धर्म समाज

श्रीकृष्ण का जन्‍मोत्‍सव, जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

आज पूरे देश में जन्माष्टमी पर्व मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, द्वापर युग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की मध्य रात्रि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। तब से लेकर आज तक इस तिथि पर श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़े ही धूम-धाम से मनाया जा रहा है। इस दिन कृष्ण मंदिरों में कई विशेष आयोजन होते हैं, सजावट की जाती है और भक्तों की भीड़ उमड़ती है। भक्त दिनभर उपवास करते हैं और रात को कृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं। बनारस के विद्वानों के पास मौजूद ग्रंथों के अनुसार ये भगवान कृष्ण का 5249वां जन्म पर्व है। आगे जानिए पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व अन्य खास बातें…

ये है पूजा का शुभ मुहूर्त
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। उस समय सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा वृष राशि में था। ऐसा ही संयोग इस बार भी बन रहा है। उस समय अष्टमी तिथि का आठवा मुहूर्त था। ये मुहूर्त इस बार 19 अगस्त, शुक्रवार की रात 12.05 से 12.45 तक रहेगा। यानी यही रात्रि पूजा का श्रेष्ठ मुहूर्त है। इसके अलावा दिन के शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं-

सुबह 06.00 से 10.30 तक
- दोपहर 12.30 से 2.00 तक
- शाम 5.30 से 7.00 तक
- रात 11.25 से 1.00 तक
 
कौन-कौन से शुभ योग रहेंगे आज? 
ज्योतिषाचार्य पं. मिश्र के अनुसार 19 अगस्त, शुक्रवार को चंद्र-मंगल की युति होने से महालक्ष्मी योग, सूर्य-बुध की युति से बुधादित्य योग, शुक्रवार को कृत्तिका नक्षत्र होने से छत्र नाम के शुभ योग बनेंगे। इनके अलावा ध्रुव, कुलदीपक, भारती, हर्ष और सत्कीर्ति नाम के राजयोग भी इस दिन रहेंगे।

जन्माष्टमी की व्रत-पूजा विधि
- जन्माष्टमी की सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले व्रत-पूजा का संकल्प लें। जैसे व्रत आप करना चाहते हैं वैसा ही संकल्प लें।
- घर में किसी साफ स्थान पर पालना लगाएं और उसमें लड्डू गोपाल की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान को नए वस्त्र पहनाएं और पालने भी भी सजवाट करें।
- शुद्ध घी का दीपक जलाएं। लड्डू गोपाल को कुंकुम से तिलक कर चावल लगाएं। इसके बाद अबीर, गुलाल, इत्र, फूल, फल आदि चीजें चढ़ाएं।
- इसके बाद जो भी भोग घर में शुद्धतापूर्वक बनाया हो, उसे अर्पित करें। भोग में तुलसी के पत्ते जरूर रखें। इसके बाद आरती करें।
- इसके बाद दिन भर निराहार रहें यानी बिना कुछ खाए-पिए। संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। पूरे दिन मन ही मन भगवान का स्मरण करते रहें।
- रात को 12 बजे एक बार फिर से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें। पालने को झूला करें। माखन मिश्री, पंजीरी और पंचामृत का भोग लगाएं।
- पूजा के बाद आरती करें और संभव हो तो रात पर पूजा स्थान पर बैठकर ही भजन करें। अगले दिन पारणा कर व्रत पूर्ण करें।
 
जन्माष्टमी पर क्यों करते हैं व्रत?
जन्माष्टमी पर अधिकांश लोग व्रत रखते हैं और दिन भर कुछ भी खाते-पीते नहीं है। इसके पीछे कई कारण हैं जो इस प्रकार हैं- अष्टमी तिथि को जया भी कहते हैं, यानी जीत दिलाने वाली तिथि। इस दिन उपवास रख भगवान में मन लगाने से सभी कामों में जीत मिलती है। निराहार रहने से शरीर की शुद्धि होती है। उपवास करने से सांसारिक विचार मन में नहीं आते हैं और मन भगवान में लगा रहता है।
 
भगवान श्रीकृष्ण की आरती
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली;
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक;
ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै;
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा;
बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;
हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद;
टेर सुन दीन भिखारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…

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