धर्म समाज

पीठाधीश्वर शंकराचार्य श्री निश्चलानंद सरस्वती महाराज से वन मंत्री केदार कश्यप ने लिया आशीर्वाद

रायपुर। वन एवं जलवायु परिवर्तन, जल संसाधन, कौशल विकास तथा सहकारिता मंत्री श्री केदार कश्यप ने शुक्रवार को धरसींवा विकासखंड के ग्राम मुरा में आयोजित हिन्दू राष्ट्र धर्मसभा में शामिल हुए। उन्होंने इस मौके पर हिन्दू राष्ट्र के प्रणेता पुरी गोवर्धन मठ पीठाधीश्वर शंकराचार्य श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज से आशीर्वाद लिया और प्रदेशवासियों की सुख, समृद्धि और खुशहाली की कामना की।
गौरतलब है कि विगत तीन दिनों से रायपुर के धरसींवा विकासखण्ड में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित लखन लाल मिश्र के ग्राम मुरा में हिन्दू राष्ट्र के प्रणेता पुरी गोवर्धन मठ पीठाधीश्वर शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज के दिव्य प्रवचन आयोजित है। इस अवसर पर पूर्व आईएएस अधिकारी जी.एस. मिश्रा, स्थानीय जनप्रतिनिधि सहित बड़ी संख्या में साधु-संत और श्रद्धालुजन उपस्थित थे।
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मन को स्वस्थ बनाए रखने फॉलो करें भगवद गीता के ये टिप्स

नई दिल्ली। श्री भगवत गीता हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों में से एक है। यह संवाद धर्म, कर्म, भक्ति और ज्ञान पर आधारित है। दरअसल भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का मनोबल बढ़ाने के लिए गीता का उपदेश दिया था। भगवत गीता ज्ञान, भक्ति और कर्म के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है। यह 18 अध्यायों में विभाजित है और इसमें कुल 700 श्लोक हैं। हम आपको बताते हैं कि यह भगवद-गीता का सारांश है। अर्जुन के मन में संदेह और असमंजस को देखकर श्रीकृष्ण ने उन्हें उपदेश के माध्यम से यह बात समझाने का प्रयास किया। इस गीता में ज्ञान, कर्म और भक्ति के सिद्धांतों का वर्णन किया गया है।
गीता का मुख्य उपदेश कर्मयोग है।
मुख्य शिक्षाओं में से एक है कर्मयोग की शिक्षा। दरअसल, वे कहते हैं कि जीवन में कार्य करना बेहद जरूरी है, लेकिन परिणाम की इच्छा किए बिना। भगवान ने कहा कि सभी को अपना कर्म करते रहना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। इसके फलस्वरूप व्यक्ति का मन शांत रहता है और वह अपना कार्य निष्ठापूर्वक करता है।
इससे हम जीवन में किसी भी परिस्थिति में धैर्य रख सकते हैं। इससे हमें अपने कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
कर्मयोग के माध्यम से व्यक्ति स्वयं को समर्पित कर देता है। वह सिर्फ काम करने के लिए काम करता है और परिणाम की परवाह नहीं करता। इससे उनका मन शांत और स्थिर रहता है।
कर्मयोग से बुद्धि का विकास होता है। इस तरह आप समानता और संतुलन का अनुभव करेंगे।
कर्मयोग का पालन करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति में सहायता मिलती है। वह स्वयं को ईश्वर को समर्पित करके सफल होना चाहता है।
गीता के अनुसार व्यक्ति को समाज की सेवा करनी चाहिए, जो सबसे बड़ा पुण्य कार्य है। इससे भगवान शीघ्र प्रसन्न होकर साधक को फल देते हैं।
इसके अलावा, गीता में कहा गया है कि सही काम व्यक्ति को मानसिक और आध्यात्मिक शांति देता है।
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विजया एकादशी 6 मार्च को, व्रत करने से प्रसन्न होंगी मां लक्ष्मी

हिंदू धर्म में वैसे तो कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन एकादशी का व्रत बेहद ही खास माना गया है जो कि हर माह के दोनो पक्षों में मनाया जाता है इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने का विधान होता है। अभी फाल्गुन मास चल रहा है और इस माह पड़ने वाली एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जा रहा है जो कि श्री हरि विष्णु और देवी लक्ष्मी की साधना को समर्पित है इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से सुख समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है
इस बार विजया एकादशी का व्रत 6 मार्च को किया जाएगा। जो कि फाल्गुन मास की पहली एकादशी है इस दिन पूजा पाठ करने से धन समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा विजया एकादशी से जुड़ी जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
आपको बता दें कि विजया एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें इसके बाद साफ वस्त्रों को धारण कर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत पूजन का संकल्प करें। अब पूजन स्थल की अच्छी तरह साफ सफाई करके गंगाजल का छिड़काव करें इसके बाद एक लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित कर उनकी विधिवत पूजा करें सबसे पहले धूप दीपक जलाएं इसके बाद भगवान का तिलक कर उनके पूजन की सामग्री अर्पित करें साथ ही पीले वस्त्र भी चढ़ाएं।
इसके बाद पुष्प अर्पित कर फल और मिष्ठान का भोग लगाएं। इसके बाद भगवान विष्णु की चालीसा और मंत्रों का जाप कर उनकी आरती करें अंत में भूलचूक के लिए भगवान से क्षमा मांगे और अपनी प्रार्थना कहकर प्रसाद सभी में बांट दें। इसके बाद दिनभर उपवास करें माना जाता है कि इस दिन व्रत पूजा करने से लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है जिससे धन धान्य की कमी नहीं रहती है।
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क्यों लगाते हैं मंदिरों में परिक्रमा, जानें

