धर्म समाज

नीलम धारण करने से इन ३ राशि वालों की चमक सकती है किस्मत

झूठा-सच @ न्यूज़ डेस्क। वैदिक ज्‍योतिष में रत्‍नों का विशेष महत्‍व बताया गया है और मानव जीवन में भी रत्‍न भाग्य में वृद्धि का काम करते हैं। रत्‍नों को धारण करके ग्रहों के अशुभ प्रभाव को दूर किया जा सकता है। रत्न शास्त्र में ९ रत्नों का वर्णन मिलता है। जिनका संंबध किसी न किसी ग्रह से जरूर होता है। यहां हम बात करे जा रहे हैं नीलम रत्न के बारे में, जिसका संबंध शनि देव से होता है। नीलम को अंग्रेजी में ब्लू सफायर कहते हैं। वहीं नीली इसका उपत्न होता है। आइए जानते हैं नीलम धारण करे के लाभ और पहनने की विधिज् इन राशि के लोग पहन सकते हैं नीलम: वैदिक ज्योतिष के मुताबिक यदि किसी व्‍यक्ति की कुंडली में शनि ग्रह चौथे, पांचवें, दसवें या फिर ११वें भाव में विराजमान हो तो ऐसे व्‍यक्ति को नीलम धारण चाहिए। इसके अलावा शनि षष्‍ठेश या अष्‍टमेश के साथ स्थित हो तो भी नीलम पहनना अत्‍यंत शुभ माना गया है। वहीं वृष राशि, मिथुन राशि, कन्या राशि, तुला राशि, मकर राशि और कुंभ राशि के जातक को नीलम धारण कर सकते हैं। शनि ग्रह अगर केंद्र के स्वामी हैं तो भी नीलम पहन सकते हैं। शनि अगर पंचम, नवम और दशम भाव में उच्च के विराजमान हो तो नीलम धारण करना चाहिए। रत्न शास्त्र अनुसार नीलम के दो उपरत्‍न लीलिया और जमुनिया होते हैं।
नीलम धारण करने के लाभ:नीलम धारण करते ही व्यक्ति को आर्थिक लाभ होने लगता है और नौकरी, बिजनेस में तरक्की होने के संकेत मिलने लगते हैं। नीलम रत्न काली विद्या, तंत्र-मंत्र, जादू-टोना, भूत प्रेत आदि से बचाता है। नीलम रत्न तुंरत ही अपना असर दिखाता है। साथ ही जिन लोगों में धैर्य की कमी होती है और वह हर काम को लेकर जल्दबाजी में रहते हैं तो ऐसे लोगों को नीलम धारण करने से धैर्य आता है। नीलम रत्न धारण करने से व्यक्ति कर्मठ और मेहनती बनता है। साथ ही वह हर काम को लगन से करता है। इस विधि से करें धारण: नीलम धारण करने के लिए सबसे शुभ दिन शनिवार का माना जाता है। क्योंकि शनिवार का संबंध शनि देव से माना जाता है। नीलम कम से कस सवा ५ से सवा ७ रत्ती का होना चाहिए। साथ ही नीलम को पंचधातु में धारण करना सबसे शुभ माना जाता है। शनिवार को सबसे पहले दूध, गंगाजल और शहद के मिश्रण में १० से १५ तक डाल दें। इसके बाद शनि के बीज मंत्र ऊं शम शनिचराय नम: मंत्र का कम से कम १०८ बार जाप करें। इसके बाद नीलम को दाएं हाथ की बीच की उंगली में धारण कर लें। नीलम धारण करने के बाद शनि ग्रह से संबंधित दान जरूर निकालें। 
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शिव भक्तों का तांता लगना शुरू, अचलेश्वर महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं की पूरी करते हैं हर मुराद

झूठा-सच @ ग्वालियरः सावन महीने के शुरुआत होते ही जगह-जगह के शिवालयों में शिव भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया है. ग्वालियर के प्रसिद्धि अचलेश्वर महादेव मंदिर में भी श्रद्धालुओं की पूजा अर्चना अभिषेक और बेलपत्र के साथ मनोकामनाओं का सिलसिला शुरू हो गया है. अचलेश्वर महादेव का मंदिर बहुत प्राचीन और बहुत प्राचीन और ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है. दरअसल वैसे तो अचलेश्वर महादेव मंदिर हर रोज श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन यहां सावन मास में लोगों का भक्ति भाव पूरी श्रद्धा भाव के साथ देखने को मिलने लगता है. मंदिर के पुजारी सुदामा शर्मा ने बताया कि मंदिर की महिमा अपरंपरार है. बाबा अचलनाथ यानी अचलेश्वर महादेव मंदिर कितना प्राचीन है. इसका उल्लेख नहीं है. इस मंदिर का ऐतिहासिकता और इतिहास अचल है. इसलिए अचल नाथ के नाम से अचलेश्वर महादेव मंदिर को जाना पहचाना जाता है. वहीं अचलेश्वर महादेव मंदिर पर पूजा अर्चना करने वाले श्रद्धालु सावन के महीने में अपनी मन्नत है और मनोकामनाएं मांगने के लिए पहुंचते हैं. श्रद्धालुओं की इतनी आस्था है कि वे जो मांगते हैं, वह मुराद उनकी पूरी हो जाती है. सावन माह में अचलेश्वर महादेव मंदिर में दिन भर भक्तों का आना जाना लगा रहता है. भक्त बाबा का जलाभिषेक करके उन पर भांग, धतूरा, बेलपत्र इत्यादि चढ़ाते हैं. भगवान शिव का यह अनोखा मंदिर है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग को हटाने के लिए बड़े से बड़े राजा महाराजा लगे रहें पर इस शिवलिंग को हिला नहीं सकें. उन्होंने कई हाथियों से इस शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया लेकिन हाथियों का बल भी बेकार हो गया. इस शिवलिंग को खोदकर निकालने की कोशिश की गई खोदने के बाद पानी तो निकल गया, लेकिन अचलेश्व महादेव के शिवलिंग का कोई छोर नहीं मिला. ग्वालियर के बीच चौराहे पर स्थित भगवान शिव के इस अद्भुत शिवलिंग को लोग अचलनाथ के नाम से पुकारते हैं. 
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जानिए मां लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के उपाय

