धर्म समाज

मंगलवार को करें ये आसान उपाय, मिलेगी हनुमान जी की विशेष कृपा

मंगलवार को बजरंग बली की पूजा की जाती है। हनुमान जी को कलयुग का देवता कहा जाता है। मान्यता है कि अगर आप सच्चे मन से भगवान श्री राम की पूजा करते हैं तो हनुमान जी बहुत प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं। मंगलवार का दिन बहुत खास माना जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आपको मंगलवार के दिन कौन से उपाय अपनाने चाहिए...
मंगलवार को करें ये उपाय
इस जगह जाकर करें पाठ
अगर संभव हो तो मंगलवार को सुबह और शाम हनुमान या श्री राम के मंदिर जाएं और वहां हनुमान चालीसा के साथ-साथ राम चालीसा का पाठ करें। इससे हनुमान जी प्रसन्न होंगे और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करेंगे।
गुड़ और चना खिलाएं
मंगलवार के दिन मंदिर जाएं और वहां हनुमान जी को गुड़ और चना चढ़ाएं। साथ ही मंदिर परिसर में मौजूद बंदरों को भी गुड़ और चना खिलाएं। इससे हनुमान जी प्रसन्न होंगे और आपको आशीर्वाद देंगे।
हनुमान जी को ये चीजें चढ़ाएं
हनुमान मंदिर जाएं और सिंदूर, चोला, लाल फूल और लाल झंडा के साथ प्रसाद (लड्डू या चना) चढ़ाएं। इससे हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और वे भक्त के सभी संकट दूर करते हैं।
गरीबों को दान करें
मंगलवार के दिन मंदिर के बाद भक्त को गरीबों को भोजन कराना चाहिए या यथाशक्ति अन्न दान करना चाहिए। इसके साथ ही लाल वस्त्र और बादाम दान करना शुभ होता है।
पान का बीड़ा चढ़ाएं
अगर आप धन की कामना रखते हैं तो मंगलवार के दिन हनुमान जी को पान का बीड़ा चढ़ाएं। ध्यान रहे कि यह पान मीठा होना चाहिए और इसमें चूना, सुपारी और तंबाकू नहीं डालना चाहिए। मान्यता है कि इससे भक्त के शत्रुओं का नाश होता है।
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें
हनुमान मंदिर जाएं और वहां मूर्ति के सामने बैठकर राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें। इससे हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और वे भक्तों के सभी संकट पल भर में दूर कर देते हैं।
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आषाढ़ अमावस्या पर करें दीपक से ये उपाय

  • मां लक्ष्मी भर देंगी आपका खजाना
आषाढ़ अमावस्या को दर्श अमावस्या भी कहते हैं, जो कि पितरों को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस साल आषाढ़ अमावस्या 25 जून को मनाई जाएगी. अगर आप इस दिन दीपक के कुछ खास उपाय अपनाते हैं, तो आपके घर में सुख-समृद्धि आती है और माता लक्ष्मी का वास होता है. ऐसे में अगर आप भी माता लक्ष्मी की कृपा पाना चाहते हैं, तो आषाढ़ अमावस्या पर दीपक के ये उपाय जरूर करें|
अमावस्या के दिन कौन सा दीपक जलाना चाहिए?
आषाढ़ अमावस्या के दिन चौमुखी दीपक जलाना शुभ माना जाता है. अमावस्या पर चौमुखी दीपक जलाने से पितर प्रसन्न होते हैं. इसके अलावा, अमावस्या पर तेल का दीपक भी जलाया जा सकता है. आषाढ़ अमावस्या पर आप नीचे दिए गए आसान उपाय अपना सकते हैं|
पितरों के लिए:- आषाढ़ अमावस्या के दिन दक्षिण दिशा में तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए. धार्मिक मान्यता है कि इससे पितर प्रसन्न होते हैं और साथ ही पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है|
घर में सुख-शांति के लिए:- आषाढ़ अमावस्या पर घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में दीपक जलाएं. इससे देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है और घर में सुख-शांति का वास होता है|
घर में बरकत के लिए:- आषाढ़ अमावस्या की रात को किचन में घी का दीपक जलाएं. अमावस्या पर किचन में दीपक जलाने से मां अन्नपूर्णा की कृपा मिलती है, जिससे घर में हमेशा अन्न में बरकत बनी रहती है|
पितृ दोष निवारण के लिए:- आषाढ़ अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं. ऐसा माना जाता है कि अमावस्या पर पीपल के नीचे दीपक जलाने से पितृ दोष दूर होता है|
धन-धान्य की वृद्धि के लिए:- आषाढ़ अमावस्या के दिन घर के ईशान कोण में घी का दीपक जलाना चाहिए. वास्तु की मानें तो इस दिन घी का दीपक जलाने से माता लक्ष्मी की कृपा घर पर बनी रहती है|
नकारात्मकता दूर करने के लिए:- आषाढ़ अमावस्या की शाम घर के मुख्य दरवाजे पर सरसों के तेल का दीपक जलाएं. इससे नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश नहीं कर पाती और सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है|
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महाकालेश्वर के दर्शन को उज्जैन पहुंचे रवि किशन, भस्म आरती में हुए शामिल

