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कब से होगी जेष्ठ माह की शुरुआत, धन लाभ के लिए करें तुलसी के ये उपाय

जेष्ठ माह सल के सबसे बड़े महीनों में से माना जाता है. इस माह में भीषण गर्मी पड़ती है, क्योंकि इस दौरान सूर्य अपने सबसे ताकतवर रूप में होते हैं. वहीं इसी माह में वट सावित्री व्रत, शनि जयंती, गंगा दशहरा वह निर्जला एकादशी जैसे बड़े व्रत आते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, जेष्ठ माह भगवान विष्णु को अति प्रिय हैं. कहते हैं इस दौरान दान, स्नान व पूजा-पाठ करने से व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. वहीं मान्यता है कि जेष्ठ माह में तुलसी के कुछ खास उपाय करने से व्यक्ति के घर-परिवार में सुख -समृद्धि आती है|
कब शुरू होगा जेष्ठ माह?
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार ज्येष्ठ माह की शुरुआत होगी. वहीं अगले महीने यानी 11 जून को जेष्ठ माह का समापन होगा|
जेष्ठ माह में करें तुलसी के ये उपाय-
धार्मिक मान्यता के अनुसार, अगर आप लंबे समय से आर्थिक समस्या के जूझ रहे हैं, तो जेठ के महीने में हर रोज तुलसी में जल अर्पण अवश्य करना चाहिए. इसके साथ ही आटे का दीपक बनाकर उस दीपक में घी और हल्की सी हल्दी और दो लौंग मिलाकर तुलसी के पौधे के सामने जरूर जलाएं. ध्यान रहें दीपक का मुख उत्तर दिशा की ओर रखें|
माता लक्ष्मी को करें प्रसन्न-
जेष्ठ माह में पूजा करते समय तुलसी के पौधे में कच्चा दूध और लाल रंग की चुनरी अर्पित करें. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस उपाय को करने से साधक को मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और धन से हमेशा तिजोरी भरी रहती है|
दूर होगा हर संकट-
जेष्ठ माह के मंगलवार को बड़ा मंगल कहते हैं.ऐसे बजरंग बली हनुमान जी की कृपा पाने के लिए 11 तुलसी के पत्तों को तोड़े उसपर भगवान राम का नाम लिखकर हनुमान जी को अर्पित करें. मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती और धन लाभ के योग बनते हैं|
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शनिदेव के मंत्र से दूर करें सारे दर्द, शनिवार को करें ये उपाय

शनिवार का दिन शनि देव के पूजा और सम्मान का दिन होता है, क्योंकि शनि देव को न्याय के देवता माना जाता है। उनका कार्य सभी जीवों के कर्मों का हिसाब रखना और उसी आधार पर उन्हें फल देना है। शनि देव सूर्य के पुत्र होते हुए भी सूर्य देव से अधिक संबंध नहीं रखते हैं। जब शनि देव की स्थिति अशुभ होती है, तो व्यक्ति को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे आर्थिक संकट, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां और मानसिक तनाव। लेकिन जिन पर शनि देव की कृपा होती है, वे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं।
शनि देव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं और उनकी दिशा पश्चिम मानी जाती है। शनि देव का संबंध पंचतत्वों में से वायु तत्व से बताया गया है और वे आयु, जीवन, शारीरिक बल, योग, प्रभुता, ऐश्वर्य, प्रसिद्धि, मोक्ष, ख्याति, नौकरी आदि से संबंधित होते हैं। शनि देव का वाहन गिद्ध द्वारा खींचा जाने वाला रथ है, और वे धनुष, बाण और त्रिशूल धारण करते हैं। शनिवार का दिन शनि देव की पूजा के लिए सबसे उपयुक्त होता है। इस दिन विशेष उपायों से शनि के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिल सकती है और जीवन में सफलता, यश, कीर्ति और व्यापार में वृद्धि हो सकती है।
शनिवार के उपाय :
अगर आप उन्नति के मार्ग में लगातार समस्याओं का सामना कर रहे हैं तो शनिवार के दिन स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें और एक कच्चे सूत के धागे का गोला लें। फिर उस गोले को पीपल के पेड़ के तने पर सात बार लपेटें और शनि देव का ध्यान करते हुए उनका मंत्र जपें - 'ऊँ ऐं श्रीं ह्रीं शनैश्चराय नमः।'
यदि आपके दांपत्य जीवन में खुशियां नहीं मिल रही हैं,तो शनिवार को कुछ काले तिल लेकर पीपल के पेड़ के पास चढ़ाएं और शनि देव के मंत्र का जप करें - 'ऊँ श्रीं शं श्रीं शनैश्चराय नमः।'
अगर आप अपनी संतान को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने का सोच रहे हैं लेकिन किसी परेशानी का सामना कर रहे हैं, तो शनिवार को शनि देव के इस मंत्र का 11 बार जपें - 'ऊँ श्रीं ह्रीं शं शनैश्चराय नमः।' यह उपाय आपकी परेशानी को दूर कर सकता है।
अगर आपकी जिंदगी में परेशानियों का अंत नहीं हो रहा और लगातार समस्याएं आ रही हैं, तो शनिवार को एक कटोरी में सरसों का तेल रखें और शनि देव के तंत्र मंत्र का जप करें - 'ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।' जप करने के बाद उस तेल का दीपक पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं, यह उपाय आपकी समस्याओं को हल कर सकता है।
अन्य उपाय :
अगर आप पढ़ाई में सफलता पाना चाहते हैं तो शनिवार को काले तिल को पीपल के पेड़ के नीचे रखें और ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप करें
यदि आपको पैतृक संपत्ति से संबंधित कोई समस्या हो रही है, तो शनिवार को आटे का दीपक बनाकर उसमें सरसों का तेल डालकर शनि देव के सामने जलाएं। यह उपाय आपकी भूमि या संपत्ति से जुड़ी समस्याओं को सुलझा सकता है।
अगर सरकारी दफ्तरों में कार्यों में रुकावट आ रही हो, तो शनिवार को शनि स्तोत्र का पाठ करें।
यदि आपके जीवन में लगातार संघर्ष करना पड़ता है और मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिल रही है, तो शनिवार को एक मुट्ठी काले तिल लेकर बहते जल में प्रवाहित करें और शनि देव का ध्यान करते हुए प्रार्थना करें।
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अपरा एकादशी व्रत 23 मई को, जानिए...महत्व और पूजा विधि