हिंदू धर्म के अनुसार सप्ताह का प्रत्येक दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है. आज शुक्रवार का दिन है और आज का दिन धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित है.इस दिन मां लक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन किया जाता है. यदि आप अपने जीवन में आर्थिक संकटों से जूझ रहे हैं तो आज यानि शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी का पूजन करें.  यदि मां लक्ष्मी प्रसन्न हो जाएं तो आपकी समस्याओं का समाधान होगा

शुक्रवार के उपाय
शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए सुबह उठकर स्नान आदि कर सफेद रंग के वस्त्र धारण करें. इसके बाद मां लक्ष्मी के श्री स्वरूप की तस्वीर के समक्ष खड़े होकर श्री सूक्त का पाठ करें.

मां लक्ष्मी को कमल का फूल अतिप्रिय है और शुक्रवार के दिन पूजा करते समय यदि उन्हें कमल का फूल अर्पित किया जाए तो जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

आर्थिक संकट से बचने के लिए मां लक्ष्मी के गजलक्ष्मी स्वरूप की पूजर करना चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से संपत्ति और संतान दोनों की प्राप्ति होती है.

शुक्रवार के दिन घर से निकलते समय थोड़ा सा दही चीनी खाकर निकलें. ऐसा करने से कार्यों में सफलता हासिल होगी.

मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजन करने के बाद उन्हें शंख, कौड़ी, कमल, मखाना, बताशा जरूर अर्पित करें.

यदि पति पत्नी के रिश्तें में तनाव चल रहा है तो उन्हें शुक्रवार के दिन अपने बेडरूम में प्रेमी पक्षी जोड़े की लगानी चाहिए. कुछ ही दिनों में आपको बदलाव नजर आएगा |
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सावन में कैसे करें भगवान शिव को प्रसन्न जानिए

भगवान शिव का प्रिय महीना सावन 2022 आज 14 जुलाई से शुरू हो गया है. इस महीने की शुरुआत शुभ माने गए विष्कुंभ और प्रीति योग से शुरू हो रही है. ज्‍योतिष के अनुसार इन दोनों ही योग में शिव जी की पूजा करने से दोगुना फल मिलता है. ऐसे में आज शुभ मुहूर्त में विधि-विधान से की गई पूजा हर मनोकामना पूरी करेगी. विशेष संयोग में सावन मास की शुरुआत के अलावा सावन के सभी सोमवार पर भी ऐसे ही विशेष संयोग बन रहे हैं. इस कारण साल 2022 का पूरा सावन महीना ही बहुत खास हो गया है. सावन मास 12 अगस्‍त तक चलेगा.

सावन 2022 पहले दिन पूजा मुहूर्त और विधि
14 जुलाई को सावन के पहले दिन पूजा का मुहूर्त सुबह 04:11 बजे से शुरू हो जाएगा. इस दौरान अभिजित मुहूर्त सुबह 11:59 से दोपहर 12:54 बजे तक रहेगा. वहीं अमृत काल मुहूर्त दोपहर 02:45 बजे से 03:40 बजे तक और गोधूलि मुहूर्त शाम 07:07 बजे से 07:31 बजे तक रहेगा.

सावन महीने के पहले दिन विधि-विधान से शिव जी की पूजा करें. इसके लिए सुबह जल्‍दी स्‍नान करके साफ कपड़े पहनें. बेहतर होगा सफेद रंग के कपड़े पहनें. फिर घर के मंदिर में या शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करें. पंचामृत से अभिषेक करें तो बहुत अच्‍छा है. इसके बाद शिव जी को फूल, बेलपत्र, धतूरा, शक्कर, घी, दही, शहद, सफेद चंदन, कपूर, अक्षत, पंचामृत, फल, आदि अर्पित करें. याद रखें कि शिव जी की पूजा के साथ मां पार्वती की पूजा जरूर करें. रुद्राभिषेक के दौरान ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करें. आखिर में आरती करें और प्रसाद बांटें.
सावन सोमवार 2022
साल 2022 के सावन महीने का पहला सोमवार 18 जुलाई 2022 को, दूसरा सावन सोमवार 25 जुलाई 2022 को, तीसरा सावन सोमवार 1 अगस्त 2022 को और चौथा सावन सोमवार 8 अगस्त 2022 को पड़ेगा. इन सभी सावन सोमवार में पूरे भक्ति-भाव से व्रत रखें और शिव जी की पूजा करें. ऐसा करने से जीवन के सारे कष्‍ट दूर होंगे और मनोकामनाएं भी पूरी होंगी |

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सावन का महीना आज से शुरू

शिव जी का प्रिय माह सावन आज से शुरु हो गया है. पूरे सावन माह में विधि विधान से शिव जीकी पूजा-अर्चना की जाती है. सभी लोग उनकी पूजा में कम से कम गाय का दूध, गंगाजल, बेलपत्र, भांग और धतूरा चढ़ाते हैं. लेकिन कई बार लोग अनजाने में शिव जी की पूजा में ऐसी वस्तुएं भी चढ़ा देते हैं, जो उनके लिए वर्जित मानी गई हैं. शिव पूजा में भूलवश भी उन वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए. देवताओं को उनकी प्रिय वस्तुएं ही अर्पित करते हैं, 

