धर्म समाज

सोमवार को रखें एकादशी का व्रत, जानें क्‍या है महत्‍व

सोमवार यानी आज की रात तक एकादशी रहेगी। सोमवार को एकादशी का व्रत रखें , क्‍या है महत्‍व जानें हम बताते हैं आपको। जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है। जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।
प्रसन्नता बरसाते हैं भगवान
एकादशी करने वालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं। अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं। इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है। धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है। कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है ।
प्राप्त होती है परमात्मा की प्रसन्नता
पूर्वकाल में राजा नहुष, अंबरीष, राजा गाधी आदि जिन्होंने भी एकादशी का व्रत किया, उन्हें इस पृथ्वी का समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हुआ। भगवान शिवजी ने नारद से कहा है : एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमे कोई संदेह नहीं है। एकादशी के दिन किये हुए व्रत, गौ-दान आदि का अनंत गुना पुण्य होता है ।
आज करें यह कार्य
एकादशी के दिन दिया जलाकर विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करें। अगर विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ नहीं कर सकते हैं तो 10 माला गुरु के दिए मंत्र का जप कर लें l अगर घर में झगडे़ होते हों, तो शांत हों जाए ऐसा संकल्प करके विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें तो घर के झगड़े भी शांत होंगे l
ऐसे लोग न रखें व्रत, चावल त्‍यागें
माह में 15-15 दिनों में एकादशी आती है। एकादशी का व्रत पाप और रोगों को स्वाहा कर देता है लेकिन वृद्ध, बालक और बीमार व्यक्ति एकादशी न रख सकेंंतो चावल का तो त्याग करना चाहिए एकादशी के दिन जो चावल खाता है तो धार्मिक ग्रन्थ से एक- एक चावल एक- एक कीड़ा खाने का पाप लगता है।

डिसक्लेमर
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हर सोमवार करें ये उपाए, भगवन करेंगे कल्याण

हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा को समर्पित होता हैं वही सोमवार का दिन भगवान शिव की पूजा को समर्पित किया हैं इस दिन भक्त भक्त को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं मान्यता है कि आज पूजा पाठ के साथ अगर शिव चालीसा का पाठ भी किया जाए तो शिव प्रसन्न होकर भक्तों को कल्याण का आशीर्वाद प्रदान करते हैं तो हम आपके लिए लेकर आए हैं शिव चालीसा।
श्री शिव चालीसा-
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान ॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥
अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ 4
मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥ 8
देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ 12
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ 16
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ 20
एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ 24
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥
मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥ 28
धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥ 32
नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ 36
पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ 40
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन कल्याण ॥
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श्री भगवती मंदिर सभामंडप के जीर्णोद्धार के लिए 11 लाख का दान

