धर्म समाज

घर में आजवाई का पौधा लगाने से क्या लाभ होता है? जानिए...

वास्‍तु शास्‍त्र का सीधा संबंध हमारी जीवन शैली से होता है। हम घर में सजावट के लिए किन वस्‍तुओं को कहां कैसे रख रहे हैं, उसका भी हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है। वास्‍तु के अनुसार घर में कई पौधों को लगाना शुभ माना गया है। इनके रहने से हमारे जीवन से बहुत सारी मुश्किलों का अंत हो जाता है। साथ ही घर-परिवार में सुख शांति का वास रहता है। ऐसा ही एक पौधा है अजवाइन का। इसे काफी गुणी माना गया है। आइये जानते हैं कि घर में अजवाइन का पौधा लगाने से क्‍या लाभ होते हैं।
दरिद्रता मिटती है-
अगर किसी के जीवन में आर्थिक संकट चल रहा है और पैसों की तंगी के चलते जीना मुश्किल हो रहा है तो घर में अजवाइन का पौधा जरूर लगाना चाहिये। वास्‍तु का कहना है कि ऐसा करने से घर का आर्थिक संकट दूर हो जाता है। इससे धन लाभ होता है। यह अपने आप मे एक बढि़या और कारगर उपाय है।
शुद्धिकरण होता है-
अजवाइन का पौधा लगाने से घर का वातावरण शुद्ध और साफ-सुथरा हो जाता है। घर में शांति भी कायम रहती है और परिजनों के बीच आपसी तालमेल बना रहता है। उत्‍साह और सकारात्‍मतकता का संचार होता है।
किस दिशा में लगाना चाहिये-
अगर आप अजवाइन के पौधे को उत्‍तर पश्चिम या दक्षिण पूर्व दिशा में लगाते हैं तो आपको इसके बहुत सकारात्‍मक और कारगर परिणाम दिखाई देंगे। घर में अगर कोई वास्‍तु दोष है तो वह भी दूर हो जाएगा। साथ ही लाभ की भी प्राप्ति होगी।
संबंधों में सुधार-
किसी घर के सदस्‍यों की आपस में नहीं बनती है या ज्‍यादा मतभेद के चलते अक्‍सर गृह क्‍लेश बना रहता है तो उन्‍हें अजवाइन का पौधा लगाकर देखना चाहिये। ऐसा करने से घर में आपसी सौहार्द्र कायम रहता है।
अटके काम होंगे पूरे-
अजवाइन का पौधा लगाने का एक बड़ा लाभ यह भी है कि आपके रुके हुए काम पूरे हो जाते हैं। अगर पढ़ाई में, बिजनेस में, नौकरी में या रिश्‍तेदारी में कोई प्रोजेक्‍ट, प्रस्‍ताव अटका हुआ है तो वह पूरा हो जाएगा।
परेशानियों का अंत-
जीवन में अगर लगातार कुछ ना कुछ समस्‍या बनी हुई है तो घर में अजवाइन का पौधा लगाकर देखिये। आपकी सारी मुश्किलों का अंत हो जाएगा।

डिसक्लेमर
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नवरात्रि के दौरान इन 5 चीजों को घर लाना बहुत अच्छा होता

शारदीय नवरात्रि पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह नौ दिवसीय पवित्र त्योहार देवी दुर्गा को समर्पित है। इन दिनों देवी ना दुर्गा की पूजा की जाती है। आजकल यह कहा जाता है कि यदि कोई आस्तिक सच्चे मन से माता रानी से कुछ मांगता है, तो माता रानी आस्तिक की प्रार्थनाओं को बर्बाद नहीं करेंगी। आस्थावान भी अपनी मां का अभिनंदन करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। वे नौ दिनों तक उपवास करते हैं और देवी धरती माता की पूजा करने के लिए खुद को समर्पित करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि में कुछ खास चीजें लाना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अगर आप इन चीजों को घर लाते हैं तो मां दुर्गा बहुत प्रसन्न होंगी और आपके भक्तों को आशीर्वाद देंगी। तो आइए जानते हैं इन खास बातों के बारे में।
धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो नवरात्रि के दौरान चांदी के सिक्के घर लाना बहुत शुभ माना जाता है। इसे मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। कहते हैं कि अगर आप चांदी का सिक्का लाकर मंदिर में रख देंगे और वहां पूजा करेंगे तो आपके घर में बरकत बनी रहेगी और आपको कभी कोई कमी नहीं होगी। ऐसे में आप इस नवरात्रि चांदी के सिक्के भी घर ला सकते हैं। हालाँकि, धार्मिक दृष्टिकोण से, देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की छवि वाले सिक्के अधिक पवित्र माने जाते हैं।
अगर आपके घर में तुलसी का पौधा नहीं है, जो धार्मिक कारणों से बहुत शुभ है, तो इस नवरात्रि तुलसी का पौधा जरूर खरीदें। इसे नवरात्रि के पावन अवसर पर लाना बहुत शुभ होता है। आजकल ऐसा कहा जाता है कि यदि आप प्रतिदिन दीपक जलाएंगे और तुलसी को जल पिलाएंगे तो माता रानी प्रसन्न होंगी और आपके घर में सुख-शांति का वास होगा।
नवरात्रि के दौरान देवी लक्ष्मी की तस्वीर या मूर्ति लाना भी बहुत शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के स्वरूप माता लक्ष्मी की पूजा करने से घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है। हालाँकि, कृपया ध्यान दें कि मूर्ति या तस्वीर लाते समय देवी लक्ष्मी बैठी हुई स्थिति में होनी चाहिए। धार्मिक दृष्टि से इसे शुभ माना जाता है।
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शारदीय नवरात्रि से ठीक पहले सूर्य ग्रहण