शिव पूजा में वर्जित वस्तुएं

1. तुलसी का पत्ता
भगवान शिव की पूजा में तुलसी का पत्ता नहीं चढ़ाते हैं क्योंकि भगवान शिव ने वृंदा के पति असुरराज जालंधर का वध किया था. उसके बाद वृंदा ने स्वयं अपना जीवन समाप्त कर लिया और जहां उन्होंने प्राण त्याग किया, उस स्थान पर तुलसी का पौधा उग आया.
2. नारियल या श्रीफल
शिव पूजा में नारियल या श्रीफल वर्जित है. श्रीफल का संबंध माता लक्ष्मी से है और वे भगवान विष्णु की पत्नी हैं. इस वज​ह से भगवान शिव को नारियल अर्पित नहीं करते हैं.
3. सिंदूर या कुमकुम
लोग भूलवश​ माता पार्वती के साथ शिव जी को भी सिंदूर या कुमकुम लगा देते हैं. ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि ​सिंदूर श्रृंगार से जुड़ी वस्तु है और शिव स्वयं संन्यासी और तपस्वी हैं. उनको सिंदूर या कुमकुम न लगाएं.
4. हल्दी
शिव जी की पूजा में हल्दी का भी उपयोग नहीं किया जाता है. हल्दी को भी श्रृंगार और सौंदर्य से जुड़ी वस्तु माना जाता है. यह भी शिव पूजा में वर्जित माना गया है.
5. शंख
भगवान शिव की पूजा करते समय शंख का उपयोग नहीं करते हैं. जैसे शंख में गंगाजल भरकर शिव जी का अभिषेक करना. भगवान शिव ने शंखचूड़ नामक राक्षस का वध किया था, तो उसके हड्डियों से शंख का निर्माण हुआ. इस वजह से शिव पूजा में शंख वर्जित है.
6. केतकी का फूल
शिव जी केतकी के फूल को अपनी पूजा में स्वीकार नहीं करते हैं. इसका कारण है कि केतकी के फूल ने ब्रह्मा जी के झूठ में साथ दिया था. तब से केतकी का फूल शिव जी से शापित है. इसकी कथा शिवपुराण में है.
7. ये फूल भी हैं वर्जित
शिव पूजा में केवड़े का फूल, कनेर, कमल और लाल रंग के फूल वर्जित हैं. शिव जी को सफेद रंग वाले फूल चढ़ाने चाहिए.
8. तिल और टूटे अक्षत्
शिव पूजा में तिल और टूटे अक्षत् का उपयोग नहीं करते हैं. माना जाता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के मैल से हुई थी, वहीं अक्षत् का अर्थ क्षति से रहित अर्थात् आप जो भी चावल अक्षत् के रूप में चढ़ाते हैं, वह पूरा होना चाहिए, टूटा हुआ नहीं |
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आज गुरु पूर्णिमा पर बनने वाले शुभ योग, मुहूर्त व पूजन विधि जानिए

झूठा सच @ रायपुर :- 3 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का पावन त्योहार देशभर में मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान व दान का विशेष महत्व है। आषाढ़ मास में पड़ने वाली पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, गुरु पूर्णिमा के दिन ही वेदों के रचयिता महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास के जन्म पर सदियों से गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुपूजन की परंपरा चली आ रही है। 

 
गुरु पूर्णिमा शुभ मुहूर्त 2022-

गुरु पूर्णिमा 13 जुलाई को सुबह करीब 4 बजे से अगले दिन गुरुवार, 14 जुलाई को देर रात 12 बजकर 6 मिनट पर समाप्त होगी। गुरु पूर्णिमा के दिन इन्द्र योग दोपहर 12:45 बजे तक रहेगा। इस दिन चन्द्रोदय का समय शाम 07:20 बजे है। भद्रा सुबह 05 बजकर 32 मिनट से दोपहर 02 बजकर 04 मिनट तक है। इस दिन का राहुकाल दोपहर 12 बजकर 27 मिनट से दोपहर 02 बजकर 10 मिनट तक है।

गुरु पूर्णिमा पर बन रहे शुभ योग-

आषाढ़ पूर्णिमा पर ग्रहों की शुभ स्थिति के कारण कई राजयोग का निर्माण हो रहा है। इस बार गुरु पूर्णिमा पर गुरु, मंगल, बुध और शनि ग्रह के शुभ संयोग से रुचक, शश, हंस और भद्र योग बन रहे हैं।
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हनुमान पूजा कैसे करें, जानिए जरूरी नियम

सनातन परंपरा में हनुमान जी की पूजा कष्टों को दूर करके सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाली मानी गई है. चिरंजीवी माने जाने वाले हनुमान जी के बारे में मान्यता है कि वे प्रत्येक युग में पृथ्वी पर मौजूद रहते हैं और सच्चे मन से सुमिरन करते ही मदद के लिए दौड़े चले आते हैं. मान्यता यह भी है कि सच्चे मन से हनुमान जी के नाम का जप कीर्तन करने पर बजरंगी के भक्त को किसी भी प्रकार की भय या बाधा नहीं सताती है. आइए हनुमान जी की पूजा से जुड़े उन सभी नियमों को विस्तार से जानते हैं, जिनका पालन किए बगैर हनुमत साधना अधूरी रह जाती है.


कब और कैसे करें हनुमान जी की पूजा
हनुमान जी की पूजा वैसे तो कभी भी की जा सकती है लेकिन विशेष फल को पाने के लिए प्रत्येक दिन सुबह या शाम को या फिर किसी एक निश्चिम समय पर करें. इसी प्रकार हनुमान जी की पूजा की पूजा लाल रंग के आसन पर बैठकर लाल रंग के पुष्प, फल, मिठाई आदि अर्पित करके करना चाहिए. हनुमान जी की पूजा में जलाए जाने वाले दिए को जलाने के लिए भी लाल रंग के सूत की बाती और शुद्ध देशी घी का प्रयोग करना चाहिए. भगवान श्री राम की पूजा के बगैर हनुमान जी की पूजा अधूरी मानी जाती है. ऐसे में हनुमान जी के साथ उनके प्रभु श्री राम की पूजा जरूर करें.

