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होलिका दहन आज, शुभ मुहूर्त शाम 06:34 बजे से रात 08:56 बजे तक

  • जानिए... पूजा विधि और महत्व
होलिका दहन, जिसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। यह त्योहार होली के एक दिन पहले मनाया जाता है और इसकी धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा की रात को किया जाता है। इस वर्ष होलिका दहन 13 मार्च 2025 को होगा। शुभ मुहूर्त केवल कुछ घंटों के लिए उपलब्ध रहेगा, इसलिए सही समय पर पूजा करना शुभ माना जाता है
- होलिका दहन का शुभ मुहूर्त: शाम 06:34 बजे से रात 08:56 बजे तक
- भद्रा समाप्ति का समय: दोपहर 02:45 बजे
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 13 मार्च 2025 को सुबह 10:12 बजे
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 14 मार्च 2025 को सुबह 08:47 बजे
होलिका दहन का महत्व-
होलिका दहन का उल्लेख हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है। यह त्यौहार भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और उसकी राक्षसी बुआ होलिका की कथा से जुड़ा हुआ है।
पौराणिक कथा-
राजा हिरण्यकशिपु ने स्वयं को भगवान मान लिया था और चाहता था कि सभी उसकी पूजा करें। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका, जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था, को प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने का आदेश दिया। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गया। तभी से इस दिन होलिका दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया जाता है।
होलिका दहन की पूजा विधि-
स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
होलिका की स्थापना करें, जिसमें लकड़ी, गोबर के उपले, सूखी घास और गन्ने के टुकड़े रखें।
होलिका दहन के समय परिवार सहित अग्नि के चारों ओर परिक्रमा करें।
कच्चे धागे को होलिका पर लपेटें और पूजा करें।
गंगाजल, कुमकुम, हल्दी, फूल और नारियल अर्पित करें।
गेंहू, चना और नारियल को अग्नि में अर्पित करें, जिससे वर्षभर समृद्धि बनी रहती है।
होलिका की राख को घर लाकर माथे पर लगाएं, इसे शुभ माना जाता है।
होलिका दहन के लाभ और मान्यताएं-
- नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है।
- रोग-शोक और दुर्भाग्य दूर होता है।
- घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
- फसल की अच्छी पैदावार के लिए यह अनुष्ठान किया जाता है।
होलिका दहन के बाद धुलंडी (रंगों की होली)-
होलिका दहन के अगले दिन धुलंडी, यानी रंगों की होली खेली जाती है। इस दिन लोग गुलाल, रंग और पानी के साथ एक-दूसरे को रंगते हैं और प्यार और भाईचारे का संदेश देते हैं।

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