  • नोट करें कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त...
सनातन धर्म में ग्रहण को अशुभ घटना माना गया है। इस दौरान शुभ या मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। इस साल का आखिरी सूर्य ग्रहण शारदीय नवरात्रि के पहले दिन लगेगा। ऐसे में लोगों के मन में सवाल है कि कब और किस मुहूर्त में घटस्थापना करनी चाहिए। इन्हीं सवालों का जवाब हम इस लेख में देने जा रहे हैं।
साल का दूसरा और आखिरी सूर्य ग्रहण 2 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या की रात्रि को शुरू होकर 3 अक्टूबर को सुबह समाप्त होगा। 3 अक्टूबर को शारदीय नवरात्रि शुरू हो रही है। सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले सूतक काल लगता है। इसके बाद पूजा-पाठ से जुड़ा कोई काम नहीं किया जाता है।
सूर्य ग्रहण का समय-
भारतीय समय के अनुसार, सूर्य ग्रहण 2 अक्टूबर को रात्रि 09.14 मिनट पर शुरू होगा। अगले दिन 3 अक्टूबर को तड़के 03.17 मिनट पर समाप्त होगा। ग्रहण के समय भारत में रात होगी और दिखाई नहीं देगा। जब सूर्य ग्रहण नहीं दिखता तो सूतक काल मान्य नहीं होता है।
नवरात्रि घटस्थापना का शुभ मुहूर्त-
पंचांग के अनुसार, शारदीय नवरात्रि के दिन घटस्थापना के लिए दो शुभ मुहूर्त हैं। 3 अक्टूबर को सुबह 05.07 मिनट पर कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त है। इसके अलावा सुबह 11.52 मिनट से दोपहर 12.40 मिनट तक मुहूर्त है।
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सितंबर माह का आखिरी प्रदोष व्रत रविवार 29 सितंबर को

सितंबर माह का आखिरी प्रदोष व्रत कब रखा जाएगा और पूजा के लिए कौन सा मुहूर्त शुभ रहेगा। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का आरंभ 29 सितंबर को शाम 4 बजकर 47 मिनट से होगा। त्रयोदशी तिथि का समापन 30 सितंबर को शाम 7 बजकर 6 मिनट पर होगा। प्रदोष व्रत 29 सितंबर को ही रखा जाएगा। बता दें कि सप्ताह के सातों दिनों में से जिस दिन प्रदोष व्रत पड़ता है, उसी के नाम पर उस प्रदोष का नाम रखा जाता है। सितंबर का आखिरी प्रदोष व्रत रविवार को पड़ रहा है तो इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाएगा। प्रदोष पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 9 मिनट से रात 8 बजकर 34 मिनट तक का रहेगा।
इस दिन जो व्यक्ति भगवान शिव की पूजा आदि करता है और प्रदोष का व्रत रखता है, उसके सभी समस्याओं का समाधान निकलता है।
मान्यता है कि त्रयोदशी की रात के पहले प्रहर में जो व्यक्ति किसी भेंट के साथ शिव प्रतिमा के दर्शन करता है वह सभी पापों से मुक्त होता है। बता दें कि प्रदोष व्रत में भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा करने से व्यक्ति को कर्ज और दरिद्रता से छुटकारा मिलता है।
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शारदीय नवरात्रि में अखंड ज्योत जलाने जान लें ये जरूरी नियम

सनातन धर्म में पर्व त्योहारों की कमी नहीं है लेकिन शारदीय नवरात्रि को बहुत ही खास माना गया है जो कि साल में चार बार पड़ता है जिसमें दो गुप्त नवरात्रि होती है। हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि का आरंभ हो जाता है और इसका समापन नवमी तिथि पर होता है। इस अवधि के दौरान मां दुर्गा के नौ अलग अलग स्वरूपों की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है और व्रत रखा जाता है
मान्यता है कि नवरात्रि में व्रत पूजा करने से माता का आशीर्वाद मिलता है और दुख परेशानियां दूर हो जाती हैं। इस बार शारदीय नवरात्रि का त्योहार 3 अक्टूबर से आरंभ हो रहा है जो कि 11 अक्टूबर को समाप्त हो जाएगा। वही इसके अलगे दिन यानी 12 अक्टूबर को दशहरा का त्योहार मनाया जाएगा। नवरात्रि के दिनों में अगर आप पूजा पाठ और व्रत के साथ ही अखंड ज्योत जला रहे हैं तो इससे जुड़े जरूरी नियमों को जरूर जान लें माना जाता है कि तभी इसका फल मिलता है तो आज हम आपको इन्हीं नियमों के बारे में बता रहे हैं।
अखंड ज्यो​त से जुड़े नियम-
अगर आप शारदीय नवरात्रि में अखंड ज्योत जला रहे हैं तो ज्योत जलाते वक्त 'करोति कल्याणं,आरोग्यं धन संपदाम्,शत्रु बुद्धि विनाशाय, दीपं ज्योति नमोस्तुते' इस मंत्र का जाप जरूर करें। ऐसा करना अच्छा माना जाता है। अखंड ज्योत के दीपक को कभी भी सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। इसे हमेशा अन्न जैसे जो, चावल या गेहूं की ढेरी पर रखें। इसे अच्छा माना जाता है इसके अलावा आप घी से ज्योत जला रहे हैं तो इसे दाईं ओर रखें वही तेल से जलाई ज्योत को ​बाईं ओर रखना चाहिए।
वही अगर आप नवरात्रि में ज्योत जला रहे हैं तो घर को कभी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। न ही घर में ताला लगाएं। ध्यान रखें कि अखंड ज्योत जलाने के लिए कभी भी टूटे हुए या पहले प्रयोग हो चुके दीपक का उपयोग न करें। नौ दिन पूरे होने के बाद ज्योत को अपने आप बुझने देना चाहिए। इसे खुद से बुझाना नहीं चाहिए ऐसा करना अच्छा नहीं माना जाता है।
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अक्टूबर में होंगे 7 बड़े राशि परिवर्तन, शनि और मंगल ग्रह भी बदलेंगे चाल

