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जानिए हल षष्ठी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

हल षष्ठी या हल छठ भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है. यह श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से एक या दो दिन पूर्व मनाई जाती है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था, इसलिए इसे बलराम जयंती के नाम से जानते हैं. उत्तर भारत में इसे हल षष्ठी, ललही छठ या हल छठ कहते हैं और गुजरात में राधन छठ कहा जाता है. राधन छठ में संतान की रक्षा के लिए शीतला माता की पूजा करते हैं. बृज क्षेत्र में इसे बलदेव छठ कहते हैं. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट से जानते हैं हल षष्ठी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में.


हल षष्ठी 2022 मुहूर्त
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का प्रारंभ 16 अगस्त दिन मंगलवार को रात 08 बजकर 17 मिनट पर से हो रहा है. इस तिथि का समापन अगले दिन 17 अगस्त को रात 08 बजकर 24 मिनट पर होगा. उदयातिथि की मान्यता के आधार पर हल षष्ठी व्रत 17 अगस्त को रखा जाएगा.

रवि योग में हल षष्ठी
17 अगस्त को हल षष्ठी के दिन रवि योग प्रात:काल से ही प्रारंभ हो जा रहा है. सुबह में करीब दो घंटे और रात में करीब 10 बजे से अगले दिन सूर्योदय तक है. रवि योग का प्रारंभ सुबह 05 बजकर 51 मिनट से होकर सुबह 07 बजकर 37 मिनट तक है. फिर रात में रवि योग 09 बजकर 57 मिनट से अगले दिन सुबह 05 बजकर 52 मिनट तक है.रवि योग में सूर्य देव की कृपा होती है. यह योग अमंगल को दूर करके शुभ और सफलता प्रदान करता है. रवि योग का समय पूजा पाठ के​ लिए उत्तम है.

हल षष्ठी का महत्व
माताएं हल षष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए रखती हैं. इस व्रत को करने से बलराम जी यानि शेषनाग का आशीर्वाद प्राप्त होता है. बलराम जी को बलदेव, बलभद्र और हलयुद्ध के नाम से भी जानते हैं.

हल षष्ठी की पूजा विधि
इस दिन प्रात: स्नान आदि से निवृत होकर हल षष्ठी व्रत और पूजा का संकल्प लेते हैं. फिर शुभ समय में बलराम जी की पूजा फूल, फल, अक्षत्, नैवेद्य, धूप, दीप, गंध आदि से करते हैं. उनसे पुत्र के सुखमय जीवन की कामना करते हैं. रात्रि के समय में पारण करके व्रत को पूरा किया जाता है. इस व्रत में हल की पूजा करते हैं और हल से उत्पन्न अन्न और फल नहीं खाते हैं. पूजा में भैंस का दूध उपयोग में लाया जाता है.

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