धर्म समाज

फेंगशुई के ये गुड लक टिप्स चमका सकते हैं आपकी किस्मत

पैसों की तंगी होगी छूमंतर
फेंगशुई का चलन आजकल बढ़ता जा रहा है। इसके द्वारा बताए गए टिप्स को फॉलो करके घर में सकारात्मकता को बढ़ाया जा सकता है। जिस प्रकार भारत में वास्तुशास्त्र है उसी तरह फेंगशुई टिप्स चीन में बहुत ज्यादा महत्व रखती है। इसकी कुछ लकी चीजों को लोग भारत में भी अपनाने लगे हैं। कहते हैं कि फेंगशुई की कुछ चीजें घर में रखने सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ता है और व्यक्ति के दुर्भाग्य का नाश होता है।
इसलिए अगर आपको भी जीवन में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो फेंगशुई के अनुसार अपने दैनिक जीवन में कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होगा और उन्हें अपनाकर जीवन में आने वाली समस्याओं को दूर कर सकते हैं। तो आइए जानते हैं क्या करें उपाय-
फेंगशुई के ये उपाय चमका देंगे किस्मत
अगर आपको लंबे समय से पैसों की दिक्कत झेलनी पड़ रही है तो इसके लिए आप अपने घर में बांस का पौधा लगा सकते हैं। माना जाता है कि इस पौधे को घर में लगाने से सुख-समृद्धि आती है और धन की कमी दूर होती है।
घर में सौभाग्य, करियर में तरक्की पाने के लिए फेंगशुई मेंढ़क को घर के लिविंग रूम में स्थापित करना अच्छा माना जाता है। इसके लिए आपको अपने लिविंग रूम में साउथ ईस्ट में रखना होगा। इससे करियर में तरक्की सहित सौभाग्य में वृद्धि होती है।
घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा चाहते हैं तो घर में फेंगशुई लॉफिंग बुद्धा की प्रतिमा रखें। लेकिन इसे रखते वक्त एक बात का ध्यान रखें कि ये नियमानुसार रखा होना चाहिए, जल्द लाभ प्राप्त होता है।
नौकरी-व्यवसाय में तरक्की पाने के लिए घर में एक सुंदर विंड चाइम लगाएं। विंड चाइम लगाने से व्यापार में तरक्की के नए रास्ते खुलते हैं। फेंगशुई द्वारा यह उपाय करने से व्यक्ति की प्रगति की नई राह खुलती है।
फेंगशुई के अनुसार अगर आप बिजनेस में तरक्की पाना चाहते है, तो कार्यस्थल पर दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाए हुए लॉफिंग बुद्धा की मूर्ति को रख लें।
डिसक्लेमर
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क्या आप भी बिल्ली के रास्ता काटने पर रुक जाते हैं?

जानिए इसके पीछे का कारण
बिल्ली के रास्ते के बीच में आने पर हम में से कई लोगों के दिमाग में अजीब बातें आती होंगी। बिल्ली का रास्ता काटना, बिना वजह रोना, बिल्ली का घर के आसपास मरना। ऐसी ही कई सारी चीजों को हमारे देश में अपशकुन के रूप में देखा जाता है। ज्यादातर लोग बिल्ली के रास्ता काटने को भविष्य के लिए किसी बुरी घटना का संकेत मानते हैं। कहा जाता है कि यदि किसी शुभ काम के लिए या किसी यात्रा के लिए घर से निकलते समय बिल्ली रास्ता काट जाए तो सफलता मिलना मुश्किल होता है। आइए जानते हैं कि क्या सच में बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ संकेत होता है।
ज्योतिष शास्त्र में बिल्ली को राहु की सवारी माना गया है। ये ग्रह एक राक्षस का स्वरूप होता है। ऐसा माना जाता है कि किसी के जीवन में राहु का आगमन जीवन में अशुभ संकेतों का कारण बनता है। राहु की सवारी होने की वजह से बिल्ली का रास्ता काटना अशुभ माना गया है।
मान्यता है कि राहु दुर्घटना के कारक हैं, इसलिए बिल्ली का रास्ता काटना किसी दुर्घटना का संकेत हो सकता है। इसी वजह से लोग बिल्ली के रास्ते में आने को जीवन के लिए काफी अशुभ मानते हैं।
यदि बिल्ली आपके सामने से बाईं से दाईं तरफ निकले तो ये आपके लिए एक अशुभ संकेत हो सकता है। ये इस बात की ओर इशारा करता है कि आप जिस भी काम के लिए जा रहे हैं, उसमें सफलता मिलना मुश्किल है।
यदि बिल्ली आपके घर की दक्षिण दिशा की ओर रो रही है, तो ये भी आपके लिए एक अशुभ संकेत है। बिल्ली रोते हुए किसी अनहोनी के बारे में आपको सतर्क करती है।
ऐसी मान्यता है कि जिस घर में काली बिल्ली का प्रवेश होता है, वहां नकारात्मक शक्तियां भी आ जाती हैं। कई जगहों पर काली बिल्ली को बुरी आत्माओं का वाहक भी माना जाता है।
अगर बिल्ली आपके घर में आकर रोने लगे तो कोई अनहोनी घटना हो सकती है। बिल्लियों का आपस में लड़ना भी धन हानि का संकेत होता है। यदि बिल्ली आपके घर में दिवाली की रात आए तो ये माता लक्ष्मी का स्वरूप माना जाती है और आपके लिए धन का संकेत होते हैं।
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चैत्र नवरात्रि की किस दिन होगी कलश स्थापना

