धर्म समाज

रामनवमी कब है, जानिए इसकी शुभ तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि

 सनातन हिंदू धर्म में प्रत्येक त्योहार का एक विशेष महत्व है। नवरात्रि भी उन्हीं में से एक है। वैसे तो पूरे साल में चार बार नवरात्रि आती है लेकिन इनमें से शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से इन नवरात्रि की शुरुआत होती है। इन दिनों में मां के 9 स्वरुपों की पूजा की जाती है। भक्तों में नवरात्रि को लेकर बहुत उत्साह देखने को मिलता है। नवरात्रि के आखिरी दिन राम नवमी का पर्व मनाया जाता है। भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में ये पर्व मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन राम जी का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन रामनवमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन विधिविधान के साथ भगवान राम और माता सीता की पूजा अर्चना की जाती है। 

रामनवमी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।

राम नवमी का शुभ मुहूर्त 2022
राम नवमी तिथि- 10 अप्रैल 2022, रविवार
नवमी तिथि प्रारंभ - 10 अप्रैल को देर रात 1:32 मिनट से शुरू
नवमी तिथि समाप्त- 11 अप्रैल को सुबह 03:15 मिनट पर तक
पूजा का मुहूर्त- 10 अप्रैल को सुबह 11: 10 मिनट से 01: 32 मिनट तक

रामनवमी का महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान राम को विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि त्रेता युग में धरती पर असुरों का उत्पात बढ़ गया था। असुर ऋषियों के यज्ञ को खंडित कर दिया करते थे। धरती पर आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए भगवान विष्णु ने धरती पर श्रीराम के रूप में अवतार लिया था। भगवान श्रीराम ने धर्म की स्थापना के लिए पूरे जीवन अपार कष्टों को सहा और एक आदर्श नायक के रूप में स्वयं को स्थापित किया। उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहा जाता है। कठिन से कठिन परिस्थितियों में श्रीराम ने धर्म का त्याग नहीं किया और न ही अनीति का वरण किया। इस सब गुणों के चलते उन्हें उत्तम पुरुष की संज्ञा मिली और मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया।

राम नवमी पूजा विधि
राम नवमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण करें।
इसके बाद पूजास्थल को स्वच्छ करके भगवान राम की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
इसके बाद उन्हें कुमकुम, सिंदूर, रोली, चंदन, आदि से तिलक लगाएं।
इसके बाद चावल और तुलसी अर्पित करें। राम नवमी के दिन श्री राम को तुलसी अर्पित करने से वे जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।
पूजा में देवी-देवताओं को फूल अर्पित करें और मिठाई का भोग लगाएं।

फिर घी का दीपक और धूपबत्ती जलाकर श्री रामचरित मानस , राम रक्षा स्तोत्र या रामायण का पाठ करें।
श्री राम, लक्ष्मण जी और मां सीता की आरती करें और लोगों में प्रसाद वितरण करें।
श्री राम के इन मंत्रों का करें जाप

'रां रामाय नम:'
भगवान श्रीराम का यह मंत्र बेहद ही प्रभावशाली होता है। इस मंत्र को श्रीराम पूजा में 108 बार जपें। इस मंत्र को सच्चे मन से जपने से भक्तगणों की सारी विपदाएं नष्ट हो जाती हैं। आरोग्य जीवन के लिए भी यह राम मंत्र कारगर है।

ॐ नमो भगवते रामचंद्राय'
भगवान श्रीराम का जीवन संपूर्ण मानव जाति के लिए एक आदर्श है। इसलिए राम नवमी के दिन आप श्रीराम से जुड़ा यह मंत्र 108 बार जपें। इस मंत्र के जाप से आपके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।
'ॐ दशरथाय विद्महे सीता वल्लभाय धीमहि तन्नो श्रीराम: प्रचोदयात्।
यह श्रीराम गायत्री मंत्र है। शास्त्रों में ऐसा लिखा गया है कि इसके जप से व्यक्ति के सारे संकट दूर हो जाते हैं। उसके जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।

श्रीराम की आरती
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं।
नव कंजलोचन, कंज – मुख, कर – कंज, पद कंजारुणं।।
कंन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील – नीरद सुन्दरं।
पटपीत मानहु तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतवरं।।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव – दैत्यवंश – निकन्दंन।
रधुनन्द आनंदकंद कौशलचन्द दशरथ – नन्दनं।।
सिरा मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषां।
आजानुभुज शर – चाप – धर सग्राम – जित – खरदूषणमं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर – शेष – मुनि – मन रंजनं।
मम हृदय – कंच निवास कुरु कामादि खलदल – गंजनं।।
मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो।।
एही भाँति गौरि असीस सुनि सिया सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनिपुनि मुदित मन मन्दिरचली।।
दोहा
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।

श्री राम की दूसरी आरती
आरती कीजे श्रीरामलला की । पूण निपुण धनुवेद कला की ।।
धनुष वान कर सोहत नीके । शोभा कोटि मदन मद फीके ।।
सुभग सिंहासन आप बिराजैं । वाम भाग वैदेही राजैं ।।
कर जोरे रिपुहन हनुमाना । भरत लखन सेवत बिधि नाना ।।
शिव अज नारद गुन गन गावैं । निगम नेति कह पार न पावैं ।।
नाम प्रभाव सकल जग जानैं । शेष महेश गनेस बखानैं
भगत कामतरु पूरणकामा । दया क्षमा करुना गुन धामा ।।
सुग्रीवहुँ को कपिपति कीन्हा । राज विभीषन को प्रभु दीन्हा ।।
खेल खेल महु सिंधु बधाये । लोक सकल अनुपम यश छाये ।।
दुर्गम गढ़ लंका पति मारे । सुर नर मुनि सबके भय टारे ।।
देवन थापि सुजस विस्तारे । कोटिक दीन मलीन उधारे ।।
कपि केवट खग निसचर केरे । करि करुना दुःख दोष निवेरे ।।
देत सदा दासन्ह को माना । जगतपूज भे कपि हनुमाना ।।
आरत दीन सदा सत्कारे । तिहुपुर होत राम जयकारे ।।
कौसल्यादि सकल महतारी । दशरथ आदि भगत प्रभु झारी ।।
सुर नर मुनि प्रभु गुन गन गाई । आरति करत बहुत सुख पाई ।।
धूप दीप चन्दन नैवेदा । मन दृढ़ करि नहि कवनव भेदा ।।
राम लला की आरती गावै । राम कृपा अभिमत फल पावै ।।

 

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चैत्र नवरात्रि के छठे दिन करें मां कात्यायनी की पूजा, जानिए कथा,पूजा विधि

आज चैत्र नवरात्रि का छठा दिन है। नवरात्र के छठे दिन देवी के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा का विधान है। मां के इस रूप के प्रगट होने की बड़ी ही अद्भुत कथा। माना जाता है कि देवी के इसी स्वरूप ने महिषासुर का मर्दन किया था। देवीभागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप की पूजा गृहस्थों और विवाह के इच्छुक लोगों के लिए बहुत ही फलदायी है।

महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया। महर्षि कात्यायन के नाम पर ही देवी का नाम कात्यायनी हुआ। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। यह दानवों, असुरों और पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी कहलाती हैं।

सांसारिक स्वरूप में मां कात्यायनी शेर पर सवार रहती हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। सुसज्जित आभा मंडल युक्त देवी मां का स्वरूप मन मोहक है। इनके बांए हाथ में कमल व तलवार और दाहिने हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है। नवरात्र की षष्ठी तिथि के दिन देवी के इसी स्वरूप की पूजा होती है। क्योंकि इसी तिथि में देवी ने जन्म लिया था और महर्षि ने इनकी पूजा की थी।

मान्यता के अनुसार, नवरात्र के छठे दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित रहता है। योग साधना में आज्ञा चक्र का महत्वपूर्ण स्थान है। आज्ञाचक्र मानव शरीर में उपस्थित 7 चक्रों में सर्वाधिक शक्तिशाली है। इस दिन ध्यान का प्रयास करने से भक्त को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं। जो भी भक्त मां के इस स्वरूप का पूजन करते हैं, उनके चेहरे पर एक अलग कांति रहती है। वह इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक सुख का अनुभव करता है। उसका तेज देखते ही बनता है।