उज्जैन। अभिनेता, भाजपा सांसद रवि किशन सोमवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर पहुंचे, जहां उन्होंने बाबा का दर्शन-पूजन किया। रवि किशन भस्म आरती में भी शामिल हुए। उन्होंने भगवान महाकाल के दर्शन-पूजन किए और मंदिर परिसर में विकसित महाकाल कॉरिडोर की जमकर तारीफ की।
रवि किशन ने कहा, "इतना भव्य महाकाल कॉरिडोर बनाने के लिए मैं प्रशासन, मध्य प्रदेश सरकार, पीएम मोदी और डबल इंजन सरकार का आभारी हूं। श्रद्धालुओं के लिए अब अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हैं।" अहमदाबाद विमान हादसे को लेकर उन्होंने कहा, "भगवान महाकाल इस दुख को हरे और हादसे में मृत लोगों की आत्मा को शांति मिले। यही अर्जी लगाने आया हूं।"
पूजन, अर्पित पुजारी ने सम्पन्न करवाया। वहीं, श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति की ओर से सहायक प्रशासक मूलचंद जूनवाल ने रविकिशन का स्वागत व सम्मान किया। रवि किशन ने नंदी हॉल से शिव साधना की चांदी से माथा टेक आशीर्वाद लिया। मंदिर पहुंचे रवि किशन पीले रंग का 'महाकाल' के नाम का दुपट्टा ओढ़े और माथे पर रोली का तिलक लगाए नजर आए।
रवि किशन ने दर्शन के बाद कहा, "महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन कर मन को अपार शांति मिली। इतना भव्य और सुंदर महाकाल कॉरिडोर बनाने के लिए मैं स्थानीय प्रशासन, मध्य प्रदेश सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डबल इंजन सरकार का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। अब श्रद्धालुओं के लिए यहां विश्वस्तरीय सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिससे दर्शन और अधिक सुगम और सुखद हो गए हैं।"
उन्होंने आगे कहा, “महाकाल कॉरिडोर परियोजना न केवल धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रही है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान कर रही है। यह कॉरिडोर उज्जैन की शान बढ़ाने के साथ-साथ लाखों भक्तों के लिए आस्था का नया केंद्र बन गया है। मैं महाकालेश्वर समिति का भी आभार जताता हूं।”
महाकाल कॉरिडोर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2022 में किया था। इससे मंदिर परिसर को भव्य और आधुनिक स्वरूप प्रदान किया गया है। परियोजना के तहत मंदिर परिसर और आसपास के क्षेत्र को विकसित किया गया है, जिसमें भक्तों के लिए बेहतर दर्शन व्यवस्था, विश्राम स्थल, स्वच्छता और अन्य सुविधाएं भी शामिल हैं।
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कब है मिथुन संक्रांति, जानें तिथि, स्नान मुहूर्त और शुभ समय

इस वर्ष मिथुन संक्रांति के दिन 2 घंटे 20 मिनट का महा पुण्य काल रहेगा। यह समय अत्यंत पावन और फलदायी होता है, और इसमें स्नान, दान व जप आदि धार्मिक कार्य करना विशेष फलदायक माना गया है। यदि कोई व्यक्ति किसी कारणवश महा पुण्य काल में यह कर्म न कर पाए, तो वह पुण्य काल के दौरान भी इन शुभ कार्यों को कर सकता है। यह दिन अध्यात्म और धर्म के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, इसलिए इसका सदुपयोग अवश्य करना चाहिए।
इस दिन श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान कर के दान करते हैं। मान्यता है कि इस दिन स्नान और दान से न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन में चल रहे ग्रह दोष भी शांत होते हैं। विशेषकर सूर्य और अन्य ग्रहों की स्थिति से जुड़े दोषों के निवारण के लिए यह दिन शुभ माना जाता है।
मिथुन संक्रांति 2025 की तिथि:
मिथुन संक्रांति: 15 जून 2025, रविवार
15 जून 2025 को अष्टमी तिथि समाप्त होकर नवमी तिथि प्रारंभ होगी।
समय: सुबह 6:53 बजे
संक्रांति नाम: घोर संक्रांति
सौर कैलेंडर: 15 जून से मिथुन मास (तीसरा माह) प्रारंभ होगा।
मिथुन संक्रांति 2025 महा पुण्य काल:
15 जून 2025 को मिथुन संक्रांति का महा पुण्य काल लगभग 2 घंटे 20 मिनट का रहेगा। यह शुभ समय सुबह 6:53 बजे शुरू होकर सुबह 9:12 बजे समाप्त होगा। इस दौरान स्नान और दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है, इसलिए इस समय का अधिकतम लाभ उठाना चाहिए।
मिथुन संक्रांति 2025 पुण्य काल और स्नान-दान का समय:
मिथुन संक्रांति का कुल पुण्य काल लगभग 7 घंटे 27 मिनट तक रहेगा, जो सुबह 6:53 बजे से शुरू होकर दोपहर 2:20 बजे तक चलेगा। इस समय में स्नान और दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। खासकर सुबह 6:53 बजे से 9:12 बजे तक का समय स्नान और दान के लिए सबसे उत्तम माना गया है। इस दौरान अपनी सामर्थ्य अनुसार दान करें और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएं।
मिथुन संक्रांति पर क्या दान करें:
मिथुन संक्रांति के दिन सूर्य देव से जुड़े वस्तुओं का दान करना विशेष फलदायक होता है।
इस अवसर पर आप गेहूं, तिल, गुड़, लाल वस्त्र, लाल रंग के फल और लाल चंदन का दान कर सकते हैं।
सा करने से आपकी कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है और सूर्य दोष कम होता है। साथ ही, स्नान और दान से पाप भी नष्ट होते हैं।
मिथुन संक्रांति के दिन कपड़ों का दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
मिथुन संक्रांति 2025 का विशेष योग और नक्षत्र:
इस बार की मिथुन संक्रांति पर इंद्र योग रहेगा जो सुबह से दोपहर 12:20 तक प्रभावी होगा, उसके बाद वैधृति योग बना रहेगा। इस दिन श्रवण नक्षत्र सुबह से लेकर रात 1 बजे तक रहेगा। मिथुन संक्रांति के दिन भगवान सूर्य देव बाघ पर विराजमान होंगे और पीले वस्त्र पहनेंगे। वे पूर्व दिशा की ओर नैऋत्य दृष्टि से यात्रा करेंगे। इस दिन सूर्य देव को चांदी के पात्र में पायस का भोग लगाना शुभ माना जाता है।
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आज कृष्णपिंगला संकष्टी चतुर्थी के दिन करें ये उपाय

  • पूरी होगी हर मनोकामना
हिंदू धर्म में संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व है। 14 जून यानी की आज कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी मनाई जा रही है। इस दिन देवों के देव महादेव के पुत्र गणेश जी की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन बप्पा की सच्चे मन से पूजा करने और व्रत रखने से इच्छाओं की पूर्ति होती है और शारीरिक और मानसिक ऊर्जा में वृद्धि होती है। इस दिन पर चंद्र दर्शन करने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। साथ ही इस दिन गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए कुछ उपाय और उनके नामों और मंत्रों का भी जाप किया जाता है। तो आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी पर किए जाने वाले उपायों के बारे में-
भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाएं-
संकष्टी चतुर्थी के दिन 21 दूर्वा की गठरी गणेश जी को अर्पित करना शुभ माना जाता है। यह उपाय बाधाओं को दूर करने में सहायक होता है।
चंद्रमा को अर्घ्य दें-
संकष्टी चतुर्थी की रात चंद्रमा को जल चढ़ाकर अर्घ्य देना व्रत की पूर्णता का संकेत होता है। इससे मानसिक तनाव कम होता है और सौभाग्य बढ़ता है।
मोदक का भोग लगाएं-
गणेश जी को मोदक बहुत प्रिय हैं। मोदक बनाकर या बाजार से लाकर उन्हें भोग लगाएं। माना जाता है कि इससे मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं।
गणेश जी के मंत्रों का जाप करें-
"ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा" मंत्र का जाप करें। यह विशिष्ट गणेश मंत्र है जो विशेष इच्छाओं की पूर्ति में सहायक होता है। इसका 108 बार जाप करें।
गरीबों को भोजन कराएं या फल दान करें-
इस दिन दान करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। किसी जरूरतमंद को भोजन, फल या वस्त्र देने से जीवन में सुख-शांति आती है।
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शनिवार को भूलकर भी न करें ये 7 काम