हनुमान जी की पूजा में चढ़ाएं इन चीजों का प्रसाद
किसी भी देवी-देवता की पूजा प्रसाद के बगैर अधूरी मानी जाती है. ऐसे में हनुमान जी की पूजा करते समय हमेशा उनकी प्रिय चीजों का प्रसाद जैसे बूंदी, बूंदी से बने लड्डू, चूरमा आदि का भोग लगाएं. हनुमान जी की पूजा में पंचामृत का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

इस अवस्था में भूलकर न करें हनुमान जी की पूजा
हनुमान जी की पूजा में पवित्रता का बहुत ख्याल रखना होता है. कई बार इसकी अनदेखी करने के कारण लोग पुण्य की बजाय पाप के भागीदार बन जाते हैं. ऐसे में हनुमान जी की पूजा हमेशा तन-मन से पवित्र होकर स्वच्छ कपड़े पहनकर ही करनी चाहिए. हनुमान जी के मंदिर और उसमें प्रयोग लाई जाने सभी चीजों को साफ करके रखना चाहिए. इसी प्रकार यदि घर में सूतक चल रहा हो तो हनुमान जी की पूजा नहीं करना चाहिए. हनुमान जी की साधना करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य विशेष रूप से पालन करना चाहिए और पूरे साधना के दौरान भूलकर भी मन में कामुक विचार नहीं लाना चाहिए.

महिलाओं के लिए हनुमान जी की पूजा का नियम
हनुमान जी की पूजा में महिलाओं को कुछेक नियमों का विशेष रूप से पालन करना चाहिए. चूंकि हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं इसलिए उन्हें भूलकर भी हनुमान जी की मूर्ति को नहीं छूना चाहिए और पूजन कार्य पुजारी या फिर किसी अन्य पुरुष के माध्यम से करवाना चाहिए. रजस्वला होने पर महिलाओं को इस नियम का विशेष रूप से ख्याल रखना चाहिए |
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जानिए सोम प्रदोष व्रत और पूजा विधि

आज आषाढ़ मा​ह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत है. सोमवार दिन होने के कारण यह सोम प्रदोष व्रत  है. यदि आपकी कोई मनोकामना है और उसे पूरा करना चाहते हैं, तो आप सोम प्रदोष व्रत रखें और प्रदोष मुहूर्त में भगवान भोलेनाथ की पूजा करें. सोम प्रदोष व्रत मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला होता है. जरूरत होती है तो सच्चे मन से भगवान शिव की भक्ति और विधिपूर्वक उनकी पूजा. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट के अनुसार, आज सोम प्रदोष पर बना सर्वार्थ सिद्धि योग आपकी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए उत्तम है. इस योग ​में किए गए कार्य सफल होते हैं. आज आपको शुभ मुहूर्त में भगवान महादेव की पूजा करनी चाहिए. 


प्रदोष पूजा का शुभ समय और विधि.
सोम प्रदोष व्रत 2022 मुहूर्त
आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी तिथि की शुरूआत: 11 जुलाई, सुबह 11:13 बजे से
आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी तिथि की समाप्ति: 12 जुलाई, मंगलवार, सुबह 07 बजकर 46 मिनट पर
शिव पूजा का प्रदोष मुहूर्त: आज शाम 07:22 बजे से रात 09:24 बजे तक
सर्वार्थ सिद्धि योग: सुबह 05:31 बजे से सुबह 07:50 बजे तक
शुक्ल योग: सुबह से रात 09:02 बजे तक, फिर ब्रह्म योग
रवि योग: कल सुबह 05:15 बजे से सुबह 05:32 बजे तक
शिव पूजा का मंत्र

ओम नम: शिवाय. यह शिव पंचाक्षर मंत्र है. यह समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला शिव मंत्र है. यह सरल लेकिन प्रभावशाली मंत्र है.
सोम प्रदोष व्रत और पूजा विधि
1. आज प्रात: स्नान के बाद सोम प्रदोष व्रत और शिव पूजा का संकल्प लें. पूजा के समय सूर्य देव को जल अर्पित करें.
2. अब आप सुबह में दैनिक पूजा कर लें. दिनभर फलाहार पर रहें. शाम के समय में प्रदोष मुहूर्त में किसी शिव मंदिर में जाकर पूजा करें या फिर घर पर ही शिवलिंग की पूजा करें
 3. सबसे पहले शिवलिंग का गंगाजल से अभिषेक करें. फिर चंदन, अक्षत्, बेलपत्र, भांग, धतूरा, शमी के पत्ते, सफेद फूल, फल, शहद, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित करें. इस दौरान ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें.
4. अब आप शिव चालीसा का पाठ करें और सोम प्रदोष व्रत कथा पढ़ें या सुनें. इसके बाद घी के दीपक से शिव जी की आरती उतारें. अंत में जो भी आपकी मनोकामना है, उसकी पूर्ति के लिए प्रार्थना करें. रात्रि के समय में शिव भजन और जागरण करें.
5. अगली सुबह स्नान के बाद पूजा करें. ब्राह्मण को दान दें. फिर सूर्योदय के पश्चात पारण करके व्रत को पूरा करें.
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बकरीद का धार्मिक महत्व और इतिहास

इस्लाम धर्म में बकरीद एक प्रमुख त्योहार है और इसे ईद-उल-जुहा के नाम से जाना जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार ईद-उल-जुहा का पर्व 12वें महीने की 10 तारीख को मनाया जाता है. ये पवित्र त्योहार रमजान महीने के खत्म होने के 70 दिन बाद मनाया जाता है.  मुस्लिम धर्म में इसका बेसब्री से इंतजार किया जाता है. इस साल किस दिन मनाई जाएगी बकरीद और क्या है इसका महत्व?