आज इस मंत्र से करें मां का पूजन, मिलेगा लाभ
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

यह है शुभ रंग
नवरात्र के छठे दिन लाल रंग के वस्त्र पहनें। यह रंग शक्ति का प्रतीक होता है। मां कात्यायी को मधु यानी शहद युक्त पान बहुत पसंद है। इसे प्रसाद स्वरूप अर्पण करने से देवी अति प्रसन्न होती हैं।
गोपियों ने की थी मां कात्यायनी की पूजा

माना जाता है कि- भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने कालिन्दी यमुना के तट पर मां कात्यायनी की ही पूजा की थी । इसलिए देवी मां को ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी पूजा जाता है । साथ ही आपको बता दूं कि- ग्रहों में इनका आधिपत्य बृहस्पति ग्रह, यानी गुरु पर रहता है और आज गुरुवार का दिन भी है। लिहाजा गुरु संबंधी परेशानियों से छुटकारा पाने के लिये भी आज मां कात्यायनी की पूजा करना आपके लिये विशेष हितकारी हो | 
 
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आज है स्कंदमाता की पूजा,जानें विधि और शुभ मुहूर्त

 आज चैत्र नवरात्र का पांचवां दिन है। इस दिन देवी के पांचवें स्वरूप स्‍कंदमाता की पूजा की जाती है। कंदमाता को प्रेम और वात्‍सल्‍य की देवी कहा जाता है। मान्यता के मुताबिक स्कंदमाता की आराधना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। संतान प्राप्ति के लिए स्कंदमाता की आराधना करना लाभकारी माना गया है। माता को लाल रंग प्रिय है इसलिए इनकी आराधना में लाल रंग के पुष्प जरूर अर्पित करना चाहिए।


चवां दिन- शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त- 04:34 AM से 05:20 AM
विजय मुहूर्त- 02:30 PM से 03:20 PM
गोधूलि मुहूर्त- 06:29 PM से 06:53 PM
अमृत काल- 04:06 PM से 05:53 PM
सर्वार्थ सिद्धि योग- पूरे दिन

स्कंदमाता पूजा विधि

- सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- मां की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं।
- स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें।
- मां को रोली कुमकुम भी लगाएं।
- मां को मिष्ठान और पांच प्रकार के फलों का भोग लगाएं।

 मां स्कंदमाता का अधिक से अधिक ध्यान करें।
- मां की आरती अवश्य करें।

ऐसे करें माता की पूजा
कुश अथवा कंबल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा करनी चाहिए। पौराणिक तथ्‍यों के अनुसार, स्‍‍कंदमाता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं, जिन्‍हें माहेश्‍वरी और गौरी के नाम से भी जाना जाता है।

स्‍कंदमाता का मंत्र
सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया |
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||
या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

स्कंदमाता की पूजा का महत्व
- मान्‍यता है कि संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण करने के लिए दंपत्तियों को इस दिन सच्‍चे मन से मां के इस स्वरूप की आराधना करनी चाहिए इससे उनकी मुराद पूरी होती है।
- भगवान कार्तिकेय यानी स्‍कन्‍द कुमार की माता होने के कारण दुर्गाजी के इस पांचवें स्‍वरूप को स्‍कंदमाता कहा जाता है।
- देवी के इस स्वरूप मेंभगवान स्‍कंद बालरूप में माता की गोद में विराजमान हैं। माता के इस स्‍वरूप की 4 भुजाएं हैं। शुभ्र वर्ण वाली मां कमल के पुष्‍प पर विराजित हैं।

इसी कारण इन्‍हें पद्मासना और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन सिंह है। स्‍कंदमाता को सौरमंडल की अधिष्‍ठात्री देवी माना जाता है। एकाग्रता से मन को पवित्र करके मां की आराधना करने से व्‍यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

माता का भोग और भेंट
स्‍कंदमाता को भोग स्‍वरूप केला अर्पित करना चाहिए। मां को पीली वस्‍तुएं प्रिय होती हैं, इसलिए केसर डालकर खीर बनाएं और उसका भी भोग लगा सकते हैं। नवरात्र के पांचवें दिन लाल वस्‍त्र में सुहाग की सभी सामग्री लाल फूल और अक्षत के समेत मां को अर्पित करने से महिलाओं को सौभाग्‍य और संतान की प्राप्ति होती है। जो भक्त देवी स्कंद माता का भक्ति-भाव से पूजन करते हैं उसे देवी की कृपा प्राप्त होती है। देवी की कृपा से भक्त की मुराद पूरी होती है और घर में सुख, शांति एवं समृद्धि रहती है।

स्‍कंदमाता के स्वरूप की कथा
देवी पुराण के अनुसार तारकासुर नाम का एक असुर था। उसने कठोर तप करके ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसका अन्त यदि हो तो महादेव से उत्पन्न पुत्र से ही हो। तारकासुर ने सोचा कि महादेव तो कभी विवाह करेंगे नहीं और न ही उनके पुत्र होगा। इसलिए वह अजर अमर हो जायेगा।

तारकासुर ने आतंक मचाना शुरू कर दिया। त्रिलोक पर अधिकार कर लिया। समस्त देवगणों ने महादेव से विवाह करने का अनुरोध किया। महादेव ने पार्वती से विवाह किया। तब स्कंदकुमार का जन्म हुआ और उन्होंने तारकासुर का अन्त कर दिया।

 
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जानिए आज का शुभ मुहूर्त और राहुकाल का समय

झूठा सच @ रायपुर :- हिंदू पंचांग को वैदिक पंचांग के नाम से जाना जाता है। पंचांग के माध्यम से समय एवं काल की सटीक गणना की जाती है। पंचांग मुख्य रूप से पांच अंगों से मिलकर बना होता है। ये पांच अंग तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण है। यहां हम दैनिक पंचांग में आपको शुभ मुहूर्त, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदूमास एवं पक्ष आदि की जानकारी देते हैं। 

आज का शुभ मुहूर्त और राहुकाल का समय।
तिथि चतुर्थी 15:48 तक
नक्षत्र कृत्तिका 16:53 तक
करण
विष्टि
बावा
15:48 तक
28:52 तक
पक्ष शुक्ल पक्ष
वार मंगलवार
योग प्रीति 07:58 तक
सूर्योदय 06:10
सूर्यास्त 18:36
चंद्रमा वृषभ
राहुकाल 15:30 − 17:03
विक्रमी संवत् 2079
शक सम्वत 1944
मास चैत्र
शुभ मुहूर्त अभिजीत 11:58 − 12:48

पंचांग के पांच अंग तिथि

हिन्दू काल गणना के अनुसार 'चन्द्र रेखांक' को 'सूर्य रेखांक' से 12 अंश ऊपर जाने के लिए जो समय लगता है, वह तिथि कहलाती है। एक माह में तीस तिथियां होती हैं और ये तिथियां दो पक्षों में विभाजित होती हैं। शुक्ल पक्ष की आखिरी तिथि को पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या कहलाती है। तिथि के नाम - प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या/पूर्णिमा।

नक्षत्र: आकाश मंडल में एक तारा समूह को नक्षत्र कहा जाता है। इसमें 27 नक्षत्र होते हैं और नौ ग्रहों को इन नक्षत्रों का स्वामित्व प्राप्त है। 27 नक्षत्रों के नाम- अश्विन नक्षत्र, भरणी नक्षत्र, कृत्तिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, घनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र।

वार: वार का आशय दिन से है। एक सप्ताह में सात वार होते हैं। ये सात वार ग्रहों के नाम से रखे गए हैं - सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार।

योग: नक्षत्र की भांति योग भी 27 प्रकार के होते हैं। सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहा जाता है। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम - विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातीपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति।