  • जीवन में बढ़ जाती हैं मुश्किलें
शनि देव कर्मफल दाता और न्याय के देवता कहे गए हैं. शनि देव कर्म प्रधान ग्रह हैं. व्यक्ति जैसे कर्म करता है शनि देव उसको वैसा ही फल प्रदान करते हैं. अगर व्यक्ति मेहनत करता है, गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करता है, तो शनिदेव उसपर प्रसन्न होते हैं|
वहीं अगर अगर व्यक्ति धर्म के अनुसार, आचरण नहीं करता और नियमों को तोड़ता है, तो शनि देव उसको दंडित भी करते हैं. आइए अब जानते हैं कि वो कौनसे काम हैं, जिन्हें अगर शनिवार के दिन कर दिया जाता है, तो शनि देव नाराज हो जाते हैं, जिससे व्यक्ति के जीवन की मुश्किलें बढ़ जाती हैं|
डाढ़ी बाल और नाखून न काटें-
हिंदू धर्म शास्त्रों में शनिवार के दिन डाढ़ी बाल और नाखून काटना वर्जित किया है. मान्यता है कि इस दिन डाढ़ी बाल और नाखून काटने शनि देव नाराज होते हैं. जो भी व्यक्ति शनिवार के दिन ये काम करता है उसको शनि देव कष्ट देते हैं|
बेटी को ससुराल न भेजें-
मान्यता है कि शनिवार के दिन अपनी बेटी को ससुराल नहीं भेजना चाहिए. कहा जाता है कि बेटी को शनिवार के दिन ससुराल भेजने पर उसका वैवाहित जीवन अच्छा नहीं रहता और अलगाव होता है|
तेल और काली उड़द की दाल न खरीदें-
शनिवार के दिन तेल और काली उड़द की दाल खरीदने से बचना चाहिए. माना जाता है कि जो शनिवार के दिन तेल और काली उड़द की दाल खरीदता है उससे शनि देव नाराज होते हैं. हालांकि इस दिन तेल और काली उड़द का दान अवश्य करना चाहिए|
मांस मदिरा के सेवन की मनाही:
शनिवार के दिन भूलकर भी मांस-मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए. जो लोग भी शनिवार के दिन ऐसा करते हैं उनपर शनि देव बहुत क्रोधित होते हैं और पीड़ा देते हैं|
गरीबों को न सताएं-
शनि देव न्याय प्रिय हैं. इसलिए शनिवार के दिन गरीब और बेबस लोगों को सताना नहीं चाहिए. जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें शनि देव के भारी प्रकोप का सामना करना पड़ता है. उनके जीवन में कई तरह की परेशानियां आ जाती हैं|
नमक न खरीदें-
शनिवार के दिन नमक खरीदने से बचना चाहिए. माना जाता है कि जो लोग शनिवार के दिन नमक खरीदते हैं उनके साथ कोई न कोई अशुभ घटना हो जाती है. शनिवार के दिन नमक खरीदने वालों से शनि देव नाराज हो जाते हैं. ऐसा करने वाले शनि देव की टेढ़ी दृष्टि का प्रकोप झेलते हैं|
लोहा न खरीदें-
शनि देव को लोहे की धातु पसंद है, लेकिन शनिवार के दिन लोहा खरीदने और बेचने की मनाही है. यही नहीं इस दिन लोहा घर भी नहीं लाना चाहिए. ऐसा करने से शनि देव नाराज होते हैं|
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12 जून को गुरु अस्त होने से मांगलिक कार्यों पर लगेगी रोक

  • न करें ये काम
मंगल कार्यों के लिए विशेष माने जाने वाले गुरु ग्रह 12 जून गुरुवार को अस्त हो जाएंगे। इसके साथ ही विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, मंदिर प्राण प्रतिष्ठा, शिलान्यास जैसे मांगलिक कार्यों पर पूर्ण विराम लग जाएगा। गुरु के अस्त रहते कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते। उसके बाद देवशयनी एकादशी के साथ चातुर्मास शुरू हो जाएगा, जिसके कारण 1 नवंबर तक शुभ कार्य वर्जित माने जाएंगे।
पंडित विनोद गौतम के अनुसार, जब गुरु अस्त हो जाता है, तो विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत (जनेऊ), मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा, भवन प्रवेश, नया घर खरीदना या कोई नई योजना शुरू करना अशुभ माना जाता है। यह धार्मिक रूप से मान्यता प्राप्त समय होता है जिसमें भगवान की कृपा बाधित मानी जाती है।
गुरु ग्रह 9 जुलाई को भले ही उदय हो जाएंगे, लेकिन तब तक चातुर्मास लग चुका होगा। इस कारण 1 नवंबर देवउठनी एकादशी तक कोई मांगलिक कार्य नहीं होंगे।
चातुर्मास में होते हैं ये कार्य
पंडित रामजीवन दुबे के अनुसार, चातुर्मास में कुछ कार्यों की अनुमति होती है। इनमें तीर्थ यात्रा, दान, व्रत, उपवास, धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, अन्नप्राशन, पुराने निर्माण कार्य (जो पहले से चल रहे हों), वाहन या गहनों की खरीदारी, घर की मरम्मत या रेनोवेशन शामिल हैं। इनके लिए कोई विशेष मुहूर्त आवश्यक नहीं होता और गुरु अस्त या चातुर्मास का प्रभाव इन कार्यों पर नहीं पड़ता।
भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाएंगे
हिंदू पंचांग के अनुसार, 6 जुलाई को देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं। इस समय से चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो 1 नवंबर को देवउठनी एकादशी तक चलता है। इस अवधि को धार्मिक अनुशासन, साधना, संयम और उपवास के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
चातुर्मास के दौरान न केवल विवाह आदि पर रोक होती है, बल्कि साधु-संत भी एक ही स्थान पर चार माह तक प्रवास करते हैं। मान्यता है कि इस दौरान भगवान के सोने के कारण शुभ कार्य करना अनिष्टकारी होता है।
अगला शुभ मुहूर्त
गुरु के 9 जुलाई को उदय होने के बाद भी शुभ कार्यों की शुरुआत नहीं होगी, क्योंकि चातुर्मास पहले ही आरंभ हो चुका होगा। अगला प्रमुख मुहूर्त 1 नवंबर को देवउठनी एकादशी के दिन आएगा। इस दिन भगवान विष्णु के जागने के साथ ही शुभ कार्यों की फिर से शुरुआत हो सकेगी।
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भगवान गणेश की विशेष कृपा पाने का सबसे सरलतम उपाय

