धर्म समाज

शीतला अष्टमी 22 मार्च को, जानिए...शुभ मुर्हूत एवं महत्व

सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन शीतला अष्टमी को बेहद ही खास माना जाता है जो कि माता शीतला की पूजा अर्चना को समर्पित होती है। पंचांग के अनुसार हर साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर शीतला अष्टमी का व्रत पूजन किया जाता है।इस दिन भक्त माता शीतला की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता शीतला की पूजा करने से आरोग्य का वरदान मिलता है और मानसिक कष्टों से छुटकारा मिल जाता है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि इस साल शीतला अष्टमी का व्रत पूजन कब किया जाएगा, तो आइए जानते हैं।
शीतला अष्टमी की दिन तारीख-
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि 21 मार्च को सुबह 2 बजकर 45 मिनट से आरंभ होगी और 22 मार्च को सुबह 4 बजकर 30 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। वहीं शुभ मुहूर्त की बात करें तो 21 मार्च को सुबह 6 बजकर 24 मिनट से शाम 6 बजकर 33 मिनट तक हैं। 22 मार्च को प्रात: 4 बजकर 30 मिनट से प्रात: 5 बजकर 23 मिनट का समय शुभ रहेगा।
शीतला अष्टमी का महत्व-
आपको बता दें कि माता शीतला को महामारी की देवी माना गया है। इनकी पूजा करने से बीामरियों और संक्रामक रोगों से रक्षा होती है साथ ही सुख समृद्धि आती है। इस दिन ठंडे व्यंजन बनाए जाते हैं और बासी भोजन का माता को भोग चढ़ता है। जिसे बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। शीतला अष्टमी के दिन उपवास रखकर माता शीतला की कथा सुनने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और घर परिवार में सुख समृद्धि आती है।
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आज इस विधि से करें गणेश भगवान की पूजा, बना देंगे हर बिगड़े काम

हिंदू धर्म में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. किसी भी अन्य देवता की पूजा से पहले गणपति बप्पा की पूजा की जाती है. गणपति पूजा के बाद ही किसी अन्य देवता की पूजा पूरी मानी जाती है. यही वजह है कि सबसे पहले गणपति का नाम लिया जाता है. खासकर बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित है. जो भी भक्त इस दिन सिद्धि-सिद्धि दाता की विधि-विधान से पूजा करता है, उसके सभी दुख दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है. किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश का नाम लिया जाता है, ताकि काम बिना किसी बाधा के सफल हो सके. बुधवार को इस विधि से पूजा करने से गणपति बप्पा की कृपा बनी रहती है|
गणपति को कैसे करें प्रसन्न-
बुधवार के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से पहले उनका पंचामृत से अभिषेक करें और फिर जलाभिषेक करें, नए वस्त्र पहनाएं और यज्ञोपवीत पहनाएं. धूपबत्ती और दीप जलाकर गणपति की पूजा करें और उन्हें रोली का तिलक लगाएं. पूजा के दौरान गजानन को दूर्वा घास चढ़ाना न भूलें. गणपति को मोदक भी बहुत प्रिय है, इसलिए भोग में मोदक जरूर रखें। ध्यान रखें कि भूल से भी गणेश पूजा में तुलसी का प्रयोग न करें।
इस पाठ से गणपति की कृपा मिलेगी-
बुधवार को गणेश पूजा के दौरान गणेश स्तोत्र और गणेश चालीसा का पाठ करना बहुत शुभ माना जाता है। जिन लोगों को रात में बुरे सपने आते हैं, उन्हें बुधवार को विशेष रूप से गणेश चालीसा का पाठ करना चाहिए। गणपति पूजा के बाद भगवान की आरती करें और गणपति के 108 नामों का जाप करते हुए उन्हें दूर्वा घास अर्पित करें। आपको बता दें कि गणेश स्तोत्र का पाठ करने वाले व्यक्ति के सभी संकट दूर हो जाते हैं।
ऐसे करें नए काम की शुरुआत-
बुधवार का दिन किसी भी नए काम को करने के लिए अच्छा माना जाता है। अगर किसी नए काम के लिए बुधवार का मुहूर्त पड़ता है, तो यह बहुत शुभ होता है। इस दिन व्यापार के साथ-साथ अन्य शुभ काम भी किए जा सकते हैं।
सिंदूर, सुपारी और केला बिगड़े काम बनाएंगे-
भगवान गणेश की पूजा के दौरान उन्हें सिंदूर चढ़ाने से मनुष्य के संकट और कष्ट दूर होते हैं। मान्यता है कि गणेश जी ने सिंदूर रंग के राक्षस का वध कर उसे अपने शरीर पर मल लिया था। तभी से विघ्नहर्ता को सिंदूर चढ़ाया जाने लगा। भगवान गजानन की पूजा में सुपारी का भी बहुत महत्व है। पूजा के दौरान उन्हें सुपारी चढ़ाने से गणपति महाराज प्रसन्न होते हैं। इसके अलावा भगवान गणेश को केला भी अर्पित करें। गजानन को केला बहुत प्रिय है। इसलिए पूजा के दौरान केला जरूर चढ़ाएं।
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रंगपंचमी आज, करें यह उपाय, घर में आएगी सुख-समृद्धि

