धर्म समाज

वैशाख पूर्णिमा में चंद्रदेव की पूजा, सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी

सनातन धर्म में अमावस्या और पूर्णिमा तिथि को बेहद ही खास माना जाता है। जो कि हर माह में पड़ती है अभी वैशाख का महीना चल रहा है और इस महीने आने वाली पूर्णिमा को वैशाख पूर्णिमा के नाम से जाना जा रहा है जो कि इस बार 5 मई दिन शुक्रवार को पड़ रही है। इस दिन पूजा पाठ और स्नान दान का विशेष महत्व होता है।
धार्मिक पंचांग के अनुसार वैशाख पूर्णिमा के दिन ही नरसिंह जयंती और बुद्ध जयंती भी मनाई जाती है और इसे बुध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन चंद्र देव की पूजा करने से भी साधक को उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। तो आज हम आपको इसी के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते है।
धार्मिक पंचांग के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 4 मई को मध्य रात्रि 11 बजकर 44 मिनट पर हो रहा है जिसका समापन 5 मई ​को रात 11 बजकर 30 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में वैशाख पूर्णिमा का व्रत पूजन 5 मई दिन शुक्रवार को करना उत्तम रहेगा। इस दिन पूजा पाठ करने से साधक को विशेष लाभ मिलता है।
वैशाख पूर्णिमा के दिन व्रत रखने से साधकों को सुख समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है इस दिन रात्रि के समय धूप, दीपक, पुष्प और अन्न आदि से चंद्र देव की विधिवत पूजा जरूर करें और उन्हें जल चढ़ाएं। मान्यता है कि ऐसा करने से घर परिवार में सदा ही खुशियों का वास होता है।
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मदुरै में 5 मई को चिथिरई उत्सव के तहत अवकाश घोषित

मदुरै। तमिलनाडु के मदुरै जिला प्रशासन ने 5 मई को वैगई नदी में भगवान कल्लाझगर के चिथिरई उत्सव के भाग के रूप में प्रवेश के मद्देनजर जिले के लिए अवकाश की घोषणा की है.
मदुरै के विश्व प्रसिद्ध चिथिरई उत्सव का उत्सव 23 अप्रैल को ध्वजारोहण के साथ शुरू हुआ। उत्सव का मुख्य कार्यक्रम कल्लाझागर का वैगई जल में प्रवेश है, जो 5 मई को आयोजित किया जाएगा। इसे देखते हुए जिला प्रशासन ने 5 मई को जिले में अवकाश की घोषणा की है, जिसकी जानकारी मंदिर प्रशासन ने दी. कल्लाझगर के प्रवेश के हिस्से के रूप में, भक्त अपनी मन्नतें पूरी होने के प्रतीक के रूप में अज़गर पर पवित्र पीला पानी छिड़क कर श्रद्धापूर्वक 'तीर्थवारी' करेंगे।
बालाजी, मदुरै अलगर मंदिर के मुख्य पुजारी ने कहा, "हर साल भगवान अलगर रामाराया मंडपम आते हैं। फिर तीर्थवारी कार्यक्रम शुरू होगा। भक्त एक महीने तक उपवास करते हैं और तीर्थवारी कार्यक्रम में भाग लेते हैं। हजारों भक्त कार्यक्रम में भाग लेते हैं जहां वे जल छिड़केंगे। लॉर्ड अलागर।"
"आमतौर पर भक्त एक महीने के लिए उपवास करते हैं और तीर्थवारी कार्यक्रम में भाग लेते हैं। भक्त अपने कंधों पर पानी के साथ एक बैग ले जाते हैं और तीर्थवारी के दौरान भगवान अलगर पर पानी छिड़कते हैं", उन्होंने कहा। पुजारी ने आगे कहा कि पहले भक्त मैनुअल पंप का इस्तेमाल करते थे लेकिन आजकल वे प्रेशर पंप का इस्तेमाल करने लगे हैं।
उन्होंने कहा, "प्रेशर पंप के इस्तेमाल से अलगर की सोने की मूर्ति और उनके सुनहरे घोड़े को नुकसान हो रहा है। इसलिए, मैं भक्तों से अनुरोध करता हूं कि वे तीर्थवारी कार्यक्रम के दौरान प्रेशर पंप का इस्तेमाल न करें।" इस बीच, मदुरै अलगर मंदिर प्रबंधन एक सोने की परत वाली घोड़े की मूर्ति तैयार कर रहा है, जिसे चिथिरई उत्सव से पहले भगवान कल्लाझागर के 'वाहन' के रूप में माना जाता है।
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अगले महीने रखा जाएगा मोहिनी एकादशी का व्रत