  • राशियों पर होगा असर...
ज्योतिष विज्ञान में हर राशि परिवर्तन पर पैनी नजर रखी जाती है, क्योंकि इसका असर हर राशि पर होता है। कुछ जातकों को फायदा होता है तो कुछ को सजग रहने की जरूरत होती है।
अक्टूबर में होने वाले ग्रहों के राशि परिवर्तन के बारे में इंदौर के ज्योतिषाचार्य पं. हर्षित मोहन शुक्ला ने बताया कि न्याय के देवता शनि का राशि परिवर्तन 03 अक्टूबर को होगा। उस दिन दोपहर 12 बजकर 13 मिनट पर शनि शतभिषा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे।
इस राशि परिवर्तन से कुंभ राशि के जातकों को लाभ होगा। जो लोग उच्च शिक्षा में प्रयास कर रहे हैं, उन्हें सफलता मिलेगी। शनि देव इस स्थिति में 27 दिसंबर की प्रातः तक रहेंगे। फिर वापस पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में चले जाएंगे।
9 अक्टूबर को मिथुन में वक्री होंगे गुरु-
09 अक्टूबर को गुरु गृह मिथुन राशि में वक्री होने जा रहे हैं। यह राशि परिवर्तन प्रातः 09 बजकर 55 मिनट होगा। इस गोचर का विपरित असर मेष, मिथुन, सिंह, धनु राशि वालों पर पड़ सकता है।
इस अवधि में ये लोग नकारात्मक ऊर्जा से ग्रसित हो सकते हैं। साथ ही इस समय में गलत निर्णय ले सकते हैं जिससे भविष्य में हानि होगी। शनि देव को प्रसन्न करने के उपाय करें।
10 अक्टूबर को बुध का तुला राशि में गोचर-
दिनांक 10 अक्टूबर को बुध ग्रह तुला राशि में प्रवेश करेंगे। यह राशि परिवर्तन सुबह 11 बजकर 13 मिनट पर होगा। इससे तुला राशि वालों को लाभ होगा। रुके हुए काम पूरे होंगे। बिजनेस में उठाया गया हर कदम सफल होगा।
13 अक्टूबर को शुक्र का वृश्चिक राशि में गोचर-
13 अक्टूबर को शुक्र ग्रह वृश्चिक राशि में गोचर करने जा रहे हैं। यह राशि परिवर्तन प्रातः 06 बजकर 13 मिनट पर होगा। यह स्थिति मेष और वृश्चिक राशि वालों के लिए फायदेमंद साबित होगी। आर्थिक स्थिति पैदा होने से जीवन स्तर सुधरेगा।
17 अक्टूबर को सूर्य का तुला राशि में प्रवेश-
दिनांक 17 अक्टूबर को ग्रहों के राजा सूर्य तुला राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। यह राशि परिवर्तन प्रातः 07 बजकर 47 मिनट पर होगा। तुला राशि सूर्य की नीच राशि में आती है। यह गोचर जातक के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
तुला राशि वाले इस अवधि में सतर्क रहें। उन पर गलत आरोप लग सकता हैं। अच्छाई के बदले अपयश मिल सकता है। स्वास्थ्य को लेकर भी यह समय अच्छा नहीं है।
20 अक्टूबर को मंगल का कर्क राशि में गोचर-
दिनांक 20 अक्टूबर को ग्रहों के सेनापति मंगल ग्रह कर्क राशि में प्रवेश करेंगे। यह राशि परिवर्तन दोपहर के 02 बजकर 50 मिनट पर होगा। कर्क राशि मंगल ग्रह की नीच राशि है। यह गोचर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
इस दौरान कर्क राशि वाले अपनी सेहत को लेकर परेशान रह सकते हैं। मन में तनाव रहेगा। परिवार में अशांति बनी रहेगी। इस दौरान कोई बड़ा निर्णय लेने से बचें।
29 अक्टूबर को वृश्चिक में प्रवेश करेंगे बुध-
दिनांक 29 अक्टूबर को राजकुमार बुध ग्रह मंगल की राशि वृश्चिक में प्रवेश करेंगे। यह राशि परिवर्तन वृश्चिक राशि वालों पर विपरीत असर डालेगा, खासतौर पर आर्थिक रूप से। इस दौरान बिजनेस के सिलसिले में बाहर जाना पड़ सकता है।
व्यापार विस्तार के लिए भी यह समय अच्छा रहने वाला है। वृश्चिक राशि के अलावा यह गोचर मिथुन, कन्या, मकर राशि के लिए भी लाभदायक रहने वाला है।
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पितृ पक्ष की दशमी तिथि पर तीन शुभ योग बन रहे

आज 26 सितंबर 2024, गुरुवार है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि आज दोपहर तक रहती है, जिसके बाद दशमी तिथि शुरू हो जाती है। ऐसे में आज पितृ पक्ष की दशमी तिथि पर श्राद्ध किया जा रहा है. इसके अलावा इस दिन कई शुभ और अशुभ योग भी बनते हैं। ऐसे में आइए आज का शुभ समय जानने के लिए पंचान पढ़ें-
भाद्रपद से कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि, माह का अंत - 12:30 बजे तक।
नक्षत्र- पुनर्वसु।
वार- गुरूवार
ऋतु-शरद ऋतु
ब्रह्म मुहूर्त- 04:36 से 05:24 तक.
गोधूलि बेला - 18:13 से 18:37 तक.
निशिता मुहूर्त- 27 सितंबर को 23:48 से 12:36 तक.
अभिजीत मुहूर्त- 11:50 से 12:41 तक.
सर्वार्थ सिद्धि योग- पूरे दिन
अमृत ​​सिद्धि योग- 27 सितंबर को 23:34 से 6:12 तक.
गुरु पुष्य योग- 27 सितंबर को 23:34 से 6:12 तक.
राहुकाल- 13:46 से 15:09 तक.
गुलिक काल- 09:10 से 10:37 तक.
भद्रा- 27 सितंबर को 12:48 से 6:12 बजे तक.
विद्यालय की ओर- दक्षिण दिशा में
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जितिया व्रत पर आज इस शुभ मुहूर्त और नियम से करे पूजा

सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन जितिया व्रत बेहद ही खास माना जाता है जो कि भगवान जीमूतवाहन की पूजा अर्चना को समर्पित होता है इस दिन पूजा पाठ और व्रत करना लाभकारी होता है मान्यता है​ कि इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु और सुखी जीवन का आशीर्वाद मिलता है।
ऐसे में माताएं अपनी संतान की उत्तम कामना के लिए जितिया व्रत पूजन करती है इस साल जितिया व्रत आज यानी 25 सितंबर दिन बुधवार को किया जा रहा है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा जितिया व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
जितिया व्रत की तारीख और मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह की अष्टमी तिथि का आरंभ 24 सितंबर दिन मंगलवार को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट पर हो चुका है और इस तिथि का समापन आज यानी 25 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर हो जाएगा। उदया तिथि के अनुसार जितिया व्रत आज यानी 25 सितंबर दिन बुधवार को रखा जा रहा है। इस दिन भगवान जीमूतवाहन की पूजा दोपहर के समय करना उत्तम रहेगा। मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से संतान संबंधी परेशानियां दूर हो जाती है।
पारण की तारीख और समय-
आपको बता दें कि जितिया व्रत का पारण अगले दिन करना लाभकारी रहेगा। ऐसे में 26 सितंबर को व्रत का पारण सूर्योदय के बाद किया जा सकता है।
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महाकाल के भक्तों को नहीं मिल रहा तिलक, प्रसाद का लाभ

ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में देश-विदेश से आने वाले दर्शनार्थियों को तिलक, प्रसाद का लाभ नहीं मिल पा रहा है। भक्त भगवान महाकाल की भस्म प्रसादी से भी वंचित हैं। यह योजना कई दिनों से बंद पड़ी है।
महाकाल मंदिर में कुछ समय पहले तक महाकाल दर्शन करने आने वाले दर्शनार्थियों को मंदिर समिति की ओर से तिलक लगाया जाता था। साथ ही चिरोंजी तथा भगवान महाकाल को भस्म आरती में अर्पित की जाने वाले भस्म को प्रसाद रूप में वितरित की जाती है।
मंदिर समिति ने भक्तों को तिलक लगाने तथा प्रसाद वितरित करने के लिए नंदी मंडपम के रैंप पर एक काउंटर लगा रखा था। इसे तिलक प्रसाद काउंटर कहा जाता था।
मंदिर प्रशासन द्वारा इस काउंटर पर 8-8 घंटे की शिफ्ट में कर्मचारी की ड्यूटी लगाई जाती थी। योजना के बंद हो जाने से भक्तों को भस्म नहीं मिल पा रही है। उन्हें तिलक लगवाने के लिए परिसर के मंदिरों में जाना पड़ता है।
महाकाल मंदिर में हजारों भक्त भगवान महाकाल के दर्शन करने आते हैं। दर्शनार्थी मंदिर के बाहर लगी दुकानों से भगवान को अर्पण करने के लिए फूल और प्रसाद खरीदते हैं।
दुकानदार फूल-प्रसाद की डलिया में चिरोंजी के दो पैकेट रखकर देते हैं। श्रद्धालुओं को बताया जाता है कि एक पैकेट भगवान को चढ़ाया जाएगा। दूसरा पैकेट आपको प्रसाद के रूप में मिलेगा। मंदिर में होता भी वही है।
एक पैकेट पाट पर बैठे पंडे, पुजारी रख लेते हैं। दूसरा पैकेट दर्शनार्थी को देते हैं। इस प्रकार मंदिर में दिनभर में सैकड़ों पैकेट प्रसाद इकट्ठा हो जाता है। मंदिर समिति इस प्रसाद को भक्तों में वितरित कर सकती है।
भस्म प्रसाद के लिए भटकते हैं भक्त-
महाकाल दर्शन करने आने वाले भक्त भस्म के लिए मंदिर में इधर-उधर भटकते नजर आते हैं। पहले मंदिर समिति तिलक प्रसाद काउंटर से भस्म का निश्शुल्क वितरण करती थी। इसके अलावा मंदिर के प्रसाद काउंटरों ने भस्म प्रसाद के नाम से ड्रायफ्रूट के प्रसाद का विक्रय किया जाता था। इस पैकेट में सूखे मेवे के साथ एक भस्म की पुड़िया रखी जाती थी। मंदिर समिति ने अब यह दोनाें ही योजना बंद कर दी हैं।
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Pitru Paksha के बाद शुभ कार्य शुरू हो जाते