  • मिलेगा देवी-देवताओं का आशीर्वाद
दीपोत्सव की तरह रंगों का त्योहार होली भी पांच दिवसीय पर्व के रूप में मनाई जाती है। 19 मार्च बुधवार को रंगपंचमी के साथ होलिकोत्सव का समापन हो जाता है। 
रंगपंचमी का धार्मिक महत्व
रंगपंचमी यह सिर्फ रंग खेलने का त्योहार नहीं, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखने वाला दिन भी है। मान्यता है कि इस दिन देवी-देवताओं को रंग अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा ने होली खेली थी, जिससे खुश होकर देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की थी। इसी परंपरा को आज भी अबीर-गुलाल उड़ाकर निभाया जाता है। इसे देव पंचमी और श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
रंग पंचमी कब से कब तक
ज्योतिर्विद डॉ. दीपक गोस्वामी ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि 18 मार्च की रात 10 बजकर 9 मिनट से शुरू होकर 20 मार्च की रात 12 बजकर 37 मिनट तक रहेगी। चूंकि हिंदू धर्म में त्योहारों को उदया तिथि के अनुसार मनाया जाता है, इसलिए रंग पंचमी 19 मा (बुधवार) को मनाई जा रही है।
इस दिन क्या करें
रंग पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और भगवान श्रीकृष्ण, राधा और लक्ष्मी-नारायण की पूजा करें। इस दिन उन्हें अबीर और गुलाल चढ़ाएं और उनके आशीर्वाद की कामना करें।
रंग पंचमी पर करें इन मंत्रों का जाप
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवते राधाप्रियाय राधारमणाय गोपीजनवल्लभाय ममाभीष्टं पूरय पूरय हुं फट् स्वाहा।
श्रीं ह्रीं क्लीं कृष्णाय नमः’ ॐ श्रीकृष्णाय विदद्महे दामोदराय धीमहि तन्नः कृष्ण प्रचोदयात्।-देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते! देहिमे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:!!’
ॐ क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्ल्भाय स्वाहा।’
ॐ श्रीं श्रीये नमः
 
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कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव को अर्पित करें ये चीजें

  • जीवन में नहीं आएंगे संकट
कालाष्टमी हर महिने की कृष्ण पक्ष की तिथि को पड़ती है. पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 22 मार्च को सुबह 4 बजकर 23 मिनट पर होगी. वहीं इस तिथि का समापन 23 मार्च को सुबह 5 बजकर 23 मिनट पर हो जाएगा. निशा काल में भगवान काल भैरव की पूजा विशेष महत्व है. हिंदू धर्म में कालाष्टमी बहुत विशेष मानी जाती है. हिंदू धर्म शास्त्रों में कालाष्टमी का दिन भगवान काल भैरव को समर्पित किया गया है. भगवान काल भैरव भगवान शिव के उग्र रूप माने जाते हैं. इस दिन भगवान काल भैरव के पूजन से घर में सुख-शांति और समृद्धि की वृद्धि होती है. इस दिन भगवान काल भैरव की पूजा करने वालों के शत्रुओं का भी नाश हो जाता है. साथ ही जीवन के सभी विघ्न दूर हो जाते हैं|
ऐसे में 22 मार्च को चैत्र माह की कालाष्टमी मनाई जाएगी. इसी दिन इसका व्रत और भगवान काल भैरव का पूजन किया जाएगा. इस दिन निशा काल में पूजा का शुभ मुहूर्त देर रात 12 बजकर 4 मिनट पर शुरू होगा. ये मुहूर्त 12 बजकर 51 मिनट पर समाप्त हो जाएगा. इस दिन भगवान काल भैरव के पूजन से जीवन में सकारात्मक उर्जा का संचार होता है|
कालभैरव को चढ़ाएं ये चीजें-
काले वस्त्र और नारियल-
इस दिन पूजा के समय काल भैरव देव को वस्त्र और नारियल चढ़ाएं. वस्त्र और नारियल से भगवान बहुत प्रसन्न होते हैं. जो भी इस दिन पूजा के दौरान भगवान को वस्त्र और नारियल चढ़ाता है वो उसके पूरे परिवार की रक्षा करते हैं. काल भैरव देव को वस्त्र और नारियल चढ़ाने से शुभ फल प्राप्त होते हैं. ऐसा करने से कामों में सफलता प्राप्त होती है|
सुपारी-
हिंदू धर्म शास्त्रों में सुपारी बेहद शुभ मानी गई है. इसलिए कलाष्टमी पर पूजा के समय भगवान काल भैरव को सुपारी अवश्य ही चढ़ाएं. जो भी भगवान काल भैरव को सुपारी चढ़ाता है उसके जिंदगी में आ रहीं मुश्किलें दूर हो जाती हैं|
पान और काले तिल-
इस दिन भगवान काल भैरव को पान चढ़ाना चाहिए. ऐसा करने वाले शुभ फलों को प्राप्त करते हैं. साथ ही उनके सभी दूख दूर होते हैं. वहीं हिंदू धर्म में मान्यता है कि इस दिन भगावान काल भैरव को काले तिल चढ़ाने से ग्रह दोष और नकारात्मक ऊर्जा का नाश हो जाता है. रुके हुए काम पूरे हो जाते हैं|
इसके अलावा भगवान काल भैरव को गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी, कुमकुम, रोली, चंदन, फूल, धूप, दीपक, नैवेद्य, सरसों का तेल और लौंग भी चढ़ाना चाहिए|
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मंगलवार को इस अचूक उपाय से दूर होगी जीवन की हर समस्या