कब है बकरीद 2022 
बकरीद यानि ईद-उल-अजहा का पवित्र त्योहार भारत में 10 जुलाई, रविवार के दिन मनाया जा सकता है. इस त्योहार पर बकरे की कुर्बानी देने की प्रथा है और इसलिए इसे कुर्बानी के तौर पर मनाया जाता है.
बकरीद का धार्मिक महत्व
इस्लाम धर्म के अनुसार पैंगबर हजरत इब्राहिम के समय से कुर्बानी देने की प्रथा शुरू हुई थी. कहा जाता है कि एक बार अल्लाह ने पैंगबर इब्राहिम का इम्तिहान लेने के लिए उनसे उनकी सबसे प्यारी वस्तु का त्याग करने के लिए कहा. जिसके बाद पैंगबर सा​हब ने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया.
बकरीद का इतिहास
पैगंबर हजरत इब्राहिम का इम्तिहान लेने के लिए अल्लाह ने उन्हें हुक्म दिया कि वे अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान कर दें. हजरत सोचने लगे कि आखिर उन्हें सबसे ज्यादा प्यार किससे है जिसकी वह कुर्बानी दे सकें. फिर उन्होंने अपने इकलौते बेटे हजरत इब्राहिम की कुर्बानी का फैसला किया क्योंकि वह अपने बेटे से सबसे ज्यादा प्यार करते थे. वे अपने बेटे को कुर्बान करने निकल पड़े. उन्होंने आंखों पर पट्टी बांधी जिससे कुर्बानी के समय उनके हाथ रुक न जाएं. और कुर्बानी दे दी.लेकिन जब उन्होंने पट्टी उतारी तो देखा कि उनका बेटा सही-सलामत है. रेत पर एक भेड़ कटा पड़ा था. कहते हैं कि अल्लाह ने उनकी कुर्बानी की भावना से खुश होकर बेटे को जीवनदान दिया था. तभी से जानवरों की कुर्बानी को अल्लाह का हुक्म माना गया और बकरीद का पर्व मनाया जाने लगा | 
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10 जुलाई को देवशयनी एकादशी, जाने पूजा विधि और मंत्र

आषाढ़ शुक्ल एकादशी से सृष्टि के पालनहार श्री विष्णु का शयनकाल शुरू हो जाता है एवं कार्तिक शुक्ल एकादशी को सूर्य के तुला राशि में आने पर भगवान जनार्दन योगनिद्रा से जागते हैं। लगभग चार माह के इस अंतराल को चार्तुमास कहा गया है। शास्त्रों में इस एकादशी को पद्मनाभा,आषाढ़ी,हरिशयनी और देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन से सभी मांगलिक कार्यों के दाता भगवान विष्णु का पृथ्वी से लोप होना माना गया है इसलिए गरुड़ध्वज जगन्नाथ के शयन करने पर विवाह,यज्ञोपवीत संस्कार,दीक्षाग्रहण,यज्ञ,गोदान,गृहप्रवेश आदि सभी शुभ कार्य चार्तुमास में त्याज्य हैं।

पदमपुराण के अनुसार श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर को कहते हैं कि हे राजन!हरि शयनी एकादशी के दिन मेरा एक स्वरुप राजा बलि के यहां रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शैया पर तब तक रहता है जब तक आगामी कार्तिक एकादशी नहीं आ जाती,अतः इस दिन से लेकर कार्तिक एकादशी तक जो मनुष्य मेरा स्मरण करते हुए धर्माचरण करता है उसे मेरा सानिध्य प्राप्त होता है। देवशयनी एकादशी की रात में जागरण करके शंख,चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करने वाले के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं।जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करते हैं वह परमगति को प्राप्त होते हैं। इस दिन दीपदान करने से श्री हरि की कृपा बनी रहती है।


एकादशी तिथि विष्णुजी को अतिप्रिय है इसलिए इस दिन जप-तप,पूजा-पाठ, उपवास करने से मनुष्य जगत नियंता श्री हरि की कृपा प्राप्त कर लेता है। इस दिन तुलसी की मंजरी तथा पीला चन्दन,रोली,अक्षत,पीले पुष्प,ऋतु फल एवं धूप-दीप,मिश्री आदि से भगवान वामन का भक्ति-भाव से पूजन करना चाहिए। पदम् पुराण के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन कमललोचन भगवान विष्णु का कमल के फूलों से पूजन करने से तीनों लोकों के देवताओं का पूजन हो जाता है । रात्रि के समय भगवान नारायण की प्रसन्नता के लिए नृत्य,भजन-कीर्तन और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए। जागरण करने वाले को जिस फल की प्राप्ति होती है,वह हज़ारों बर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता। इस व्रत को करने से प्राणी के जन्म-जन्मांतर के पाप क्षीण हो जाते हैं तथा जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।

भगवान को शयन करवाते समय श्रद्धापूर्वक इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-

'सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम।

विबुद्धे त्वयि बुध्येत जगत सर्वं चराचरम।'

'हे जगन्नाथ जी! आपके सो जाने पर यह सारा जगत सुप्त हो जाता है और आपके जाग जाने पर सम्पूर्ण विश्व तथा चराचर भी जागृत हो जाते हैं । प्रार्थना करने के बाद भगवान को श्वेत वस्त्रों की शय्या पर शयन करा देना चाहिए ।

 