सनातन धर्म में एकादशी तिथि को अत्यंत पवित्र और फलदायी माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को "अपरा एकादशी" कहा जाता है। इस दिन उपवास के साथ-साथ अन्न, वस्त्र और धन का दान करना पुण्यदायी माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने और दान-पुण्य करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है और शुभ फल की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं वर्ष 2025 में अपरा एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि|
अपरा एकादशी 2025 तिथि-
ज्योतिषीय गणना के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 23 मई को रात 01:12 बजे प्रारंभ होगी और इसी दिन रात 10:29 बजे समाप्त हो जाएगी। सनातन धर्म में उदया तिथि को प्राथमिकता दी जाती है, अतः अपरा एकादशी व्रत 23 मई को रखा जाएगा। अगले दिन यानी 24 मई को व्रत का पारण किया जाएगा।
अपरा एकादशी पारण का समय-
एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के दौरान किया जाता है। 24 मई को पारण के लिए शुभ समय सुबह 05:26 बजे से शाम 08:11 बजे तक रहेगा। इस दौरान कभी भी व्रत खोला जा सकता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:04 से 04:45 बजे तक रहेगा, जो पूजा-पाठ के लिए अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है।
अपरा एकादशी की पूजा विधि-
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और सूर्य को अर्घ्य दें।
पूजा स्थान को शुद्ध करें और गंगाजल का छिड़काव करें
स्वच्छ वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें
चंदन, फूलमाला अर्पित करें और देसी घी का दीपक जलाकर आरती करें।
भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और विष्णु चालीसा का पाठ करें।
व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें।
फल, मिठाई और तुलसी के पत्तों सहित भोग अर्पित करें।
अंत में जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।
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जानें प्रदोष व्रत पूजा का महत्व और कौन सी चीजें चढ़ाने से क्या मिलता है लाभ

हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है, किंतु वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी विशेष पुण्यदायी मानी गई है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 9 मई को दोपहर 2 बजकर 56 मिनट से होगी और अगले दिन यानी 10 मई को शाम को 5 बजकर 29 मिनट पर तिथि खत्म होगी। इस प्रकार शुक्र प्रदोष व्रत 9 मई को किया जाएगा।
प्रदोष पर शिव पूजा का महत्व-
यह व्रत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावकारी माना जाता है। इस दिन व्रत, उपवास, रुद्राभिषेक और शिवलिंग पर विविध वस्तुएं अर्पित करने से समस्त दोषों का नाश होता है और जीवन में सुख, शांति एवं समृद्धि आती है। स्कंद पुराण, शिव पुराण तथा लिंग पुराण में इस व्रत की महिमा का विस्तार से वर्णन मिलता है। वैशाख शुक्ल त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की श्रद्धा भाव से पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में हर प्रकार की शुभता प्राप्त होती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायक होता है जो गृहस्थ जीवन में संतुलन, स्वास्थ्य, समृद्धि और मानसिक शांति की कामना रखते हैं।
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव का रुद्राभिषेक विशेष रूप से किया जाता है। इस दिन शिवलिंग पर विभिन्न वस्तुएं अर्पित करने की विशेष परंपरा है, जिनका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है।
जल और गंगाजल – सबसे पहले शिवलिंग को स्वच्छ जल और गंगाजल से स्नान कराना चाहिए। इससे पापों का नाश होता है और चित्त शुद्ध होता है।
दूध – शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से चंद्र दोष समाप्त होता है और मन की शांति प्राप्त होती है।
दही – दही से अभिषेक करने पर संतान सुख की प्राप्ति होती है तथा पारिवारिक कलह समाप्त होते हैं।
घी – घी से रुद्राभिषेक करने से आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है और लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
शहद – शिवलिंग पर शहद अर्पित करने से वाणी मधुर होती है और शत्रु शांत हो जाते हैं।
शक्कर या मिश्री – इससे मनुष्य को सुख और सौभाग्य प्राप्त होता है।
बेलपत्र – बेलपत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। त्रिपत्री बेल अर्पित करने से सभी पापों का क्षय होता है और शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
धतूरा और आक का फूल – यह दोनों वनस्पतियां भगवान शिव को प्रिय हैं और इन्हें चढ़ाने से ऋण, रोग और शत्रु बाधाएं समाप्त होती हैं।
भस्म और चंदन – शिव को भस्म अर्पित करने से सांसारिक मोह समाप्त होते हैं जबकि चंदन से मन को शीतलता और शुद्धता मिलती है।
नैवेद्य और फल – फल और मिठाई भगवान को अर्पित करने से सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
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शुभ योग में शुक्र प्रदोष व्रत आज, पढ़ें पूरी कथा

इस साल आज 9 मई 2025 को प्रदोष व्रत है। इस दिन शुक्रवार का संयोग होने के कारण यह शुक्र प्रदोष कहलाएगा। मान्यता है कि इस तिथि पर महाकाल की पूजा-अर्चना करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं, साथ ही कर्ज, तनाव, क्लेश से भी मुक्ति मिलती हैं। यह दिन सुहागिनों के लिए और भी खास है। इस दिन भोलेनाथ को जल, बेलपत्र और शमी का फूल अर्पित करने से माता पार्वती प्रसन्न होती हैं। इसके प्रभाव से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती हैं। इस बार शुक्र प्रदोष पर हस्त नक्षत्र और वज्र योग बन रहा है। ऐसे में प्रदोष व्रत की संपूर्ण कथा का पाठ अवश्य करें। इससे पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है। आइए इस कथा को जानते हैं।
शुक्र प्रदोष व्रत कथा-
प्रदोष व्रत महादेव की पूजा और उनकी कृपा पाने का सबसे शुभ दिन होता है। लेकिन इस दिन की उपासना बिना व्रत कथा के अधूरी मानी जाती है। ऐसे में आइए शुक्र प्रदोष व्रत की संपूर्ण कथा के बारे में जानते हैं। दरअसल, प्रदोष व्रत की कथा को लेकर यह कहा जाता है कि एक समय की बात है जब एक नगर में तीन खास दोस्त रहते थे, जिनका नाम राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और धनिक पुत्र था। इन तीनों में से राजकुमार और ब्राह्मण कुमार दोनों की शादी हो चुकी थी। हालांकि कुछ समय बाद धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था। परंतु उसका गौना शेष था। यही कारण है कि उसकी पत्नी मायके में रहा करती थी।
फिर एक बार तीनों दोस्त बैठकर स्त्री विषय पर बात कर रहे थे कि तभी ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की तारीफ करते हुए कहा कि नारीहीन घर एक भूतों का डेरा होता है। दोस्त ब्राह्मण कुमार की यह बात सुनकर धनिक पुत्र ने अपनी पत्नी को घर लाने का निर्णय बना लिया है। इस दौरान धनिक पुत्र के माता-पिता ने उसे यह समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हैं और इस अवधि में बहू-बेटियों को घर से विदा कराकर उन्हें लाना अशुभ होता है इसलिए अभी रुकना ठीक रहेगा।
लेकिन धनिक पुत्र ने किसी की नहीं मानी और पत्नी को लेकर ससुराल पहुंच गया। हालांकि ससुराल पहुंचने के बाद भी धनिक पुत्र को समझाने का लाख प्रयास किया गया है। लेकिन उसकी जिद्द के कारण सभी को उसकी बातें माननी पड़ी। कुछ देर बाद धनिक पुत्र अपनी पत्नी के साथ घर की ओर निकल पड़ता है। वह शहर से बाहर आया ही था कि उसकी बैलगाड़ी का पहिया निकल गया। इससे बैल की टांगें टूट गई। इस घटना से दोनों पति-पत्नी को चोट पहुंच चुकी थी। परंतु फिर भी वह घर की ओर आने के लिए आगे बढ़ें।
कुछ दूर चलते ही उनका सामना डाकूओं से हो गया और वह उनका सभी सामान और धन लूटकर ले गए। जैसे तैसे दोनों घर पहुंचे ही थे कि धनिक पुत्र को सांप ने काट लिया। घटना के तुरंत बाद धनिक पुत्र के पिता ने वैद्य को बुला लिया। इस दौरान वैद्य ने कहा कि तीन दिन बाद धनिक पुत्र की मृत्यु हो जाएगी। इस बात की जानकारी जैसे ही उसके मित्र ब्राह्मण कुमार हुई, तो वह सीधा धनिक पुत्र के घर आ गया है। इसी बीच उसने धनिक पुत्र के माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत रखने के कहा। इसके अलावा उसने बोला कि धनिक पुत्र और उसकी पत्नी को वापस ससुराल ही भेज दें। ब्राह्मण कुमार की बात मानकर वह दोनों वापिस ससुराल चले गए और वहां जाते ही धनिक पुत्र की हालत भी सुधर गई। तभी से ऐसा माना जाता है कि शुक्र प्रदोष व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
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वट सावित्री व्रत 26 मई को, करें ये उपाय

हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का बहुत खास महत्व होता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं और वटवृक्ष की पूजा करती हैं. ऐसा करने से उन्हें अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलता है. मान्यता है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव का वास होता है. कई महिलाएं जिनके वैवाहिक जीवन में समस्याएं चल रही हों या जो अपने दाम्पत्य जीवन को खुशहाल रखना चाहती हैं, वे वट सावित्री के दिन कुछ खास उपाय कर सकती हैं|
आइए जानते हैं देवघर के ज्योतिषाचार्य से कि क्या उपाय करें| इस साल 26 मई को वट सावित्री व्रत रखा जाएगा. इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर अखंड सौभाग्यवती के लिए वटवृक्ष की पूजा करती हैं. ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे उपाय बताए गए हैं जिन्हें वट सावित्री के दिन अपनाकर महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को और खुशहाल बना सकती हैं|
वट सावित्री के दिन क्या करें ये उपाय-
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं वटवृक्ष के नीचे भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें. साथ ही श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करें और शोडशोपचार विधि से वटवृक्ष की पूजा करें. वटवृक्ष में कच्चा सूत या मौली 108 बार लपेटें और अपनी वैवाहिक जीवन की खुशहाली की कामना करते हुए 108 बार प्रदक्षिणा करें. ऐसा करने से भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होंगे और आपकी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होंगी. पूजा समाप्ति के बाद 11 घी के दीपक वटवृक्ष के नीचे जलाएं. ऐसा करने से आपके वैवाहिक जीवन में हमेशा खुशहाली बनी रहेगी|
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आज मोहिनी एकादशी पर करें इन चीजों का दान

  • घर से दूर होगी दरिद्रता
हिंदू धर्म में मोहिनी एकादशी का व्रत हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है. पंचांग के अनुसार मोहिनी एकादशी का व्रत आज यानी 08 मई 2025 दिन गुरुवार को रखा जा रहा है. इस दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उनके लिए व्रत रखते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी इस दिन मोहिनी एकादशी व्रत की कथा सुनता है, उसके जीवन से सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं. इसके अलावा मोहिनी एकादशी के दिन कुछ चीजों का दान करने से घर धन-संपत्ति से भरा रहता है. आइए जानते हैं इसके बारे में|
वस्त्र का दान करें-
मोहिनी एकादशी के दिन गरीब और जरूरतमंदों को वस्त्र दान करना बहुत शुभ और फलदायी माना जाता है. ऐसा करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है|
अन्न का दान करें-
मोहिनी एकादशी के दिन गरीबों को भोजन अवश्य दान करें. अन्न दान करने से घर पर देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विशेष कृपा बनी रहती है और धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती है|
धन का दान करें-
मोहिनी एकादशी के दिन अपनी क्षमता के अनुसार गरीबों को धन दान करें. इस दिन धन का दान करने से आर्थिक परेशानियों से छुटकारा मिलता है|
गुड़ का दान करें-
एकादशी के दिन गुड़ का दान अवश्य करें. गुड़ का दान करने से जीवन में खुशहाली और समृद्धि आती है|
मोहिनी एकादशी पर इन चीजों का भी दान करें-
मोहिनी एकादशी के दिन इन चीजों के अलावा जल, घड़ा, फल, अनाज और मिठाई का दान करें. इस दिन इन चीजों का दान करना भी बेहद शुभ माना जाता है. इसलिए मोहिनी एकादशी के दिन इन चीजों का दान करें|
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शुक्र प्रदोष व्रत के दिन करें एक उपाय, धन से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या होगी दूर