नई दिल्ली। हिंदू धर्म में देवी-देवताओं और मंदिरों की परिक्रमा पूजा का अभिन्न अंग है। पूजा के नियमों में देवताओं और मंदिरों के चारों ओर घूमना भी शामिल है। चाहे मंदिर की परिक्रमा करना हो या पूजा के दौरान किसी स्थान की परिक्रमा करना, दोनों का बहुत महत्व है। अगर आप भी मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं तो आपको परिक्रमा तो करनी ही पड़ेगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि परिक्रमा क्यों की जाती है और परिक्रमा के नियम क्या हैं? आइए जानते हैं क्या हैं परिक्रमा के नियम और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान गणेश और कार्तिकेय ने सबसे पहले परिक्रमा की थी। देवताओं के बीच यह निर्णय लिया गया कि जो कोई भी दुनिया भर में सबसे पहले चलेगा, उसकी पहले पूजा की जाएगी। इस प्रक्रिया के माध्यम से, भगवान शंकर और माता पार्वती के समय में भगवान गणेश कक्षा में प्रवेश करने वाले पहले पूज्य देवता बन गए। इस आधार पर देवी-देवताओं और उनके घर के मंदिरों की परिक्रमा को पुण्य प्राप्ति की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।
सनातन धर्म में परिक्रमा को बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवी-देवताओं और मंदिरों की परिक्रमा करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इससे उसके आसपास फैली नकारात्मकता नष्ट हो जाएगी। घटनाओं या मंदिरों की परिक्रमा करना उनकी सर्वोच्चता के सामने झुकने जैसा है।
ऐसे करें परिक्रमा-
शास्त्रों के अनुसार भगवान के दाहिने हाथ से बाएं हाथ की ओर परिक्रमा करना सदैव शुभ माना जाता है। परिक्रमा सदैव विषम संख्या ही समझनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर 11 या 21 बार परिक्रमा करना शुभ माना जाता है। परिक्रमा के दौरान आप बात नहीं कर सकते. ऐसा माना जाता है कि इस समय चलते समय भगवान का स्मरण करना सर्वोत्तम होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण-
वैज्ञानिक दृष्टि से भी परिक्रमा लाभकारी मानी जाती है। जिस स्थान पर प्रतिदिन पूजा की जाती है वहां सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। यह ऊर्जा उसके आत्मविश्वास को बढ़ाती है और उसे मानसिक शांति देती है।
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यशोदा जयंती आज, संतान प्राप्ति से जुड़ा है यह त्यौहार

  • जानिए... धार्मिक महत्व, पूजा विधि और लाभ
हिंदू कैलेंडर में यशोदा जयंती का खास महत्व है। पूरे उत्तर भारत में हर साल फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। हालांकि महाराष्ट्र, गुजरात और साउथ के कई राज्यों में यशोदा जयंती को माघ महीने में इसी तिथि के दिन मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान विष्णु ने जब कृष्ण के रूप में धरती पर अवतार लिया था, तो उनका जन्म देवकी माता की कोख से हुआ था, लेकिन भगवान कृष्ण का पालन-पोषण माता यशोदा ने किया था। धार्मिक मान्यता के हिसाब से इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और माता यशोदा की पूजा अर्चना की जाती है। इसे दिन व्रत रखने और पूजा करने से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
यशोदा जयंती का समय-
यशोदा जयंती 2024 में फाल्गुन महीने में 1 मार्च 2024 दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस दिन षष्ठी तिथि है जो सुबह 6 बजकर 21 मिनट पर शुरू होगी और 2 मार्च 2024 को सुबह 7 बजकर 53 मिनट तक रहेगी।
यशोदा जयंती का धार्मिक महत्व-
एक कथाओं के अनुसार, धरती पर अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु जी को कृष्ण के रूप में अवतार लेना पड़ा था। भगवान विष्णु समय-समय पर दुष्टों का विनाश करने के लिए धरती पर अवतरित होते रहे हैं। द्वापर युग में जब मथुरा नरेश कंस का अत्याचार बढ़ गया और लोग उससे परेशान होने लगे तो कंस के अंत के लिए भगवान कृष्ण ने जन्म लिया। भगवान कृष्ण ने कंस की ही बहन देवकी के गर्भ से जन्म लिया। पुत्र के प्राणों की रक्षा करने के लिए भगवान कृष्ण के पिता वसुदेव उन्हें अपने मित्र नंद के पास छोड़ आए थे। जहां कृष्ण के लालन-पालन का सौभाग्य नंद बाबा की पत्नी माता यशोदा को मिला था।
यशोदा माता कृष्ण से इतना प्रेम करती थीं कि उन्हें उनकी लीलाएं सिर्फ लल्ला का बाल रूप ही नजऱ आती थीं। यशोदा के कृष्ण प्रेम से पूरे ब्रजवासी भलीभांति परिचित थे। कृष्ण भी अपनी मैय्या यशोदा से बेहद लगाव रखते थे। यही वजह है कि भगवान कृष्ण को यशोदानंदन भी कहते हैं।
यशोदा जयंती की पूजा से लाभ-
कहा जाता है इस दिन जो भी व्यक्ति माता यशोदा के साथ भगवान कृष्ण की पूजा करता है उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं। इस दिन पूजा करने से संतान की कामना पूरी होती है। यशोदा जयंती पर पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और घर-परिवार में खुशी का माहौल बना रहता है। परिवार में प्यार और धन-धान्य की वृद्धि होती है।
यशोदा जयंती के दिन कैसे करें पूजा, जानिए विधि-
यशोदा जयंती पर भगवान कृष्ण के बाल रूप जिसमें मां यशोदा की गोद में कान्हा हों ऐसी तस्वीर की पूजा करने का विधान है।
जो लोग इस दिन पूजा करते हैं उन्हें प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। साफ कपड़े पहनकर ही पूजा करनी चाहिए।
इसके बाद माता यशोदा और कान्हा की गोल की हुई तस्वीर या फोटो पूजा स्थल पर लगाएं।
पूजा में धूप-दीप जलाकर, रोली-चावल से उनकी टीका करें और पुष्प अर्पित करें।
इसके बाद कृष्ण भगवान और माता को चंदन और रोली लगाएं और पान-सुपारी चढ़ाएं।
कान्हा का पसंदीदा भोगा पेड़ा, माखन और मिश्री चढ़ाकर आरती जाएं और पूजा संपन्न करें।
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शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना है राजिम का प्राचीन श्रीरामचंद्र मंदिर