करण: एक तिथि में दो करण होते हैं। एक तिथि के पूर्वार्ध में और एक तिथि के उत्तरार्ध में। ऐसे कुल 11 करण होते हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं - बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं और भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
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आज नवरात्र के चौथे दिन पर मां कूष्माण्डा की करें पूजा अर्चना

 झूठा सच @ रायपुर :- आज चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है. आज मां कूष्माण्डा की विधि विधान से पूजा करते हैं. चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मां कूष्माण्डा की आराधना करते हैं. मां कूष्माण्डा शेर पर सवार रहती हैं. वे अपनी 8 भुजाओं में कमल, कमंडल, धनुष, बाण, चक्र, अमृत कलश, गदा और जप माला धारण करती हैं. कूष्माण्डा का मतलब कुम्हड़ा से है. देवी को कुम्हड़ा प्रिय है, इसलिए उनका नाम कूष्माण्डा पड़ा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी कूष्माण्डा ने ही पूरे ब्रह्मांड की रचना की है. मां दुर्गा ने अधर्म और अत्याचार के अंत के लिए कूष्माण्डा अवतार लिया था. मां कूष्माण्डा की कृपा से सभी संकटों और दुखों का अंत होता है एवं मनोकामनाएं पूरी होती हैं. आइए जानते हैं मां कूष्माण्डा की पूजा विधि, मुहूर्त, मंत्र और आरती के बारे में.


मां कूष्माण्डा का पूजा मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 04 अप्रैल दिन सोमवार को दोपहर 01:54 बजे से शुरु हुई है. इसका समापन आज 05 अप्रैल को 03:45 पीएम पर हो रहा है. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार मां कूष्माण्डा की पूजा की तिथि आज ही है.आज सुबह 08 बजे तक प्रीति योग है और उसके बाद आयुष्मान योग प्रारंभ हो रहा है, वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग सुबह 06:07 बजे से शाम 04:52 बजे तक है. ऐसे में आप मां कूष्माण्डा की पूजा सुबह से ही कर सकते हैं. इस दिन का शुभ समय 11:59 एएम से दोपहर 12:49 पीएम बजे तक है.

मां कूष्माण्डा की पूजा विधि
आज सुबह आप स्नान के बाद मां कूष्माण्डा का ध्यान करें. फिर उनको अक्षत्, लाल फूल, सिंदूर, कुमकुम, धूप, दीप, गंध, फल, सफेद कुम्हड़ा आदि अर्पित करें. फिर मां कूष्माण्डा को हलवा या दही का भोग लगाना चाहिए. इस दौरान मां कूष्माण्डा के पूजा मंत्रों का उच्चारण करते रहें. पूजा के अंत में गाय के घी का दीपक जलाएं और उससे मां कूष्माण्डा की आरती करें.

देवी कूष्माण्डा का पूजा मंत्र
ओम देवी कूष्माण्डायै नमः

बीज मंत्र
ऐं ह्री देव्यै नम:

प्रार्थना मंत्र
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

मां कूष्मांडा की आरती

कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली। शाकंबरी मां भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे। भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

मां के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो मां संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
 

 

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आज है गणगौर तीज, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर तीज मनाई जाती हैं। इस बार गणगौर तीज का व्रत 4 अप्रैल 2022 दिन सोमवार यानि आज मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में गणगौर पूजा का विशेष महत्व माना गया है। इस पर्व में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा विधि विधान से की जाती है। यहां गण का अर्थ भगवान शिव एवं गौर का अर्थ माता पार्वती से है। खासतौर पर गणगौर तीज का व्रत मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाता है। गणगौर का पर्व चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होकर चैत्र शुक्ल की तृतीया को गणगौर तीज पर व्रत पूजन के साथ समापन होता है। इस तरह यह पर्व पूरे 16 दिनों तक चलता है। यह दिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु एवं सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं, जबकि विवाह योग्य कन्याएं मनपसंद वर या जीवनसाथी की कामना से गणगौर तीज व्रत रखती हैं। 

गणगौर तीज का महत्व पूजा सामग्री, विधि और शुभ मुहूर्त।

उदयातिथि के आधार पर गणगौर तीज व्रत 04 अप्रैल को रखा जाएगा।

गणगौर तीज 2022 तिथि

तृतीया तिथि आरंभ: 03 अप्रैल, रविवार दोपहर 12:38 बजे से

तृतीया तिथि समाप्त : 04 अप्रैल, सोमवार दोपहर 01:54 बजे पर

उदयातिथि के आधार पर गणगौर तीज व्रत 04 अप्रैल को रखा जाएगा।

गणगौर तीज 2022 पूजा मुहूर्त

शुभ मुहूर्त आरंभ: 04 अप्रैल, सोमवार, दोपहर 11:59 बजे से

शुभ मुहूर्त समाप्त: 04 अप्रैल, सोमवार,दोपहर 12:49 बजे पर

गणगौर तीज पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं|

गणगौर तीज पर बन रहे हैं शुभ योग

प्रीति योग आरंभ: 04 अप्रैल, सोमवार प्रातः 07:43 बजे से

प्रीति योग समाप्त:05 अप्रैल, मंगलवार, प्रातः 07:59 बजे तक

रवि योग आरंभ: 04 अप्रैल, सोमवार दोपहर 02:29 बजे से

रवि योग समाप्त: 05 अप्रैल, मंगलवार प्रातः 06:07 बजे पर

गणगौर तीज का महत्व

गणगौर तीज कुंवारी और विवाहित महिलाएं अपने सौभाग्य और अच्छे वर की कामना करने के लिए करती हैं। इस दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की आराधना की जाती है। 17 दिन चलने वाले इस पर्व का समापन चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर होता है। कुंवारी, विवाहित और नवविवाहित महिलाएं इस दिन नदी, तालाब या शुद्ध स्वच्छ शीतल सरोवर पर जाकर गीत गाती हैं और गणगौर को विसर्जित करती हैं। यह व्रत विवाहित महिलाएं पति से सात जन्मों का साथ, स्नेह, सम्मान और सौभाग्य पाने के लिए करती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता गवरजा यानि मां पार्वती होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं और आठ दिनों के बाद इसर जी यानि भगवान शिव उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं। इसलिए यह त्योहार होली की प्रतिपदा से आरंभ होता है। इस दिन से सुहागिन स्त्रियां और कुंवारी कन्याएं मिट्टी के शिव जी यानि गण एवं माता पार्वती यानि गौर बनाकर उनका प्रतिदिन पूजन करती हैं। इसके बाद चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर यानि शिव पार्वती की विदाई की जाती है। जिसे गणगौर तीज कहा जाता है।
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नवरात्रि के तीसरे दिन करे मां चंद्रघंटा की पूजा

इस समय चैत्र नवरात्रि चल रही हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में मां के नौ रूपों की पूजा- अर्चना की जाती है। आज नवरात्रि का तीसरा दिन है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां के तृतीय स्वरूप माता चंद्रघंटा की पूजा- अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता चंद्रघंटा को राक्षसों की वध करने वाला कहा जाता है। ऐसा माना जाता है मां ने अपने भक्तों के दुखों को दूर करने के लिए हाथों में त्रिशूल, तलवार और गदा रखा हुआ है। माता चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र बना हुआ है, जिस वजह से भक्त मां को चंद्रघंटा कहते हैं। आइए जानते हैं माता चंद्रघंटा की पूजा विधि, महत्व, मंत्र और कथा...

माता चंद्रघंटा की पूजा विधि...

