धर्म समाज

काशी विश्वनाथ मंदिर में VIP दर्शन तीन दिन के लिए रद्द

वाराणसी। वाराणसी में शिवरात्रि के अवसर पर काशी विश्वनाथ मंदिर में वीआईपी दर्शन 25 फरवरी से 27 फरवरी तक रद्द कर दिया गया है। महाशिवरात्रि का त्योहार 26 फरवरी को मनाया जा रहा है। मंदिर प्रशासन ने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि उस दिन कई राज्यों से शिव भक्त वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में आएंगे। महाशिवरात्रि को हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले प्रमुख व्रतों में सबसे पवित्र माना जाता है। यह भगवान शिव को समर्पित एक रात है। उस दिन, शिव के भक्त शिव मंदिर में इकट्ठा होते हैं और रात भर होने वाले अभिषेक और कलात्मक प्रदर्शनों में भाग लेते हैं। ऐसे में साधु, भिक्षु और नागा साधुओं सहित लाखों लोग काशी विश्वनाथ मंदिर में सामान्य से अधिक इकट्ठा होंगे। भीड़भाड़ से बचने और भक्तों की सुरक्षा के लिए, मंदिर ट्रस्ट ने घोषणा की है कि कल, 25 फरवरी से 27 फरवरी तक वीआईपी दर्शन रद्द रहेंगे। इसके अलावा, सीईओ भक्तों की सुरक्षा और आराम सुनिश्चित कर रहे हैं। फरवरी के पहले 17 दिनों में एक करोड़ से अधिक श्रद्धालु मंदिर में दर्शन कर चुके हैं। मंदिर में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि को देखते हुए प्रशासन ने यह कदम उठाया है।
काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में खास तौर पर प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले के बाद काफी वृद्धि हुई है। महाशिवरात्रि को महाकुंभ मेले का अंतिम दिन घोषित किया गया है। इससे श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि होने की उम्मीद है।
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महाशिवरात्रि पर राशि अनुसार करें शिव की पूजा

  • जानिए...शिवलिंग पूजा, पूजन सामग्री अर्पण और मंत्र जाप
देशभर में महाशिवरात्रि की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। मध्य प्रदेश में ग्वालियर के ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि शिवरात्रि पर निशिता काल में पूजा का समय 27 फरवरी को रात 12 बजकर 23 मिनट बजे से एक बजकर 12 मिनट तक रहेगा। व्रत पारण का समय 27 फरवरी को सुबह 6 बजकर 55 मिनट से आठ बजकर 54 मिनट तक है।
शिवरात्रि पर पूजा विधि-
प्रातः कालीन तैयारी: सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
शिवलिंग का अभिषेक: शिवलिंग को गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से स्नान कराएं।
पूजा सामग्री अर्पण: बेलपत्र, धतूरा, भांग, बेर, जौ की बालें, मंदार पुष्प आदि भगवान शिव को अर्पित करें।
मंत्र जाप: “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें और भगवान शिव का ध्यान करें।
आरती और प्रसाद: भगवान शिव की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
महाशिवरात्रि पर राशि अनुसार शिव की पूजा करें-
मेष राशि के लोग भगवान शिव की में बेलपत्र और लाल फूल अर्पित करें।
वृषभ राशि के लोग शिव जी को दही और दूध से अभिषेक करें।
मिथुन राशि के लोग शिवलिंग पर बेलपत्र और लाल फूल चढ़ाएं।
कर्क राशि के लोग शिव जी को दूध अर्पित करें।
सिंह राशि के लोग शिवजी को शहद और गुड़ का भोग लगाएं।
कन्या राशि के लोग शिवजी का बेलपत्र और शहद से अभिषेक करें।
तुला राशि के लोग शिव जी का दूध, दही, घी और शहद से अभिषेक करें।
वृश्चिक राशि वाले शिवम् का अभिषेक शहद से करें व लाल फूल अर्पित करें।
धनु राशि वाले शिव पर पीले फूल चढ़ाएं, दूध एवम् हल्दी से अभिषेक करें।
मकर राशि के लोग शिवजी को बेलपत्र, दही, गंगाजल और गाय का दूध आदि अर्पित करें।
कुंभ राशि के लोग भगवान शिव के साथ-साथ शनि देव की पूजा करें।
मीन राशि के जातक पंचामृत से अभिषेक कर पीले फूल भगवान शिव को अर्पित करें।
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विजया एकादशी के दिन पूजा के दौरान करें इन विशेष मंत्रों का जाप