रायपुर। राजिम में स्थित श्री रामचंद्र मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। मंदिर में लगे शिलालेखों तथा पुरातत्व विभाग द्वारा लगे सूचना बोर्ड से ज्ञात होता है कि इस मंदिर का निर्माण कल्चुरि सामंतो द्वारा ग्यारहवीं शताब्दीं में किया गया था। इस मंदिर में भगवान गणेश जी की एक नृत्य करती हुई मूर्ति है जो पुरातत्ववेत्ता के अनुसार काफी पुरानी है जिसे पुरातत्व विभाग द्वारा विशेष संरक्षण प्राप्त है।
मंदिर के गर्भगृह में पाषाण स्तंभो पर उकेरा गया शिल्प बहुत ही मनमोहक है जो कल्चुरि कालीन संस्कृति और सभ्यता दर्शाती है। मंदिर के दरवाजे पर शिल्प की उत्कृष्ट कला के मूर्तिया शिल्पी है। राजिम का यह राम मंदिर का सबसे प्राचीन मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर को पुरातत्व विभाग द्वारा अपने अधीनस्थ रखते हुए संरक्षित किया गया तथा इस मंदिर का जीर्णाद्धारात्मक मरम्मत कराया जा रहा है। ताकि मंदिर को प्राचीनता स्पष्ट दिखाई दें।
ज्ञात हो कि भू निर्दशांक के अनुसार 200 57’ 48’’ उत्तरी अक्षांश एवं 810 52’ 43’’ पूर्वी देशांतर पर बसे राजिम का पूर्वामुखी रामचन्द्र मंदिर अति प्राचीन है। मंदिर के गर्भगृह में बने पाषाण स्तंभो की शिल्प इस मंदिर की प्राचीनता को दर्शाती है। मंदिर के एकाश्मक स्तम्भों पर उकेरी गई देवी देवताओं की प्रतिमा सहित कला का उत्कृष्ट नमूना देखने को मिलता है। एक शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 8वीं 9वीं शताब्दी ईश्वी की है। मंदिर का निर्माण 11वी शताब्दी में कल्चुरी सामंतो के प्रमुख जगतपाल देव द्वारा किए जाने की पुष्टि करती है।
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भगवान विष्णु को प्रसन्न करने बेहद खास है फाल्गुन एकादशी

हिंदू धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन एकादशी का व्रत बेहद ही खास माना गया है जो कि श्री हरि विष्णु की साधना को समर्पित होता है इस दिन भक्त दिनभर उपवास रखकर भगवान की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से प्रभु का आशीर्वाद मिलता है।
लेकिन हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पहली एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है जो कि हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर मनाई जाती है इस बार विजया एकादशी का व्रत 6 मार्च को किया जाएगा। ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा विजया एकादशी की तारीख और शुभ मुहूर्त के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
विजया एकादशी की तारीख और मुहूर्त-
हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह की एकादशी तिथि का आरंभ 6 मार्च को सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर हो रहा है और इसका समापन 7 मार्च को सुबह 4 बजकर 13 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में विजया एकादशी का व्रत 6 मार्च को किया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से सुख सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है और कष्ट दूर हो जाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी देवताओं की पूजा अर्चना करने से पहले स्नान जरूरी होता है ऐसे में एकादशी के दिन सुबह स्नान आदि के बाद भगवान की विधिवत पूजा का संकल्प करें साथ ही प्रभु की पूजा आरंभ करें। माना जाता है कि विजया एकादशी के दिन पूजा पाठ और व्रत करने से भगवान विष्णु की अपार कृपा प्राप्त होती है और जीवन के सारे कष्ट व दुख दूर हो जाते हैं।
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इस विधि से करें बृहस्पति देव की पूजा, हर मनोकामना होगी पूरी