नाशिक। दिल्ली के भक्त तरुण गर्ग और ज्योति गर्ग परिवार ने श्री भगवती मंदिर सभामंडप के जीर्णोद्धार परियोजना के लिए 11 लाख रुपये का दान देकर एक अनूठा परोपकार दिखाया है, जो श्री सप्तशृंग निवासिनी देवी ट्रस्ट द्वारा चलाया जा रहा है। रविवार, 14 मई को तरुण गर्ग ने सहकुटुम श्रीक्षेत्र सप्तशृंगगड का भ्रमण कर श्री भगवती की आरती उतारी।ट्रस्टी एड. दीपक पाटोदकर को सौंपा।
शिरडी के श्री साईं बाबा के भक्त गर्ग परिवार कुछ दिन पूर्व श्री भगवती के दर्शन के लिए आया था।न्यासी अभिभाषक। दीपक पाटोदकर ने उन्हें ट्रस्ट संस्था की ओर से चल रहे विकास कार्यों और श्रद्धालुओं को मिलने वाली सेवा सुविधाओं की बुनियादी जानकारी दी. इस अवसर पर जब उन्होंने श्री भगवती की सेवा में कुछ योगदान देने की इच्छा व्यक्त की तो ट्रस्ट की ओर से उनसे आवश्यक समन्वय किया गया.
रविवार को वास्तव में चेक सौंपने के बाद गर्ग ने भविष्य में श्री सेवा को तकनीकी और मशीनीकरण आधारित विशेष उपकरण सामग्री उपलब्ध कराने की इच्छा जताई। इस मौके पर ट्रस्टी एड. दीपक पाटोडकर, एड. महेंद्र जानोरकर, अश्विन शेटे, कमलकर गोडसे, बाला कोटे सहित सुदर्शन दहतोंडे, कार्यकारी अधिकारी भगवान नेरकर आदि मौजूद थे।
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अपरा एकादशी आज, जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष को मिलाकर सालभर में 24 एकादशी आती है. लेकिन अपरा एकदाशी अपना ही महत्व है. जो श्रीहरि विष्णु के भक्त हैं, उनके लिए ये बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है. ज्येष्ठ मास की एकादशी तिथि को अपरा एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस बार अपरा एकादशी 15 मई, सोमवार यानी आज के दिन मनाई जा रही है. अपरा एकादशी को ही अचला एकादशी कहते हैं. माना जाता है कि इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजा करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा मिलती है.
कहा जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने से मुनष्‍य के जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. अपरा एकादशी पर विष्णु यंत्र की पूजा अर्चना करने का भी महत्व है. इस एकादशी पर श्रद्धालु पूरा दिन व्रत रहकर शाम के समय भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करते हैं जिससे उनको मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि अपनी गलतियों की क्षमा प्राप्ति के लिए अपरा एकादशी पर विधि विधान से पूजा अर्चना करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है.
अपरा एकादशी शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ- 15 मई 2023 सुबह 02 बजकर 46 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त- 16 मई 2023 रात 01 बजकर 03 मिनट तक
पारण का समय - 16 मई 2023 को सुबह 06 बजकर 41 मिनट से सुबह 08 बजकर 13 मिनट तक
अपरा एकादशी पूजन विधि
अपरा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा एक दिन पहले दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरू हो जाती है. दशमी तिथि के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण करने की मनाही है. सुबह सूर्योदय से पहले उठें और स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर साफ कपड़े पहन कर विष्णु भगवान का ध्यान करना करें. पूर्व दिशा की तरफ एक पटरे पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की फोटो को स्थापित करें. इसके बाद दीप जलाएं और कलश स्थापित करें. भगवान विष्णु को फल-फूल, पान, सुपारी, नारियल, लौंग आदि अर्पित करें और खुद भी पीले स्थान पर बैठें.
अपने दाएं हाथ में जल लेकर अपनी मनोकामना का मन में ध्यान कर भगवान विष्णु से प्रार्थना करें. पूरा दिन निराहार रहकर शाम के समय अपरा एकादशी की व्रत कथा सुनें और फलाहार करें. शाम के समय भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने एक गाय के घी का दीपक जलाएं. माना जाता है जो लोग एकादशी के दिन व्रत नहीं कर रहे हैं उन्हें इस दिन चावल नहीं खाने चाहिए. एकादशी के दिन 'विष्णुसहस्रनाम' का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है.
अपरा एकादशी व्रत कथा
धार्मिक कथाओं के अनुसार, महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था. राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था. एक दिन मौका पाकर उसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे शव को गाड़ दिया. अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल के पेड़ पर रहने लगी. मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती थी. एक दिन एक ऋषि उस रास्ते से गुजर रहे थे. उन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना. ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया. राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा. द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया. एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया.
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पंडित प्रदीप मिश्रा को सुनने कवर्धा में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

कवर्धा। सुप्रसिद्ध कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा रूद्र महायज्ञ में एक दिवसीय कथा वाचन के लिए कवर्धा पहुंचे हैं। उनकी कथा सुनने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। भगवान शिव के भजन और कथा सुनकर लोग झूमते हुए नजर आए।
वहीं शनिवार को रूद्र महायज्ञ को गिनिज बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज किया गया। साथ ही रूद्र महायज्ञ के आयोजक गणेश तिवारी को वर्ल्ड रिकॉर्ड का प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। बता दें कि, कवर्धा में 7 मई से 15 मई तक रूद्र महायज्ञ, श्रीमद् भागवत कथा और श्री राम कथा का आयोजन किया गया है। जिसमें हर रोज हजारों की तादाद में लोग कथा सुनने के लिए पहुंचे हैं।
 
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शनि जयंती के दिन शुभ मुहूर्त में करें पूजा

हिंदू धर्म में कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का महत्व भी होता हैं लेकिन शनि जयंती बेहद ही खास मानी जाती हैं। जो कि भगवान शनिदेव की पूजा को समर्पित होती हैं। इस दिन भक्त उपवास रखते हुए भगवान की विधिवत पूजा करते हैं। पंचांग के अनुसार हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को भगवान सूर्यदेव के पुत्र शनिदेव की जयंती मनाई जाती हैं।
इस दिन श्रद्धा भाव से शनिदेव की पूजा करने से भगवान की कृपा बरसती हैं। शनि जयंती को शनि जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता हैं। इस साल शनि जयंती का त्योहार 19 मई को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन शनिदेव की पूजा अगर शुभ मुहूर्त में की जाए तो शनिदेव अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों पर कृपा करते हैं। तो आज हम आपको शनि जयंती पर पूजन का शुभ मुहूर्त बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
शनि जयंती के दिन शुभ मुहूर्त में करें पूजा
शनि जयंती की तारीख- 19 मई 2023
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का आरंभ- 18 मई की रात्रि 9 बजकर 42 मिनट से
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का समापन- 19 मई को रात्रि 9 बजकर 22 मिनट तक।
आपको बता दें कि इस दिन भगवान शनिदेव की विधिवत पूजा करने व व्रत आदि रखने से भगवान प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों पर कृपा करते हैं। इस दिन पूजा पाठ करने से साधक के सभी कष्टों व दुखों का निवारण हो जाता हैं साथ ही सुख समृद्धि का आशीर्वाद भी मिलता हैं।
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वट सावित्री व्रत वाले दिन काले, नीले रंग के वस्त्र धारण न करें