प्रत्येक महीने के कृष्ण और शुक्ल, दोनों पक्षों की त्रयोदशी को किया जाने वाला प्रदोष व्रत 9 मई के दिन किया जायेगा। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर की पूजा करनी चाहिए। कहते हैं प्रदोष व्रत के दिन जो व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा करता है और प्रदोष व्रत करता है, उसकी समस्त समस्याओं का अंत होता है और उसे उत्तम लोक की प्राप्ति होती है। त्रयोदशी तिथि में रात्रि के प्रथम प्रहर, यानि सूर्योदय के बाद जो व्यक्ति किसी भेंट के साथ शिव प्रतिमा के दर्शन करता है- भगवान शिव की कृपा उसपर सदैव बनी रहती है। साथ ही प्रदोष व्रत के दिन कुछ ऐसे उपाय भी हैं जिनको करने से धन-धान्य की प्राप्ति भक्तों को जीवन में हो सकती है। आइए जानते हैं इन उपयों के बारे में।
शुक्र प्रदोष व्रत के उपाय 
अपनी धन-सम्पत्ति में वृद्धि के लिये आज के दिन सवा किलो साबुत चावल और कुछ मात्रा में दूध लेकर शिव मन्दिर में दान करें। प्रदोष व्रत के दिन ऐसा करने से आपकी और आपके परिवार की धन-सम्पत्ति में वृद्धि होगी।
अगर लाख कोशिशों के बाद भी आपकी आर्थिक स्थिति डामाडौल बनी हुई है और आपको धन लाभ नहीं हो पा रहा है, तो आज पीले रंग के रेशमी कपड़े में सात हल्दी की गांठें बांधकर केले के पेड़ के नीचे रख आयें। प्रदोष व्रत के मौके पर ऐसा करने से आपकी आर्थिक समस्याओं का हल जल्द ही निकलेगा।
अगर आपको लंबे समय से अच्छी नौकरी नहीं मिल पा रही है या आपका प्रमोशन किसी कारण से अटका हुआ है, तो आज के दिन एक कच्चे मिट्टी के घड़े में गेहूं भरकर, उस पर ढक्कन लगाकर, घड़े को किसी सुपात्र ब्राह्मण को दान कर दें और अपनी बेहतरी के लिये उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें। प्रदोष व्रत के दिन ऐसा करने से आपको जल्द ही अच्छी नौकरी मिलेगी और आपके प्रमोशन में आ रही परेशानी भी जल्द ही दूर होगी।
अपने करियर की बेहतरी के लिये या अपने बिजनेस को एक नये मुकाम तक पहुंचाने के लिये आज एक पीपल का पत्ता लेकर, उस पर हल्दी से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं और भगवान के चरणों में ‘ऊँ नमो भगवते नारायणाय’ कहते हुएअर्पित कर दें । साथ ही किसी पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं। अगर मीठाई का भोग नहीं लगा सकते तो केले का फल चढ़ा दें। प्रदोष व्रत के दिन ऐसा करने से आपके करियर की अच्छी शुरुआत होगी और बिजनेस में आपको मनचाहा मुकाम हासिल होगा।
अगर आप अपने शत्रुओं से परेशान हैं और उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं तो आज के दिन शमी पत्र को साफ पानी से धोकर शिवलिंग पर अर्पित करें और ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का 11 बार जप करें। प्रदोष व्रत के दिन ऐसा करने से आपको अपने शत्रुओं से जल्दी ही मुक्ति मिलेगी।
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जानिए... कब है मई का पहला और वैशाख का आखिरी प्रदोष व्रत

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, प्रदोष व्रत प्रत्येक माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों त्रयोदशी को मनाया जाता है. मई 2025 का पहला प्रदोष व्रत वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को पड़ रहा है. इस बार व्रत शुक्रवार के साथ पड़ रहा है, जिससे यह शुक्र प्रदोष बन गया है|इस दिन, भक्त दिन भर उपवास रखते हैं और संध्या या प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करते हैं, इससे सुख-समृद्धि और सफलता मिलती है. ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से जीवन की सभी नकारात्मकताएं और बाधाएं दूर होती हैं और शिव के आशीर्वाद से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं|
प्रदोष व्रत कब मनाया जाएगा-
मई 2025 में प्रदोष व्रत कब है? वैदिक पंचांग के अनुसार, त्रयोदशी तिथि 09 मई 2025 को दोपहर 02:56 बजे से शुरू होकर 10 मई 2025 को शाम 05:29 बजे समाप्त होगी. क्योंकि इस व्रत की पूजा सांय काल होती है इसलिए प्रदोष व्रत 9 मई 2025 को मनाया जाएगा|
यह शुक्र प्रदोष वज्र योग और हस्त नक्षत्र के साथ मेल खाता है, जिसे अत्यधिक शुभ माना जाता है। शाम की पूजा अवधि (प्रदोष काल) दो घंटे से अधिक समय तक चलेगी – शाम 7:01 बजे से रात 9:08 बजे तक। यह 2 घंटे 6 मिनट की अवधि प्रदोष पूजा करने के लिए सबसे अनुकूल समय माना जाता है।
प्रदोष पूजा का शुभ मुहुर्त-
वैदिक पंचांग के अनुसार प्रदोष पूजा गोधूलि वेला में की जाती है. ये समय शिव पूजा के लिए शुभ होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस समय शिव को की गई प्रार्थना शक्तिशाली होती है|
शुक्र प्रदोष व्रत का महत्व-
शुक्रवार के प्रदोष को शुक्र प्रदोष व्रत कहते हैं. कहा जाता है शुक्र प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सभी कष्ट मिट जाते हैं. इसे करने से घर में खुशहाली आती है. शत्रु नाश होता है. वहीं प्राचीन कथाओं के अनुसार, एक बार जब चंद्रदेव क्षय रोग से पीड़ित हो गए और उन्होंने राहत के लिए भगवान शिव की पूजा की. शिव के आशीर्वाद से उनके सभी कष्ट दूर हो गए. इसी तरह, माना जाता है कि जो लोग प्रदोष व्रत रखते हैं, वे दुखों से मुक्त हो जाते हैं और उन्हें ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है|
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बुधवार और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के संयोग में जरूर करें ये उपाय

