धर्म समाज

दिवाली 31 अक्टूबर को, नोट करें पूजा सामग्री लिस्ट

सनातन धर्म में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं लेकिन दिवाली को प्रमुख माना गया है जो कि देशभर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को सुख समृद्धि का प्रतीक माना गया है। इस दिन दीपक जलाकर लोग अंधकार को दूर करते हैं और जीवन में प्रकाश लाते हैं। यह पर्व मानव जीवन को सकारात्मकता से भर देता है।
दिवाली के दिन भगवान श्री गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना का भी विधान होता है। इस साल दिवाली का पावन पर्व 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा। ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा दिवाली पूजन सामग्री की लिस्ट बता रहे हैं जिससे कोई भी पूजन सामग्री छूट न जाए, तो आइए जानते हैं।
दिवाली पूजा सामग्री लिस्ट-
दिवाली पूजा की सामग्री में सबसे पहले लक्ष्मी प्रतिमा शामिल करें। इसके बाद पूजा में मुख्य रूप से कलावा, गाय का दूध, दही, गंगाजल, गुड़, रोली, चावल, पान, सुपारी, कुमकुम, चंदन, सिंदूर, अबीर, गुलाल, कपूर, अगरबत्ती, नारियल, लौंग, इलायची, रूई की की बत्ती। दिवाली पूजा में दीपक का होना भी जरूरी है इनकी संख्या आप अपनी इच्छा अनुसार रख सकती है लेकिन कम से कम 5 दीपक जरूर होने चाहिए।
दीपक की संख्या 11, 21 और 31 के अनुपात में होना जरूरी है। इस दिन माता को भोग लगाने के लिए पंचामृत, मौसमी फल, गाय के दूध से बनी खीर, खील बताशे, गन्ना आदि भी शामिल करें। इसके अलावा तांबे का कलश, कमल गट्टे की माला, जनेउ, इत्र, पूजा की चौकी, चांदी का सिक्का, शंख, आसन, थाली, ​बैठने के लिए आसन आम के पत्ते भी शामिल करें।
लक्ष्मी पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त-
आपको बता दें कि दिवाली की शाम लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा विधि विधान से की जाती है इस दिन पूजा शुभ मुहूर्त में करना लाभकारी माना जाता है इससे माता लक्ष्मी की कृपा बरसती है और घर में सुख समृद्धि आती है। इस साल दिवाली का त्योहार 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन शाम को 6 बजकर 27 मिनट से रात 8 बजकर 32 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त है। वही दिवाली पर पूजा का निशिता मुहूर्त रात में 11 बजकर 39 मिनट से देर रात 12 बजकर 31 मिनट तक है।
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धनतेरस के दिन शुभ मुहूर्त में इस विधि से करें पूजा

  • मां लक्ष्मी होंगी प्रसन्न
सनातन धर्म में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन धनतेरस का पर्व बहुत ही खास माना जाता है जो कि हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर मनाया जाता है इस दिन आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा अर्चना की जाती है मान्यता है कि धन्वंतरि जी की पूजा करने से सभी तरह की रोग बीमारियां दूर हो जाती हैं इसके अलावा कुबेर और माता लक्ष्मी की भी पूजा इस दिन की जाती है ऐसा करने से सुख समृद्धि घर आती है
धनतेरस के दिन को खरीदारी के लिए खास माना जाता है इस दिन चीजों की खरीदारी करने से धन में वृद्धि होती है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा धनतेरस की सरल पूजा विधि और मुहूर्त की जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।
धनतेरस पर ऐसे करें पूजा-
आपको बता दें कि धनतेरस के शुभ दिन पर स्नान आदि करके साफ वस्त्रों को धारण करें इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें अब एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और देवता कुबेर की प्रतिमा स्थापित करें इसके बाद घी का एक दीपक जलाएं और अक्षत, रोली, लाल पुष्प अर्पित करें अब धूप जलाएं फिर भोग लगाकर लक्ष्मी जी की आरती करें इसके बाद लक्ष्मी स्तोत्र, चालीसा और कुबेर स्तोत्र का पाठ श्रद्धा भाव से करें माना जाता है कि इस विधि से धनतेरस की पूजा करने से देवी कृपा बनी रहती है और धन दौलत में वृद्धि होती है।
धनतेरस की तारीख और मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार धनतेरस की त्रयोदशी तिथि 29 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 31 मिनट से आरंभ हो रही है और 30 अक्टूबर को दोपहर 1 बजकर 15 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। धनतेरस उसी दिन मनाई जाती है जिस दिन त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल मिलता है इस साल त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल 29 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 38 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 13 मिनट तक रहेगा। ऐसे में धनतेरस का त्योहार इस साल 29 अक्टूबर दिन मंगलवार को मनाया जाएगा।
धनतेरस पर खरीदारी का पहला शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 31 मिनट से अगले दिन सुबह 10 बजकर 31 मिनट तक है। वही दूसरा खरीदारी का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 42 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक है।धनतेरस पर खरीदारी का पहला शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 31 मिनट से अगले दिन सुबह 10 बजकर 31 मिनट तक है। वही दूसरा खरीदारी का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 42 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक है।
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गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को, जानिए...पूजन मुहूर्त और पूजा विधि