जानें महत्व और पूजा विधि
हिंदू मान्यता के अनुसार इस पावन तिथि पर भगवान विष्णु ने अपना मोहिनी अवतार लिया था, इसीलिए इसे मोहिनी एकादशी कहा जाता है। हिंदू धर्म में सनातन धर्म में वैशाख का माह बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ये माह भगवान विष्णु को समर्पित है और इसलिए इसे माधव मास भी कहा जाता है। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी मनाई जाती है। हिंदू मान्यता के अनुसार इस पावन तिथि पर ही भगवान विष्णु ने अपना मोहिनी अवतार लिया था, इसीलिए इसे मोहिनी एकादशी कहा जाता है। ये एकादशी समस्त पाप और दुखों का नाश करने वाली तथा धन सौभाग्य का आशीर्वाद देने वाली मानी जाती है। आइए जानते हैं मोहिनी एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।
मोहिनी एकादशी : तिथि एवं शुभ मुहूर्त
मोहिनी एकादशी व्रत इस साल 01 मई 2023 को रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 30 अप्रैल, रविवार को रात्रि 08:28 बजे प्रारंभ होकर 01 मई 2023 को रात्रि 10:09 बजे तक रहेगा। इसका पारण 02 मई को प्रात:काल 05:40 से 08:19 बजे के बीच करना शुभ रहेगा।
मोहिनी एकादशी व्रत की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब एक बार दैत्य और देवताओं द्वारा किए गये समुद्र मंथन से अमृत कलश निकला तो उसे पीने के लिए होड़ मच गई। ऐसे में भगवान श्री विष्णु ने अमृत कलश को दैत्यों से बचाने के लिए मोहिनी रुप धारण किया और देवताओं को पहले अमृत पिला दिया। हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने जिस दिन मोहिनी अवतार लिया, वह वैशाख मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि थी। उसके बाद से इस पावन तिथि पर श्री हरि की पूजा करने का महत्व और बढ़ गया।
कैसे करें पूजन?
मोहिनी एकादशी तिथि पर व्रत एवं पूजन करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
इसके बाद सूर्य नारायण को जल चढ़ायें और हाथ में थोड़ा सा जल लेकर संकल्प कर लें।
घर के ईशान कोण में एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर को विराजित करें।
इन्हें पीले फूल, पीला चंदन, पीला फल, पीला वस्त्र आदि अर्पित करें। साथ ही शुद्ध घी का दीया जलायें।
इसके बाद मोहिनी एकादशी व्रत की कथा का पाठ करें और अंत में श्री हरि की आरती करें।

डिसक्लेमर
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मई में लगने जा रहा साल का पहला चंद्र ग्रहण

जानें सूतक काल और किस राशि पर क्या पड़ेगा प्रभाव
साल 2023 का पहला चंद्र ग्रहण मई में लगने वाला है। ज्योतिषियों के अनुसार यह एक उपच्छाया चंद्रग्रहण होगा। ये चंद्र ग्रहण वैशाख पूर्णिमा यानी बुद्ध पूर्णिमा वाले दिन लगेगा। पूर्णिमा तिथि इस बार 5 मई को पड़ रही है, वहीं चंद्रग्रहण भी 5 मई की रात में 8 बजकर 46 मिनट पर लगेगा।
चंद्र ग्रहण 2023 का सूतक काल
चंद्र ग्रहण का सूतक काल 9 घंटे पहले शुरू हो जाता है, लेकिन साल का पहला चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इसलिए यहां इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कब लगता है चंद्रग्रहण
पौराणिक मान्यता है कि पूर्णिमा की रात जब राहु और केतु चंद्रमा को निगलने की कोशिश करते हैं, तब चंद्र ग्रहण लगता है। वहीं चंद्र ग्रहण से कुछ घंटे पहले सूतक काल लग जाता है, जिसे ज्योतिष के नजरिए से शुभ नहीं माना जाता है। यह चंद्र ग्रहण 5 मई की रात में 8 बजकर 46 मिनट से शुरू होगा और मध्यरात्रि के बाद 1 बजकर 2 मिनट पर समाप्त होगा। इसका असर सभी राशियों पर देखने को मिलेगा, जिनमें से कुछ राशि के जातकों पर शुभ परिणाम मिलेंगे और कुछ को सावधान रहने की जरूरत होगी।
आइए जानते हैं कौन-कौन सी हैं वो राशियां-
मेष राशि
चंद्रग्रहण के दौरान मेष राशि के जातकों को थोड़ा सावधान रहने की जरूरत है। इस दौरान आपको मानसिक तनाव हो सकता है। इसलिए कोशिश करें की कोई भी बड़ा निर्णय इस समय ना लें या फिर सोच-समझकर लें। आपकी आर्थिक स्थिति इस दौरान कमजोर हो सकती है, इसलिए खर्चों पर ध्यान दें। स्वास्थ्य के प्रति भी सावधान रहें, नुकसान हो सकता है।
मिथुन राशि
मिथुन राशि के जातकों को भी चंद्र ग्रहण के दौरान अपनी वाणी पर संयम रखने की जरूरत है। इस दौरान आपको आर्थिक स्थिति पर भी ध्यान देना होगा। वरना अनावश्यक खर्च के कारण आपको मानसिक तनाव हो सकता है। इस दौरान आपको कई चिंताएं हो सकती हैं, मन परेशान हो सकता है।
कर्क राशि
इस राशि के जातकों को चंद्रग्रहण के दौरान अशुभ प्रभाव देखने को मिलेंगे, इसलिए इस दौरान आपको सेहत, आर्थिक व पारिवारिक सभी प्रकार के मामलों में बचकर रहने की आवश्यकता है। कार्यक्षेत्र में वाणी पर संयम रखना होगा वरना बहस हो सकती है और नुकसान आपको होगा।
कन्या राशि
कन्या राशि के जातकों को इस चंद्र ग्रहण बहुत सावधान रहने की जरूरत है। यह समय आपके लिए अशुभ साबित हो सकता है। इस दौरान आपको कोई बुरी सूचना प्राप्त हो सकती है। इस दौरान आप अपने परिवार का विशेष ध्यान रखें और कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय बहुत सोच-समझकर करें।
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हर बुधवार को करें गणेश जी की पूजा, परेशानियां होगी दूर