हफ्ते का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा अर्चना को समर्पित है वही मंगलवार का दिन हनुमान पूजा के लिए श्रेष्ठ माना गया है|
इस दिन भक्त हनुमान जी की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से बजरंगबली की कृपा प्राप्त होती है। लेकिन इसी के साथ ही अगर मंगलवार के दिन कुछ विशेष उपायों को किया जाए तो वास्तु दोष और पितृ दोष से छुटकारा मिल जाता है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा मंगलवार के आसान उपाय बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
मंगलवार के आसान उपाय-
ज्योतिष अनुसार अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में लगातार संघर्ष कर रहा है या कड़ी मेहनत के बाद भी उसे सफलता हासिल नहीं हो रही है तो कपूर का उपाय किया जा सकता है। इसके लिए घर में शाम के समय कपूर और लौंग को एक साथ करके जलाएं। ऐसा करने से सकारात्मकता का संचार होता है साथ ही मानसिक तनाव कम हो जाता है और नकारात्मक विचारों को दूर करने में भी मदद मिलती है।
यह उपाय आत्मविश्वास और मनोबल को मजबूत करता है इससे मन शांत रहता है और समस्याओं से भी छुटकारा मिल जाता है। कपूर और लौंग जलाने से न केवल मानसिक शांति मिलती है बल्कि वास्तुदोष और पितृदोष भी खत्म हो जाता है। घर में सुख समृद्धि और प्रेम बना रहता है।
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रंग पंचमी 19 मार्च को, जानिए...शुभ मुहूर्त और महत्व

हिंदू धर्म में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं लेकिन रंगपंचमी को बेहद ही खास माना जाता है। जो कि होली के पांच दिनों के बाद मनाया जाता है। रंग पंचमी के दिन देवी देवताओं की विशेष पूजा अर्चना करने का विधान होता है साथ ही उन्हें गुलाल भी लगाया जाता है।
मान्यता है कि रंगपंचमी के दिन ऐसा करने से देवी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। पंचांग के अनुसार हर साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि पर रंग पंचमी मनाई जाती है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान कृष्ण और राधा रानी ने होली खेली थी।
इसी तिथि पर होली खेने के लिए पृथ्वी लोक पर देवी देवता आते हैं। इसी कारण रंग पंचमी को हर साल मनाया जाता है, तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा रंगपंचमी की तारीख और मुहूर्त की जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।
पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि 18 मार्च को रात 10 बजकर 9 मिनट से आरंभ हो रही है और इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 20 मार्च को रात 12 बजकर 36 मिनट पर हो जाएगा। वही उदया तिथि के अनुसार रंग पंचमी 19 मार्च को मनाई जाएगी।
रंग पंचमी का शुभ मुहूर्त-
आपको बता दें कि 19 मार्च को रंग पंचमी मनाई जाएगी। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 51 मिनट से 5 बजकर 38 मिनट तक है। इसके अलावा विजय मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 30 मिनट से 3 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। गोधूलि मुहूर्त शाम को 6 बजकर 29 मनट से 6 बजकर 54 मिनट तक है। निशिता मुहूर्त रात्रि 12 बजकर 5 मिनट से 12 बजकर 52 मिनट तक रहेगा।
भगवान को ये चीजें करें अर्पित-
इस दिन पूजा के समय देवी लक्ष्मी और जगत के पालहार भगवान श्री हरि विष्णु को लाल रंग का गुलाल अर्पित करना चाहिए. इससे धन की परेशानियां दूर होती हैं. जीवन खुशहाल रहता है।
इस दिन देवी लक्ष्मी को सफेद रंग की मिठाई या खीर अर्पित करनी चाहिए. इससे धन धान्य में बढ़ोतरी होने लगती है.
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी को लाल रंग के वस्त्र और इसी कलर का गुलाल अर्पित करना चाहिए. इससे वैवाहिक जीवन मधुर रहता है|
रंग पंचमी का महत्व-
रंग पंचमी पर रंग उड़ाया जाता है. मान्यता है कि इससे दैवीय शक्तियां प्रसन्न होती हैं. लोगों के कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-शांति आती है. रंग पंचमी त्योहार जीवन में सकारात्मकता लाता है. ये त्योहार प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है. इस दिन भगवान के आशीर्वाद से घर में समृद्धि रहती है|
द्वापर युग में हुई थी त्योहर की शुरुआत-
रंग पंचमी के दिन भगवान की विशेष पूजा-अर्चना भी की जाती है. हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रंग पंचमी के त्योहार की शुरुआत द्वापर युग में मानी जाती है. मान्यता है कि रंग पंचमी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी ने रंग खेला था. इस दिन भगवान की विशेष पूजा-अर्चना के साथ-साथ उनको विशेष चीजें अर्पित की जाती है. माना जाता है कि इससे जीवन खुशियों से भरा हुआ रहता है|
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इस दिन लगेगा साल का पहला सूर्य ग्रहण