बृहस्पति देव भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं। ऐसे में गुरुवार का दिन भगवान विष्णु और बृहस्पति देव दोनों को समर्पित माना जाता है। इसके अलावा ज्योतिष में बृहस्पति को देवगुरु कहा जाता है और ज्ञान का कारक माना जाता है।
पंडित प्रमोद शास्त्री के अनुसार जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में बृहस्पति मजबूत होता है उसे जीवन में विशेष लाभ प्राप्त होता है। ऐसे में आप गुरुवार के दिन बृहस्पति देव को इस तरह से प्रसन्न कर सकते हैं।
प्रत्येक गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा करनी चाहिए। इसके लिए गुरुवार के दिन पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें और पूरे परिवार के साथ गुरुवार की आरती करें।
इसके बाद ब्राह्मण को चने की दाल, हल्दी, पीले वस्त्र, बेसन के लड्डू आदि अर्पित करें। साथ ही केले के पेड़ पर हल्दी मिश्रित जल अर्पित करें। इससे गुरु बृहस्पति संतुष्ट होते हैं और साधक को धन और सुख प्रदान करते हैं।
आरती बृहस्पति देवा-
धीरे-धीरे मैं आपको आरामदायक फल और सूखे मेवे प्रदान करता हूं।
ॐ जय बृहस्पति देवा। जय बृहस्पति देवा।
तुम पूर्ण परमात्मा हो, तुम अन्तर्यामी हो।
जगत्पिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।
ॐ जय बृहस्पति देवा। जय बृहस्पति देवा।
मेरे चरणों का रस पवित्र है और सभी अशुद्धियों को दूर कर देता है।
सकल मनोरथ दाता, कृपा करो पूर्ण।
ॐ जय बृहस्पति देवा। जय बृहस्पति देवा।
अपना तन, मन और धन उन लोगों को अर्पित करें जो शरण में आते हैं।
तभी प्रभु प्रकट हुए और द्वार पर आकर खड़े हो गये।
ॐ जय बृहस्पति देवा। जय बृहस्पति देवा।
परोपकार के लिए समर्पित, दीनदयाल दयानिधि।
सब पाप भूल मिटे, जीवन का नाता छूट गया।
ॐ जय बृहस्पति देवा। जय बृहस्पति देवा।
सर्व मनोरथ दाता, सर्व संशय टालो।
यौन कुंठा दूर करें और बच्चों को खुश रखें।
ॐ जय बृहस्पति देवा। जय बृहस्पति देवा।
प्रेम से जो तेरी आरती गाता है। हे गुरु, पूरे मन से गाओ।
वे अपनी समस्याओं पर काबू पाते हैं और वांछित परिणाम प्राप्त करते हैं।
ॐ जय बृहस्पति देवा। जय बृहस्पति देवा।
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महाशिवरात्रि के दिन, इन बातों का रखें खास ध्यान

नई दिल्ली। सनातन धर्म के पवित्र त्योहारों में से एक महाशिवरात्री भी है यह त्योहार हर साल फाल्गुन महीने में मनाया जाता है. इस दिन देवों के देव महादेव की पूजा-अर्चना का विधान किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, जबकि अन्य लोगों का मानना ​​है कि इस दिन भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया था। ज्योतिष शास्त्र में इस दिन के लिए कुछ नियम बताए गए हैं जिनका सख्ती से पालन करना चाहिए। तो आइए जानते हैं-
महाशिवरात्रि पर ये करें-
व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
व्रत वाले दिन सुबह स्नान करके साफ और नए कपड़े पहनें।
व्रत करने वाले को पूरे दिन "ओम नमः शिवाय" का जाप करना चाहिए।
उपवास शुरू करने से पहले अपना उपवास अवश्य तोड़ लें।
जो लोग व्रत कर रहे हैं उनकी मदद करें.
व्रत का पूरा लाभ पाने के लिए अपना व्रत सूर्योदय के बीच से लेकर चतुर्दशी तिथि समाप्त होने से पहले तोड़ें।
भगवान शिव को बेलपत्र अवश्य चढ़ाएं।
पंचामृत से अभिषेक करें।
भूलकर भी ऐसा न करें
व्रत रखने वाले लोगों को चावल, फलियां और गेहूं से बने खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए।
पूजा में सिनेबार को शामिल करने से बचना चाहिए।
भोलेनाथ को भूलकर भी तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाने चाहिए।
किसी के बारे में झूठ बोलने से बचें.
अपने बड़ों का अपमान न करें.
हल्दी चढ़ाने से बचना चाहिए।
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महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर चढ़ाएं ये चीजें