नवरात्रि के तीसरे दिन विधि- विधान से मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप माता चंद्रघंटा की अराधना करनी चाहिए। मां की अराधना उं देवी चंद्रघंटायै नम: का जप करके की जाती है। माता चंद्रघंटा को सिंदूर, अक्षत, गंध, धूप, पुष्प अर्पित करें। आप मां को दूध से बनी हुई मिठाई का भोग भी लगा सकती हैं। नवरात्रि के हर दिन नियम से दुर्गा चालीस और दुर्गा आरती करें।
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नवरात्रि के पहले दिन होती है माता शैलपुत्री की पूजा, जानें पूजा की विधि

 आज से शुरू हो रहे हैं. नवरात्रों की शुरुआत कलश स्थापना और 9 दिन जलने वाली अखंड ज्योति से होती है. वहीं पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है. नवरात्रि का पहला दिन माता शैलपुत्री को समर्पित है. इस दिन न केवल हवन और पूजा होती है बल्कि शैलपुत्री से जुड़ी कथा सुननी भी जरूरी होती है. ऐसे में शैलपुत्री की कथा के बारे में पता होना जरूरी है. आज का हमारा लेख शैलपुत्री की कथा पर ही है. आज हम आपको अपने लेख के माध्यम से बताएंगे कि पूजा विधि और शैलपुत्री की कथा. पढ़ते हैं

माता शैलपुत्री की पूजा सामग्री

एक छोटी चुनरी, एक बड़ी चुनरी, कलावा, चौकी, कलश, कुमकुम, पान, सुपारी, कपूर, जौ, नारियल, लौंग.
बताशे, आम के पत्ते, केले का फल, देसी घी, धूप, दीपक, अगरबत्ती, माचिस.मिट्टी का बर्तन, माता का श्रृंगार का सामान, देवी की प्रतिमा या फोटो, फूलों की माला.गोबर का उपला, सूखे मेवा, मावे की मिठाई, लाल फूल, एक कटोरी गंगाजल और दुर्गा सप्तशती या दुर्गा स्तुति आदि का पाठ जरूर करें.

माता शैलपुत्री की कथा

माता शैलपुत्री का दूसरा नाम सती भी है. एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का निर्णय लिया इस यज्ञ में सभी देवी देवताओं को निमंत्रण भेजा लेकिन भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा. देवी सती को उम्मीद थी कि उनके पास भी निमंत्रण जरूर आएगा लेकिन निमंत्रण ना आने पर वे दुखी हो गईं. वह अपने पिता के यज्ञ में जाना चाहती थीं लेकिन भगवान शिव ने उन्हें साफ इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि जब कोई निमंत्रण नहीं आया है तो वहां जाना उचित नहीं. लेकिन जब सती ने ज्यादा बार आग्रह किया तो शिव को भी अनुमति देनी पड़ी. प्रजापति दक्ष के यज्ञ में पहुंचकर सती को अपमान महसूस हुआ. सब लोगों ने उनसे मुंह फेर लिया. केवल उनकी माता ने उन्हें स्नेह से गले लगाया. 

वहीं उनकी बहने उपहास उड़ा रही थीं और भोलेनाथ को भी तिरस्कृत कर रही थीं. खुद प्रजापति दक्ष भी माता सती का अपमान कर रहे थे. इस प्रकार का अपमान सहन ना करने पर सती अग्नि में कूद गई और अपने प्राण त्याग दिए. जैसे ही भगवान शिव को इस बात का पता चला कि क्रोधित हो गए और पूरे यज्ञ को ध्वस्त कर दिया. उसके बाद सती ने हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया. जहां उनका नाम शैलपुत्री पड़ा. कहते हैं मां शैलपुत्री काशी नगर वाराणसी में वास करती हैं | 
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आज है चैत्र नवरात्रि

हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र का महीना हिंदू नववर्ष का पहला महीना माना जाता है और इसी माह में मां दुर्गा की पूजा आराधना का त्योहार चैत्र नवरात्रि मनाया जाता है। हिंदू पंचाग के अनुसार कुल मिलाकर चार नवरात्रि मनाए जाते हैं। इनमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि के इस पावन पर्व पर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करने का विधान है। 

नवरात्रि के प्रथम दिन शैलपुत्री माता की पूजा होती है और इसी तरह क्रमशः ब्रह्मचारिणी माता, चंद्रघंटा माता, कूष्मांडा माता, स्कंदमाता, कात्यायनी माता, कालरात्रि माता, महागौरी माता और सिद्धिदात्री माता की पूजा की जाती है। इन नौ दिनों में भक्त श्रद्धा-भाव के साथ माता की कृपा पाने के लिए उपवास रखते हैं। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 02 अप्रैल, शनिवार यानी आज से शुरू हो चुके हैं। जिसका समापन 11 अप्रैल, सोमवार के दिन होगा। चैत्र के महीने में आने वाली नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि और शरद ऋतु में आने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है।

घट स्थापना का शुभ मुहूर्त
चैत्र प्रतिपदा की तिथि पर घट स्थापना की जाती है। इस बार चैत्र नवरात्रि पर घट स्थापना का शुभ मुहूर्त 02 अप्रैल को प्रातः 06 बजकर 10 मिनट से 08 बजकर 29 मिनट तक है। ऐसे में चैत्र नवरात्रि पर घटस्थापना का शुभ मुहूर्त कुल 02 घंटे 18 मिनट तक रहेगा।

ऐसी रहेगी ग्रहों की स्थिति
चैत्र नवरात्रि में मकर राशि में शनि देव, मंगल के साथ रहेंगे, जो पराक्रम में वृद्धि करेंगे। शनिवार से नवरात्रि का प्रारंभ शनिदेव का स्वयं की राशि मकर में मंगल के साथ रहना निश्चित ही सिद्धि कारक है। इससे कार्य में सफलता, मनोकामना की पूर्ति, साधना में सिद्धि मिलेगी। चैत्र नवरात्रि के दौरान कुंभ राशि में गुरु, शुक्र के साथ रहेगा। मीन में सूर्य, बुध के साथ, मेष में चंद्रमा, वृषभ में राहु, वृश्चिक में केतु विराजमान रहेंगे।

बनेंगे ये शुभ योग
चैत्र नवरात्रि में रवि पुष्य नक्षत्र के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग नवरात्रि को स्वयं सिद्ध बनाएंगे। सर्वार्थ सिद्धि योग का संबंध लक्ष्मी से होता है। ऐसा माना जाता है कि इस योग में कार्य का आरंभ करने से कार्य की सिद्धि होती है। वहीं रवियोग समस्त दोषों को नष्ट करने वाला माना गया है। इसमें किया गया कार्य शीघ्र फलीभूत होता है।

चैत्र नवरात्रि का धार्मिक महत्व
चैत्र नवरात्रि नवसंवतसर की पहली नवरात्रि मानी जाती है। इसलिए इस नवरात्रि का धार्मिक महत्व है। ब्रह्म पुराण के अनुसार नवरात्रि के पहले दिन आद्यशक्ति प्रकट हुई थी। और ऐसी मान्यता है कि देवि के आदेश पर ब्रह्मा जी ने चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को सृष्टि के निर्माण की शुरुआत की थी। मत्स्य पुराण के अनुसार चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इसके बाद श्री विष्णु ने भगवान राम के रूप में अपना सातवां अवतार भी चैत्र नवरात्रि में ही लिया था। इसलिए चैत्र नवरात्रि का महत्व स्वतः ही बढ़ जाता है।

चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की होती है पूजा
हिंदू धर्म में नवरात्रि को बेहद पावन पर्व माना गया है चाहे वह गुप्त नवरात्रि हो, शारदीय नवरात्रि हो या फिर चैत्र नवरात्रि। इन नौ दिनों में मां के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। प्रथम दिन माता शैलपुत्री के पूजन से नवरात्रि का आरंभ होता है और फिर क्रमश: दूसरा दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरा चंद्रघंटा, चौथा कूष्मांडा, पांचवां स्कंदमाता, छठवां कात्यायनी, सातवां कालरात्रि, आठवां मां महागौरी और नौवां दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित होता है।

इस बार यह होगा मां दुर्गा का वाहन
धार्मिक मान्यताओं की मानें तो प्रत्येक नवरात्रि में मां दुर्गा अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर आती हैं और विदाई के वक्त माता रानी का वाहन अलग होता है। इस बार भी चैत्र नवरात्रि में देवी दुर्गा घोड़े पर सवार होकर पृथ्वी पर आएंगी। ऐसा इसलिए क्योंकि इस बार नवरात्रि शनिवार के दिन से आरंभ हो रही है और दिन के अनुसार ही देवी अपने वाहन का चयन करती हैं। नवरात्रि का अंतिम दिन सोमवार है और इसलिए इस बार जाते समय मां दुर्गा का वाहन भैंसा होगा।
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चैत्र नवरात्रि कल से शुरू, जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि...