  • मिलेगा सुख-समृद्धि का वरदान
हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, लेकिन मान्यता है कि विजया एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा और व्रत करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. इसके अलावा जीवन के तमाम कष्टों से मुक्ति भी मिलती है. वहीं पूजा के दौरान कुछ खास मंत्रों का जाप करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती हैं.
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की एकादशी तिथि की शुरुआत 23 फरवरी को दोपहर 1 बजकर 55 मिनट पर होगी. वहीं तिथि का समापन 24 फरवरी को दोपहर 1 बजकर 44 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, इस बार विजया एकादशी का व्रत सोमवार 24 फरवरी को रखा जाएगा|
विजया एकादशी पूजा का शुभ मुहूर्त-
वैदिक पंचांग के अनुसार, विजया एकादशी के दिन का मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त सुबह 05 बजकर 11 मिनट से 06 बजकर 01 मिनट तक
विजय मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 29 मिनट से 03 बजकर 15 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त शाम 06 बजकर 15 मिनट से 06 बजकर 40 मिनट तक
निशिता मुहूर्त रात्रि 12 बजकर 09 मिनट से 12 बजकर 59 मिनट तक.
विजया एकादशी पूजा मंत्र-
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
ॐ विष्णवे नम:
विष्णु के पंचरूप मंत्र
ॐ अं वासुदेवाय नम:।।
ॐ आं संकर्षणाय नम:।।
ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:।।
ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:।।
ॐ नारायणाय नम:।।
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
धन-समृद्धि मंत्र-
ॐ भूरिदा भूरि देहिनो , मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि ।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि ।
लक्ष्मी विनायक मंत्र-
दन्ता भये चक्र दरो दधानं, कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृता ब्जया लिंगितमब्धि पुत्रया, लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।
विजया एकादशी व्रत पारण का समय-
एकादशी तिथ व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी तिथि को किया जाता है. इस बार विजया एकादशी व्रत का पारण 25 फरवरी को किया जाएगा. वहीं पारण का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 50 मिनट से लेकर 9 बजकर 8 मिनट तक रहेगा. मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करने व्रत पूरा माना जाता है|
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7 मार्च से लगेंगे होलाष्टक… ज्योतिषाचार्यों की सलाह

  • सभी ग्रह होंगे उग्र, कोई भी बड़ा फैसला लेने से बचें
ग्वालियर। होली का पर्व 40 दिन पूर्व वसंत पंचमी से शुरू हो जाता है। ठाकुरजी (श्रीकृष्ण) कमर में पीतांबरी बांधकर रंगों से होली खेलने के लिए तैयार हो जाते हैं। होली का हुड़दंग होलाष्टक लगने यानी डांडा गढ़ने के साथ शुरू हो जाता है। इस वर्ष होलिकाष्टक (होलाष्टक) 7 मार्च से शुरू होंगे और इसी दिन शुभ कार्यों पर प्रतिबंध लग जाएगा।
होलाष्टक में नहीं किए जाते शुभ कार्य
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि होलाष्टक से सभी ग्रह उग्र हो जाते हैं और अनुकूल फल प्रदान नहीं करते हैं। होलाष्टक में कोई भी मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, मुंडन, नामकरण, गृह प्रवेश आदि कार्य करना वर्जित हैं।
होलाष्टक में सभी ग्रह उग्र अवस्था में आ जाते हैं और नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है। इसलिए इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। होलाष्टक के समय दान और व्रत का भी महत्व है।
इस दौरान वस्त्र, अन्न, धन, आदि का दान करना शुभ माना जाता है। यह कष्टों से मुक्ति और अनुकूल फल देता है।
होली का डांडा भक्त प्रह्लाद और उनकी बुआ का प्रतीक
कई स्थानों पर होलाष्टक के दिन ही होली का डांडा गाढ़ा जाता है। होली का डंडा भक्त प्रह्लाद और उनकी बुआ होलिका की स्मृति का प्रतीक है। डांडा के आसपास लकड़ी और कंडे लगाए जाते हैं और फिर होलिका दहन के दिन इसे अग्नि दी जाती है।
हर शहर के प्रमुख चौराहों व गली, मोहल्लों में डांडा गाढ़ा जाता है। उसी दिन से होली की तैयारियां शुरू हो जाती हैं।
होलाष्टक के दौरान रहते हैं सभी ग्रह उग्र
होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव में रहते हैं। इन ग्रहों के उग्र होने के कारण मनुष्य की मानसिक स्थिति पर नकारात्मक बदलाव आता है, जिससे उसकी निर्णय लेने की क्षमता भी कमजोर हो जाती है।
इस दौरान कई बार गलत निर्णय भी हो जाते हैं। इस कारण हानि की आशंका बढ़ जाती है। इसलिए जनमानस को इन आठ दिनों में महत्वपूर्ण कार्यों का निर्णय लेने से बचना चाहिए और यदि जरूरी हो तो बहुत अधिक सतर्क रहकर निर्णय लेने चाहिए।
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रंगों वाली होली 14 मार्च को

  • जानिए...होलिका दहन का शुभ समय
सनातन धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन होली का त्योहार बहुत ही खास माना जाता है जो कि देशभर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
होली का त्योहार रंगों का त्योहार होता है इस दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाकर अपनी खुशियां बांटते हैं। होली से एक दिन पहले होलिका दहन के दिन भगवान विष्णु और अग्नि देव की पूजा की जाती है। ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा होलिका दहन और होली की सही तारीख व पूजा का शुभ मुहूर्त बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
कब मनाई जाएगी होली-
हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत बृहस्पतिवार 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 35 मिनट पर हो रही है और इस तिथि का समापन अगले दिन यानी की 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में रंगों वाली होली 14 मार्च को पड़ रही है।
होलिका दहन का शुभ समय-
पंचांग के अनुसार होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 13 मार्च की रात 11 बजकर 26 मिनट से लेकर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। ऐसे में होलिका दहन के लिए कुल 1 घंटे 4 मिनट का समय प्राप्त हो रहा है इस दौरान पूजा करना लाभकारी होगा।
होलिका दहन की सरल पूजा विधि-
आपको बता दें कि होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाकर थाली में रख लें। उसके साथ में रोली, पुष्प, मूंग नारियल, अक्षत, साबुत हल्दी, बताशे, कच्चा सूत, फल और कलश भरकर रख लें। फिर भगवान नरसिंह का ध्यान करते हुए उन्हें रोली, चंदन, पांच तरह के अनाज, और पुष्प अर्पित करें फिर कच्चा सूत लेकर होलिका की सात बार परिक्रमा करें। अंत में गुलाल डालकर जल अर्पित करें।
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आज मनाया जाएगा जानकी जयंती व्रत