हिंदू धर्म में कई ऐसे व्रत पड़ते हैं जिन्हें महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और खुशहाल वैवाहिक जीवन की कामना से करती हैं। इन्हीं में से एक है वट सावित्री का व्रत, जो कि बहुत ही खास माना जाता हैं वट सावित्री व्रत इस साल 19 मई दिन शुक्रवार को किया जाएगा। इस दिन महिलाएं दिनभर उपवास रखते हैं पूजा पाठ करती हैं मान्यता है कि ऐसा करने से सुख सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता हैं।
इसी दिन शनि जयंती का पर्व भी मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन व्रत पूजन करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं वही अगर किसी के वैवाहिक जीवन में तनाव बना हुआ है तो इस दिन कच्चे सूत को लेकर उसमें 11 गांठें लगाकर पति पत्नी माता पार्वती और भगवान शिव को अर्पित करें ऐसा करने से शादीशुदा जीवन खुशहाल होता हैं और पति की उम्र भी लंबी हो जाती हैं वही इस दिन व्रत पूजन के अलावा कुछ बातों का ध्यान रखना भी जरूरी होता हैं वरना पूजा पाठ का कोई लाभ नहीं होता हैं तो आज हम आपको उन्हीं के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
इन बातों का रखें विशेष ध्यान-
ज्योतिष अनुसार वट सावित्री व्रत वाले दिन भूलकर भी काले, नीले रंग के वस्त्र नहीं धारण करना चाहिए। बल्कि इस दिन लाल और पीले रंग के वस्त्रों को पहन कर पूजा पाठ करना उत्तम होता हैं। वट सावित्री के दिन भूलकर भी बरगद की टहनी ना तोड़ें। अगर कोई ऐसा करता हैं तो उसे जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता हैं।
भूलकर भी इस दिन बरगद के पेड़ की उल्टी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा परिक्रमा करते वक्त किसी का पैर नहीं लगना चाहिए। वट सावित्री व्रत वाले दिन पूजा पाठ से पहले शादीशुदा महिलाओं को सोलाह श्रृंगार जरूर करना चाहिए बिना श्रृंगार पूजा करना अच्छा नहीं माना जाता हैं। लेकिन भूलकर भी काले रंग की चूड़ियां ना पहनें इसे शुभ नहीं माना जाता हैं।
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वट सावित्री व्रत पर गजकेसरी योग सहित बन रहे 3 शुभ योग

जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
सुहागिन महिलाओं में वट सावित्री व्रत का बहुत अधिक महत्व है। यह व्रत पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इसी दिन माता सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से छीनकर वापस लाए थे। तभी से सुहागिन महिलाएं अपने पति के प्राणों की रक्षा व लंबी आयु के लिए ये व्रत रखती हैं।
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। इस साल वट सावित्री व्रत 19 मई, शुक्रवार के दिन रखा जाएगा। वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। वहीं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बरगद के पेड़ में त्रिदेव का वास होता है। यानी की बरगद में जड़ ब्रह्म जी का, तने में श्री विष्णु जी का और शाखाओं में शिवजी का वास होता है। आइए जानते हैं इस बार वट सावित्री व्रत का शुभ मुहूर्त, शुभ योग और पूजा विधि-
वट सावित्री व्रत 2023 शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार अमावस्या तिथि की शुरुआत 18 मई को रात 09 बजकर 42 मिनट पर होगी और इसका समापन 19 मई को रात 09 बजकर 22 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, वट सावित्री व्रत इस बार 19 मई को ही रखा जाएगा।
वट सावित्री व्रत 2023 पर बन रहे ये शुभ योग
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक, इस बार वट सावित्री व्रत के दिन तीन शुभ योगों शोभन, गजकेसरी, शश योग का निर्माण हो रहा है। बता दें कि, 18 मई को शाम 07 बजकर 37 मिनट से लेकर 19 मई को शाम 06 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। वहीं, वट सावित्री अमावस्या के दिन चंद्रमा गुरु के साथ मेष राशि में विराजमान होंगे, इससे गजकेसरी योग बनेगा और इसके साथ ही इसी दिन शनि जयंती भी है, इसलिए इस दिन शनि अपनी कुंभ राशि में विराजमान होकर शश योग का निर्माण भी करेंगे।
वट सावित्री व्रत पूजन विधि
- सबसे पहले सुबह अपने नित्य कार्य से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें और इसके बाद वट वृक्ष के नीचे सावित्री सत्यवान और यमराज की मूर्ति स्थापित करें।
- इसके बाद वट वृक्ष की जड़ में जल, फूल-धूप और मिठाई अर्पित करते हुए पूजा करें।
- फिर कच्चा सूत लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करते जाएं, साथ में सूत तने में लपेटते जाएं और ऐसा करते हुए 7 बार परिक्रमा करें।
- इसके बाद हाथ में भीगा चना लेकर सावित्री सत्यवान की कथा सुनें और फिर भीगा चना, कुछ धन और वस्त्र अपनी सास को देकर उनका आशीर्वाद लें।
- वट वृक्ष की कोंपल खाकर उपवास समाप्त करें।
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पंडित प्रदीप मिश्रा आज कवर्धा में, गणेशपुरम में 9 दिवसीय कथा