मंदिर की साफ-सफाई कर सफेद या लाल कपड़ा बिछाएं.
हिंदू पंचांग के मुताबिक, साल भर में 4 बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, जिसमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि है और दो गुप्त नवरात्रि है. आपको बता दें कि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को चैत्र नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है. इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है. इस बार चैत्र नवरात्रि का त्योहार 22 मार्च, बुधवार से प्रारंभ हो रहा है और इसका समापन 30 मार्च को होगा. नवरात्रि के मौके पर जो भी श्रद्धालु विधि विधान से माता की पूजा करते हैं, मां दुर्गा उनसे प्रसन्न होकर उन पर अपने आशीर्वाद की बारिश करती हैं. जिसके चलते उनके जीवन में सुख समृद्धि का आगमन होता है.
कलश स्थापना का दिन, तारीख और शुभ मुहूर्त
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को चैत्र नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है. इस बार चैत्र नवरात्रि का त्योहार 22 मार्च, बुधवार से प्रारंभ हो रहा है. ऐसे में कलश की स्थापना भी 22 मार्च 2023, दिन बुधवार को ही की जाएगी. वही कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त की बात करें, तो सुबह 06 बजकर 23 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 32 मिनट तक (अवधि 01 घंटा 09 मिनट) तक शुभ मुहूर्त रहने वाला है.
कलश स्थापना कैसे करें?
कलश स्थापना के लिए सबसे पहले सुबह उठकर स्नान आदि करके साफ सुथरे वस्त्र धारण करने चाहिए.
मंदिर की साफ-सफाई कर सफेद या लाल कपड़ा बिछाएं.
इस कपड़े पर थोड़े चावल रखें.
एक मिट्टी के पात्र में जौ बो दें.
इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें.
कलश पर स्वास्तिक बनाकर इसपर कलावा बांधें.
कलश में साबुत सुपारी, सिक्का और अक्षत डालकर अशोक के पत्ते रखें.
एक नारियल लें और उस पर चुनरी लपेटकर कलावा से बांधें. इस नारियल को कलश के ऊपर पर रखते हुए देवी दुर्गा का आवाहन करें.
इसके बाद दीप आदि जलाकर कलश की पूजा करें.
नवरात्रि में देवी की पूजा के लिए सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश स्थापित करने की परंपरा है.
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मां बम्लेश्वरी का गर्भगृह सोने से सजा

मंदिर ट्रस्ट ने दी जानकारी
डोंगरगढ़। इस बार नवरात्र में डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर विराजी मां बम्लेश्वरी का दरबार भव्य नजर आएगा, क्योंकि मंदिर के गर्भगृह की दीवारों पर सोने से राजस्थानी शैली की कलाकृतियों को उकेरा गया है. गर्भगृह को 3 किलो सोने से सजाया गया है. इसके लिए मंदिर ट्रस्ट ने दान में मिले सोने का उपयोग किया है.
चैत्र नवरात्रि 22 मार्च से शुरू हो रहा है. इसके लिए मंदिरों में तैयारियां शुरू हो गई है. डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर विराजी मां बम्लेश्वरी के गर्भगृह को जयपुर, राजस्थान के कारीगरों ने सोने से सजाया है. दीवारो में सोने से सुंदर कलाकृति उकेरी गई है. इस काम को 26 फरवरी से 13 मार्च तक पूरा किया गया है. बताया जा रहा कि इस काम के लिए कारीगरों को मंदिर ट्रस्ट सात लाख रुपए का भुगतान करेगी.
मां बम्लेश्वरी मंदिर राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर 1,600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां साल में दो बार (चैत्र व क्वांर) में नवरात्रि पर मेला लगता है, जहां करीब 20 लाख भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. सामान्य दिनों में भी श्रद्धालु माई के दरबार में हाजिरी लगाने आते हैं. विदेशों से भी भक्त मां बम्लेश्वरी मंदिर में अपनी मनोकामना लेकर आते हैं. पहाड़ी के नीचे छोटी बम्लेश्वरी का मंदिर है, जिन्हें बड़ी बम्लेश्वरी की छोटी बहन कहा जाता है. यहां बजरंगबली मंदिर, नाग वासुकी मंदिर, शीतला मंदिर भी है.
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जिस घर के मुखिया में होते हैं ये 5 गुण...

 
उस परिवार में कभी नहीं मंडराता संकट
चाणक्य नीति में कई ऐसे टिप्स बताए गए हैं, जिसका अनुसरण कर व्यक्ति अपने जीवन खुशहाल बना सकता है। आचार्य द्वारा रचित नीतिशास्त्र वर्तमान समय के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। इसमें व्यक्ति को सामाजिक, व्यवसायिक, आर्थिक और कूटनीतिज्ञ नीतियों का इस्तेमाल की सलाह मिलती है।
आचार्य चाणक्य के नीतिशास्त्र चाणक्य नीति में कई ऐसी नीतियों का जिक्र किया गया है जो कि आपको सफलता की राह तक ले जाती हैं। आचार्य चाणक्य का मानना है कि घर की तरक्की उसके मुखिया पर निर्भर करती है। यदि घर का मुखिया समझदार है तो वह हर परिस्थिति में अपने परिवार को साथ लेकर चलेगा। इसलिए घर के मुखिया में कुछ गुण अवश्य होने चाहिए। आचार्य चाणक्य के अनुसार घर के मुखिया में यदि ये विशेष गुण न हो तो उस घर में कभी भी बरकत नहीं होती। आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य के इन गुणों के बारे में।
पैसे की बचत
आचार्य चाणक्य के अनुसार घर के मुखिया को पैसे की बचत करनी चाहिए। घर के मुखिया की जिम्मेदारी है कि वह पैसे की बचत करे ताकि भविष्य में जरूरत के समय उसे किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े।
अपने निर्णय पर रहे अडिग
आचार्य चाणक्य के अनुसार परिवार तरक्की तभी करता है जब घर का मुखिया जो भी निर्णय ले उस पर अडिग रहे। घर में वह अनुशासित माहौल कायम रखे। ऐसा करने से ही घर के सदस्य तरक्की करेंगे।
न हो कान के कच्चे
आचार्य चाणक्य के अनुसार घर के मुखिया को किसी भी बात पर बिना प्रमाण के भरोसा नहीं करना चाहिए। यानी घर का मुखिया कान का कच्चा नहीं होना चाहिए। यदि घर में कोई मनमुटाव चल रहा है तो दूं पक्षों को सुनकर फिर बात की पुष्टि करके ही मामला सुलझाने का प्रयास करना चाहिए।
निर्णय लेते समय सावधानी
आचार्य चाणक्य के अनुसार घर का मुखिया जब भी कोई निर्णय ले उसे इस बात का भरोसा होना चाहिए कि उसके निर्णय से परिवार के किसी भी सदस्य को कोई हानि नहीं पहुंचेगी।
खर्चे पर नियंत्रण
आचार्य चाणक्य के नीतिशास्त्र के अनुसार घर के मुखिया की जिम्मेदारी होती है कि वह घर को जितनी कमाई हो उसके हिसाब से चलाए। ऐसे में बिना वजह के खर्चों पर काबू रखना चाहिए। यदि घर का मुखिया ऐसा नहीं करता है तो उसे आर्थिक संकट झेलना पड़ सकता है।
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रोजाना सोने से पहले करें ये काम, मां लक्ष्मी होगी खुश