  • जानें पूजा विधि और इसका महत्व
आज 21 फरवरी को फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है। आज का दिन जानकी जयंती के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन राजा जनक को देवी सीता प्राप्त हुई थीं और उन्होंने उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया था। इस पर्व को सीता अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। विवाहित महिलाओं के लिए यह पर्व विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन माता सीता और भगवान श्रीराम की श्रद्धा पूर्वक पूजा करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
जानकी जयंती तिथि-
दृक पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 20 फरवरी को सुबह 9:58 बजे शुरू होकर 21 फरवरी को सुबह 11:57 बजे समाप्त होगी। इसी आधार पर इस वर्ष जानकी जयंती का पर्व 21 फरवरी, शुक्रवार को मनाया जाएगा।
जानकी जयंती की पूजा विधि-
इस दिन माता जानकी की पूजा के लिए प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें। फिर, मंदिर या पूजा स्थल पर चौकी सजाकर उस पर लाल कपड़ा बिछाएं और श्रीराम एवं माता सीता की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद, रोली, अक्षत, पुष्प आदि अर्पित कर माता जानकी की व्रत कथा का पाठ करें। पूजन के दौरान माता जानकी के मंत्रों का जाप करें और अंत में आरती करके प्रसाद अर्पित करें।
माता सीता के मंत्र-
श्री सीतायै नम:
श्रीरामचन्द्राय नम:
श्री रामाय नम:
ॐ जानकीवल्लभाय नमः
श्रीसीता-रामाय नम:
जानकी जयंती का महत्व-
हिंदू धर्म में माता सीता को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। इस दिन माता सीता की पूजा करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। कई श्रद्धालु इस दिन व्रत रखते हैं और श्रीराम-सीता का पूजन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत का पालन करने से अखंड सौभाग्य और पारिवारिक सुख-शांति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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फाल्गुन अमावस्या पर रहेगा शिव योग

  • ये 5 काम करने से मिलेगी भोलेनाथ की कृपा
फाल्गुन अमावस्या फरवरी माह की 27 तारीख को है। इस तिथि को हिंदू धर्म में बेहद शुभ माना जाता है। इस साल फाल्गुन अमावस्या के दिन शिव योग भी है। शिव योग को ज्योतिष शास्त्र में कल्याणकारी और शिव जी की कृपा प्राप्त करने वाला योग माना जाता है। 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के बाद अगले दिन शिव योग का होगा दुर्लभ संयोग है। ऐसे में फाल्गुन अमावस्या के दिन आप कुछ विशेष कार्य करके भोलेनाथ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। आज हम आपको इसी के बारे में विस्तार से जानकारी देने जा रहे हैं।
पीपल और तुलसी की पूजा-
फाल्गुन अमावस्या के दिन आपको पीपल के वृक्ष और तुलसी के पौधे की पूजा अवश्य करनी चाहिए। ऐसा करने से आपको देवी-देवताओं के साथ ही पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। फाल्गुन अमावस्या के दिन तुलसी की पूजा करते समय “ॐ नमः भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप आपको करना चाहिए। वहीं पीपल की पूजा करते समय आप “ॐ पितृभ्यः नमः” मंत्र का जप कर सकते हैं।
योग-ध्यान के लिए विशेष है फाल्गुन अमावस्या-
फाल्गुन अमावस्या पर शिव योग बन रहा है, इसलिए योग ध्यान के लिए यह दिन बेहद शुभ माना जा रहा है। वहीं मंत्र जप भी आप इस दिन कर सकते हैं। शिव योग में अगर आप ध्यान, धारण और समाधि का अभ्यास करते हैं तो स्वयं भगवान शिव आपकी सहयता करते हैं। इसलिए आपको योग-ध्यान फाल्गुन अमावस्या तिथि पर अवश्य करना चाहिए।
भगवान शिव और हनुमान जी का पूजन-
फाल्गुन अमावस्या के दिन आपको भगवान शिव के साथ ही हनुमान जी की पूजा भी करनी चाहिए। इनकी पूजा करने से आपके जीवन में आ रही सभी समस्याओं का अंत होता है। इस दिन अगर आप हनुमान जी को सिंदूर और चोला अर्पित करते हैं, तो करियर-कारोबार के क्षेत्र में उपलब्धियां आपको हासिल होती हैं।
दान-पुण्य-
अमावस्या तिथि को दान-पुण्य के लिए बेहद शुभ माना गया है। फाल्गुन अमावस्या के दिन आपको भी भोजन, वस्त्र, तिल, गुड़, आटा, फल आदि का दान करके लाभ प्राप्त हो सकता है। इसके साथ ही पक्षियों को भी इस दिन आपको दाना अवश्य डालना चाहिए।
पवित्र नदियों में करें स्नान-
अमावस्या तिथि पर गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने से आपको ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन पवित्र नदियों में ना भी जा पाएं तो घर में नहाते समय नहाने के जल में गंगा जल मिला लें। साथ ही स्नान के बाद सूर्य देव को जल का अर्घ्य दें, ऐसा करने से आपके जीवन में सकारात्मकता आती है।
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प्रदोष व्रत व्रत पर करें ये उपाय, दूर हो जाएगा धन संकट