कवर्धा। प्रसिद्ध कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा आज कवर्धा पहुंचेंगे। गणेशपुरम में 9 दिवसीय श्री राम कथा और श्री रुद्र महायज्ञ का आयोजन किया जाएगा। कार्यक्रम तय होने के बाद आयोजन मंडल जोर शोर से तैयारियों में लग गया है।
मिली जानकारी के अनुसार पंडित प्रदीप मिश्रा सुबह साढ़े नौ बजे कवर्धा पहुंचेंगे और साढ़े दस बजे से लेकर ढाई बजे तक कथा वाचन करेंगे। पंडित प्रदीप मिश्रा की कथा सुनने न सिर्फ स्थानीय, बल्कि दूसरे जिले और राज्य से लोग जुटेंगे।
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क्यों रखा जाता है पूजा घर में यह पानी

पूजा कक्ष में पानी क्यों रखते हैं? सभी घरों में पूजाघर होता है, जहां पर पूजन सामग्री के अलावा शंख, गरुढ़ घंटी, कौड़ी, चंदन बट्टी, तांबे का सिक्का, आचमन पात्री, गंगाजल और पानी का लोटा भी रखा जाता है। लोटा नहीं तो जल कलश रखते हैं। आखिर पूजा घर में यह पानी क्यों रखा जाता है। क्या है इसका कारण? पवित्रता : प्रतिदिन पूजा के पूर्व हम जल से भगवान के विग्रह को स्नान कराने के बाद स्थान पर जल छिड़ककर उसे पवित्र करते हैं। इसीलिए जल की आवश्यकता हेतु एक लोटे में पानी रखा जाता है।
वरुण देव : जिस तरह गुरुड़देव की स्थापना गरुड़ घंटी के रूप में कि जाती है उसी प्रकार वरुण देव की स्थापना जल के रूप में की जाती है। ऐसा करने का कारण यह है कि जल की पूजा वरुण देव के रूप में होती है और वही दुनिया की रक्षा करते हैं। तुलसी जल : पूजा घर में रखे जल में तुलसी के कुछ पत्ते डाल कर रखे जाते हैं जिसके चलते वह जल शुद्ध एवं पवित्र होने के साथ ही आचमन योग बन जाता है और इसी से जब हम पूजा स्थल को शुद्ध करते हैं तो देवी एवं देवता प्रसन्न होते हैं।
नैवद्य : नैवेद्य हम प्रतिदिन पूजा के बाद भगवान को प्रसाद अर्पण करते हैं जिसे नैवद्य कहते हैं। नैवद्य में मिठास या मधुरता होती है। आपके जीवन में मिठास और मधुरता होना जरूरी है। देवी और देवता को नैवद्य लगाते रहने से आपके जीवन में मधुरता, सौम्यता और सरलता बनी रहेगी। फल, मिठाई, मेवे और पंचामृत के साथ नैवेद्य चढ़ाया जाता है। नैवेद्य अर्पित करने के बाद भगवान को जल अर्पण करने के लिए ही पूजा घर में पानी रखा जाता है।
जल की स्थापना : पूजा घर या उत्तर एवं ईशान कोण में जल की स्थापना करने से घर में सुख एवं समृद्धि बनी रहती है। इसलिए पूजा घर में जल की स्थापना की जाती है। पूजा के स्थान पर तांबे के बर्तन में जल रखते हैं तो यह बहुत ही शुभ माना जाता है। मान्यता के अनुसार जल रखने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। आरती : जब हम आरती करते है उसके बाद आरती की थाली पर थोड़ा सा जल लागकर आरती को ठंडा किया जाता है। इसके बाद चारों दिशाओं में और सभी व्यक्तियों पर जल का छिड़काव किया जाता है। इसके बाद सभी को चरणामृत प्रदान करके प्रसाद देते हैं। इसलिए भी जल को पूजाघर में रखा जाता है।
 
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हर शुक्रवार सीता जी के 108 नामों का जाप, दूर होगी सभी समस्या