हिंदू धर्म में हर दिन को किसी न किसी देवी देवता की पूजा को समर्पित किया गया है। वही बुधवार का दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा के लिए उत्तम माना जाता है। भक्त इस दिन भगवान की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते है।
मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ और व्रत के साथ अगर कुछ उपायों को भी किया जाए तो घर की गरीबी व दरिद्रता का नाश होता है साथ ही सभी बिगड़े काम भी बनने लगते है। तो आज हम आपको बुधवार के दिन किए जाने वाले आसान और अचूक उपाय बता रहे हैं तो आइए जानते है।
बुधवार के आसान उपाय-
अगर किसी जातक की कुंडली का बुध कमजोर है और वह अशुभ फल प्रदान कर रहा हैं तो ऐसे में आप हरे रंग का रुमाल हमेशा ही अपने पास रखें। साथ ही इस दिन गरीबों व जरूरतमंदों को मूंग की दाल या हरे वस्त्र का दान जरूर करें मान्यता है कि इस उपाय को करने से कुंडली का बुध मजबूत होता है साथ ही शुभ फल प्रदान करता है। इसके अलावा ​बुधवार के दिन अगर गाय को हरी घास खिलाई जाएं तो इससे सभी देवी देवताओं की कृपा बरसती है जिससे आर्थिक तंगी व दरिद्रता से छुटकारा मिल जाता है।
वही अगर आप जीवन की परेशानियों से जूझ रहे है या फिर कष्टों से मुक्ति पाना चाहते हैं तो ऐसे में आप बुधवार के दिन श्री गणेश को मोदक का भोग लगाएं ऐसा करने से सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं और सुख समृद्धि सदा ही घर में वास करती है। कामना पूर्ति की इच्छा रखने वाले लोग आज के दिन भगवान श्री गणेश की विधिवत पूजा करें और श्री गणेश को सिंदूर अर्पित करें मान्यता है कि इस उपाय से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
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मुख्यमंत्री ने शीतला माता और नागेश्वर शिव शक्ति मंदिर में की पूजा-अर्चना

प्रदेशवासियों की खुशहाली और समृद्धि की कामना की
रायपुर। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल आज अपने प्रदेश व्यापी भेंट-मुलाकात अभियान के तहत रायपुर ग्रामीण विधानसभा के लालपुर स्थित शीतला माता मंदिर पहुंचे। उन्होंने माता शीतला और मंदिर परिसर में ही स्थित नागेश्वर महादेव की पूजा अर्चना कर प्रदेशवासियों की सुख-शांति, समृद्धि और खुशहाली की कामना की। इस अवसर पर रायपुर ग्रामीण विधायक श्री सत्यनारायण शर्मा और नगर निगम रायपुर महापौर श्री एजाज ढेबर भी उपस्थित रहे।
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वैशाख शुक्ल सप्तमी के पावन दिन धरती पर उतरी थीं गंगा