हिंदू धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन प्रदोष व्रत को बेहद ही खास माना गया है जो कि हर माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भक्त भगवान भोलेनाथ की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से शिव की असीम कृपा बरसती है।
पंचांग के अनुसार इस माह की 25 तारीख को फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पड़ रही है और इसी दिन प्रदोष व्रत किया जाएगा। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विधान है।
इस बार का प्रदोष व्रत मंगलवार को पड़ रहा है। ऐसे में इसे भौम प्रदोष व्रत के नाम से जाना जा रहा है इस दिन पूजा पाठ और व्रत के साथ ही अगर ऋणमोचन मंगल स्तोत्र का पाठ किया जाए तो धन संबंधी परेशानियां दूर हो जाती हैं और आर्थिक लाभ भी मिलता है।
ऋणमोचन मंगल स्तोत्र-
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः।।
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः।।
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः।।
एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्।।
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्।।
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्।।
अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय।।
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा।।
अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्।।
विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः।।
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः।।
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा''।।
इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।
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शबरी जयंती, जानिए...दिन तारीख और व्रत कथा

सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन शबरी जयंती को खास माना गया है जो कि श्रीराम और माता शबरी को समर्पित है। इस दिन प्रभु राम के साथ माता शबरी की पूजा की जाती है। इस दिन उपवास आदि भी रखा जाता है। शबरी जयंती के दिन माता शबरी की स्मृद्धि यात्रा निकाली जाती है। इस दिन दान पुण्य करना भी उत्तम होता है। तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा शबरी जयंती की तारीख और इससे जुड़ी कथा बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
इस दिन है शबरी जयंती-
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि का आरंभ 19 फरवरी को सुबह 7 बजकर 32 मिनट पर हो रहा है। वही इस तिथि का समापन 20 फरवरी को 9 बजकर 58 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में 20 फरवरी को ही शबरी जयंती का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन व्रत भी किया जाता है।
शबरी जयंती से जुड़ी कथा-
शबरी बाई एक भीलनी थीं और भगवान राम की बहुत बड़ी भक्त थीं. वह भगवान राम के दर्शन के लिए वर्षों से इंतजार कर रही थीं. जब भगवान राम सीता हरण के बाद उनकी खोज में निकले तो वे शबरी की कुटिया में भी गए. शबरी ने भगवान राम को बेर खिलाए और उन्हें अपनी भक्ति से प्रसन्न किया. भगवान राम ने शबरी को मोक्ष प्रदान किया और उन्हें अपने परमधाम में ले गए. तभी से राम भक्त इस दिन को शबरी जयंती के रूप में मनाते हैं, जिससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा भक्तों पर बरसाते हैं.
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महाशिवरात्रि के दिन करें ये उपाय, हर मनोकामना होगी पूरी

इस साल महाशिवरात्रि 26 फरवरी 2025 को मनाई जाएगी, जो कि हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर पड़ती है. महाशिवरात्रि के इस पावन अवसर पर लोग विशेष पूजा-अर्चना और व्रत करके भगवान शिव की कृपा प्राप्त करते हैं. ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन कुछ विशेष उपाय करने से महादेव की असीम कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं|
महाशिवरात्रि पर करें ये लाभकारी उपाय-
महाशिवरात्रि के दिन कुछ विशेष उपाय करने से भोलेनाथ कृपा प्राप्त होती है और जीवन की कई समस्याओं से छुटकारा मिलता है. नीचे कुछ उपायों के बारे में बताया गया है|
1. शाम को दीपक जलाना-
संध्याकाल के समय यानी प्रदोष काल के समय शिव मंदिर में एक दीपक जलाना चाहिए, जो कि पूरी रात जलता रहे. मान्यता है कि ऐसा करने से धन संबंधी सारी समस्याएं दूर होती हैं और अपार धन-धान्य की प्राप्ति होती है|
2. आटे का शिवलिंग बनाना-
महाशिवरात्रि के दिन आटे से 11 शिवलिंग बनाकर उनका 11 बार जल से अभिषेक करना चाहिए. इस चमत्कारी उपाय को करने से संतान प्राप्ति के योग बनते हैं और वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है|
3. नंदी को हरा चारा खिलाना-
पौराणिक मान्यता के अनुसार नंदी बैल को भगवान शिव का वाहन माना गया है. ऐसे में महाशिवरात्रि के दिन नंदी बैल को हरा चारा खिलाएं. ऐसा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और सारी परेशानियां दूर होती हैं|
4. अन्न का दान करना-
महाशिवरात्रि के दिन दिन गरीबों और जरूरतमंद व्यक्तियों को भोजन या अन्न का करना चाहिए. ऐसा करने से घर में कभी अन्न और धन की कमी नहीं होती है और पितरों की आत्मा को भी शांति मिलती है|
5. बेलपत्र का कारगर उपाय-
भगवान शिव को बेलपत्र के पत्ते अत्यंत प्रिय माने गए हैं. महाशिरात्रि के दिन 21 बेलपत्र पर चंदन से ‘ॐ नमः शिवाय’ लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं. मान्यता है कि इससे सारी इच्छाएं पूरी होती हैं और भगवान शिव की विशेष कृपा मिलती है|
6. शमी के पत्ते और चमेली के फूल-
धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव को शमी के पत्ते बहुत प्रिय हैं. ऐसे में महाशिवरात्रि के दिन शमी वृक्ष के पत्तों को भगवान शिव की पूजा में शामिल करने से अपार धन-संपदा का आशीर्वाद मिलता है. साथ ही, महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ की पूजा में चमेली के फूलों का भी इस्तेमाल करना भी फलदायी होता है|
7. रुद्राभिषेक और महामृत्युंजय मंत्र-
महाशिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक करने का विधान माना जाता है. साथ ही, इस दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना अत्यंत फलदायी होता है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन इन दोनों काम को करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और भगवान शिव की कृपा बरसती है|
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कब है फाल्गुन माह की मासिक जनमाष्टमी?...जानिए