पांच दिवसीय दिवाली के चौथे दिन गोवर्धन महाराज की पूजा की जाती है। हर साल यह त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है लेकिन इस बार इस त्योहार की तिथि को लेकर कुछ असमंजस की स्थिति है। आइए आपको बताते हैं इस साल गोवर्धन पूजा की सही तारीख, इसका महत्व और पूजा विधि।
दिवाली त्योहार के चौथे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इसे "अन्नकूट" के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन विशेष रूप से अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। यह त्यौहार प्रकृति और मानव के अंतर्संबंध को भी दर्शाता है।
इस दिन विशेष रूप से अन्नकूट बनाया जाता है, जो कई सब्जियों का मिश्रण होता है। इसके साथ ही भगवान कृष्ण को 56 भोग भी लगाया जाता है, जो इस पूजा का मुख्य आकर्षण है।
ऐसा माना जाता है कि पहले ब्रजवासी देवराज इंद्र की पूजा करते थे, लेकिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा का सुझाव दिया। इस पर इंद्र क्रोधित हो गए और भारी वर्षा की, तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की।
इंद्र के कारण आए तूफान और बारिश के कारण घरों में सब्जियां एकत्रित कर अन्नकूट बनाया गया। तभी से हर वर्ष इस अवसर पर गोवर्धन पूजा के साथ अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।
2024 में गोवर्धन पूजा 2 नवंबर, शनिवार को मनाई जाएगी। प्रतिपदा तिथि 1 नवंबर को शाम 6:16 बजे शुरू होगी और 2 नवंबर को रात 8:21 बजे समाप्त होगी, इसलिए उदया तिथि के अनुसार गोवर्धन महाराज की पूजा 2 नवंबर को होगी।
गोवर्धन पूजन का शुभ मुहूर्त 2 नवंबर को शाम 6:30 बजे से रात 8:45 बजे तक रहेगा. इस दौरान 2 घंटे 45 मिनट पूजा के लिए शुभ रहेंगे, जब भगवान की पूजा की जा सकेगी।
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके भगवान कृष्ण और गोवर्धन महाराज की पूजा की जाती है। आंगन में गोबर से गोवर्धन, गाय-बछड़े और ब्रजवासियों की मूर्तियां बनाई जाती हैं और उन्हें फूलों और खील से सजाया जाता है।
पूजा के बाद गोवर्धन महाराज की सात बार परिक्रमा की जाती है, जिसमें दूध मिश्रित जल का प्रयोग किया जाता है. इसके बाद घी का दीपक जलाकर गोवर्धन महाराज के जयकारे लगाकर आरती की जाती है।
पूजा और परिक्रमा के बाद परिवार के सभी सदस्य घर के बड़ों से आशीर्वाद लेते हैं। यह त्यौहार परिवार को एक साथ लाता है और समाज में प्रकृति के महत्व को समझने का संदेश देता है।
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गुरु पुष्य नक्षत्र के साथ अमृत और सर्वार्थ सिद्धि योग आज

  • जानिए...चौघड़िया, कब क्या खरीदें
दीपोत्सव से 7 दिन पहले गुरुवार 24 अक्टूबर को गुरु पुष्य नक्षत्र के साथ अमृत और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। बाजार में धन वर्षा होगी। बाजार में पुष्य नक्षत्र की तैयारियां शुरू हो गई हैं।
24 अक्टूबर को सुबह सवा छह बजे से लेकर अगले दिन 25 अक्टूबर को सुबह सात बजकर 40 मिनट यह नक्षत्र रहेगा। पुष्य नक्षत्र में खरीदी की गई कोई भी वस्तु लंबे समय तक उपयोगी रहती है तथा शुभ फल प्रदान करती है।
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि 24 अक्टूबर को पुष्य नक्षत्र की शुरुआत सुबह से हो जाएगी, जो पूरे दिन रहेगा। इसके अलावा इस दिन महालक्ष्मी, सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि, बुधादित्य योग भी बनेगा।
दिवाली से पहले गुरु पुष्य नक्षत्र के साथ इतने शुभ योग के बनना बाजार के लिए शुभ माना जा रहा है। गुरु पुष्य नक्षत्र शुभ मुहूर्त 24 अक्टूबर को पूरा दिन खरीदारी के लिए श्रेष्ठ है।
गुरु पुष्य नक्षत्र में कौन-सी वस्तु खरीदें-
पुष्य नक्षत्र पर शनि के प्रभाव के कारण लोहा भी महत्वपूर्ण है।
चंद्र के प्रभाव के कारण चांदी की खरीदारी भी शुभ मानी जाती है।
इस नक्षत्र में भूमि, जमीन, घर, भवन, गाड़ी खरीदना शुभ होता है।
दुकान में दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना करने से धन आगमन होता है।
गुरु पुष्य नक्षत्र सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त-
गुरु और पुष्य दोनों ही धन, समृद्धि, और ज्ञान के प्रतीक हैं। इसलिए, इन दोनों के संयोग से बनने वाला योग बहुत शुभ माना जाता है और इस योग के दौरान जितने भी कार्य किये जाते हैं, उनमें सफलता मिलने की संभावना होती है।
ज्योतिष के यह श्रेष्ठतम मुहूर्तों में से एक है। देवगुरु बृहस्पति भी इसी नक्षत्र में पैदा हुए थे। गुरु पुष्य योग में धर्म, कर्म, मंत्र जाप, अनुष्ठान, मंत्र दीक्षा अनुबंध, व्यापार आदि आरंभ करने के लिए अति शुभ माना गया है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सभी 27 नक्षत्रों में आठवां नक्षत्र पुष्य होता है। इस नक्षत्र को सभी नक्षत्रों का राजा माना जाता है। इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं, जिनका मुख्य तत्व सोना है। ऐसे में गुरु पुष्य योग में सोना खरीदना शुभ होता है। वरलक्ष्मी जी का आशीर्वाद मिलता है।
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बाबा खाटूश्याम जी को बेहद पसंद है इन 3 चीजों का भोग