हिंदू धर्म में माता सीता को लक्ष्मी का रूप माना गया हैं और शुक्रवार का दिन देवी आराधना के लिए श्रेष्ठ होता हैं इस दिन हर कोई देवी आराधना कर माता को प्रसन्न करना चाहता हैं अगर आप भी मां सीता का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो हर शुक्रवार के दिन माता सीता के 108 नामों का पाठ जरूर करें मान्यता है कि इसका पाठ करने से हर समस्या का समाधान हो जाता हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं मां सीता के 108 नाम।
॥ अथ श्री सीताष्टोत्तरशतनामावलिः ॥
ॐ जनकनन्दिन्यै नमः।
ॐ लोकजनन्यै नमः।
ॐ जयवृद्धिदायै नमः।
ॐ जयोद्वाहप्रियायै नमः।
ॐ रामायै नमः।
ॐ लक्ष्म्यै नमः।
ॐ जनककन्यकायै नमः।
ॐ राजीवसर्वस्वहारिपादद्वयाञ्चितायै नमः।
ॐ राजत्कनकमाणिक्यतुलाकोटिविराजितायै नमः।
ॐ मणिहेमविचित्रोद्यत्रुस्करोत्भासिभूषणायै नमः।
ॐ नानारत्नजितामित्रकाञ्चिशोभिनितम्बिन्यै नमः।
ॐ देवदानवगन्धर्वयक्षराक्षससेवितायै नमः।
ॐ सकृत्प्रपन्नजनतासंरक्षणकृतत्वरायै नमः।
ॐ एककालोदितानेकचन्द्रभास्करभासुरायै नमः।
ॐ द्वितीयतटिदुल्लासिदिव्यपीताम्बरायै नमः।
ॐ त्रिवर्गादिफलाभीष्टदायिकारुण्यवीक्षणायै नमः।
ॐ चतुर्वर्गप्रदानोद्यत्करपङ्जशोभितायै नमः।
ॐ पञ्चयज्ञपरानेकयोगिमानसराजितायै नमः।
ॐ षाड्गुण्यपूर्णविभवायै नमः।
ॐ सप्ततत्वादिदेवतायै नमः।
ॐ अष्टमीचन्द्ररेखाभचित्रकोत्भासिनासिकायै नमः।
ॐ नवावरणपूजितायै नमः।
ॐ रामानन्दकरायै नमः।
ॐ रामनाथायै नमः।
ॐ राघवनन्दितायै नमः।
ॐ रामावेशितभावायै नमः।
ॐ रामायत्तात्मवैभवायै नमः।
ॐ रामोत्तमायै नमः।
ॐ राजमुख्यै नमः।
ॐ रञ्जितामोदकुन्तलायै नमः।
ॐ दिव्यसाकेतनिलयायै नमः।
ॐ दिव्यवादित्रसेवितायै नमः।
ॐ रामानुवृत्तिमुदितायै नमः।
ॐ चित्रकूटकृतालयायै नमः।
ॐ अनुसूयाकृताकल्पायै नमः।
ॐ अनल्पस्वान्तसंश्रितायै नमः।
ॐ विचित्रमाल्याभरणायै नमः।
ॐ विराथमथनोद्यतायै नमः।
ॐ श्रितपञ्चवटीतीरायै नमः।
ॐ खदयोतनकुलानन्दायै नमः।
ॐ खरादिवधनन्दितायै नमः।
ॐ मायामारीचमथनायै नमः।
ॐ मायामानुषविग्रहायै नमः।
ॐ छलत्याजितसौमित्रै नमः।
ॐ छविनिर्जितपङ्कजायै नमः।
ॐ तृणीकृतदशग्रीवायै नमः।
ॐ त्राणायोद्यतमानसायै नमः।
ॐ हनुमद्दर्शनप्रीतायै नमः।
ॐ हास्यलीलाविशारदायै नमः।
ॐ मुद्रादर्शनसन्तुष्टायै नमः।
ॐ मुद्रामुद्रितजीवितायै नमः।
ॐ अशोकवनिकावासायै नमः।
ॐ निश्शोकीकृतनिर्जरायै नमः।
ॐ लङ्कादाहकसङ्कल्पायै नमः।
ॐ लङ्कावलयरोधिन्यै नमः।
ॐ शुद्धिकृतासन्तुष्टायै नमः।
ॐ शुमाल्याम्बरावृतायै नमः।
ॐ सन्तुष्टपतिसंस्तुतायै नमः।
ॐ सन्तुष्टहृदयालयायै नमः।
ॐ श्वशुरस्तानुपूज्यायै नमः।
ॐ कमलासनवन्दितायै नमः।
ॐ अणिमाद्यष्टसंसिद्ध नमः।
ॐ कृपावाप्तविभीषणायै नमः।
ॐ दिव्यपुष्पकसंरूढायै नमः।
ॐ दिविषद्गणवन्दितायै नमः।
ॐ जपाकुसुमसङ्काशायै नमः।
ॐ दिव्यक्षौमाम्बरावृतायै नमः।
ॐ दिव्यसिंहासनारूढायै नमः।
ॐ दिव्याकल्पविभूषणायै नमः।
ॐ राज्याभिषिक्तदयितायै नमः।
ॐ दिव्यायोध्याधिदेवतायै नमः।
ॐ दिव्यगन्धविलिप्ताङ्ग्यै नमः।
ॐ दिव्यावयवसुन्दर्यै नमः।
ॐ हय्यङ्गवीनहृदयायै नमः।
ॐ हर्यक्षगणपूजितायै नमः।
ॐ घनसारसुगन्धाढ्यायै नमः।
ॐ घनकुञ्चितमूर्धजायै नमः।
ॐ चन्द्रिकास्मितसम्पूर्णायै नमः।
ॐ चारुचामीकराम्बरायै नमः।
ॐ योगिन्यै नमः।
ॐ मोहिन्यै नमः।
ॐ स्तम्भिन्यै नमः
ॐ अखिलाण्डेश्वर्यै नमः।
ॐ शुभायै नमः।
ॐ गौर्यै नमः।
ॐ नारायण्यै नमः।
ॐ प्रीत्यै नमः।
ॐ स्वाहायै नमः।
ॐ स्वधायै नमः।
ॐ शिवायै नमः।
ॐ आश्रितानन्दजनन्यै नमः।
ॐ भारत्यै नमः।
ॐ वाराह्यैः नमः।
ॐ वैष्णव्यै नमः।
ॐ ब्राह्म्यैः नमः।
ॐ सिद्धवन्दितायै नमः।
ॐ षढाधारनिवासिन्यै नमः।
ॐ कलकोकिलसल्लापायै नमः।
ॐ कलहंसकनूपुरायै नमः।
ॐ क्षान्तिशान्त्यादिगुणशालिन्यै नमः।
ॐ कन्दर्पजनन्यै नमः।
ॐ सर्वलोकसमारध्यायै नमः।
ॐ सौंगन्धसुमनप्रियायै नमः।
ॐ श्यामलायै नमः।
ॐ सर्वजनमङ्गलदेवतायै नमः।
ॐ वसुधापुत्र्यै नमः।
ॐ मातङ्ग्यै नमः।
ॐ सीतायै नमः।
ॐ हेमाञ्जनायिकायै नमः।
ॐ सीतादेवीमहालक्ष्म्यै नमः।
ॐ सकलसांराज्यलक्ष्म्यै नमः।
ॐ भक्तभीष्टफलप्रदायै नमः।
॥ इति श्रीसीताष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णा ॥
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शुक्रवार का दिन देवी की आराधना मानी जाती है उत्तम