  • जानिए...जरूरी बातें...
सनातन धर्म में ग्रहण काल को महत्वपूर्ण घटना माना गया है, जो की देवताओं पर संकट का समय माना जाता है और इसे अशुभ बताया गया है। ग्रहण काल को लेकर ज्योतिषशास्त्र में कई नियम बताए गए हैं जिनका पालन करना जरूरी है। इस साल मार्च का महीना बहुत ही खास है क्योंकि इस महीने चंद्र ग्रहण के बाद सूर्य ग्रहण भी लगेगा।
14 मार्च को होली के दिन चंद्र ग्रहण लगेगा। जिसके बाद 29 मार्च को साल का पहला सूर्य ग्रहण लगेगा। यह सूर्य ग्रहण 29 मार्च को दोपहर 2 बजकर 21 मिनट से लेकर शाम को 6 बजकर 14 मिनट तक रहेगा। यह ग्रहण खंडग्रास सूर्य ग्रहण होगा। तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा इससे जुड़ी जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।
जानें कब लगता है सूर्य ग्रहण-
धरती के सबसे करीब का सितारा सूर्य अपने स्थान पर स्थित है और इसका धरती परिक्रमा करती है। धरती की तरह चंद्रमा भी सूर्य की परिक्रमा करता है।
कई बार ऐसा होता है कि जब चंद्रमा घूमते हुए सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है जिससे कुछ समय के लिए सूर्य के प्रकाश को रोक देता है। इसी स्थिति को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। इस दौरान चंद्रमा की परछाई धरती पर पड़ती है।
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रवि पुष्य नक्षत्र में मनेगा प्रभु श्रीराम का जन्मोत्सव

  • नोट कर लीजिए सुख, शांति व समृद्धि के उपाय
रामनवमी पर छह अप्रैल को रवि पुष्य नक्षत्र के महासंयोग में दशरथ नंदन श्री राम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा। खास बात यह है कि इस दिन पुष्य नक्षत्र सुबह से लेकर रात तक विद्यमान रहेगा।
रवि पुष्य को नक्षत्रों का राजा माना गया है। इसकी साक्षी में चैत्र नवरात्र की पूर्णाहुति व श्रीराम की आराधना शुभफलदायी मानी गई है। विशेष यह भी है कि इस दिन पंचग्रही युति योग भी रहेगा।
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला ने बताया कि किसी भी महापर्व के दिन योग, संयोग व विशिष्ट नक्षत्र की मौजूदगी इसकी शुभता को और बढ़ा देती है। इस बार छह अप्रैल को रामनवमी के दिन सुबह से रात्रि पर्यंत पुष्य नक्षत्र की साक्षी रहेगी।
रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र धर्म आराधना व पूजन के लिए विशेष माना गया है। इसकी मौजूदगी में नवरात्र की पूर्णाहुति तथा प्रभु श्रीराम का जन्मोत्सव मनाना विशेष शुभ है।
पीड़ा व व्याधि निवारण के लिए यह करें-
वाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस में चौपाइयों के माध्यम से संकट, पीड़ा, अपमृत्यु आदि के दोष का निराकरण बताया गया है। रामायण में बहुत से छंद दोहे व चौपाइयां इस प्रकार से हैं जो मानसिक तनाव, चिंता और व्याधियों से मुक्ति का मार्ग बताते हैं। राम जन्म के समय इनका पाठ विशेष लाभ प्रदान करता है।
परिवार में सुख शांति के लिए यह करें-
राम नवमी पर परिवार में सुख, शांति व समृद्धि के लिए राम स्तुति अथवा रामाष्टक का यथा श्रद्धा पाठ करना चाहिए।
नेतृत्व क्षमता बढ़ाने के लिए राम मंगला शासनम् का पाठ भी किया जा सकता है।
परिवार में बच्चों की सुरक्षा और संतान की प्राप्ति के लिए बालकांड का नित्य पाठ करना चाहिए।
संयुक्त परिवार की एकता के लिए अयोध्या कांड का पाठ करना श्रेष्ठ बताया गया है।
रामनवमी से मनोवांछित फल की प्राप्ति के अनुसार पाठ करना शुरू करें तथा वर्षभर नियम पालन करने से संपूर्ण लाभ की प्राप्ति होती है।
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चैत्र माह में कब रखा जाएगा एकादशी व्रत..?

  • जानिए...पारण की सही तिथि और समय
हिंदू धर्म में चैत्र माह का खास महत्व है, क्योंकि हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है. मान्यता है कि इसी तिथि पर ब्रह्मा जी ने सृष्टी की रचना की थी. ऐसे में इस माह में पड़ने वाले व्रत त्यौहारों का महत्व और बढ़ जाता है. वहीं इस माह में पड़ने वाली एकादशी तिथि का महत्व भी बढ़ जाता है क्योंकि इस दिन जगत के पालन हार भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. एकादशी तिथि माह दो बार पड़ती है. यह दिन भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी का प्रसन्न करने के लिए अच्छा माना जाता है. तो आइए जान लेते है कि चैत्र के शुभ माह में एकादशी का व्रत कब-कब रखा जाएगा|
चैत्र माह की पहली पापमोचिनी एकादशी कब है
पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को पापमोचिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस तिथि की शुरुआत 25 मार्च को सुबह 5 बजकर 5 मिनट पर होगी. वहीं तिथि का समापन 26 मार्च को सुबह 3 बजकर 45 मिनट पर होगी. उदया तिथि के अनुसार, पापमोचिनी एकादशी का व्रत 25 मार्च मंगलवार को रखा जाएगा|
पापमोचिनी एकादशी व्रत पारण का समय
एकादशी व्रत का पारण अगले दिन किया जाता है. पापमोचनी एकादशी व्रत पारण का समय दोपहर 1 बजकर 41 मिनट से लेकर 4 बजकर 8 मिनट तक रहेगा. इस दौरान व्रती विधि-विधान से पूजा कर व्रत का पारण कर सकते हैं|
चैत्र माह की दूसरी कामदा एकादशी कब है
हिंदू पंचांक के अनुसार, चैत्र माह कृष्ण पक्ष की एकादशी को कमदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस तिथि की शुरुआत 7 अप्रैल को रात्रि 8 बजे होगी. वहीं तिथि का समापन 8 अप्रैल को रात्रि 9 बजकर 12 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, कामदा एकादशी का व्रत मंगलवार 8 अप्रैल को रखा जाएगा|
कामदा एकादशी व्रत पारण का समय
पंचांग के अनुसार, कामदा एकादशी व्रत पारण का समय सुबह 6 बजकर 2 मिनट से लेकर 8 बजकर 34 मिनट तक रहेगा. इस दौरान भक्त भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा कर व्रत का पारण कर सकते हैं|
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भोलेनाथ की कृपा पाने सोमवार को करें शिव चालीसा का पाठ