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जानिए कब हैं बकरीद

झूठा सच @  रायपुर :- बकरीद को ईद-उल-अजहा के नाम से भी जानते हैं। इस साल बकरीद भारत में 10 जुलाई, रविवार को मनाए जाने की संभावना है। इस त्योहार को ईद-उल-जुहा या बकरा ईद के नाम से भी जानते हैं। इसे रमजान खत्म के करीब 70 दिनों के बाद मनाया जाता है। बकरा ईद पर कुर्बानी देने की प्रथा है।बकरा ईद का धार्मिक महत्व- इस्लाम मजहब की मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि पैगंबर हजरत इब्राहिम से ही कुर्बानी देने की प्रथा शुरू हुई थी. कहा जाता है कि अल्लाह ने एक बार पैगंबर इब्राहिम से कहा था कि वह अपने प्यार और विश्वास को साबित करने के लिए सबसे प्यारी चीज का त्याग करें और इसलिए पैगंबर इब्राहिम ने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया था। कहते हैं कि जब पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे को मारने वाले थे। उसी वक्त अल्लाह ने अपने दूत को भेजकर बेटे को एक बकरे से बदल दिया था। तभी से बकरा ईद अल्लाह में पैगंबर इब्राहिम के विश्वास को याद करने के लिए मनाई जाती है। इस त्योहार को नर बकरे की कुर्बानी देकर मनाते हैं। इसे तीन भागों में बांटा जाता है, पहला भाग रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों और तीसरा परिवार के लिए होता है।
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जानिए कब है नाग पंचमी

सावन माह और भोलेनाथ की पूजा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. सावन का माह शिव जी की पूजा के लिए बेहद पवित्र माना जाता है. सावन माह में पड़ने वाली नाग पंचमी का भी विशेष महत्व बताया जाता है. इस दिन विधि-विधान के साथ नाग देवता की पूजा-अर्चना की जाती है. नाग पंचमी सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है. ये पर्व भी भगवान शिव को ही समर्पित होता है. इस दिन नाग देवता की पूजा करने अध्यात्मिक शक्ति, अपार धन और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है.

नाग पंचमी तिथि और शुभ मुहूर्त 2022
सावन माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है. इस बार नाग पंचमी 2 अगस्त को मनाई जाएगी. 2 अगस्त को सुबह 05 बजकर 14 मिनट से पंचमी तिथि आरंभ हो रही है. और 3 अगस्त सुबह 05 बजकर 42 मिनट तक पंचमी तिथि रहेगी. नाग पंचमी मुहूर्त की अवधि 03 घंटे 41 मिनट तक है.इस दिन नाग देवता की पूजा करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है. साथ ही, नाग देवता की पूजा से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है.भक्तों को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. नाग पंचमी के दिन विशेष पूजन सामग्री की आवश्यकता होती है.
 
नाग पंचमी पूजन सामग्री
नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा करने के लिए पूजन सामग्री पहले से ही तैयार कर लें. इस दिन नाग देवता की प्रतिमा, दूध, पुष्प, शहद, गंगा जल, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, पंच फल पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, भांग, बेर, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव और मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री आदि की जरूरत पड़ती है |

 

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जानिए आज का शुभ मुहूर्त और राहुकाल का समय

हिंदू पंचांग के अनुसार आज 5 जुलाई, मंगलवार का दिन है. यह दिन संकटमोचन भगवान हनुमान को समर्पित है. यदि आप भी हनुमान जी का पूजन करते हैं तो आपको शुभ व अशुभ मुहूर्त के बारे में जानकारी होना जरूरी है. क्योंकि शुभ मुहूर्त में की गई पूजा फलदायी होती है. आइए जानते हैं आज के शुभ व अशुभ मुहूर्त के बारे में


5 जुलाई 2022- आज का पंचांग 
तिथि
षष्ठी – 07:28 पी एम तक
आज सूर्योदय-सूर्यास्त और चंद्रोदय-चंद्रास्त का समय
सूर्योदय का समय : 05:28 ए एम
सूर्यास्त का समय : 07:23 पी एम
चंद्रोदय का समय: 10:45 ए एम
चंद्रास्त का समय : 11:35 पी एम
नक्षत्र :
पूर्वाफाल्गुनी – 10:30 ए एम तक
आज का करण :
कौलव – 07:04 ए एम तक
तैतिल – 07:28 पी एम तक
आज का योग
व्यतीपात – 12:16 पी एम तक
आज का वार : मंगलवार
आज का पक्ष : शुक्ल पक्ष
हिन्दु लूनर दिनांक
शक सम्वत:
1944 शुभकृत्
विक्रम सम्वत:
2079 राक्षस
गुजराती सम्वत:

2078 प्रमादी
चन्द्रमास:
आषाढ़ – पूर्णिमान्त
आषाढ़ – अमान्त
आज का शुभ मुहूर्त 
अभिजीत मुहूर्त 11:58 ए एम से 12:53 पी एम तक रहेगा. अमृत काल 04:10 ए एम, जुलाई 06 से 05:51 ए एम, जुलाई 06 तक रहेगा.
आज का अशुभ मुहूर्त 
दुर्मुहूर्त 08:15 ए एम से 09:11 ए एम, 11:25 पी एम से 12:06 ए एम, जुलाई 06 तक रहेगा. राहुकाल 03:54 पी एम से 05:39 पी एम रहेगा. गुलिक काल 12:26 पी एम से 02:10 पी एम तक रहेगा, वहीं यमगण्ड 08:57 ए एम से 10:41 ए एम तक रहेगा.
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जानिए सावन सोमवार व्रत की पूजा विधि

 हिंदू धर्म में देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए सावन का महीना सबसे उत्तम माना गया है। इस पूरे माह में शिव जी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। वैसे तो धार्मिक दृष्टि से ये पूरा माह विशेष फलदाई है, लेकिन सावन में पड़ने वाले प्रत्येक सोमवार का अलग ही महत्व है। इस ममाह में सोमवार के दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है। सुबह से ही शिव भक्त मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर दूध, जल और बेलपत्र चढ़ाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त सच्चे मन से सावन सोमवार व्रत करता है और भगवान भोलेनाथ की विधिवत पूजा अर्चना करता है उसपर शिव शम्भू के साथ मां पार्वती भी प्रसन्न होती हैं। इसके अलावा अविवाहित लड़कियां यदि सावन माह में सोमवार का व्रत करती हैं, तो उन्हें योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।