रोज शाम को घर के मुख्य द्वार पर दीपक जरूर जलाएं
वास्तु शास्त्र में सुख-समृद्धि, सौभाग्य पाने के काफी उपाय बताए गए है। इन उपायों का नियमित पालन करने से व्यक्ति वास्तु दोष और दरिद्रता से छुटकारा पा सकता है। वास्तु शास्त्र में देवी देवताओं की पूजा करते समय कौन सी गलतियां हमें नहीं करनी चाहिए, इसके बारे में विस्तार से भी बताया गया है। धन की देवी महालक्ष्मी की कृपा जिस भी घर में होती है, वहां लोगों को किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता साथ ही घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास भी रहता है।
रोजाना सोने से पहले करें यह काम
हमेशा रात को सोने से पहले किचन में एक बाल्टी पानी भर कर रख दें। ऐसा करने से व्यक्ति को कर्ज से मुक्ति मिल जाएगी और पैसों की तंगी से छुटकारा मिलेगा। इसके साथ हमेशा सोने से पहले रसोई घर को साफ करके सोए और जूठे बर्तन कभी ना छोड़ें।
हमेशा रात को सोने से पहले थोड़ा सा कपूर जलाएं और इसका धुआं बेडरूम के साथ-साथ पूरे घर में भी फैला दें। माना जाता है कि ऐसा करने से घर में मौजूद सारी नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है और मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है और घर परिवार में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार बाथरूम में कभी भी बाल्टी को खाली नहीं रखना चाहिए। माना जाता है कि रात को सोने से पहले बाथरूम में बाल्टी भरी हुई रखने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। ऐसा करने से कभी भी घर में धन की कमी नहीं होती है।
रोजाना शाम को घर के मुख्य द्वार पर दीपक जरूर जलाएं और इसी रात भर जलने दें। उसके बाद उस दिशा में एक लाइट जला दें। ऐसा करने से घर में मां लक्ष्मी का हमेशा वास रहता है।
 
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बुधवार को करें ये उपाय, गणेश जी होंगे प्रसन्न

बुधवार के दिन गणेश जी को सिंदूर अर्पित करें. ऐसा करने से जीवन में सभी समस्याएं समाप्त होती हैं.
हिंदू धर्म में सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी देवी देवता को समर्पित होते हैं और आज बुधवार का दिन है. बुधवार का दिन भगवान गणेश जी को समर्पित है. बुधवार के दिन भगवान गणेश जी का विधि-विधान से पूजन किया जाता है और मान्यता है कि यदि गणेश जी प्रसन्न हो जाएं तो जातक पर विशेष कृपा बरसाते हैं. जिसके बाद आपके जीवन में कभी धन-दौलत की कमी नहीं होगी. बुधवार के दिन आपको कुछ विशेष उपाय भी करने चाहिए जिससे गणेश जी को प्रसन्न किया जा सके. यहां हम आपको बुधवार के दिन किए जाने वाले सरल उपायों के बारे में जानकारी दे रहे हैं.
बुधवार के दिन भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए व्रत-उपवास भी किया जाता है. यदि आप भी व्रत कर रहे हैं तो ध्यान रखिए कि सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर गणेश जी पूजा करें. भगवान गणेश जी की पूजा करते समय उन्हें हरी दूर्वा जरूर चढ़ाएं. यह काफी शुभ मानी जाती है. बुधवार के दिन गाय को हरा चारा खिलाना भी काफी शुभ और लाभकारी माना जाता है. इसलिए कोशिश करें इस दिन गाय को हरा चारा जरूर खिलाएं. बुधवार के दिन भोजन के रूप में मूंग की दाल की पंजीरी या हलवा का भोग लगाकर उसके प्रसाद के तौर पर वितरित किया जाता है. इसके बाद शाम को व्रती स्वंय यह प्रसाद लेकर व्रत खोलता है. बुधवार के दिन भगवान गणेश जी की पूजा के बाद गणेश चालीसा का पाठा जरूर करें तभी पूजा सम्पूर्ण मानी जाती है. बुधवार के दिन गणेश जी को सिंदूर अर्पित करें. ऐसा करने से जीवन में सभी समस्याएं समाप्त होती हैं. 7 बुधवार तक गणेश जी के मंदिर में जाकर गुड़ का भोग लगाना चाहिए.
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विदुर की इस नीति से कभी नहीं होगी धन की कमी

विदुर नीति में बताया गया है कि धन के बचत के लिए मन को काबू रखना जरूरी है.
हिन्दू ग्रंथों में जीवन-जगत के व्यवहार में राजा और प्रजा के दायित्वों की विधिवत नीति की व्याख्या करने वाले महापुरुषों में महात्मा विदुर सुविख्यात हैं. उनकी विदुर नीति वास्तव में महाभारत युद्ध से पूर्व युद्ध के परिणाम के प्रति शंकित हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र के साथ उनका संवाद है. महात्मा विदुर के पिता ऋषि वेदव्यास थे. इनका जन्म एक दासी के गर्भ से हुआ था. इसलिए, गुणों से परिपूर्ण होने के बाद भी विदुर कभी हस्तिनापुर के राजा नहीं बन पाए.
इन नीतियों को अपनाने से कमाएंगे खूब पैसा
आइए जानते हैं की विदुर नीति में ऐसी कौन सी बातें है जिन्हें अपनाने या पालन करने मात्र से ही कभी भी पैसों की कमी नहीं होगी-
महात्मा विदुर कहते हैं पैसों का सही इस्तेमाल करें. जिस धन को खर्च करने से मन में सवाल उठ रहे हों या फिर किसी प्रकार की कोई हानी हो तो उसका खर्च करने का ख्याल हटा देना चाहिए. विदुर नीति में कहा गया है कि सही तरीके से अर्जित किया हुआ धन यश दिलाता है और आर्थिक तरक्की का मार्ग भी बनाता है. इसलिए व्यक्ति को हमेशा सत्य के रास्ते पर चलना चाहिए लेकिन आजकल लोग जल्दी धन कमाने के चक्कर में गलत रास्ता पकड़ लेते हैं. और गलत रास्ते से कमाया हुआ धन बर्बादी का कारण बनता है.
कभी नहीं होगी धन की कमी
विदुर नीति में बताया गया है कि धन के बचत के लिए मन को काबू रखना जरूरी है. मनुष्य का मन बदलता रहता है. हाथ में धन आते ही वो उसे खर्च करने पर विचार करने लगता है और अक्सर इसी चक्कर में हानी भी होती है. इसलिए अपने मन पर काबू रखना बेहतर होगा तभी सही से बचत कर पाएंगे.
महात्मा विदुर के अनुसार जीवन में हालात कैसे भी हों, हमेशा धैर्य बनाए रखना चाहिए. बुरे समय में धैर्य खोकर गलत काम न करें और ज्यादा पैसा होने पर भी बुरी लतों के चक्कर में न फंसे. दोनों ही स्थितियों में धैर्य बनाए रखें. वरना जीवन बर्बाद हो सकता है.
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मंगलवार के दिन ना करें ये काम