  • ऐसे करें पूजा, कृष्ण की होगी कृपा
हिंदू धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाएं जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन मासिक कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बेहद ही खास माना जाता है जो कि माह में पड़ता है। यह तिथि भगवान कृष्ण को समर्पित होती है इस दिन भक्त भगवान कृष्ण की विधिवत पूजा करते हैं और उपवास आदि भी रखते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान कृष्ण की कृपा से जीवन में सुख शांति बनी रहती है और कष्टों का निवारण हो जाता है। फाल्गुन मास की मासिक कृष्ण जन्माष्टमी 20 फरवरी को मनाई जाएगी। ऐसे में हम आपको पूजा की सरल विधि बता रहे हैं।
मासिक जन्माष्टमी की पूजा विधि-
आपको बता दें कि मासिक जन्माष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें इसके बाद लाल वस्त्र धारण करें। अब घर के मंदिर में एक चौकी रखें उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। इसके बाद भगवान कृष्ण की प्रतिमा को स्थापित करें। प्रतिमा के समक्ष घी का दीपक जलाएं और व्रत पूजा का संकल्प करें।
पंचामृत या गंगाजल से भगवान को स्नान कराएं। इसके बाद भगवान कृष्ण को नए वस्त्र पहनाएं और बाद में श्रृंगार भी करें। श्री कृष्ण को रोली से तिलक लगाएं। तुलसी के पत्ते, माखन, मिश्री, फल और पुष्प अर्पित करें इस दौरान भगवान कृष्ण के मंत्रों का जाप करें अंत में आरती कर पूजा का समापन करें।
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ 20 फरवरी को सुबह 9 बजकर 58 मिनट पर हो रहा है और इस तिथि का समापन अगले दिन यानी की 21 फरवरी को हो जाएगा। ऐसे में फाल्गुन मास की मासिक कृष्ण जन्माष्टमी कल 20 फरवरी को मनाई जाएगी। इसी दिन उपवास भी किया जाएगा।
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तिरुपति मंदिर में मुफ्त भोजन वितरण के लिए 11 करोड़ रुपये दान

तेलंगाना। मुंबई स्थित एक ट्रस्ट ने तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम के श्री वेंकटेश्वर अन्नप्रसाद ट्रस्ट को 11 करोड़ रुपये का दान दिया है। प्रसिद्ध यूएनओ फैमिली ट्रस्ट के सदस्य तुषार कुमार ने टीटीडी के अतिरिक्त ईओ श्री सीएच वेंकैया चौधरी को चेक सौंपा।
अन्नदानम ट्रस्ट की शुरुआत 1985 में पूर्व मुख्यमंत्री एनटी रामा राव ने तीर्थयात्रियों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए की थी। शुरू में इसका नाम वेंकटेश्वर नित्य अन्नदान दत्ती योजना था। 1994 में स्वतंत्र ट्रस्ट बनने के बाद ट्रस्ट का नाम बदलकर श्री वेंकटेश्वर नित्य अन्नदानम ट्रस्ट कर दिया गया।
2014 में ट्रस्ट का नाम बदलकर श्री वेंकटेश्वर अन्नप्रसादम ट्रस्ट कर दिया गया। इस मेगा फ्री फूड स्कीम को दुनिया भर से मिलने वाले दान से वित्तपोषित किया जा रहा है। ट्रस्ट के मुताबिक, भक्तों को नाश्ते से लेकर रात के खाने तक खिलाने में प्रतिदिन करीब 38 लाख रुपये का खर्च आता है।
तिरुमाला में श्री वेंकटेश्वर मंदिर में दिन के समय भक्तों की सेवा करने के अलावा, ट्रस्ट ब्रह्मोत्सव और अन्य शुभ अवसरों पर आस-पास के अन्य स्थानीय मंदिरों में जाने वाले तीर्थयात्रियों को अन्नप्रसादम भी प्रदान करता है। श्री वेंकटेश्वर अन्नप्रसादम ट्रस्ट के अनुसार, हर दिन लगभग 2 लाख भक्त इस निःशुल्क अन्नदानम सेवा के माध्यम से भोजन करते हैं।
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लाल फूल के ये 5 चमत्कारिक उपाय जीवन में लाएंगे सफलता