बाबा श्याम को कलयुग का अवतार माना जाता है। श्याम को हारे का सहारा भी कहा जाता है। हर साल लाखों भक्त बाबा श्याम के दरबार में शीश जलाने आते हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि बाबा श्याम कौन हैं... और खाटूश्याम जी में बाबा श्याम का मंदिर क्यों बनाया गया है... जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
महाभारत में उल्लेख है कि भीम के पुत्र घटोत्कच थे और उनके पुत्र बर्बरीक थे। बर्बरीक देवी माँ के भक्त थे। बर्बरीक की तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर देवी माँ ने उन्हें तीन बाण दिये, जिनमें से एक से वह संपूर्ण पृथ्वी को नष्ट कर सकते थे। ऐसे में जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तो बर्बरीक ने अपनी मां हिडिम्बा को युद्ध लड़ने का प्रस्ताव दिया. तब बर्बरीक की माँ ने सोचा कि कौरवों की सेना बड़ी है और पांडवों की सेना छोटी है, इसलिए शायद कौरव युद्ध में पांडवों पर भारी पड़ जायेंगे। तब हिडिम्बा ने कहा कि तुम हारने वाले पक्ष की ओर से लड़ोगे। इसके बाद माता की आज्ञा मानकर बर्बर लोग महाभारत के युद्ध में भाग लेने के लिए निकल पड़े। लेकिन, श्री कृष्ण जानते थे कि यदि बर्बरीक युद्ध स्थल पर पहुँच गए तो जीत पांडवों की होगी, वे कौरवों की ओर से युद्ध लड़ेंगे। इसलिए भगवान कृष्ण ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और बर्बरीक के पास पहुंचेतब भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक ने दान स्वरूप अपना शीश बिना किसी प्रश्न के भगवान कृष्ण को दान कर दिया। इस दान के कारण श्री कृष्ण ने कहा कि कलयुग में तुम मेरे नाम से पूजे जाओगे, कलयुग में तुम श्याम के नाम से पूजे जाओगे, तुम कलयुग के अवतार कहलाओगे और हारे का सहारा बनोगे।
जब घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को दान में दे दिया, तो बर्बरीक ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की, तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक का शीश एक ऊँचे स्थान पर रख दिया। तब बर्बरीक ने संपूर्ण महाभारत युद्ध देखा। युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान कृष्ण ने बर्बरीक का सिर गर्भवती नदी में फेंक दिया। इस प्रकार बर्बरीक यानि बाबा श्याम का शीश गर्भवती नदी से खाटू (उस समय खाटुवांग शहर) में आ गया। आपको बता दें कि खाटूश्यामजी में गर्भवती नदी 1974 में लुप्त हो गई थी.
स्थानीय लोगों के अनुसार, पीपल के पेड़ के पास एक गाय प्रतिदिन अपने आप दूध देती थी, ऐसे में जब लोगों ने उस स्थान की खुदाई की तो वहां से बाबा श्याम का सिर निकला। बाबा श्याम का यह शीश फाल्गुन माह की ग्यारस को प्राप्त हुआ था इसलिए बाबा श्याम का जन्मोत्सव भी फाल्गुन माह की ग्यारस को मनाया जाता है। खुदाई के बाद ग्रामीणों ने बाबा श्याम का सिर चौहान वंश की नर्मदा देवी को सौंप दिया। इसके बाद नर्मदा देवी ने बाबा श्याम को गर्भ गृह में स्थापित कर दिया और जिस स्थान पर बाबा श्याम को खोदा गया था, वहां पर एक श्याम कुंड बनाया गया।
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धनतेरस तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

धनतेरस से दीपोत्सव की शुरुआत हो जाती है. धनतेरस का त्योहार छोटी दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है. सनातन शास्त्रों में धनतेरस के त्योहार का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान धन्वंतरि, मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा करने से जातक को जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती है। साथ ही खजाना हमेशा धन से भरा रहता है और मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। धनतेरस तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।
धनतेरस 2024 तिथि और समय-
पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 29 अक्टूबर को सुबह 10:31 बजे शुरू होगी. वहीं, इसका समापन 30 अक्टूबर को दोपहर 01:15 बजे होगा. सनातन धर्म में तिथि की गणना सूर्योदय से की जाती है। ऐसे में धनतेरस 29 अक्टूबर को मनाया जाएगा
धनतेरस पूजा मुहूर्त-
शाम 06:31 बजे से रात 08:13 बजे तक
प्रदोष काल- शाम 05:38 AM से 08:13 AM तक
वृषभ काल- 06:31 PM से 09:27 PM तक
ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 04:48 बजे से प्रातः 05:40 बजे तक
विजय मुहूर्त- 01:56 PM से 02:40 PM तक
गोधूलि मुहूर्त- शाम 05:38 बजे से शाम 06:04 बजे तक
धनतेरस पूजा विधि-
धनतेरस के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें। इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करें। सूर्यदेव को जल अर्पित करें। चौकी पर मां लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि और कुबेरजी की मूर्ति रखें। दीपक जलाएं और चंदन का तिलक लगाएं। इसके बाद आरती करें. साथ ही संग में भगवान गणेश की पूजा भी करें. कुबेरजी के मंत्र ॐ ह्रीं कुबेराय नमः का 108 बार जाप करें और धन्वंतरि स्तोत्र का पाठ करें। इसके बाद मिठाई और फल आदि का भोग लगाएं। श्रद्धानुसार दान करें. धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से धन लाभ के योग बनते हैं और जातक को आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है।
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महामुहूर्त गुरु पुष्य नक्षत्र कल, हर प्रकार की वस्तु खरीदना शुभ

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर 24 अक्टूबर को खरीदी के महामुहूर्त गुरु पुष्य नक्षत्र का संयोग बन रहा है। इस दिन दीपावली के लिए भी खुशियों की खरीदी की जाएगी। धर्मशास्त्र की मान्यता के अनुसार गुरु पुष्य नक्षत्र में हर प्रकार की वस्तु खरीदना शुभ है। इस दिन खरीदी गई वस्तु घर में स्थायी समृद्धि प्रदान करती है। अत: नक्षत्र विशेष की साक्षी में सुबह से रात तक खरीदी करना विशेष शुभ रहेगा।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार 27 नक्षत्रों में पुष्य को नक्षत्रों का राजा माना जाता है। दीपावली से पहले इस नक्षत्र का आना सर्वत्र शुभता का प्रतीक है। शास्त्र में गुरु पुष्य नक्षत्र को महामुहूर्त माना गया है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र की गणना से देखें तो पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि और उपस्वामी बृहस्पति है।
शनि को काल पुरुष की ऊर्जा और पुरुषार्थ के प्रति समर्पण एवं कुछ करने की प्रेरणा का कारक माना जाता है। वहीं बृहस्पति को ज्ञान, त्याग, निवेश, परिवारिकता, शिक्षा और आध्यात्मिक का कारक बताया जाता है। विशेष रूप से उनके यह खास क्षेत्र है हालांकि इनके भिन्नतर क्षेत्र और भी बहुत सारे हैं किंतु इस दिन इन क्षेत्रों का विशेष महत्व रहता है। यही कारण है कि व्यवहारिक जीवन में भौतिक समृद्धि को प्राप्त करने के लिए सुख सुविधा की दृष्टि से खरीदारी करने की मान्यता है।
गुरु पुष्य नक्षत्र के महासंयोग में सोने, चांदी के आभूषण, सिक्के, भूमि, भवन, वाहन, इलेक्ट्रानिक्स उत्पाद, दो व चार पहिया वाहन, सोने, चांदी की मूर्तियां, राशि रत्न, वस्त्र, सौंदर्य प्रसाधन, कलम, दवात, बही खाते, बर्तन आदि की खरीदी करना विशेष शुभ रहेगा। लोगों ने श्रेष्ठ नक्षत्र में शुभ खरीदी के लिए दो व चार पहिया वाहन, इलेक्ट्रानिक्स उत्पाद तथा प्लाट आदि की बुकिंग करा ली है।
नए कार्यों का श्री गणेश भी कर सकते हैं-
पुष्य नक्षत्र के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग होने से इस दिन सभी प्रकार के कार्य को सिद्ध माना जाता है। अपने ग्रह नक्षत्र के आधार पर यदि कोई कार्य योजना बना रखी है, तो इस योजना का शुभारंभ इस दिन कर सकते हैं। कोई नया व्यापार या व्यवसाय या प्रतिष्ठान के प्रमुख स्थापना या शुरुआत करनी है, तो इस दिन का लाभ लिया जा सकता है।
शनि गुरु के केंद्र त्रिकोण का मिलेगा लाभ-
ग्रह गोचर की गणना के अनुसार देखें तो वर्तमान में शनि कुंभ राशि पर गोचर कर रहे हैं। वहीं बृहस्पति वृषभ राशि पर क्योंकि इस दिन पुष्य नक्षत्र का प्रभाव दिनभर विद्यमान रहेगा, इस दृष्टि से शनि का केंद्र योग और गुरु का त्रिकोण योग आदि की स्थिति बनेगी जो समृद्धि को स्थायित्व प्रदान करेगा। इस दृष्टि से भी स्वर्ण आभूषण, लोहे के उत्पाद या वाहनों आदि सामग्री का संचय कर सकते हैं। वही वस्त्र एवं बैंकिंग से जुड़ी पालिसी खरीदी जा सकती है।
स्थायी संपत्ति में निवेश के लिए शुभ दिन-
पुष्य नक्षत्र के स्वामी शनि है, इसलिए इस दिन स्थायी संपत्ति की खरीदी की योजना भी बनाई जा सकती है। जिसमें भूमि, भवन, मकान, दुकान व्यावसायिक प्रतिष्ठान की खरीदी तथा रेस्टोरेंट, टेक्सटाइल मिल्स, इलेक्ट्रानिक्स उत्पाद इकाई का शुभारंभ किया जा सकता है।
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उज्जैन पहुंचे छत्तीसगढ़ के राज्यपाल रमेन डेका, महाकालेश्वर के दर्शन किए

उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध बाबा महाकालेश्वर के दरबार में आज छत्तीसगढ़ के राज्यपाल रामेन डेका ने बाबा महाकाल के दरबार में पहुंचकर बाबा का आशीर्वाद लिया मंदिर के पुजारी द्वारा उनका विधि विधान से पूजन संपन्न कराया। राज्यपाल रामेन डेका ने अपने उज्जैन प्रवास के दौरान महाकालेश्वर भगवान के दर्शन किये। महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति की ओर से प्रशासक गणेश कुमार धाकड़ ने राज्यपाल डेका का स्मृति चिन्ह, दुप्पटा व प्रसाद भेंटकर सम्मान किया गया। 
बता दे की छत्तीसगढ़ के राज्यपाल ने गर्भग्राम में परिवार के साथ पहुंचकर बाबा महाकाल का आशीर्वाद दिया और विश्व कल्याण की कामना की जिसके बाद मंदिर समिति द्वारा उनका शाल श्रीफल से स्वागत भी किया गया। इस दौरान संजय पुजारी, राम पुजारी, आशीष पुजारी, बाला पुजारी सहायक प्रशासक मूलचंद जूनवाल उपस्थित थे।
राज्यपाल रमेन डेका ने उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर पहुंचकर भगवान शिव के दर्शन कर विधिवत पूजा अर्चना की और छत्तीसगढ़ के समस्त प्रदेश वासियों की सुख समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की। इस अवसर पर प्रथम महिला श्रीमती रानी डेका काकोटी उपस्थित थी।
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जानिए...छोटी दिवाली की तिथि, महत्व और मान्यताएं

हिंदू धर्म में दिवाली के त्योहार का विशेष महत्व है। आपको बता दें कि दिवाली से एक दिन पहले छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी का व्रत रखा जाता है। यह व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।
इस दिन दीपदान का विशेष महत्व है और भगवान श्री कृष्ण, यमराज जी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि छोटी दिवाली कब मनाई जाएगी और इस दिन का क्या महत्व है?
छोटी दिवाली 2024 तारीख-
वैदिक पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 30 अक्टूबर को दोपहर 01:20 बजे हो रहा है और यह तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर 03:50 बजे समाप्त होगी. नरक चतुर्दशी के दिन सुबह किए जाने वाले अभ्यंग स्नान का विशेष महत्व होता है, इसलिए इस वर्ष नरक चतुर्दशी व्रत या छोटी दिवाली 31 अक्टूबर 2024, गुरुवार को मनाई जाएगी। इस दिन अभ्यंग स्नान का समय प्रातः 05:25 बजे से प्रातः 06:30 बजे के बीच रहेगा.
नरक चतुर्दशी 2024 शुभ मुहूर्त-
नरक चतुर्दशी पर सुबह की पूजा का शुभ समय सुबह 05:15 बजे से सुबह 06:32 बजे तक रहेगा. इसके साथ ही संध्या पूजा का सही समय शाम 05:35 बजे से शाम 06:50 बजे के बीच रहेगा. अभिजीत मुहूर्त दान के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, जो इस दिन सुबह 11:40 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक रहेगा। शास्त्रों में कहा गया है कि नरक चतुर्दशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-ध्यान करना लाभकारी होता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त का समय प्रातः 04:50 बजे से प्रातः 05:40 बजे तक रहेगा।
नरक चतुर्दशी और छोटी दिवाली का क्या महत्व है?-
शास्त्रों में कहा गया है कि नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था और 16000 स्त्रियों को उसकी कैद से मुक्त कराया था। इसलिए इस खास दिन पर पूजा-पाठ के साथ-साथ इस दिन दीपदान का भी विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन चौमुखी दीपक जलाने से घर में सुख-समृद्धि आती है और नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम होता है। नरक चतुर्दशी के दिन यमराज जी की पूजा का भी विशेष महत्व है, जिससे आरोग्य और धन का आशीर्वाद मिलता है।
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काली चौदस की रात करें ये काम, जड़ से नष्ट हो जाएगी हर समस्या