भारतवर्ष में गणपति बप्पा को विघ्नहर्ता और शुभारंभ के देवता के रूप में पूजा जाता है। किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले श्री गणेश जी की वंदना की जाती है ताकि सारे विघ्न दूर हों और कार्य निर्विघ्न सम्पन्न हो सके। पौराणिक ग्रंथों, पुराणों और शास्त्रों में भगवान गणेश के कई मंत्र, स्तोत्र और चालीसाएं वर्णित हैं, लेकिन उन सभी में ‘गणेश अष्टकम स्तोत्रं’ को एक विशेष स्थान प्राप्त है। यह स्तोत्र भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल, सुलभ और प्रभावशाली उपाय माना जाता है।
क्या है ‘गणेश अष्टकम स्तोत्रं’?
गणेश अष्टकम एक संस्कृत स्तोत्र है जिसमें आठ श्लोक होते हैं। यह स्तोत्र भगवान गणेश की महिमा का गुणगान करता है और उनके स्वरूप, शक्ति, और कृपा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र आदिकवि वाल्मीकि द्वारा रचित माना जाता है और इसमें भगवान गणेश की स्तुति के माध्यम से भक्त अपने कष्टों, विघ्नों और बाधाओं से मुक्ति की प्रार्थना करता है।
पाठ का महत्व
‘गणेश अष्टकम स्तोत्रं’ का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है बल्कि मानसिक शांति, बुद्धि, विवेक और स्मरण शक्ति को भी बढ़ाता है। यह स्तोत्र विद्यार्थियों, व्यापारियों, नौकरीपेशा लोगों और साधकों के लिए अत्यंत फलदायक माना गया है।
क्यों है यह स्तोत्र सबसे सरल उपाय?
संक्षिप्त और प्रभावशाली: अन्य मंत्रों की तुलना में यह स्तोत्र मात्र आठ श्लोकों का है जिसे कोई भी व्यक्ति कुछ ही समय में स्मरण कर सकता है।
भावनात्मक जुड़ाव: इसमें भगवान गणेश की सजीव छवि उभरती है, जिससे पाठ करते समय भक्त भाव-विभोर हो उठता है।
बाधा निवारण: माना जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन के सारे विघ्न समाप्त होते हैं।
श्रद्धा से युक्त: यह स्तोत्र न केवल शब्दों का संगम है बल्कि श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक भी है।
कब और कैसे करें पाठ?
समय: प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में या संध्या के समय यह स्तोत्र पढ़ना श्रेष्ठ रहता है।
स्थान: शांत, पवित्र और स्वच्छ स्थान पर बैठकर पाठ करें।
विधि: पहले हाथ-पैर धोकर भगवान गणेश का ध्यान करें, उन्हें दूर्वा, लाल फूल और मोदक अर्पित करें, फिर श्रद्धा पूर्वक स्तोत्र का पाठ करें।
श्रद्धालुओं के अनुभव
अनेक भक्तों का मानना है कि ‘गणेश अष्टकम स्तोत्रं’ का पाठ करते ही उनके जीवन में अद्भुत परिवर्तन हुआ। विद्यार्थी कहते हैं कि इससे उनकी स्मरण शक्ति और एकाग्रता में वृद्धि हुई, वहीं व्यापारी वर्ग ने बताया कि अड़चनों के बावजूद कारोबार में तरक्की मिलने लगी। कई लोगों ने इसे मानसिक तनाव से मुक्ति का एक साधन भी बताया।
विज्ञान क्या कहता है?
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो नियमित मंत्रोच्चारण, विशेषकर संस्कृत श्लोकों का पाठ, मस्तिष्क में सकारात्मक कंपन उत्पन्न करता है। इससे मानसिक शांति, आत्मविश्वास और ऊर्जा का स्तर बढ़ता है, जो किसी भी चुनौती का सामना करने में सहायता करता है।
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आषाढ़ माह की शुरूआत 12 जून से, भूलकर भी न करें ये काम

हिंदू नव वर्ष का चौथा महीना आषाढ़ जल्द ही शुरू होने वाला है. आषाढ़ माह में भगवान विष्णु और भगवान सूर्य देव की आराधना का विशेष महत्व है. साल 2025 में आषाढ़ माह की शुरूआत 12 जून, गुरुवार के दिन से हो रही है. इस माह में पड़ने वाली देवश्यनी एकादशी के बाद भगवान विष्णु 4 माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं और इस दौरान शुभ कार्य करने पर रोक लग जाती है|
आषाढ़ का महीना क्यों खास होता है और इस माह में किन कामों को करने पर रोक होती है, साथ ही किन काम को करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है, यहां पढ़ें आषाढ़ माह के नियम|
आषाढ़ माह में शिव जी पूजा करने का विशेष महत्व है. इस माह में भोलेनाथ के साथ विष्णु जी और सूर्य की आराधना करनी चाहिए|
आषाढ़ माह में रोज नियम से सूर्य देव अर्घ्य दें|
इस माह में धार्मिक यात्रा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है.
आषाढ़ माह में दान देने का विशेष महत्व है इस माह में छाता, पानी से भरे घड़ा, खरबूजा, तरबूज, नमक, आंवले का दान करें.
आषाढ़ माह में तुलसी में जल में थोड़ा दूध मिलाने से घर में बरकत होती है. ऐसा माना जाता है इससे पैसों की तंगी कभी नहीं आती|
आषाढ़ माह में पड़ने वाली देवश्यनी एकादशी के बाद चातुर्मास आरंभ हो जाता है, जिसमें शुभ और मांगलिक कार्य करने पर रोक लग जाती है, इसीलिए इन कार्यों को नहीं करना चाहिए.
इस माह में विवाह, गृहप्रवेष, मुंडन जैसे कार्य करना वर्जित होता है|
आषाढ़ माह में मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए|
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आज ज्येष्ठ पूर्णिमा पर करें ये खास उपाय