  • हर मनोकामना होगी पूरी
इस साल महाशिवरात्रि 8 मार्च 2024, शुक्रवार को मनाई जाएगी. इस दिन को शिव और शक्ति के मिलन के रूप में मनाया जाता है क्योंकि माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. ऐसे में शिवरात्रि के दिन महादेव और माता गौरी की पूजा करने से साधकों को शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है। ऐसे में शिवरात्रि पूजा के दौरान शिवलिंग पर ये चीजें अर्पित करनी चाहिए।
महाशिवरात्रि के दिन शिव लिंग पर गंगा जल चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग में गंगा जल चढ़ाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसका मतलब है कि सभी चिंताएं दूर हो जाती हैं।
आप इन लेखों से लाभ उठा सकते हैं-
ऐसा माना जाता है कि शिवरात्रि के दिन शहद से शिवलिंग का अभिषेक करना या उसे अर्पित करना मनुष्य के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी होता है। वहीं यह भी माना जाता है कि शिवरात्रि के खास दिन पर शिवलिंग पर घी चढ़ाने से अपने वंश को बढ़ाया जा सकता है।
कृपया यह तेल उपलब्ध करायें-
महाशिवरात्रि के दिन शिव लिंग पर सरसों का तेल लगाना बहुत शुभ माना जाता है। इस तरह से ग्रह के दोषों को खत्म किया जा सकता है। साथ ही अगर आप शिव लिंग पर सरसों का तेल लगाते हैं तो अन्य लोगों के रुके हुए काम पूरे हो जाएंगे।
ये भगवान शिव के लिए महत्वपूर्ण हैं-
भगवान शिव की पूजा के लिए बेलपत्र आवश्यक है। ऐसे समय में महाशिवरात्रि पर शिव लिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से आपकी किस्मत चमक जाएगी। साथ ही आप भगवान शिव को शमी के पत्ते, बेला के फूल और हर्षिंगा के फूल चढ़ाकर अपनी मनोकामना पूरी कर सकते हैं।
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द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत आज, जानें पूजन का शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन भगवान श्री गणेश को समर्पित द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी को बेहद ही खास माना गया है जो कि हर साल फाल्गुन मास में मनाई जाती है इस दिन गणपति की विधिवत पूजा का विधान होता है मान्यता है कि द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा पाठ और व्रत करने से भगवान का आशीर्वाद मिलता है और जीवन की सारी परेशानियां दूर हो जाती है।
पंचांग के अनुसार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर किया जाता है इस बार यह पर्व आज 28 फरवरी बुधवार को मनाया जा रहा है। इस दिन बुधवार पड़ने के कारण इस व्रत का महत्व और बढ़ गया है। ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी की पूजा का शुभ मुहूर्त बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का मुहूर्त-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत चंद्रमा के दर्शन और पूजन के बाद ही पूर्ण माना जाता है वही 28 फरवरी दिन बुधवार को चंद्रोदय 9 बजकर 42 मिनट पर होगा। इस दिन संध्याकाल भगवान श्री गणेश की विधिवत पूजा जरूर करें माना जाता है कि पूजा पाठ करने से ही व्रत का पूर्ण फल साधक को प्राप्त होता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर किसी जातक के जीवन में कष्ट बना हुआ है या फिर कार्यों में मनचाही सफलता हासिल नहीं हो रही है तो ऐसे में आप द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन उपवास जरूर करें। माना जाता है कि इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से भगवान श्री गणेश का आशीर्वाद मिलता है जिससे जीवन की सारी परेशानियां दूर हो जाती है साथ ही मनचाही सफलता भी हासिल होती है।
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द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर करें ये काम, दूर होंगे जीवन के सारे कष्ट

हिंदू धर्म में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन भगवान श्री गणेश को समर्पित द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी को बेहद ही खास माना गया है जो कि हर साल फाल्गुन मास में मनाई जाती है इस दिन गणपति की विधिवत पूजा का विधान होता है मान्यता है कि द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा पाठ और व्रत करने से भगवान का आशीर्वाद मिलता है और जीवन की सारी परेशानियां दूर हो जाती है।
पंचांग के अनुसार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर किया जाता है इस बार यह पर्व 28 फरवरी दिन बुधवार यानी की आज मनाया जाता है इस दिन बुधवार पड़ने के कारण इस व्रत का महत्व और बढ़ गया है। इस दिन पूजा पाठ और व्रत के साथ ही अगर श्रद्धा भाव से गणेश संकटनाशन स्तोत्र का पाठ किया जाए तो तमाम परेशानियों का निवारण हो जाता है और जीवन में खुशहाली आती है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं ये चमत्कारी पाठ।
गणेश संकटनाशन स्तोत्र-
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।
तृतीयंकृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रंचतुर्थकम।।2।।
लम्बोदरं पंचमंच षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णतथाष्टकम्।।3।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तुविनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तुगजाननम।।4।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।
विद्यार्थी लभतेविद्यांधनार्थी लभतेधनम्।
पुत्रार्थी लभतेपुत्रान्मोक्षार्थी लभतेगतिम्।।6।।
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलंलभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभतेनात्र संशय: ।।7।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वागणेशस्य प्रसादत:।।8।। ॥
इति श्रीनारदपुराणेसंकष्टनाशनंगणेशस्तोत्रंसम्पूर्णम्॥
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फाल्गुन संकष्टी चतुर्थी कब, जानें दिन तारीख