सप्ताह में शुक्रवार का दिन देवी आराधना के लिए उत्तम माना जाता हैं ऐसे में हर कोई आज के दिन देवी को प्रसन्न करने के प्रयास करता हैं माता की विधिवत पूजा आराधना करता हैं मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से देवी मां की कृपा प्राप्त होती हैं। ऐसे में अगर आप माता सीता का आशीर्वाद पाना चाहते हैं या फिर सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति चाहते हैं तो हर शुक्रवार के दिन श्री जानकी स्तुति का पाठ जरूर करें मान्यता है कि ये पाठ चमत्कारी लाभ दिलाता है। जानकी स्तुति का पाठ करने से पहले स्नान आदि करके शुद्ध हो जाएं इसके बाद माता सीता और प्रभु श्रीराम की विधिवत पूजा करें और इसके बाद भी श्री जानकी स्तुति स्तोत्र का मन ही मन पाठ करें। इस विधि से पाठ करने माता जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों की हर परेशानी व दुख को दूर कर देती हैं।
॥ श्री जानकी स्तुतिः ॥ 
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् । जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ॥1॥ 
दारिद्र्यरणसंहत्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम् । विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम् ॥2॥
भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम् । पौलस्त्यैश्वर्यसन्त्री भक्ताभीष्टां सरस्वतीम् ॥3॥ 
पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम् । अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम् ॥4॥
आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम् । प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम् ॥5॥
नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम् । नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम् ॥6॥ 
पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्षस्थलालयाम् । नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम् ॥7॥
आह्लादरूपिणीं सिद्धि शिवां शिवकरी सतीम् । नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम् ॥
सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा ॥8॥
॥इति श्रीस्कन्दमहापुराणे सेतुमाहात्म्ये श्रीजानकीस्तुतिः सम्पूर्णा ॥
 
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हर शुक्रवार पूजा में पढ़ें ये आरती, सफलता होगी मनोकामनाये

सनातन धर्म में हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा को समर्पित होता हैं वही शुक्रवार का दिन देवी आराधना के लिए उत्तम माना जाता हैं। इस दिन भक्त देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं। मान्यता है कि आज के दिन देवी की पूजा के साथ साथ अगर उनकी प्रिय आरती पढ़ी जाती हैं तो माता अतिशीघ्र प्रसन्न होकर कृपा करती हैं और भक्तों के सभी कष्टों व दुखों का निवारण कर देती हैं साथ ही व्रत पूजन का पूर्ण फल भी साधक को मिलता हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं माता लक्ष्मी की प्रिय आरती पाठ, तो आइए जानते हैं।
श्री लक्ष्मी आरती— ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता। तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥ ॥ओम जय लक्ष्मी माता॥ उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता। सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ॥ओम जय लक्ष्मी माता॥ दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता। जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥ ॥ओम जय लक्ष्मी माता॥ तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता। कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥ ॥ओम जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता। सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ॥ओम जय लक्ष्मी माता॥ तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता। खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥ ॥ओम जय लक्ष्मी माता॥ शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता। रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥ ॥ओम जय लक्ष्मी माता॥ महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता। उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥ ॥ओम जय लक्ष्मी माता॥ सब बोलो लक्ष्मी माता की जय, लक्ष्मी नारायण की जय।
 
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धन-संपदा वृद्धि के लिए हर शुक्रवार करें ये उपाए