  • हर परेशानी होगी दूर
सप्ताह का बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन गणपति जी आराधना करने से भक्तों के सभी विघ्न दूर हो जाते हैं। इसके साथ ही बुधवार को शाम 6 बजकर 17 मिनट तक पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र रहेगा। आकाशमंडल में स्थित 27 नक्षत्रों में से पूर्वाफाल्गुनी ग्यारहवां नक्षत्र है। इस नक्षत्र की राशि सिंह है, जबकि इसके स्वामी शुक्र हैं। साथ ही ढाक, जिसे पलाश भी कहते हैं, उसके साथ पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का संबंध बताया गया है।
बता दें कि पलाश के फूलों का इस्तेमाल रंग बनाने के लिए किया जाता है। लिहाजा जिन लोगों का जन्म पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में हुआ हो, उन लोगों को ढाक या पलाश के वृक्ष को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचानी चाहिए और साथ ही उसकी लकड़ियों, फूलों या उससे बनी किसी अन्य चीज को इस्तेमाल में नहीं लेना चाहिए। इसके बजाय ढाक या पलाश के पेड़ को नमस्कार करना चाहिए और उसकी पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपको शुभ फलों की प्राप्ति होगी। साथ ही आपके सुख सौभाग्य में वृद्धि भी होगी।
बुधवार और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के संयोग में करें ये उपाय
- अगर आपके परिवार के सदस्यों के बीच आपसी अनबन होती रहती हैं, जिससे घर का माहौल भी अशांत रहता है, तो बुधवार के दिन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में एक मिट्टी का दिया लें और उसमें चार कपूर की टिकियां रखकर जलाएं। अब उस दिये से पूरे घर में धूप दिखाएं और बाद में उसे अपने घर के मंदिर में रख दें, बुझाएं नहीं।
- अगर कुछ दिनों से आपको नौकरी से संबंधित किसी प्रकार की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, तो बुधवार घी, पिसी हुई शक्कर और सफेद तिल मिलाकर लड्डू बनाएं और भगवान गणेश को भोग लगाएं। अगर आप तिल के लड्डू न बना पाएं, तो सफेद तिल, थोड़ासा घी और थोड़ी पिसी हुई शक्कर अलग अलग लेकर मंदिर में दान कर दें।
- अगर आप राजनीतिक या सामाजिक क्षेत्र में अपनी पैंठ जमाना चाहते हैं तो बुधवार के दिन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में एक खाली मटका लें, लेकिन ध्यान रहे कि मटके पर ढक्कन लगा होना चाहिए। अब ढक्कन गिर न जाये, इसके लिए किसी कपड़े या धागे की सहायता से उस ढक्कन को मटके से अच्छे से बांध दें और मन ही मन अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए, उस मटके को बहते जल में प्रवाहित कर दें।
- अगर आप जीवन में खुशियों का संचार बढ़ाना चाहते हैं, जिससे पारिवारिक रिश्तों में भी प्यार बना रहे, तो इसके लिए बुधवार के दिन केतु के मूल मंत्र का जप करें। मंत्र इस प्रकार है- ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम:'।
- अगर आप अपने जीवन में हर काम की बेहतरी के लिए और शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए बुधवार के दिन आपको ढाक या पलाश के वृक्ष की उपासना करनी चाहिए। अगर आसपास कहीं वृक्ष उपलब्ध हो तो उसकी जड़ में जल भी डालना चाहिए। साथ ही इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप बुधवार के दिन ढाक या पलाश के वृक्ष को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचाएं और उससे संबंधित चीजों का उपयोग करने से बचें। इससे आपको शुभ फल मिलेंगे, लेकिन अगर आपको आसपास कहीं ढाक या पलाश का वृक्ष न मिले तो आप वृक्ष की फोटो डाउनलोड करके उसको अपने पास संजोकर रखें और प्रणाम करें।
- अगर आपके व्यापार में मंदी चल रही है और आप अपने काम को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं तो बुधवार के दिन एक मिट्टी का बर्तन लें और उसमें शहद भरकर, उस पर ढक्कन लगाकर घर के उत्तर पश्चिम कोने में रख दें और बुधवार पूरा दिन रखा रहने दें। अगले दिन उस शहद से भरे मिट्टी के बर्तन को मन ही मन अपने व्यापार की बढ़ोतरी के लिए प्रार्थना करते हुए किसी एकांत स्थान पर छोड़ दें।
- अगर आप धन धान्य और भौतिक सुखों की बढ़ोतरी चहाते है तो बुधवार एक पलाश का फूल और साथ ही एक एकाक्षी नारियल लें। अगर आपको पलाश का ताजा फूल न मिले तो आप पंसारी के यहां से सूखा हुआ पलाश का फूल भी ला सकते हैं। वो आपको आसानी से मिल जायेगा। अब उस पलाश के फूल और एकाक्षी नारियल को एक सफेद रंग के कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी में या आप घर में जिस स्थान पर धन रखते हैं, वहां पर रख दें।
- अगर आप अपने जीवन के हर क्षेत्र में तरक्की पाना चाहते हैं, तो बुधवार के दिन किसी कुम्हार या कृषक या जो मिट्टी से जुड़ा कोई कार्य करता हो, उसे एक सफेद रंग का कपड़ा गिफ्ट करें। अगर कपड़ा गिफ्ट करने में समर्थ न हो, तो दही से बनी कोई चीज उन्हें खिलाएं।
- अगर आपकी तबीयत कुछ दिनों से ठीक नहीं चल रही है, तो अपनी तबीयत में सुधार के लिए या अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए बुधवार के दिन ज्वार के आटे की रोटी बनाकर गाय को खिलाएं और पैर छूकर आशीर्वाद लें। लेकिन अगर आप ज्वार के आटे की रोटी न बना पाएं तो ज्वार का आटा या साबुत ज्वार के दाने किसी मंदिर में दान कर दें।
- अगर आप अपने दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाये रखना चाहते हो और उसमें प्यार की कोई गुंजाइश नहीं रखना चाहते हो, तो बुधवार के दिन कोई दो अच्छी-सी खुशबू वाले इत्र की शीशी खरीदें और उसमें से एक शीशी को किसी मंदिर में दान कर दें और दूसरी शीशी को अपने जीवनसाथी को गिफ्ट कर दें।
- अगर आप अपने सुख सौभाग्य की वृद्धि चाहते हैं तो बुधवार गाय का शुद्ध देसी घी और एक कपूर की डिब्बी मंदिर में दान करें। साथ ही मंदिर जाकर उस कपूर की डिब्बी में से एक कपूर की टिकिया निकालकर अपने हाथों से जलाएं और भगवान की आरती करें। बाकी मंदिर में ही रखी रहने दें।
- अपनी धन संपत्ति में वृद्धि के लिए बुधवार के दिन सवा किलो साबुत चावल और कुछ मात्रा में दूध लेकर शिव मंदिर में दान करें। बुधवार के दिन ऐसा करने से आपकी और आपके परिवार की धन संपत्ति में वृद्धि होगी।
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शुभ मुहूर्त में करें मोहिनी एकादशी की पूजा, भगवान विष्णु बरसाएंगे कृपा

हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी का व्रत किया जाता है। इस साल यह तिथि 8 मई को पड़ रही है। इसी दिन मोहिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। बता दें कि हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। प्रत्येक महीने में दो एकादशी पड़ती है एक कृष्ण और दूसरा शुक्ल पक्ष में। हर एकादशी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। मोहिनी एकादशी के दिन व्रत कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में खूब तरक्की मिलती है। इतना ही नहीं मोहिनी एकादशी का व्रत करने से जातक को सभी मोह बंधनों से भी मुक्ति मिलती है। तो चलिए अब जानते हैं कि मोहिनी एकादशी की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त क्या रहेगा।
मोहिनी एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त-
पंचांग के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 7 मई को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर होगा। एकादशी तिथि समाप्त 8 मई को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर होगा। जातक इस मुहूर्त में मोहिनी एकादशी की पूजा कर सकते हैं।
मोहिनी एकादशी 2025 पारण का समय-
एकादशी के व्रत में पारण का विशेष महत्व है। एकादशी का पारण द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद ही किया जाता है। मोहिनी एकादशी का पारण 9 मई को किया जाएगा। पारण के लिए शुभ समय सुबह 6 बजकर से सुबह 8 बजकर 42 मिनट तक रहेगा। वहीं मोहिनी एकादशी के दिन द्वादशी तिथि समाप्त दोपहर 2 बजकर 56 मिनट पर होगा।
मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के इन मंत्रों का करें जाप
विष्णु मूल मंत्र-
ॐ नमोः नारायणाय॥
विष्णु भगवते वासुदेवाय मंत्र-
ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥
विष्णु गायत्री मंत्र-
ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
मङ्गलम् भगवान विष्णु मंत्र-
मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुडध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥
विष्णु शान्ताकारम् मंत्र-
शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥
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बुद्ध पूर्णिमा 12 मई को, खरीदें ये चीजें

  • घर में बनी रहेगी समृद्धि और खुशहाली
बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इसे पूरे भारत में बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हर साल वैशाख माह की पूर्णिमा तिथि को बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है। इस साल बुद्ध पूर्णिमा का पर्व 12 मई को है। इस दिन महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था। माना जाता है कि इस दिन महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इस दिन वैशाख पूर्णिमा और बुद्ध पूर्णिमा होने की वजह से कुछ चीजों की खरीदारी करना बहुत शुभ होता है। तो आइए जानते हैं कि इस दिन कौन सी चीजों की खरीदारी करनी चाहिए।
बुद्ध पूर्णिमा पर करें इन चीजों की खरीदारी-
पीतल का हाथी-
बुद्ध पूर्णिमा के दिन पीतल का हाथी खरीदना चाहिए। इसे खरीदने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और आर्थिक स्थिति ठीक होती है। साथ ही जीवन में आने वाली हर परेशानी से छुटकारा मिलता है।
कौड़ी-
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता लक्ष्मी को कौड़ियां बहुत प्रिय हैं। ऐसे में वैशाख पूर्णिमा के दिन घर में कौड़ी लेकर आने से माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती।
महात्मा बुद्ध की मूर्ति-
बुद्ध पूर्णिमा के दिन महात्मा बुद्ध की मूर्ति खरीद कर घर लाना बहुत शुभ होता है। इस खास दिन पर बुद्ध की मूर्ति घर लाने से खुशहाली बनी रहती है।
चांदी का सिक्का-
दीपावली की तरह ही बुद्ध पूर्णिमा के दिन चांदी के सिक्के को घर लाना बहुत अच्छा होता है। इसे माता लक्ष्मी की पूजा में उपयोग किया जाता है। इस दिन चांदी का सिक्का खरीदने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है और हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
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हनुमानजी को प्रसन्न करने मंगलवार को जलाएं दीपक

  • जानिए...इसके लाभ
हिंदू धर्म में भगवान हनुमान को कलयुग का देवता माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज भी भगवान हनुमान इस पृथ्वी पर वास करते हैं। हनुमानजी की पूजा और विशेष कृपा पाने के लिए मंगलवार दिन समर्पित होता है। हनुमान जी को संकटमोचन भी कहा जाता है यानी संकट के समय अगर हनुमान का नाम लिया जाय तो फौरन ही सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। हनुमान की पूजा के लिए मंगलवार के साथ-साथ शनिवार के दिन भी पूजा का विशेष महत्व होता है। मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग पदार्थों के तेल का दीपक जलाने का महत्व होता है। आइए जानते हैं मंगलवार और शनिवार के दिन किन तेलों के दीपक जलाने से कौन-कौन से लाभ मिलते हैं।
चमेली के तेल का दीपक-
हनुमान जी को चमेली का तेल बहुत ही प्रिय होता है। मंगलवार के दिन अपने घर के पास स्थित मंदिर में हनुमानजी के दर्शन करने के बाद उन्हे चमेली का तेल अर्पित करें। मंगलवार को चमेली का तेल अर्पित करने में व्यक्ति को मानसिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है और रोग दूर होते हैं। इसके अलावा जिन लोगों को अनचाहा डर बना रहता है उनके लिए इस उपाय यह दूर हो जाता है।
शनि दोष से मुक्ति के लिए तिल का दीपक-
जिन जातकों के ऊपर शनिदोष, साढ़ेसाती और ढैय्या का अशुभ प्रभाव बना रहता है। मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान जी की प्रतिमा के सामने तिल का दीपक जलाएं। इससे शनि संबंधी दोष फौरन ही दूर होते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
शत्रु बाधा से मुक्ति के लिए सरसों के तेल का दीपक:
मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान जी प्रतिमा के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाने से शत्रुओं का भय नहीं होता है और आर्थिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है। इससे व्यक्ति का के आत्मविश्वास में वृद्दि होती है।
सुख-समृद्धि के लिए घी का दीपक-
मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमानजी की प्रसन्न करने के लिए, जीवन में सुख-समृद्धि और संपन्नता के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करना और घी का दीपक जलाना बहुत ही अच्छा होता है।
नारियल के तेल का दीपक जलाने से इच्छा की पूर्ति-
हनुमानजी जल्द से जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं। जो भी व्यक्ति इनकी मन से पूजा-आराधना करता है उनकी हर तरह की इच्छा को जरूर पूरा करते हैं। हनुमान की पूजा में मंगलवार और शनिवार के दिन नारियल के तेल का दीपक जलाने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
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मोहिनी एकादशी के दिन कैसे करें व्रत और पूजा?, जानिए...आसान विधि