सावन सोमवार पूजा सामग्री
सावन माह में सोमवार पूजा के लिए फूल, पंच फल पंच मेवा, रत्न, सोना, चांदी, दक्षिणा, पूजा के बर्तन, कुशासन, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगाजल, पवित्र जल, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार सामग्री लें।
सावन सोमवार व्रत-विधि
  • सावन सोमवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और इसके बाद भगवान शिव का जलाभिषेक करें। साथ ही देवी पार्वती और नंदी को भी गंगाजल या दूध चढ़ाएं।
  • पंचामृत से रुद्राभिषेक करें और बेल पत्र अर्पित करें। शिवलिंग पर धतूरा, भांग, आलू, चंदन, चावल चढ़ाएं। इसके बाद शिव जी के साथ माता पार्वती और गणेश जी को तिलक लगाएं।
  • प्रसाद के रूप में भगवान शिव को घी-शक्कर का भोग लगाएं। आखिर में धूप, दीप से भगवान भोलेनाथ की आरती करें और पूरे दिन फलाहार हर कर शिव जी का स्मरण करते रहें।
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शनिवार को करें ये उपाय

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनिवार का दिन शनिदेन को समर्पित होता है। इस दिन विधि- विधान से शनिदेव की पूजा- अर्चना की जाती है। शनिदेव के अशुभ प्रभावों से हर कोई भयभीत रहता है। शनि के अशुभ होने पर व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शनि के अशुभ होने पर जहां व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वहीं शनि के शुभ होने पर व्यक्ति का सोया हुआ भाग्य भी जाग जाता है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन राजा दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। राजा दशरथ ने शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए इस स्तोत्र की रचना की थी। दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
 
आगे पढ़ें दशरथ कृत शनि स्तोत्र-

राजा दशरथ कृत शनि स्तोत्र

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।

नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।

नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।

नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।

नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।

सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।

नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।

तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।

नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।

तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।

देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।

त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।

प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।

एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।
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आज है जगन्नाथ रथ यात्रा

प्रसिद्ध जगन्ना​थ रथ यात्रा आज 01 जुलाई से शुरू होने वाली है। यह 01 जुलाई से प्रारंभ होकर 12 जुलाई तक चलेगी। यह यात्रा 01 जुलाई को शाम 04:00 बजे से जगन्नाथ रथ यात्रा प्रारंभ हो जाएगी। भक्त 3 किलोमीटर तक इन रथों को खींचकर ले जाएंगे। सबसे आगे बलराम जी का रथ तालध्वज, उसके बाद सुभद्रा जी का रथ दर्पदलन और फिर भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष होगा।

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं। ओडिशा के पुरी शहर में स्थित जगन्नाथ मंदिर में हर साल धूमधाम के साथ रथयात्रा निकाली जाती है। जगन्नाथ मंदिर से तीन सजेधजे रथ रवाना होते हैं। इनमें सबसे आगे बलराज जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगन्नाथ प्रभु का रथ होता है।

रथ यात्रा 2022 शेड्यूल
01 जुलाई 2022 (शुक्रवार) - रथ यात्रा प्रारंभ
05 जुलाई 2022 (मंगलवार) - हेरा पंचमी (पहले पांच दिन गुंडिचा मंदिर में वास करते हैं)
08 जुलाई 2022 (शुक्रवार) - संध्या दर्शन (मान्यता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने से 10 साल श्रीहरि की पूजा के समान पुण्य मिलता है)
09 जुलाई 2022 (शनिवार) - बहुदा यात्रा (भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व बहन सुभद्रा की घर वापसी)
10 जुलाई 2022 (रविवार) - सुनाबेसा (जगन्नाथ मंदिर लौटने के बाद भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ शाही रूप लेते हैं)
11 जुलाई 2022 (सोमवार) - आधर पना (आषाढ़ शुक्ल द्वादशी पर दिव्य रथों पर एक विशेष पेय अर्पित किया जाता है। इसे पना कहते हैं।)
12 जुलाई 2022 (मंगलवार) - नीलाद्री बीजे ( नीलाद्री बीजे जगन्नाथ यात्रा का सबसे दिलचस्प अनुष्ठान है।)
क्यों निकाली जाती है रथयात्रा
पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार एक बार लाडली बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्‍ण और बलराम से नगर देखने की इच्‍छा जताई थी। तब दोनों भाई अपनी प्‍यारी बहन को रथ में बैठाकर नगर भ्रमण के लिए ले गए थे। इस दौरान तीनों अपनी मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां पर 7 दिन तक रुके और उसके बाद नगर यात्रा को पूरा करके वापस पुरी लौटे। कहते हैं कि तभी से यहां पर हर साल रथ यात्रा निकालने की परंपरा का आरंभ हुआ था।

 इस भक्‍त की मजार पर रुकता है रथ
यात्रा के दौरान भगवान जगन्‍नाथ का रथ एक मुस्लिम भक्‍त सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए जरुर रुकता है। कहा जाता है कि एक बार जगन्‍नाथजी का यह मुस्लिम भक्‍त सालबेग अपने भगवान के दर्शन करने के लिए मंदिर नहीं पहुंच सका था। फिर उसके मरने के बाद जब उसकी मजार बनी जो जगन्‍नाथजी का रथ खुदबखुद उसकी मजार पर रुक गया और कुछ देर के लिए आगे नहीं बढ़ पाया। फिर उस मुस्लिम सालबेग की आत्‍मा के लिए शांति प्रार्थना की गई तो उसके बाद रथ आगे बढ़ पाया। तब से हर साल रथयात्रा के दौरान रास्‍ते में पड़ने वाली सालबेग की मजार पर जगन्‍नाथजी का रथ कुछ समय के लिए जरूर रुकता है।