  • जीवन में आएगा बदलाव
सप्ताह में सोमवार का दिन भोलेनाथ की पूजा-अर्चना को समर्पित है। इस दिन उनकी उपासना के साथ-साथ उन्हें केवल जल चढ़ाने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह दिन सुहागिन महिलाओं के लिए और भी खास और महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन व्रत रखने से वैवाहिक जीवन में मधुरता व रिश्तों में मजबूती आती है। वहीं मनचाहा वर पाने के लिए कन्याएं भी सोमवार को महादेव की आराधना करती हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार महादेव जल्द प्रसन्न होने वाले देवता है। यदि सच्चे भाव से सोमवार के लिए उन्हें भांग, धतूरा, बेलपत्र, चंदन व दूध, दही और फल अर्पित किया जाए तो, जीवन से सभी तरह की परेशानियां समाप्त होती हैं। पूजा के दौरान शिव चालीसा का पाठ करना और भी कल्याणकारी है। इससे नौकरी में तरक्की और व्यापार में धन लाभ के योग बनते हैं। ऐसे में आइए इस चालीसा के बारे में जानते हैं|
शिव चालीसा पाठ
।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत संतन प्रतिपाला॥
भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुंडल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुंडमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघंबर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नंदि गणेश सोहै तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महं मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहं करी सहाई। नीलकंठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शंभु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पंडित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमंत ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
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होलिका दहन में न डाले ये चीजें, होता है अशुभ

हिंदू पंचांग का आखिरी महीना यानी फाल्गुन आरंभ हो चुका है और इस महीने में कई बड़े त्योहार मनाए जाते हैं जिसमें होली भी प्रमुख है। होली का त्योहार रंगों का पर्व माना गया है इस शुभ दिन पर लोग एक दूसरे को रंग लगाकर शुभकामनाएं देते हैं। इस साल होली का त्योहार 14 मार्च को मनाया जाएगा। होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है जो कि इस बार 13 मार्च यानी आज मनाई जा रही है।
होलिका दहन की रात पूजा पाठ करना लाभकारी माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन की आग बेहद पवित्र होती है ऐसे में इस आग में कोई भी अपवित्र चीज़ नहीं डालनी चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से अशुभता का जीवन में प्रवेश होता है और कष्ट भी उठाना पड़ सकता है तो आज हम आपको बता रहे हैं कि होलिका दहन की आग में किन चीजों को डालना अशुभ होता है तो आइए जानते हैं।
होलिका की आग में न डालें ये चीजें-
होलिका की अग्नि में गंदे वस्त्र, खराब टायर आदि चीजों को नहीं डालना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से जीवन पर मंगल का दुष्प्रभाव पड़ सकता है और परेशानियां उठानी पड़ती हैं। इसके अलावा होलिका दहन में पानी वाला नारियल भी नहीं डालना चाहिए। हमेशा सूखा नारियल ही चढ़ाना चाहिए। माना जाता है कि होलिका दहन की अग्नि में पानी वाला नारियल चढ़ाने से कुंडली का चंद्रमा कमजोर हो जाता है साथ ही कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
होलिका दहन की आग में टूटा फूटा लकड़ी का कोई सामान जैसे पलंग, सोफा, अलमारी का सामान नहीं डालना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से जीवन और परिवार पर शनि, राहु और केतु का अशुभ प्रभाव पड़ता है। होलिका की अग्नि में अगर आप घर के पकवान अर्पित कर रहे हैं तो इसकी संख्या तीन नहीं होनी चाहिए। इसे अशुभ माना जाता है होलिका दहन की आग में सूखी हुई गेहूं की बालियां और सूखे फूल नहीं डालना चाहिए।
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होली के दिन लड्डू गोपाल को लगाएं इन चीजों का भोग

भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरुप लड्डू गोपल ज्यादातर लोगों के घर में विराजमान है. लोग इनकी रोजाना पूजा करने के साथ एक छोटे बच्चे की तरह सेवा भी करते हैं. वह लड्डू गोपाल को प्रतिदिन स्नान, श्रृंगार, विश्राम और अलग-अलग तरह का भोग लगाते हैं. वहीं लोग त्योहार के हिसाब से भी लड्डू गोपाल के कुछ खास चीजों का भोग अर्पित करते हैं. मान्यता है कि जो भी भक्त पूरे श्रृद्धा भाव से लड्डू गोपाल की सेवा करता है. तो आइए जानते हैं कि होली के दिन लड्डू गोपाल की कृपा पाने के लिए किन चीजों का भोग लगाना चाहिए|
लड्डू गोपाल को लगाएं इन चीजों का भोग
होली के दिन चंद्रकला या गुजिया बहुत ही जरूरी सा माना जाता है. होली के अवसर पर यह सभी के घरों में यह पकवान तो जरूर बनता है. ऐसे में आप अपन घर में विराजमान लड्डू गोपाल को चंद्रकला या गुजिया का भोग लगाना चाहिए|
दही से बने व्यंजन
फाल्गुन माह में लड्डू गोपाल को दही से व्यंजनों का भोग लगाया जाता है. ऐसे में होली के दिन लड्डू गोपाल के मिठी दही और या दही से बन व्यंजनों का भोग लगा सकते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से परिवार और रिश्तों में मिठास बनी रहती है|
मालपुआ
होली के दिन आप घर में विराजमान लड्डू गोपाल को मालपुए या जलेबी का भी भोग लगा सकते हैं. कहते हैं कि होली के दिन लड्डू गोपाल को मालपुए या जलेबी का भोग लगाना शुभ होता है. कहते हैं कि ऐसे करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. साथ ही घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है|
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होलिका दहन आज, शुभ मुहूर्त शाम 06:34 बजे से रात 08:56 बजे तक

  • जानिए... पूजा विधि और महत्व
होलिका दहन, जिसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। यह त्योहार होली के एक दिन पहले मनाया जाता है और इसकी धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा की रात को किया जाता है। इस वर्ष होलिका दहन 13 मार्च 2025 को होगा। शुभ मुहूर्त केवल कुछ घंटों के लिए उपलब्ध रहेगा, इसलिए सही समय पर पूजा करना शुभ माना जाता है
- होलिका दहन का शुभ मुहूर्त: शाम 06:34 बजे से रात 08:56 बजे तक
- भद्रा समाप्ति का समय: दोपहर 02:45 बजे
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 13 मार्च 2025 को सुबह 10:12 बजे
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 14 मार्च 2025 को सुबह 08:47 बजे
होलिका दहन का महत्व-
होलिका दहन का उल्लेख हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है। यह त्यौहार भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और उसकी राक्षसी बुआ होलिका की कथा से जुड़ा हुआ है।
पौराणिक कथा-
राजा हिरण्यकशिपु ने स्वयं को भगवान मान लिया था और चाहता था कि सभी उसकी पूजा करें। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका, जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था, को प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने का आदेश दिया। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गया। तभी से इस दिन होलिका दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया जाता है।
होलिका दहन की पूजा विधि-
स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
होलिका की स्थापना करें, जिसमें लकड़ी, गोबर के उपले, सूखी घास और गन्ने के टुकड़े रखें।
होलिका दहन के समय परिवार सहित अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करें।
कच्चे धागे को होलिका पर लपेटें और पूजा करें।
गंगाजल, कुमकुम, हल्दी, फूल और नारियल अर्पित करें।
गेंहू, चना और नारियल को अग्नि में अर्पित करें, जिससे वर्षभर समृद्धि बनी रहती है।
होलिका की राख को घर लाकर माथे पर लगाएं, इसे शुभ माना जाता है।
होलिका दहन के लाभ और मान्यताएं-
- नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है।
- रोग-शोक और दुर्भाग्य दूर होता है।
- घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
- फसल की अच्छी पैदावार के लिए यह अनुष्ठान किया जाता है।
होलिका दहन के बाद धुलंडी (रंगों की होली)-
होलिका दहन के अगले दिन धुलंडी, यानी रंगों की होली खेली जाती है। इस दिन लोग गुलाल, रंग और पानी के साथ एक-दूसरे को रंगते हैं और प्यार और भाईचारे का संदेश देते हैं।
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देश में होली, दीपावली तब तक मना सकते हैं, जब तक सनातनियों की संख्या ज्यादा : देवकीनंदन ठाकुर