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को काली चौदस का पर्व मनाया जाता है। दिवाली के पंच दिवस उत्सव का यह दूसरा दिन होता है। काली चौदस का पर्व भगवान विष्णु के नरकासुर पर विजय पाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है तथा इस पर्व का देवी काली के पूजन से गहरा संबंध है। तंत्रशास्त्र के अनुसार महाविद्याओं में देवी कालिका सर्वोपरीय है। काली शब्द हिन्दी के शब्द काल से उत्पन्न हुआ है। जिसके अर्थ हैं समय, काला रंग, मृत्यु देव या मृत्यु। तंत्र के साधक महाकाली की साधना को सर्वाधिक प्रभावशाली मानते हैं और यह हर कार्य का तुरंत परिणाम देती है। साधना को सही तरीके से करने से साधकों को अष्टसिद्धि प्राप्त होती है।काली चौदस के दिन कालिका के विशेष पूजन-उपाय से लंबे समय से चल रही बीमारी दूर होती है।
यदि आपके व्यवसाय में निरन्तर गिरावट आ रही है, तो आज रात्रि में पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का सिक्का व 11 अभिमंत्रित धनदायक कौड़ियां बांधकर 108 बार श्रीं लक्ष्मी-नारायणाय नमः का जाप कर धन रखने के स्थान पर रखने से व्यवसाय में प्रगतिशीलता आ जाती है।
यदि कोई व्यक्ति मिर्गी या पागलपन से पीड़ित हो तो आज रात में काली हल्दी को कटोरी में रखकर लोबान की धूप दिखाकर शुद्ध करें तत्पश्चात एक टुकड़ें में छेद कर काले धागे में पिरोकर उसके गले में पहना दें और नियमित रूप से कटोरी की थोड़ी सी हल्दी का चूर्ण ताजे पानी से सेवन कराते रहें। अवश्य लाभ मिलेगा।
काली मिर्च के पांच दाने सिर पर से 7 बार वारकर किसी सुनसान चौराहे पर जाकर चारों दिशाओं में एक-एक दाना फेंक दे व पांचवे बचे काली मिर्च के दाने को आसमान की तरफ फेंक दें व बिना पीछे देखे या किसी से बात घर वापिस आ जाए। जल्दी ही पैसा मिलेगा।
निरन्तर अस्वस्थ्य रहने पर आटे के दो पेड़े बनाकर उसमें गीली चीने की दाल के साथ गुड़ व पिसी काली हल्दी को दबाकर खुद पर से 7 बार उतार कर गाय को खिला दें।
काली चौदस की रात काली मिर्च के 7-8 दाने लेकर उसे घर के किसी कोने में दिए में रखकर जला दें। घर की समस्त नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाएगी।
अगर आपके बच्चे को नजर लग गयी है, तो काले कपड़े में हल्दी को बांधकर 7 बार ऊपर से उतार कर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें।
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कालाष्टमी के दिन इस शुभ मुहूर्त और योग में करें पूजा, बनेंगे बिगड़े काम

हिन्दू धर्म में कालाष्टमी पर्व का बहुत अधिक महत्व होता है. जो भगवान शिव के उग्र रूप, काल भैरव की पूजा के लिए समर्पित है. इस दिन पूजा करने से काल भैरव की कृपा से कई प्रकार के लाभ मिलते हैं, जैसे कि ग्रह दोषों से मुक्ति, शत्रुओं का नाश और मनोकामनाओं की पूर्ति आदि. ऐसी मान्यता है कि काल भैरव की कृपा प्राप्त करने के लिए विधि-विधान से पूजा की जाए, तो वे लोगों की इच्छाएं अवश्य पूरा करते हैं और जीवन में लोगों के बिगड़े हुए काम भी जल्द बनने लगते हैं. इसके साथ ही घर में सुख-समृद्धि का वास होता है और सभी परेशानियां खत्म होती हैं|
कालाष्टमी का महत्व-
मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन काल भैरव की विधान से पूजा करने से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और लोगों को ग्रह दोषों से मुक्ति प्राप्त होती है. इसके अलावा रोगों से मुक्ति मिलती है और धन लाभ के साथ आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है. जिससे जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है. भगवान काल भैरव की कृपा से शत्रुओं का नाश होता है और व्यक्ति को जीवन में सफलता मिलती है और कुंडली में मौजूद ग्रह दोषों का निवारण होता है.
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 अक्टूबर को देर रात 01 बजकर 18 मिनट पर शुरू होगी और 25 अक्टूबर देर रात 01 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी. कालाष्टमी पर निशा काल में भैरव देव की पूजा की जाती है. ऐसे में 24 अक्टूबर को कार्तिक माह की कालाष्टमी मनाई जाएगी. इस दिन अमृत सिद्धि, सर्वार्थ सिद्धि, गुरु पुष्य और सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है. मान्यता है इन तीनों मुहूर्तों में पूजा करने से लोगों को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होगी.
कालाष्टमी पूजा सामग्री-
काल भैरव की मूर्ति, धूप, दीप, फूल (काले या नीले रंग के), अक्षत, रोली, चंदन, नैवेद्य (भोग), जल, कपूर आदि चीजें काल भैरव की पूजा में अवश्य शामिल करें, क्योंकि इन चीजों के बिना कालभैरव की पूजा अधूरी मानी जाती है.
कालाष्टमी पूजा विधि-
कालाष्टमी के दिन सबसे पहले स्नान करके साफ कपड़े पहन लें. पूजा स्थल को साफ करके गंगाजल से छिड़क दें. एक चौकी पर काल भैरव की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें. धूप, दीपक जलाकर फूल, अक्षत, रोली और चंदन चढ़ाएं. पूजा के समय नैवेद्य अर्पित करें और मंत्रों का जाप करें. काल भैरव चालीसा या स्तोत्र का पाठ आवश्य करें|
पूजा के समय इन बातों का रखें ध्यान-
काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए शराब का भोग लगाने की परंपरा है, लेकिन यह वैकल्पिक है. कालाष्टमी के दिन शराब का सेवन नहीं करना चाहिए. पूजा करते समय काले या नीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है. कालाष्टमी के दिन व्रत रखना भी शुभ माना जाता है. पूजा के दौरान मन में किसी भी प्रकार का भय या नकारात्मक भावना नहीं रखनी चाहिए.
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धनतेरस 29 अक्टूबर 2024 को, जानिए...पूजा का शुभ मुहूर्त