हिंदू धर्म में माना जाता है कि अगर कोई काम शुभ समय पर किया जाए तो उसका परिणाम हमेशा शुभ ही होता है। शारदीय नवरात्रि भी अक्टूबर में शुरू होती है। ऐसे में प्रॉपर्टी, वाहन आदि खरीदने के लिए कौन सा शुभ समय है, कृपया हमें पंडित हर्षित शर्मा जी से बताएं। इस महीने में। लेकिन कई सकारात्मक क्षण भी हैं।
ज्योतिष शास्त्र में सर्वार्थ सिद्धि योग को बहुत ही शुभ योग माना जाता है। ऐसे में 2, 5, 7, 11, 12, 15, 17, 18, 21, 24 और 30 अक्टूबर को सर्वार्थ सिद्धि योग है।
अमृत ​​सिद्धि योग को ज्योतिष शास्त्र में भी एक शुभ योग माना जाता है। ऐसे में 21 और 24 अक्टूबर को अमृत सिद्धि योग बन रहा है.
कार खरीदने के लिए सबसे अच्छे दिन 3, 7, 13, 16, 17, 21, 24 और 30 अक्टूबर हैं।
अचल संपत्ति या घर आदि खरीदने के लिए सबसे अच्छी तारीखें 7, 9, 16, 17, 21, 26 और 27 अक्टूबर हैं।
नामकरण के लिए अनुकूल समय. पंचांग की दृष्टि से शुभ दिन 3, 4, 7, 11, 14, 16, 17, 18, 21, 24, 28 और 30 अक्टूबर रहेंगे।
अन्नप्राशन के लिए मुहूर्त- 4, 7, 17, 21, 23 और 30 अक्टूबर अन्नप्राशन मुहूर्त के लिए सर्वोत्तम रहेंगे।
कर्णवेध के लिए शुभ समय- 3, 4, 7, 12, 13, 17, 18, 21, 23, 24 और 30 अक्टूबर शुभ हैं।
उपनयन/जनेऊ मुहूर्त - 4, 7, 12, 13, 14, 18 और 21 अक्टूबर जनेऊ संस्कार करने के लिए सर्वोत्तम दिन हैं।
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घर में बार-बार आ रहा है चूहा, जानिए...यह शुभ या अशुभ किस बात का दे रहा है संकेत

घर में चूहों को देखकर लोग डर जाते हैं। दरअसल, ये गंदगी भी फैलाते हैं और कई बार चीज-सामान कुतरकर नुकसान भी करते हैं। ऐसे में सवाल ये उठता है कि गणेश जी के वाहन मूषक से कैसे निपटा जाए क्योंकि ज्योतिष शास्त्र में यह भी कहा जाता है कि चूहों का दिखना शुभ संकेत भी देता है।
इंदौर के ज्योतिषाचार्य पंडित गिरीश व्यास बताते हैं कि भाद्र पद माह चूहों और कीट पतंगों का महीना होता है। ऐसे में उनका बार-बार दिखना शुभ नहीं माना जाता है। अन्य महीनों में उनका दिखना हानिकारक नहीं होता है।
घर में अगर बार-बार चूहा आता है, तो यह संकेत है कि भगवान गणेश की कृपा आप पर है। घर में एक से ज्यादा चूहे आना खुशियों के आगमन का संकेत देते हैं। चूहों को मारे नहीं, न ही घर से बाहर भगाएं। गणेश स्तोत्र का पाठ करने से चूहा खुद ही बाहर चला जाएगा।
नुकसान से बचने के लिए यह करें-
पंडित गिरीश व्यास के अनुसार, घर में आने वाला चूहा कोई नुकसान न करे, इसके लिए भी कुछ उपाय किए जा सकते हैं। जहां चूहा दिखता हो, उस जगह पर एक कटोरी में भरकर पानी रख दें। इससे वह कपड़े या घर के सामान को कुतरेगा नहीं।
घर में साफ-सफाई रखें और घर के बाहर चूहे के बिल के पास कुछ खाने का सामान, अनाज के दाने भी रख सकते हैं। इससे भी चूहे घर में उत्पात नहीं मचाते हैं। हालांकि, यदि चूहों की वजह से घर में नुकसान हो रहा है, तो यह अच्छे संकेत नहीं हैं। इसका मतलब है कि घर में दरिद्रता आ रही है।
इसके अलावा घर में एक-एक कर चूहों की संख्या बढ़ना और रात को चूहों का आवाज करना भी अनहोनी की आशंका को बताता है। इससे बचने के लिए गणेश स्तोत्र का पाठ करें और गणेश जी की आराधना करें।
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हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया, सद्भावना, धर्मपरायणता और करुणा के प्रतीक