कल चैत्र नवरात्र का पहला दिन है। हिंदू पंचांग के अनुसार साल भर में कुल मिलाकर 4 नवरात्रि आती हैं जिसमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। इस बार चैत्र नवरात्रि का त्योहार 2 अप्रैल से शुरु होकर 11 अप्रैल तक रहेगी। मां दुर्गा के भक्त चैत्र नवरात्रि के 9 दिनों तक उपवास रखते हुए पूजा और साधना करते हैं।

चैत्र नवरात्रि के दौरान 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा आराधना की जाती है। चैत्र प्रतिपदा तिथि को घटस्थापना की जाती है और अष्टमी व नवमी तिथि पर कन्या पूजन के बाद व्रत का पारण किया जाता है।इस बार घोड़े पर सवार होकर आएंगी माता धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक नवरात्रि पर मां दुर्गा पृथ्वी पर अलग-अलग वाहनों से आती हैं जिसका विशेष महत्व होता है। दिन के अनुसार मां दुर्गा का वाहन तय होता है। इस बार चैत्र नवरात्रि शनिवार से शुरू हो रहे हैं ऐसे देवी दुर्गा घोड़े पर सवार होकर पृथ्वी पर आएंगी।

चैत्र घटस्थापना का शुभ मुहूर्त
इस बार चैत्र घटस्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 2 अप्रैल 2022, शनिवार की सुबह 06:22 बजे से 08:31 मिनट तक रहेगा। यानी कि कुल अवधि 02 घण्टे 09 मिनट की रहेगी। इसके अलावा घटस्थापना को अभिजित मुहूर्त दोपहर 12:08 बजे से 12:57 बजे तक रहेगा। वहीं प्रतिपदा तिथि 1 अप्रैल 2022 को सुबह 11:53 बजे से शुरू होगी और 2 अप्रैल 2022 को सुबह 11:58 पर खत्‍म होगी।
  • प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ : अप्रैल 01, 2022 को सुबह 11 बजकर 54 से शुरू 
  • प्रतिपदा तिथि समाप्त : अप्रैल 02, 2022 को सुबह 11 बजकर 57 पर समाप्त
  • चैत्र घटस्थापना शनिवार, अप्रैल 2, 2022 को
  • घटस्थापना शुभ मुहूर्त: सुबह 6 बजकर 22 मिनट से 8 बजकर 31 मिनट तक
  • घटस्थापना का अभजीत मुहूर्त: दोपहर 12:08 बजे से 12:57 बजे तक रहेगा।

घटस्थापना विधि
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन सुबह उठकर स्नान आदि करके साफ वस्त्र पहनें। फिर मंदिर की साफ-सफाई करके गंगाजल छिड़कें। इसके बाद लाल कपड़ा बिछाकर उस पर थोड़े चावल रखें। मिट्टी के एक पात्र में जौ बो दें और इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश में चारों ओर अशोक के पत्ते लगाएं और स्वास्तिक बनाएं। फिर इसमें साबुत सुपारी, सिक्का और अक्षत डालें।इसके बाद एक नारियल पर चुनरी लपेटकर कलावा से बांधें और इस नारियल को कलश के ऊपर पर रखते हुए देवी दुर्गा का आहवाहन करें। फिर दीप जलाकर कलश की पूजा करें। ध्यान रखें कि कलश स्टील सा किसी अन्य अशुद्ध धातु का नहीं होना चाहिए। कलश के लिए सोना, चांदी, तांबा, पीतल के धातु के अलावा मिट्टी का घड़ा काफी शुभ माना गया है।
 
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अमरनाथ यात्रा 30 जून से शुरू

झूठा सच @ रायपुर:-  कोरोना के सभी प्रोटोकॉल के साथ इस साल अमरनाथ यात्रा 30 जून, 2022 से शुरू होगी. परंपरा के अनुसार इसकी समाप्ति रक्षा बंधन  के दिन होगी. अमरनाथ यात्रा इस साल 43 दिनों तक चलेगी. जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल का कार्यालय की तरफ से यह जानकारी दी गई है |
 
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हनुमान जयंती कब है,जानें पूजा का मुहूर्त

हिन्दू कैलेंडर के आधार पर चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को संकटमोचन राम भक्त हनुमान का जन्म हुआ था. भगवान विष्णु को रामावतार के समय सहयोग करने के लिए रुद्रावतार हनुमान जी का जन्म हुआ. सीता खोज, रावण युद्ध, लंका विजय में हनुमान जी ने अपने प्रभु श्रीराम की पूरी मदद की. उनके जन्म का उद्देश्य ही राम भक्ति था. हनुमान जी के जन्म दिवस को हनुमथ जयंती, हनुमान व्रतम् आदि नामों से भी जाना जाता है. हनुमान जयंती की तिथियां अलग अलग है, उस आधार पर सालभर में अगल-अलग तिथियों में हनुमान जयंती मनाई जाती है, लेकिन चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जयंती की अत्यधिक मान्यता है. आइए जानते हैं हनुमान जयंती कब है, पूजा का मुहूर्त एवं हनुमान जी की जन्म कथा क्या है.

हनुमान जयंती 2022 ति​थि एवं मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, इस साल चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि 16 अप्रैल दिन शनिवार को तड़के 02 अजकर 25 मिनट पर शुरु हो रही है. पूर्णिमा तिथि का समापन उसी दिन देर रात 12 बजकर 24 मिनट पर हो रहा है. सूर्योदय के समय पूर्णिमा तिथि 16 अप्रैल को प्राप्त हो रहा है, ऐसे में हनुमान जयंती 16 अप्रैल को मनाई जाएगी. इस दिन ही व्रत रखा जाएगा और हनुमान जी का जन्म उत्सव मनाया जाएगा.
इस बार की हनुमान जयंती रवि योग, हस्त एवं चित्रा नक्षत्र में है. 16 अप्रैल को हस्त नक्षत्र सुबह 08:40 बजे तक है, उसके बाद से चित्रा नक्षत्र शुरु होगा. इस दिन रवि योग प्रात: 05:55 बजे से शुरु हो रहा है और इसका समापन 08:40 बजे हो रहा है.

हनुमान जन्म कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, अयोध्या नरेश राजा दशरथ जी ने जब पुत्रेष्टि हवन कराया था, तब उन्होंने प्रसाद स्वरूप खीर अपनी तीनों रानियों को खिलाया था. उस खीर का एक अंश एक कौआ लेकर उड़ गया और वहां पर पहुंचा, जहां माता अंजना शिव तपस्या में लीन थीं.मां अंजना को जब वह खीर प्राप्त हुई तो उन्होंने उसे शिवजी के प्रसाद स्वरुप ग्रहण कर लिया. इस घटना में भगवान शिव और पवन देव का योगदान था. उस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद हनुमान जी का जन्म हुआ. हनुमान जी भगवान शिव के 11वें रुद्रवतार हैं.माता अंजना के कारण हनुमान जी को आंजनेय, पिता वानरराज केसरी के कारण केसरीनंदन और पवन देव के सहयोग के कारण पवनपुत्र आदि नामों से भी जाना जाता है |
 
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जानिए चैत्र नवरात्रि कब से होगें प्रारंभ?