हनुमान जी की पूजा करने के लिए मंगलवार का दिन सबसे अहम माना जाता है। बजरंगबली की पूजा करने के लिए इस दिन मंदिरों में भक्तों का अंबार लग जाता है। भगवान हनुमान को खुश करने के लिए कोई मंत्र का जाप करता है तो कोई चालीसा या हनुमानाष्टक का पाठ करता है लेकिन मंगलवार को कुछ ऐसे काम हैं जो नहीं करने चाहिए। इन कामों को करने से बजरंगबली नाराज हो जाते हैं। मंगलवार का दिन हनुमान जी और मंगलदेव को समर्पित होता है।
इन कामों को करने से बजरंगबली हो जाते हैं नाराज
साथ ही मंगलवार का व्रत रखते समय कुछ बातों का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है। इस दिन जाने -अंजाने में की गई गलती के कारण बजरंगबली आपसे नाराज हो सकते हैं। आप सुंदरकांड के श्लोकों का पाठ करते हैं, तो हनुमान जी आप पर प्रसन्न होंगे। उनकी कृपा से आपके सब काम पूर्ण होंगे। मंगलवार को जन्मे पवनपुत्र हनुमान जी संकटमोचन हैं। मंगलवार का दिन हनुमान जी की भक्ति में स्वयं को समाहित कर लेने का अवसर है। आज स्नान के बाद बजरंगबली को बूंदी, सिंदूर, लाल कपड़ा, फल आदि चढ़ाकर पूजा करनी चाहिए।
मंगलवार के दिन ना करें ये काम
मंगलवार के दिन नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। इससे आपको हर काम में बाधा का सामना करना पड़ता है और सेहत पर भी काफी बुरा असर पड़ता है। साथ ही आप ध्यान रखें इस दिन मांस, मछली अंडा का सेवन नहीं करना चाहिए। इससे आपका अच्छा खासा जीवन बर्बाद हो सकता है। वहीं इस बात का ख्याल रखें इस दिन किसी को भी कर्ज नहीं देना चाहिए। कर्ज देने से उसके वापस मिलने की संभावना काफी कम हो जाती है।
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भूतेश्वर महादेव: शिव भक्तों के लिए खास है आज का दिन

गरियाबंद। भगवान शिव के प्रति गहरी आस्था रखने वाले शिव भक्तों के लिए सोमवार खास दिन होता है. हर सोमवार को भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन शिवलिंग की विधि विधान से पूजा करने पर हर मनोरथ सफल होता है.छत्तीसगढ़ में भी एक ऐसा शिवलिंग हैं. जिसे ज्योतिर्लिंग की तरह ही मानकर उसकी पूजा की जाता है. पिछले कछ सालों से देशभर के शिव भक्तों में इस शिवलिंग को लेकर काफी चर्चा है.
गरियाबंद के जंगलों में एक गांव मरौदा है. जहां अर्धनारीश्वर प्राकृतिक शिवलिंग है. जिसे भूतेश्वर महादेव के नाम से पूजा जाता है. यह शिवलिंग 85 फीट ऊंचा है, साथ ही 105 फीट गोलाकार आकार का है. जिनके दर्शन करने दूर दूर से हर साल कई लोग आते हैं. यह गांव राजधानी रायपुर से 90 किमी दूर गरियाबंद के जंगलों में है. यहां हर साल सावन में एक मेला भी लगता है. सोमवार को यहां भगवान भोलेनाथ की पूजा करने से कई तरह की मनोकामनाएं पूरी होती है.
आसपास के गांव के लोग और श्रध्दालु मानते हैं कि यहां जो शिवलिंग है, वह साल करीब 6 से 8 इंच तक बढ़ रही है. लोग बताते हैं कि पहले भूतेश्वर महादेव एक छोटे रूप में थे, एक टीले जैसे दिखते थे. तब से लेकर आज तक इनका आकार धीरे धीरे बढ़ रहा है. शिवलिंग में जललहरी भी दिख रहा है. जो जमीन के ऊपर आता दिखता है. इसी वजह से देश भर में इन्हें भूतेश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा.
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इन उपाय से घर में आएगी शांति