सनातन धर्म में एकादशी के व्रत को बेहद शुभ फलदायक माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा भक्त करते हैं। मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत करने से पुण्य फलों की प्राप्ति व्यक्ति को होती है। हर साल में 24 एकादशी तिथियां आती हैं और हर एकादशी का नाम अलग होता है। इसी तरह वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया था। 2025 में 8 मई को मोहिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन आपको कैसे व्रत और पूजन करना चाहिए, आइए जानते हैं।
मोहिनी एकादशी व्रत और पूजन विधि
हर हिंदू व्रत की तरह मोहिनी एकादशी के दिन भी आपको सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करना चाहिए। इसके बाद पूजा स्थल पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित आपको करनी चाहिए। इसके बाद गंगाजल से विष्णु भगवान की प्रतिमा को स्नान कराना चाहिए। इसके उपरांत पुष्प, मिठाई, पीले वस्त्र, तुलसी आदि आपको भगवान विष्णु को अर्पित करनी चाहिए।
पूजा सामग्री और भोग
घूप, दीप, नैवद्य, चंदन, घंटी, कलावा, शंख, पीला वस्त्र, एक चौकी, रुई, घी, गंगाजल, पुष्प, शंख आदि आपको मोहिनी एकादशी के व्रत में शामिल करने चाहिए। इन चीजों का इंतजाम एक दिन पहले ही कर दें तो ज्यादा बेहतर रहेगा। मोहिनी एकादशी के व्रत में आपको पंचामृत, फल और मिठाई का भोग विष्णु भगवान को लगाना चाहिए। इसके साथ ही भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करना भी शुभ फलदायक माना जाता है। इसके साथ ही मोहिनी एकादशी के व्रत में व्रत कथा का पाठ भी जरूर करना चाहिए।
व्रत और पूजन में जरूर करें ये काम
हर हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के बाद आरती करना बेहद आवश्यक होता है, इसलिए मोहिनी एकादशी के दिन भी आपको पूजा के बाद आरती करनी चाहिए।
भगवान विष्णु के साथ ही इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा अथवा आरती आपको अवश्य करनी चाहिए।
मोहिनी एकादशी के व्रत में आपको दिन के समय सोने से बचना चाहिए, दिन में प्रभु का ध्यान और धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करें।
व्रत का पारण एकादशी तिथि की रात्रि में न करें बल्कि द्वादशी तिथि की सुबह करें। मोहिनी एकादशी के व्रत का पारण आपको 9 मई को करना चाहिए।
इस दिन गलत विचारों को खुद पर हावी न होने दें और वासना युक्त विचारों से भी बचें।
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अमरनाथ यात्रा की तैयारी पूरी, बाबा बर्फानी की पहली तस्वीर वायरल

Amarnath Yatra : अमरनाथ की गुफा से बाबा बर्फानी की इस साल की पहली तस्वीर सामने आई है। यह तस्वीर अमरनाथ यात्रा शुरू होने से पहले जारी की गई है। इस बार बर्फ से बने शिवलिंग की ऊंचाई करीब 7 फीट है। शिवलिंग में बाबा बर्फानी का दिव्य रूप बहुत ही सुंदर दिख रहा है।
कब शुरू हो रही है अमरनाथ यात्रा?
इस साल अमरनाथ यात्रा 3 जुलाई से शुरू होगी और करीब 38 दिन चलेगी। यात्रा रक्षाबंधन के दिन समाप्त होगी। भक्त यात्रा शुरू होने से पहले ही बाबा के दर्शन इस तस्वीर के जरिए कर सकते हैं।
अमरनाथ गुफा का धार्मिक महत्व
अमरनाथ की गुफा में हर साल बर्फ से प्राकृतिक रूप से शिवलिंग बनता है, जिसे हिमानी शिवलिंग कहा जाता है। यहाँ सूर्य की रोशनी बहुत कम पहुँचती है, इसलिए गुफा की छत से टपकने वाला पानी धीरे-धीरे जम जाता है और इससे शिवलिंग बनता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने यहीं पर माता पार्वती को अमरता का रहस्य यानी अमरत्व का मंत्र सुनाया था। भगवान शिव ने इस गुफा में तपस्या भी की थी।
अमरपक्षी की रहस्यमयी कथा
जब भगवान शिव अमर कथा सुना रहे थे, उस समय एक तोता और कबूतरों का जोड़ा भी वहाँ मौजूद था। कथा सुनने के कारण तोता शुकदेव के रूप में अमर हो गया। माना जाता है कि आज भी कई भक्तों को गुफा में कबूतरों का जोड़ा दिखता है, जिन्हें अमरपक्षी कहा जाता है।
कैसे करें अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन?
यात्रा पर जाने के लिए रजिस्ट्रेशन जरूरी है।
रजिस्ट्रेशन के समय मेडिकल सर्टिफिकेट भी जमा करना पड़ता है।
श्रद्धालु को अपने साथ ये दस्तावेज रखने होते हैं।
आधार कार्ड, यात्रा आवेदन पत्र, पासपोर्ट साइज फोटो, आरएफआईडी कार्ड
ध्यान दें- यात्रा पर केवल 70 साल से कम उम्र के लोग ही जा सकते हैं।
अमरनाथ यात्रा के दो रास्ते
1. पहलगाम रूट
यह रास्ता थोड़ा लंबा लेकिन आसान है।
करीब 16 किलोमीटर चलना होता है और 3 दिन में गुफा तक पहुँचा जा सकता है।
2. बालटाल रूट
यह रास्ता छोटा लेकिन कठिन चढ़ाई वाला है।
इसमें 14 किलोमीटर की सीधी चढ़ाई होती है, लेकिन कम समय में गुफा पहुँचा जा सकता है।
श्रद्धालुओं की सुविधा के इंतजाम
इस बार पिछले साल से ज्यादा श्रद्धालु आने की उम्मीद है। सरकार और प्रशासन की तरफ से रास्ते में ठहरने और आराम करने की व्यवस्था की जा रही है ताकि सभी श्रद्धालुओं को सुविधा मिल सके।
LG मनोज सिन्हा ने की समीक्षा
जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने सोमवार (5 मई) को ही श्रीनगर के पंथा चौक में अमरनाथ यात्रा ट्रांजिट कैंप पर जाकर यात्रा के लिए होने वाली तैयारियों की समीक्षा की। पहलगाम हमले के बाद भी अमरनाथ यात्रा के लिए भक्तों के उत्साह में कोई भी फर्क नहीं आया है. अभी तक मिली जानकारी के अनुसार 3 लाख 60 हजार से ज्यादा लोग अभ तक यात्रा के लिए पंजीकरण करा चुके है।
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प्रदोष व्रत पर देवी पार्वती को अर्पित करें ये चीजें, दूर होगी पैसों की तंगी