11 जून 2025 को हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा मनाई जाएगी। धार्मिक दृष्टि से इस दिन का अत्यधिक महत्व है। इस रोज कुछ खास उपाय कर लेने से लाइफ में पॉजिटिविटी के साथ दुश्मनों पर विजय और मेंटल स्ट्रेस से राहत प्राप्त की जा सकती है। इस रोज चन्द्रमा पूरे आकार में अपनी छटा बिखेरता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा 2025 उपाय-
धन की देवी लक्ष्मी को ये दिन बहुत प्रिय है। कुछ विशेष उपाय करके मां लक्ष्मी को अपने घर चरण डालने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। इससे आपके उज्जवल भविष्य का निर्माण होगा। शास्त्र कहते हैं, आज के दिन देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के संग पीपल के पेड़ पर आती हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए सूर्यास्त से पूर्व किसी भी मिष्ठान के साथ जल अर्पित करें। शाम में दीप दान करें।
दांपत्य में मधुरता बनाए रखने के लिए पति-पत्नी मिलकर चांद को अर्घ्य दें।
आर्थिक अभाव लाख प्रयत्न करने पर भी खत्म नहीं हो रहे हैं तो चंद्रोदय पर चांद को कच्चे दूध में चीनी और चावल मिलाकर अर्घ्य दें। शुभ फलों की प्राप्ति के लिए ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: चन्द्रमासे नम: अथवा ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम: मंत्र का जाप करें।
घर में धन का प्रवाह बनाए रखने के लिए श्री यंत्र, व्यापार वृद्धि यंत्र, कुबेर यंत्र, एकाक्षी नारियल, दक्षिणावर्ती शंख और कौड़ियां स्थापित करें।
पूर्णिमा की रात कुछ पलों के लिए चन्द्रमा को एकटक निहारें इससे नेत्रों की ज्योति बढ़ेगी। चन्द्रमा की चांदनी में सुई में धागा डालने का प्रयास करें, इससे नेत्र ज्योति बढ़ेगी।
पूर्णिमा की रात चन्द्रमा की चांदनी को अपने शरीर पर पड़ने दें। इससे रोगों का शमन होता है। गर्भवती महिला की नाभि पर इसकी रोशनी पड़ने से जच्चा और बच्चा स्वस्थ रहते हैं।
कुंडली में चंद्र दोष है तो रात को चंद्रमा में दूध और मिश्री मिलाकर अर्घ्य दें। मेंटल स्ट्रेस से राहत मिलेगी।
पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है और उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
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कब रखा जाएगा सावन का पहला सोमवार व्रत, जानें तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त

सोमवार भगवान शिव का वार है और सावन शिव का महीना, इसलिए इस महीने के सोमवार विशेष रूप से पूजनीय माने जाते हैं। इन सोमवारों को सावन सोमवारी कहा जाता है। इस दिन श्रद्धालु शिवजी का व्रत रखते हैं, उपवास करते हैं, शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा आदि अर्पित करते हैं और शिव चालीसा, रुद्राष्टक या महामृत्युंजय जाप का पाठ करते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं साल 2025 में सावन का महीना कब से शुरू हो रहा है और सावन का पहला सोमवार व्रत किस दिन रखा जाएगा।
सावन 2025 में कब से कब तक रहेगा सावन-
इस वर्ष सावन का महीना 11 जुलाई 2025 से शुरू होकर 9 अगस्त 2025 तक चलेगा। इस दौरान कुल चार सोमवार आएंगे। सावन का समापन रक्षाबंधन पर्व के साथ होगा, जो भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक है, जो इस बार 9 अगस्त को मनाया जाएगा।
सावन सोमवार की तिथियां-
पहला सोमवार- 14 जुलाई 2025
दूसरा सोमवार- 21 जुलाई 2025
तीसरा सोमवार- 28 जुलाई 2025
चौथा सोमवार- 4 अगस्त 2025
पहले सावन सोमवार पर शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:16 से 5:04 बजे तक
अभिजित मुहूर्त- दोपहर 11:59 बजे से 12:55 बजे तक
अमृत काल- रात 11:21 बजे से 12:55 बजे तक, जुलाई 15
पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय- दोपहर 11:38 बजे से 12:32 बजे तक
ऐसी मान्यता है कि जो भक्त पूरे सावन मास के सभी सोमवारों का व्रत नहीं कर सकते, वे कम से कम पहले और अंतिम सोमवार का व्रत अवश्य करें। यह भी उतना ही पुण्यदायी होता है और शिव कृपा प्राप्त होती है।
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वट पूर्णिमा व्रत आज, जानें क्या करें और क्या न करें

पंचांग के मुताबिक इस बार ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 10 जून को सुबह 11 बजकर 35 मिनट पर होगी। इसका समापन 11 जून को दोपहर 1:13 मिनट पर है। ऐसे में वट पूर्णिमा का व्रत 10 जून को रखा जा रहा है। इस दौरान जहां पति की लंबी उम्र और वैवाहिक जीवन सुखमय के लिए व्रत रखने का विधान है। वहीं कुछ खास चीजों को करने की मनाही भी होती है। ऐसे में आइए जानते हैं कि वट पूर्णिमा पर क्या करें और क्या न करें।हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत को नारी शक्ति, प्रेम और त्याग का प्रतीक माना जाता है। इस पर्व पर सभी महिलाएं पति की लंबी उम्र और अच्छी सेहत के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इसके अलावा वट सावित्री व्रत पर वट वृक्ष की पूजा का विधान है। मान्यता है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। इसलिए पेड़ की उपासना करने से महिलाओं को सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। इस व्रत को साल में दो बार रखा जाता है, जिसमें पहला ज्येष्ठ अमावस्या और दूसरा ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि पर रखा जाता है।
क्या करें और क्या न करें-
वट पूर्णिमा के दिन सुबह ही स्नान कर लेना चाहिए और साफ वस्त्रों को धारण करें।
इस दिन वट वृक्ष की पूजा अवश्य करनी चाहिए। यह बेहद शुभ होता है।
वट पूर्णिमा के दिन पेड़ को जल अर्पित करें और हल्दी-कुमकुम से पूजा करना न भूलें।
वट पूर्णिमा के दिन सावित्री और सत्यवान की कथा का पाठ करें।
इस दिन लाल धागे से वट वृक्ष के चारों ओर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए।
वट पूर्णिमा पर निर्जला व्रत रखें।
इस दिन व्रत का पारण करते हुए महिलाएं पति को तिलक लगाकर उनके चरणों का स्पर्श करें।
सत्यव्रत का पालन करें-
तामसिक चीजों से दूर रहें।
पूजा में पवित्रता का खास ख्याल रखें।
जरुरतमंदों को अन्न, फल, धन और वस्त्रों का दान करें।
स्वच्छता का खास ध्यान रखना चाहिए।
वट पूर्णिमा पर आप किसी भी तरह के विवाद या कलह में न पड़े।
व्रती महिलाओं को मन में नकारात्मक विचारों को रखने से बचना चाहिए। इसके अलावा झूठ भी न बोलें।
इस दिन आप बाल न धोएं और कटवाएं भी न।
एक दिन पहले सात्विक भोजन करें।
वट पूर्णिमा व्रत में सोलह श्रृंगार करें।
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हनुमान जी के आखिरी मंगलवार को करें ये उपाय