नई दिल्ली में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की मज़ार, जहाँ सभी धर्मों के हज़ारों अनुयायी आते हैं, कव्वाली, इबादत, मन्नत और गरीबों के लिए दान/भोजन का वितरण होता है, यह मनुष्यों के बीच धर्मपरायणता और करुणा का प्रतीक है, चाहे उनकी धार्मिक मान्यताएँ कुछ भी हों। हज़रत निज़ामुद्दीन ने दिल्ली राज्य के चार मुस्लिम शासकों को देखा और समाज के हर वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए लगे रहे। वे एक महान सूफी संत और औलिया सिलसिले के प्रवर्तक थे।
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की माँ बीबी ज़ुलेखा अक्सर अपने बेटे के पैरों की ओर देखती हुई कहती थीं, "निज़ामुद्दीन! मुझे तुम्हारे उज्ज्वल भविष्य के संकेत दिखाई दे रहे हैं। तुम एक दिन भाग्यवान व्यक्ति बनोगे। इसी तरह, उनके आध्यात्मिक गुरु बाबा फ़रीद ने कहा था, "निज़ामुद्दीन, एक दिन तुम वह पेड़ बन जाओगे जिसके नीचे मानवता को आश्रय और शांति मिलेगी। दोनों भविष्यवाणियाँ सच हुईं क्योंकि सदियों से हज़रत निज़ामुद्दीन की दरगाह शांति का स्थल बनी हुई है
17 जनवरी को हजरत निजामुद्दीन की 713वीं पुण्यतिथि मनाई गई। लोगों ने उन्हें महबूब-ए-इलाही की अनूठी उपाधि से सम्मानित किया, जिसका अर्थ है ईश्वर का प्रिय। बुखारा ख्वाजा अहमद के मंगोल आक्रमणों के दौरान उनके दादा-दादी भारत चले गए, उनके पिता की मृत्यु तब हुई जब वे छोटे थे। उनकी माँ ने अपने बेटे और बेटी के पालन-पोषण में कई आर्थिक कठिनाइयों का सामना किया ज्ञान की खोज में युवा रहस्यवादी 16 साल की उम्र में दिल्ली शहर में आए। उन्होंने विभिन्न इस्लामी विज्ञानों का अध्ययन पूरा किया और एक कुशल वाद-विवादकर्ता के रूप में ख्याति प्राप्त की। उन्होंने शुरू में मौलवी बनने के बारे में सोचा था, लेकिन बाद में उन्होंने अपना मन बदल लिया। इसके बजाय, वे बाबा फ़रीद से मिलने के लिए अजोधन, पंजाब चले गए, जिनकी ख्याति पूरे उपमहाद्वीप में फैल चुकी थी। अजोधन की दूसरी यात्रा पर, बाबा फ़ंद ने हज़रत निज़ामुद्दीन को अपना मुख्य उत्तराधिकारी नियुक्त किया। ज़िम्मेदारी स्वीकार करने पर शिष्य की घबराहट को भांपते हुए, बाबा फ़रीद ने प्रसिद्ध शब्दों के साथ आश्वासन दिया: "निज़ाम, मेरी बात मान लो, हालाँकि मुझे नहीं पता कि मुझे सर्वशक्तिमान के सामने सम्मान मिलेगा या नहीं, मैं वादा करता हूँ कि तुम्हारे शिष्यों के बिना स्वर्ग में प्रवेश नहीं करूँगा।" हज़रत निज़ामुद्दीन की ख़ानक़ाह एक कल्याण केंद्र के रूप में काम करने लगी, जहाँ प्रतिदिन सैकड़ों लोग आते थे और आम लोगों की ज़रूरतों का ख़्याल रखा जाता था। एक बार जब पड़ोस के कुछ घरों में आग लग गई, तो नंगे पाँव सूफ़ी उस जगह पर पहुँचे और तब तक वहीं रहे जब तक कि आग बुझ नहीं गई।
उन्होंने व्यक्तिगत रूप से क्षतिग्रस्त घरों की गिनती की, प्रभावित परिवारों को चांदी के सिक्के, भोजन और पानी उपलब्ध कराने के लिए अपने डिप्टी को नियुक्त किया। ऐसे अनगिनत उदाहरण दर्ज हैं जब उन्होंने व्यक्तिगत रूप से बेसहारा लोगों की ज़रूरतों को देखा। व्यस्त दिनचर्या के बावजूद, उन्होंने अपना दरवाज़ा हमेशा खुला रखा और हर समय आगंतुकों से मिलते रहे। लोग हज़रत निज़ामुद्दीन को सबसे ज़्यादा संपन्न व्यक्ति मानते थे, लेकिन उनका मानना ​​था कि "दुनिया में कोई भी मुझसे ज़्यादा दुखी नहीं है। हज़ारों लोग अपनी परेशानियाँ लेकर मेरे पास आते हैं और यह मेरे दिल और आत्मा को परेशान करता है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि बेसहारा लोगों की देखभाल करना सिर्फ़ औपचारिक धार्मिक प्रथाओं से ज़्यादा मूल्यवान है। उन्होंने सिखाया कि हालाँकि अल्लाह तक पहुँचने के कई रास्ते हैं, लेकिन इंसान के दिल में खुशी लाने से ज़्यादा कारगर कोई रास्ता नहीं है।
उन्होंने दोहराया कि ईश्वर के प्रति प्रेम ही धर्मी लोगों के लिए एकमात्र प्रेरणा होनी चाहिए, न कि स्वर्ग की इच्छा या नरक का डर। उनका मानना ​​था कि बदला लेना जंगल का नियम है, यह मनुष्य जाति के लिए नही है। शेख निजामुद्दीन औलिया ने 82 वर्ष की आयु में इस्लामी कैलेंडर के चौथे महीने 18 रबी अठन्नी को अंतिम सांस ली और अपने पीछे प्रेम और सद्भाव की विरासत छोड़ गए।
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जितिया व्रत पूजा का अनुष्ठान, नोट करें संपूर्ण विधि और नियम

सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन जितिया व्रत को बेहद ही खास माना जाता है जो कि माताओं द्वारा किया जाता है इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए जितिया व्रत करती है मान्यता है​ कि इस व्रत को करने से संतान को तरक्की व सुख की प्राप्ति होती है।
जितिया व्रत छठ की तरह ​तीन दिन तक मनाया जाता है इसमें भी नहाए खाए और खुर फिर पारण किया जाता है पंचांग के अनुसार सप्तमी तिथि में नहाए खाएं, खुर, जितिया अष्टमी तिथि में और व्रत का पारण नवमी तिथि पर किया जाता है ऐसे में इस साल जितिया व्रत 25 सितंबर को रखा जाएगा। तो आज हम आपको व्रत पूजा की संपूर्ण विधि से अवगत करा रहे हैं तो आइए जानते हैं।
जितिया व्रत की पूजा विधि-
आपको बता दें कि अष्टमी तिथि पर स्नान आदि से निवृत होकर भगवान ​सूर्य को जल अर्पित करें अब प्रदोष काल में जीमूतवाहन देवता की पूजा करें देवता को रोली, अक्षत, धूप दीपक, लाल और पीली रुई से सजाएं। पेड़े का भोग लगाएं इसके बाद गाय के गोबर से चील और सियारिन की मूर्तियां बनाकर लाल सिंदूर लगाएं। इसके बाद दूर्वा की माला, इलायची, पान सुपारी, श्रृंगार का सामान गांठ का धागा, सरसों तेल आदि पूजन में शामिल करें फिर व्रत कथा का पाठ करें।
परिवार की सुख समृद्धि और वंश वृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करें साथ ही बांस के पत्रों से भगवा की पूजा करें। नहाए खाए वाले दिन भी माताएं सात्विक भोजन करें। भोजन में मंडवे की रोटी यानी रागी के आटे से बनी रोटी, नोनी का साग और ढिंगनी की सब्जी को खाया जाता है व्रत का पारण भी सात्विक भोजन से ही करना चाहिए।
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इंदिरा एकादशी 28 सितंबर को