जीवन में हर व्यक्ति सुख, शांति चाहता है। इसके लिए सभी भगवान से प्रार्थना करते हैं। जिससे हमें मुश्किलों का समाना न करना पड़े। कभी-कभी जीवन इतना उथल-पुथल भरा होता है कि हमें समझ ही नहीं आता कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है। फिर हम दोष देते हैं अपनी फूटी किस्मत को। दरअसल ऐसा इसलिए होता है क्यों कि रोजमर्रा जीवन में हम अनजाने में कुछ ऐसी गलत चीजें करते हैं जिसका दुर्भाग्यवश हमें खुद पता नहीं होता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि व्‍यक्ति हमेशा पूर्व दिशा में बैठकर भोजन करे तो जीवन में खुशहाली रहती है।
इसका नकारात्मक फल हमें भुगतना पड़ता है। इन्हीं चीजों को लेकर ज्योतिष विद्या में कुछ नियम और उपाय दिए गए हैं इन उपायों से परेशानियां कम और सुख चैन पा सकते हैं।
ज्‍योतिष शास्‍त्र के अनुसार यदि आर्थिक तंगी से छुटकारा पाना चाहते हैं तो रविवार को गूलर के पेड़ की पूजा करके धन के स्‍थान पर रख दें। इससे जल्‍द ही आप पर मां लक्ष्‍मी की कृपा होगी।
रूद्राक्ष की माला से प्रतिदिन ठीक सूर्योदय के समय पूर्व की ओर मुंह करके सूर्य की उपस्थिति में गायत्री मंत्र का जाप करने से भाग्य प्रबल होता है।
पूजा-पाठ में उपयोग हुए फूल या अन्‍य सामग्री की अवमानना न करें। इन सूखे फूलों को प्रवाहित जल में बहा दें। ऐसा न हो तो गड्ढा करके दबा दें। क्योंकि कई बार इन चीजों को इधर-उधर फेंकने से दोष लगता है।
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भालचंद्र गणेश चतुर्थी 2023 शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का व्रत रखने का विधान है। इसे भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जानते हैं। इस गणेश चतुर्थी पर काफी शुभ योग बन रहे हैं। पंचांग के अनुसार, भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी पर चित्रा, स्वाति नक्षत्र के साथ-साथ धुव्र और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। जानिए भालचंद्र संकष्टी गणेश चतुर्थी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और चंद्रोदय का समय।
बता दें कि पंचांग के अनुसार साल में दो बार चतुर्थी तिथि पड़ती है पहली कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष में। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व है। इस दिन विधि विधान से गणेश जी पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
भालचंद्र गणेश चतुर्थी 2023 शुभ मुहूर्त
कृष्ण पक्ष चतुर्थी आरंभ- 10 मार्च को रात 9 बजकर 42 मिनट से शुरू
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि समाप्त- 11 मार्च को रात 10 बजकर 5 मिनट तक
तिथि- उदया तिथि के कारण संकष्टी चतुर्थी का व्रत 11 मार्च 2023 को रखा जा रहा है।
चित्रा नक्षत्र- सूर्योदय से 7 बजकर 11 मिनट तक
स्वाति नक्षत्र- सुबह 7 बजकर 11 मिनट से 12 मार्च को सुबह 8 बजे तक
धुव्र योग- सूर्योदय से शाम 7 बजकर 51 मिनट तक
चंद्रोदय का समय- रात 9 बजकर 47 मिनट पर
सर्वार्थ सिद्धि योग - सुबह 7 बजकर 11 मिनट से 12 मार्च को 6 बजकर 25 मिनट तक
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 2023 पूजा विधि
गणेश चतुर्थी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें। इसके बाद भगवान गणेश का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प ले लें। फिर गणपति जी की विधि-विधान से पूजा करें। सबसे पहले जल से आचमन करें। इसके बाद फूल, माला, रोली, अक्षत, दूर्वा आदि अर्पित करें। इसके बाद जनेऊ चढ़ाएं और एक पान में 1 सुपारी, 2 लौंग, इलायची और बताशा करके चढ़ा दें। इसके बाद मोदक या कुछ मीठे का भोग लगा दें। इसके बाद फिर जल अर्पित करें। अब घी का दीपक जलाने के बाद गणेश चालीसा, मंत्र आदि का पाठ करें। अंत में आरती करके भूल चूक के लिए माफी मांग लें।
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कब है गणगौर पर्व और क्या है इसका महत्व

गणगौर पर्व की शुरुआत फाल्गुन मास की पूर्णिमा यानी होलिका दहन के साथ हो जाती है, जो चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि तक चलता है... यह शिव जी और माता गौरा का त्योहार गणगौर के रूप में मनाया जाता है। इसलिए इस साल गणगौर 8 मार्च से शुरू होकर 24 मार्च 2023 को समाप्त होगा।
गणगौर पूजा 2023 तिथि और शुभ मुहूर्त, गणगौर 2023 की तिथि- 24 मार्च 2023, शुक्रवार, तृतीया तिथि प्रारंभ- 23 मार्च 2023 को शाम 6 बजकर 20 मिनट पर, तृतीया तिथि समापन- 24 मार्च 2023 को शाम 4 बजकर 59 मिनट।
गणगौर 2023 धार्मिक महत्व
गणगौर व्रत का विशेष महत्व है। चैत्र शुक्ल तृतीया का दिन गणगौर पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को सुहागन और कुंवारी कन्याएं धूमधाम से मनाती है। इस दिन माता पार्वती और शिव जी की पूजा करने का विधान है। महिलाएं पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य के लिए और कुंवारी कन्याएं मनचाहा पति पाने के लिए इस व्रत को रखती हैं।
गणगौर लोकपर्व होने के साथ-साथ रंगबिरंगी संस्कृति का अनूठा उत्सव है। यह पर्व विशेष तौर पर केवल महिलाओं के लिए ही होता है।
शिव-पार्वती हमारे आराध्य हैं, पूज्य हैं। इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। इस दिन सुहागिनें दोपहर तक व्रत रखती हैं। महिलाओं नाच-गाकर, पूजा-पाठ कर हर्षोल्लास से यह त्योहार मनाती हैं।
कैसे करें गणगौर व्रत
चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए। इस दिन से विसर्जन तक व्रती को एकासना (एक समय भोजन) रखना चाहिए। इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईसर का रूप माना जाता है। जब तक गौरीजी का विसर्जन नहीं हो जाता (करीब आठ दिन) तब तक प्रतिदिन दोनों समय गौरीजी की विधि-विधान से पूजा कर उन्हें भोग लगाना चाहिए। गौरीजी की इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएँ जैसे काँच की चूड़ियाँ, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि चढ़ाई जाती हैं। सुहाग की सामग्री को चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि से विधिपूर्वक पूजन कर गौरी को अर्पण किया जाता है। इसके पश्चात गौरीजी को भोग लगाया जाता है। भोग के बाद गौरीजी की कथा कही जाती है। कथा सुनने के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियों को अपनी मांग भरनी चाहिए। कुँआरी कन्याओं को चाहिए कि वे गौरीजी को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) को गौरीजी को किसी नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर उन्हें स्नान कराएं। चैत्र शुक्ल तृतीया को भी गौरी-शिव को स्नान कराकर, उन्हें सुंदर वस्त्राभूषण पहनाकर डोल या पालने में बिठाएं। इसी दिन शाम को गाजे-बाजे से नाचते-गाते हुए महिलाएं और पुरुष भी एक समारोह या एक शोभायात्रा के रूप में गौरी-शिव को नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर विसर्जित करें। इसी दिन शाम को उपवास छोड़ा जाता है।
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धर्मनगरी राजिम में गूंजा ‘श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र’