मथुरा। कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर गुरुवार को मथुरा में होली महोत्सव में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने होली गीत गाए और भक्तों के साथ होली खेली। देवकीनंदन ठाकुर ने कहा कि देश में होली, दीपावली, जन्माष्टमी और नवरात्रि तब तक ही मनाई जा सकती हैं, जब तक इस देश में सनातनियों की संख्या सबसे ज्यादा है। कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने पाकिस्तान में बच्ची के साथ हुई घटना का जिक्र किया। कहा, "ऐसा संदेश सुनने को मिला है। 14 वर्ष की बच्ची के साथ दो महीने तक पाकिस्तान में अत्याचार किया गया। अगर ऐसे ही अत्याचार बढ़ते रहे और हम लोगों ने आवाज उठाई तो मुझे नहीं लगता कि आने वाले समय में हम लोग होली मना पाएंगे।"
उन्होंने आगे कहा, "मैं सभी से अपील करूंगा कि होली को बचाने के लिए एकजुट हो जाएं और इसलिए मैं सनातन बोर्ड बनाने की भी मांग करता हूं। हमारी यही कोशिश होगी कि अगली होली श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में धूमधाम के साथ मनाई जाए। उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा कि वह 'होली मुबारक’ नहीं बल्कि होली की शुभकामनाएं दें, क्योंकि मुबारक तो कुछ और होता होगा। हमारे यहां तो शुभकामनाएं दी जाती हैं। कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने होली के पर्व पर लोगों से अपील भी की। उन्होंने कहा कि होली का त्योहार नशे और गुंडागर्दी मनाने का नहीं है, इसलिए सभी लोगों को कसम खानी चाहिए कि किसी भी पर्व पर नशा नहीं करना चाहिए और जुआ भी नहीं खेलना चाहिए।
बता दें कि वृंदावन स्थित श्री प्रियाकान्त जू मंदिर में गुरुवार को देवकीनंदन महाराज ने हाइड्रोलिक पिचकारी का उपयोग करके भक्तों पर रंगों की वर्षा की। हाइड्रोलिक होली इस मंदिर में होली उत्सव की एक विशेषता है। विगत आठ दिनों से श्री प्रियाकांत जू मंदिर में होली खेली जा रही है। मंदिर में होली उत्सव की शुरुआत विश्व शांति प्रार्थना और श्रीमद्भागवत कथा के शुभारंभ के साथ हुई। कार्यक्रम के पहले दिन प्रमुख आध्यात्मिक नेताओं ने भाग लिया, जिसमें हनुमान गढ़ी के महंत राजू दास महाराज और सत्यमित्रानंद महाराज शामिल थे, जिन्होंने व्यासपीठ पूजन किया और भक्तों को संबोधित किया था।
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होलिका दहन पर करें ये उपाय, घर में बनी रहेगी बरकत

हिंदू पंचांग का आखिरी महीना यानी फाल्गुन आरंभ हो चुका है और इस महीने में कई बड़े त्योहार मनाए जाते हैं जिसमें होली भी प्रमुख है। होली का त्योहार रंगों का पर्व माना गया है इस शुभ दिन पर लोग एक दूसरे को रंग लगाकर शुभकामनाएं देते हैं। इस साल होली का त्योहार 14 मार्च को मनाया जाएगा।
होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है जो कि इस बार 13 मार्च को पड़ रही है। होलिका दहन की रात अगर कुछ अचूक उपायों को किया जाए तो अपार धन, सौभाग्य और सुख समृद्धि प्राप्त होती है और लक्ष्मी जी का आशीर्वाद भी सालभर बना रहता है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा होलिका दहन के आसान उपाय बता रहे हैं।
होलिका दहन के आसान उपाय-
ज्योतिष अनुसार होलिका दहन की रात को घर की उत्तर दिशा में एक अखंड ज्योति जलाएं। माना जाता है कि इस उपाय को करने से धन लाभ की प्राप्ति होती है। उत्तर दिशा में अखंड ज्योति जलाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर कृपा करती है। और घर में धन की कमी नहीं रहती है। इससे परिवार में सुख शांति और समृद्धि आती है।
अखंड ज्योत जलाने का तरीका-
अखंड ज्योति जलाने से पहले जगह को साफ करके गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद तांबे या मिट्टी का दीपक लेकर उसमें शुद्ध घी या तिल का तेल डालें। आप पीतल या कांसे का भी दीपक प्रयोग कर सकते हैं ज्योति जलाते वक्त ‘ॐ कुबेराय नमः या ‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ इस मंत्र का जाप करें होलिका दहन के दिन सूर्यासत के बाद ज्योति जलाएं और इसे अखंड रूप से जलने दें।
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पापमोचनी एकादशी कब है?, जानिए... सही तारीख और पूजा विधि

एकादशी तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है. चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली पापमोचनी एकादशी व्रत का खास महत्व है. मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति को जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है. साथ ही भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है. तो आइए जान लेते हैं कि इस बार पापमोचनी एकादशी का व्रत कब किया जाएगा|
वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 25 मार्च को सुबह के 05 बजकर 05 मिनट शुरू हो रही है और तिथि का समापन 26 मार्च को सुबह में 03 बजकर 45 मिनट पर होने वाला है. उदया तिथि के अनुसार एकादशी का व्रत 25 मार्च को रखा जाएगा|
पापमोचनी एकादशी पूजा विधि-
पापमोचनी एकादशी के दिन व्रत एवं पूजन करने के लिए सुबह उठकर पवित्र स्नान करें.
भगवान विष्णु के समक्ष व्रत का संकल्प लें.
इसके बाद अपने घर व पूजा घर को साफ करें.
एक चौकी पर भगवान श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें.
भगवान का पंचामृत से स्नान करवाएं.
पीले फूलों की माला अर्पित करें.
हल्दी या गोपी चंदन का तिलक लगाएं.
पंजीरी और पंचामृत का भोग लगाएं.
विष्णु जी का ध्यान करें.
पूजा में तुलसी पत्र अवश्य शामिल करें.
आरती से पूजा को समाप्त करें.
पूजा के दौरान हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे.
अगले दिन पूजा के बाद प्रसाद से अपना व्रत खोलें.
पापमोचनी एकादशी व्रत पारण समय-
पापमोचनी एकादशी व्रत का पारण अगले दिन 26 मार्च को द्वादशी तिथि पर दोपहर के 01 बजकर 41 मिनट पर किया जाएगा और शाम 04 बजकर 08 मिनट तक है. इस दौरान व्रती अपने व्रत का पारण कर सकते हैं. स्नान-ध्यान कर विधि-विधान से पहले लक्ष्मी नारायण की पूजा अर्चना कर. व्रत खोल सकते हैं|
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जानिए...होलिका दहन का शुभ मुहूर्त, विधि और महत्व