इन दिनों चैत्र का महीना चल रहा है। हिंदू धर्म में चैत्र महीने का खास महत्व होता है। चैत्र का महीना हिंदी कैलेंडर का पहला महीना होता है। इसी महीने में बहुत सारे व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। चैत्र के महीने में ही चैत्र नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि के दौरान 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा आराधना की जाती है। चैत्र प्रतिपदा तिथि को घटस्थापना की जाती है और अष्टमी व नवमी तिथि पर कन्या पूजन के बाद व्रत का पारण किया जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार साल भर में कुल मिलाकर 4 नवरात्रि आती हैं जिसमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। इस बार चैत्र नवरात्रि का त्योहार 2 अप्रैल से शुरु होकर 11 अप्रैल तक रहेगी। मां दुर्गा के भक्त चैत्र नवरात्रि के 9 दिनों तक उपवास रखते हुए पूजा और साधना करते हैं। इस बार घोड़े पर सवार होकर आएंगी माता धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक नवरात्रि पर मां दुर्गा पृथ्वी पर अलग-अलग वाहनों से आती हैं जिसका विशेष महत्व होता है। दिन के अनुसार मां दुर्गा का वाहन तय होता है। इस बार चैत्र नवरात्रि शनिवार से शुरू हो रहे हैं ऐसे देवी दुर्गा घोड़े पर सवार होकर पृथ्वी पर आएंगी।

चैत्र घटस्थापना का शुभ मुहूर्त इस साल चैत्र घटस्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 2 अप्रैल 2022, शनिवार की सुबह 06:22 बजे से 08:31 मिनट तक रहेगा। यानी कि कुल अवधि 02 घण्टे 09 मिनट की रहेगी। इसके अलावा घटस्थापना को अभिजित मुहूर्त दोपहर 12:08 बजे से 12:57 बजे तक रहेगा। वहीं प्रतिपदा तिथि 1 अप्रैल 2022 को सुबह 11:53 बजे से शुरू होगी और 2 अप्रैल 2022 को सुबह 11:58 पर खत्‍म होगी।
 
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ : अप्रैल 01, 2022 को सुबह 11 बजकर 54 से शुरू

प्रतिपदा तिथि समाप्त : अप्रैल 02, 2022 को सुबह 11 बजकर 57 पर समाप्त चैत्र घटस्थापना शनिवार, अप्रैल 2, 2022 को घटस्थापना शुभ मुहूर्त: सुबह 6 बजकर 22 मिनट से 8 बजकर 31 मिनट तक घटस्थापना का अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:08 बजे से 12:57 बजे तक रहेगा। घटस्थापना विधि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन सुबह उठकर स्नान आदि करके साफ वस्त्र पहनें। फिर मंदिर की साफ-सफाई करके गंगाजल छिड़कें। इसके बाद लाल कपड़ा बिछाकर उस पर थोड़े चावल रखें। मिट्टी के एक पात्र में जौ बो दें और इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश में चारों ओर अशोक के पत्ते लगाएं और स्वास्तिक बनाएं। फिर इसमें साबुत सुपारी, सिक्का और अक्षत डालें।

इसके बाद एक नारियल पर चुनरी लपेटकर कलावा से बांधें और इस नारियल को कलश के ऊपर पर रखते हुए देवी दुर्गा का आहवाहन करें। फिर दीप जलाकर कलश की पूजा करें। ध्यान रखें कि कलश स्टील सा किसी अन्य अशुद्ध धातु का नहीं होना चाहिए। कलश के लिए सोना, चांदी, तांबा, पीतल के धातु के अलावा मिट्टी का घड़ा काफी शुभ माना गया है। घटस्थापना को लेकर मान्यता मान्यता है कलश स्थापना से घर में सुख- समृद्धि का वास होता है। क्योंकि सबसे पहले कलश की ही पूजा की जाती है और उसके बाद मां दुर्गा की आराधना शुरू होती है। दरअसल कशल के मुख पर भगवान विष्णु का वास होता है और कंठ में रुद्र मतलब भगवान शिव का और मूल में ब्रह्मा जी का वास होता है। इसलिए एक कलश की पूजा करने से त्रिदेव की पूजा हो जाती है।
 
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होलिका दहन आज, जानिए होलिका का शुभ मुहूर्त, नियम, पूजा विधि

होलिका दहन आज 17 मार्च 2022 को किया जाएगा. इस बार होलिका दहन की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त केवल 09:20 बजे से 10:31 बजे तक रहेगा. इस 1 घंटे 10 मिनट के समय में ही विधि-विधान से होलिका दहन करना शुभ रहेगा. साथ ही यह भी सावधानी बरतनी होगी कि इस दौरान कोई गलती न करें. यदि होलिका दहन करते समय कुछ सावधानियां न बरतीं जाएं तो यह पूरी जिंदगी का दुख दे सकती हैं.


होलिका दहन में जरूर पालन करें ये नियम

  • होलिका दहन सही मुहूर्त पर ही करें. अशुभ मुहूर्त में होलिका दहन करना अशुभ फल देता है. होलिका दहन हमेशा भद्रा रहित समय में करना चाहिए.
  •  होलिका दहन के स्थान को पहले गंगाजल से शुद्ध करें और फिर डंडा बीच में रखकर उसके चारों ओर सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास रखें. होलिका की मूर्ति रखें.
  • विधि-विधान से पूजा करें. पूजा में दीपक, धूप, एक माला, गन्ना, चावल, काले तिल, कच्चा सूत, जल और पापड़ चढ़ाएं. इसके अलावा चावल, चने की झाड़ और गेंहू की बालियां भी डालें
  •  पूजा में हनुमान जी और शीतला माता को प्रणाम करें. इसके बाद अग्नि जलाएं और होलिका दहन करें.
  • होलिका दहन की अगली सुबह यानी होली खेलने वाले दिन होलिका दहन के स्थान पर एक लोटा ठंडा पानी जरूर डालें.

      बच्‍चों की बेहतरी के लिए कर लें ये उपाय

  • बच्‍चों की बेहतरी के लिए उनको बुरी नजर से बचाने के लिहाज से भी होलिका दहन बहुत खास है. इस दिन होलिका दहन में नारियल गोला, सुपारी और सिक्के डालने बच्‍चों का दिमाग तेज होता है. उनके मन में गलत विचार नहीं आते हैं. साथ ही वे बुरी आदतों से दूर रहते हैं. यह उपाय बच्चे को जीवन में खूब सफलता दिलाता है और धनवान बनाता है | 
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होलिका दहन पर जरूर करें ये उपाय, बदल जाएगी किस्मत

होली से एक दिन पहले आज देशभर में होलिका दहन का पर्व मनाया जाएगा। धर्म शास्त्र में होलिका दहन का खास महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक होलिका दहन सुख-समृद्धि और धन-वैभव के लिहाज से बेहद खास होता है। मान्यता के मुताबिक होलिका दहन के बाद परिक्रमा करते हुए अगर अपनी इच्छा कह दी जाए तो वो सच हो जाती है। ऐसा भी माना जाता है कि होलिका दहन के दिन सफेद खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए। होलिका की बची हुई अग्नि और भस्म को अगले दिन सुबह अपने घर ले जाने से सभी नकारात्मक उर्जा दूर होती है।

ऐसे करें होलिका दहन

होलिका दहन के स्थान को जल साफ करें, अगर संभव हो तो गंगाजल से शुद्ध करें। होलिका डंडा बीच में रखें, यह डंडा भक्त प्रहलाद का प्रतीक होता है। इसके बाद डंडे के चारों तरफ पहले चन्दन लकड़ी डालें। इसके बाद सामान्य लकड़ियां, उपले और घास चढ़ाएं। इसके बाद कपूर से अग्नि प्रज्वलित करें। होलिका दहन में पहले श्री गणेश हनुमान जी और शीतला माता भैरव जी की पूजा करें। अग्नि में रोली, पुष्प, चावल, साबूत मूंग, हरे चने, पापड़, नारियल आदि चीजें चढ़ाएं। इसके साथ ही मन्त्र -ॐ प्रह्लादये नमः को बोलते हुए परिक्रमा करें।