धनतेरस पांच दिवसीय दिवाली त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है। पहले दिन धनतेरस का त्योहार, उसके बाद नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा और अंत में भैया दूज का त्योहार आता है। हिंदू धर्म में धनतेरस का विशेष महत्व है।
इस दिन कुबेर जी और देवी लक्ष्मी के साथ भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। इसके साथ ही धनतेरस के दिन सोना, चांदी, बर्तन, वाहन, झाड़ू आदि नई चीजें खरीदने की भी परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि धनतेरस पर कोई नई चीज खरीदने से धन में बरकत होती है। तो आइए जानते हैं इस साल धनतेरस का त्योहार कब मनाया जाएगा और पूजा का सबसे अच्छा समय क्या होगा।
धनतेरस 2024 तिथि और शुभ समय-
धनतेरस का त्योहार हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल त्रयोदशी तिथि 29 अक्टूबर 2024 को सुबह 10:31 बजे शुरू होगी. त्रयोदशी तिथि 30 अक्टूबर को दोपहर 1:27 बजे समाप्त होगी। धनतेरस 29 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा. धनतेरस पूजा मुहूर्त 29 अक्टूबर को शाम 6:31 बजे से रात 8:13 बजे तक रहेगा।
धनतेरस पूजा मुहूर्त- शाम 06:31 बजे से रात 08:13 बजे तक
प्रदोष काल- शाम 05:38 AM से 08:13 AM तक
वृषभ काल- 06:31 PM से 09:27 PM तक
ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 04:48 बजे से प्रातः 05:40 बजे तक
विजय मुहूर्त- 01:56 PM से 02:40 PM तक
गोधूलि मुहूर्त- शाम 05:38 बजे से शाम 06:04 बजे तक
धनतेरस पूजा विधि-
धनतेरस के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें। इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करें। सूर्यदेव को जल अर्पित करें। चौकी पर मां लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि और कुबेरजी की मूर्ति रखें। दीपक जलाएं और चंदन का तिलक लगाएं। इसके बाद आरती करें. साथ ही संग में भगवान गणेश की पूजा भी करें. कुबेरजी के मंत्र ॐ ह्रीं कुबेराय नमः का 108 बार जाप करें और धन्वंतरि स्तोत्र का पाठ करें। इसके बाद मिठाई और फल आदि का भोग लगाएं। श्रद्धानुसार दान करें. धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से धन लाभ के योग बनते हैं और जातक को आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है।
धनतेरस का महत्व-
धनतेरस को धनत्रयोदशी भी कहा जाता है. धनतेरस या धनत्रयोदशी दो शब्दों से मिलकर बना है पहला 'धन' का अर्थ है धन और दूसरा 'तेरस या त्रयोदशी'। धनतेरस के दिन को धन्वंतरि त्रयोदशी या धन्वंतरि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का देवता माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धनतेरस के दिन खरीदी गई कोई भी चीज अनंत फल देने वाली होती है। कहा जाता है कि धनतेरस के दिन खरीदी गई वस्तु में आने वाले समय में तेरह गुना वृद्धि होती है, इसलिए धनतेरस के दिन सोना, चांदी, जमीन और वाहन खरीदना बहुत शुभ माना जाता है।
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7 नवंबर से छठ महापर्व की होगी शुरूआत

परिवार की खुशी व बच्चों की सलामती के लिए हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक महिलाएं कठिन व्रत रखती हैं। दरअसल, वह छठ के महापर्व पर छठी मैया व सूर्य देव की पूजा करती हैं। इस साल छठ की तिथि को लेकर लोगों के मन में काफी असमंजस की स्थिति है। ऐसे में हम इस आर्टिकल में आपको बताएंगे कि किन दिन नहाय खाय, खरना होगा और कब आप छठ पूजा कर सकेंगे।
छठ पूजा की तिथि-
दिवाली के 6 दिन बाद छठी मैया की पूजा की जाती है। पंचाग की मानें तो इस साल 7 नवंबर की देर रात 12 बजकर 41 मिनट पर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि शुरू होगी। 8 नवंबर की देर रात 12 इसका समापन है। इसका अर्थ है कि 7 नवंबर से छठ महापर्व की शुरूआत होगी। आप इस दिन संध्याकाल का अर्घ्य देंगे। सुबह का अर्घ्य 8 नवंबर को देना है।
कब होगा नहाय-खाय-
नहाय-खाय एक अहम पूजा है, जिसमें महिलाएं गंगा या अन्य किसी पवित्र नदी में स्नान कर सूर्य देव की पूजा करती हैं। यह 5 नवंबर को मंगलवार के दिन मनाई जाएगी। पंचांग की मानें तो नहाय खाय कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थि तिथि पर होता है।
खरना कब मनाया जाएगा-
खरना में महिलाएं निर्जला व्रत रख छठी मैया की पूजा करते हैं। यह 6 नंवबर को बुधवार के दिन मनाया जाएगा। खरना हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर होता है।
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बाबा खाटू श्याम का जन्मोत्सव फाल्गुन माह की ग्यारस को मनाया जाता