वैशाख शुक्ल सप्तमी के पावन दिन गंगा धरती पर उतरी थीं। 26 अप्रैल 2023 बुधवार को श्री गंगा सप्तमी (गंगा जयंती) है। गंगा जयंती हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है। वैशाख शुक्ल सप्तमी के पावन दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई इस कारण इस पवित्र तिथि को गंगा जयंती के रूप में मनाया जाता है। गंगा जयंती के शुभ अवसर पर गंगा जी में स्नान करने से सात्त्विकता और पुण्यलाभ प्राप्त होता है। वैशाख शुक्ल सप्तमी का दिन संपूर्ण भारत में श्रद्धा व उत्साह के साथ मनाया जाता है यह तिथि पवित्र नदी गंगा के पृथ्वी पर आने का पर्व है गंगा जयंती। स्कन्दपुराण, वाल्मीकि रामायण आदि ग्रंथों में गंगा जन्म की कथा वर्णित है।
भारत की अनेक धार्मिक अवधारणाओं में गंगा को देवी के रूप में दर्शाया गया है। अनेक पवित्र तीर्थस्थल गंगा के किनारे पर बसे हैं। गंगा नदी को भारत की पवित्र नदियों में सबसे पवित्र नदी के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है। लोग गंगा के किनारे ही प्राण विसर्जन या अंतिम संस्कार की इच्छा रखते हैं तथा मृत्यु पश्चात गंगा में अपनी राख विसर्जित करना मोक्ष प्राप्ति के लिये आवश्यक समझते हैं। लोग गंगा घाटों पर पूजा अर्चना करते हैं और ध्यान लगाते हैं।
गंगाजल को पवित्र समझा जाता है तथा समस्त संस्कारों में उसका होना आवश्यक माना गया है। गंगाजल को अमृत समान माना गया है। अनेक पर्वों और उत्सवों का गंगा से सीधा संबंध है मकर संक्राति, कुंभ और गंगा दशहरा के समय गंगा में स्नान, दान एवं दर्शन करना महत्त्वपूर्ण समझा माना गया है। गंगा पर अनेक प्रसिद्ध मेलों का आयोजन किया जाता है। गंगा तीर्थ स्थल सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता स्थापित करता है गंगा जी के अनेक भक्ति ग्रंथ लिखे गए हैं जिनमें श्रीगंगासहस्रनामस्तोत्रम एवं गंगा आरती बहुत लोकप्रिय हैं।
गंगा हिंदुओं की आस्था का केंद्र है और अनेक धर्म ग्रंथों में गंगा के महत्व का वर्णन प्राप्त होता है। गंगा नदी के साथ अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं जो गंगा जी के संपूर्ण अर्थ को परिभाषित करने में सहायक है। इसमें एक कथा अनुसार गंगा का जन्म भगवान विष्णु के पैर के पसीनों की बूंदों से हुआ गंगा के जन्म की कथाओं में अतिरिक्त अन्य कथाएँ भी हैं। जिसके अनुसार गंगा का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ। एक मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के चरण धोए और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया और एक अन्य कथा अनुसार जब भगवान शिव ने नारद मुनि, ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा जिसे ब्रह्मा जी ने उसे अपने कमंडल में भर लिया और इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ था।
गंगा जयंती का महत्व जानें
शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ही गंगा स्वर्ग लोक से शिव शंकर की जटाओं में पहुंची थी इसलिए इस दिन को गंगा जयंती और गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन ‘गंगा दशहरा’ (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है इस दिन मां गंगा का पूजन किया जाता है। गंगा जयंती के दिन गंगा पूजन एवं स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों का क्षय होता है| मान्यता है कि इस दिन गंगा पूजन से मांगलिक दोष से ग्रसित जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है। विधिविधान से गंगा पूजन करना अमोघ फलदायक होता है। पुराणों के अनुसार गंगा विष्णु के अंगूठे से निकली हैं, जिसका पृथ्वी पर अवतरण भगीरथ के प्रयास से कपिल मुनि के शाप द्वारा भस्मीकृत हुए राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों का उद्धार करने के लिए हुआ था तब उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर माता गंगा को प्रसन्न किया और धरती पर लेकर आए। गंगा के स्पर्श से ही सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार संभव हो सका इसी कारण गंगा का दूसरा नाम भागीरथी पड़ा।
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सुहागिनें इस दिन रखेंगी वट सावित्री व्रत

जानें इस दिन वट वृक्ष की पूजा का महत्व
इस बार वट सावित्री अमावस्या 19 मई 2023 को है, वहीं वट सावित्री पूर्णिमा 3 जून 2023 को है. पंजाब, दिल्ली, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, उड़ीसा, हरियाणा में वट सावित्री अमावस्या (ज्येष्ठ अमावस्या) के दिन व्रत रखा जाता है. वहीं महाराष्ट्र और गुजरात में वट सावित्री पूर्णिमा (ज्येष्ठ पूर्णिमा) पर ये व्रत रखने की परंपरा है.
वट सावित्री अमावस्या के दिन सुबह 07.19 से सुबह 10.42 तक पूजा का मुहूर्त है. वहीं वट सावित्री पूर्णिमा वाले दिन विवाहित महिलाएं सुबह 07.16 से सुबह 08.59 तक कर सकती हैं.
वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं बरगद वृक्ष के नीचे पूजा करती है. वट वक्ष को जल और कच्चे दूध से सींचती हैं. रोली सिंदूर से बरगद के वृक्ष पर तिलक लगाती हैं. कच्चा सूत बांधकर 108 बार परिक्रमा करके 108 दाने मूंगफली के समर्पित करती है.
वट सावित्री व्रत को लेकर मान्यता है कि प्राचिन काल में सावित्री नाम की महिला की निष्ठा और पति परायणता को देखकर यम ने उसके मृत पति को पुन: जीवनदान दे दिया था. कहते हैं को जो वट सावित्री व्रत रखता है उसके पति पर कोई संकट नहीं आता और सुहाग की उम्र लंबी होती है.
ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि जयंती भी मनाई जाती है. ऐसे में इस दिन काली गाय का पूजन कर 8 बूंदी के लड्डू खिलाकर उसकी परिक्रमा करें तथा उसकी पूंछ से अपने सिर को 8 बार झाड़ दें. इससे सुख-सौभाग्य का वरदान मिलता है.
 
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मोहिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त कब है जानें...