यह व्रत हर महीने की कृष्ण एकादशी और शुक्ल पक्ष की तिथि को आता है। यह दिन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए सबसे उत्तम दिन माना जाता है। वैष्णव संप्रदाय के अनुयायियों के लिए एकादशी तिथियों का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि सच्चे मन से शीघ्र ही एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और जीवन के सभी प्रकार के दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। कृपया हमें इंदिरा एकादशी (इंदिरा एकादशी 2024) से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें जल्दी बताएं। इंदिरा एकादशी व्रत हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन रखा जाता है। इस साल यह व्रत 28 सितंबर को रखा जाएगा।
पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि (इंदिरा एकादशी शुभ मुहूर्त) 27 सितंबर को दोपहर 1:20 बजे से शुरू हो रही है. साथ ही, यह 7 सितंबर को दोपहर 2:49 बजे समाप्त होगा। व्रत तोड़ने का सबसे अच्छा समय 29 सितंबर को सुबह 6:13 बजे से है। प्रातः 8:36 बजे तक इंदिरा एकादशी का पालन लगभग विधिपूर्वक करना चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत से व्यक्ति को हजारों वर्षों की तपस्या का पुण्य फल प्राप्त होता है। साथ ही कन्यादान और पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा भगवान विष्णु की पूजा करने से पूर्वजों की सात पीढ़ियों को मोक्ष मिलता है।
आर्थिक संकट को दूर करने के लिए इंदिरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करें और अपनी कीमती चीजें अर्पित करें। अंत में ईश्वर से सुख, शांति और आय के लिए प्रार्थना करें। फिर लोगों के बीच धन का दान करें। माना जाता है कि इस टोटके को करने से आर्थिक परेशानियां दूर हो जाती हैं और धन लाभ होता है।
अगर आप अपने सपनों की नौकरी पाना चाहते हैं तो इंदिरा एकादशी की पूजा में फूल, अक्षत और सिक्के चढ़ाएं। फिर इसे लाल कपड़े से बांधकर घर के अंदर रख दें। इस ट्रिक से आप अपना काम पूरा कर सकते हैं और मनचाही नौकरी पा सकते हैं।
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जानिए...महाअष्टमी, महानवमी और दशहरा की सही-सही तारीख

  • गुरुवार से नवरात्र, पालकी में आएंगी माता
शक्ति की उपासना का पर्व नवरात्र तिथियों की घट-बढ़ के साथ 3 से 12 अक्टूबर तक हर्षोल्लास से मनाया जाएगा। इस बार मां दुर्गा का आगमन जहां पालकी में होगा, वहीं माता के नौ स्वरूप के पूजन का उल्लास 10 दिन छाएगा।
अष्टमी पूजन के साथ 11 अक्टूबर के अतिरिक्त 12 अक्टूबर को भी नवमी पूजन किया जाएगा। 12 को ही विजया दशमी भी मनाई जाएगी। सिंदूर तृतीया में वृद्धि होने के चलते उक्त तिथि पांच अक्टूबर और छह अक्टूबर को रहेगी, लेकिन चंद्रघंटा स्वरूप का पूजन पांच अक्टूबर को किया जाएगा।
गुरुवार से नवरात्र, पालकी में आएंगी माता-
काली मंदिर खजराना के आचार्य शिव प्रसाद तिवारी ने बताया कि अश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि तीन अक्टूबर को रात 2.58 से दिवस पर्यंत रहेगी।
हस्त और चित्रा नक्षत्र में माता की स्थापना की जाएगी। इंद्र योग भी बनेगा, जिसे बहुत शुभ फलदायी माना जा रहा है।
पांच अक्टूबर को सिंदूर तृतीया पर चंद्रघंटा पूजन और इसके बाद सीधे चतुर्थी पर होने वाली कूष्मांडा पूजा सात अक्टूबर को होगी।
ज्योतिर्विद् विनायक तिवारी ने बताया कि नवरात्र की शुरुआत गुरुवार को हो रही है। इसके चलते शक्ति का आगमन पालकी में होगा।
रविवार-सोमवार को घट स्थापना होने पर माता का आगमन हाथी पर, शनिवार और मंगलवार को अश्व यानी घोड़े होता है।
इसी तरह गुरुवार और शुक्रवार को घट स्थापना होने पर माता का आगमन डोली या पालकी में बुधवार को माता नाव पर आरूढ़ होकर आती हैं।
किस दिन होगा किस स्वरूप का पूजन-
3 अक्टूबर को घट स्थापना के साथ शैलपुत्री पूजा।
4 अक्टूबर को चंद्र दर्शन और ब्रह्मचारिणी पूजा।
5 अक्टूबर को सिंदूर तृतीया पर चंद्रघंटा पूजा।
6 अक्टूबर को विनायक चतुर्थी।
7 अक्टूबर को कूष्मांडा पूजा, उपांग ललिता पूजा।
8 अक्टूबर को पंचमी पर स्कंदमाता पूजा।
9 अक्टूबर को षष्टी पर सरस्वती आह्वान, कात्यायनी पूजा।
10 अक्टूबर को सप्तमी पर कालरात्रि पूजा।
11 अक्टूबर को दुर्गा अष्टमी पर महागौरी पूजा।
12 अक्टूबर को नवमी पर सिद्धिदात्री पूजन के साथ विसर्जन।
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पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा- "बड़ी साजिश है प्रसाद में मिलावट"