वास्तु शास्त्र के चमत्कारिक उपाय को अपनाकर कोई भी अपने भाग्य का उदय कर सकता है। फूलों को वास्तु शास्त्र में बहुत ही सकारात्मक माना गया है। इनको सौभाग्य से जोड़कर देखा जाता है। आप आर्थिक संकट व जीवन में असफलता से परेशान हैं, तो गुड़हल के फूल का उपाय कर सकते हैं। पांच उपाय, जिनका उपयोग कर सकते हैं-
कर्ज से मिल जाएगी मुक्ति-
आप पर कर्जा बढ़ गया है, जिससे मानसिक तनाव है। कोई भी रास्ता इससे निपटने का नहीं निकल पा रहा है, तो शुक्रवार के दिन भगवान गणेश व माता दुर्गा का ध्यान करें। उसके बाद पांच गुड़हल के फूलों को तिजोरी में या पैसा रखने वाली जगह पर रख आएं। ये आपको सात दिनों तक लगातार करना है।
ऐसा माना जाता है कि इस उपाय से घर में फैली नकारात्मक धीरे-धीरे कर दूर होने लगती है, जिससे सकारात्मकता बढ़ती है। आपको धन का लाभ होगा, जिससे कर्ज से मुक्ति मिल जाएगी।
पैसों की तंगी होगी दूर-
आपके जीवन में पैसे की बहुत कमी है। इस आर्थिक तंगी को दूर करने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा है, तो गुड़हल फूल का उपयोग कर सकते हैं। सूर्यदेव की पूजा करने के दौरान उनको तांबे के कलश जल भरकर और गुड़हल का फूल रखकर चढ़ाएं। ऐसा करने से जीवन में आर्थिक संकट खत्म होने लगेगा।
शादीशुदा जिंदगी में आएगी शांति-
शादी के बाद से ही आपका दांपत्य जीवन खराब चल रहा है। जीवनसाथी से आए दिन हर छोटी-बड़ी बात पर झगड़े हो रहे हैं, तो गुड़हल का पौधा अपने घर में लगा दें। इस बात का ध्यान रखें कि पौधे को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर ही लगाएं। ऐसा करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा। गुड़हल के पौधे को सूखने न दें। यह नकारात्मकता को बढ़ाएगा।
आप रात को सोने के दौरान तकिए के नीचे गुड़हल का फूल भी रख सकते हैं। ऐसा करने से आप दोनों के बीच प्रेम बढ़ेगा। एक-दूसरे को समझने की कोशिश करेंगे। रिश्ते में फैली गलतफहमियां दूर हो जाएंगी।
व्यवसाय या नौकरी में मिलेगी तरक्की-
आपको व्यवसाय में नौकरी या तरक्की नहीं मिल पा रही है, तो गुड़हल के फूल के साथ मिश्री का भोग माता लक्ष्मी को लगा दें। उनका आशीर्वाद आपको प्राप्त होगा, जिससे व्यवसाय या नौकरी में सफलता मिलने लगेगी।

डिस्क्लेमर-
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'
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शिवलिंग पर काले तिल और चावल चढ़ाने से क्या होता है लाभ...जानिए

  • महाशिवरात्रि 26 फरवरी 2025 को
इस साल महाशिवरात्रि 26 फरवरी 2025 को है। इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त कई उपाय करते हैं। महाशिवरात्रि पर लोग भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए भांग, धतूरा व बेलपत्र अर्पित करने के साथ ही जलाभिषेक करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग पर काले तिल व चावल अर्पित करने से भी महादेव प्रसन्न होते हैं। जानें महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर काले तिल व चावल चढ़ाने से क्या फल प्राप्त होता है।
काले तिल का महत्व-
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, शिव पूजन में काले तिल का प्रयोग अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर काले तिल अर्पित करने से सर्प दोष, शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या का अशुभ प्रभाव कम होता है। शिवलिंग पर काला तिल अर्पित करने से व्यक्ति को हर तरह की परेशानियों से मुक्ति मिलती है और भगवान शंकर की कृपा से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
शिवलिंग पर कच्चे चावल चढ़ाने से क्या फल मिलता है- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर चावल (अक्षत) चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और धन-धान्य का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। मान्यता है कि शिवलिंग पर अक्षत चढ़ाने से भगवान शिव की कृपा से मनवांछित फल प्राप्त होने के साथ धन लाभ भी होता है। शिवलिंग पर अक्षत चढ़ाते समय इस मंत्र को बोले- अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकमाक्ता: सुशोभिता:. मया निवेदिता भक्त्या: गृहाण परमेश्वर। मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन की विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं।
महाशिवरात्रि पर बन रहे पूजन मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त- 05:09 एएम से 05:59 एएम
प्रातः सन्ध्या- 05:34 एएम से 06:49 एएम
विजय मुहूर्त- 02:29 पीएम से 03:15 पीएम
गोधूलि मुहूर्त- 06:17 पीएम से 06:42 पीएम
सायाह्न सन्ध्या- 06:19 पीएम से 07:34 पीएम
अमृत काल- 07:28 एएम से 09:00 एएम
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कालाष्टमी पर करें इन चीजों का दान, दूर होगी जीवन की नकारात्मकता