राजस्थान। बाबा श्याम को कलयुग का अवतार माना जाता है। श्याम को हारे का सहारा भी कहा जाता है। हर साल लाखों भक्त बाबा श्याम के दरबार में शीश जलाने आते हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि बाबा श्याम कौन हैं... और खाटू श्याम जी में बाबा श्याम का मंदिर क्यों बनाया गया है... जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
महाभारत में उल्लेख है कि भीम के पुत्र घटोत्कच थे और उनके पुत्र बर्बरीक थे। बर्बरीक देवी माँ के भक्त थे। बर्बरीक की तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर देवी माँ ने उन्हें तीन बाण दिये, जिनमें से एक से वह संपूर्ण पृथ्वी को नष्ट कर सकते थे। ऐसे में जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तो बर्बरीक ने अपनी मां हिडिम्बा को युद्ध लड़ने का प्रस्ताव दिया. तब बर्बरीक की माँ ने सोचा कि कौरवों की सेना बड़ी है और पांडवों की सेना छोटी है, इसलिए शायद कौरव युद्ध में पांडवों पर भारी पड़ जायेंगे। तब हिडिम्बा ने कहा कि तुम हारने वाले पक्ष की ओर से लड़ोगे। इसके बाद माता की आज्ञा मानकर बर्बर लोग महाभारत के युद्ध में भाग लेने के लिए निकल पड़े। लेकिन, श्री कृष्ण जानते थे कि यदि बर्बरीक युद्ध स्थल पर पहुँच गए तो जीत पांडवों की होगी, वे कौरवों की ओर से युद्ध लड़ेंगे। इसलिए भगवान कृष्ण ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और बर्बरीक के पास पहुंचे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक ने दान स्वरूप अपना शीश बिना किसी प्रश्न के भगवान कृष्ण को दान कर दिया। इस दान के कारण श्री कृष्ण ने कहा कि कलयुग में तुम मेरे नाम से पूजे जाओगे, कलयुग में तुम श्याम के नाम से पूजे जाओगे, तुम कलयुग के अवतार कहलाओगे और हारे का सहारा बनोगे।
जब घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को दान में दे दिया, तो बर्बरीक ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की, तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक का शीश एक ऊँचे स्थान पर रख दिया। तब बर्बरीक ने संपूर्ण महाभारत युद्ध देखा। युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान कृष्ण ने बर्बरीक का सिर गर्भवती नदी में फेंक दिया। इस प्रकार बर्बरीक यानि बाबा श्याम का शीश गर्भवती नदी से खाटू (उस समय खाटुवांग शहर) में आ गया। आपको बता दें कि खाटूश्यामजी में गर्भवती नदी 1974 में लुप्त हो गई थी.
स्थानीय लोगों के अनुसार, पीपल के पेड़ के पास एक गाय प्रतिदिन अपने आप दूध देती थी, ऐसे में जब लोगों ने उस स्थान की खुदाई की तो वहां से बाबा श्याम का सिर निकला। बाबा श्याम का यह शीश फाल्गुन माह की ग्यारस को प्राप्त हुआ था इसलिए बाबा श्याम का जन्मोत्सव भी फाल्गुन माह की ग्यारस को मनाया जाता है। खुदाई के बाद ग्रामीणों ने बाबा श्याम का सिर चौहान वंश की नर्मदा देवी को सौंप दिया। इसके बाद नर्मदा देवी ने बाबा श्याम को गर्भ गृह में स्थापित कर दिया और जिस स्थान पर बाबा श्याम को खोदा गया था, वहां पर एक श्याम कुंड बनाया गया।
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कार्तिक मास में रखें इन बातों का ध्यान, धन-धान्य में होगी वृद्धि

सनातन धर्म में वैसे तो हर महीने को महत्वपूर्ण बताया गया है लेकिन कार्तिक मास सबसे अधिक खास होता है। इस माह में कई बड़े पर्व त्योहार मनाए जाते हैं। पंचांग के अनुसार कार्तिक मास हिंदू वर्ष का आठवां महीना होता है इस महीने में भगवान विष्णु लंबे समय के विश्राम के बाद जागते हैं यही वजह है कि कार्तिक मास को धार्मिक नजरिएं से महत्वपूर्ण माना जाता है।
मान्यता है कि इस माह में भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की उपासना आराधना करने से सभी तरह के संकट दूर हो जाते हैं साथ ही सुख समृद्धि बढ़ती है। कार्तिक मास में ही दिवाली, धनतेरस, भाई दूज आदि पर्व मनाए जाते हैं। इस साल कार्तिक मास का आरंभ 18 अक्टूबर से होने जा रहा है और इसका समापन 15 नवंबर को हो जाएगा। ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा इस माह से जुड़े जरूरी नियम बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
कार्तिक मास के जरूरी नियम-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक माह में भगवान विष्णु जल में वास करते हैं ऐसे में यह पूरा महीना भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए उत्तम है इस महीने रोजाना भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा तुलसी पूजा भी इस महीने जरूर करें। सुबह जल अर्पित कर शाम को देसी घी का दीपक जलाएं। ऐसा करने से आर्थिक संकट दूर हो जाता है और देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
इस महीने गरीबों और जरूरतमंदों को गर्म वस्त्र, अन्न और धन का दान करना अच्छा माना जाता है। इसके अलावा रोजाना विधिपूर्वक गीता का पाठ जरूर करें और मंदिर, नदी व तीर्थ स्थान पर दीपक जरूर जलाएं। ऐसा करने से प्रभु की कृपा बरसती है। कार्तिक माह में भूलकर भी तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। इस पूरे महीने भूलकर भी गलत शब्दों का प्रयोग न करें। तन और मन से शुद्ध रहे। इसके अलावा किसी भी पशु पक्षी को हानि न पहुंचाएं।
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दीपावली पर वास्तु शास्त्र के अनुसार जलाएं दीपक

  • घर पर जमकर बरसेगा धन
दिवाली का सनातन धर्म के सबसे खास पर्वों में से एक है। इस दिन को बड़ी ही धूमधाम और उत्साह के साथ परिवार के सभी लोग मिलकर मनाते हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार इस बार दिवाली का त्योहार 31 अक्टूबर 2024 को पड़ेगा। इस दिन भक्त भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं। यह मान्यता है कि इस दिन दाम धर्म के काम करने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है।
दिवाली प्रकाश का पर्व है। सभी लोग अपने-अपने घरों को दियों की रोशनी से रोशन करते हैं, लेकिन शास्त्रों में इसके नियम बताए गए हैं। हम आपको इस आर्टिकल में दियों को प्रज्जवलित करने का सही तरीका बताएंगे।
दीपावली पर दीये जलाने का सही तरीका-
एक दीपक सबसे पहले मंदिर में जलाकर रखना चाहिए।
दीपक को जलाने के लिए सरसों के तेल व घी का ही उपयोग करें।
दिवाली पर दिये जलाने के लिए सूर्यास्त के बाद, प्रदोष काल के आसपास का समय चुनना चाहिए। ऐसा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
मिट्टी के दियों को ही जलाना चाहिए क्योंकि यह वास्तु के अनुसार घर में सकारात्मक ऊर्जा लेकर आता है।
दीपक को वास्तु अनुसार बताई गई दिशाओं में ही जलाएं।
दिवाली के दिन घर के मुख्य द्वार पर दिया जरूर जलाएं, जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा। आपके घर को माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलेगा।
लिविंग रूम और मंदिर में दीपक जरूर रखें।
घर की रसोई में दिये को जलाकर जरूर रखें।
रसोई के दक्षिण-पूर्व कोने में दिये को जलाकर रखने से स्वास्थ्य अच्छा होता है।
दीपक जलाने की सही दिशा-
पूर्व- इस दिशा में दिये जलाने से परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य, सद्भाव व शांति की प्राप्ति होती है।
उत्तर- इस दिशा में दिये जलाने से समृद्धि और सफलता मिलती है।
दक्षिण- वास्तु शास्त्र की मानें, तो इस दिशा में दिये जलाकर नहीं रखने चाहिए।