साल 2025 में जेठ माह में कुल 5 मंगलवार हैं. जिन्हें बड़ा मंगल के नाम से जाना जाता है. जेठ महीने का आखिरी बड़ा मंगल 10 जून 2025 को है. इस दिन हनुमान जी की पूजा और उनकी आराधना और उपाय करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. जेठ महीना समाप्त होने जा राहा है. वहीं जेठ पूर्णिमा के दिन बड़ा मंगल पड़ रहा है. जिससे की यह बेहद शुभ माना जा रहा है. बड़ा मंगल को बुढ़वा मंगल भी कहते हैं. इस शुभ अवसर पर कुछ विशेष उपाय कर हनुमान जी को प्रसन्न भी किया जा सकता है. आइए आपको बताते हैं|
महत्व-
रामभक्त हनुमानजी को शक्ति, भक्ति, बुद्धि और साहस का प्रतीक माना जाता है. वह ऐसे देवता हैं, जो रामभक्त, चिरंजीवी और संकटमोचक कहलाते हैं. वैसे तो सभी मंगलवार का अपना महत्व है लेकिन ज्येष्ठ मास के बड़े मंगल को हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन हनुमानजी की विशेष रूप से पूजा अर्चना करने से सभी कष्टों व परेशानियों से मुक्ति मिलती है. अगर आप भी किसी भी तरह की परेशानी से मुक्ति चाहते हैं या फिर मनोकामना पूरी करवाना चाहते हैं तो बड़े मंगल का व्रत रखकर हनुमानजी को सिंदूर और चोला अर्पित करें. कहा जाता है कि जिन पर हनुमानजी की कृपा हो जाए, उन्हें जीवन में कभी भय, बाधा, रोग या दरिद्रता नहीं छू सकती|
करें ये उपाय-
हनुमान जी की बूंदी का प्रसाद जरूर चढ़ाएं और लोगों में बांटे.
बड़े मंगल के दिन हनुमान जी को उनके प्रिय फूल चमेली की माला चढ़ाएं.
बड़े मंगल के दिन हनुमान जी को उनका प्रिय सिंदूर चढ़ाया जाता है.
हनुमान जी के मंत्र ‘ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः’ या फिर ‘ऊँ भौं भौमाय नम: ‘ मंत्र का जाप करें.
बड़े मंगल पर हनुमान जी को पान का बीड़ा, बेसन के लड्डू का भोग, इमरती का भोग लगाएं, यह सभी चीजें हनुमान जी की प्रिय हैं.
बड़े मंगल पर हनुमान चालीसा का पाठ और बजरंग बाण का पाठ करें. ऐसा करने बिगड़े काम बन जाते हैं और संकट मोचन हनुमान जी सभी कष्ट और संकटों का निवारण करते हैं|
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ज्येष्ठ माह के अंतिम मंगलवार को हनुमान गढ़ी मंदिर में उमड़ी भक्तों की भीड़

अयोध्या। हिंदू कैलेंडर के ज्येष्ठ माह के पांचवें और अंतिम मंगलवार को श्री हनुमान गढ़ी मंदिर में बड़ी संख्या में भक्तों ने पूजा-अर्चना की। तस्वीरों में मंदिर में पूजा-अर्चना और प्रसाद चढ़ाते भक्त दिखाई दे रहे हैं। भक्त वेद प्रकाश शर्मा ने एएनआई को बताया, "हम राजस्थान से परिवार के साथ आए हैं। हमें राम मंदिर (श्री राम जन्मभूमि मंदिर) में मंगला आरती के दर्शन हुए। वहां बहुत भीड़ थी और हमें हनुमान मंदिर में दर्शन करने का मौका नहीं मिला। हालांकि, राम मंदिर में हमारा अनुभव शानदार रहा। सनातन धर्म समुदाय को बहुत लंबा इंतजार करना पड़ा, लेकिन अब इंतजार खत्म हो गया है।"
हनुमान गढ़ी मंदिर की आधिकारिक साइट के अनुसार, मंदिर अयोध्या धाम में स्थित है। माना जाता है कि भगवान हनुमान 10वीं शताब्दी से इस स्थान पर हैं, जहां वे अयोध्या के राजा के रूप में विराजमान हैं। भगवान हनुमान की ऐसी अनोखी मूर्ति दुनिया के किसी भी मंदिर में नहीं है। दुनिया के हर कोने से भक्त यहां भगवान हनुमान के दर्शन के लिए आते हैं। मंगलवार और शनिवार को दर्शन के लिए विशेष भीड़ आती है। मंदिर तक पहुंचने के लिए कुल 76 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।
स्थल के बारे में कहा जाता है कि जब भगवान राम रावण को हराकर अयोध्या लौटे, तो भगवान हनुमान यहां रहने लगे। इसीलिए इसका नाम हनुमानगढ़ या हनुमान कोट पड़ा। यहीं से भगवान हनुमान रामकोट की रक्षा करते थे। मुख्य मंदिर में भगवान हनुमान अपनी मां अंजनी की गोद में विराजमान हैं।
मंगलवार को प्रयागराज के श्री बड़े हनुमान जी मंदिर में भी इस शुभ दिन पर पूजा-अर्चना करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ी यह दिन हिंदू कैलेंडर के ज्येष्ठ महीने में आता है और हनुमान भक्त विभिन्न अनुष्ठान करते हैं और मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। कुछ भक्त देवता को प्रसन्न करने के लिए उपवास भी रखते हैं। पिछले मंगलवार को, महीने के चौथे बड़े मंगल पर, प्रयागराज के संगम पर लेटे हनुमान मंदिर या लेटे हुए हनुमान मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। (एएनआई)
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स्वामीनारायण मंदिर की रजत जयंती के पाठोत्सव में शामिल हुए बृजमोहन अग्रवाल