धन-संपदा में वृद्धि के लिए हर शुक्रवार करें ये उपाए आज शुक्रवार का दिन है और ये दिन माता लक्ष्मी की पूजा को समर्पित किया गया हैं इस दिन भक्त देवी मां को प्रसन्न करने व धन प्राप्ति का आशीर्वाद पाने के लिए माता की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं लेकिन इसके साथ ही अगर आज के दिन श्री धनलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ किया जाए तो धन संबंधी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं साथ ही साथ धन संपदा में वृद्धि होने लगती हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं ये चमत्कारी पाठ।
श्री धनलक्ष्मी स्तोत्र— श्री धनदा उवाच । देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम् । कृपया पार्वती प्राह शङ्करं करुणाकरम् ॥ १ ॥ श्री देव्युवाच । ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम् । दरिद्रदलनोपायमञ्जसैव धनप्रदम् ॥ २ ॥ श्री शिव उवाच । पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः । उचितं जगदम्बासि तव भूतानुकम्पया ॥ ३ ॥ स सीतं सानुजं रामं साञ्जनेयं सहानुगम् । प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं स्तोत्रमुत्तमम् ॥ ४ ॥ धनदं श्रद्धधानानां सद्यः सुलभकारकम् ।
योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो मम ॥ ५ ॥ पठन्तः पाठयन्तोऽपि ब्राह्मणैरास्तिकोत्तमैः । धनलाभो भवेदाशु नाशमेति दरिद्रता ॥ ६ ॥ भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम् । प्रार्थयेत्तां यथाकामं कामधेनुस्वरूपिणीम् ॥ ७ ॥ धनदे धर्मदे देवि दानशीले दयाकरे । त्वं प्रसीद महेशानि यदर्थं प्रार्थयाम्यहम् ॥ ८ ॥ धराऽमरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते । सुधनं धार्मिके देहि यजमानाय सत्वरम् ॥ ९ ॥ रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये ।
शिखीसखमनोमूर्ते प्रसीद प्रणते मयि ॥ १० ॥ आरक्तचरणाम्भोजे सिद्धिसर्वार्थदायिके । दिव्याम्बरधरे दिव्ये दिव्यमाल्यानुशोभिते ॥ ११ ॥ समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते । शरच्चन्द्रमुखे नीले नीलनीरजलोचने ॥ १२ ॥ चञ्चरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके । मत्ते भगवती मातः कलकण्ठरवामृते ॥ १३ ॥ हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके । रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य गुणभाजने ॥ १४ ॥ क्वणत्कङ्कणमञ्जीरे लसल्लीलाकराम्बुजे । रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधारे धरालये ॥ १५ ॥प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मैकसाधनम् । मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व जगदम्बिके ॥ १६ ॥ कृपया करुणागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे । वसुधे वसुधारूपे वसुवासववन्दिते ॥ १७ ॥ धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव । ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये पार्वतीशिवशङ्करे ॥ १८ ॥ स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम् । श्रीकरे शङ्करे श्रीदे प्रसीद मयि किङ्करे ॥ १९ ॥ पार्वतीशप्रसादेन सुरेशकिङ्करेरितम् । श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति भक्तितः ॥ २० ॥ सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद्ध्रुवम् । धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च । भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादिसम्पदः ॥ २१ ॥ इति श्री धनलक्ष्मी स्तोत्र ।
 
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17 जून से 4 नवंबर तक वक्री रहेंगे शनिदेव

इन 3 राशियों को मिलेगी लक्ष्मीजी की असीम कृपा
वैदिक ज्योतिष में शनिदेव को न्याय और कर्म का कारक ग्रह माना गया है। वर्तमान में शनि देव अपनी मूल त्रिकोण राशि कुम्भ में गोचर कर रहे हैं और 17 जून  2023 को वो अपनी ही राशि में वक्री हो जाएंगे। इसके बाद 4 नवम्बर को शनि मार्गी होंगे। शनि देव के वक्री होने से 3 राशियों को शानदार सफलता मिलने जा रही है। आइये जानते हैं कि वो 3 राशियां कौन सी है। 
मेष राशि
इस राशि के जातकों के लिए शनि देव एकादश भाव में वक्री होंगे। इस भाव में वक्री होना इस राशि के जातकों को अच्छा मुनाफा देने का काम करेगा। शनिदेव की कृपा से इस समय व्यापार में मुनाफे की स्थिति वहीं मित्रों से सहयोग के योग दिखाई दे रहे हैं। शोध कार्य में लगे हुए जातक इस समय अच्छा परिणाम देने में समर्थ होंगे। बैंकिंग और मशीन के काम से जुड़े जातकों को कुछ नया करने को मिल सकता है। इस समय आपके सीनियर आपके ऊपर कृपा बनाकर रखने वाले हैं। इस समय आपको सलाह दी जाती है कि जो भी काम अटके हुए है वो 17 जून से 4 नवम्बर के बीच खत्म करने की कोशिश करें। 
कन्या राशि
इस राशि के जातकों के लिए शनिदेव छठे भाव में वक्री होंगे। इस भाव से शत्रु का विचार किया जाता है। इस भाव में शनि के वक्री होने से आपको अपने शत्रुओ पर विजय प्राप्त होगी। इस समय विदेश जाने के लिए वीजा अप्लाई कर सकते हैं। जो जातक उच्च शिक्षा के लिए प्रयासरत थे उन्हें अब कोई अच्छी खबर मिल सकती है। आपका दाखिला किसी विदेश के अच्छे संस्थान में हो सकता है। इस समय आपके ऊपर कोई कर्ज था तो वो भी आप पूर्ण रूप से उतार देंगे। 
धनु राशि
इस राशि के जातकों के लिए शनिदेव तीसरे भाव में वक्री होंगे। इस भाव से जातक के साहस और भाइयों का विचार होते हैं। इस भाव में वक्री शनि आपको यात्राओं से लाभ देने का काम करने वाले हैं। इस समय आपको अपने भाइयों से अच्छा सहयोग प्राप्त होगा जिससे आपका मन प्रसन्न रहेगा। इस समय धर्म, दर्शन और ज्योतिष से जुड़े लोगों को अच्छी प्रसिद्धि प्राप्त हो सकती हैं। शनि की नवम भाव पर दृष्टि किसी धार्मिक यात्रा पर आपको ले जा सकती है। इस समय अपने गुरु की कृपा आपको प्राप्त होगी।

