहनी रखकर देवी पार्वती का रूप मानकर उसकी पूजा की जाती है। गेहूं, चना, सत्तू और सुहाग सामग्री चढ़ाई जाती है। पूरे दिन निर्जला या फलाहार व्रत रखा जाता है। शाम को व्रत कथा सुनने और सुनाने के बाद, आरती की जाती है और पति के हाथ से जल पीकर व्रत तोड़ा जाता है।
कजरी तीज का महत्व-
कजरी तीज उत्तर भारत के कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में धूमधाम से मनाई जाती है। यह पर्व सुहागिन महिलाओं के वैवाहिक जीवन को मज़बूत बनाने के साथ-साथ घर में सुख-सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से जीवन की कठिनाइयाँ दूर होती हैं और वैवाहिक जीवन में प्रेम बना रहता है।