हिंदू पंचांग में हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप की खास पूजा की जाती है. इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और बैकुंठ में स्थान प्राप्ति होती है. ऐसा कहा जाता है कि जो भी जातक मोहिनी एकादशी का व्रत रखता है कि ,उसे पूरे वैशाख माह में किए गए दान के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है. इस साल मोहिनी एकादशी पर भद्रा का साया रहेगा. तो पूजा कैसे की जाएगी? तो ऐसे में आइए आज हम आपको अपने इस लेख में मोहिनी एकादशी व्रत के बारे में बताएंगे, साथ ही पूजा मुहूर्त और पारण का समय क्या है.
वैशाख माह के सुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी कि दिनांक 30 अप्रैल को रात 08 बजकर 28 मिनट से लेकर अगले दिन दिनांक 1 मई दिन सोमवार को रात 10 बजकर 09 मिनट पर समापन होगा. उस हिसाब से मोहिनी एकादशी का व्रत दिनांक 01 मई को रखा जाएगा.
दिनांक 01 मई को भद्रा सुबह 09 बजकर 22 मिनट से लेकर सुबह 1- बजकर 09 मिनट तक रहेगा. इस समय शुभ काम करने से बचें.
मोहिनी एकादशी के दिन रवि और ध्रुव योग बन रहा है.
रवि योग- सुबह 05 बजकर 41 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 51 मिनट तक रहेगा.
ध्रुव योग- सुबह से लेकर दिन में 11 बजकर 45 मिनट तक है.
जानें क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त
मोहिनी एकादशी के दिन को भद्रा का समय सुबह 09 बजकर 22 मिनट से लेकर 10 बजकर 09 मिनट तक रहेगा.
रवि योग सुबह 05 बजकर 41 मिनट से है.
अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त है, जो सुबह 07 बजकर 20 मिनट तक है.
सुबह 09 बजे से 10 बजकर 39 मिनट तक शुभ-उत्तम मुहूर्त है.
इसलिए आप भद्रा के समय को छोड़कर अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त या फिर शुभ-उत्तम मुहूर्त में मोहिनी एकादशी की पूजा कर सकते हैं.
जानें क्या है व्रत का पारण समय
अगर आप दिनांक 01 मई को मोहिनी एकादशी का व्रत रख रहे हैं, तो अगले दिन दिनांक 02 मई को व्रत का पारण सुबह 05 बजकर 40 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 19 मिनट तक है. वहीं द्वादशी का समापन रात 11 बजकर 17 मिनट पर होगा.
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शिवकथा की तैयारी : प्रदीप मिश्रा कल भिलाई में

आज निकाली जाएगी भव्य कलश यात्रा

भिलाई। शहर के जयंती स्टेडियम ग्राउंड में होने जा रही पंडित प्रदीप मिश्रा की शिवकथा की तैयारी में मौसम ने खलल डाल दिया है। शनिवार शाम आए तेज अंधड़ और बारिश से पंडाल में नुकसान हुआ है। गनीमत है कि मुख्य पंडाल में पंखों को छोड़ कुछ भी बड़ा नुकसान नही हुआ। जबकि बगल के छोटे पंडाल के पर्दे हवा से फट गए। इधर सुबह मौसम खुलने के बाद युद्ध स्तर पर काम शुरू कर दिया है। 2 दिन बाद यहां कथा शुरू होगी और आज शाम भव्य कलश यात्रा भी निकाली जाएगी।
कल शाम हुई बारिश और तेज आंधी के बाद सुबह सुबह पंडाल के एक दर्जन से ज्यादा पंखे मुड़ गए। वहीं बगल के छोटे पंडाल और सामने लगे स्टॉल के पर्दे फट गए और कई बांस बल्ली भी टूट गए। हलांकि आयोजक समिति ने सुबह से रिपेयरिंग का काम फिर शुरू कर दिय है। आयोजन समिति के मनीष पांडे ने कहा कि मौसम खराब होने की वजह से पंडाल में कुछ जगह डेमेज हुआ है पर मुख्य पंडाल सुरक्षित है।
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प्रदीप मिश्रा 24 अप्रैल को भिलाई में, आयोजक समिति ने पूरी की तैयारी

अंतरराष्ट्रीय कथावचक पंडित प्रदीप मिश्रा सिहोर वाले 24 अप्रैल को भिलाई पहुंच रहे हैं। 25 अप्रैल से 1 मई तक वो जयंती स्टेडियम मैदान में एकांतेश्वर महादेव की कथा सुनाएंगे। कथा का समय दोपहर 2 से शाम 5 बजे तय रखा गया है। भीषण गर्मी के दौरान भक्तों को किसी तरह की कोई परेशानी न हो, इसके लिए समिति ने पूरी तैयारी की है। यहां 200 से अधिक कूलर पंखे व मिस्टिंग शावर लगाए हैं तो वहीं बीमार पड़ने पर उपचार के लिए 42 से अधिक डॉक्टर की ड्यूटी लगाई गई है।
कथा का आयोजन जीवन आरंभ फाउंडेशन के द्वारा किया जा रहा है। आयोजन समिति के अध्यक्ष और भाजपा नेता विनोद सिंह ने बताया कि 1 लाख से अधिक लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई है। इसके लिए 1 लाख वर्ग फीट से अधिक एरिया में टेंट लगाया गया है।
डोम के अलावा जो जगह बची है भक्तों के बढ़ने पर वहां भी टेंट लगाए जाने की योजना है। लोगों को आने जाने में किसी तरह परेशानी न हो इसके लिए उत्तर दक्षिण, पश्चिम चारों दिशाओं में चार गेट बनाए गए हैं। सभी गेट में प्रवेश सुबह 11 से दिया जाएगा। दो गेट से वीआईपी एंट्री भी रहेगी, जो कि 24 घंटे खुले रहेंगे। आयोजन के दौरान कथा सुनने वाले भक्तों के लिए नाश्ता व ठंडा पानी की व्यवस्था की जा रही है। कथा सुनने के लिए भक्त छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों से आएंगे। ऐसे में उनके आने से लेकर पार्किंग तक की पूरी व्यवस्था की गई है। भिलाई होटल, चोपड़ा पेट्रोल पंप, भिलाई चर्च और जयंती स्टेडियम के पास वीआईपी पार्किंग सहित अलग-अलग जगह पर वाहन पार्किंग की व्यवस्था की गई है।
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शनिवार का दिन भगवान शनिदेव की पूजा के लिए उत्तम

हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा को समर्पित होता है। वही शनिवार का दिन भगवान श्री शनिदेव की पूजा के लिए उत्तम माना जाता है। भक्त इस दिन भगवान की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते है।
मान्यता है कि इस दिन शनिदेव की पूजा आराधना करने से वे प्रसन्न होकर कृपा बरसाते हैं और जीवन में अपार सुख समृद्धि प्रदान करते हैं। इस दिन पूजा पाठ और व्रत के आदि के साथ साथ अगर कुछ उपायों को भी किया जाए तो जीवन के सभी कष्टों का निवारण हो जाता है और सुख समृद्धि में वृद्धि होती है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं शनिवार के उपाय।
शनिवार के अचूक उपाय
अगर आप शनि पीड़ा से मुक्ति पाना चाहते हैं तो ऐसे में शनिवार के दिन स्नान आदि करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें और पीपल के पेड़ पर जल अर्पित करें इस दौरान 'ऊं शं शनैश्चराय नम:' इस मंत्र का जाप करें इसके बाद पीपल के पेड़ को छूकर प्रणाम करें। फिर सात बार वृक्ष की परिक्रमा करें।
मान्यता है कि इस उपाय को करने से शनि पीड़ा दूर हो जाती है और शनि महाराज का आशीर्वाद मिलता है। इसके अलावा शनिवार की शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जरूर जलाएं। इस दिन सरसों तेल से बना भोजन गरीबों को खिलाने से भी शनि कृपा बरसती है और दुख परेशानियां दूर हो जाती है।
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अक्षय तृतीया : सोने-चांदी के आभूषण खरीदना बहुत शुभ होता है

लगातार दूसरी बार बेस्ट शोरूम इन स्टेट का अवार्ड जीत चुके पालमपुर के नामी बुद्धमल ज्वेलर्स इस साल भी हर साल की तरह अक्षय तृतीया भी धूमधाम से मनाने जा रहे हैं। इस बार अक्षय तृतीया 22 अप्रैल, 2023 को है, जिसके लिए शोरूम और बुढा माल के कर्मचारी ग्राहकों के स्वागत के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। इस बार बुढ़ामल ज्वैलर्स पालमपुर सोने के आभूषणों की लेबर पर 60 प्रतिशत और हीरे के आभूषणों की कीमत पर 30 प्रतिशत तक की छूट देगा। शोरूम के एमडी माणिक करवाल ने बताया कि अक्षय तृतीया का विशेष धार्मिक महत्व है। इस तिथि को ब्रह्मा देव के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म हुआ था, इसलिए वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है। इसी तिथि को गंगा अवतरण और परशुराम जयंती भी मनाई जाती है।
इस दिन सुख-समृद्धि प्रदान करने वाले भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। अक्षय तृतीया पर खरीदे गए आभूषण, सोना-चांदी आदि अक्षय रहते हैं। मां लक्ष्मी की कृपा से प्राप्त धन स्थिर रहता है, घटता नहीं, स्वयं बढ़ाता है, इसलिए अक्षय तृतीया के दिन सोने और चांदी के आभूषण खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। उन्होंने बताया कि अक्षय तृतीया के दिन खासकर शादी वाले घरों में जहां आने वाले समय में शादी या अन्य कोई कार्यक्रम है। इस मौके पर शॉपिंग कर आप इस शानदार ऑफर का फायदा उठा सकते हैं।
यहां शुद्ध सोना मिलता है: आपको बता दें कि बुढ़ामल ज्वेलर्स पालमपुर में हॉलमार्क सोने के आभूषण और प्रमाणित हीरे के आभूषण हैं और राज्य के दूर-दराज के इलाकों से लोग यहां आभूषण खरीदने आते हैं। खाने का होगा इंतजाम खाने का होगा खास इंतजाम शोरूम के एमडी माणिक करवाल ने बताया कि इस दिन सभी ग्राहकों के खाने का खास इंतजाम होगा.
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परशुराम जयंती पर आज करें पूजा, जानिए संपूर्ण विधि