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है. प्रदोष व्रत वैसे तो भगवान भोलेनाथ को समर्पित है, लेकिन इस दिन भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती की पूजा करने का विधान है. यह व्रत हर मास शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है|
हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 9 मई 2025 को दोपहर 2:56 बजे से शुरू होगी. तिथि अगले दिन यानी 10 मई को शाम 5:29 बजे समाप्त होगी. ऐसे में वैशाख मास का दूसरा प्रदोष व्रत 9 मई को रखा जाएगा. मान्यता है कि प्रदोष व्रत को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसके अलावा जो महिलाएं इस दिन मां पार्वती को कुछ विशेष सामग्री अर्पित करती हैं, उन्हें सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं प्रदोष व्रत पर देवी पार्वती को क्या चढ़ाना चाहिए|
प्रदोष व्रत पर देवी पार्वती को चढ़ाएं ये चीजें-
अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है| धार्मिक मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन महिलाओं को भगवान भोलेनाथ के साथ मां पार्वती की भी पूजा करनी चाहिए. पूजा में श्रृंगार में चुनरी, बिंदी, लाल रंग के कपड़े आदि पहनने चाहिए. ऐसा करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है|
घर में सुख समृद्धि आती है-
प्रदोष व्रत के दिन मां पार्वती को रोली चंदन, मौली और चंदन का तिलक लगाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है|
मनोकामना पूरी होती हैं-
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती को फल और मिठाई अवश्य अर्पित करनी चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं|
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मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को अर्पित करें ये चीजें, पूरी होगी हर मनोकामना

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत पान कराया था. यह एकादशी अत्यंत शुभ और फलदायी मानी जाती है. इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने का विशेष महत्व है. मान्यता है कि मोहिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाने से भक्तों की किस्मत चमक उठती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है|
मोहिनी एकादशी तिथि- पंचांग के अनुसार, वैशाख माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 7 मई को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर होगी. वहीं तिथि का समापन अगले दिन 8 मई को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर होगा. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार मोहिनी एकादशी का व्रत 8 मई को रखा जाएगा|
मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु लगाएं इन चीजों को भोग
तुलसी दल- तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है. किसी भी भोग में तुलसी दल को शामिल करना अनिवार्य माना जाता है. मान्यता है कि तुलसी के बिना भगवान विष्णु कोई भी भोग स्वीकार नहीं करते. मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं|
पीला रंग- भगवान विष्णु को पीला रंग अत्यंत प्रिय है. इसलिए मोहिनी एकादशी के दिन पीले रंग के फल, जैसे केला, आम या पीले रंग की मिठाई का भोग लगाना शुभ माना जाता है. पीला रंग समृद्धि और शुभता का प्रतीक है, और इसे अर्पित करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं|
माखन और मिश्री- भगवान विष्णु को माखन और मिश्री का भोग अत्यंत प्रिय है. बाल गोपाल के रूप में उनकी आराधना में इसका विशेष महत्व है. मोहिनी एकादशी के दिन माखन और मिश्री का भोग लगाने से जीवन में मधुरता आती है और रिश्तों में प्रेम बढ़ता है|
खीर- चावल, दूध और चीनी से बनी खीर भगवान विष्णु को प्रिय भोगों में से एक है. मोहिनी एकादशी के दिन खीर का भोग लगाने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और पारिवारिक संबंध मजबूत होते हैं|
फल- भगवान विष्णु को ऋतु फल अर्पित करना भी शुभ माना जाता है. आप अपनी श्रद्धा और उपलब्धता के अनुसार कोई भी मौसमी फल जैसे आम, केला, तरबूज या खरबूजा भोग में शामिल कर सकते हैं. फल अर्पित करने से जीवन में सकारात्मकता और ताजगी आती है|
पंजीरी- धनिया और मेवों से बनी पंजीरी भी भगवान विष्णु को भोग के रूप में अर्पित की जाती है. यह विशेष रूप से उत्तर भारत में प्रचलित है. पंजीरी का भोग लगाने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है.
मोहिनी एकादशी पर भोग लगाने का महत्व-
मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाने से न केवल उनकी कृपा प्राप्त होती है, बल्कि जीवन में आने वाली बाधाएं भी दूर होती हैं. यह दिन आत्म-शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण है. मान्यता के अनुसार, सच्चे मन से भगवान विष्णु की आराधना और उन्हें प्रिय भोग अर्पित उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सौभाग्य, आरोग्य और धन-वैभव की प्राप्ति होती है|
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आज सीता नवमी, जानिए...व्रत कथा-पूजा विधि और स्तुति

आज 5 मई 2025 को देशभर में सीता नवमी का पर्व श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। मान्यताओं के अनुसार इसी तीर्थ पर माता सीता का अवतरण हुआ था। ऐसे में सीता नवमी पर सच्चे मन से माता सीता की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। इस अवसर पर व्रत रखने और विधिपूर्वक पूजा करने से सुख-समृद्धि, दांपत्य सुख और संतान सुख की प्राप्ति होती है। सीता नवमी को जानकी नवमी भी कहा जाता है। आइए जानते हैं सीता नवमी पर माता जानकी की पूजा करने की सही विधि, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा…
सीता नवमी का महत्व
सीता नवमी स्त्री शक्ति, शुद्धता, सहनशीलता और तपस्या का प्रतीक पर्व है। यह दिन नारी गरिमा को सम्मान देने का दिन है। माता सीता के आदर्शों को जीवन में उतारने से पारिवारिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
शुभ मुहूर्त-
नवमी तिथि प्रारंभ: 5 मई, सुबह 7:35 बजे
नवमी तिथि समाप्त: 6 मई, सुबह 8:38 बजे
पूजन का सर्वोत्तम समय (मध्याह्न काल): 11:00 AM से 1:30 PM तक
सीता नवमी व्रत और पूजा विधि-
1. स्नान और संकल्प: प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
2. प्रतिमा स्थापना: भगवान राम और माता सीता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
3. विधिवत पूजन: जल, अक्षत, चंदन, फूल, नैवेद्य, दीप और धूप से पूजा करें।
4. सीता स्तुति का पाठ: पूजन के दौरान “सीता अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र” या “सीता स्तुति” अवश्य पढ़ें।
5. आरती करें: “जय सीता राम” की आरती गाएं।
6. प्रसाद वितरण: पूजा के पश्चात फल, मिश्री या पंजीरी का प्रसाद वितरित करें।
7. व्रत का पारण: अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।
सीता नवमी व्रत कथा-
पुराणों के अनुसार, जब मिथिला में सूखा पड़ा, तब राजा जनक ने हल चलाकर यज्ञ भूमि तैयार की। उसी दौरान भूमि से एक कन्या प्राप्त हुई, जिसे सीता नाम दिया गया। माता सीता को धरती की पुत्री भी कहा जाता है। उनका विवाह भगवान श्रीराम से हुआ, और वे आदर्श पत्नी, पुत्री, बहू तथा नारी मर्यादा की प्रतिमूर्ति मानी जाती हैं।
सीता स्तुति-
“सीते त्वं धर्मपत्नी च धर्मचारी सदा स्मृता।
धैर्यशीलां महाभाग्ये नमस्ते जनकात्मजे॥”
इस स्तुति का पाठ करने से जीवन में धैर्य, समर्पण और संयम की ऊर्जा प्राप्त होती है।
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