धमतरी तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद को लेकर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है। इस मामले को लेकर राजनीतिक सियासत भी गरमा गई है। आरोप लगाया जा रहा है कि प्रसाद में मिलावट कर हिंदुओं की आस्था से छेड़छाड़ की गई है। अब तिरुपति बालाजी मंदिर में मिलने वाले प्रसाद को लेकर अंतराष्ट्रीय कथावाचक प्रदीप मिश्रा का बड़ा बयान सामने आया है।
पंडित प्रदीप मिश्रा ने तिरुपति मंदिर के प्रसाद में मछली का तेल मिलाने का मामले को साजिश बताया है।  कि किसी भी तरह से सनातन धर्म के प्रति घात पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। कुछ चाल के तहत यह कृत्य किया जा रहा है।
आपको बता दें कि प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने बुधवार को एक बड़ा बयान दिया था। जिससे पूरे पूरे देश में कोहराम मच हुआ है। दरअसल, सीएम चंद्रबाबू ने पिछली सरकार पर बड़ा आरोप लगाया था कि हिंदुओं के आस्था के सबसे बड़े केंद्रों में से एक तिरुपति बालाजी मंदिर के ‘लड्डू प्रसादम’ में जानवरों की चर्बी इस्तेमाल किया था।
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मदिरा और पराई स्त्री केवल नाश करेगी : पंडित प्रदीप मिश्रा

धमतरी। कथाकार पंडित प्रदीप मिश्रा के अनुसार, यह गलत धारणा है कि पितृ पक्ष में किसी भी सामग्री को खरीदना शुभ नहीं होता है। पितरों का स्मरण कर, जो कार्य किए जाते हैं, वे सदा ही शुभ फलदायी होते हैं। छत्तीसगढ़ के धमतरी में एक कथा आयोजन के दौरान उन्होंने कहा कि चाहे वह भजन-कीर्तन हो या अन्य कोई भी कार्य, हृदय से, विश्वास से उस कार्य को करेंगे, तो जीवन में सदा सुख होगा।
पंडित मिश्रा ने लोगों को मद से दूर रहने की भी सीख दी। उन्होंने कहा कि मदिरा और पराई स्त्री केवल नाश करेगी। नशे करने वालों के पुत्र, पुत्री, पत्नी सहित स्वजन को सम्मान नहीं मिलता। पत्नी को मायके में भी सम्मान नहीं मिलता। मां को सम्मान नहीं मिलता। लोग कहते हैं कि नशेड़ी की मां, पुत्री, पत्नी, पुत्र जा रहे हैं।
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तिरुपति लड्डू विवाद : बाबा बागेश्वर ने कहा- दोषियों को फांसी हो

दिल्ली। तिरुपति मंदिर प्रसादम विवाद पर बागेश्वरधाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की पहली प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने इसे सनातनियों के खिलाफ एक षड्यंत्र करार दिया और कहा कि भारत के सनातनियों का धर्म भ्रष्ट करने की पूर्ण रूप से तैयारी की गई है।
धीरेंद्र शास्त्री ने आंध्र प्रदेश सरकार से सख्त से सख्त कानून बनाने और दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग की। उन्होंने कहा है कि दक्षिण भारत में तिरुपति बालाजी के प्रसाद में चर्बी के घी का लड्डू का प्रसाद वितरण किया गया था। अगर यह जानकारी सत्य है, तो यह बहुत बड़ा अपराध है, निश्चित रूप से भारत के सनातनियों के खिलाफ सुनियोजित तरीके से षड्यंत्र किया गया है। इस प्रकार का कृत्य करके भारत के सनातनियों का धर्म भ्रष्ट करने की पूर्ण रूप से तैयारी की गई है। हम तो चाहेंगे कि वहां की सरकार सख्त से सख्त कानून बनाकर दोषियों को फांसी की सजा दे। अगर भगवान के प्रसाद में चर्बी का प्रयोग किया गया या मछली के तेल का प्रयोग किया गया है तो इससे बड़ा वर्तमान में भारत में कोई दूसरा दुर्भाग्य नहीं हो सकता है।
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने आगे कहा कि इस मामले की बारीकी से जांच होनी चाहिए और मैं सरकार से कहूंगा कि शीघ्र से शीघ्र हिंदुओं के मंदिरों को हिंदू बोर्ड के अधीन कर दें। ताकि किसी भी सनातनी की आस्था को ठेस ना पहुंचे, यह सुनकर के मेरा मन बहुती दुखी है। मैं चाहूंगा कि जितने भी तीर्थ स्थल हैं वहां पर बारीकी से सभी सनातनी जांच करवाए। इस प्रकार की घटना दोबारा न हो, इसके लिए सभी एकजुट होकर तैयार रहें और अब मंदिरों को सनातनियों के ही अधीन कर देना चाहिए वर्ना इससे ऐसी स्थितियां निर्मित होती रहेंगी। बता दें कि आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर के लड्डूओं में फिश ऑयल और जानवरों की चर्बी मिलाने की पुष्टि हुई थी। राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, तिरुपति मंदिर में लड्डुओं का प्रसाद तैयार किया जाता है, उसमें जानवरों की चर्बी और मछली का तेल मिला है। ये सब कुछ उस घी में मिला है,जिससे लड्डू तैयार किया जाता है।
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