सनातन धर्म में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन संकष्टी चतुर्थी को बेहद ही खास माना गया है जो कि हर माह में पड़ती है लेकिन फाल्गुन मास में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी बेहद ही खास मानी जाती है इस शुभ दिन पर भगवान शिव के पुत्र गणेश की विधिवत पूजा की जाती है और व्रत आदि भी रखा जाता है।
मान्यता है कि इस दिन गणपति की आराधना करने से जीवन के सारे कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूजन किया जाता है जो कि गणेश भगवान की आराधना को समर्पित होता है। ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा संकष्टी चतुर्थी की तारीख, मुहूर्त और उपाय बता रहे हैं।
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का मुहूर्त-
पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी तिथि को
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है इस बार संकष्टी चतुर्थी 28 फरवरी दिन बुधवार यानी कल सुबह 1 बजकर 53 मिनट से शुरू हो जाएगा और इसका समापन 29 फरवरी को सुबह 4 बजकर 18 मिनट पर होगा। ऐसे में 28 फरवरी को संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूजन किया जाएगा।
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के आसान उपाय-
संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की विधिवत पूजा करें साथ ही गणपति के समक्ष दो सुपारी और दो इलायची रखकर उसकी पूजा करें ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर कृपा करते हैं और जीवन में आने वाली बाधाएं भी दूर हो जाती हैं। धन दौलत की प्राप्ति के लिए इस दिन लाल रंग के वस्त्र में श्री यंत्र और सुपारी रख दें। इसके बाद गणेश जी की पूजा करें। पूजा करने के बाद लाल वस्त्र में रखी इन चीजों को तिजोरी में रख दें। माना जाता है कि इस उपाय को करने से धन में वृद्धि होती है।
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी की शाम को चंद्रदेव की विधिवत पूजा करें और उन्हें जल अर्पित करें माना जाता है कि ऐसा करने से चंद्र देव का आशीर्वाद मिलता है और परिवार में सुख समृद्धि व शांति आती है।
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महाशिवरात्रि पर इन चीजों का करें दान, घर में आएगी सुख-समृद्धि

नई दिल्ली। देशभर में महाशिवरात्रि का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन सुबह से ही चर्चों में आस्थावानों की भीड़ देखी जा सकती है. यह हिंदू धर्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। आपको बता दें कि यह त्योहार भगवान शिव को समर्पित है और हर साल फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। तदनुसार, इस वर्ष यह अवकाश 8 मार्च को है। इस दौरान महादेव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन भक्त पूरे दिन व्रत रखते हैं और मंदिरों में शिवलिंग पर बाबा भोलेनाथ के पसंदीदा खाद्य पदार्थ जैसे भांग, धतूरा, बेलपत्र, शमीपत्र, गंगा जल और दूध दही चढ़ाते हैं।
हालाँकि, दान का हमेशा एक अलग अर्थ होता है। ऐसा माना जाता है कि दान करने से व्यक्ति जीवन में हमेशा खुश रहता है। आज के लेख में हम आपको बताएंगे कि महाशिवरात्रि के दिन विशेष चीजों का दान कैसे करना चाहिए जो आपको निस्वार्थ मन से करना चाहिए। ऐसा करने से आपको भगवान शिव के साथ-साथ देवी लक्ष्मी की भी विशेष कृपा प्राप्त होगी। इससे साधकों के जीवन में सुख और समृद्धि आएगी। हमें विस्तार से बताएं...
महाशिवरात्रि का त्योहार फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि से शुरू होता है। घंटा। 8 मार्च को 21:57 बजे और अगले दिन 9 मार्च को 18:17 बजे समाप्त होगा। वहीं, पूजा के लिए शुभ समय सुबह 6:25 से 9:28 बजे तक है.
कृपया ये वस्तुएं दान करें-
हिंदू धर्म में तिल का विशेष महत्व है। उसी तरह मकर संक्रांति भी मनाई जाती है, जिसे महाशिवरात्रि पर भी मनाया जाना चाहिए और यह पितृ दोष से मेल खाता है। ऐसे में महाशिवरात्रि पर तिल का दान करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। आपको इसे उनके प्रस्ताव पर दान करना चाहिए। इससे सभी बकाया कार्य पूरे होंगे।
इस दिन आप धार्मिक पुस्तकों का दान भी कर सकते हैं जिनमें सनातन धर्म पर कई ग्रंथ हैं। इससे लोगों का ज्ञान बढ़ेगा और भगवान आपको विशेष आशीर्वाद देंगे।
महाशिवरात्रि पर आप जरूरतमंद लोगों को कपड़े, कंबल, जूते, चप्पल आदि का दान कर सकते हैं। अब माता लक्ष्मी और भगवान शिव प्रसन्न होंगे और आपका घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहेगा। आपको कोई आर्थिक समस्या नहीं होगी.
भगवान शिव को दूध चढ़ाकर रुद्राभिषेक किया जाता है। इसलिए दूध के अलावा डेयरी उत्पाद भी गरीब और जरूरतमंद लोगों को दान करना चाहिए। तब भगवान आपसे तुरंत प्रसन्न होंगे और आपको उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होगा।
इसके अलावा, आप इस खास मौके पर मंदिर में चांदी का शिलिंग भी दान कर सकते हैं। इससे समाज में आपका सम्मान और विश्वसनीयता भी बढ़ेगी। साथ ही आपकी सभी मनोकामनाएं जल्द ही पूरी हो जाएंगी।
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विजया एकादशी 6 मार्च को, जानें शुभ मुहर्त और पूजा विधि

