झूठा-सच

झूठा-सच के लिए वेद संजय की कलम से विशेष : सवाल सिर्फ अतीक की हत्या का नहीं....!

                            साल था 2006, तब के गोरखपुर से लोकसभा सांसद और अब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लोकसभा में यह कहते हुए फूट-फूट कर रो पड़े थे कि उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार उनके खिलाफ षड्यंत्र कर रही है और उन्हें जान का खतरा है। समय बदला और अब योगी आदित्यनाथ उत्तरप्रदेश के दूसरी बार मुख्यमंत्री हैं। हाल ही में एक तरफ मॉफिया डॉन अतीक अहमद के बेटे असद और शूटर गुलाम के एनकाउंटर की खबर आई तो दूसरी तरफ़ यह भी खबर थी कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के मुताबिक योगी सरकार के 6 सालों में से 3 सालों यानी 2017 से 2020 के बीच ही फर्जी एनकाउंटर्स की 93 शिकायतें उसके पास पहुंचीं। यही नहीं, ऐसे फर्जी एनकाउंटर्स की शिकायतें भाजपा के सत्ता में आते ही 1000 फीसदी बढ़ गई हैं। 2016-17 में फर्जी एनकाउंटर्स की सिर्फ 4 शिकायतें थीं, 2017-18 में ये बढ़कर 44 हो गईं। उधर असम में भाजपा के सत्ता संभालने के बाद फर्जी एनकाउंटर की शिकायतें 41 फीसदी कम हुई हैं। हालांकि असद-गुलाम के एनकाउंटर को लेकर जानकारों के सवाल उठाए जाने के बाद झांसी डीएम ने मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए हैं. इस जांच के लिए सिटी मजिस्ट्रेट को जांच अधिकारी बनाया गया है।

मसला सिर्फ यही नही है, असल मसला तो माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या का है। अतीक और अशरफ को पहली और दूसरी बार गुजरात की साबरमती जेल से जब प्रयागराज लाया गया तब सुरक्षा व्यवस्था तगड़ी थी लेकिन जब उसे मेडिकल चेकअप के लिए ले जाया जा रहा था तब सुरक्षा व्यवस्था ऐसी थी कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिसे उसके नित्यकर्मों से निवृत्त होने के भी जानकारी चाहिए होती है, वह उस से बाइट ले रही है और स्थानीय पत्रकार के रुप में आए तीन युवकों ने एक विशेष नारा लगाते हुए अतीक और अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी और मौजूद पुलिसकर्मी युवकों के पिस्तौल खाली होते तक हाथ पर हाथ धर कर खड़ी रही। जब युवकों के पिस्तौल की गोलियां खाली हो गई तब पुलिसकर्मियों को समझ में आया कि उन्हें भी प्रतिकार करना है। इसके बाद पुलिसकर्मी वह करते हैं जो उन्हें पहले करना चाहिए था, मतलब आरोपी युवकों पर गोली चलाती है, जिसमें एक आरोपी युवक घायल हुआ। अब इसी बात का ढिंढोरा यूपी पूलिस पीट रही है कि उसकी जवाबी कार्रवाई में एक युवक घायल हुआ है। आरोपियों के बैकग्राउंड की बात करें जैसा कि यूपी पुलिस बता रही है कि तीनों आरोपी शातिर बदमाश हैं और जेल यात्रा भी कर आए हैं। इनमें से मुख्य आरोपी लवलेश के फ़ेसबुक प्रोफाइल के मुताबिक, वो अपने आप को बजरंग दल का जिला सह सुरक्षा प्रमुख बताता है। संभवत: इसीलिए हत्या करते समय उसने एक खास नारा लगाया। हालांकि यूपी पुलिस की मानें तो तीनों ने अपने कबूलनामे में कहा है कि वे अतीक की हत्या कर फेमस होना चाहते थे।

                   सवाल सिर्फ एनकाउंटर या हत्या का नहीं है, सवाल है तो यह है कि क्या अतीक को मेडिकल चेकअप के दौरान ले जाते वक्त सुरक्षा में लापरवाही बरती गई? सवाल यह भी है कि मौजूद पुलिसकर्मियों ने आरोपी को अतीक के इतने करीब कैसे जाने दिया कि वह अपनी पिस्तौल उसकी कनपटी से सटा सके? यहां यह भी बताना लाजिमी है कि माफिया अतीक ने पुलिस सुरक्षा में गोली मारकर हत्या किए जाने के दो सप्ताह पहले, सुप्रीम कोर्ट में यह कहते हुए याचिका दायर की थी कि यूपी पुलिस की हिरासत के दौरान उसकी जान को खतरा है। तब सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। अब राज्य की योगी सरकार ने जिम्मेदारी निभाते हुए अतीक और अशरफ की हत्या की जांच के लिए तीन सदस्य न्यायिक आयोग बनाया है। हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज अरविंद कुमार त्रिपाठी के नेतृत्व में न्यायिक आयोग का गठन किया है। यूपी के पूर्व डीजीपी सुबेश कुमार सिंह और रिटायर्ड जज बृजेश कुमार सोनी भी आयोग के सदस्य होंगे। तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग 2 महीने के भीतर संपूर्ण घटनाक्रम की विस्तृत जांच कर शासन को रिपोर्ट सौंपेगा.

   हालांकि इन दो हत्याओं के बाद मोदी-योगी समर्थक सोशल मीडिया पर लहालोट हुए पड़े हैं सोशल मीडिया में जो जय-जयकार हो रही है उसे देखकर तो यही प्रतीत होता है कि अब समय आ गया है कि देश में न्यायिक व्यवस्था को ही खत्म कर देना चाहिए। लेकिन एक बड़ा सवाल मीडिया के सामने भी खड़ा होता है कि क्या आगे से उसे किसी के भी मुंह में माइक डालकर बाइट लेने मिलेगा या 8-10 कदम की दूरी पर ही रोक दिया जाएगा...?

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