बाबा कुलेश्वरनाथ के दर्शन करने भारी संख्या में पहुंचे श्रद्धालु
राजिम। छत्तीसगढ़ की धर्मनगरी प्रयागराज राजिम में स्थित भगवान कुलेश्वरनाथ जी का फाल्गुनी चतुर्थी के अवसर पर फुड़हर के फूलों से विशेष श्रृंगार किया गया, जिसके दर्शन के लिये बाबा कुलेश्वरनाथ के मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रही।
भक्त भारी संख्या में सुबह से ही बाबा के दर्शन के लिये मंदिर पहुंच रहे हैं। साथ ही हर हर महादेव, ॐ नमः शिवाय व श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र का जाप करते हुए बाबा का जयघोष भी कर रहे है। बाबा की ये अद्भुत तस्वीर मंदिर के सहायक पुजारी महंत मोहननाथ योगी ने हमे उपलब्ध करायी है।
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श्री मारुति महायज्ञ के लिए विधि विधान से हुआ धरती पूजन

महासमुन्द। छह अप्रैल से शहर के दादाबाड़ा में आयोजित होने वाले पांच दिवसीय मारूति महायज्ञ के लिए आज शुक्रवार को विधि विधान से पं पंकज महाराज के सानिध्य में मुख्य यजमान संसदीय सचिव विनोद सेवनलाल चंद्राकर व उनकी धर्मपत्नी निर्मला चंद्राकर ने धरती पूजन किया। इस मौके पर आयोजन समिति के सदस्य व नगरवासी मौजूद थे जिन्होंने मां धरती व मुख्य खंभ का पूजन किया। इस दौरान सफल आयोजन के लिए समिति के सदस्यों के साथ विचार विमर्श किया गया।
शुक्रवार की सुबह शहर के दादाबाड़ा में मारुति महायज्ञ के लिए धरती पूजन का कार्यक्रम आयोजित था। जिसमें नगर पुरोहित पं पंकज महराज के सानिध्य में धरती पूजन का कार्यक्रम शुरू हुआ। मुख्य यजमान के रूप में संसदीय सचिव विनोद सेवनलाल चंद्राकर व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती निर्मला चंद्राकर की उपस्थिति में विधि विधान से महायज्ञ के लिए पूजा अर्चना की गई। बाद इसके श्री मारुति महायज्ञ की तैयारियों को लेकर विचार विमर्श किया गया। कलश यात्रा में अधिक से अधिक संख्या में श्रद्धालुओं की भागीदारी सुनिश्चित किए जाने जिम्मेदारी तय की गई। साथ ही यज्ञ मंडप, प्रवचन मंडप, भंडारा को लेकर भी समिति के सदस्यों के बीच चर्चा हुई। बताया गया कि यहां 21 कुंड का निर्माण होना है, जिसमें सौ जोड़ा यज्ञ में शामिल होंगे। धरती पूजन कार्यक्रम में प्रमुख रूप से जनपद अध्यक्ष यतेंद साहू, रश्मि चंद्राकर, सेवनलाल चंद्राकर, दाऊलाल चंद्राकर, संजय शर्मा, बाबूलाल साहू, राजेश लूनिया, नुकेश चंद्राकर, जागेश्वर चंद्राकर, ढेलू निषाद, जसबीर ढिल्लो, हार्दिक सोना, राजू यादव, गोविंद साहू, किशन देवांगन, प्रमोद तिवारी, आरएस माली, रिखीराम साहू, प्रकाश साकरकर, विजय साव, ईश्वर सिन्हा, विष्णु चंद्राकर, रेवाराम सेन, अजय थवाईत, नितेन्द्र बेनर्जी, आवेज खान, योगेश्वर सिन्हा, विक्रम ठाकुर, गिरजाशंकर चंद्राकर, रिंकू चंद्राकर, शोभा शर्मा, दिलीप जैन, भोला निषाद, कमल प्रजापति, राहुल ध्रुव, सुभाष शर्मा, तारिणी चंद्राकर, राजू चंद्राकर, अरविंद प्रहरे, जितेंद्र साहू पप्पू, लोमेश चंद्राकर, प्रिंस चंद्राकर, रवि चंद्राकर, योगेश चन्द्रनाहू, महेंद्र जैन, अमन चंद्राकर, जावेद चौहान, कैलाश साहू, सुनील चंद्राकर, रमन सिन्हा, शम्भू साहू, बद्री लढा, भरत लड्ढा, भावेश राजा, विपिन महंती, मृत्यंजय बोस, दीपक साकरकर, मीना वर्मा, तारा चंद्राकर, मूलचंद लड्ढा, बलराम लालवानी, राजेश नायक, गुमान जैन, सुरेंद्र स्वामी, अनुराग चंद्राकर, रेखराज पटेल, हर्ष शर्मा, ममता चंद्राकर, बसंत पदमवार, भाऊ राम साहू, जीवन यादव आदि मौजूद रहे।
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ब्रह्माकुमारी आशा दीदी ने खेली होली