नई दिल्ली। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि सृष्टि के रचयिता भगवान विष्णु को समर्पित है. प्रत्येक माह में दो एकादशियाँ होती हैं। एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष। फाल्गुन माह की यह एकादशी तिथि 6 मार्च 2024, बुधवार को है। इस एकादशी तिथि को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस अवसर पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। व्रत भी रखा जाता है. धार्मिक मान्यता है कि विजया एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से दैवीय आशीर्वाद मिलता है। यह आपके घर में सौभाग्य और समृद्धि भी लाता है। अब मैं आपको विजया एकादशी का शुभ समय और इसकी पूजा कैसे करें बताता हूं।
पंचान अखबार के अनुसार, विजया एकादशी तिथि 6 मार्च को सुबह 6:30 बजे शुरू होगी और 7 मार्च को सुबह 4:13 बजे समाप्त होगी। इस बीच, विजया एकादशी व्रत बहमन 15 तारीख को मनाया जाएगा।
विजया एकादशी पूजा विधि-
विजया एकादशी के दिन लोग अपने दैनिक कार्यों को पूरा करने के बाद गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करते हैं और पीले वस्त्र पहनते हैं। अब सूर्य देव को जल अर्पित करें. स्तंभ के ऊपर पीला या लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित की जाती है। फिर उन्हें कुछ विशेष दें, उदाहरण के लिए कोई फल या पीला फूल। दीपक जलाएं, आरती करें और विष्णु चालीसा का पाठ करें। अब हम श्रीहरि की सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें। आइए हम देवताओं को अच्छी और मीठी चीज़ें अर्पित करें। भोग तुलसी टीम से जुड़ें। अंत में लोगों को प्रसाद वितरित किया जाता है।
भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए-
एकादशी के दिन भगवान विष्णु के इस मंत्र का जाप करें। इस मंत्र के प्रयोग से वह कुछ ही समय में प्रसन्न हो जाते हैं और व्यक्ति पर कृपा बनाए रखते हैं।
ओम ब्रिदा बोरी देहिनो, हम डबल बेरिया बार। बारी गेदिन्द्र दित्सासी।
ॐ बृदा चाशि श्रुत: चित्रं वृत्राहं। अहा, भजसव रादशी।
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इस साल होली में होलिका दहन का मुहूर्त और पूजा विधि जानिए

होली महोत्सव एक सांस्कृतिक, धार्मिक और पारंपरिक त्योहार है। इसके विभिन्न त्यौहार और मेले पूरे भारत में मनाये जाते हैं। होली भाईचारे, आपसी प्रेम और सद्भावना का त्योहार है। इस दिन लोग एक-दूसरे को रंगों से नहलाते हैं।
होली 2024: होली एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। बसंत आते ही इसका इंतज़ार शुरू हो जाता है. फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की रात को होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन होली मनाई जाती है। हिंदू धर्म के अनुसार होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होली का त्यौहार एक सांस्कृतिक, धार्मिक और पारंपरिक त्यौहार है। इसके विभिन्न त्यौहार और मेले पूरे भारत में मनाये जाते हैं। होली भाईचारे, आपसी प्रेम और सद्भावना का त्योहार है। इस दिन लोग एक-दूसरे को रंगों से नहलाते हैं। घर पर गोजी और खाना बनाया जाता है. लोग एक-दूसरे से मिलने जाते हैं, रंग लगाते हैं और होली की शुभकामनाएं देते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं इस साल होली की सही तारीख और समय...
पूर्णिमा का दिन-
फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन और उसके अगले दिन होली मनाई जाती है। इस वर्ष की फाल्गुन पूर्णिमा तिथि 24 मार्च को सुबह 9:54 बजे शुरू होगी। यह तिथि दोपहर 12:29 बजे समाप्त होगी। अगले दिन, 25 मार्च।
होलिका दहन-
होलिका दहन 24 मार्च। इस दिन होलिका दहन का शुभ समय रात 11:13 बजे से 12:27 बजे तक है. ऐसे में होलिका दहन का कुल समय 1 घंटा 14 मिनट रहेगा.
2024 में सार्वजनिक अवकाश कब है?-
होली होलिका के अगले दिन मनाई जाती है इसलिए इस साल होली 25 मार्च को है. इस दिन देशभर में होली धूमधाम से मनाई जाती है.
होलिका दहन पूजा विधि-
होलिका दहन की पूजा करने के लिए सबसे पहले स्नान करना चाहिए।
स्नान करने के बाद होलिका पूजन स्थल पर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
पूजा के लिए गाय के गोबर से होलिका और प्रह्लाद की मूर्ति बनाएं।
पूजा सामग्री के रूप में रोली, फूल, फूल माला, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशा, नारियल गुलाल, 5-7 अनाज और एक बर्तन में पानी रखें।
इसके बाद इन सभी सेवा सामग्रियों और पूरे विधि-विधान से सेवा होती है। मिठाई और फल चढ़ाएं.
न केवल होलिका की बल्कि भगवान नरसिंह की भी विधि-विधान से पूजा करें और फिर होलिका के चारों ओर सात बार परिक्रमा करें।
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सोमवार के दिन करें ये 5 उपाय, समस्याओं से मिलेगा छुटकारा

सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा को समर्पित होता है वही सोमवार का दिन शिव पूजा के लिए श्रेष्ठ माना गया है इस दिन भगवान शिव की विधिवत पूजा की जाती है और व्रत भी रखा जाता है माना जाता है कि ऐसा करने से प्रभु का आशीर्वाद मिसोमवार के दिन करें ये 5 उपाय समस्याओं से मिलेगा छुटकारालता है लेकिन इसी के साथ ही अगर सोमवार के दिन कुछ आसान उपायों को किया जाए तो जीवन की सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं और सुख समृद्धि व सकारात्मकता आती है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा सोमवार के आसान उपाय बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
सोमवार के आसान उपाय-
अगर आपके वैवाहिक जीवन में परेशानियां बनी हुई और आप इससे छुटकारा पाना चाहते हैं तो ऐसे में सोमवार के दिन रुद्राक्ष का दान जरूर करें। माना जाता है कि इससे शादीशुदा जीवन का तनाव व परेशानियां दूर हो जाती हैं और खुशहाली आती है।
सोमवार के दिन उपवास जरूर करना चाहिए। माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से सभी कार्य पूरे हो जाते हैं और भोलेनाथ की कृपा भी प्राप्त होती है। सोमवार के दिन आप चावल, दही, वस्त्र, मिश्री, दूध और दूध से बनी चीजों का दान कर सकते हैं ऐसा करना लाभकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस उपाय को करने से जीवन की कठिन से कठिन परेशानियों का भी अंत हो जाता है।
भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद पाने के लिए सोमवार के दिन शिवलिंग की विधिवत पूजा करें उस पर दूध, बेलपत्र, पुष्प और फल चढ़ाएं। ऐसा करना शुभ माना जाता है इसके साथ ही दीपक जलाएं और अगरबत्ती जरूर दिखाएं। ऐसा करना लाभकारी होता है। इस दिन पूजा करते वक्त ऊं नमः शिवाय मंत्र का जाप जरूर करें। ऐसा करने से जीवन की सारी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं और सुख समृद्धि व आशीर्वाद मिलता है।
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भांग और त्रिपुंड से बना दिव्य रूप, ड्राई फ्रूट-चांदी के बिल्व पत्र से सजे महाकाल

उज्जैन। विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में आज फाल्गुन कॄष्ण पक्ष की द्वितीया पर सोमवार तड़के भस्म आरती के दौरान चार बजे मंदिर के पट खुलते ही पंडे पुजारी ने गर्भगृह में स्थापित सभी भगवान की प्रतिमाओं का पूजन कर भगवान महाकाल का जलाभिषेक दूध, दही, घी, शक्कर फलों के रस से बने पंचामृत से कर पूजन अर्चन किया। इसके बाद प्रथम घंटाल बजाकर हरिओम का जल अर्पित किया गया। कपूर आरती के बाद बाबा महाकाल को रजत का मुकुट और रुद्राक्ष की माला धारण करवाई गई।
आज के श्रृंगार की विशेष बात यह रही कि आज बाबा महाकाल का श्रृंगार भांग से किया गया। इस श्रृंगार की विशेषता यह रही कि ड्राई फ्रूट से बाबा महाकाल को सजाया गया और उन्हें चांदी के बिल्व पत्र अर्पित किए गए, जिसके बाद बाबा महाकाल के ज्योतिर्लिंग को कपड़े से ढांककर भस्मी रमाई गई। भस्म अर्पित करने के पश्चात भगवान महाकाल को रजत की मुण्डमाल और रुद्राक्ष की माला के साथ-साथ ही सुगंधित पुष्पों की माला अर्पित कर फल और मिष्ठान का भोग लगाया गया।
भस्म आरती में बड़ी संख्या मे श्रद्धालु पहुंचे, जिन्होंने बाबा महाकाल के इस दिव्य स्वरूप के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से भगवान महाकाल को भस्म अर्पित की गई। इस दौरान हजारों श्रद्धालुओं ने बाबा महाकाल के दिव्य दर्शनों का लाभ लिया, जिससे पूरा मंदिर परिसर जय श्री महाकाल की गूंज से गुंजायमान हो गया। ऐसी मान्यता है कि बाबा महाकाल भस्मारती मे सभी को निराकार से साकार स्वरूप मे दर्शन देते हैं।
तीन लाख से अधिक की नकद राशि हुई दान में प्राप्त-
श्री महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन हेतु पधारे श्री महाकालेश्वर भगवान के भक्त नई दिल्ली निवासी राकेश आनंद ने पुरोहित योगेश शर्मा व भस्म आरती प्रभारी आशीष दुबे की प्रेरणा से 3,65,000 की नकद राशि श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति को दान में दी। श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के सहायक प्रशासनिक अधिकारी आरपी गहलोत भस्म आरती प्रभारी आशीष दुबे द्वारा दानदाता का दुपट्टा व प्रसाद भेंट कर सम्मान किया गया व विधिवत रसीद प्रदान की गई।
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