रथ में नहीं होता एक भी कील का प्रयोग
जगन्‍नाथ रथ यात्रा के तीनों रथों को बनाने में किसी भी धातु का प्रयोग नहीं किया जाता और न ही इसमें कोई कील लगाई जाती है। यह रथ पूरी तरह से केवल नीम की परिपक्‍व और पकी हुई लकड़ी से तैयार किए जाते हैं। इसे दारु कहा जाता है। रथ बनाने में जिस लकड़ी का इस्तेमाल किया जाएगा उसका चयन बसंत पंचमी के दिन किया जाता है और अक्षय तृतीया के दिन से रथ को बनाने का काम शुरू किया जाता है। भगवान जगन्‍नाथ के रथ में कुल 16 पहिए होते हैं और यह बाकी दोनों रथों से बड़ा भी होता है।

ये हैं तीनों रथों के नाम
भगवान जगन्‍नाथ का रथ नंदीघोष सबसे ऊंचा 45।6 फीट का, उसके बाद बलरामजी का रथ तालध्‍वज रथ 45 फीट का और उसके बाद बहन सुभद्रा का रथ दर्पदलन 44।6 फीट का होता है।

तीनों रथों के रंग भी होते है भिन्न
तीनों रथों का रंग भी अलग-अलग होता है। भगवान जगन्‍नाथ का रथ नंदीघोष पीले और लाल रंग का होता है। बलरामजी का रथ तालध्‍वज लाल और हरे रंग का होता है। वहीं बहन सुभद्रा का रथ दर्पदलन काले और लाल रंग का होता है।

सोने की झाड़ू से होती है सफाई
जब तीनों रथ यात्रा के लिए सजसंवरकर तैयार हो जाते हैं तो फिर पुरी के राजा गजपति की पालकी आती है और फिर रथों की पूजा की जाती है। इस पूजा को पारंपरिक भाषा में छर पहनरा कहा जाता है। उसके बाद सोने की झाड़ू से रथ मंडप और रथ यात्रा के रास्‍ते को साफ किया जाता है।
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मनेन्द्रगढ़ के हनुमान टेकरी मंदिर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पूजा-अर्चना

झूठा सच @  रायपुर /मनेन्द्रगढ़ :- मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज मनेन्द्रगढ़ में स्थित हनुमान टेकरी मंदिर में विधिवत पूजा अर्चना कर प्रदेश में शान्ति, समृद्धि एवं खुशहाली के लिए प्रार्थना की। मंदिर के पुजारी शिवराम दास ने बताया कि मंदिर के गर्भगृह में नौमुखी श्री हनुमान तथा सूर्यदेव से शिक्षा प्राप्त करते हुए बाल हनुमान की प्रतिमा स्थापित है, वहीं मंदिर के गुफा मंदिर में अपने कंधों पर रामलखन को बैठाए हुए पाताल हनुमान जी की प्रतिमा भी है।मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली है। मंदिर का निर्माण श्री फलाहारी बाबा द्वारा कराया गया था, जिनकी समाधि परिसर में स्थापित है, यहां गौसेवा हेतु गौशाला, साधू- संतो हेतु आश्रम भी है। इस अवसर पर गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू, संसदीय सचिव अम्बिका सिंहदेव, विधायक डॉ. विनय जायसवाल और गुलाब कमरो भी उपस्थित थे।

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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा कल से शुरू

हर साल की तरह इस बार भी आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को उड़ीसा में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा की शुरूआत होने वाली है। पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा इस बार 01 जुलाई, शुक्रवार से शुरू होगी। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ भी निकाला जाता है। तीनों अलग-अलग रथ में सवार होकर यात्रा पर निकलते हैं। रथ यात्रा का समापन आषाढ़ शुक्ल एकादशी पर होता है। 
रथ और भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी खास बातें...
भगवान जगन्नाथ के रथ में एक भी कील का प्रयोग नहीं होता। यह रथ पूरी तरह से लकड़ी से बनाया जाता है, यहां तक की कोई धातु भी रथ में नहीं लगाया जाता है। रथ की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के दिन और रथ बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से होती है।हर साल भगवान जगन्नाथ समेत बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाएं नीम की लकड़ी से ही बनाई जाती है। इन रथों में रंगों की भी विशेष ध्यान दिया जाता है। भगवान जगन्नाथ का रंग सांवला होने के कारण नीम की उसी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता जो सांवले रंग की हो। 

वहीं उनके भाई-बहन का रंग गोरा होने के कारण उनकी मूर्तियों को हल्के रंग की नीम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।पुरी के भगवान जगन्नाथ के रथ में कुल 16 पहिये होते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ लाल और पीले रंग का होता है और ये रथ अन्य दो रथों से थोड़ा बड़ा भी होता है। भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे पीछे चलता है पहले बलभद्र फिर सुभद्रा का रथ होता है।भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष कहते है,बलराम के रथ का नाम ताल ध्वज और सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन रथ होता है।

भगवान को ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन जिस कुंए के पानी से स्नान कराया जाता है वह पूरे साल में सिर्फ एक बार ही खुलता है। भगवान जगन्नाथ को हमेशा स्नान में 108 घड़ों में पानी से स्नान कराया जाता है।
हर साल आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को नए बनाए हुए रथ में यात्रा में भगवान जगन्नाथ,बलभद्र और सुभद्रा जी नगर का भ्रमण करते हुए जगन्नाथ मंदिर से जनकपुर के गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं। गुंडीचा मंदिर भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर है। यहां पहुंचकर विधि-विधान से तीनों मूर्तियों को उतारा जाता है। फिर मौसी के घर स्थापित कर दिया जाता है।
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