रायपुर। राजधानी रायपुर स्थित श्री स्वामीनारायण मंदिर में इस वर्ष एक ऐतिहासिक अध्याय जुड़ गया, जब मंदिर स्थापना के 25 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में भव्य पाठोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस शुभ अवसर पर लोकसभा सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने कार्यक्रम में शामिल होकर दिव्य वातावरण का साक्षात्कार किया और श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए मंदिर की सामाजिक भूमिका को रेखांकित किया।
दिव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण रहा पाठोत्सव
पाठोत्सव कार्यक्रम में मंदिर परिसर भक्ति और श्रद्धा की गूंज से भर उठा। श्री स्वामीनारायण भगवान के पावन ग्रंथों का सस्वर पाठ, भजन-कीर्तन, सत्संग और प्रवचन से वातावरण पूरी तरह भक्तिमय हो गया। कार्यक्रम में न केवल स्थानीय श्रद्धालु, बल्कि आसपास के जिलों से भी बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हुए। इस विशेष मौके पर आयोजित ध्वज पूजन, सामूहिक आरती, और महाप्रसाद का आयोजन भी हुआ, जिससे श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक तृप्ति मिली।
सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने मंदिर की भूमिका को बताया समाज-निर्माण की आधारशिला
कार्यक्रम में उपस्थित होकर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने कहा “श्री स्वामीनारायण मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह समाज को नैतिकता, सेवा, सदाचार, और संयम का संदेश देने वाला प्रेरणास्थल है। यहाँ न सिर्फ पूजा होती है, बल्कि संस्कार, शिक्षा और सेवा के कार्यों को भी गहराई से निभाया जाता है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि रायपुर शहर का यह मंदिर बीते 25 वर्षों में सामाजिक समरसता और धार्मिक चेतना का केन्द्र बनकर उभरा है, जहां हर वर्ग और उम्र के लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन मिलता है।
साधु-संतों और भक्तों की विशेष उपस्थिति
कार्यक्रम में श्री स्वामीनारायण संप्रदाय के प्रतिष्ठित महंत स्वामीजी महाराज के शिष्य संतों, आचार्यों एवं प्रमुख साधुओं की गरिमामयी उपस्थिति रही। उन्होंने भक्तों को जीवन में धर्म, सेवा, त्याग और अनुशासन का महत्व बताया और मंदिर की विकास यात्रा की झलक प्रस्तुत की। संतों ने विशेष रूप से युवा वर्ग से नैतिकता और संयमपूर्ण जीवन अपनाने का आह्वान किया।
आयोजनों की झलकियां
शोभायात्रा में रथ पर विराजमान भगवान श्री स्वामीनारायण की झांकी
संगीतमय भजन संध्या में कलाकारों ने प्रस्तुत किए भक्तिरस से ओतप्रोत गीत
महाप्रसाद में हजारों श्रद्धालुओं ने भोजन प्रसाद ग्रहण किया
मंदिर में रजत जयंती स्मृति चिह्न का अनावरण
श्रद्धालुओं की प्रतिक्रिया
श्रद्धालुओं ने आयोजन की भव्यता और शांति की अनुभूति को अविस्मरणीय बताया। उन्होंने बताया कि मंदिर ने न केवल धार्मिक जागरूकता बढ़ाई है, बल्कि जनसेवा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किए हैं- जैसे कि निःशुल्क चिकित्सा शिविर, वृक्षारोपण, पठन-पाठन सामग्री वितरण, आदि।
मंदिर की 25 वर्षों की यात्रा
1999 में स्थापित हुए श्री स्वामीनारायण मंदिर रायपुर ने धीरे-धीरे न केवल धार्मिक आस्था का केन्द्र बना, बल्कि समाजसेवा, शिक्षा और संस्कारों के प्रचार में भी अग्रणी भूमिका निभाई। यह मंदिर पूरे छत्तीसगढ़ में स्वामीनारायण संप्रदाय का प्रमुख केंद्र है।
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"इस दिन तुलसी तोड़ना ब्रह्महत्या (ब्राह्मण हत्या) करने के समान"

हिंदू धर्म में तुलसी को बहुत ही पवित्र पौधा माना जाता है. तुलसी की पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि और शांति आती है. तुलसी का पौधा भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है, क्योंकि भगवान विष्णु की पूजा तुलसी के बिना अधूरी मानी जाती है. यही कारण है कि ज्यादातर हिंदू परिवार में तुलसी के पौधे लगाते हैं और उनकी नियमित पूजा करते हैं. शास्त्रों में तुलसी को घर की पवित्रता, शुभता और सुख-समृद्धि का प्रतीक माना गया है|
मान्यता है कि जिस घर में तुलसी रखी जाती है, उस घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं करती. तुलसी को जल चढ़ाना, दीपक जलाना और प्रतिदिन सुबह परिक्रमा करना शुभ फल देता है. लेकिन तुलसी के पत्ते तोड़ने को लेकर प्रेमानंद महाराज ने कुछ नियम बताए हैं, जिनका पालन करना बहुत जरूरी है, अन्यथा ब्रह्महत्या का पाप लग सकता है. आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से|
इस दिन तुलसी के पत्ते न तोड़ें-
प्रेमानंद महाराज के अनुसार द्वादशी तिथि पर तुलसी के पत्ते तोड़ना बहुत बड़ा पाप माना जाता है. इस दिन तुलसी तोड़ना ब्रह्महत्या (ब्राह्मण हत्या) करने के समान है. यह पाप इतना बड़ा माना जाता है कि इसे करने वाले व्यक्ति को नर्क भेजा जा सकता है|
इसके अलावा प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि साल में 12 एकादशी होती हैं, लेकिन निर्जला एकादशी बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस दिन तुलसी के पौधे को छूना वर्जित है. जो व्यक्ति इस दिन तुलसी को छूता है, वह महापाप का भागी बन जाता है|
सप्ताह के इन दिनों में भी रहें सावधान-
प्रेमानंद महाराज के मुताबिक रविवार, मंगलवार और एकादशी के दिन तुलसी को जल देना चाहिए, लेकिन छूना या उसके पत्ते तोड़ना वर्जित है. इन दिनों तुलसी माता आराम करती हैं, इसलिए उन्हें परेशान नहीं करना चाहिए|
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वट पूर्णिमा 10 जून को, पति के साथ करें बरगद पेड़ की परिक्रमा