डिसक्लेमर-
इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
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दिवाली मनाने के लिए 31 अक्टूबर शुभ अवसर है

  • कार्तिक अमावस्या 31 अक्टूबर को दोपहर 3:52 बजे शुरू होगी और अमावस्या तिथि 1 नवंबर 2024 को शाम 18:16 बजे समाप्त होगी
दिवाली रोशनी का त्योहार है. इस दिन सभी लोग माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं। दिवाली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है, लेकिन इस बार कार्तिक अमावस्या की तिथि दो दिन बाद पड़ रही है. दिवाली की तारीख को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति है. इस बार लोग असमंजस में हैं कि दिवाली 31 अक्टूबर को होगी या 1 नवंबर को मनाना शुभ रहेगा. पंचाग के अनुसार कार्तिक अमावस्या गुरुवार, 31 अक्टूबर 2024 को दोपहर 3:52 बजे शुरू होगी और अमावस्या तिथि शुक्रवार, 1 नवंबर 2024 को शाम 18:16 बजे समाप्त होगी. अब दो स्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं: अमावस्या प्रदोष में लक्ष्मी पूजा की जाती है और फिर 31 अक्टूबर को प्रदोष काल पाया जाता है। उदय तिथि के अनुसार दिवाली 1 नवंबर को मनाई जानी चाहिए। ऐसे में काशी और राजस्थान के ज्योतिषियों ने बताया है कि 31 अक्टूबर को दिवाली मनाना शास्त्रों के अनुसार शुभ संकेत है. क्योंकि इस दिन अमावस्या तिथि पर प्रदोष काल होता है। प्रदोष काल में पूजा करना शुभ माना जाता है, अगले दिन प्रदोष काल नहीं मिलता।
31 अक्टूबर दिवाली मनाने का शुभ अवसर है। उनके अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष उदय कालिक अमावस्या तिथि 1 नवंबर 2024 दिन शुक्रवार को होगी। इस दिन स्नान-दान सहित पितरों को तर्पण करने का विशेष कार्य किया जाता है। यह दिन महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी है। इस कारण से 1 नवंबर जैन परंपरा को मानने वाले लोगों के लिए खास दिन होगा. यह निर्णय लेते समय कोई भ्रम या संदेह नहीं हो सकता। शास्त्रों के अनुसार सभी सनातन धर्मी गुरुवार 31 अक्टूबर 2024 को प्रदोष काल से अर्धरात्रि व्यापिनी कार्तिक अमावस्या तक लक्ष्मी पूजन करेंगे।
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मंगल ग्रह 20 अक्टूबर को कर्क में करेंगे प्रवेश

  • जानिए...आपकी राशि पर क्या असर पड़ेगा
ग्रहों के सेनापति मंगल 20 अक्टूबर सुबह 10:44 कर्क राशि में प्रवेश करेंगे। कर्क राशि मंगल की नीच राशि है। यह चंद्र प्रधान राशि है। मंगल जहां भूमि, पुलिस, सेना, गोला-बारूद, हथियार, राजनीति, मेडिकल एवं पृथ्वी में हलचल का कारक ग्रह माना गया है, वहीं चंद्र मन, समुद्र, सुनामी एवं चक्रवाती तूफान आदि की स्थिति निर्मित करता है।
मंगल का कर्क राशि में प्रवेश से अस्थिरता की स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। जिसमें राजनीतिक अस्थिरता के साथ प्राकृतिक अस्थिरता के संकेत ग्रह दे रहे हैं। ज्योतिष मठ संस्थान के संचालक व ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद गौतम ने बताया कि मंगल 23 जनवरी तक कर्क राशि में ही रहेंगे। देश-दुनिया में संघर्ष में बढ़ोतरी व आतंकीय गतिविधियों में बढ़ोतरी हो सकती है।
सेनापति के नीच राशि में जाने से पृथ्वी में संघर्ष, तनाव की स्थितियां बन सकती हैं। यह षड़यंत्री योग भी निर्मित करता है। भारतीय भू-भाग पर षड्यंत्री होने की संभावना बन रही है। देश में अनेक शासनाध्यक्षों में आपसी वैचारिक मतभेद से राजनीतिक बदलाव संभव है। वहीं प्रदेश में भी इसका असर देखने को मिलेगा। न्याय व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न लग सकता है।
मध्य प्रदेश से कर्क रेखा गुजरी है। अत: यह क्षेत्र भी राजनीतिक परिवर्तन एवं विस्तार के संकेत देता है। गोला-बारूद, आगजनी, हथियार के खुलकर प्रयोग पृथ्वी पर होने के संकेत नीच राशिस्थ मंगल के प्रभाव से हो सकते हैं। अत: मंगल के नीचस्थ होने के समय देश को विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है। फिलहाल न्याय के ग्रह शनि और धार्मिक ग्रह गुरु दोनों वक्री गति में चल रहे हैं। ऐसे में मंगल के कर्क राशि में जाने से कई तरह के संकट की स्थिति बन सकती है। इस दौरान कई मतभेद की स्थिति भी देखने को मिल सकती है।
मंगल के राशि परिवर्तन पर यह होगा असर-
मेष : पुत्र सुख, भूमि लाभ, यात्रा कष्ट।
वृषभ : व्यर्थ की चिंता, सहयोग मिलेगा। मि
थुन : मेहमान आगमन, मतभेद बढ़ेगा।
कर्क : स्वास्थ्य चिंता, धोखा परेशानी।
सिंह : व्यर्थ विवाद, सफलता, धन लाभ।
कन्या : स्थानांतरण, शरीर कष्ट, तनाव।
तुला : श्रम अधिक, लाभ, बेवजह तनाव।
वृश्चिक : भूमि लाभ, प्रतिष्ठा में वृद्धि, यात्रा।
धनु : चिंता निवारण, जायजाद वृद्धि।
मकर : मतभेद, धन लाभ, शुभ समाचार।
कुंभ : रोग, प्रापर्टी से लाभ, पुत्र सुख।
मीन : यात्रा, शुभ प्रसंग, परेशानी, कष्ट।
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