हिंदू परंपरा के अनुसार, फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है, जो होली के त्यौहार की शुरुआत होती है. इस दिन को विशेष रूप से बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है। होलिका दहन की पूजा के साथ-साथ, इस दिन को राक्षसों और दुष्ट शक्तियों के नाश के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त-
होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त का महत्व बहुत ज्यादा होता है, क्योंकि मान्यता है कि इस समय पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि, शांति और समृद्धि आती है। 2025 में होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 6 मार्च को रात 9:20 बजे से शुरू होगा और रात 10:55 बजे तक रहेगा।
होलिका दहन की विधि-
सबसे पहले होलिका की पूजा करनी चाहिए और उसमें दीपक लगाकर उसकी आरती करनी चाहिए।
इस दिन घर के सभी लोगों को एकत्रित करके पूजा स्थान पर एकत्र होना चाहिए।
होलिका दहन करते समय लोग अपनी मनोकामनाओं को लेकर संकल्प लेते हैं और बुराईयों का नाश करने का आह्वान करते हैं।
इस दिन विशेष रूप से तंत्र-मंत्र का जाप भी किया जाता है।
होलिका दहन का महत्व-
होलिका दहन को लेकर धार्मिक मान्यता है कि इस दिन बुराईयों को नष्ट करने और अच्छे कर्मों को बढ़ावा देने का कार्य होता है। इस दिन राक्षसों और दुष्ट शक्तियों का नाश होता है, और अच्छाई की जीत होती है। इसे नफरत, द्वेष और किसी भी बुरे विचारों को जलाने के रूप में देखा जाता है। साथ ही, इस दिन नए संबंधों और नूतन आशाओं का भी आरंभ होता है।
होलिका दहन का पर्व एक महत्वपूर्ण अवसर है जब लोग अपने पुराने गिले-शिकवे छोड़कर एक-दूसरे के साथ नए संबंधों की शुरुआत करते हैं। साथ ही, यह पर्व प्रकृति के साथ एकता और समरसता का प्रतीक भी है।

 

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होलिका दहन में गोबर के उपले जलाने की परंपरा, जानिए...महत्व

होली का त्यौहार रंगों, खुशियों और परंपराओं से भरा होता है, लेकिन एक दिन पहले होने वाला होलिका दहन गहरी आस्था और भक्ति से जुड़ा होता है। यह केवल लकड़ियाँ और गोबर के उपले जलाने की परंपरा नहीं है, बल्कि यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। जब लपटें उठती हैं तो ऐसा लगता है जैसे सारी नकारात्मकता जलकर राख हो गई है। विशेषकर जब होलिका पर गोबर के उपले डाले जाते हैं तो ऐसा माना जाता है कि इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
होलिका दहन के दौरान गोबर के उपले जलाने की परंपरा-
होलिका दहन हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार गाय को पवित्र माना जाता है और उसके गोबर को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि होलिका दहन के दौरान गोबर के कंडे जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। कहा जाता है कि इससे वातावरण शुद्ध होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व-
होलिका दहन के दौरान गाय के गोबर के उपले जलाने के पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों कारण हैं। ऐसा माना जाता है कि जब गाय के गोबर के ढेर को जलाया जाता है तो उससे निकलने वाला धुआं वातावरण को शुद्ध करता है और हानिकारक कीटों को मारता है। यही कारण है कि गाय के गोबर का उपयोग यज्ञ और हवन में भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त, कई परिवारों में होलिका की अग्नि में सूखे नारियल, चावल और ताजे फूल चढ़ाने की परंपरा है, जो जीवन में सुख और समृद्धि सुनिश्चित करता है।
बुरी नजर से बचाव की पहचान-
गाय के गोबर के उपले जलाने से जुड़ी एक और विशेष रस्म की बात करें तो कई जगहों पर महिलाएं गाय के गोबर की माला बनाकर अपने बच्चों और भाइयों के सिर पर रखती हैं और फिर उन्हें होलिका को अर्पित करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे बुरी नजर से मुक्ति मिलती है और परिवार पर किसी भी बुरी शक्ति का प्रभाव नहीं पड़ता। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि होली पर जलाए गए उपले घर की हर समस्या का समाधान करने में मदद करते हैं। यही कारण है कि इसे न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि पारंपरिक और वैज्ञानिक आधार पर भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
खुशी और स्वच्छ पर्यावरण-
होलिका दहन के समय गाय के गोबर के उपले जलाने से परिवार से बाधाएं दूर होती हैं तथा सुख-समृद्धि बढ़ती है। इससे निकलने वाला धुआं नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और सकारात्मकता लाता है। इसके अलावा, यह पर्यावरण को शुद्ध करने में मदद करता है, जिससे कई प्रकार की बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। इसीलिए आज भी कई लोग इस परंपरा का पालन करते हैं और इसे अपने जीवन में शुभ मानते हैं। होलिका दहन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि हमारे जीवन को शुद्ध, सुरक्षित और खुशहाल बनाने की परंपरा भी है।
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