हिंदू धर्म में वैसे तो कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व होता है इन्हीं पर्व त्योहारों में से एक है परशुराम जयंती का पर्व जिसे बेहद ही खास माना जाता है। जो हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर मनाया जाता है इस बार परशुराम जयंती 22 अप्रैल दिन शनिवार को मनाया जा रहा है इसी पावन दिन पर अक्षय तृतीया का भी पर्व मनाया जा रहा है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज ही के दिन भगवान विष्णु के छठें अवतार भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। इस दिन भक्त भगवान परशुराम की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि किया जाता है। मान्यता है कि इनकी पूजा अर्चना करने से सभी दुखों व संकटों का नाश हो जाता है तो आज हम आपको भगवान परशुराम की संपूर्ण पूजा विधि के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते है।
परशुराम जयंती की संपूर्ण पूजा विधि
आपको बता दें कि भगवान परशुराम जयंती के दिन सुबह उठकर स्नान आदि करें इसके बाद साफ वस्त्र धारण करें। घर के पूजन स्थल की अच्छी तरह से साफ सफाई करके गंगाजल का छिड़काव करें। अब चौकी की पर साफ वस्त्र बिछाकर भगवान परशुराम और श्री विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें भगवान को पुष्प, चावल और अन्य पूजन सामग्री अर्पित करें।
भगवान को मिठाष्ठन का भोग लगाएं। इसके बाद धूप दीपक दिखाकर उनकी आरती करें। पूजन के अंत में अपनी प्रार्थना कर सभी में प्रसाद वितरण करें मान्यता है कि इस विधि से प्रभु की आराधना करने से भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
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कौन थे भगवान परशुराम जी

धार्मिक मान्यता है कि वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर परशुराम जी का जन्म हुआ था. परशुराम जी को भगवान विष्णु का छठवां अवतार माना जाता है और उन्होंने एक ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया था उनके पिता का नाम जमदग्नि तथा माता का नाम रेणुका था. ऐसा माना जाता है कि परशुराम जी के 4 बड़े भाई थे. इसी दिन अक्षय तृतीया का पर्व भी मनाया जाता है. ऐसा बताया गया है कि परशुराम हर चीज में बहुत निपुण थे इसलिए उन्हें अक्षय भी कहा गया और तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण उनके जन्मोत्सव पर अक्षय तृतीया मनाया जाता है. परशुराम जयंती के दिन आपको अपने रिश्तेदारों, परिवार वालों और दोस्तों को हार्दिक शुभकामनाएं भेजनी चाहिए.
जीवन में उतारे परशुराम जी के ये विचार
1. दुनिया को हिला देने की शक्ति
इंसान के अंदर ही होती है
एक बार परशुराम बनने की देरी है
क्योंकि एक परशुराम हर किसी के अंदर होता है.
2. परिस्थिति, वातावरण कैसा भी हो
उस समय परशुराम बन आप विजय पा सकते हैं.
3. उड़ने में बुराई नहीं है, आप भी उड़े
लेकिन उतना ही जहां से जमीन
साफ दिखाई देती है..
4. वो सर कहीं नहीं झुकते, जो भगवान
परशुराम के सामने सिर झुकाते हैं.
5. जीवन में कभी किसी को दुख मत दो
लेकिन अगर कोई सताए तो बर्दाश्त भी मत करो
6. इंसान को कभी हिंसा नहीं करनी चाहिए
लेकिन अगर बात आपकी जान पर आए
तो अस्त्र ना उठाना कायरता कहलाती है.
परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं.
7. शांत हैं तो श्रीराम हैं, रुद्र हों तो महादेव हैं
वो ही जग का कल्याण हैं, भड़क गए तो परशुराम हैं
8. जीवन में असफलता आना जरूरी है
जीवन में गुस्सा आना भी जरूरी है
शांत रहकर जग जीत सकते हो लेकिन
अक्रामक होकर भी शांत रहना जरूरी है
9. किसी के साथ कभी अत्याचार मत करो
कोई तुम्हारे साथ करे तो भी मत सहो
उठा लो शस्त्र अपनी रक्षा के लिए
किसी को बुरा लगे ऐसी बात भी मत कहो
10. ब्राह्मण बदलते हैं तो नतीजे बदलते हैं
सारे मंजर, सारे अंजाम बदलते है
कौन कहता है परशुराम फिर नहीं पैदा होते
पैदो होते ही लोगों के नाम बदलते हैं.
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देश के प्रख्यात धर्माचार्य और शंकराचार्य आएंगे रायपुर

रायपुर। राजधानी रायपुर में माता कौशल्या की जन्मतिथि तय करने धर्माचार्यों की सभा होगी। इसमें देश के प्रख्यात धर्माचार्य और शंकराचार्य शामिल होंगे। विद्वानों के विमर्श के आधार पर माता कौशल्या की जन्मतिथि तय की जाएगी। राज्य गौसेवा आयोग के अध्यक्ष महंत रामसुंदर दास ने इसकी जानकारी दी है।
माता कौशल्या के जन्म स्थान को लेकर पूछे गए सवालों का भी रामसुंदर दास ने जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि, माता कौशल्या की जन्मस्थली चंदखुरी है। प्रभु श्रीराम को गोद में लिए माता कौशल्या की ऐसी मूर्ति पूरी दुनिया में कहीं नहीं है। गौसेवा आयोग के अध्यक्ष रामसुंदर दास ने भाजपा पर ​तंज कसा है। उन्होंने कहा कि, जिन्हें 15 साल सेवा का अवसर मिला उन्होंने माता कौशल्या को याद नहीं किया। कांग्रेस सरकार ने माता कौशल्या महोत्सव का आयोजन किया है। साथ ही राम वन गमन पथ का निर्माण कराया, मंदिर को संवारने का काम किया।
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सऊदी समेत खाड़ी देशों में आज मनाई जा रही ईद, जानें भारत में ईद कब