भिलाई। होली के अर्थ स्वरूप में स्थित हो कर देह भान, अभिमान ,अहंकार को समाप्त कर सच्ची होली मनानी है| जो कुछ पास्ट हुआ अर्थात बीती सो बीती पुराने संस्कारों की होली जलाकर श्रेष्ठ गुणों के रंगों से अलौकिक होली मनाओ। उक्त उदगार सेक्टर 7 स्थित पीस ऑडीटोरियम में प्रातः राजयोग सत्र के पश्चात भिलाई सेवाकेंद्रो की निदेशिका ब्रह्माकुमारी आशा दीदी ने कही. आपने बताया की गुणों,शक्तियों, स्नेह ,सहयोग, शांति, खुशी के अविनाशी रंग सभी को सदा लगाते रहो| व्यर्थ कमजोरी के संकल्पों, दुख देने वाले संस्कारों का होलिका दहन करो.
परमात्मा पिता के संग के रंग में सदा रहे तो सब वैर विरोध विस्मृत हो आत्मिक स्वरूप का भान रहता है यह होली सर्वश्रेष्ठ होली है. आत्मिक स्मृति का तिलक लगाकर गुलाबाशि एवं खुशियों की पिचकारी से संस्कार मिलन की रास द्वारा उमंग उत्साह से होली पर्व मनाया गया.
संध्या होली स्नेह मिलन में डिवाइन ग्रुप के बच्चों द्वारा जैसा होगा अन्न वैसा होगा मन, जैसा पानी वैसी वाणी, जीवन में सात्विक भोजन का महत्व एवं फ्लाइ, क्लेप, वाक्, डांस, जंप, उल्टा पुल्टा दिमागी कसरत, नेता जी की जय हो, शांति की तलाश, गप्पू बाबा जाने मन की बात, मनमत, परमत एवं श्रीमत शिक्षाप्रद हास्य नाटक प्रस्तुत किया गया. भावनात्मक हृदयस्पर्शी नाटक द्वारा दर्शाया गया की धन कमाने की अंधी दौड़ में सद्भावना, धैर्यता, ईमानदारी, नम्रता जैसे गुणों को दरकिनार कर और झूठ, छल कपट, बेईमानी, भ्रष्टाचार से कमाया गया धन जीवन के अंतिम समय में पश्चाताप एवं दुख अशांति ही लाता है. गणेश जी द्वारा डमरु एवं पिचकारी से नृत्य करते हुए सन्देश दिया गया की पिज्जा बर्गर को छोड़ भारतीय भोजन पद्धति एवं योगयुक्त जीवन शैली को जीवन में धारण करने का संदेश दिया।
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ज्योतिर्लिंग और शिवलिंग में क्या है अंतर

ज्योतिर्लिंग शब्द का अर्थ है प्रकाश स्तंभ। पुराणों के अनुसार, भगवान एक ज्योति के रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुए थे। पृथ्वी पर 12 अलग-अलग जगहों पर दिव्य ज्योति के रूप में परमपिता परमेश्वर स्वयं विराजित हुए थे और इन्हीं जगहों को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।
ज्योतिर्लिंग क्या है?
यदि आप शिव पुराण पढ़ें तो वहां एक कथा का वर्णन है जिसके अनुसार एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु भगवान में बहस छिड़ गई कि कौन सर्वश्रेष्ठ है। दोनों ही अपने आप को सर्वश्रेष्ठ बताने लगे और इस समस्या का हल निकालने के लिए भगवान शंकर एक प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट हुए।
भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा जी से जब इस प्रकाश स्तंभ का कोई भी एक सिरा ढूंढने को कहा गया तो भगवान विष्णु ऊपर की ओर और ब्रह्माजी नीचे की ओर गए परंतु दोनों ही इस कार्य में असफल रहे। बाद में शिवजी ने इस प्रकाश स्तंभ को पृथ्वी पर गिरा दिया जिसे आज आप और हम ज्योतिर्लिंग के नाम से पुकारते हैं। ज्योतिर्लिंग की स्थापना कैसे हुई
ज्योतिर्लिंग और शिवलिंग में अंतर क्या है?
जब-जब भोले बाबा मनुष्यों की अटूट भक्ति और प्रेम से प्रसन्न हुए तब-तब उन्होंने स्वयं प्रकट होकर अपना आशीर्वाद दिया और वहां अपना प्रतीक चिन्ह (ज्योतिर्लिंग) स्थापित किया। इससे आप यह अवश्य ही समझ गए होंगे कि ज्योतिर्लिंग हमेशा स्वयं प्रकट हुए हैं, उन्हें किसी मानव ने नहीं बनाया अर्थात वो स्वयंभू हैं।
हमारी पृथ्वी पर 12 ज्योतिर्लिंग हैं। वही शिवलिंग की बात करें तो वो या तो मानव द्वारा बनाए गए होते हैं या फिर स्वयंभू भी हो सकते हैं। पृथ्वी पर अनगिनत शिवलिंग हैं।
12 ज्योतिर्लिंग कौन कौन से प्रदेश में है?
हमारे देश में 12 स्थानों पर ज्योतिर्लिंग स्थित हैं, जिनके बारे में हमने आपको नीचे लिखे गए विवरण में बताया है।
गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित सोमेश्वर या सोमनाथ ज्योतिर्लिंग पृथ्वी पर प्रकट हुआ सबसे पहला ज्योतिर्लिंग है। पुराणों के अनुसार यहाँ पर स्वयं चंद्रमा ने अपनी चमक वापस पाने के लिए भगवान शंकर की कठोर तपस्या की थी, तभी से इसका नाम सोमनाथ पड़ गया था। आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में श्रीशैल नाम के पर्वतों (जिन्हें हम दक्षिण के कैलाश के नाम से जानते हैं) पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग है। ऐसा प्रचलित है कि यहाँ के ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में स्थित है महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध तीसरा ज्योतिर्लिंग। शिप्रा नदी के किनारे स्थित यह ज्योतिर्लिंग एकमात्र दक्षिण मुखी ज्योतिर्लिंग है।
मध्य प्रदेश के ही मालवा जिले में नर्मदा नदी के किनारे एक और ज्योतिर्लिंग है जिन्हें आप और हम ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं। यहाँ पर पहाड़ों के चारों ओर नदी बहने से ओम का आकार बनता है इसीलिए इसका नाम ओम्कारेश्वर पड़ गया। उत्तराखंड में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग है जो कि हिमालय की केदार नामक चोटी पर है और यह समुद्रतल से लगभग 3.5 हजार मीटर ऊपर है। यह अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है। चार धाम यात्रा का यह सबसे प्रमुख तीर्थ है और इसकी यात्रा काफी कठिन मानी जाती है। महाराष्ट्र प्रदेश के पुणे जिले में सहयाद्रि नाम के पहाड़ों पर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग स्थित है। आकार में काफी फैला हुआ होने के कारण इनका नाम भीमाशंकर यानी विशालकाय पड़ा और इन्हें मोटेश्वर ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में बाबा विश्वनाथ का प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग स्थित है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा कराया गया था। यह सबसे पवित्र ज्योतिर्लिंग माना जाता है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव को यह स्थान इतना प्रिय था कि उन्होंने कैलाश छोड़कर यहीं पर अपना निवास स्थान बना लिया था।
महाराष्ट्र के नासिक जिले में ब्रह्मागिरी नाम के पर्वतों पर त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड के संथाल परगना में स्थित है। आपको बता दें कि यह वही स्थान है जहाँ रावण ने भगवान शिव की कठिन तपस्या की थी और उनसे लंका चलने की शर्त रखी थी। गुजरात के बड़ौदा शहर में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है।
दक्षिण भारत में तमिलनाडु के रामनाथम शहर में रामेश्वर ज्योतिर्लिंग तीर्थ है जिसे स्वयं भगवान श्रीराम ने स्थापित किया था। यह हमारे देश के सबसे भव्य मंदिरों में से एक है। यहीं पर लंका जाते वक्त श्रीराम ने विश्राम किया था और मिट्टी से शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की प्रार्थना की थी। जब प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए तो उन्होंने लंका पर विजय पाने का वरदान मांगा, तभी से यह एक ज्योतिर्लिंग में परिवर्तित हो गया।
महाराष्ट्र जिले के संभाजीनगर के पास दौलताबाद में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है जिसे शिवालय भी कहा जाता है।
यदि हम अपने प्राचीन धर्म शास्त्रों की माने तो इन 12 स्थानों पर भगवान शंकर स्वयं विराजमान हैं। पुराणों में यह भी कहा गया है कि यदि आप किन्ही कारणों से इन 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने ना जा पा रहे हों तो सुबह शुद्ध होकर इनके नाम मात्र ले लेने से ही आपके सारे कष्ट और पाप मिट जाएंगे। इनकी पूजा से मनुष्य को मानव जीवन में सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं और अंत में मोक्ष प्राप्ति के द्वार खुल जाते हैं।
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शिवलिंग और खण्डित सीलबट्टे मिले