होलिका की अग्नि में अर्पित करें ये चीज

अच्छे स्वास्थ्य के लिए के लिए होलिका की अग्नि में काले तिल के दाने अर्पित करना चाहिए। बीमारी से मुक्ति के लिए होलिका की अग्नि में हरी इलाइची और कपूर अर्पित करें। धन लाभ के लिए लिका की अग्नि चन्दन की लकड़ी अर्पित करें। रोजगार के लिए होलिका की अग्नि में पीली सरसों अर्पित करें। विवाह और वैवाहिक समस्याओं के लिए हवन सामग्री अर्पित करें।

होलिका पूजन मंत्र
अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै: 
अतस्तां पूजयिष्यामि भूति भूति प्रदायिनीम।

नवविवाहित महिलाओं को जलती हुई होलिका नहीं देखनी चाहिए

मान्यता के मुताबिक नवविवाहित महिलाओं को जलती हुई होलिका बिल्कुल नहीं देखनी चाहिए। इसके पीछे की वजह ये मानी जाती है कि होलिका में एक पुराने साल की बुरी बलाओं को जलाया जाता है। इसका अर्थ ये भी माना जाता है कि आप पुराने साल के शरीर को जला रहे हैं। होलिका की आग को जलते हुए शरीर का प्रतीक माना जाता है, ऐसे में मान्यता है कि नवविवाहित कन्याओं को होलिका से उठती लपटों को नहीं देखना चाहिए। साथ ही ये भी मान्यता है कि गर्भवती महिलाओं को भी होलिका दहन करने नहीं देखना चाहिए।

होली से जुड़ी प्रचलित कहानी

होली पर्व से जुड़ी हुई अनेक कहानियां हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही भगवान मानने लगा था। उसने अपने राज्य में भगवान के नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से नाराज होकर हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग कभी भी नहीं छोड़ा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में जल नहीं सकती।

हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आदेश का पालन हुआ, परन्तु आग में बैठने पर होलिका तो आग में जलकर भस्म हो गई, परन्तु प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ।अधर्म पर धर्म की, नास्तिक पर आस्तिक की जीत के रूप में भी देखा जाता है। उसी दिन से प्रत्येक वर्ष ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में होलिका जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।
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होलिका दहन पर जरूर करें ये आसान उपाय

देश में होली और होलिका दहन की तैयारी जोरों पर है। कल यानी 17 मार्च को जहां होलिका दहन का पर्व मनाया जाएगा, वहीं 18 मार्च को रंगों का त्योहार होली खेली जाएगी। हिन्दू पंचांग के अनुसार, होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। वहीं इससे एक दिन पहले होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है। होलिका दहन के दिन लकड़ी की पूजा कर उसकी परिक्रमा की मान्याता है।
 
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक होलिका दहन के समय कुछ ऐसी चीजें डालने का प्रचलन है जिससे घर के संकट दूर होते हैं और परिवार में खुशियां आती हैं। मान्यता है कि होली और दीवाली ऐसे विशेष अवसर हैं जब हर प्रकार की साधनाएं, तांत्रिक क्रियाएं तथा छोटे छोटे उपाय भी सार्थक हो जाते हैं। आइये इस संबंध में ज्योतिर्विद् मदन गुप्ता सपाटू से जानते हैं कि होलिका दहन का क्या उपाय करने चाहिए जिससे घर में सुख, शांति और समृद्धि आए। घर में पैसों की कमी दूर हो। 
 
  • आपके घर, दूकान, प्रतिष्ठान को नजर लग गई हो या प्रतिद्वंदी ने कुछ करा दिया हो तो, होलिका दहन की सायं मुख्य द्वार की दहलीज पर लाल गुलाल छिड़कें, उस पर आटे का दोमुखी दिया थोड़ा सा सरसों का तेल डाल कर जलाएं। समस्याओं के निराकरण की प्रार्थना करें और दीपक ठंडा होने पर होलिका में डाल आएं। लाभ होगा।
  • कमल गटटे् की माला से ओम् महालक्ष्म्यै नमः का जाप करें। यही माला धारण कर के होलिका के निकट देसी घी का दीपक जला कर आर्थिक संपन्नता की प्रार्थना करें, शीघ्र लाभ होता है।
  • यदि कोई बहुत बीमार है या दवा नहीं लग रही तो एक मुट्ठी पीली सरसों, एक लौंग, काले तिल, एक छोटा टुकड़ा फिटकड़ी, एक सूखा नारियल लेकर उस पर 7 बार उल्टा घुमा के होलिका में दहन कर दें।
  • यदि कोई आत्मीय आपका कहना नहीं मानता या आपका शत्रु ही बन गया हो तो उसका नाम लेते हुए होलिका की रात, लाल चंदन की माला से इस मंत्र का जाप करें- ओम् कामदेवाय विद्महे पुष्पबाणाय धीमहि तन्नो अनंग प्रचोदयात!!
  • व्यापार वृद्धि तथा नजर उतारने के लिए, दूकान, आफिस या कार्यालय में सायंकाल एक सफेद कपड़े पर गेहूं और सरसों की 7-7 ढेरियां रखें। इन पर एक एक काली मिर्च रखें। 7 निम्बू के 2-2 टुकड़े कर के इन ढेरियों पर रखें। निम्न मंत्र का 7 बार पाठ करें- ओम् कपालिनी स्वाहा! पाठ समाप्ति पर इस सारी सामग्री की पोटली बनाकर लाल मौली से गांठ लगाकर बांध लें और दूकान या घर में एक सिरे से आरंभ कर के चारों कोनों पर घुमा कर बाहर ले आएं। इस पोटली को होलिका में डाल दें।
  • दूकान, आफिस, फैक्ट्री या मकान में अक्सर होने वाली या अचानक चोरी या नुक्सान, के बचाव हेतु- सूखा नारियल और तांबे का पैसा घर या दूकान में सात बार चारों कोनों में घुमा कर होलिका में डालें
  • धनवृद्धि हेतु होलिका में यह मंत्र 'ओम् श्रीं हृीं श्रीं महालक्ष्मय नमः' 108 बार पढ़ते जाएं और शक्कर की आहुति देते जाएं।
  • कार्यसिद्धि के लिए, खोपे के दो आधे-आधे कटोरे की शक्ल में टुकड़े कर लें। इस में कपूर, काले तिल, बर्फी, सिंदूर, हरी इलायची, लौंग रख के इस मंत्र की एक माला करें- ओम् हृीं क्लीं फट् स्वाहा! सामग्री को काले कपड़े में बांध कर होलिका में 7 परिक्रमा करके अर्पित कर दें।
  • दांपत्य जीवन में मिठास लाने के लिए रुई की 108 बत्तियां देसी घी में भिगो के होलिका में संबंध सुधार की अनुनय सहित परिक्रमा करते हुए एक-एक करके डालें। यह उपाय माता-पिता अपने बच्चों बर-वधु की फोटो पर घुमा कर भी कर सकते हैं।
  • यदि आपको लगता है कि किसी ने आपके उपर तांत्रिक अभिचार किया हुआ है जिसके कारण आपकी प्रगति ठप्प हो गई है तो देसी घी में भीगे दो लौंग ,एक बताशा,एक पान का पत्ता होलिका दहन में अर्पित करें। दूसरे दिन वहां की राख लेकर शरीर पर मलें और नहा लें। तांत्रिक अभिचार दूर हो जाएगा।
  • यदि आपको लगता है कि बच्चे को किसी की नजर लग गई है तो देसी घी में भीगे पांच लौंग, एक बताशा,एक पान का पत्ता होलिका दहन में अर्पित करें। दूसरे दिन वहां की राख ला के ताबीज में भर के बच्चे को पहनाएं।
  • यदि आपके घर को बुरी नजर लग गई है उसे उतारने का यह स्वर्णिम अवसर है। देसी घी में भीगे दो लौंग, एक बताशा, मिश्री ,एक पान का पत्ता होलिका दहन में अर्पित करें। दूसरे दिन वहां की राख लेकर लाल कपड़े में बांध के घर में रखें।
  • यदि कोई आपकी धन वापसी में बेईमानी कर रहा है और आप मुकदमे में नहीं पड़ना चाहते हैं तो होलिका दहन स्थल पर धन न लौटाने वाले का नाम जमीन पर अनार की लकड़ी से त्रिकोण के अन्दर लिखें और उस पर हरा गुलाल छिड़क दें। होलिका माता से धन वापसी की प्रार्थना करें। अगले दिन वहां से राख उठा के जल में उस व्यक्ति का नाम लेते हुए प्रवाहित कर दें।
  • यदि सरकार या व्यक्ति विशेष से बाधा है तो होलिका में उल्टे चक्कर लगाते हुए आक की जड़ के 7 टुकड़े, विरोधी का नाम लेते हुए डालें।
  • यदि व्यापार में लगातार घाटा या आर्थिक हानि हो रही है तो होलिका दहन की सायं दूकान या मकान के मुख्य द्वार की चौखट पर गुलाल छिड़कें, उस पर आटे का बना चार मुखी दीपक जलाएं। उस दीपक को जलती होलिका में डाल आएं।
  • गंभीर रोग यदि मेडिकल उपचार से भी ठीक नहीं हो रहा तो देसी घी में भीगे दो लौंग, एक बताशा, मिश्री, एक पान का पत्ता होलिका दहन में अर्पित करें। दाएं हाथ में 4 गोमती चक्र लेके रोग मुक्ति की प्रार्थना करें। गोमती चक्र रोगी की पलंग के चारों पायों में चांदी की तार से बांध दें। या फिर गोमती चक्र पीड़ित के उपर से 21 बार विपरीत दिशा में घुमाएं और होलिका में फेंक दें।या दक्षिण दिशा में फेंकें। या दो लौंग, काले तिल, सरसों, नारियल 21 बार उसार के अग्नि में डालें।
  • यदि पति या पत्नि किसी के चंगुल मे हैं तो होली की 7 परिक्रमा करते हुए औरत या उस पुरुष का नाम लें 7 गोमती चक्र डालते जाएं।
  • यदि राज्यप्रकोप हो तो तेजफल और गेहूं की एक मुट्ठी होलिका में डालें ।
  • किसी प्रकार का विवाद, दोस्तों से मनमुटाव हो तो एक मुट्ठी चावल और 7 फूटी कौड़ियां होलिका में भस्मित करें
  • किसी प्रकार का भाइयों से मनमुटाव या भूमि विवाद हो तो 11 नीम की पत्तियां और लाल चंदन, होलिका दहन में अर्पित करें।
  • गले या वाणी या त्वचा संबंधी रोगों के लिए हरी मूंग की एक मुट्ठी डालें।
  • पिता या किसी बुजुर्ग से विवाद समाप्ति हेतु, हल्दी की 7 गांठें और एक मुटठी चने की दाल डालें
  • खांसी, अस्थ्मा से पीड़ित व्यक्ति के उपर से सात बार उल्टा घुमा के 48 बादाम होलिका में समर्पित करें।
  •  पु़त्र या पुत्री से परेशानी हो या वह कहने में न हो तो सूखे प्याज लहसुन और हरा नींबू डालें।
  • धन न टिकता हो तो होली के दिन 5 कौड़ियां, लाल कपड़े में बांध कर तिजोरी, केश बॉक्स में रखें।
ये अनुभूत पारंपरिक तथा आंचलिक उपाय हैं जिन्हें सदियों से हमारे देश में प्रयोग कर लाभ उठाया जा रहा है। आप भी आजमा सकते हैं।
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आमलकी एकादशी आज, इन बातों का रखें विशेष ध्यान