हिंदू धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन कालाष्टमी व्रत को खास माना गया है जो कि हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाई जाती है।
यह तिथि भगवान भैरव को समर्पित है जो कि महादेव का ही उग्र रूप माने जाते हैं। कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा अर्चना करने से सभी प्रकार के भय और संकट का नाश हो जाता है।
मान्यता है कि बाबा भैरव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें नकारात्मक शक्तियों से बचाते हैं। इस दिन भगवान भैरव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
इस बार कालाष्टमी व्रत 20 फरवरी को मनाया जाएगा। इस दिन पूजा पाठ के साथ ही गरीबों और जरूरतमंदों को दान जरूर दें। ऐसा करने से प्रभु का आशीर्वाद बना रहता है और नकारात्मकता दूर हो जाती हैं।
कालाष्टमी पर करें इन चीजों का दान-
ज्योतिष अनुसार कालाष्टमी के दिन काले तिल का दान जरूर करें मान्यता है कि काले तिल का दान करने से सभी पापों का नाश हो जाता है और जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा इस दिन काले चने का दान अगर गरीबों और जरूरतमंदों को किया जाए तो सफलता हासिल होती है और धन की कमी भी दूर हो जाती है। कालाष्टमी के दिन आप लोहे की वस्तुओं का दान भी कर सकते हैं ऐसा करने से बाधाओं का अंत हो जाता है और सुख समृद्धि बनी रहती है।
कालाष्टमी के दिन काले रंग के वस्त्रों का दान करने से सभी प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है और खुशहाली बनी रहती है इसके अलावा इस दिन आप नमक का भी दान कर सकते हैं ऐसा करने से धन लाभ के योग बनते हैं इस दिन तेल का दान करना भी अच्छा माना जाता है इससे कष्ट दूर हो जाते हैं। आप चाहें तो इस दिन फल का दान भी गरीबों और जरूरतमंदों को कर सकते है। ऐसा करने से आरोग्य लाभ होता है और बीामरियों से राहत मिलती है।
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फाल्गुन अमावस्या 27 फरवरी को, करें ये उपाय

  • कालसर्प दोष से मिलेगी मुक्ति
सनातन धर्म में अमावस्या और पूर्णिमा तिथि को खास माना गया है जो कि हर माह में एक बार पड़ती है। पंचांग के अनुसार अभी फाल्गुन मास चल रहा है और इस माह पड़ने वाली फाल्गुन अमावस्या 27 फरवरी को है।
अमावस्या तिथि पर स्नान दान व पूजा पाठ करने की विशेष पंरपरा है। मान्यता है कि इस दिन अगर स्नान दान और व्रत किया जाए तो जीवन के कष्टों का निवारण हो जाता है अमावस्या तिथि पूर्वजों को समर्पित बताई गई हैं ऐसे में इस दिन पितृ पूजा भी श्रेष्ठ फल प्रदान करती है। ज्योतिष अनुसार अमावस्या के दिन अगर कुछ खास उपायों को किया जाए तो कालसर्प दोष से राहत पाई जा सकती है।
कालसर्प दोष से मुक्ति के उपाय-
ज्योतिष अनुसार अमावस्या पर चांदी के नाग नागिन की पूजा करना उत्तम होता है नाग नागिन की पूजा करने के बाद इन्हें किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर दें। ऐसा करने से कुंडली में कालसर्प दोष कम हो जाता है और शुभ फल प्राप्त होते हैं। मान्यता है कि इस पावन दिन पर पवित्र नदी में स्नान ध्यान करें और इसके बाद शिव के तांडव स्तोत्र का विधि पूर्वक पाठ करें। ऐसा करने से भगवान शिव की कृपा प्रापत होती है और कालसर्प दोष भी दूर हो जाता है।
अमावस्या की संध्या में तुलसी की विधिवत पूजा करें साथ ही इसके समक्ष घी का दीपक जलाएं और 108 बार तुलसी की परिक्रमा करें। ऐसा करने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं अमावस्या के दिन इस उपाय को करने से लाभ होता है। इस दिन घी का दीपक ईशान कोण यानी उत्तर पूर्व की दिशा में जलाना चाहिए।
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दुर्गडोंगरी मंदिर है आस्था और विश्वास का केन्द्र

  • प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यटन की दृष्टि से अद्भूत स्थान
रायपुर। छत्तीसगढ़ का बालोद जिला अपनी प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जाना जाता है। इसी कड़ी में एक अद्भुत स्थान है दुर्गडोंगरी किल्लेवाली मंदिर, जो प्रकृति प्रेमियों और रोमांच पसंद करने वालों के लिए बेहद खास है। यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि अपने सुरम्य वातावरण और रोमांचकारी सफर के कारण भी पर्यटकों को आकर्षित करता है।
बालोद जिले के डौंडी विकासखंड के ग्राम कोटागांव के समीप स्थित यह स्थल हरे-भरे वनों के बीच ऊँचाई पर बसा हुआ है। यहाँ की प्राकृतिक छटा बहुत मनमोहक है। खासकर सूर्याेदय और सूर्यास्त के समय का नज़ारा अत्यंत मनोहारी होता है, जो मन को शांति और ऊर्जा से भर देता है। आसपास फैले घने जंगल, बोईरडीह जलाशय का अद्भुत  दृश्य और दूर तक फैली दल्लीराजहरा एवं महामाया की पहाड़ियाँ इस जगह की सुंदरता को और भी बढ़ा देती हैं। बारिश के मौसम में यहाँ की हरियाली अद्वितीय होती है, जिससे यह स्थान और अधिक आकर्षक हो जाता है।
दुर्गडोंगरी किल्लेवाली मंदिर तक पहुँचने का सफर अपने आप में एक रोमांचक अनुभव है। दल्लीराजहरा से महामाया रोड होते हुए लगभग 10 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद इस स्थल का प्रवेश द्वार मिलता है। यहाँ तक वाहनों के लिए सीसी सड़क बनी हुई है, जो ऊँचाई तक जाती है। इसके बाद एक वाहन पार्किंग क्षेत्र है, जहाँ से पैदल यात्रा प्रारंभ होती है। मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियों और कच्चे पगडंडी मार्ग से होकर जाना पड़ता है। यह सफर थकावट भरा जरूर होता है, लेकिन जैसे-जैसे ऊपर बढ़ते हैं, प्रकृति के अनुपम दृश्य हर थकान को दूर कर देती है। मंदिर तक पहुँचने के बाद ऊँचाई से दिखने वाला मनोरम नज़ारा इस यात्रा को अविस्मरणीय बना देता है। इस स्थान को दुर्गडोंगरी कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ पर्वत पर स्थित किला होता है। माना जाता है कि यहाँ कभी एक किला था, जिसके अब केवल अवशेष ही बचे हैं। किले के अवशेषों के साथ ही यहाँ स्थित किल्लेवाली माता का मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। हर मौसम में यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु माँ किल्लेवाली के दर्शन करने आते हैं।
दुर्गडोंगरी किल्लेवाली मंदिर केवल धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि एडवेंचर प्रेमियों के लिए भी एक बेहतरीन पर्यटन स्थल है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता, पहाड़ों की ऊँचाई, जलाशय का मनमोहक दृश्य और रोमांचक चढ़ाई इसे एक अनूठा पर्यटन स्थल बनाते हैं। प्रकृति की गोद में बसा यह स्थल निश्चित रूप से यहां आने वाले लोगों को एक अद्भुत अनुभव प्रदान करता है।
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कालाष्टमी के दिन काल भैरव को अर्पित करें ये चीजें