  • वैवाहिक जीवन होगा सुखमय
हिंदू धर्म में वट पूर्णिमा के दिन बरगद के पेड़ (वट वृक्ष) की पूजा का बहुत महत्व है. इस दिन पति के साथ बरगद के पेड़ की परिक्रमा करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है. वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास माना जाता है. इसकी पूजा और परिक्रमा करने से त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और पति की लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है. यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम, सामंजस्य और विश्वास को मजबूत करता है. साथ में परिक्रमा करने से आपसी समझ बढ़ती है और वैवाहिक जीवन के सभी दुख-दर्द दूर होते हैं|
ऐसी मान्यता है कि बरगद का पेड़ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है. इसकी परिक्रमा से घर और परिवार पर आने वाली नकारात्मक ऊर्जाओं का शमन होता है. यदि वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार की कठिनाई या रुकावट आ रही हो, तो वट पूर्णिमा पर की गई पूजा और परिक्रमा उन बाधाओं को समाप्त करने में सहायक होती है|
द्रिक पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 10 जून को सुबह 11 बजकर 35 मिनट पर शुरू होगी और 11 जून को दोपहर 1 बजकर 13 मिनट पर समाप्त होगी. वट पूर्णिमा का व्रत 10 जून दिन मंगलवार को रखा जाएगा और स्नान-दान 11 जून को किया जाएगा|
वट पूर्णिमा पर पति के साथ करें रुद्राभिषेक-
रुद्राभिषेक मुख्य रूप से भगवान शिव की पूजा है, लेकिन वट पूर्णिमा पर भी पति के साथ कुछ विशेष उपाय करने से वैवाहिक जीवन सुखी रहता है|
वट पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके लाल या पीले रंग के स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
पूजा की थाली में रोली, चावल, फूल, दीपक, धूप, अगरबत्ती, मौली (कलावा), फल (जैसे आम, केला), मिठाई, भीगे हुए चने, और सुहाग की सामग्री (चूड़ी, बिंदी, सिंदूर आदि) रखें.
वट वृक्ष के पास जाएं और उसे साफ करें और वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाएं. भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव का ध्यान करते हुए वृक्ष की पूजा करें.
धूप-दीप जलाएं और रोली, चावल, फूल आदि अर्पित करें और पूजा के बाद, अपने पति के साथ वट वृक्ष की परिक्रमा करें.
परिक्रमा करते समय वृक्ष पर मौली का धागा लपेटते रहें. परिक्रमा की संख्या 7, 11, 21 या 108 हो सकती है, अपनी श्रद्धा अनुसार करें. 108 परिक्रमा अत्यधिक फलदायी मानी जाती है.
हर परिक्रमा के साथ पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करें. आप निम्न मंत्र का जाप कर सकते हैं: “अवैधव्यं च सौभाग्यं पुत्रपौत्रादि वर्धनम्। देहि देवि महाभागे वटसावित्री नमोऽस्तुते।।” या केवल “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “ॐ नमः शिवाय” का जाप भी कर सकते हैं.
परिक्रमा के बाद वट वृक्ष के नीचे बैठकर सावित्री-सत्यवान की कथा पढ़ें या सुनें. यह कथा पतिव्रता धर्म के महत्व को दर्शाती है.
पूजा के अंत में वृक्ष की आरती करें. इसके बाद, सुहागिन महिलाओं को सुहाग की सामग्री और फल दान करें.
घर आकर प्रसाद वितरण करें. दिन ढलने के बाद सात्विक भोजन से व्रत का पारण करें.
सुखी वैवाहिक जीवन के लिए विशेष उपाय-
वट पूर्णिमा के दिन अपने जीवनसाथी को लौंग का जोड़ा भेंट करें. इससे वैवाहिक संबंधों में मजबूती आती है और प्रेम बढ़ता है. पति-पत्नी एक-दूसरे को पान का पत्ता भेंट करें. यह आपसी प्रेम और समझ बढ़ाता है. यदि संभव हो, तो जीवनसाथी को तुलसी माला भेंट करें. इससे मन शांत रहता है, नकारात्मक विचार दूर होते हैं, और मानसिक तनाव कम होता है, जिससे दांपत्य जीवन में सुख-शांति बनी रहती है. वट पूर्णिमा का व्रत पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत करने और परिवार में सुख-समृद्धि लाने का एक महत्वपूर्ण पर्व है. इसे पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाना चाहिए|
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रवि प्रदोष व्रत पर बनने जा रहा है दुर्लभ संयोग

  • भोलेनाथ बरसाएंगे अपनी कृपा
हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह का आखिरी प्रदोष व्रत रविवार 8 जून को है. रविवार के दिन पड़ने के कारण इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाएगा. यह व्रत हमेशा दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है. इस दिन देवों के देव महादेव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है. साथ ही, मनोकामना पूर्ति के लिए व्रत भी रखा जाता है|
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर कई मंगलकारी और दुर्लभ योगों का निर्माण हो रहा है. ऐसे में इन शुभ योगों में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने से हर एक मनोकामना पूरी हो सकती है. ऐसे में आइए जानते हैं कि रवि प्रदोष व्रत पर कौन से योग बन रहे हैं|
रवि प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त-
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 8 जून को सुबह 07:17 मिनट पर शुरू होगी. वहीं, इस तिथि का समापन 9 जून को सुबह 09:35 मिनट पर होगा. ऐसे में इस शुभ अवसर पर शिव पूजा का समय शाम को 7:18 मिनट से लेकर 09:19 मिनट तक रहेगा|
शिव योग-
ज्योतिष के अनुसार, रवि प्रदोष व्रत पर मंगलकारी शिव योग का संयोग बनने जा रहा है. इस योग का निर्माण 8 जून को रात 12:19 मिनट होकर इसका समापन 9 जून को दोपहर 1:19 मिनट पर होगा. ऐसे में इस योग में महादेव की पूजा करने से व्यक्ति की हर एक मनोकामना पूरी हो सकती है|
शिववास योग-
रवि प्रदोष व्रत पर देवों के देव महादेव 8 जून को सुबह 7:17 मिनट तक कैलाश पर विराजमान रहेंगे. इसके बाद भोलेनाथ नंदी की सवारी करेंगे. इस दौरान भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होगी|
विशाखा नक्षत्र का संयोग-
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर स्वाति और विशाखा नक्षत्र का संयोग भी बन रहा है. इसके साथ ही बव, बालव और तैतिल करण के योग का भी निर्माण हो रहा है. इन योग में देवों के देव महादेव की भक्ति भाव से पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है|
प्रदोष व्रत के दिन क्या करना चाहिए-
अगर आप इन दोनों योग में भोलेनाथ की पूजा करते हैं, तो आपकी मनचाही मनकामना पूरी हो सकती है. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा करनी चाहिए. शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद और बेलपत्र चढ़ाना चाहिए. इसके अलावा, प्रदोष व्रत में “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें और प्रदोष व्रत की कथा सुननी चाहिए|

 

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