सऊदी अरब, यूएई, कतर समेत खाड़ी देशों में आज ईद उल फितर यानी मीठी ईद आज मनाई जाएगी। वहीं भारत में 21 अप्रैल को चांद देखा जाएगा और 22 अप्रैल को ईद मनाई जाएगी। चांद देखने के बाद सऊदी अरब के सुप्रीम कोर्ट ने आज ईद मनाने की घोषणा की थी। बता दें कि रमजान का पाक माह खत्म होने के बाद इस्लामिक कैलेंडर के शव्वाल माह के पहले दिन ईद मनाई जाती है। दुनियाभर के मुस्लिम समुदाय इस पाक माह में रोजा रखते हैं और पूरे इबादत का दौर चलता है। सऊदी अरब में 29 दिनों का रमजान हुआ है, इसलिए भारत में भी उम्मीद की जा रही है कि आज चांद देखने के बाद कल यानी 22 अप्रैल को ईद मनाई जाएगी।
भारत में आज देखा जाएगा चांद
ईद का चांद देखने की तारीख तय नहीं होती है, हर साल माह के अंत में चांद देखने के बाद ही ईद मनाई जाती है। इस साल रमजान माह की शुरुआत 24 मार्च को हुई थी और चांद देखने के बाद रोजा 29 या 30 दिन का होगा। भारत में 21 अप्रैल यानी आज चांद देखा जाएगा और 22 अप्रैल को ईद का पर्व मनाया जाएगा। वहीं पाकिस्तान में भी ईद का चांद नजर नहीं आया और चांद कमेटी ने ऐलान किया कि शव्वाल का चांद नजर नहीं आया। चांद रात के बाद जब सुबह होती है तो उस दिन को ईद उल फितर कहा जाता है। इस दिन नमाज पढ़ी जाती है, दुआ की जाती है और एक दूसरे को ईद की बधाईयां भी दी जाती है।
क्यों मनाई जाती है ईद
इस्लामिक चंद्र कैलेंडर में दसवां माह शव्वल का होता है और 10वें माह के पहले दिन दुनिया भर में ईद का त्योहार मनाया जाता है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, मक्का से मोहम्मद पैगंबर के प्रवाह के बाद पाक शहर मदीना में ईद उल फितर का पर्व मनाया गया। माना जाता है कि पैगंबर मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई जीती थी, जिसकी बाद खुशी का जश्न मनाया गया और एक दूसरे मुंह मीठा करवाया गया। इसी दिन को मीठी ईद या ईद उल फितर के रूप में मनाया जाने लगा।
इस तरह मनाया जाता है ईद उल फितर
ईद उल फितर के दिन नए कपड़े पहनकर सभी लोग ईदगाह जाते हैं और यहां नमाज अदा की जाती है, जिसे सलात अल फज्र कहा जाता है। इसके बाद ईद की बधाइयां दी जाती हैं। यह त्योहार प्रेम और आपसी भाईचारे को दर्शाता है। साथ ही साथ ही एक दूसरे को साथ लेकर चलने का संदेश देता है। नमाज अदा करने के बाद जकात अल फित्र को अनिवार्य बताया गया है। जकात यानी दान देना हर मुसलमान का फर्ज है। मुस्लिम समुदाय के लोग साल भर में अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा बचाते हैं और ईद पर उसे गरीबों व जरूरतमंदों को दान में दे देते हैं। ईद के मौके पर खास दावत तैयार की जाती है, जिसमें मीठा खाना शामिल होता है। इसलिए भारत में और कुछ दक्षिण एशियाई देशों में मीठी ईद कहा जाता है।

 

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अक्षय तृतीया : ज्योतिषाचार्य से जानिए सही तिथि और शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि के दिन अक्षय तृतीया मनाई जाती है। इस विशेष दिन पर स्नान-दान, तप और भगवान विष्णु की उपासना को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। वैदिक ग्रंथों के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम और दशमहाविद्या की देवी भगवती राजराजेश्वरी मातंगी जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन परशुराम जयंती और मातंगी जयंती मनाई जाती है।
बता दें कि अक्षय तृतीया के विशेष अवसर पर सोने और चांदी खरीदारी को बहुत ही शुभ माना जाता है। इसलिए शुभ मुहूर्त में की गई खरीदारी से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। लेकिन इस साल अक्षय तृतीया की तिथि को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति है। ऐसे में आचार्य श्याम चंद्र मिश्र से जानते हैं, अक्षय तृतीया की सही तिथि, शुभ मुहूर्त और खरीदारी का सही समय।
आचार्य मिश्र बताते हैं कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 22 अप्रैल 2023 सुबह 07 बजकर 49 मिनट पर प्रारंभ होगी और इसका समापन 23 अप्रैल 2023 सुबह 07 बजकर 47 मिनट पर होगा। ऐसे में अक्षय तृतीया की पूजा 22 अप्रैल को की जाएगी। पंचांग के अनुसार, पूजा मुहूर्त सुबह 07 बजकर 49 मिनट से दोपहर 12 बजकर 20 मिनट के बीच रहेगा। वहीं पवित्र स्नान ब्रह्म मुहूर्त में 23 अप्रैल 2023 को किया जाएगा।
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