हिंदी कैलेंडर के अनुसार साल भर में 24 एकादशी व्रत होते हैं। यानी हर माह में दो एकादशी तिथि पड़ती है। वहीं फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो हिंदू धर्म के अनुसार सभी एकादशियों का काफी महत्व माना गया है, लेकिन इन सब में आमलकी एकादशी को सर्वोत्तम स्थान पर रखा गया है। अमालकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। आमलकी एकादशी को रंगभरी एकदशी भी कहते हैं। यह अकेली ऐसी एकादशी है जिसका भगवान विष्णु के अलावा भगवान शंकर से भी संबंध है। रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की विशेष पूजा बाबा विश्वानाथ की नगरी वाराणसी में होती है। रंगभरी एकादशी के पावन पर्व पर भगवान शिव के गण उनपर और जनता पर जमकर अबीर-गुलाल उड़ाते हैं। आंवले के पूजन के कारण इस एकादशी को आंवला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा का भी विधान है। इस बार अमालकी एकादशी आज यानी 14 मार्च, सोमवार के दिन पड़ रही है। यदि आप आमलकी एकादशी व्रत रखते हैं, तो आपको कुछ नियमों का पालन करना होगा क्योंकि यह अन्य एकादशी व्रतों से थोड़ा सा भिन्न है।

 आमलकी एकादशी व्रत के महत्वपूर्ण नियमों के बारे में।

  • आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी की पूजा करनी चाहिए।
  • आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी की पूजा करनी चाहिए, यदि संभव न हों तो श्री विष्णु की पूजा कर सकते हैं।
  • आमलकी एकादशी की पूजा के समय आंवले का भी भोग विष्णु जी को अवश्य लगाएं।
  • मान्यता है कि भगवान विष्णु को आंवला अतिप्रिय है इसलिए आमलकी एकादशी की पूजा के समय आंवले का भी भोग विष्णु जी को अवश्य लगाएं।
  • पूजा के समय आमलकी एकादशी व्रत कथा का पाठ या श्रवण जरुर करना चाहिए। ऐसा करने से साधक की सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
  • आमलकी एकादशी के दिन मन, वचन और कर्म से व्रत रखें।
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आज है रंगभरी एकादशी

आज फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी मनाई जा रही है। एकादशी तिथि पर भगवान श्री हरि विष्णु की पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी, आंवला एकादशी और आमलका एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी मनाई जाती है। रंगभरी एकदशी अकेली ऐसी एकादशी है जिसका भगवान विष्णु के अलावा भगवान शंकर से भी संबंध है। रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की विशेष पूजा बाबा विश्वानाथ की नगरी वाराणसी में होती है। रंगभरी एकादशी के पावन पर्व पर भगवान शिव के गण उनपर और जनता पर जमकर अबीर-गुलाल उड़ाते हैं। रंगभरी एकादशी के दिन से ही वाराणसी में रंगों उत्सव का आगाज होता है जो लगातार 6 दिनों तक चलता है। आइए जानते हैं रंगभरी एकादशी तिथि, पूजा मुहूर्त एवं महत्व के साथ भगवान शिव से इसके संबंध के बारे में।

रंगभरी एकादशी तिथि और मुहूर्त

  • एकादशी तिथि आरंभ- 13 मार्च, रविवार प्रातः 10: 21 मिनट पर
  • एकादशी तिथि समाप्त- 14 मार्च, सोमवार दोपहर 12:05 मिनट पर
  • रंगभरी एकादशी का शुभ मुहूर्त आरंभ- 14 मार्च, दोपहर 12: 07 मिनट से
  • रंगभरी एकादशी का शुभ मुहूर्त समाप्त-14 मार्च, दोपहर 12: 54 मिनट तक

रंगभरी एकादशी का महत्व

रंगभरी एकादशी का विशेष महत्व है। इस एकादशी का संबंध भगवान शंकर और माता पार्वती से भी है। कहते हैं कि इस दिन भगवान शिव पहली बार माता पार्वती को काशी में लेकर आए थे। कहते हैं जब बाबा विश्वनाथ माता गौरी को पहली बार गौना कराकर काशी लाए थे तब उनका स्वागत स्वागत रंग, गुलाल से हुआ था। यही कारण है कि इस वजह से हर साल काशी में रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ और माता गौरा का धूमधाम से गौना कराया जाता है। इस दिन बाबा विश्वनाथ और माता पार्वती की पूरे नगर में सवारी निकाली जाती है और उनका स्वागत लाल गुलाल और फूलों से होता है। रंगभरी एकादशी को काशी विश्वनाथ मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन होता है।
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