  • जल्द पूरी होगी मनोकामना
कालाष्टमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है जो हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. यह दिन भगवान भैरव को समर्पित है, जो भगवान शिव के उग्र रूप माने जाते हैं. कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा करने से सभी प्रकार के भय और संकट दूर होते हैं. मान्यता है कि भगवान भैरव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें नकारात्मक शक्तियों से बचाते हैं. कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं. जो लोग सच्चे मन से भगवान भैरव की पूजा करते हैं, उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं|
कालाष्टमी का महत्व-
ऐसी मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा करने से जीवन में समृद्धि और सफलता आती है. भगवान भैरव को धन और ऐश्वर्य का देवता भी माना जाता है. कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा करने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है. यह दिन बुरी शक्तियों को दूर करने और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए बहुत शुभ माना जाता है. भगवान भैरव की पूजा करने से आध्यात्मिक विकास होता है. यह दिन आत्मा को शुद्ध करने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है|
पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 20 फरवरी दिन गुरुवार को सुबह 03 बजकर 30 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 21 फरवरी दिन शुक्रवार को सुबह 01 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार कालाष्टमी की पूजा 20 फरवरी को करना शुभ रहेगा|
कालाष्टमी की पूजा विधि-
कालाष्टमी के दिन सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
भगवान भैरव की प्रतिमा को एक चौकी पर स्थापित करें.
भगवान भैरव को धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें.
कालाष्टमी की व्रत कथा सुनें-
दिन भर व्रत रखें और भगवान भैरव का ध्यान करें.
शाम को चंद्रमा के दर्शन के बाद व्रत का पारण करें.
व्रत पारण के लिए सबसे पहले भगवान भैरव को मोदक का भोग लगाएं.
इसके बाद आप फल, मिठाई और अन्य सात्विक भोजन ग्रहण कर सकते हैं.
इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना शुभ माना जाता है.
काल भैरव को अर्पित करें ये चीजें
कालाष्टमी के दिन काल भैरव की पूजा का विशेष महत्व है. इस दिन काल भैरव को कुछ विशेष चीजें अर्पित करने से मनोकामनाएं जल्द पूरी होती हैं. यहां कुछ चीजें बताई गई हैं जिन्हें आप कालाष्टमी के दिन काल भैरव को अर्पित कर सकते हैं|
काला तिल: कालाष्टमी के दिन काल भैरव को काले तिल अर्पित करना बहुत शुभ माना जाता है. इससे पितृ दोष शांत होता है और राहु-केतु के दोष भी दूर होते हैं.
उड़द की दाल: उड़द की दाल से बनी चीजें जैसे कि पकौड़े, बड़े आदि काल भैरव को अर्पित करने से शनि के दोष शांत होते हैं.
सरसों का तेल: कालाष्टमी के दिन काल भैरव को सरसों का तेल अर्पित करना चाहिए. इससे रोगों से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य अच्छा रहता है.
भैरव अष्टमी: इस दिन काल भैरव को आठ प्रकार के फल अर्पित करने से अष्टलक्ष्मी की प्राप्ति होती है.
काले वस्त्र: काल भैरव को काले वस्त्र अर्पित करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सुरक्षा मिलती है.
पंच मेवा: काल भैरव को पंच मेवा अर्पित करने से धन और समृद्धि में वृद्धि होती है.
मदिरा: कुछ लोग कालाष्टमी के दिन काल भैरव को मदिरा भी अर्पित करते हैं.
कुत्ते को भोजन: कालाष्टमी के दिन काले कुत्ते को भोजन कराना बहुत शुभ माना जाता है. इससे काल भैरव प्रसन्न होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
कालाष्टमी के दिन काल भैरव को ये चीजें अर्पित करने से आपके जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं|
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