पुरातत्व एवं अभिलेखागार विभाग के अधिकारियों ने किया स्थल निरीक्षण
रायपुर रायपुर से बिलासपुर मार्ग पर स्थित ग्राम सोंड्रा में गृह निर्माण के लिए किये जा रहे उत्खनन कार्य के दौरान पांडुवंशी काल की प्राचीन बुद्ध प्रतिमा सहित अन्य पुरातात्विक प्रतिमाएं मिलने से गांव में हर्ष व्याप्त है। गौरतलब है कि ग्राम सोंड्रा में दिलेन्द्र बंछोर द्वारा गृह निर्माण हेतु किए जाने वाले उत्खनन कार्य के दौरान बुद्ध की प्रतिमा प्राप्त हुई है। इस संबंध में जानकारी मिलते ही पुरातत्त्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय विभाग के संचालक श्री विवेक आचार्य के निर्देश पर पुरातत्व विभाग की टीम डॉ. पी.सी. पारख, डॉ. वृषोत्तम साहू तथा डॉ. राजीव मिंज के द्वारा स्थल निरीक्षण किया गया।
पुरातत्व एवं अभिलेखागार विभाग के अधिकारियों ने बताया कि रायपुर से बिलासपुर मुख्य मार्ग में 16 किलोमीटर की दूरी पर सांकरा से 2 किलोमीटर पश्चिम दिशा में स्थित ग्राम सोंड्रा (अक्षांश 21°21’53.5“N देशान्तर 81°38’19.4 E) है। उक्त स्थल से खारुन नदी लगभग 3 किलोमीटर पश्चिम दिशा पर स्थित है। प्रतिमा प्राप्ति स्थल ग्राम के सबसे ऊंचाई वाले भाग पर स्थित है और यहाँ प्राचीन टीला होने के साक्ष्य दिखाई देते हैं। श्री दिलेन्द्र बंछोर के व्यक्तिगत आवास परिसर में ही भवन के विस्तार के लिए कालम हेतु किए गए उत्खनन के दौरान भूमि की सतह से लगभग 3 फीट की गहराई से बुद्ध की प्रतिमा का ऊपरी भाग प्राप्त हुआ।
अधिकारियों ने बताया कि स्थानीय बालुए पत्थर में निर्मित इस प्रतिमा की चौड़ाई 74X ऊंचाई 87X मोटाई 40 सेंटीमीटर है। बुद्ध की इस विशाल प्रस्तर प्रतिमा के माथे पर ऊर्णा (तिलक चिन्ह) का अंकन इसे अनोखा रूप प्रदान करती है और इस आधार पर इसके ध्यानी बुद्ध होने की संभावना अधिक प्रतीत होती है। बुद्ध की यह आवक्ष प्रतिमा अपूर्ण है, जिस पर छेनी के चिन्ह साफ दिखाई दे रहे हैं। त्रि-स्तरीय निर्माण तकनीक में बनी बुद्ध प्रतिमा का यह ऊपरी भाग है। इस तकनीक का प्रयोग बालुए पत्थर की विशाल प्रतिमाओं के निर्माण हेतु किया जाता था जिसमें किसी प्रतिमा को तीन प्रस्तर खंडों में योजना के अनुरूप स्तरों में निर्मित कर लम्बवत स्थापित किया जाता था। इस तकनीक की बनी बुद्ध प्रतिमा के उदाहरण छत्तीसगढ़ के सिरपुर व राजिम और बिहार के बोधगया में देखे जा सकते हैं ।
अधिकारियों ने बताया कि स्थल निरीक्षण करनें पर यहाँ अन्य प्रतिमाओं के होने की भी जानकारी प्राप्त हुई है, जो कि निकट ही में स्थित मंदिर में तथा मंदिर के बगल में बने चबूतरे पर स्थापित हैं। प्रतिमाओं में भूमिस्पर्श मुद्रा में बुद्ध, उपासक, अज्ञात स्थानक प्रतिमा, योगिक ध्यानी मुद्रा में बुद्ध, ललितासन मुद्रा तारा, स्थानक बोधिसत्त्व के साथ ही 4 शिवलिंग, 4 खण्डित पायदार सीलबट्टे, 1 प्रणाल युक्त प्रतिमा पीठ, कुछ खण्डित प्रतिमाएँ व स्थापत्य खंड प्राप्त हुये हैं। उक्त स्थल के पुरावशेष पांडुवंशी काल के (6वीं से 9वीं शताब्दी ई.) प्रतीत हो रहा है।
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