 

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शुक्रवार को सुबह उठते ही करें इस स्तोत्र का पाठ

पैसों से हमेशा भरी रहेगी तिजारी
सप्ताह का हर दिन देवी-देवताओं को समर्पित होता है और शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी की पूजा-आराधना करने के लिए विशेष माना जाता है। इस दिन लोग व्रत भी रखते हैं और मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय भी करते हैं। माना जाता है कि इस दिन कुछ खास उपायों से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और धन-धान्य का आशीर्वाद देती हैं।
हिंदू धर्म में लक्ष्मी जी की विशेष महिमा का वर्णन किया गया है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि शुक्रवार या फिर नियमित रूप से श्री लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी मंत्र, मां लक्ष्मी स्तुति, कनकधारा स्तोत्र आदि का पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे व्यक्ति को आर्थिक संकट से छुटकारा मिलता है और उसके जीवन में धन संपन्नता आती है। तो अगर आपको भी आर्थिक तंगी से पीछा छुड़ाना है और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद पाना है तो शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी के महालक्ष्मी स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।
महालक्ष्मी स्तोत्र
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।।
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।
जो व्यक्ति इस महालक्ष्मी स्त्रोत का दो बार पाठ करते हैं, उन्हें धन-धान्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, तीन बार इस स्त्रोत का पाठ करने से महालक्ष्मी हमेशा प्रसन्न होती हैं।

डिसक्लेमर
'इस लेख में दी गई जानकारी/ सामग्री/ गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ धार्मिक मान्यताओं/ धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें।'
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धीरेंद्र शास्त्री के स्वागत में उतरे मुस्लिम नेता, लगाया पोस्टर

पटना (आईएएनएस)। बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र शास्त्री के पटना आगमन को लेकर सियासत गर्म है। राजद के कई नेता उनके आगमन का विरोध कर रहे हैं, वहीं भाजपा के नेता शास्त्री के स्वागत करने की बात कर रहे हैं।
इस बीच, पटना की सड़कों पर उनके स्वागत में लगाए गए पोस्टर फाड़ने की घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इधर, गुरुवार को मुस्लिम समाज के लोग भी अब शास्त्री के समर्थन में उतर गए हैं। प्रदेश भाजपा कार्यालय के बाहर शास्त्री के स्वागत में लगाया गये एक पोस्टर की चर्चा खूब हो रही है। इस पोस्टर में बिहार को सनातन धर्म का मक्का भी बताया गया है। नवाब अली द्वारा शास्त्री के स्वागत में लगाए पोस्टर में लिखा है, विपक्षियों की गली में मची है खलबली, बजरंगबली जी के समर्थन में खड़ा है नवाब अली, सनातन धर्म का मक्का बिहार की पावन धरती पर बागेश्वर जी का हार्दिक अभिनंदन है।
नवाब अली भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश मंत्री बताए जाते हैं। ज्ञात हो कि धीरेंद्र शास्त्री पटना के नौबतपुर स्थित तरेत पाली मठ के प्रांगण में 13 से 17 मई तक हनुमत कथा और प्रवचन करेंगे। 15 मई को शास्त्री का दिव्य दरबार सजेगा। इसको लेकर तरेत पाली में जोर शोर से तैयारी चल रही है और इसे लेकर ग्रामीणों में खास उत्साह है। शास्त्री के कार्यक्रम के लिए विशाल पंडाल तैयार किया गया है। ग्रामीण पूरी तरह इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए तन, मन और धन से जुटे हुए हैं। इस दौरान यहां 24 घंटे लंगर चलाने की व्यवस्था की गई है।
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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सीपत के प्राचीन शिव मंदिर में पूजा-अर्चना की

रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मस्तूरी विधानसभा के ग्राम सीपत में स्थित प्राचीन शिव मंदिर में विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर प्रदेशवासियों की सुख-शांति, समृद्धि और खुशहाली की कामना की।
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